Sunday, 8 May 2016

काँग्रेस क्या ख़ाक बचाएगी लोकतंत्र ! लोकतंत्र की समझ नहीं है तो भाजपा से सीख ले या फिर PK से पूछ ले !क्या होता है लोकतंत्र !जानिए कैसे ?

   काँग्रेस अपना अध्यक्ष चुनती है क्या ?मनमोहन सिंह जी को PM जनता की रूचि से बनाया गया था क्या ?मनमोहन सिंह जी किस लोक सभाक्षेत्र से जीते थे चुनाव !काँग्रेस बताएगी क्या ?लोकतंत्र के स्वयंभू मसीहा बने फिरते हैं लोकतंत्र बचाओ रैली निकालते !अपनी अकल इंद्रिय खराब है तो कम से कम PK से ही पूछ लिया होता रैली निकालने से पहले कि  इससे भद्द तो नहीं पिटेगी !
    लोकतंत्र  है भाजपा में जहाँ पार्टी अध्यक्ष और PM प्रत्याशी के चयन में देखी जाती है पार्टी कार्यकर्ताओं की रूचि !रही बात प्रधानमंत्री बनाने की तो अपने PM प्रत्याशी के गले में बँधा पार्टीबंधन खोलकर स्वतंत्र छोड़ देती है पार्टी जनता का भरोसा जीतने के लिए !यदि उसके समर्थन में देश की जनता मोहर मारती है तब बाद में पार्टी मारती है मोहर ! जाओ तुमने पार्टी के अनुशासित सिपाही के नाते जनता का विश्वास जीतकर प्रधानमंत्री बनने की पात्रता सिद्ध की है इसलिए बनो प्रधानमंत्री !
      भाजपा के अलावा देश की लगभग अन्य सभी पार्टियों में लोकतंत्र का तो बस नाम भर है बाक़ी एक परिवार की ही मलकीयत चलती है और जिन पार्टियों के मालिक  फिक्स हैं उन पार्टियों को लोकतांत्रिक कैसे कहा जा सकता है ! जो काँग्रेस पार्टी अपना अध्यक्ष चुनने के लिए  सदस्यों की परवाह न करती हो देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए देश की जनता की इच्छा जानने की जरूरत ही न समझती हो वो बचाने निकली है लोकतंत्र !बारे लोकतंत्र के स्वयंभू मसीहा लोगो  !
     मनमोहन सिंह एक लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं का मन नहीं जीत सके वे देश के प्रधानमंत्री बनाए गए केवल पार्टी की मालकिन की इच्छा पर और हमेंशा  उसी प्रकार का व्यवहार भी करते रहे !मनमोहन सिंह जी की पार्टी की मालकिन के लड़के ने उनके मंत्रिमंडल के द्वारा पास कराया गया अध्यादेश फाड़ने के लिए बकायदा प्रेसकांफ्रेंस की थी ! यदि वो पार्टी की मालकिन के लड़के सहमत नहीं थे तो एकांत में बात भी की जा सकती थी मनमोहन सिंह जी से वे विद्वान हैं वयोवृद्ध हैं हैं शिष्ट शालीन अनुभवी आदि और भी बहुत कुछ हैं उनसे इस विषय में बात कर लेने में कौन सी बेइज्जती हो जाती या वो कौन  इनकार कर देते और यदि कर देते तो कितने घंटे रह पाते कृपा पूर्वक प्राप्त उस कुर्सी पर !ये तो दुनियाँ जानती है फिर भी दुनियाँ को दिखाकर अध्यादेश की कापी फाड़ने को मनमोहन सिंह जी की सरकार के लिए चुनौती क्यों न माना जाए लोकतंत्र कैसे मान लिया जाए ! 
    इसीप्रकार से मनमोहन सिंह जी की सरकार की मालकिन के लड़के को प्रमोट करने के लिए गैस सिलेंडरों की संख्या घटाकर पहले 9 की गई थी फिर मालकिन के लड़के से एक सभा में कहलवाया गया कि अब 12 कर दो सुनते ही पेट्रोलियम मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने कहा -"सब्सिडी वाले सस्ते रसोई गैस सिलेंडरों का सालाना कोटा नौ से बढ़ाकर 12 किया जाएगा।" मालकिन के लड़के को प्रमोट करने के लिए जनता को ऐसे तंग किया जाता रहा इसे लोकतंत्र मान लिया जाए क्या ?
          इसप्रकार से सपा बसपा राजद आदि सभी पार्टियों में अध्यक्ष नहीं अपितु मालिक हैं इसीलिए भारतीय जनता पार्टी काँग्रेस समेत सभी पार्टियों को सिखा सकती है कि क्या होता है लोकतंत्र ! क्योंकि भाजपा "लोकतंत्र बचाओ" के नारे नहीं लगाती अपितु देश के लोकतंत्र के लिए साक्षात संजीवनी है ! लोकतंत्र  बचाने वाली एकमात्र पार्टी है भाजपा जिसमें अध्यक्ष बनने या प्रधानमंत्री बनने का सपना पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता देख सकता है बशर्ते उसे पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता का विश्वास जीतना होता है इसे कहते हैं लोकतंत्र !जो लोक इच्छा  से बनता है ।बाकी पार्टियों में लोकतांत्रिक दृष्टि से  अध्यक्ष चुनने के नाम पर  लोकतंत्र को केवल ठेंगा दिखाया जाता है ! जिस पार्टी में अध्यक्ष चुनने की जगह एक परिवार की मलकियत चलती हो !वे  सोनियाँ जी और मनमोहन जी क्या बचाएँगे लोकतंत्र !

Saturday, 7 May 2016

प्रधानमंत्री की जेब में पड़े हैं कितने केजरीवाल किस किस की बातों का जवाब दें PM !उनके लिए तो सभी CM बराबर हैं !

  प्रधानमंत्री  सारे देश का होता है उसे दिल्ली में ही फँसा कर रखना चाहते हैं केजरी वाल !     प्रधानमंत्री जी को जनता ने जो जिम्मेदारी दी है उसे निभावें या उस व्यक्ति की बातों में समय बर्बाद करें जो न नौकरी की जिम्मेदारी सँभाल पाया हो और न मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सँभाल पा रहा हो ! 
     लोकसभा के चुनावों में PM के संसदीय क्षेत्र की जनता ने ही जिसे दुत्कार कर भगा दिया हो उसे पुनः प्रश्न करने की गुंजाइस बचती कहाँ है !वैसे भी प्रश्न तो कोई किसी से भी कर सकता है किंतु जवाब सबको तो नहीं दिए जा सकते !हाँ बराबरी के लोग प्रश्न पूछें तब तो जवाब बनता भी है किंतु अपने PM  से बात करने का ढंग ही न हो जिसे ऐसे हॉफ CM की बिना सर पैर की बातों का जवाब कैसे देने लगें PM !
    PM को यदि जवाब ही देना होगा तो देश की जनता को देंगे जिसने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया है उसे हिसाब देना होगा तो देंगे PM ,किंतु जिसे बनारस की जनता ने ही प्रश्न पूछने लायक न रखा हो उसकी बातों का जवाब कैसे दें PM  ! 
स्कूलों में 
राजनीति !
स्कूलोंमें नेता दर्शन
   मोदी जी की डिग्रियों पर इसी समय प्रश्न उठाने का सीधा सा मतलब सवालों के कटघरे में खड़ी काँग्रेस की मदद करना है क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री बनाने में केजरीवाल जी की मदद की थी इसीलिए काँग्रेस का सारा भ्रष्टाचार माफ दोनों का  हाफ हाफ!
 इसी प्रकार से ऑड इवन जैसे सगूफे केजरीवालजी के फोटो पोस्टर पूरी दिल्ली में लगाने के लिए बहाना मात्र होते हैं !वो लग गए फिर कोई नया सगूफा छोड़ेंगे उसके नाम पर लगाएँगे केजरीवाल जी के फोटो !वैसे भी ऑड इवन कोई स्कीम नहीं अपितु एक प्रकार की मूर्खता है प्रदूषण से इसका कोई लेना देना भी नहीं है !
       'ऑड इवन'से प्रदूषण में कोई कमी आएगी ऐसी उम्मीद तो किसी को नहीं थी केवल 'आप' के तथाकथित वालेंटियर को फँसाए रहने के लिए ऐसे सगूफे छोड़ दिए जाते हैं और बता दिया जाता है कि विरोधी इसे फेल करना चाह रहे हैं किंतु तुम्हें पास करना है वो बुद्धू पलट के ये नहीं पूछते कि इसमें ऐसा है क्या जिसके लिए ऐसी धूप में हमें मारे डाल रहे हो !उन्हें समझाना चाहिए कि हे अन्ना जी के अंग्रेज !ये भारत वर्ष है यहाँ फसलों की कटाई मड़ाई के समय वायुमंडल में धूल - धुआँ तो हो ही जाता है और हवाओं को दिल्ली में घुसने से रोका नहीं जा सकता इसलिए बेकार में  दिल्ली की जनता को तंग करने के अलावा ऑड इवन से आपको क्या मिलेगा !    ऑड इवन से जनता  को तो कोई फायदा नहीं ही है किंतु दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी ऐसी काल्पनिक योजनाओं का भरपूर लाभ लेती है ! केजरीवाल जी कई प्रकार  से उठाते हैं इनका लाभ !पहले किसी योजना का नाम लिया जाता है फिर केजरीवाल जी के चित्र लगाकर पोस्टर चिपका दिए जाते हैं पूरी दिल्ली में !पोस्टरों के लिए किसी योजना की आड़ तो लेनी ही होती है इसीलिए वो कोई न कोई सगूफा छेड़े ही रहते हैं और अपने चित्र लगे बैनरों पोस्टरों से रोडों चौराहों स्कूलों आफिसों को कभी खाली नहीं  रहने देते ताकि दिल्ली की सीमा में किसी और का चित्र न लग सके दूसरी बात ऐसे सगूफों से जनता का ध्यान भटका रहता है तीसरी बात अपने जिन सगे संबंधियों को बैनर पोस्टर बनाने के नाम पर कमाई करवानी है उन्हें खाली न बैठने दिया जाए !इस प्रकार से एक योजना वो भी काल्पनिक उसका भी दोहन कई प्रकार से करती है आम आदमी पार्टी !
       पोस्टर देखकर ये पता लगापाना कठिन हो रहा है कि 'ऑडइवन' का प्रचार करने के लिए केजरीवाल जी की फोटो लगाई गई है या केजरीवाल जी के चित्रों का प्रचार करने के लिए 'ऑडइवन' योजना बनाई गई है ! 
    अब तो बहुत लोग  कहने भी लगे हैं कि दिल्ली सरकार में केजरीवाल जी के चित्रों को लगाने का बहाना खोजने के लिए बनाई जाती हैं 'ऑडइवन' जैसी योजनाएँ  !    
     कुल मिलाकर दिल्ली सरकार में बैठे नेता नौसिखिए हैं इन्हें केवल निंदा करना आता है इसलिए इनकी बौद्धिक मदद करने के लिए विपक्षी दलों के अनुभवी नेताओं को आगे आना चाहिए अन्यथा ये पाँच साल ऐसे ही पार कर देंगे ! विपक्ष के वो अनुभवी लोग सरकार को प्रचार प्रसार के लिए 'ऑडइवन'जैसी बहु बहुखर्चीली निरर्थक योजनाओं को रोकने के लिए बाध्य करें !जिससे 'ऑडइवन'जैसी योजनाओं के प्रचार प्रसार पर जनता के विकास के लिए जनता के द्वारा टैक्स रूप में प्राप्त धन का दुरूपयोग रोका जा सके ! जनता के धन का सदुपयोग तथा जनता के हितों की रक्षा करना और जनहित के काम करने के लिए सरकारों को बाध्य करना ये विपक्ष की अपनी भी जिम्मेदारी है !
    'ऑडइवन'में दिल्लीसरकार ने प्रशासन और जनता से लेकर मीडिया तक को उलझा रखा है इस योजना के न कोई तर्क है न कोई परिणाम !केवल ऐसी योजनाओं के प्रचार में पैसा फूँका जा रहा है !टीवी चैनलों से लेकर बैनरों पोस्टरों तक हर जगह 'ऑडइवन'का केवल प्रचार है इसमें पैसे क्या नहीं लग रहे होंगे!आखिर वो पैसे हैं तो  दिल्ली की जनता के जो दिल्ली के विकास के लिए देती है जनता !वही जनता परेशान है तो लानत है ऐसी  योजनाओं को !
   दिल्ली सरकार में बैठे नेता यदि नौसिखिए हैं तो ऐसे नेताओं की बौद्धिक मदद करने के लिए विपक्षी दलों के अनुभवी नेताओं को आगे आना चाहिए और इन्हें समझाना चाहिए कि जनहितकारी योजनाओं को लागू करने का मजा ही तभी है जब जनता तंग न हो ! इतनी बड़ी मेट्रो बनी जनता दुखी नहीं हुई किंतु 'ऑडइवन'से दुखी है ऊपर से चार लफोडे टीवी चैनलों के सामने आकर बोल जाते हैं कि'ऑडइवन'से दिल्ली की जनता तो खुश है पता नहीं इस ख़ुशी के सैम्पल कहाँ से उठाते हैं ये लोग या फिर झूठ बोलते हैं । 
    'ऑडइवन' से धनी लोगों को तो कोई ख़ास दिक्कत नहीं वो गाड़ियाँ बढ़ा लेते हैं किंतु मध्यमवर्गीय लोग जिन्होंने लोन पर गाड़ियाँ ली हुई हैं जिसका ब्याज आज भी भर रहे हैं वे उन्हें बिना गाड़ी वाला बना रही गई दिल्ली सरकार   !
      विपक्ष को चाहिए कि वो सरकार को बाध्य करे कि आम आदमी पार्टी के नेता अपने प्रचार प्रसार के लिए ऐसी निरर्थक बहु बहुखर्चीली योजनाएँ रोकें !'ऑडइवन'जैसी योजनाओं के प्रचार प्रसार पर जनता के विकास के लिए जनता के द्वारा टैक्स रूप में प्राप्त धन का दुरूपयोग रोका जा सके !
      जनता के धन का सदुपयोग तथा जनता के हितों की रक्षा करना और जनहित के काम करने के लिए सरकारों को बाध्य करना ये विपक्ष की अपनी भी जिम्मेदारी है !     दिल्ली को जाम मुक्त बनाने के लिए रोडों पर से अतिक्रमण हटाना बहुत आवश्यक है कई जगह तो जितनी चौड़ी रोडें कागजों में हैं मौके पर उसकी आधी चौथाई ही बची हैं बाक़ी पर लोगों ने कब्ज़ा कर रखा  है कई जगह रोडें टूटी पड़ी हैं पूर्वी दिल्ली की कुछ बस्तियां नक्सा पास होने के बाद भी अतिक्रमण के कारण ऐसी हैं कि किसी को अचानक किसी बड़े अस्पताल की जरूरत पड़े तो समय से पहुँच पाना असम्भव होगा !इसमें उनका क्या दोष है ये तो सरकारों की लापरवाही है । 
       कई जगह चौराहों पर जाम लगता जाएगा भीड़ बढ़ती जाएगी किंतु वहाँ या तो पुलिस होती नहीं या उसे मतलब नहीं होता है  देखा करती है कई बार तो बहुत बड़े बड़े जाम के इतने छोटे छोटे कारण होते हैं कि कोई जरा से इशारा कर दे तो जाम खुल जाए किंतु इतना करने वाले लोग भी उपलब्ध नहीं हैं !पुलिस वाले सामने खड़े होते हैं । 
    ऐसी जगहों पर 'ऑडइवन' के समय जाम नहीं लगने पाता क्योंकि इन दिनों में प्रशासन सतर्क रहता है वालेंटियर अपनी सेवाएँ देते हैं मीडिया भी सतर्क रहता है इसलिए जाम लगाने वाले लोग भी चौकन्ने रहते हैं ऐसे  कारणों से यदि थोड़ा  प्रदूषण घट भी जाए तो सरकार अपनी पीठ थपथपाने लगती है जबकि 'ऑडइवन' के बिना भी रोडों पर यदि ऐसी  सतर्कता बरती जाए तो बिना 'ऑडइवन' के भी जाम एवं प्रदूषण पर 'ऑडइवन'जैसा नियंत्रण तो किया ही जा सकता है ।
    'ऑडइवन' जैसी सरकारी लीलाओं से आज हर वर्ग परेशान है जिनका संबंध प्रदूषण घटाने से कम अपनी पार्टी नेताओं के चेहरे चमकाने से ज्यादा है । दिल्ली के लोगों की व्यस्ततम जिंदगी में 'ऑडइवन'नामक एक नया बखेड़ा खड़ा कर रही है दिल्ली सरकार जिससे दिल्ली की जनता का कोई विशेष भला होते नहीं दिखता !
     
   दिल्ली के स्कूलों में घुसाई जा रही है राजनीति !स्कूलों को आत्म विज्ञापन का माध्यम बनाया जा रहा है एक स्कूल में भारी भरकम चार पोस्टर देखे उनमें जिन नेताओं के चित्र हैं क्या उन्हें शिक्षा का देवता मान लिया जाए !आखिर उनके चित्रों का शिक्षा से क्या संबंध है ?ये लोग नेता हैं क्या ये सच नहीं है नेताओं के प्रति समाज में इतना निरादर है अविश्वास है फिर भी सुकोमल मानस बच्चों के सामने उन्हीं नेताओं के चित्र परोसे जाएँ उन्हें नेता देखने के लिए मजबूर किया जाए ये शिक्षा जगत के लिए और बच्चों के भविष्य  के लिए कितना उचित है ! शिक्षा संबंधी विज्ञापनों में स्कूलों छात्रों शिक्षकों के
शिक्षा में चौधराहट ! 
शिक्षा संबंधी चित्र होते उनमें शिक्षा जगत से जुड़े कुछ प्रेरक महापुरुषों के चित्र दिए जा सकते थे शिक्षा और संस्कारों से जुड़े कुछ प्रेरक वाक्य लिखे जा सकते थे जिन्हें देखकर शिक्षा का वातावरण कुछ सुधरता किंतु वहाँ अरविंद जी और मनीष जी के चित्रों की क्या भूमिका ये दोनों न तो शिक्षक हैं और न ही  छात्र !जो हैं जहाँ हैं वहाँ उनका सम्मान है किंतु शिक्षण संस्थानों का प्रयोग अपने प्रचार के लिए करना ठीक नहीं है !सरकारी सभी योजनाओं में कुछ कमियाँ  तो रह ही जाती हैं उसी तरह इन योजनाओं में भी रही होंगी !विपक्ष यदि उनका उसी तरह प्रतीकार करना चाहे तो वो भी इन्हीं जगहों पर इनका खंडन करते हुए पोस्टर लगा सकता है क्या ?यदि नहीं तो सत्ता पक्ष क्यों ?क्या वो स्कूलों या ऐसी सरकारी जगहों का  मालिक है !
     इसी प्रकार से अन्य विभागों से संबंधित विज्ञापनों में भी किया जा रहा है किंतु ये ढंग तो ठीक नहीं है कि जब आपको अपने चित्रों वाले पोस्टरों पर धूल मिट्टी लगी दिखने लगती है तो आप किसी योजना का नाम लेकर उसी के बहाने अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं और अपने बैनरों पोस्टरों से पाट देते हैं सारी दिल्ली !

   ऐसे 'ऑडइवनों' से तो हर विभाग की असफलता छिपाई जा सकती है जैसे महँगाई बढ़े तो एक एक दिन छोड़कर खाना शुरू करा दिया जाएगा !स्कूलों में बच्चों की भीड़ें कम करने के लिए बच्चों की डेट आफ बर्थ में फिट कर दिया जाएगा  'ऑडइवन' किस दिन किस बच्चे को स्कूल जाना है बता दिया जाएगा ! दिल्ली में यदि बाढ़ आ जाएगी तो दिल्ली वालों के पेशाब करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा क्या ?
  वस्तुतः  दिल्ली में'ऑड इवन 'योजना तो दिल्ली  सरकार के परिवहन विभाग के फेल होने की निशानी है जो दिल्ली वालों को उचित रोड मुहैया नहीं करा सकी ! ये बुद्धू लोग उसका भी उत्सव मना रहे हैं !
     दिल्ली की जनता के द्वारा दिल्ली के विकास के लिए दिए गए धन से विज्ञापन बनाने यदि इतने ही जरूरी थे पैसा इतना ही इफरात था तो उसमें जिसका पैसा लगता है या जिस विषय से संबंधित आफिस आदि होता है चित्र उसके लगने चाहिए नेताओं के क्यों ?
         आप सरकार के द्वारा चलाई जा रही 'ऑड इवेन' योजना भी तो इसी मानसिकता की प्रतीक है!इसका उद्देश्य यदि रोडों पर बाहनों की संख्या घटाना है तो स्वच्छता अभियान की तरह ही नैतिक निवेदन भी तो किया जा सकता था अन्यथा किस किस विषय में जनता पर थोपा जाएगा 'ऑड इवन" भीड़ तो हर जगह है और जन संख्या है तो भीड़ तो होगी ही इसका एक ही रास्ता है या तो संसाधन बढ़ाए जाएँ या फिर भीड़ घटाई जाए !
    केजरीवाल जी !अपने चित्रों के प्रचार पसार पर जो भारी भरकम धनराशि आप खर्च  करते हैं वो न आपके पिता जी की कमाई है और न ही आपकी !ये धन दिल्ली वाले दिल्ली का विकास करने के लिए सरकारों को देते हैं यदि सरकारों में बैठे लोग उस धन को उन लंबे चौड़े बड़े बड़े पोस्टरों को बनाने और चिपकाने पर खर्च करने लगें जो केवल आपके चित्रों को घर घर और जन जन तक पहुँचाने के लिए लगाए जाते हों  !
      हे केजरीवाल जी !आत्म विज्ञापनों में सरकारी नेताओं के द्वारा फूँकी जाने वाली ये दिल्ली वालों की धनराशि के विषय में क्या आपको पता है कि दिल्ली वाले कितनी मेहनत से अपना खून जलाकर और पसीना बहाकर कमाते हैं किंतु दिल्ली वालों को आप अपना नहीं समझते इसीलिए उनके पैसे के विज्ञापनों में बर्बाद होने से आपको दर्द नहीं होता है !
     केजरीवाल जी ! जरा सोचिए आपने अपने पिता जी कमाई से एक कलेंडर भी बनवाकर पहले कभी लगाया था अपने नाम और चित्र का ! आपने शिक्षा में इतनी बड़ी सफलता हासिल की थी या इतनी बड़ी पोस्ट मिली थी तब आपको इतनी ख़ुशी कभी क्यों नहीं हुई कि पोस्टर बनवाकर लगवा लेते ! तो आज दिल्ली वाले भी संतोष कर लेते कि तुम बचपन से ही पोस्टरों के शौकीन रहे हो !किंतु पहले ऐसा हुआ नहीं अब फ्री की सरकारी सम्पदा देखकर यदि इसे बर्बाद करने के लिए मन मचल ही  पड़ा है तो ये ढंग ठीक है क्या ?दिल्ली वालों के विकास का धन आज फ्री का लग रहा है आपको !
   केजरीवाल जी !यदि तब पोस्टर नहीं लगे तो नुक्सान क्या हुआ ?आज क्या लोगों को पता नहीं है कि तुम क्या हो और क्या थे ! जब बिना पोस्टरों प्रचारों के तुम्हारे विषय में सबको सबकुछ पता हो गया तो दिल्ली वालों के साथ जो भी अच्छा बुरा करोगे वो भी दुनियाँ  को पता हो ही जाएगा उसके लिए इतनी आतुरता क्यों ?माना कि दिल्ली वालों को आप अपना नहीं मानते इसलिए उनकी परेशानियों और पैसों से आपको लगाव नहीं है और पिता जी आपके अपने थे इसलिए उनके पैसे से लगाव था इसीलिए उनकी कमाई को बर्बाद नहीं किया और दिल्ली वालों की कर रहे हो !
      केजरीवाल जी !यदि आप कहें कि और लोग भी तो ऐसा करते हैं तो याद रखिए करते सब हैं किंतु इतना नहीं करते और इतने भोड़े ढंग से नहीं करते और यदि करते भी हों तो ये भी सोचिए कि इन्हीं कारणों से उनकी तुम निंदा किया करते थे तभी तो दिल्ली वाले तुमपर खुश हुए कि चलो ये सादगी पसंद ईमानदार है इसलिए ऐसा नहीं करेगा किंतु तुम भी यदि सबकुछ वैसा ही करने लगे जिसके लिए नेताओं की बुराई किया करते थे !तो इसे दिल्ली की जनता अपने साथ हुई धोखा धड़ी ही मानेगी !
      केजरीवाल जी !पोस्टरों से अच्छाई बुराई को कुछ उछाला तो जा सकता है किंतु बनाया नहीं जा सकता है !यदि ऐसा हो सकता होता तो सारे गंदे और गलत अपराधी लोग अपने विषय में अच्छी बातें लिखकर पोस्टर लगवा दिया करते और उन्हें लोग अच्छा समझने  लगते !





स्कूलों में राजनीति !

जिम्मेदारी न निभा पाने की पीड़ा क्या होती है अधिकारी कर्मचारी सीखें आत्महत्या करने वाले किसानों से !

     सरकारी भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की तरह वो चाहें तो भ्रष्टाचार पूर्वक  भी जीवन जी सकते थे किंतु
इसके लिए उनकी आत्मा ही नहीं मानी होगी ! उन्हें सरकारी कर्मचारियों की तरह घूस आदि मक्कारी का पैसा भले ही न मिलता किंतु अपराध करके तो भी जुटा सकते थे पैसा और पूरी कर सकते थे अपनी जिम्मेदारियाँ किंतु ऐसा नहीं किया उन्होंने आत्महत्या करने वाले किसानों से सरकारी अधिकारी कर्मचारी  सीख सकते हैं और भी बहुत कुछ !                 अधिकारियों कर्मचारियों एवं सरकारों में सम्मिलित लोगों के दिए हुए घाव ही तो सहला रहा है देश !अन्यथा ये तो सोने की चिड़िया था इसे लूटने के नाम पर अंग्रेजबेचारे  तो केवल बदनाम होकर भाग गए हैं बाकी लुटेरे नेताओं और उस लूट में हिस्सा बटाने वाले    अधिकारियों कर्मचारियों ने !राजनीति और सरकारी कर्मचारियों ने  लूटा  है इसे !देशवासियों के पास इसके मजबूत प्रमाण हैं किंतु ऐसे पापियों के विरुद्ध न वो जाँच कर सकते हैं और  सजा सुना सकते हैं इसलिए केवल सहते हैं


देश में कमी क्या थी इनके द्वारा किया गया शोषण सह रहा है देश ! द्वारा दिया गया धोखा पचा नहीं पा रहा है देश !
 अधिकारियों  कर्मचारियों को बहुत कुछ सीखना चाहिए आत्महत्या करने वाले गरीबों किसानों मजदूरों से !बिचारों  के कितने धनी होते हैं वे !



   अधिकारियों कर्मचारियों को देश के गरीबों किसानों से मजदूरों से जिम्मेदारी न निभा पाने  की बेदना सीखनी चाहिए ,शर्म और ईमानदारी सीख सकते हैं शर्म सीख
 देश का गरीब मजदूर  किसान उठना बैठना बोलना यहाँ कि जीना सिखा सकता है सरकारी अधिकारियों को !
     वातानुकूलित आफिसों में बैठकर मोटी मोटी सैलरी लेकर भी काम न करने वालों को ईमानदारी सहनशीलता और शर्म और देश सेवा करने  ढंग सिखा सकता है वो गरीब मजदूर  किसान उठना !

सरकार के


  सरकार केवल इतना कर दे - अपने अधिकारियों कर्मचारियों के शोषण से जनता को बचा ले बस !

 न्याय नीलाम करने वाले और जनता के अधिकारों को हड़पने वाले अधिकारियों कर्मचारियों से जनता की रक्षा हेतु  मुहिम छेड़े सरकार ! सरकार यदि इतना कर सकती है तो कर दे ! यदि कोई साहसी ईमानदार  कर्मठ  और जनसेवी सरकार केवल इतना कर दे कि सरकारों में सम्मिलित लोगों और सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों
ने आफिसों को अपना रुतबा दिखाने का स्थान बना लिया है

सरकार से प्रयास को जनता जनता बस इतने में जी लेगी किसान मजदूर गरीब वर्ग बस इतने  में ही  लेगी !


अधिकारियों री हों या 

जनता को मुक्त करे सरकार

Thursday, 5 May 2016

रामदेव जी मिलने पहुँचे लालू जी के घर ये अचानक प्रेम उमड़ा था या था कोई डर !

   यदि लालू जी चाहते हैं कि साधू संतों की संपत्तियों की जाँच हो तो जाँच कराने में बुराई क्या है ?उसमें इतनी घबड़ाहट कैसी ?

"साधु-संतों की संपत्ति की जांच की जाये : लालू "

"भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर राजद के प्रदेश मुख्यालय में आज आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए  लालू जी ने यह कहा था !"

  

    रामदेव जी को ठग कहने वाले लालू जी का अचानक हृदय परिवर्तन हुआ या डरा धमका कर किया गया !कुछ तो ऐसा हुआ ही है जो समाज से छिपाया जा रहा है आखिर  लालू जी अचानक डर कैसे गए !"साधु-संतों की संपत्ति की जांच की जाये : यह सुनकर वास्तव में घबड़ा गए बाबा जी या कुछ और सुन कर डर गए लालू जी !अब तो जाँच इसकी भी निष्पक्ष होनी चाहिए कि  लालू जी डरे आखिर कैसे !

    वस्तुतः रामदेव जी के साथ संपूर्ण धार्मिक समाज की भी प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है इसलिए ईश्वर न करे उनकी बदनामी हो किंतु  यदि होती है तो संपूर्ण धार्मिक समाज इसमें सम्मिलित माना जाएगा जब तक वो अपने को अभी से अलग करके नहीं चलता है क्योंकि रामदेव जी केवल एक व्यापारी ही नहीं अपितु वे थोड़े बहुत धार्मिक भी दिखते हैं उनकी बातें वेष भूषा आदि इस विषय में प्रमाण हैं । रामदेव जी भले व्यापारी ही हों और सारा विश्व उन्हें जनता भी एक व्यापारी के रूप में ही रहे तो ये कोई बुरी बात भी नहीं है सधुअई करके धन कमाना और बाद में अपनी अधूरी व्यापारिक इच्छाएँ पूरी करने में गलत क्या है ! कई लोग तो सधुअई से धन कमाकर जब चार पैसे हाथ में हो जाते हैं तब शादी भी कर लेते हैं तो कुछ करने में बुराई नहीं है बशर्ते !जब कभी मन धर्म और संन्यास से भटककर कुछ अलग से करने का सा होने लगे तो धर्म और संन्यास की प्रतिष्ठा को दाँव पर नहीं लगने देना चाहिए क्योंकि इसके सहारे बहुत लोग जी ले रहे हैं !अन्यथा उन सभी धार्मिक लोगों को भी लोग उसी व्यापारिक दृष्टि से देखने लगते हैं या व्यापारी मानने लगते हैं जिससे  आदर्शवान साधू संन्यासी अपना अपमान समझते हैं क्योंकि वो शास्त्रीय जीवन शैली अपना चुके होते हैं । शास्त्र कभी भी किसी संन्यासी को व्यापार करने जैसे प्रपंचों में फँसने की अनुमति नहीं देंगे !व्यापार करना कोई बुरीबात नहीं है और न ही लालू जी के घर जाना कोई बुरी बात है किंतु लालू जी ने साधू संतों की संपत्ति की जाँच की माँग की इससे डर कर उनके घर चले जाना और उनकी हाँ में हाँ मिलाने लगना ये व्यवहार विश्वनीयता को संदिग्ध बनाता है । 

   व्यापार करने के लिए समाज का विश्वास जीतना सबसे पहले जरूरी होता है  इसमें कई लोगों की तो कई कई पीढ़ियाँ बीत जाती हैं तब कहीं बन पता है विश्वास और बिना विश्वास के व्यापार कैसा !

    यही विश्वास जीतने के लिए कई लोग अपनी दुकानों प्रतिष्ठानों कंपनियों में धार्मिक पूजा पाठ का वातावरण बनाकर रखते हैं ताकि लोग उन्हें प्रत्यक्ष रूप से धार्मिक और  अप्रत्यक्ष रूप से ईमानदार समझें !कई व्यापारिक संस्थानों में लोग मंदिर बना देते हैं इसका कतई मतलब नहीं है कि वे धार्मिक हैं किंतु वो धार्मिक दिखें इसलिए देखने वाले उन पर व्यापारिक भरोसा करें ये भावना तो होती ही है ! 

     व्यापार करने के लिए साधू संतों जैसी धार्मिक वेषभूषा बनाकर रहना और व्यापार करने के लिए ही पतंजलि जैसे धार्मिक महामुनि के नाम एवं उनके प्रति बने जन विश्वास का उपयोग करना एवं व्यापार करने के लिए ही  हरिद्वार जैसी धार्मिक नगरी में अपने व्यापारिक पैर पसारना आदि ये सबकुछ समाज के धार्मिक भावदोहन का लक्ष्य लेकर ही किया गया है !इससे समाज का विश्वास जीतने में बहुत बड़ा लाभ मिला इतना करने के लिए तो लोग कई कई पीढ़ियाँ गुजार देते हैं ।

    रामदेव जी का तो  सारा व्यापार  ही संन्यास,पतंजलि और हरिद्वार की महिमा पर टिका हुआ है अन्यथा समाज अन्य व्यापारियों की श्रेणी में ही इन्हें भी समझता !इनमें अलग क्या था !इसीलिए व्यापारियों से पतंजलि की कोई तुलना भी नहीं है क्योंकि वो ईमानदारी पूर्वक केवल व्यापार करते हैं वो व्यापार करने के लिए धर्म की आड़ नहीं लेते हैं । 

    संन्यास,पतंजलि और हरिद्वार ये तीनों नाम 'धर्म' से सम्बंधित हैं इस लिए इनकी जिम्मेदारी भी अधिक है जैसे आशाराम जी के साथ भी था बाद में जब कानूनी कार्यवाही हुई तब आशाराम जी की तो जो दुर्गति हुई सो हुई ही साथ ही सम्पूर्ण धार्मिक समाज ही कटघरे में खड़ा कर दिया गया था !मीडिया ने महीनों तक चलाया था धर्म और धार्मिक लोगों का ट्रायल !उससे सतर्क रहना चाहिए धार्मिक समाज को और सावधानी तो बरतनी ही चाहिए !लालू जी के कहे अनुसार यदि संदेह हुआ है तो साधू संतों की संपत्ति की जाँच तो होनी चाहिए ही किंतु ऐसे लोगों के विरुद्ध जाँच करेगा कौन !और क्यों करेगा !आदि आदि और भी  बहुत कुछ !  पढ़ें हमारा यह पूरा लेख योग दिवस  के दिन -

Wednesday, 4 May 2016

आजम साहब !इसका मतलब विवाह केवल मर्दानगी साबित करने के लिए किया जाता है क्या ?

   हे आजमसाहब !आप महिलाओं के जीवन को इतनी  गंदी निगाह से देखते होंगे  ये उम्मींद नहीं थी  !

  "इसका मतलब महिलाओं के जीवन का अपना कोई उद्देश्य  नहीं है आपके हिसाब से तो उनका जीवन केवल पुरुषों की मर्दानगी सिद्ध करने के लिए है बस !" धिक्कार है तुम्हें !

"शादी कर मर्दानगी साबित करें आदित्यनाथ'-आजम खान"

    किंतु आजम साहब ! इसका मतलब तो ये हुआ कि जो जितनी ज्यादा शादी करे वो उतना बड़ा मर्द तो आप भी अपने बिषय में बता दें कि आप कितने बड़े मर्द हैं और इस्लामधर्म के अनुयायियों में सबसे बड़ा मर्द कौन है उसका नाम भी बता ही दीजिए !साथ ही ये भी बता दीजिए कि क्या इस्लाम धर्म में जो शादी नहीं करते वो मर्द नहीं माने जाते !ये भी बता दें कि आपके हिसाब से समाजवादी पार्टी में कितने मर्द और कितने नामर्द हैं !नेता जी आपकी निगाह में कितने बड़े मर्द हैं !कहीं आपकी इसी मर्दानगी के प्रोत्साहन के कारण तो यूपी में नहीं बढ़ रहे हैं बलात्कार !वैसे आजम साहब !यदि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आपके हिसाब से मर्द बनना शुरूकर दिया तो उत्तर प्रदेश को भगवान का ही सहारा है !हो सकता है इस्लाम ऐसा मानता हो किंतु सनातन धर्म में तो ब्रह्मचर्य पालन की भी पवित्र परंपरा है !आप न जाने शंकराचार्य जी ,विवेकानंद जी,दयानंद जी जैसे असंख्य महापुरुषों को क्या समझते होंगे !


yogi ki mardangi

केजरीवालसरकार से स्कूलों के दरवाजे तो साफ किए नहीं गए ये ख़ाक मिटाएँगे दिल्ली का प्रदूषण !

    सरकारी तंत्र को पैसा खिलाए बिना जब कोई अतिक्रमण नहीं कर सकता तो दिल्ली के स्कूलों पार्कों रोडों पर जब तक अतिक्रमण है तब तक दिल्ली सरकार को भ्रष्ट क्यों न माना जाए!विज्ञापनों  से  भ्रष्टाचार को ढक देना चाहती है केजरीवाल सरकार!
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    'आप' सरकार स्कूलों के गीत गाने में पीछे नहीं है किंतु हकीकत ये है !प्रतिभा विद्यालय दिल्ली सरकार के स्वाभिमान हैं जब उनके दरवाजे की ऐसी दुर्दशा हो तो दिल्ली का कितना बुरा हाल होगा !दिल्ली सरकार के नौसिखिएपन के कारण बढ़ा है प्रदूषण रोडों पर अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है जाम बढ़ रहा है प्रदूषण तो होगा ही ! 
      
    दिल्ली में भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो शोर  मचाया करते थे अब हिस्सा उन्हें भी मिलने लगा होगा तभी तो शांत हैं अन्यथा अभी भी अन्ना जी को लिए डटे होते राम लीला मैदान में !अब बेचारे अन्ना जी तो इनसे मुक्त हो गए किंतु दिल्ली वालों को फँसा गए !बुढ़ऊ बहुत चालाक निकले !

   सरकार जब स्कूल के दरवाजों को साफ सुथरा नहीं रख पाई बच्चों और  उनके अभिभावकों को खड़े होने के लिए दो गज जगह नहीं मुहैया करवा पाई !आखिर ये जिम्मेदारी किसकी है  इतने दिनों से कर क्या रही है दिल्ली सरकार !
   इस स्कूल के गेट पर दूर दूर तक धूप होती है प्रतिभा स्कूल के दरवाजे पर इसी एक पेड़ की घनी छाया होते हुए भी उस पेड़ के नीचे ऐसा भयंकर अतिक्रमण है कि दोपहर दो बजे छुट्टी के समय बच्चों की प्रतीक्षा में धूप में खड़े रहते हैं माता पिता और माता पिता की प्रतीक्षा में खड़े रहते  हैं बच्चे खुली दोपहर की धूप में !और अतिक्रमण करने वाले चिल्ला चिल्लाकर चुनौती दे रहे हैं कि कोई हटवाकर देख ले हमारा हफता महीना बंधा हुआ है सब जगह समय से पहुँचता  पैसा !
    सरकार के स्वाभिमान प्रतिभा विद्यालयों के दरवाजे को अतिक्रमण मुक्त न करवा पाने वाली सरकार दिल्ली के रोडों पार्कों को अतिक्रमण मुक्त कैसे करवा पाएगी !कैसे घटेगा दिल्ली की रोडों से जाम ! जिन विकास योजनाओं के सपने दिखाकर सत्ता में आए हैं  कहाँ से आएँगी को ऑड इवन का ड्रामा प्रदूषण मुक्ति का नाम लेकर क्यों कर रही है जनता को सच्चाई बताए न कि प्रदूषण से मेरा कोई लेना देना नहीं हैं हमें तो किसी बहने केजरी वाल जी के चित्र चिपकाने हैं बस दिल्ली सरकार के पास केवल इतना ही फंड है और इतना ही काम !
दुर्दशा !  ये हैं दिल्ली सरकार के वे प्रतिभा स्कूल जिनमें अपने बच्चों का एडमिशन करवाना हर  माता पिता का सपना होता है ये हैं पूर्वी दिल्ली गाँधी नगर के पास महिला कालोनी के सामने जो "राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय गाँधी नगर" है  ये तस्वीर उसकी है !इस विद्यालय के गेट के पास में अंदर बहुत बड़ा ग्राउंड है कहीं बिलकुल छाया नहीं है स्कूल के सामने ही गेट के बाहर एक बहुत बड़ा छायादार पेड़ है उसकी छाया बहुत घनी है अगर थोड़ा बहुत पानी बरस जाए तो नीचे नहीं आता किंतु दुर्भाग्य ये है कि ये छाया बच्चों के काम नहीं आ पाती है ।  
  दूसरों की कमियाँ दिखाने के लिए केजरीवाल जी किसी भी हद तक जा सकते हैं किंतु अपनी कमियाँ लापरवाही गैर जिम्मेदारी अदूरदर्शिता सरकारी धन की बर्बादी लगता उन्हें दिखाई ही नहीं देती शिकायती पत्रों पर न कार्यवाही होती है और न ही जवाब दिए जाते हैंआखिर क्या बदलाव हुआ दिल्ली में ! प्रदूषण मुक्त दिल्ली बनाने की केवल बातें करके करोड़ों रुपए पानी की तरह विज्ञापनों में बहाए जा रहे हैं !  उस दिल्ली की हकीकत ये है कि साठ  साठ  फिट चौड़े रोड 30 -30 फिट में समिट कर रह गए हैं वहाँ घंटों का लगता है जाम !कई मार्केटों में जिनकी पाँच फिट की दुकानें हैं वे दस फीड रोड  पर लगाए बैठे हैं मुख्यमंत्री में  हिम्मत  है तो हटाएँ उन्हें !'ऑड इवन' के नियम से भी यदि गाड़ियाँ चलें तो क्या जाम में फँसने पर वो धुआँ नहीं सुगंध फेंकेगी !इसी प्रकार से कई पार्कों की जगह में मकान बने खड़े हैं हिम्मत है तो गिराएँ न !
 'ऑडइवन' के ड्रामे से  दिल्ली को उस प्रदूषण सेदिल्ली सरकार के द्वारा प्रदूषण मुक्त करने का नाटक किया जा रहा है जिसके लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह विज्ञापनों में बहाए जा रहे हैं !उस दिल्ली की हकीकत ये है कि दिल्ली के इस स्कूल के आगे तपती दोपहर में बच्चे एवं अभिभावक दोपहर में खुले रॉड पर खड़े होते हैं अतिक्रमण के कारण इस पेड़ की छाया में बैठ भी नहीं सकते !बिना घूस दिए अतिक्रमण करने दिया गया होगा क्या? see more... http://samayvigyan.blogspot.in/2016/04/blog-post_18.html  साठ  साठ  फिट चौड़े रोड 30 -30 फिट में समिट कर रह गए हैं वहाँ घंटों का लगता है जाम !कई मार्केटों में जिनकी पाँच फिट की दुकानें हैं वे दस फीड रोड  पर लगाए बैठे हैं मुख्यमंत्री में  हिम्मत  है तो हटाएँ उन्हें !'ऑड इवन' के नियम से भी यदि गाड़ियाँ चलें तो क्या जाम में फँसने पर वो धुआँ नहीं सुगंध फेंकेगी !इसी प्रकार से कई पार्कों की जगह में मकान बने खड़े हैं हिम्मत है तो गिराएँ न !      केजरीवाल जी ! दिल्ली की ही कई जगहों पर एक एक बिल्डिंगें ऐसी हैं जिनमें 15 -20 फ्लैट बने होते हैं बिल्डर बेचकर चला जाता है बिल्डिंग की छत गुंडे मवाली खरीद लेते हैं और पैसे के बल से सरकारी मशीनरी को खरीदकर  बिल्डिंग में रहने वालों की बिना किसी सहमति के बिना ऐसी छतों पर लगा देते हैं सौ प्रतिशत गैर कानूनी टॉवर !किंतु उनमें रहने वालों को ये भी नहीं पता होता है कि टावर लगवा कौन रहा है उसका किराया कौन खा रहा है !वो पुलिस में कहते हैं तो वो कहते हैं निगम में कहो निगम वाले कहते हैं दिल्ली सरकार से कहो ! तब तक टावर लग जाता है ये है भ्रष्टाचार !
     ऐसी सामूहिक बिल्डिंगों की छत पर टॉवर में फाल्ट ठीक करने के नाम पर जाने वाले अपरिचित टेक्नीशियन आदि छतों पर टावर के बहाने कभी भी कितना भी बड़ा विस्फोटक रख रख कर जा सकते हैं उनसे कोई पूछने वाला नहीं होता है  कौन जिम्मेदार होगा उस महबिनाश का ?
   ऐसे मोबाइल टावरों से निकलने वाला रेडिएशन भुगत रहे हैं बिल्डिंगों में रहने वाले लोग !रेडिेशन के दुष्प्रभाव से लोग रोगी और  मनोरोगी होते चले जा रहे हैं दिल्ली का बढ़ता अपराध ग्राफ इसका जीता जागता उदाहरण है ये जनता की अपनी रिसर्च है इसे झुठलाने वालों को खुले मंच पर बहस की चुनौती है !ऐसे भयंकर रेडिेशन का  खतरा भुगत रहे हैं वो लोग जिनकी जेब में टावर के किराए का एक पैसा भी नहीं जाता है ऐसे गुंडे मवालियों का कोर्ट कचहरियों में सामना करना उन फ्लैटों में रहने वालों के बश की बात नहीं होती है !
     कई जगहों पर तो ऐसी बिल्डिंगों में इसी गुंडागर्दी के बलपर बिल्डिंग में रहने वाले लोगों की पहले से लगी हुई पानी की टंकियाँ तक छत से उतार दी गई हैं बिल्डिंग में  रहने वाले अपनी  टंकियों में पानी तक नहीं भर सकते !भगवान न करे यदि ऐसी बिल्डिंगों में कहीं कोई आग लग जाए तो बिल्डिंग में रहने वाले लोगों के पास आग बुझाने तक का पानी नहीं होता है और ये सारा काम भ्रष्टाचार के कारण ही तो है !केजरीवाल जी !भ्रष्टाचार घटने के पोस्टर लगा रहे हैं !
    जाते हैं जिस प्रदूषण से  दिल्ली में भ्रष्टाचार न होता तो स्थितियाँ ऐसी न होतीं !कहने को सरकारें बदलती हैं बाकी वास्तविकता वही रहती है क्योंकि पैसा हर किसी को प्यारा होता है !आप स्वयं देखिए -
        ये समझने के लिए  अपनी आँखों से देखिए दिल्ली और अनुभव कीजिए पूछिए दिल्ली की जनता से कि वो क्या फेस कर रही है !बैनरों पोस्टरों खबरों को देखकर भ्रमित मत होना ये तो सरकारें अपने बेरोजगार नाते रिस्तेदारों को रोजगार उपलब्ध करने के लिए जो बजट पास करती हैं उसे दिखाने के लिए कुछ बैनर पोस्टर तो लगाने ही पड़ते हैं !
   स्कूल की छुट्टी दोपहर दो बजे होती है तपती दोपहर में छुट्टी होने से पहले खुली धूप में बच्चों का इंतजार किया करते हैं अभिभावक कुछ अभिभावक आने में लेट हो जाते हैं उनका इन्तजार इसी धूप में खड़े बच्चे किया करते हैं छुट्टी होते समय भीड़ बहुत होती है जाम लग जाता है तो बच्चे तपती धूप में उस जाम में फँसे से रहते हैं अगर जाम खुलने का इंतजार करना चाहें तो कहाँ खड़े हों गेट पर जो जगह जो छाया बच्चों के खड़े होने की है उसमें अतिक्रमण हो गया है घड़े वाले कहते हैं कि हमारा पैसा हर विभाग में पहुँचता है कोई हटा ले उसे चुनौती !दिल्ली सरकार कहती है दिल्ली में भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है !

      विज्ञापनों पोस्टरों और हकीकत के अंतर को समझने के लिए दिल्ली आपको अपनी आँखों से देखनी पड़ेगी तब अनुभव होगा कि नेता झूठे विज्ञापनों पर जनता का पैसा कितना बर्बाद करते हैं उतना काम करें तो राम राज्य हो जाए !see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2016/04/blog-post_18.html

Tuesday, 3 May 2016

उत्तर प्रदेश का मतदाता अपने प्रशासक को पहचानने की पात्रता ही खो चुका है !



उत्तर प्रदेश गरीब है ये सारी दुनियाँ को भले कसकता हो किंतु उत्तर प्रदेश का मतदाता इससे बेखबर है इसलिए  वो जाति क्षेत्र के नाम पर ऐसे लोगों को मुकुट पहनाया करता है देती है जो जनता को कुछ समझते नहीं हैं वो केवल अपने गाँव को गाँव समझते हैं बाकी  सारा प्रदेश उनके लिए जंगल की तरह है जो केवल कमाई का साधन मात्र है प्रदेश के पैसे से उत्सव अपने घर गाँव में ही मनाते हैं इसके साथ ही वो शासन करने लायक केवल अपने  घर खानदान वालों और नाते  रिस्तेदारों मानते हैं !इसके अलावा वो सरकारी नौकरियों में अच्छे पदों लायक  केवल अपनी जाति के लोगों को ही समझते हैं इसके अलावा सारे प्रदेश की जनता को  गुलाम मानते हैं फिर भी जनता उन्हें मसीहा न मानती होती तो वो सरकार कैसे बना लेते !वो कमाकर टैक्स रूप में जो देती है सारी ऐश उसी पर होती है ! को