Friday, 4 August 2017

ioku (copy)

 ioku(समय विज्ञान )
 'वात','पित्त'और'कफ' का असंतुलन हो सकता है भूकंपों के आने का कारण !
       वायु सूर्य और चंद्रमा ही 'वात', 'पित्त' और 'कफ'हैं इन पर ही टिका है सारा आयुर्वेद !और इनसे ही निर्मित हुआ है सारा संसार !ये संतुलित रहेंगे तो शरीर निरोग रहेगा,समाज स्वस्थ रहेगा एवं प्राकृतिक आपदाओं से मुक्त रहेगा संसार !इन तीनों की मात्रा बिगड़ते ही घटित होने लगती हैं  भीषण बाढ़,चक्रवातऔर भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ !
    वस्तुतः  'वात', 'पित्त' और 'कफ' आदि आयुर्वेद की कोई  सामान्य परिकल्पना मात्र नहीं है ये प्राकृतिक शक्तियों के स्वभाव परिवर्तनों को पहचानने की पवित्र पद्धति है| इस विधा की एक और बड़ी विशेषता यह है कि  'वात','पित्त'और'कफ' से जैसे शरीरों में होने वाले  रोगों को पहचान लिया जाता है अपितु उनकी चिकित्सा भी करके उन रोगों से जैसे मुक्ति पा ली जाती है उसी प्रकार से भूकंप आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं को यथा संभव नियंत्रित करने का सफल प्रयास भी भारत की प्राचीन पद्धति में अनादि काल से किया जाता रहा है जबकि आधुनिक वैज्ञानिक शोध विधाओं में ऐसी सुविधाएँ संभव ही नहीं हैं और न ही वे लोग ऐसी बातों को पसंद ही करते हैं | 
            पंचतत्वों का स्वरूप ही है 'वात', 'पित्त' और 'कफ'!
     पृथ्वी, वायु ,अग्नि, जल और आकाश ये पंचतत्व है इन्हीं से सारे संसार की रचना होती है | 
         क्षिति जल पावक गगन समीरा |पंच रचित यह अधम शरीरा || 
      पृथ्वी और आकाश को स्थिर मानकर उन्हें अलग करके तथा वायु ,अग्नि और जल इन्हीं तीनों महान शक्तियों को ही  तो वात पित्त और कफ के नाम से जाना जाता है |सृष्टि निर्माण से लेकर संहार तक की सम्पूर्ण शक्तियाँ इन्हीं तीनों के हाथों में हैं इनका संतुलन बचाने और बनाने से स्वस्थ शरीर सुखी समाज एवं प्राकृतिक आपदाओं  से मुक्त संसार बनाया जा सकता है | 
   भूकंपगर्भ - प्राकृतिक असंतुलन के कारण भूकंप आने के 6 -7 महीने पहले भूकंप बनना प्रारंभ हो जाता है उस समय प्रकृति में बहुत छोटे परिवर्तन प्रारम्भ होते हैं जिन्हें प्रकृति से प्राणियों तक केवल अनुभव किया जा सकता है धीरे धीरे इनके सूक्ष्म लक्षण प्रकट होने लगते हैं जिन्हें निरंतर अनुभव करने वाले लोग ही पहचान सकते हैं !धीरे धीरे ये प्रक्रिया आगे बढ़ती चली जाती है और अनुभव करने में लगे लोगों के लिए पहचान आसान होती चली जाती है !
      समय रहते यदि ऐसा पहचाना जा सके तो ऐसी प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए या उनका दुष्प्रभाव घटाने के लिए लौकिक और वैदिक दोनों ही प्रकार के  प्रभावी प्रयास किए जा सकते हैं !



इन्हें समझना इनके घटते बढ़ते प्रभावों का अध्ययन करना उनके कारणों को समझ न थ में हैं न को इस सारे चराचर संसार का बनना बिगड़ना इन्हीं पाँच के द्वारा संभव है इनमें से कोई बहुत       पृथ्वी वायु सूर्य चंद्र और आकाश ये ही तो पंचतत्व हैं  'वात', 'पित्त' और 'कफ' भी तो वायु सूर्य और चंद्र का ही स्वरूप हैं ऐसी परिस्थिति में जब संसार के प्रत्येक पदार्थ यहाँ तक कि पृथ्वी का निर्माण भी पंचतात्विक पद्धति से ही हुआ है कुलमिलाकर सभी शरीरों की निर्माण पद्धति बिल्कुल एक जैसी है सब में पंचतत्वों की मात्रा विद्यमान है |संस्कार के अन्य पदार्थों की तरह ही मनुष्यों पशुओं पक्षियों आदि समस्त जीवों के शरीर भी तो जड़ ही होते हैं | शरीर हों या पदार्थ जन्म और मृत्यु की पद्धति तो सब में है बनना  बिगड़ना  आदि तो सब में ही लगा हुआ है जो जब बनता है उसकी आयु तब से चालू मानी जाती है और जब बिगड़ जाता है तब से आयु समाप्त मान ली जाती है |
शरीरों के इस खेल से आत्मा बिल्कुल अलग है|आत्मा जिन जिन शरीरों में है वैसी वैसी भूमिका अदा कर रही है वहाँ वहाँ वैसा वैसा आचार व्यवहार देखने को मिलता है जिसे हम समझ लेते हैं उसे सजीव मान लेते हैं जिसे नहीं समझ पाते हैं उसे निर्जीव मानते रहते हैं हमारी समझ जैसे जैसे विकसित होती जाती है वैसे वैसे परिवर्तन आता जाता है पेड़ों को पहले जड़ माना जाता था अब चेतन |
    बहुत शीघ्र ये सच्चाई भी समझ में आ सकती है कि पृथ्वी पहाड़ों नदियों समुद्रों आदि में भी आत्मा है ये भी सजीव हैं ये भी हमारी आपकी तरह ही सुख दुःख मान अपमान आदि का अनुभव करते हैं इसलिए वे समय समय पर संकेत दिया करते हैं फिर भी हम नहीं समझते हैं तो क्रिया प्रतिक्रिया देते रहते हैं किन्तु हम उनकी भाषा और भावना नहीं समझ पाते हैं तब घटित होती हैं बड़ी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ !
      इस विषय में सरकार का सहयोग इतना मिल जाता है कि पीड़ितों तक राहत और बचाव कार्य पहुँचाने में सुविधा हो जाती है तथा प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कुछ कम कर लिया जाता है !किंतु सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि जिस विज्ञान की दृष्टि से सरकार प्रायः सभी प्राकृतिक घटनाओं को देखती है और पूर्वानुमान के लिए  भारी भरकम धन खर्च करती है समाज भी उनकी वैज्ञानिक बातों पर विश्वास करता है वो विज्ञान ऐसे समय में अपनी भूमिका कितनी निभा पाता है !
    आँधी तूफान चक्रवात ,बाढ़ और भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में विज्ञान किस प्रकार से कितनी मदद कर पाता है ये किसी से छिपा नहीं है !भूकंप के विषय में पता कुछ नहीं है रिसर्च चल रहा है | मौसम के विषय में सच्चाई कितनी है ये सबको पता है उनके अधिकाँश पूर्वानुमान गलत हो जाते हैं ई.2015 में मौसम के कारण ही प्रधानमंत्री जी की वाराणसी की 2 सभाएँ रद्द करनी पड़ी थीं जिनके आयोजन में करोड़ों रूपए का खर्च आया था !इसके अलावा संभवतः मौसम विभाग की भविष्यवाणियाँ गलत होते रहने के कारण किसान कहाँ के कहाँ पहुँच गए वैसे भी प्रधानमंत्री जी के सामने किसान क्या हैं !
  दूसरी सबसे बड़ी बात ये है कि ये अनुमान यदि सही निकलने भी लगें तो इतने निकट आकर पता लग पाते हैं कि कृषि के लिए उपयोगी नहीं रह जाते हैं फसलों की योजना बनाने के लिए तो समय चाहिए |
       प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगा पाना यदि संभव हो भी जाए जो कि विज्ञान के वश में है या नहीं ये तो भविष्य के गर्त में है वर्तमान तो सूना सूना सा ही है !वस्तुतः प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आधुनिक वैज्ञानिक सोच को यदि वैदिक विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान के लिए अभी तक चलाए जा रहे शोध कार्य तो भटकाव मात्र लगते हैं जिन दिशाओं में सच्चाई हो सकती है उन दिशाओं की पहचान भी होना अभी तक बाकी है|कुछ के कुछ कारण बताए जा रहे हैं ऐसे कारन पहले भी बताए जाते रहे फिर खंडन कर दिया जाता रहा है प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित रिसर्च के विषय में अभी भी उसी प्रकार की कार्य पद्धति का अनुशरण होते दिख रहा है जैसा अन्य सरकारी योजनाओं के लागू करने में होता है | 
   वैदिक विज्ञान के आधार पर मेरा अनुमान है जिस दिशा में आगे बढ़ने से बाढ़ भूकंप आदि के विषय में कुछ ऐसी जानकारी मिल सकती है संभवतः उधर चलने की शुरुआत होनी अभी बाक़ी है ! इन विषयों में प्रमाण रूप में कहीं कुछ प्रस्तुत किया जा सके ऐसी स्थिति में अभी तक विज्ञान है ही नहीं !प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अभी तक चलाई गई रिसर्च यात्रा अभी तक तो समय पास करने वाली बात भर लगती है | 
      इन विषयों में वैज्ञानिकों के विचार जो अभी तक हम समझ पाए हैं वो ये कि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अभी तक विज्ञान की भूमिका शून्य है या यूँ कह लें कि प्राकृतिक आपदाएँ  तो आती रहेंगी समाज इसे सहती रहेगी आर्थिक एवं बचाव कार्यों से संबंधित मदद सरकार करती रहेगी | इसका मतलब हम केवल इतना समझ पाते हैं प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ती जाएँगी हमें केवल बचाव करना है किंतु केवल बचाव के विषय में सोचना तो हमारी लाचारी है इसमें विज्ञान कहाँ है बचाव तो हर कोई अपनी अपनी परिस्थितियों के अनुशार कर ही लेता है किंतु विज्ञान का लाभ तो तब है जब प्राकृतिक आपदाओं को घटाने में कमी लाई जा सके !अन्यथा प्राकृतिक आपदाएँ हमारा पीछा करती रहेंगी और इनसे डर कर  तक भागना होगा !जो जिससे डरता है वो उसे डरवाता जरूर रहता है किंतु सामना करें तो कैसे !



      शरीरों के इस खेल से आत्मा बिल्कुल अलग है मनुष्यों पशुओं पक्षियों तथा सभी पदार्थों में आत्मा निवास करती है किंतु शरीरों के अनुशार उनका व्यवहार अलग अलग प्रकार का हो जाता है मनुष्य जैसे बोलता है हर जीव वैसे तो नहीं बोलपाता है फिर भी उसमें आत्मा है यदि ऐसा जा सकता है तो मनुष्य जैसे चलता फिरता हिलता डुलता आदि है यदि पहाड़ पृथ्वी नदियाँ समुद्र आदि का आचार व्यवहार बोली भाषा मनुष्यों की तरह नहीं होती तो हम उन्हें आत्मा विहीन कैसे और किस आधार पर मान सकते हैं आत्मा को देखा नहीं जा सकता पकड़ा नहीं जा सकता पहचाना नहीं जा सकता फिर ये कैसे कह दिया जाए कि शरीरों में तो आत्मा है किंतु पृथ्वी पहाड़ आदि अन्य पदार्थों में नहीं है | रही बात बोलने चालने चलने फिरने आदि की तो जैसे मनुष्यों पशुओं पक्षियों आदि समस्त जीवों की बोली भाषा रहन सहन चलने फिरने आदि का ढंग अलग अलग प्रकार का होता है सब का एक जैसा तो नहीं होता है किंतु उसमें कुछ कुछ मनुष्यों से मिलता जुलता है इसलिए हम उन्हें पहचान पाते हैं और उन्हें जीवित मान लेते हैं उसी प्रकार से पृथ्वी पहाड़ों नदियों समुद्रों आदि की भी कोई भाषा हो सकती है उनमें भी हँसना मुस्कुराना आदि होता हो वो भी बुरा भला आदि मानकर सुखी दुखी आदि होते हों किंतु हमारे अंदर ही वो योग्यता नहीं है जिससे उनके बात व्यवहार आदि को हम समझ पाते !ऐसा ही भ्रम तो हमारा वृक्षों के विषय में भी था बाद में हमें स्वीकार  करना पड़ा कि वैदिक आदि प्राचीन साहित्य में वृक्षों के विषय में जो कुछ भी लिखा हुआ है वो सही है वृक्ष सजीव होते हैं | मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि मानव समझ का जैसे जैसे विकास होता जाता है वैसे वैसे सच्चाई समझ में आती जाती है इसी कर्म में बहुत शीघ्र ये सच्चाई भी समझ में आ सकती है कि पृथ्वी पहाड़ों नदियों समुद्रों आदि में भी आत्मा है ये भी सजीव हैं ये भी हमारी आपकी तरह ही क्रिया प्रतिक्रिया करते रहते हैं समय समय पर संदेशे देते रहते हैं किन्तु हम उनकी भाषा और भावना नहीं समझ पाते  हैं इसलिए वे इशारे अर्थात संकेत दिया करते हैं जिन्हें हम प्राकृतिक आपदाएँ कहकर नेचर मान लेते हैं इसका मतलब हम केवल इतना समझ पाते हैं प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ती जाएँगी हमें बचाव करना है किंतु केवल बचाव के विषय में सोचने में विज्ञान कहाँ है बचाव तो हर कोई अपनी अपनी परिस्थितियों के अनुशार कर ही लेता है किंतु विज्ञान का लाभ तो तब है जब प्राकृतिक आपदाओं को घटाने में कमी लाई जा सके !


तो ताब है जब 

सकते हैं मारा कटा जलाया आदि मनुष्यों की वैसे शरीर सहित सभी पदार्थों  

आत्मा का इस विषय से कोई संबंध नहीं है विषय पृथ्वी के अन्य   रोग तो श्रीओं

निर्मित है इसीलिए  'वात', 'पित्त' और 'कफ' की प्रमुखता सभी में है हवा आग जल आदि तो सब में विद्यमान हैं


इन्हीं में पृथ्वी और आकाश को स्थिर मानते हुए उन्हें इस प्रक्रिया से अलग करके वायु सूर्य और चंद्र तीन को क्रमशः  'वात', 'पित्त' और 'कफ' मान लिया गया | सारा आयुर्वेद इन्हीं तीनों पर टिका हुआ है | 
          बीमारियाँ तीन प्रकार की होती है और भूकंप भी तीन प्रकार के ही होते हैं -'वातज', 'पित्तज' और 'कफज' 
     बात पित्त कफ की पद्धति से यदि बीमारियों को पहचाना जा सकता है और उनकी चिकित्सा की जा सकती है तो भूकम्पों की पहचान क्यों नहीं हो सकती है और उन्हें रोकने के उपाय क्यों नहीं सोचे जा सकते !और यदि बीमारियाँ रोकी जा सकती हैं तो  भूकंप क्यों नहीं ! प्रयास तो किए ही जा सकते हैं !
     शास्त्र की मान्यता है कि इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है सृष्टि के सभी पदार्थों का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है समुद्रों का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है इसीलिए समुद्र में 'बाढ़व' नामकी अग्नि भी होती है | पृथ्वी का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है मनुष्य समेत सभी जीवों का निर्माण पंचतात्विक पद्धति से ही हुआ है | पंचतत्वों में पृथ्वी अग्नि वायु जल आकाश होते हैं सभी पदार्थों में  ये पाँचों तत्व उपस्थित रहते हैं | 
पुराणों में 12 सूर्य एवं 49 प्रकार के वायु का वर्णन मिलता है!जिनमें 7 प्रकार के वायु प्रमुख वायु माने गए हैं उनके नाम आवह, प्रवह,संवह ,उद्वह,विवह,परिवह,परावह आदि 7 हैं ये सातो ब्रह्मलोक , इन्द्रलोक ,अंतरिक्ष , भूलोक की पूर्व दिशा , भूलोक की पश्चिम दिशा , भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा में विचरण करते हैं |



 


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