राजनीति का ही व्यापारिक स्वरूप ही है भ्रष्टाचार ! इसलिए भ्रष्टाचार को मिटाना कठिन ही नहीं असंभव भी है !
जिस नेता पर आरोप लगे वो तो भ्रष्टाचारी बाकी सब ईमानदार !किंतु उनका क्या है रोजी रोजगार ?कैसे लगे हैं धन के अंबार ? यह भी तो देखना होगा और समझना होगा कि राजनीति है या कल्पवृक्ष ?गरीब से गरीब लोग राजनीति मेँ पहुँचते ही करोडोंपति हो जाते हैं !कैसे ?
मजे की बात हमारे नेताओं के पास कुछ करने के लिए न समय होता है न पैसा !किन्तु थोड़े दिन राजनीति का सेवन करते ही पैसा ही पैसा हो जाता है !कितना बड़ा चमत्कार है यह !
बंधुओ !राजनीति पहले सेवा थी सबको पता है किंतु वही राजनीति अब स्वरोजगार बन गई है !इसमें धन कमाने के लिए भ्रष्टाचार के अलावा कोई और खिड़की है ही नहीं !राजनीति में आकर या तो आप रईस नहीं हो या फिर ईमानदार नहीं हो !क्योंकि सेवा कार्य में धन कैसा !
राजनीति जब सेवा थी तब लोग राजनीति करने के साथ साथ कुछ रोजी रोजगार भी किया करते थे कुछ अपने खर्चे घटाए हुए थे तो निभ जाता है किंतु अब वैसा कुछ नहीं है अब तो नेताओं के शरीर देखकर किसी को नहीं लगता कि ये इन सुकोमल हाथों से कभी कुछ करते भी होंगे धरना प्रदर्शनों में ही भले गरम हवा लग जाती हो बाकी गरमी फटकने भी नहीं पाती होगी पास !पैदल चलना तो पद यात्राओं में ही हो पाता होगा बाकी गाड़ी घोड़े और जहाज आदि सब इनके और इनके परिवार वालों के लिए सहज सुलभ होते हैं ।
अधिकांश राजनेताओं का बचपन गरीबी में बीता होता है फिर वही गरीबत लेकर राजनीति में पहुँचते हैं जहाँ भ्रष्टाचार राजनीति का व्यापारिक स्वरूप ही है बंधुओ !यदि कोई योग्य आदमी राजनीति में आकर ईमानदारी पूर्वक काम करना चाहे तो कैसे करे ! पहली बात तो पार्टियाँ अपने यहाँ भले लोगों का प्रवेश ही नहीं होने देती हैं और यदि हो जाए तो कोई निर्णायक पद नहीं देती हैं और केवल शो पीस बनाकर रखती हैं उन्हें !इसका कारण शिक्षित योग्य और ईमानदार लोग भ्रष्टाचार करने को डरते हैं इसलिए यहाँ तो ऐसा चाहिए कि कमाए एक अपने पास रखे और 9 अपने पार्टी स्वामी को दे जो इतनी बड़ी राजनैतिक फैक्ट्री चला रहा होता है उस मालिक को खुश करने का साहस रखने वाले लोगों प्रमोट करती हैं पार्टियाँ जिनका राजनीति में अवतरण ही भ्रष्टाचार करने के लिए हुआ होता है उनमें वो खूबी होती है उसी भूल आखिर कैसे जाएँ !
बंधुओ ! इसमें अब किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि राजनैतिकपार्टियाँ अब उद्योग धंधों का रूप ले चुकी हैं !
भ्रष्टाचार है या मायामृग !
नेता ढूँढ नहीं पा रहे हैं या ढूँढ नहीं रहे हैं या ढूँढने से डर रहे हैं या भ्रष्टाचार पर कार्यवाही करने की बात सोचते ही उनके सामने अपने एवं अपनों के चेहरे कौंधने लगते हैं ! हर पार्टी और हर नेता केवल वोट माँगने के लिए भ्रष्टाचार को कोसता है फिर उसी में सम्मिलित हो जाता है या उसके विषय में जवाब देने में कतराने लगता है आखिर क्यों ?
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