Wednesday, 30 March 2016

निवेदकयोग

    आपसे एक और निवेदन है कि प्राचीन काल से जिस धर्म के द्वारा धार्मिक महापुरुष लोग समाज में सहनशीलता और संस्कार पैदा किया करते थे ,महिलाओं का सम्मान और समाज में भाईचारे की भावनाओं का सृजन किया करते थे हमारे साधू संत ऐसे संस्कारों के लिए सबको प्रेरित किया करते थे,इसीलिए उन पर और उनकी बातों एवं वेषभूषा पर समाज को आज तक भरोसा है ।जो हजारों लाखों वर्षों में कठोर साधना तपस्या पूर्वक साधू संतों ने बनाया है । अपने पूज्य ऋषियों के उस विश्वास को व्यापार कैसे बन जाने दिया जाए किसी के द्वारा ब्यापार चमकाने के लिए साधू संतों  की वेषभूषा धारण करने को धर्म का दुरूपयोग क्यों न माना जाए !ऐसे तो  ये विकार धीरे धीरे अन्य लोगों में भी आते चले जाएँगे!
       महोदय ! ब्यापार का प्राण होता है 'विश्वास' ! व्यापार करने के लिए समाज का विश्वास जीतना सबसे बड़ी चुनौती होती है इसके लिए व्यापारी लोग अपना सारा जीवन लगा देते हैं कितनी कसौटियों से होकर गुजरते हैं वे  तब कहीं खड़ा हो पाता है ब्यापार ।वहीँ दूसरी ओर कोई अन्य ब्यापारी इस ऐसे कठोरतम संघर्ष से बचते हुए वही जन विश्वास जीतने के लिए साधूसंतों एवं महर्षि पतंजलि के प्रति अनंतकाल से बने चले आ रहे सामाजिक विश्वास को व्यापार करने के लिए कैस करने हेतु साधू संतों जैसी वेषभूषा धारण करके पतंजलि पतंजलि करने लगे तो उसपर समाज के द्वारा अचानक किए गए विश्वास को साधू संतों  एवं 'महर्षिपतंजलि'पर किया हुआ भरोसा माना जाना चाहिए !साधू संतों एवं 'महर्षिपतंजलि' का प्रसाद मानकर ही समाज ने इनके उत्पादों को स्वीकार किया है !यदि ऐसा मान लिया जाए तो जिसके प्रति भरोसा व्यापार उसका और जिसका व्यापार उसी की वो सारी संपत्ति जो उस व्यापार के काम से अर्जित की गई है ! ऐसा मानते हुए उस संपति पर अधिकार संपूर्ण साधूसमाज का होना चाहिए इसलिए वो संपत्ति साधू समाज को सौंपी जानी चाहिए !
     दूसरी बात बिगत कुछ वर्षों से सामाजिक प्रपंचों में सम्मिलित कुछ साधू संतों एवं आश्रमों की वर्तमान गतिविधियाँ साधूसन्तों एवं आश्रमों की शास्त्रीय एवं सामाजिक मर्यादाओं के विरुद्ध पकड़ी गईं ऐसे बाबा लोग ऐसी गतिविधयों में आरोपी भी बनाए गए हैं । ऐसी घटनाएँ घटने पर सदाचारी साधू संत समाज के साथ साथ  समस्त  धार्मिक समाज को भी कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है महीनों तक होता है मीडिया ट्रायल !वो लोग भी दवा दारू से लेकर और भी बहुत कुछ बेचते देखते जाते रहे हैं ।इसलिए  व्यापारिक गतिविधियों को चलाने हेतु विश्वास ज़माने के लिए किसी को धर्म ,धार्मिक महापुरुषों एवं धार्मिक प्रतीकों तथा धार्मिक वेषभूषा का उपयोग करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए ! क्योंकि इन पर उस सारे समाज का अधिकार सामान रूप से होता है फिर व्यक्तिगत उपयोग की अनुमति क्यों ?
     वैसे भी बढ़ते प्रदूषण एवं खानपान की बिगड़ती  शैली में स्वास्थ्य की दृष्टि से आशंकित रहने वाले भयभीत समाज को  अगर बताया जाए कि बाजारों में उपलब्ध खाद्यपदार्थ आदि बहुत सारे उत्पाद मिलावटी मिल रहे हैं दूषित हैं इसलिए महर्षिपतंजलि के यहाँ से अमुक अमुक ...... स्वामी जी ने वही उत्पाद शुद्ध बनाने बेचने प्रारंभ किए हैं !महर्षि पतंजलि का नाम अपने साथ जोड़कर उन्हें मेडिकेटेड सिद्ध कर देना क्या धोखाधड़ी नहीं है क्या ?  जिन व्यापारियों की निंदा कर कर के ऐसे बाबा लोग अपना व्यापार चमकाते हैं वे बेचारे धर्म भय अर्थात धार्मिक वेष  भूषा होने के कारण ऐसे लोगों की झूठी बातें भी आस्थावश चुप चाप सह लेते हैं व्यापारिक कार्यों में कुछ गलतियाँ  तो होती ही रहती हैं इस अपराध बोध से भी वे बेचारे शांत रह जाते हैं ऐसे लोगों के मौन होने के कारण ही समाज ब्यापारी बाबा जी लोगों के झूठ को सच मान लेता है ।साधूसंतों जैसी वेषभूषा में  "ऋषिपतंजलि" का स्वयम्भू  उत्तराधिकारी बन कर अपना तो व्यापार चमकाना और दूसरों की निंदा करना ये ब्यापारी समाज पर अत्याचार नहीं है क्या ?
     इसी प्रकार से कसरत और व्यायाम जैसे समाज में प्रचलित दैनिक जीवन के सहज और स्वाभाविक आचारों ब्यवहारों को योग बता कर बेचने लगना ये धोखाधड़ी नहीं तो क्या है यहाँ सबसे बड़ा छल इस बात का हुआ है कि ऐसे बाबा लोग टीवी चैनलों पर बड़े बड़े भयानक रोगों की लंबी लंबी लिस्टें पढ़ पढ़कर सुनाते रहे लोग समझते रहे कि सच ही बोल रहे होंगे किंतु इनके ऐसे दावों संबंधी लाभ का कहीं कोई परीक्षण किया गया या नहीं  इस ओर गौर किसी ने नहीं किया !मुझे भय है कि ऐसे लोगों के बड़बोलेपन से हजारों वर्षों से प्रचलित योग जैसे दिव्य विज्ञान का कहीं उपहास न हो जाए !यदि टाँगें टेढ़ी सीधी करना योग है तो लोग सोचेंगे कि ऐसी एक्सरसाइज तो हम भी करते रहे हैं ऐसी परिस्थिति में योग के गौरव को बचाकर कैसे रखा जा सकेगा !
         योग तो आत्मा परमात्मा के मिलन का नाम है कहाँ वो योग और कहाँ ये कसरत व्यायाम जिसकी जरूरत ग्रामीणों किसानों मजदूरों या अन्य प्रकार के परिश्रमी लोगों को कभी नहीं रही उन्हें ऐसे व्यायामों की अपेक्षा बहुत अधिक परिश्रम स्वयं करना होता है प्रतिदिन !जो लोग किसी बाबा को श्रेय देते हुए कहते हैं कि अमुक ने योग को घर घर पहुँचा दिया ऐसे लोगों को इतना बड़ा झूठ बोलने  पहले शर्म और संकोच दोनों लगने चाहिए क्योंकि ऐसे कसरती योग की आवश्यकता केवल उन मुट्टी भर लोगों को है जो केवल खाते हैं उसे पचने के लिए शारीरिक श्रम नहीं करते जबकि सृष्टि का विधान है कि जो खाएगा उसे काम करना चाहिए अन्यथा पचेगा नहीं किंतु जिनका जीवन नौकरों के आधीन है ऐसे लोगों के शरीर हिलते ही नहीं हैं तो पेट साफ नहीं होता तो अंदर की दुर्गन्ध स्वास्थ्य ख़राब करती रहती है केवल ऐसे लोगों को पेट हिलाना सिखाया जाना योग हो गया क्या ?ये योग का उपहास नहीं तो क्या है !
       महर्षि पतंजलि ने कहा कि 'कायेंद्रिय सिद्धिरशुद्धि क्षयात्तपसः 'अर्थात तपस्या से शरीर के मलों का नाश  हो जाता है इससे शरीर स्वस्थ एवं इन्द्रियाँ प्रसन्न हो जाती हैं फिर दवाओं का क्या काम ! महर्षि पतंजलि के नियमानुसार योग के साथ दवाओं का कोई विधान नहीं है योग स्वयं में केवल औषधि ही नहीं अपितु अमृत भी है वैसे भी जिन यौगिक क्रियाओं के बलपर ऋषि मुनि लोग मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लिया करते थे तो ऐसे दिव्य योग के लिए शरीर को स्वस्थ करना कौन बड़ी बात है ।ऐसे योग सीखने वाले लोग जब दवा भी देने लगते हैं तो प्रश्न उठता है उनके योग और योग के भरोसे पर ! ऐसे लोगों को यदि योग  पर इतना ही भरोसा होता और वो वास्तव में योग जानते ही होते बीमारियों को यौगिक क्रियाओं से ही ठीक करते उसके लिए उन्हें अलग से दवाएँ नहीं देनी पड़तीं ! ये उन लोगों की योग दुविधा का सशक्त उदाहरण है ।
          महर्षि पतंजलि ने आसनों की चर्चा के नाम पर केवल " स्थिरसुखमासनम् " अर्थात जिस आसन पर सुख पूर्वक स्थिर होकर बैठा जा सकता हो वही आसन है  इस हिसाब से तो हाथ पैर तोड़ने मोड़ने वाले आसनों की चर्चा तो महर्षि पतंजलि करते ही नहीं हैं अपितु ऐसा करने के लिए रोकते भी हैं तभी तो उन्होंने स्थिर शब्द का प्रयोग किया है ।
     महर्षि पतंजलि संसार के समस्त व्यापारों से विरक्त  होने  की बात करते हैं फिर किसी व्यापारी को योगी कैसे मान लिया जाए !
     महर्षि पतंजलि तो व्रत संयम आदि से शरीर शुद्धि की बात करते हैं फिर उन पतंजलि के नाम से आटा नूडल बिस्कुट जैसी चीजें बेचने का अभिप्राय क्या है ?
      कुल मिलाकर ऐसे लोगों के कारण महर्षि पतंजलि के यौगिक सिद्धांतों का न केवल गौरव गिरा  है अपितु उनका उपहास भी हुआ है !
         ऐसे बाबा लोग महर्षि'पतंजलि'के योग के प्रति एवं आयुर्वेद के प्रति तथा साधू संतों की वेष भूषा के प्रति समाज की श्रृद्धा विश्वास का दुरूपयोग कर रहे हैं इसका असर अन्य साधूसंतों पर भी पड़ने लगा है लोग धर्म कर्म एवं वैराग्य जैसी बातों  से विमुख होकर व्यापारों की ओर लौटने लगे हैं जो समाज के  भविष्य निर्माण कार्य की दृष्टि से बिषैला सिद्ध होगा !
      ऐसी परिस्थिति में धर्म और अध्यात्म का क्या होगा जो इस देश की जन भावना के प्राण हैं जिनके बलपर हजारों वर्षों से भारतीय लोग आपस में मिलजुलकर साथ साथ रह लिया करते थे।आज वो भी व्यापार बनती   जा रही है ।                             
                                                                निवेदक  भवदीय -
           राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान (रजि.)
------------------------------ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी --------------------------------
एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी
पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसी
K -71 ,छाछी बिल्डिंग, कृष्णा नगर, दिल्ली -110051
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Friday, 25 March 2016

बहुजनसमाज में तो ब्राह्मण भी होते हैं तो फिर मुख्यमंत्री मायावती ही क्यों सतीशमिश्र क्यों नहीं ?उन पर भरोसा नहीं है या वो योग्य नहीं हैं ?


 मायावती जी तो पहले भी कई बार मुख्यमंत्री बन चुकी हैं और बहुजनसमाज के अंग ब्राह्मण भी तो हैं इसलिए अबकी बार सतीशमिश्र जी बनाए जाएँ बसपा के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी!

वो योग्य भी हैं अनुभवी भी हैं सरल हैं स्वच्छ छवि है बड़बोले नहीं हैं अपना भाषण लिखकर नहीं पढ़ना पड़ता है उन्हें ,शालीन भाषा है उनको  अपनी बात के समर्थन में प्रमाणित तर्क देना आता है और बहुजन समाज पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता भी हैं 
सौभाग्य से बहुजन समाज पार्टी के पास यदि ऐसी प्रतिभाएँ हैं तो देश प्रदेश और समाज के हित में उनकी मेधा का सदुपयोग क्यों किया जाए ! बहुजन समाज पार्टी सार्वभौमिक न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के सर्वोच्च सिद्धांतों की सोच वाला भारत का एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल है। भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता दिलाने, राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने वाली पार्टी बाबा साहेब अम्बेडकर के मानवतावादी बौद्ध दर्शन से प्रेरित है।बहुजन शब्द तथागत बुद्ध के धर्मोपदेशों (त्रिपिटक) से लिया गया है, तथागत बुद्ध ने कहा था बहुजन हिताय बहुजन सुखाय उनका धर्म बहुत बड़े जन-समुदाय के हित और सुख के लिए है।बनाए जाएँ कुछ लोग समाज का विश्वास नहीं जीत सके तो इसमें ब्राह्मणों का क्या दोष
ब्राह्मणों की निंदा करने और गाली देने का युग चला गया !अब समय है ब्राह्मणों के महत्त्व को स्वीकार कर लेने का !ब्राह्मणों पर दलितों के शोषण करने का झूठा आरोप लगाकर लोकतंत्र को अब और अधिक दिनों तक नहीं घसीटा जा सकता !ब्राह्मणों ने अपने गुणों के द्वारा समाज का विश्वास जीता है ब्राह्मणों की विशेषता ही यही है कि "गुणैर्हि सर्वत्र पदं  निधीयते !"इसे किसी जाति वर्ग का शोषण नहीं कहा जा सकता !
अंबेडकर साहब ने जिन ब्राह्मण शिक्षक 'महादेवअंबेडकर' की टाइटिल का 'अंबेडकर' शब्द अपने नाम के साथ केवल जोड़ लिया था अपितु आजीवन जोड़े रखा और अपना 'सकपाल'टाइटिल हटा दिया था आखिर उन्होंने कुछ तो गुण देखे ही होंगे उस ब्राह्मण शिक्षक में ! इसी प्रकार से अंबेडकर साहब ने अपना दूसरा विवाह ब्राह्मण "सविता जी " से किया था !कोई तो अच्छाई देखी ही होगी उस ब्राह्मणी में ,जो औरों में उन्हें नहीं दिखी अन्यथा उनके लिए लड़कियों की कमी थी क्या ! ऐसे ही कांशीराम जी के सबसे अधिक क़रीबी तीन मित्रों में से एक ब्राह्मण थे और एक जाट, एक सैनी थे ! उनमें कोई दलित नहीं था आखिर क्यों ? मायावती जी के सबसे अधिक निकटतम और विश्वसनीय सहयोगी हैं सतीश मिश्र जी !आखिर क्यों ?ब्राह्मणों ने कभी यदि दलितों का शोषण किया होता तो ब्राह्मणों पर भरोसा कौन करता ?
इसलिए अब ब्राह्मणों के महत्त्व को स्वीकार कर लेने का समय चुका है जहाँ तक अंबेडकर साहब और काँशीरामजी जी जैसे लोगों के द्वारा गरीबों मजदूरों के उत्थान की बात करना ये ब्राह्मण विरोध नहीं है ब्राह्मण भी तो गरीब थे !ग़रीबों के हित की बात करने का मतलब गरीब सवर्णों के भी हित की बात करना भी था ! जहाँ तक बात ब्राह्मणों की निंदा या ब्राह्मणों को गाली देने की है तो ब्राह्मणों ने कभी किसी का बुरा नहीं किया और ही कभी किसी का शोषण किया!किंतु राजनीति में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास कोई योग्यता है कोई गुण और बेचारे कुछ करने लायक भी नहीं होते हैं ऐसे दो दो कौड़ी के बेचारे अकर्मण्य लोग ब्राह्मणों की निंदा करके ही नेता मंत्री आदि बहुत कुछ बन जाते हैं इसीलिए ब्राह्मणों की निंदा करना राजनीति में धीरे धीरे फैशन सा बनता जा रहा है। वैसे भी ब्राह्मणों में कोई विशेषता तो होगी ही अन्यथा हर कोई क्यों बनना चाहता है ब्राह्मणों के बराबर !जबकि ब्राह्मण हमेंशा गरीब होते रहे हैं फिर भी इतना आकर्षण !गरीब होने के बाद भी ब्राह्मण अपने बलपर अपनी तरक्की करने की हिम्मत रखते हैं अन्यथा वो भी सरकार और समाज पर बोझ बन जाएँ और कह दें कि हम अपने बलपर कुछ करने लायक नहीं हैं इसलिए हमें भी आरक्षण चाहिए !
आज कोई कहता है ब्राह्मण हमारा छुआ क्यों नहीं खाते तो मैंने कहा कि तुम ब्राह्मणों का छुआ हुआ खाना खाना बंद कर दो !किसी ने कहा कि ब्राह्मण हमारे यहाँ अपने बेटा बेटी की शादी ब्याह नहीं करते तो मैं कहता हूँ कि तुम भी बहिष्कार करो ब्राह्मणों के यहाँ शादी विवाह करने को तुम्हारे बच्चे इफरात हैं क्या ?आखिर तुम क्यों लालायित हो ?
वैसे भी जिन ब्राह्मणों के विषय में आपको लगता है कि इन्होंने हमारा शोषण किया है ऐसे निर्दयी लोगों के यहाँ क्यों करना चाहते हो अपने बच्चों का विवाह ?
विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री आदि क्या क्या नहीं बन गए ब्राह्मणों को गालियाँ देकर लोग !ब्राह्मण गलत कभी नहीं रहे यही कारण है कि अंबेडकर साहब ने भी दूसरी शादी ब्राह्मण के यहाँ ही की थी और उनके शिक्षक तो ब्राह्मण थे ही !
अम्बेडकर साहब से उनके शिक्षक महादेव अंबेडकर जी केवल बहुत अधिक स्नेह करते थे अपितु वैसे भी वे अंबेडकर साहब की मदद किया करते थे उनके आपसी संबंध अत्यंत मधुर थे यदि ऐसा होता तो उन्होंने उनके कहने पर अपने नाम की टाइटिल क्यों बदल ली थी और यदि बदल भी ली थी तो बाद में फिर से सकपाल बन सकते थे किन्तु ये उनका आपसी स्नेह एवं उन ब्राह्मण शिक्षक महोदय के प्रति सम्मान ही था जो उन्होंने आजीवन निभाया !
इसी प्रकार से अंबेडकर साहब की दूसरी पत्नी जन्म से ब्राह्मण थीं विवाह से पहले उनकी पत्नी का नाम शारदा कबीर था। बाद में सविता अम्बेडकर रूप में जानी गईं !वे सन 2002 तक जीवित रही वे अंतिम साँस तक बाबा साहब के आदर्शो के प्रति समर्पित रहीं !
ब्राह्मण विरोधी नेताओं ने उन्हें सम्मानित करना तो दूर उनका जिक्र करना तक मुनासिब नहीं समझा !जबकि रमादेवी अम्बेडकर से जुड़े जाने कितने स्मारक, पार्क इत्यादि हैं वो बाबा साहेब की पहली पत्नी थीं !
दलितों का शोषण सवर्णों ने बिलकुल नहीं किया किन्तु दलितों के पिछड़ने के कारण कुछ और ही थे !दलित लोग यदि वास्तव में अपनी उन्नति चाहते हैं तो ऐसे नेताओं को अपने दरवाजे से दुदकार कर भगा दें जो उन्हें खुश करने के लिए सवर्णों की निंदा करते हैं !दलित लोग भी अब अपना लालच छोड़कर नेताओं से देश एवं समाज के विकास का हिसाब माँगें !सीधे कह दें कि आप मेरी हमदर्दी मत कीजिए आपके पास इतनी संपत्ति कहाँ से आई आपका धंधा व्यापार क्या है और आप करते कब हैं !और यदि बतावें तो सीधे पूछिए हमारा हक़ क्यों हड़पा है आपने !भले वो दलित नेता ही क्यों हों !अपराध अपराध है उसमें जातिवाद नहीं चलता !       
ब्राह्मणों ने सबके साथ अच्छा व्यवहार किया किंतु जो सफल हुए उन्होंने सफलता का श्रेय अपनी योग्यता को दिया किंतु जो असफल हुए उन्होंने अपने अपमान भय से दोष ब्राह्मणों पर मढ़ दिया !वैसे भी हर असफल व्यक्ति अपनी असफलता की जिम्मेदारी हमेंशा दूसरों पर डालता है नक़ल करते पकड़ा गया विद्यार्थी हमेंशा अपने बगल में बैठे विद्यार्थी पर ही दोष मढ़ता है बड़े बड़े अपराधों में पड़े गए लोगों को कहते सुना जाता है कि हमें गलत फँसाया गया है किंतु यदि इनकी बात सही मान ली जाए तो क्यों कोई दोषी माना जाएगा!
बंधुओ ! ब्राह्मण यदि किसी की तरक्की में कभी बाधक बने होते तो आजादी के बाद आज तक इतना लंबा समय मिला जिसमें कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति अपनी तरक्की अपने परिश्रम से कर सकता था उसे आरक्षण की भी जरूरत नहीं पड़ती !आखिर गरीब सवर्ण भी तो अपनी तरक्की बिना आरक्षण के अपने बल पर ही करते हैं वो अपने स्वाभिमान को गिरवी नहीं होने देते हैं|अपनेस्वाभिमान को सुरक्षित रखने वाले किसी भी जाति के व्यक्ति का अपमान करने का साहस करने में हर कोई डरता है कि ये अपने स्वाभिमान के लिए मर मिटेगा इसलिए इससे भिड़ना ठीक नहीं है ऐसे लोगों की इज्जत भी होती है और माँ बहन बेटियाँ भी सुरक्षित बनी रहती हैं
जो लोग कहते हैं कि हम बिना आरक्षण के तरक्की ही नहीं कर सकते इसका सीधा सा मतलब है कि उन्होंने अपने मुख से अपने को कमजोर मान लिया है और कमजोर लोगों का अपमान तो होता ही है इसमें जातियाँ कहाँ से गईं !कमजोर जाति की बात छोड़िये कमजोर भाई का अपमान उसका सगा भाई करने लगता है !कमजोर बेटे का पक्ष अधिकाँश माता नहीं लेते !कमजोर पति को पत्नी सम्मान नहीं देती है कमजोर पिता का सम्मान उसकी संतानें नहीं करती हैं ऐसे में स्वयं अपने ऊख से अपने को कमजोर कहने वाले लोग सम्मान की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं बड़े बड़े पदों पर पहुँच कर भी लोग या तो अपने को कमजोर ही मन करते हैं या फिर सवर्णों को शत्रु मानने लगते हैं !
इसलिए सभी आरक्षण भोगियों को आपस में बैठकर चिंतन करना चाहिए तब उन्हें पता लगेगा कि उन्होंने आरक्षण से पाया कुछ ख़ास नहीं है किंतु भिखारी होने का ठप्पा जरूर लगवा लिया !साथ ही इससे देश का बहुत बड़ा नुक्सान ये हुआ है कि एक से एक नकारा कामचोर मक्कार नेता लोग आरक्षण भोगी जातियों का वोट लेने के लिए चुनावों के समय सवर्णों को दस पाँच दिन गालियाँ देते हैं और जीत लेते हैं चुनाव किंतु घर तो अपना ही भरते हैं दलितों के उत्थान करने वाले भी नेता ही क्यों हों आज वो करोड़ों अरबों में खेल रहे हैं जबकि राजनीति में आते समय किराया भी जेब में नहीं था यही हाल हर जाति के नेता का है वो फुल टाइम राजनीति करते रहे कभी कोई धंधा व्यापार नहीं किया फिर भी करोड़ों अरबों पति हो गए ये धन दलितों के ही हिस्से का है ये धन गरीबों किसानों मजदूरों के हिस्से का है जो नताओं के घरों में जमा है ये लोग दसकों से यही खेल खेलते चले रहे हैं किंतु आरक्षण भोगियों की संख्या अधिक है उन्हें खुश करने के लिए ये पापी सवर्णों की निंदा किया करते हैं और संपत्ति का अम्बार लगाए हुए हैं ! अब जरूरत है कि दलित लोग ऐसे नेताओं को दरवाजे से दुदकार कर भगा दें जो सवर्णों की निंदा करके उन्हें खुश करने का प्रयास करें !