हे स्लामिक विद्वानों ! इन विषयों पर भी स्पष्ट कीजिए अपना धार्मिक दृष्टिकोण !
- मुस्लिमों को उन हिंदू नेताओं रईसों सेठों साहूकारों शहरों के संपर्क में रहना चाहिए या नहीं जिनका नाम हिन्दू देवी देवताओं के नाम पर है?
- गणेश नाम के सफल व्यापारी से यदि किसी मुस्लिमों की तरक्की हो सकती है किंतु गणेश हिन्दुओं के देवताओं का नाम है ऐसे व्यक्ति को गणेश का नाम और सहयोग लेना चाहिए या नहीं ?
- "काशीविश्वनाथ एक्सप्रेस' "बाबाविश्वनाथ" के नाम पर है जो हिंदुओं के देवता हैं क्या मुस्लिमों को विश्वनाथ एक्सप्रेस का नाम लेना चाहिए और उस पर बैठना चाहिए या नहीं?
- हिंदू देवी देवताओं के नाम पर बसे गावों शहरों में मुस्लिमों को रहना चाहिए या नहीं ?
- 'रामभोग' और 'सीता' नाम की धान के चावल मुस्लिमों को खाने चाहिए या नहीं ?
- विश्व के वैज्ञानिकों ने अपने कम्प्यूटर या मोबाईल जैसे उपकरणों का नाम यदि हिन्दू देवी देवताओं के नाम पर रख दिया होता तो इनका उपयोग किया जाता या नहीं ?
- किसी आवश्यक औषधि का नाम यदि हिन्दू देवी देवताओं के नाम पर होता तो मुस्लिमों को लेनी चाहिए ता नहीं ?
बंधुओ ! जो लोग 'जय' शब्द का अर्थ और उद्देश्य समझ ही नहीं पाए वे बहिष्कार कर रहे हैं भारतमाता की जय के उद्घोष का !भारतमाता की जय के उद्घोष से देश भक्त लोग कभी घृणा नहीं कर सकते ! "भारतमाता जी जय" के विरुद्ध फतवा जारी करने वाले इस नारे का अर्थ और उद्देश्य समझ पाए क्या ?जय शब्द का अर्थ पूजा नहीं अपितु विजय(जीत) की कामना है वो भी अपने देश की जिसमें हम सब रहते हैं ।जिस देश में हम सब रहते हैं उस देश की जीत हो ये कहने में जिन्हें परेशानी हो रही हो ऐसे लोगों से देश ये आशा कैसे करे कि ये कभी देश के काम भी आएँगे !
दूसरी ओर मुस्लिम समाज के वो देश भक्त लोग हैं जिन्होंने भारत वर्ष की जय के लिए प्राण न्योछावर किए थे आज उन्हीं के धर्म से जुड़े लोग धर्म के नाम पर उसी भारत वर्ष की जय के लिए प्रयास करना तो दूर भारत वर्ष की जय बोलने में कतराने लगे हैं !ये लोग हर योजना में धर्म की टाँग फँसा कर खड़े हो जाते हैं और अपने समुदाय को विश्व मानव समुद्र में घुलने मिलने नहीं देते !इसके दुष्परिणाम सारे उस समाज को भोगने पड़ते हैं जो इनका अनुयायी है। धर्म का हस्तक्षेप यदि हर जगह रहेगा तो विकास संबंधी कार्य कैसे कर पाएँगे आप !क्योंकि हमेंशा विकासशील लोगों से उनकी अच्छाइयाँ हमें सीखनी होती हैं और हमारी अच्छाइयाँ वो सीखते हैं किंतु हम्हीं से वो कुछ सीखें किंतु उनसे यदि हम सीखेंगे तो इसकी इजाजत हमारा धर्म नहीं देता तब तो हो गया विकास !बेशक वो लोग कुछ सीख भी जाएँ किंतु तुम तो जैसे के तैसे ही रह गए !
देश में रहने वाले देश भक्त मुस्लिम बुद्धिजीवियों से निवेदन है कि वो आगे आएँ और इन संकीर्णताओं से ऊपर उठकर अपने समुदाय के विकास के लिए काम करें -
" मुस्लिम वर्ल्ड साइंस इनिशिएटिव ने मुस्लिम दुनिया की यूनिवर्सिटीज के
हालात पर अपनी रिपोर्ट जारी की। उसे पढ़ें समझें और समझाएं उसके सुझावों पर गौर करें !इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले टास्क फोर्स के पीछे
विविध पृष्ठभूमि के लोग थे, जिनमें यूएस नेशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेस के पूर्व
अध्यक्ष और मारीशस की राष्ट्रपति, जो कि मुस्लिम महिला वैज्ञानिक भी हैं,
शामिल थे। इसके संयोजकों के मुताबिक टास्क फोर्स का एक लक्ष्य यह था कि
विज्ञान, समाज और इस्लाम के संबंधों को लेकर समाज के भीतर महत्वपूर्ण
मुद्दों पर संवाद तुरंत शुरू किया जाए। उनके मुताबिक इसके लिए यूनिवर्सिटी
अपने आप में सबसे उपयक्त स्थान होगी। टास्क फोर्स द्वारा जारी किए गए
निष्कर्ष आश्चर्यजनक भले न हों, लेकिन चेतावनी भरे तो हैं ही। वैश्विक रूप
से मुस्लिम यूनिवर्सिटीज की रैंकिंग, वैज्ञानिक शोध पत्रों का प्रकाशन और
जर्नलों में प्रकाशित आलेखों, अनुसंधान और विकास पर किए जाने वाले खर्च,
वैज्ञानिक कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी तथा अन्य संकेतकों की समीक्षा
के बाद टास्क फोर्स ने पाया कि मुस्लिम वर्ल्ड में विज्ञान की कुल जमा
स्थिति अब भी ′खराब′ बनी हुई है।रिपोर्ट के विभिन्न अध्यायों में जो कारण रेखांकित किए गए हैं, वे बहुत
अहम हैं। मसलन, ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) के अधिकांश
विज्ञान संबंधी शिक्षा बेहद ही सकीर्ण है और छात्रों को जटिल बहुआयामी
चुनौतियों को सुलझाने के लिए कोई स्पष्ट सीख नहीं देती। अक्सर शिक्षकों के
पास भी पर्याप्त शिक्षा नहीं होती कि वे प्रभावी तरीके से अध्यापन कर सकें।
विज्ञान शिक्षा के मामले में वे अप्रशिक्षत होते हैं और दमनकारी नौकरशाही
के शोषण का शिकार होते हैं। नतीजतन वे उन्हें पढ़ाने में नाकाम साबित होते
हैं, जो पढ़ना चाहते हैं।
उनकी नाकामी से होने वाले नुक्सान को न केवल वैज्ञानिक उत्पादन में कमी के तौर पर, बल्कि नवोन्मेष के अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में मुस्लिम देशों के छात्रों की गैरमौजूदगी के रूप में देखा जा सकता है। ओआईसी देशों में दुनिया की 25 फीसदी आबादी रहती है, मगर दुनिया के कुल पेटेंट में उसकी हिस्सेदारी सिर्फ दो फीसदी, शोध के प्रकाशन में छह फीसदी है और अनुसंधान पर दुनिया भर में होने वाले खर्च का सिर्फ 2.4 फीसदी इन देशों में होता है। ऐसी जड़ता की हालत में नवोन्मेष और प्रतिस्पर्धा के लिए जरूरी प्रतिभा पूरी तरह से खत्म भले न हुई हो, उस पर खतरा बढ़ता जा रहा है। टास्क फोर्स के निष्कर्षों के मुताबिक मुस्लिम दुनिया की यूनिवर्सिटीज के नाकाम होने की एक साधारण-सी वजह यह भी है कि वहां प्रतिभावान छात्रों को अहमियत नहीं दी जाती और उन्हें प्रोत्साहित भी नहीं किया जाता।
उनकी नाकामी से होने वाले नुक्सान को न केवल वैज्ञानिक उत्पादन में कमी के तौर पर, बल्कि नवोन्मेष के अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में मुस्लिम देशों के छात्रों की गैरमौजूदगी के रूप में देखा जा सकता है। ओआईसी देशों में दुनिया की 25 फीसदी आबादी रहती है, मगर दुनिया के कुल पेटेंट में उसकी हिस्सेदारी सिर्फ दो फीसदी, शोध के प्रकाशन में छह फीसदी है और अनुसंधान पर दुनिया भर में होने वाले खर्च का सिर्फ 2.4 फीसदी इन देशों में होता है। ऐसी जड़ता की हालत में नवोन्मेष और प्रतिस्पर्धा के लिए जरूरी प्रतिभा पूरी तरह से खत्म भले न हुई हो, उस पर खतरा बढ़ता जा रहा है। टास्क फोर्स के निष्कर्षों के मुताबिक मुस्लिम दुनिया की यूनिवर्सिटीज के नाकाम होने की एक साधारण-सी वजह यह भी है कि वहां प्रतिभावान छात्रों को अहमियत नहीं दी जाती और उन्हें प्रोत्साहित भी नहीं किया जाता।
रिपोर्ट में अनुभव के आधार पर एकत्र जानकारियों से उभरी समस्याओं से
पाकिस्तान के प्रोफेसर और वैज्ञानिक भी परिचित होंगे। पाकिस्तान के उत्तरी
भाग में हाल में आए भूकंप के बाद उपजा भ्रम, भूकंप का पूर्वानुमान न लगा
सकने की अक्षमता, वैज्ञानिक तरीके से पुष्ट भूकंप रोधी उपायों की ओर बेरुखी
उस समाज के लक्षण हैं जो कि कुछ सीखना नहीं चाहता !"-अमर उजाला
बन्धुओ ! इस लिए इस संकीर्णता से हमें बाहर निकलना होगा और हर जगह अड़ंगा डालने की आदत छोड़नी होगी !
हमें उदार मन से सोचना होगा कि भारत
माता की जय कहना कोई पूजा नहीं है ये तो भारतीयों का स्वाभिमान है सपना है
इच्छा है कि अपना भारत हमेंशा विजयी ही होता रहे जो भारत को अपना देश
समझता है उसे ऐसा बोलने में हिचकिचाहट क्यों ? धार्मिक
संस्थाओं से ऐसे घटिया बयानों की उम्मींद नहीं थी !कि वो देश की जय(जीत)
नहीं अपितु पराजय(हार) की कामना लेकर इस देश में रह रहे हैं ये देश उनका अपना
नहीं है यदि अपना मानते होते तो अपनों की विजय कौन नहीं चाहेगा !यह सपना तो देश भक्त हर भारतीय का होना चाहिए कौन भारतीय नहीं बोलना चाहेगा "भारतमाता की जय" !करना
ये हमारे बंधु जिस दिशा में शिर झुका रहे हैं यदि खुदा केवल उस दिशा में
ही है तो बाकी तीन दिशाओं में खुदा नहीं है क्या ?दूसरा जिधर ये शिर झुका
रहे हैं उधर खुदा के आलावा और कुछ नहीं है क्या ?
बन्धुओ !यदि ईश्वर अल्ला खुदा के अलावा किसी और की बंदना नहीं की जा सकती तो जिन्हें हमने देखा ही नहीं उनकी बन्दना करें कैसे ?
उन्हें किस रूप में नमन करें आखिर उनका कोई तो आकार प्रकार होता होगा हो
सकता है प्रकाशपुंज ही हो !हो सकता है सारी सृष्टि का ही ध्यान करना होता
हो आखिर बार बार जिसे नमन किया जाता है उसका स्वरूप कुछ तो होता ही होगा
अन्यथा ध्यान किसका किया जाता है और यदि किसी के ईश्वर का कोई स्वरूप ही
नहीं होता है वो बिलकुल निर्लिप्त निर्विकार निराकार आदि असीम ही है तो उसे
मानने वालों के लिए क्या मंदिर क्या मस्जिद क्या गुरुद्वारे क्या गिरिजाघर
!ऐसे धर्म स्थलों का महत्त्व ही क्यों ?आधुनिक भाषा में कहें तो लैंडलाइन
फोन के लिए निश्चित जगहें होती हैं किंतु मोबाईल तो जहाँ जाओ वहीँ फोन
सुविधा आदि !
कोई
मुस्लिम यदि खुदा के अलावा किसी और के सामने सर झुका दे तो क्या वो
मुशलमान नहीं रह जाता ?
बंधुओ
! कुछ महीनों पहले आप लोगों ने एक चित्र देखा होगा जिसमें प्राण संकट में
आने पर एक मुशलमान बालक एक सिंह के सामने सिर झुका कर हाथ जोड़कर प्राणों
की भीख माँग रहा था !दुर्भाग्यवश उस पर शेर ने हमला किया और उसका बहुमूल्य जीवन बचाया नहीं
जा सका !मुझे नहीं पता उसके बाद उसका शरीर मिला या नहीं मिल पाया किंतु
ऐसी किसी भी घटनाओं में यदि शव मिल जाता है तो उसका अंतिम संस्कार इस्लाम
धर्म के अनुसार करना चाहिए या नहीं क्योंकि अल्ला के अलावा किसी और अर्थात
शेर के सामने सिर झुका देने के बाद भी वो मुसलमान रहा या नहीं और उसका
अंतिम संस्कार इस्लामिक रीति रिवाज से किया जाना चाहिए या नहीं ?
वैसे
भी नमाज के समय सर झुकाने से जैसे और बहुत सारी चीजें सामने पड़ती हैं हम
उनकी परवाह नहीं करते तो भारत माता की जय बोलने में हिचकिचाहट क्यों ? हम तो खुदा के
भाव से ही सर झुकाते रहें इसमें क्या आपत्ति होनी चाहिए ?
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