Friday, 16 January 2015

बाबाओं को भजने वाले लोग धार्मिक होते हैं क्या ?क्योंकि बाबा लोग उन्हें अपनी माया में ही भरमाए रहते हैं भगवान की ओर तो फटकने भी नहीं देते हैं !

    आज बाबाओं से करोड़ों लोग प्रभावित हैं किंतु बाबाओं के अनुयायियों की बढ़ती संख्या  का कारण उनके द्वारा किए जा रहे पुण्य हैं या पाप ! इसका मूल्यांकन कैसे हो !

       जो शास्त्रों के अनुशार चलें वे संत और जो शास्त्रों को अपने अनुशार चलावें वे बाबा !संत तो अभी भी समाज को दिशा देने  लगे हुए हैं किन्तु बाबाओं  ने  नरक फैला रखा है ।देखो निर्मल बाबा टाइप के लोगों को भाग्य बदलने की फ्रेंचायजी लिए घूम रहे हैं !

      आज किसी धन हीन आदमी का मन फ़िल्म बनाने का है तो बाया बाबा वो फ़िल्म बना  सकता है अर्थात पहले कुछ वर्ष तक धन इकठ्ठा करने के लिए उसे बबई करनी अर्थात बाबा बनना पड़ेगा !और इसप्रकार से धन संग्रह हो जाने के बाद वो फिल्में बना सकता है बेच सकता है दवा बेच सकता है ज्योतिष वास्तु योग आदि कुछ भी बेच सकता है और कितना भी धन जुटा सकता है उसके बाद कितने भी सुख साधन बना सकता है गाड़ी घोड़ा ट्रेन जहाज तक सब कुछ !वो टीवी चैनलों पर कुछ भी  बक या बया सकता है ऐसे लोग एक नहीं हजार विवाह कर लें किन्तु कोई क्या कर लेगा इनका !पैसा हो तब विवाह तो बुढ़ापे में भी हो जाता है और जैसा चाहो  वैसा हो जाता है ।बाबा बनने के बाद किए गए व्यापार में सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इसमें घाटा होने पर किसी का कुछ देना नहीं होता है फिर नया शुरू किया जा सकता है जबकि कोई ईमानदार गृहस्थ व्यापारी यहीं पर टूट जाता है क्योंकि उसे मूल भी देना होता है और  ब्याज भी ! 

    समाज की स्थिति यह है कि अभ्यास न होने के कारण जप तप व्रत उपवास आदि के शास्त्रीय कठिन विधानों से भयभीत लोग चाहते हैं कि उन्हें कुछ छूट मिले किंतु छूट मिले कहाँ से शास्त्र लिखने वाले तो लिखकर चले गए अब छूट दे कौन !जबकि सनातन हिन्दू धर्म का मूल तो शास्त्र ही है जो वेद शास्त्र आदि में नहीं है वो धर्म कैसा !इसलिए यहाँ तो शास्त्रीय विधानों का पालन ही होता है इसलिए धार्मिक दृष्टि से आलसी लोग अपनी पुजास शांत करने के लिए अपना आचरण बदलने की अपेक्षा अपना भगवान बदल लेते हैं - ऐसे आलसी लोग तो श्री राम के स्थान पर साईंराम, आशाराम, कांशीराम, रामरहीम, रामदेव ,राम विलास आदि किसी को भी अपनी अपनी श्रद्धा विश्वास के अनुशार भगवान मानने लग जाते हैं

     यदि उनके पुण्य का प्रभाव होता तो समाज में भी उसका असर दिखाई देना चाहिए अर्थात अपराधों का ग्राफ घटना  चाहिए था समाज में सात्विकता का विस्तार होना चाहिए था किंतु रोज रोज हो रहे बलात्कार  जैसे और भी अनेकों अपराध धर्म के नाम पर किए जा रहे कलियुगी बाबाओं के हाईटेक आचरण के ही साइडइफेक्ट हैं !माना कि चीटियाँ मिठाई में अधिक होती हैं किन्तु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मिठाई से अधिक चीटियाँ गंदगी में भी होती हैं इस बात को झुठलाया कैसे जा सकता है !इसलिए जैसे सुगंध और दुर्गन्ध के द्वारा हम अच्छाई बुराई का ज्ञान कर लेते हैं उसी प्रकार से समाज में बढ़ती अच्छाइयों से भीड़ को अच्छी एवं बुराइयों से बाबाओं की भीडों को बुराई के लिए इकठ्ठा हुआ जन समूह समझना चाहिए !

    जो चीज  जितनी ज्यादा घटिया मिलावटी सस्ती सरल सहज ग्राह्य  होगी विस्तार उसी का उतना अधिक होगा ! जबकि हितकारी औषधि कड़वी होती है उसे लेने वालों की भीड़ कहाँ देखी जाती है भीड़ें तो जनरल कोच में होती हैं रिजर्वेशन में नहीं !रही बात धार्मिक लोगों के विदेशों तक प्रचारित होने की तो जहाँ लोग हिंदी भी न बोल पाते हों  वहां  योग जैसे शास्त्रीय विज्ञान को समझेगा कौन !वहां तो जो बक आओ  वह शास्त्र ही है !

     देव मंदिरों में लोग जाते हैं तो उन्हें पाप छोड़कर जाने की सीख दी जाती है इसपर साईं वालों ने नारा दिया कि कैसे भी कर्म करो साईं सब माफ कर देते हैं क्योंकि बाबा बड़े दयालू हैं !इससे पाप न छोड़कर धर्म करने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए धार्मिक डालडा के रूप में साईं की छत्रछाया मिल गई या यूँ कह लें कि पाप करते हुए धर्मात्मा कहलाने का लाइसेंस मिल गया !

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