आपसे एक और निवेदन है कि प्राचीन काल से जिस धर्म के द्वारा धार्मिक महापुरुष लोग समाज में सहनशीलता और संस्कार पैदा किया करते थे ,महिलाओं का सम्मान और समाज में भाईचारे की भावनाओं का सृजन किया करते थे हमारे साधू संत ऐसे संस्कारों के लिए सबको प्रेरित किया करते थे,इसीलिए उन पर और उनकी बातों एवं वेषभूषा पर समाज को आज तक भरोसा है ।जो हजारों लाखों वर्षों में कठोर साधना तपस्या पूर्वक साधू संतों ने बनाया है । अपने पूज्य ऋषियों के उस विश्वास को व्यापार कैसे बन जाने दिया जाए किसी के द्वारा ब्यापार चमकाने के लिए साधू संतों की वेषभूषा धारण करने को धर्म का दुरूपयोग क्यों न माना जाए !ऐसे तो ये विकार धीरे धीरे अन्य लोगों में भी आते चले जाएँगे!
महोदय ! ब्यापार का प्राण होता है 'विश्वास' ! व्यापार करने के लिए समाज का विश्वास जीतना सबसे बड़ी चुनौती होती है इसके लिए व्यापारी लोग अपना सारा जीवन लगा देते हैं कितनी कसौटियों से होकर
गुजरते हैं वे तब कहीं खड़ा हो पाता है ब्यापार ।वहीँ दूसरी ओर कोई अन्य ब्यापारी इस ऐसे कठोरतम संघर्ष से बचते हुए वही जन विश्वास जीतने के लिए साधूसंतों एवं महर्षि पतंजलि के प्रति अनंतकाल से बने चले आ रहे सामाजिक विश्वास को व्यापार करने के लिए कैस करने हेतु साधू संतों जैसी वेषभूषा
धारण करके पतंजलि पतंजलि करने लगे तो उसपर समाज के द्वारा अचानक किए गए विश्वास को साधू संतों एवं 'महर्षिपतंजलि'पर किया हुआ भरोसा माना जाना चाहिए !साधू संतों एवं 'महर्षिपतंजलि' का प्रसाद मानकर ही समाज ने इनके उत्पादों को स्वीकार किया है !यदि ऐसा मान लिया जाए तो जिसके प्रति भरोसा व्यापार उसका और जिसका व्यापार उसी की वो सारी संपत्ति जो उस व्यापार के काम से अर्जित की गई है ! ऐसा मानते हुए उस संपति पर अधिकार संपूर्ण साधूसमाज का होना चाहिए इसलिए वो संपत्ति साधू समाज को सौंपी जानी चाहिए !
दूसरी बात बिगत कुछ वर्षों से सामाजिक प्रपंचों में सम्मिलित कुछ साधू संतों एवं आश्रमों की वर्तमान गतिविधियाँ साधूसन्तों एवं आश्रमों की शास्त्रीय एवं सामाजिक मर्यादाओं के विरुद्ध पकड़ी गईं ऐसे बाबा लोग ऐसी गतिविधयों में आरोपी भी बनाए गए हैं । ऐसी घटनाएँ घटने पर सदाचारी साधू संत समाज के साथ साथ समस्त धार्मिक समाज को भी कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है महीनों तक होता है मीडिया ट्रायल !वो लोग भी दवा दारू से लेकर और भी बहुत कुछ बेचते देखते जाते रहे हैं ।इसलिए व्यापारिक गतिविधियों को चलाने हेतु विश्वास ज़माने के लिए किसी को धर्म ,धार्मिक महापुरुषों एवं धार्मिक प्रतीकों तथा धार्मिक वेषभूषा का उपयोग करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए ! क्योंकि इन पर उस सारे समाज का अधिकार सामान रूप से होता है फिर व्यक्तिगत उपयोग की अनुमति क्यों ?
वैसे भी बढ़ते प्रदूषण एवं खानपान की बिगड़ती शैली में स्वास्थ्य की दृष्टि से आशंकित रहने वाले भयभीत समाज को अगर बताया जाए कि बाजारों में उपलब्ध खाद्यपदार्थ आदि बहुत सारे उत्पाद मिलावटी मिल रहे हैं दूषित हैं इसलिए महर्षिपतंजलि के यहाँ से अमुक अमुक ...... स्वामी जी ने वही उत्पाद शुद्ध बनाने बेचने प्रारंभ किए हैं !महर्षि पतंजलि का नाम अपने साथ जोड़कर उन्हें मेडिकेटेड सिद्ध कर देना क्या धोखाधड़ी नहीं है क्या ? जिन व्यापारियों की निंदा कर कर के ऐसे बाबा लोग अपना व्यापार चमकाते हैं वे बेचारे धर्म भय अर्थात धार्मिक वेष भूषा होने के कारण ऐसे लोगों की झूठी बातें भी आस्थावश चुप चाप सह लेते हैं व्यापारिक कार्यों में कुछ गलतियाँ तो होती ही रहती हैं इस अपराध बोध से भी वे बेचारे शांत रह जाते हैं ऐसे लोगों के मौन होने के कारण ही समाज ब्यापारी बाबा जी लोगों के झूठ को सच मान लेता है ।साधूसंतों जैसी वेषभूषा में "ऋषिपतंजलि" का स्वयम्भू उत्तराधिकारी बन कर अपना तो व्यापार चमकाना और दूसरों की निंदा करना ये ब्यापारी समाज पर अत्याचार नहीं है क्या ?
दूसरी बात बिगत कुछ वर्षों से सामाजिक प्रपंचों में सम्मिलित कुछ साधू संतों एवं आश्रमों की वर्तमान गतिविधियाँ साधूसन्तों एवं आश्रमों की शास्त्रीय एवं सामाजिक मर्यादाओं के विरुद्ध पकड़ी गईं ऐसे बाबा लोग ऐसी गतिविधयों में आरोपी भी बनाए गए हैं । ऐसी घटनाएँ घटने पर सदाचारी साधू संत समाज के साथ साथ समस्त धार्मिक समाज को भी कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है महीनों तक होता है मीडिया ट्रायल !वो लोग भी दवा दारू से लेकर और भी बहुत कुछ बेचते देखते जाते रहे हैं ।इसलिए व्यापारिक गतिविधियों को चलाने हेतु विश्वास ज़माने के लिए किसी को धर्म ,धार्मिक महापुरुषों एवं धार्मिक प्रतीकों तथा धार्मिक वेषभूषा का उपयोग करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए ! क्योंकि इन पर उस सारे समाज का अधिकार सामान रूप से होता है फिर व्यक्तिगत उपयोग की अनुमति क्यों ?
वैसे भी बढ़ते प्रदूषण एवं खानपान की बिगड़ती शैली में स्वास्थ्य की दृष्टि से आशंकित रहने वाले भयभीत समाज को अगर बताया जाए कि बाजारों में उपलब्ध खाद्यपदार्थ आदि बहुत सारे उत्पाद मिलावटी मिल रहे हैं दूषित हैं इसलिए महर्षिपतंजलि के यहाँ से अमुक अमुक ...... स्वामी जी ने वही उत्पाद शुद्ध बनाने बेचने प्रारंभ किए हैं !महर्षि पतंजलि का नाम अपने साथ जोड़कर उन्हें मेडिकेटेड सिद्ध कर देना क्या धोखाधड़ी नहीं है क्या ? जिन व्यापारियों की निंदा कर कर के ऐसे बाबा लोग अपना व्यापार चमकाते हैं वे बेचारे धर्म भय अर्थात धार्मिक वेष भूषा होने के कारण ऐसे लोगों की झूठी बातें भी आस्थावश चुप चाप सह लेते हैं व्यापारिक कार्यों में कुछ गलतियाँ तो होती ही रहती हैं इस अपराध बोध से भी वे बेचारे शांत रह जाते हैं ऐसे लोगों के मौन होने के कारण ही समाज ब्यापारी बाबा जी लोगों के झूठ को सच मान लेता है ।साधूसंतों जैसी वेषभूषा में "ऋषिपतंजलि" का स्वयम्भू उत्तराधिकारी बन कर अपना तो व्यापार चमकाना और दूसरों की निंदा करना ये ब्यापारी समाज पर अत्याचार नहीं है क्या ?
इसी प्रकार से कसरत और व्यायाम जैसे समाज में प्रचलित दैनिक जीवन के सहज और स्वाभाविक आचारों ब्यवहारों को योग बता कर बेचने लगना ये धोखाधड़ी
नहीं तो क्या है यहाँ सबसे बड़ा छल इस बात का हुआ है कि ऐसे बाबा लोग टीवी चैनलों पर बड़े बड़े भयानक रोगों की लंबी लंबी लिस्टें पढ़ पढ़कर सुनाते रहे लोग समझते रहे कि सच ही बोल रहे होंगे किंतु इनके ऐसे दावों संबंधी लाभ का कहीं कोई परीक्षण किया गया या नहीं इस ओर गौर किसी ने नहीं किया !मुझे भय है कि ऐसे लोगों के बड़बोलेपन से हजारों वर्षों से प्रचलित योग जैसे दिव्य विज्ञान का कहीं उपहास न हो जाए !यदि टाँगें टेढ़ी सीधी करना योग है तो लोग सोचेंगे कि ऐसी एक्सरसाइज तो हम भी करते रहे हैं ऐसी परिस्थिति में योग के गौरव को बचाकर कैसे रखा जा सकेगा !
योग तो आत्मा परमात्मा के मिलन का नाम है कहाँ वो योग और कहाँ ये कसरत व्यायाम जिसकी जरूरत ग्रामीणों किसानों मजदूरों या अन्य प्रकार के परिश्रमी लोगों को कभी नहीं रही उन्हें ऐसे व्यायामों की अपेक्षा बहुत अधिक परिश्रम स्वयं करना होता है प्रतिदिन !जो लोग किसी बाबा को श्रेय देते हुए कहते हैं कि अमुक ने योग को घर घर पहुँचा दिया ऐसे लोगों को इतना बड़ा झूठ बोलने पहले शर्म और संकोच दोनों लगने चाहिए क्योंकि ऐसे कसरती योग की आवश्यकता केवल उन मुट्टी भर लोगों को है जो केवल खाते हैं उसे पचने के लिए शारीरिक श्रम नहीं करते जबकि सृष्टि का विधान है कि जो खाएगा उसे काम करना चाहिए अन्यथा पचेगा नहीं किंतु जिनका जीवन नौकरों के आधीन है ऐसे लोगों के शरीर हिलते ही नहीं हैं तो पेट साफ नहीं होता तो अंदर की दुर्गन्ध स्वास्थ्य ख़राब करती रहती है केवल ऐसे लोगों को पेट हिलाना सिखाया जाना योग हो गया क्या ?ये योग का उपहास नहीं तो क्या है !
महर्षि पतंजलि ने कहा कि 'कायेंद्रिय सिद्धिरशुद्धि क्षयात्तपसः 'अर्थात तपस्या से शरीर के मलों का नाश हो जाता है इससे शरीर स्वस्थ एवं इन्द्रियाँ प्रसन्न हो जाती हैं फिर दवाओं का क्या काम ! महर्षि पतंजलि के नियमानुसार योग के साथ दवाओं का कोई विधान नहीं है योग स्वयं में केवल औषधि ही नहीं अपितु अमृत भी है वैसे भी जिन यौगिक क्रियाओं के बलपर ऋषि मुनि लोग मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लिया करते थे तो ऐसे दिव्य योग के लिए शरीर को स्वस्थ करना कौन बड़ी बात है ।ऐसे योग सीखने वाले लोग जब दवा भी देने लगते हैं तो प्रश्न उठता है उनके योग और योग के भरोसे पर ! ऐसे लोगों को यदि योग पर इतना ही भरोसा होता और वो वास्तव में योग जानते ही होते बीमारियों को यौगिक क्रियाओं से ही ठीक करते उसके लिए उन्हें अलग से दवाएँ नहीं देनी पड़तीं ! ये उन लोगों की योग दुविधा का सशक्त उदाहरण है ।
महर्षि पतंजलि ने आसनों की चर्चा के नाम पर केवल " स्थिरसुखमासनम् " अर्थात जिस आसन पर सुख पूर्वक स्थिर होकर बैठा जा सकता हो वही आसन है इस हिसाब से तो हाथ पैर तोड़ने मोड़ने वाले आसनों की चर्चा तो महर्षि पतंजलि करते ही नहीं हैं अपितु ऐसा करने के लिए रोकते भी हैं तभी तो उन्होंने स्थिर शब्द का प्रयोग किया है ।
महर्षि पतंजलि संसार के समस्त व्यापारों से विरक्त होने की बात करते हैं फिर किसी व्यापारी को योगी कैसे मान लिया जाए !
महर्षि पतंजलि तो व्रत संयम आदि से शरीर शुद्धि की बात करते हैं फिर उन पतंजलि के नाम से आटा नूडल बिस्कुट जैसी चीजें बेचने का अभिप्राय क्या है ?
कुल मिलाकर ऐसे लोगों के कारण महर्षि पतंजलि के यौगिक सिद्धांतों का न केवल गौरव गिरा है अपितु उनका उपहास भी हुआ है !
योग तो आत्मा परमात्मा के मिलन का नाम है कहाँ वो योग और कहाँ ये कसरत व्यायाम जिसकी जरूरत ग्रामीणों किसानों मजदूरों या अन्य प्रकार के परिश्रमी लोगों को कभी नहीं रही उन्हें ऐसे व्यायामों की अपेक्षा बहुत अधिक परिश्रम स्वयं करना होता है प्रतिदिन !जो लोग किसी बाबा को श्रेय देते हुए कहते हैं कि अमुक ने योग को घर घर पहुँचा दिया ऐसे लोगों को इतना बड़ा झूठ बोलने पहले शर्म और संकोच दोनों लगने चाहिए क्योंकि ऐसे कसरती योग की आवश्यकता केवल उन मुट्टी भर लोगों को है जो केवल खाते हैं उसे पचने के लिए शारीरिक श्रम नहीं करते जबकि सृष्टि का विधान है कि जो खाएगा उसे काम करना चाहिए अन्यथा पचेगा नहीं किंतु जिनका जीवन नौकरों के आधीन है ऐसे लोगों के शरीर हिलते ही नहीं हैं तो पेट साफ नहीं होता तो अंदर की दुर्गन्ध स्वास्थ्य ख़राब करती रहती है केवल ऐसे लोगों को पेट हिलाना सिखाया जाना योग हो गया क्या ?ये योग का उपहास नहीं तो क्या है !
महर्षि पतंजलि ने कहा कि 'कायेंद्रिय सिद्धिरशुद्धि क्षयात्तपसः 'अर्थात तपस्या से शरीर के मलों का नाश हो जाता है इससे शरीर स्वस्थ एवं इन्द्रियाँ प्रसन्न हो जाती हैं फिर दवाओं का क्या काम ! महर्षि पतंजलि के नियमानुसार योग के साथ दवाओं का कोई विधान नहीं है योग स्वयं में केवल औषधि ही नहीं अपितु अमृत भी है वैसे भी जिन यौगिक क्रियाओं के बलपर ऋषि मुनि लोग मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लिया करते थे तो ऐसे दिव्य योग के लिए शरीर को स्वस्थ करना कौन बड़ी बात है ।ऐसे योग सीखने वाले लोग जब दवा भी देने लगते हैं तो प्रश्न उठता है उनके योग और योग के भरोसे पर ! ऐसे लोगों को यदि योग पर इतना ही भरोसा होता और वो वास्तव में योग जानते ही होते बीमारियों को यौगिक क्रियाओं से ही ठीक करते उसके लिए उन्हें अलग से दवाएँ नहीं देनी पड़तीं ! ये उन लोगों की योग दुविधा का सशक्त उदाहरण है ।
महर्षि पतंजलि ने आसनों की चर्चा के नाम पर केवल " स्थिरसुखमासनम् " अर्थात जिस आसन पर सुख पूर्वक स्थिर होकर बैठा जा सकता हो वही आसन है इस हिसाब से तो हाथ पैर तोड़ने मोड़ने वाले आसनों की चर्चा तो महर्षि पतंजलि करते ही नहीं हैं अपितु ऐसा करने के लिए रोकते भी हैं तभी तो उन्होंने स्थिर शब्द का प्रयोग किया है ।
महर्षि पतंजलि संसार के समस्त व्यापारों से विरक्त होने की बात करते हैं फिर किसी व्यापारी को योगी कैसे मान लिया जाए !
महर्षि पतंजलि तो व्रत संयम आदि से शरीर शुद्धि की बात करते हैं फिर उन पतंजलि के नाम से आटा नूडल बिस्कुट जैसी चीजें बेचने का अभिप्राय क्या है ?
कुल मिलाकर ऐसे लोगों के कारण महर्षि पतंजलि के यौगिक सिद्धांतों का न केवल गौरव गिरा है अपितु उनका उपहास भी हुआ है !
ऐसे बाबा लोग महर्षि'पतंजलि'के योग के प्रति एवं आयुर्वेद के प्रति तथा साधू संतों की वेष भूषा के प्रति समाज की श्रृद्धा विश्वास का दुरूपयोग कर रहे हैं इसका असर अन्य साधूसंतों पर भी पड़ने लगा है लोग धर्म कर्म एवं वैराग्य जैसी बातों से विमुख होकर व्यापारों की ओर लौटने लगे हैं जो समाज के भविष्य निर्माण कार्य की दृष्टि से बिषैला सिद्ध होगा !
ऐसी परिस्थिति में धर्म और अध्यात्म का क्या होगा जो इस देश की जन भावना के प्राण हैं जिनके बलपर हजारों वर्षों से भारतीय लोग आपस में मिलजुलकर साथ साथ रह लिया करते थे।आज वो भी व्यापार बनती जा रही है ।
निवेदक भवदीय -
राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान (रजि.)
------------------------------ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी ------------------------------ --
एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी
पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसी
K -71 ,छाछी बिल्डिंग, कृष्णा नगर, दिल्ली -110051
Tele: +91-11-22002689, +91-11-22096548
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