डॉ. शेष नारायण वाजपेयी द्वारा रचित काव्य -
देख द्वंद्व घोर शोर हुआ चहुँ ओर
भोर दुखद दिखाई दिया बिसरी अपान सी ।
सैनिक हमारे थे पचार रहे बार बार
मानते थे पाक को तँबुइया मानो रान की ॥
देख के कलाएँ शत्रु रोता फिरा चारों ओर
प्राणों की पड़ी थी कहाँ चिंता स्वाभिमान की ।
पाक का वजीर पैर पकड़े अमेरिका के
माँगता था भीख मानों सैनिकों के प्राण की ॥ 1 .॥
आए थे हमारे भूमि भाग को समेटने वो
मेटना पड़ा था वीरता के निज ताज को ।
भूल गईं बातें सब लातों की चोट झेल
लगे थे टटोलने वो हिन्द के मिजाज को ॥
देख रण भावना हमारे वीर सैनिकों की
भय हुआ भारी सारे शत्रु के समाज को ।
भगने लगे थे प्राण लोलुप बिहाय लाज
छोड़ते हैं लोग जैसे डूबते जहाज को ॥ 2. ॥
गिरि चोटियों पे छिड़ा देख संग्राम यह
लगता कि बादलों का वृन्द टकरा रहा ।
छाया अंधकार था धुएँ में दिन मान दुरे
चन्द्रमा की चारुता न कोई देख पा रहा ॥
दामिनि सी कौंध रही बार व्योम बीच
शौर्य सैनिकों का देख पाक भय पा रहा ।
लगता था भूमि उठ अम्बर को जा रही है
अम्बर भी टूट के धरा पे आज आ रहा ॥ 3.॥
एक ओर शत्रु सुव्यवस्थित खड़ा था वहाँ
मोर्चा सँभाले हुए निकला लड़ाई पर ।
एक ओर थाल में परोसे निज जीवनी को
देश भक्त जा रहे थे चढ़ते चढ़ाई पर ॥
घात में लगे थे वे घृणित पड़ोसी क्रूर
दागते थे गोले जब हिन्द तरुणाई पर ।
फिर भी रुके नहीं थे रण बाँकुरों के झुंड
चढ़ते गए थे वीर उतनी ऊँचाई पर ॥ 4.॥
बर्फ की पहाड़ियों पे चंद्रमा की चाँदनी की
चारुता बनी थी क्लेश दायिनी सी ठंड में ।
घात में लगे थे शत्रु सैनिक सशस्त्र क्रूर
खुद वे व्यवस्थित थे घोर गिरि खंड में ॥
सामना किया था जब भारती सपूतों ने
रौंद के चलाया शत्रु सैनिकों को कुण्ड में ।
सोत्साह सैनिकों को देख लगता था जैसे
सिंह के सलोने शिशु हाथियों के झुण्ड में ॥ 5. ॥
सैनिकों से निवेदन -
सैनिकों तुम्हारे चरणारविन्द हैं पवित्र
धूल ले पदों की शिर कैसे चढ़ाऊँ मैं ।
यशोगान करते न जीह थकती है नेक
त्याग है विशाल किसे कितना सुनाऊँ मैं ॥
चाहता है भेंटना तुम्हारे अंक से ये रंक
देश के शहीदों मुख कैसे दिखाऊँ मैं ।
मन कोषता है दिन रात अपने को सोच
भारती सपूतों के किस काम आऊँ मैं ॥ 1.॥
भूल गया माता का ममत्व भी अलभ्य आज
पिता का सनेह भी जिसके स्वकीय हो ।
भूल गए सेज के मनोज राग रंग सभी
हास वा विलाष मंजु सानुराग तीय को ॥
घर छोटा छौना छोड़ मन लगता न था
पै तोड़ गए नाता आज शिशु कमनीय सों ।
संत हो विरक्त अनाशक्त हो स्वदेश भक्त
सैनिकों हमारे लिए नित्य बंदनीय हो ॥ 2. ॥
सगे सम्बन्धियों के लिए संवेदना -
शहीदों की माताओं से निवेदन -
माते तुम्हारा ऋणी भारत रहेगा सदा
पृष्ठ इतिहास के तुम्हारा गीत गाएँगे ।
नमन करेंगे नित्य भावी भारतीय सभी
आपके बदौलत ही खुशियाँ मनाएँगे ॥
देश की वसुंधरा सुरक्षित रहेगी सदा
बाप की बोई न शत्रु फिर से मझाएँगे ।
तुलना करेगा कौन आपकी पवित्रता से
बड़े बड़े वीर शिर आपको झुकाएँगे ॥
शहीदों के भाइयों से निवेदन -
भाइयों तुम्हारा प्राण प्यारा बंधु वीरता में
विश्व के समक्ष एक मानक बना गया ।
बड़े बड़े त्यागियों को लाँघ गया लाघव से
दुर्गम पहाड़ों पर शत्रु को छका गया ॥
सारी सन्नद्धता से बैठा था विरोधी वहाँ
उसको खदेड़ निज ध्वज फहरा गया ।
गर्व करो प्यारे वह हाथ था तुम्हारा सव्य
विपति सहारा बन आज काम आ गया ॥
शहीदों की बहनों से निवेदन -
बहनों न रोना बंधु सचमुच सलोना था
विश्व की निगाहें गड़ीं आज उस भाई पर ।
देश गर्व करता है निधि इतिहास का जो
वार रहे प्राण लोग ऐसी तरुणाई पर ॥
रो रहा है देश दुःख उनके वियोग का है
यद्यपि धरा पे अपार कीर्ति छाई पर ।
देवियों तुम्हें भी गर्व होना यह चाहिए कि
बाँधी है न राखी किसी कायर कलाई पर ॥
शहीदों की पत्नियों से निवेदन -
आपके समर्पण का विदित प्रभाव यह
राष्ट्र के विशाल रण में भी नहीं हारा है ।
जन्म वा मृत्यु तो सृष्टि का विधान देवि
प्राण रहे तब लौं न प्रण को विसारा है ॥
आप वीर रमणी हैं गर्व रखो भारी यह
कायर के अंश को न गर्व हेतु धारा है ।
भूल मत जाना इतिहास है तुम्हारा यह
हारा नहीं रण में जो प्रीतम तुम्हारा है ॥
शहीदों की संतानों से निवेदन -
पिता का तुम्हारे यश अमर हुआ है वत्स
जीवन दिया न किसी कामिनी कि चाह में ।
चोरी लतखोरी द्यूत में न मदमत्त रहा
प्राण नहीं गए हैं गरीब की कराह में ॥
याद रखो ऐसा स्वच्छ संस्कार वीर पुत्र
हुआ अभिमन्यु था अर्जुन की छाँह में ।
भूल मत जाना वत्स सौंप के गए हैं तात
देश की सुरक्षा का भार तव बाँह में ॥
आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुएआचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयीसाथ में हैं आदरणीय श्री श्याम बिहारी मिश्र जी |
श्रद्धेय श्री रज्जू भइया जीको अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुएआचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी |
No comments:
Post a Comment