Monday, 31 January 2022

घटनाओं के कारणों और निवारणों की खोज !

घटनाओं  के कारणों और निवारणों की खोज ! 

    महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने -घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार कुछ ऐसे परोक्ष कारण होते हैं जिनके सहयोग से इस प्रकार की घटनाएँ घटित हो रही होती हैं किंतु वे दिखाई नहीं पड़ते हैं |       जिसप्रकार से मशीनों की प्रक्रिया से बिल्कुल अपरिचित व्यक्ति किसी कल कारखाने के अंदर  अचानक घुसे जहाँ बड़ी बड़ी विशालकाय मशीनें चल रही होती हैं |उन मशीनों  में लगे छोटे छोटे पुर्जे भिन्न भिन्न प्रकार की भूमिका अदा  कर रहे होते हैं |यह शोर उन्हीं विशालकाय मशीनों के चलने से हो रहा है | उस शोर को बंद करने के दो विकल्प होते हैं एक प्रत्यक्ष और दूसरा परोक्ष |प्रत्यक्ष पक्ष यह है कि उन चलती हुई मशीनों को किसी तरह रोक दिया जाए | दूसरा इसका परोक्ष पक्ष यह है कि जिस बिजली की ऊर्जा से ये मशीनें से चल रही होती हैं मशीनों से दूर रहते हुए इन्हें मिलने वाली बिजली ही रोक दी जाए तो ये मशीनें स्वतः बंद जाएँगी उससे भी शोर शांत हो सकता है |  ऐसी परिस्थिति में यदि ऊर्जा का स्रोतरोकना संभव न भी हो तो भी उस ऊर्जा केआवागमनकेआधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगानाआसान हो जाएगा कि मशीनोंसे निकलने वाला शोर कब प्रारंभ होगा?  

     इसीप्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक बढ़ने-घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं से होने वाली परेशानी भी इन्हीं मशीनों से होने वाले शोर की तरह ही हैं | घटनाएँ ही मशीनें हैं मशीनों को चलाने वाली ऊर्जा ही समय है | जिस प्रकार से जब तक ऊर्जा मिलती रहती है तब तक मशीनें चलती रहती हैं उसी प्रकार से जब तक समय का साथ मिलता रहता है तब तक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती रहती हैं और समय का साथ मिलना बंद होते ही सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं की गति रुक जाया करती है | 

    जिस प्रकार से मशीनों के चलने न चलने के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान  लगाने के लिए ऊर्जा के विषय में जानकारी होनी आवश्यक होती है उसी प्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाने के लिए समय संबंधी जानकारी होना आवश्यक होती है | समय के संचार को समझने  के लिए सूर्य के  संचार को समझना अत्यंत आवश्यक है और सूर्य के संचार को समझने के लिए पूर्वजों ने गणितीय अनुसंधान प्रक्रिया खोज रखी है जिसके आधार पर सूर्य चंद्र आदि ग्रहों एवं ग्रहणों से संबंधित विषय में पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं | उसी गणितीय अनुसंधान प्रक्रिया के आधार पर महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक बढ़ने-घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं  के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 
 
      महामारी, भूकंप, सुनामी आदि समस्त प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण समय की गति से निबद्ध है वह लाखों वर्ष पहले निर्धारित प्राकृतिक प्रक्रिया का अंग है |ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए परोक्षविज्ञान की समझ होनी आवश्यक होती है |इसके अभाव में हम बादलों  आँधी तूफानों को आकाश में देखकर उनके विषय से  संबंधित घटनाओं के विषय में भविष्यवाणियाँ  कर दी जाया करती हैं | जो  एक प्रकार का भ्रम है | सच्चाई ये है कि प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं  का वास्तविक कारण खोजने या पूर्वानुमान पता लगाने के लिए अभी तक कोई विज्ञान ही नहीं है | जिस परोक्ष विज्ञान के द्वारा ऐसी घटनाओं को समझना एवं इनके विषय में अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाना संभव है उस परोक्षविज्ञान के वैज्ञानिकों का अभाव है जिसके कारण महामारी समेत समस्त प्राकृतिक घटनाओं के वास्तविक कारण को खोजना एवं उसके विषय में पूर्वानुमान लगाना अभी तक असंभव ही बना हुआ है |   

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डेंगू जैसे रोग का प्रसार जिन मच्छरों से होता बताया जाता है वे मच्छर साफ पानी में होते कहे जाते हैं | इससे बचाव के लिए कूलर गमलों आदि में संचित पानी हटाने की सलाह दी जाती है | ऐसी परिस्थिति में नियमतः तो पहले इस प्रकार का पानी समाप्त हो ताकि उसमें उस प्रकार के मच्छर न पनपें  ही डेंगू जैसे रोगों से मिलने की आशा की जानी चाहिए किंतु होता ऐसा नहीं है | वस्तुतः जिस वर्ष जब जब डेंगू जबतक जोर पकड़ता है तब तक इस प्रकार की साफपानी वाले मच्छरों की बातें की जाती हैं किंतु डेंगू  समाप्त होते ही मान लिया जाता होगा कि अब उस प्रकार के मच्छर नहीं और उस प्रकार का साफ पानी बचा ही नहीं होगा तभी डेंगू समाप्त हुआ होगा | 

      इसीप्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बादलों का फटना ओले गिरने , अचानक तापमान बढ़ने या घटने ,अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि के जैसी अधिकाँश प्राकृतिक आपदाओं के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता है | जलवायु परिवर्तन होने के लिए जीवाश्म ईंधन (जैसे, कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस) को जलाने के कारण पृथ्वी के वातावरण में तेजी से बढ़ती ग्रीनहाउस गैसों को जिम्मेदार बताया जाता है ।ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापन को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम बताया जा रहा है ।

       ऐसी परिस्थिति में जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार जो मनुष्यकृत कारण बताए जाते नियमतः तो जब उस प्रकार के औद्योगिक क्रांति कारण नहीं थे उस समय ऐसी घटनाएँ नहीं घटित होनी चाहिए किंतु ऐसी घटनाएँ तो हमेंशा से घटित होती रही हैं | दूसरी बात ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ यदि जलवायु परिवर्तन के कारण घटित होती हैं | तो जलवायु परिवर्तन तो औसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर किया जाता है।
     इस दीर्घावधि का मतलब ये दीर्घकालीन बदलाव है ये ऐसा नहीं कि किसी वर्ष होगा और किसी वर्ष नहीं होगा किंतु व्यवहार में ऐसा देखा जाता है कि कई बार कुछ वर्षों तक ऐसी घटनाएँ घटित होती दिखाई देती हैं कई बार दशकों तक नहीं घटित होती हैं महामारी की आवृत्तियाँ तो सौ वर्ष में होती बताई जाती हैं | 
     विशेष बात है कि ऐसी दुर्घटनाओं का कारण यदि मनुष्यकृत कर्मों से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन को माना जाए तब मनुष्यकृत  औद्योगिक क्रांति कभी रुकती तो है नहीं वह तो दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है इसका मतलब तो यह हुआ कि ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं को हमेंशा बढ़ते ही जाना चाहिए किंतु ऐसा होते हमेंशा तो देखा नहीं जाता है | दूसरी बात ऐसी दुघटनाएँ तो हजारों वर्ष पहले भी घटित हुआ करती थीं तब मनुष्यकृत ऐसे औद्योगिककारण तो बिल्कुल नहीं थे | उस समय ऐसी दुर्घटनाओं के घटित होने का कारण क्या रहा होगा |
      इसी प्रकार से महामारी से संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण शोशल डिस्टेंसिंग,सैनिटाइजिंग,छुआछूत ,भोजन में साफ सफाई ,मॉस्क धारण लॉक डाउन जैसे कोविड नियमों का पालन न होना बता दिया जाता था और कोरोना  संक्रमितों की संख्या घटने का कारण कोविड नियमों का पालन मान लिया जाता था | परिस्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि ऐसे कल्पित कोविड नियमों का पालन इस प्रकार से किया कराया जाने लगा जैसे ये सामान्य अनुमानित कोविड नियम न होकर अपितु कोरोना संक्रमण से मुक्ति दिलाने में सक्षम ये स्वयं कोई अमोघ औषधि ही हैं | ऐसे कोरोना नियमों के पालन के परिणामों का परीक्षण हुए बिना ही इनके बल पर महामारी को जीत लेने या उस पर विजय प्राप्त करलेने या उसे पराजित कर देने जैसी गर्वोक्तियाँ बोली जाने लगीं जिनके प्रभाव का प्रमाणित होना अभी तक अवशेष था | 
     ऐसी परिस्थिति में कोरोना नियमों के पालन पर इतने बड़े विश्वास का वैज्ञानिक आधार क्या था जिसे महामारी से जूझती जनता के लिए अनिवार्य बताया जाता रहा है |दूसरी बात यदि किसी के महामारीमुक्त  रहने का कारण कोरोना नियमों का पालन ही माना जाता था तो जिन साधन विहीन लोगों ने परिस्थिति बशात कोरोना नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया धनहीनता के कारण उनका खानपान रहन सहन आदि भी प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने लायक नहीं था इसके बाद भी यदि वे स्वस्थ बने रहे तो उनके महामारीमुक्त रहने का वैज्ञानिक कारण क्या रहा होगा ? 
    कुल मिलाकर हम जिस प्रकार से प्रत्येक प्राकृतिकआपदा के लिए जिम्मेदार आधार भूत कारण मनुष्यकृत कर्मों को मान लिया करते हैं ऐसा मानने के पीछे वैज्ञानिक अनुसंधान आधारित वे तर्क क्या हैं जिनसे प्रभावित होकर हमें लगता है कि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के लिए मनुष्य स्वयं ही जिम्मेदार है | उन प्राकृतिक घटनाओं का वास्तविक कारण एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई सुदृढ़ वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया खोजने की जगह हम मनुष्यों के आवश्यक कार्यों में रोड़ा लगाने लग जाते हैं | मनुष्य ऐसा करना बंद कर दे तो ये प्राकृतिक घटना घटित होनी बंद हो जाएगी वैसा करना बंद कर दे तो वो प्राकृतिक घटना घटित होनी बंद हो जाएगी | ऐसा कहने के पीछे यदि यह विश्वास नहीं है कि मनुष्य ऐसा करना छोड़ ही नहीं सकता तो इतने बड़े विश्वास का तर्कपूर्ण वैज्ञानिक आधार और दूसरा क्या हो सकता है ?

    वस्तुतः  वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर महामारी के दुष्प्रभाव को रोकने में सक्षम यदि कोई कोविड नियम जैसी प्रभावी प्रक्रिया थी तो महामारी जिस किसी भी कारण से जहाँ कहीं पैदा हुई उस समय जिस किसी एक देश में दिखाई पड़ी तो इसका पता लगते ही बाकी देशों प्रदेशों को संयम का परिचय देते हुए कोविड नियमों का कठोरता पूर्वक पालन करते हुए अपने अपने देश वासियों को महामारी संक्रमण से बचाना उनका पहला कर्तव्य बनता था |ऐसा क्यों नहीं किया जा सका यह चिंतन का विषय अवश्य है | 

     महामारी सबसे पहले जिस देश में पैदा हुई या पता लगी इसकी जानकारी समस्त विश्व को हुई उन उन देशों के शासकों प्रशासकों ने सभी प्रकार से महामारी पर अंकुश लगाने के प्रभावी प्रयास किए इसके बाद भी महामारी की गति रोकी नहीं जा सकी और धीरे धीरे संपूर्ण विश्व में फैलती चली गई | सभी देश बेचारे विवश होकर महामारी का यह तांडव सहते रहे | महामारी रोकने के लिए किए गए सभी वैज्ञानिक प्रयास ब्यर्थ होते चले गए |

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घटनाओं के कारणों की खोज में भ्रम एवं निवारण  के उपायों में संशय !

    कुल मिलाकर प्रत्येक प्राकृतिक घटना देखने में भले अचानक घटित हुई लगे या उसके घटित होने के लिए भ्रमवश कोई न कोई जिम्मेदार कारण दिखाई दे किंतु प्राकृतिक घटनाएँ कभी किसी कारण से नहीं घटित हुआ करती हैं ऐसी घटनाओं को पूर्व निर्धारित निश्चित समय पर घटित होना होता है जिनका टाला जाना संभव नहीं होता है |प्रकृति की  प्रत्येक घटना घटित होने का परोक्ष कारण समय होता है जिसे केवल समय वेत्ता ही समझ पाते हैं | प्राकृतिक घटनाओं के परोक्ष कारण को समझने में असमर्थ लोग वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर प्रत्यक्ष कारणों की कल्पना कर लिया करते हैं और उसी कल्पित प्रत्यक्ष कारण को प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार मान लिया करते हैं | उन्हें लगता है कि यदि ऐसा न हुआ होता तो वो प्राकृतिक घटना नहीं घटित हुई होती जबकि उस घटना के लिए जिसको  कारण  समझकर जिस घटना के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है उस प्रकार के कारण तो अक्सर देखे जाते हैं किंतु हर बार उस प्रकार की घटनाएँ तो नहीं घटित हुआ करती हैं |  इससे  यह स्पष्ट हो जाता है कि वह घटना घटित होनी निश्चित थी उसके लिए परोक्ष को न समझपाने की असमर्थता से हम प्रत्यक्ष को कारण मान लिया करते हैं |

     प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु उसकी आयु पूरी होने के कारण होती है जबकि उसके लिए भी कोई न कोई कारण मान लिया जाता है |जो व्यक्ति जहाँ कहीं जिस किसी भी परिस्थिति में होता है जो कुछ भी खाया पिया होता है जो कुछ भी कर रहा होता है आयु का क्षण पूरा  होते ही उसकी मृत्यु हो जाती है | आयु का क्षण पूरा होते समय यदि वह प्रत्यक्ष रूप से किसी दुर्घटना का शिकार  होता है तब तो उसकी मृत्यु का कारण उसी दुर्घटना को मान लिया जाता है अन्यथा उसके आस पास जो जो कुछ हुआ या होता दिखता है जो कुछ खाया पिया पता लगता है उसी को उस व्यक्ति मृत्यु का कारण मान लिया जाता है जबकि ये सही नहीं होता है | तेल की समाप्ति हो जाने से यदि कोई दीपक बुझ जाता है | पेट्रोल  समाप्त होने से यदि कोई गाड़ी रास्ते में रुक जाती है तो इसके लिए किसी दूसरे प्रत्यक्ष कारण की कल्पना करने की आवश्यकता नहीं होती | जीवन में आयु भी तो ईंधन ही है आयु  समाप्त होते जीवन को समाप्त होना ही है | 

      किसी भूकंप महामारी या मार्ग दुर्घटना की चपेट में आकर हुई किसी की मृत्यु के लिए उस दुर्घटना को इसलिए जिम्मेदार नहीं जा सकता है क्योंकि उसी परिस्थिति में फँसे कुछ अन्यलोग जीवित भी तो बचे होते हैं दुर्घटना तो उनके साथ भी घटित हुई किंतु उनकी आयु अवशेष थी इसलिए दुर्घटना से प्रभावित होकर भी वे जीवित बच गए जिनकी मृत्यु हुई उनकी आयु ही पूरी हो चुकी थी | इसका मतलब मृत्यु तो आयु पूरी होने के कारण हुई है दुर्घटना तो मात्र एक बहाना बनती है जो प्रत्यक्ष दिखने के कारण भ्रम हो रहा होता है |परोक्ष कारण को पहचानने की क्षमता होती तो प्रत्यक्ष कारण का भ्रम नहीं होता | 

     बहुत ऐसे मनीषी महर्षि तपोनिष्ठ लोग हुए हैं जो अपनी आयु समाप्त होने पर आसन लगाकर सहज भाव से ईश्वर का चिंतन करते हुए निर्धारित मृत्यु का समय उपस्थित होने पर अपने शरीर का बिसर्जन कर दिया करते हैं उस समय मृत्यु का परोक्ष कारण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई  पड़ रहा होता है | परोक्ष कारण कारण  न   होता तो वहाँ भी कोई न कोई प्रत्यक्ष कारण खोज लिया गया होता | 

   काशी में कोई व्यक्ति प्रतिदिन बिना नागा 40 वर्ष से गंगा नहाने जा रहा था जिस समय उसकी आयु पूरी हुई उस समय भी  गंगा नहा रहा था सर्दी का समय था | उसी समय उसकी पूर्व निर्धारित मृत्यु तो होनी ही थी इसलिए हो गई | उसके मृत्यु को प्राप्त हो जाने के बाद लोग प्रत्यक्ष कारण खोजने लगे गंगा नहाने थे ठंड लग गई होगी | डुबकी लगाने से साँस फँस गई होगी | ऐसा जानते कि तो गंगा नहाने न जाते घर में गर्म पानी करके नहला दिया जाता आदि आदि जाने प्रत्यक्ष कारणों की  कहानियाँ गढ़ ली गईं और वास्तविक कारण की  जानकारी के अभाव में सर्दी में गंगा नहाने से लगी ठंड को मृत्यु का कारण मान लिया गया | 

     प्रकृति से लेकर जीवन तक ऐसी असंख्य घटनाएँ घटित हुआ करती हैं जिनके घटित होने के लिए जिम्मेदार जो वास्तविक कारण होते हैं वे केवल परोक्ष विज्ञान से ही समझे जा सकते हैं परोक्ष विज्ञान से अनभिज्ञ लोग प्रत्येक घटना का कोई न कोई प्रत्यक्ष कारण खोजकर अज्ञानवश उस घटना को टालने के  सपने  देखने लगते हैं |उदाहरण के तौर पर प्रयास पूर्वक जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाया जा सकता है और ऐसा होते ही सभी प्रकार की प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होनी कम हो सकती हैं | मच्छरों को समाप्त करके डेंगू से मुक्ति पा लेने के सपने देखे जाते हैं | भ्रमवश  कोविड नियमों का पालन करके महामारी से बच लेना चाहते हैं क्योंकि अज्ञान वश हमने ऐसा  भ्रम पाल लिया है कि महामारी पैदा होने का कारण एक दूसरे के संपर्क में आने से होने वाली छुआ छूत  है किंतु सभी के संपर्क में बड़ी  बड़ी भीड़ में हम हमेंशा से रहते रहे महामारी  तो अभी आई है | इसलिए महामारी का कारण छुआ छूत न होकर अपितु इसका वास्तविक कारण कुछ और है जिसे केवल परोक्ष विज्ञान से समझा जा सकता है उसके अभाव में ही ऐसे भ्रम पाल लिए जाते हैं |