Saturday, 26 July 2014

आदरणीय श्रीमान कुशाभाऊ ठाकरे जी को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी

  

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डॉ. शेष नारायण वाजपेयी द्वारा रचित काव्य - 




कारगिल के शहीदों को शत शत नमन


युद्ध के दृश्य अपनी कविता में -

देख द्वंद्व घोर शोर हुआ चहुँ ओर 
 भोर दुखद दिखाई दिया बिसरी अपान सी ।
सैनिक हमारे थे पचार रहे बार बार
 मानते थे पाक को तँबुइया मानो रान  की ॥ 
देख के कलाएँ  शत्रु रोता फिरा  चारों ओर
 प्राणों की पड़ी थी कहाँ चिंता स्वाभिमान की । 
पाक का वजीर पैर पकड़े अमेरिका के
 माँगता था भीख मानों सैनिकों के प्राण की ॥ 1 .॥ 

आए थे हमारे भूमि भाग को समेटने वो 
मेटना  पड़ा था वीरता के निज ताज को । 
भूल गईं बातें सब लातों की चोट झेल
 लगे थे टटोलने वो हिन्द के मिजाज को ॥ 
देख रण भावना हमारे वीर सैनिकों की 
भय हुआ भारी सारे शत्रु के समाज को । 
भगने लगे थे प्राण लोलुप बिहाय लाज
 छोड़ते हैं लोग जैसे डूबते जहाज को ॥ 2. ॥

गिरि चोटियों पे छिड़ा देख संग्राम यह 
लगता कि बादलों का वृन्द टकरा रहा । 
छाया अंधकार था धुएँ में दिन मान दुरे 
चन्द्रमा की चारुता न कोई देख पा रहा ॥ 
दामिनि  सी कौंध रही  बार व्योम बीच 
शौर्य सैनिकों का देख पाक भय पा रहा ।
 लगता था भूमि उठ अम्बर को जा रही है 
अम्बर भी टूट के धरा पे आज आ रहा ॥ 3.॥ 

एक ओर शत्रु सुव्यवस्थित खड़ा था वहाँ
 मोर्चा सँभाले हुए निकला लड़ाई पर । 
एक ओर थाल में परोसे निज जीवनी को 
देश भक्त जा रहे थे चढ़ते चढ़ाई पर ॥ 
घात में लगे थे वे घृणित पड़ोसी क्रूर 
दागते थे गोले जब हिन्द तरुणाई पर । 
फिर भी रुके नहीं थे रण बाँकुरों के झुंड
 चढ़ते गए थे वीर उतनी ऊँचाई पर ॥ 4.॥ 

बर्फ की पहाड़ियों पे चंद्रमा की चाँदनी की
 चारुता बनी थी क्लेश दायिनी सी ठंड में । 
घात में लगे थे शत्रु सैनिक सशस्त्र क्रूर
 खुद वे व्यवस्थित थे घोर गिरि  खंड में ॥
सामना किया था जब भारती सपूतों ने 
रौंद के चलाया शत्रु सैनिकों को कुण्ड में ।
 सोत्साह सैनिकों को देख लगता था जैसे
 सिंह के सलोने शिशु हाथियों के झुण्ड में ॥ 5. ॥


सैनिकों से निवेदन -

सैनिकों तुम्हारे चरणारविन्द हैं पवित्र
 धूल ले पदों की शिर कैसे चढ़ाऊँ मैं । 
यशोगान करते न जीह थकती है नेक 
त्याग है विशाल किसे कितना सुनाऊँ मैं ॥ 
चाहता है भेंटना तुम्हारे अंक से ये रंक
 देश के शहीदों मुख कैसे दिखाऊँ मैं । 
मन कोषता है दिन रात अपने को सोच
 भारती सपूतों के किस काम आऊँ मैं ॥ 1.॥ 

भूल गया माता का ममत्व भी अलभ्य आज
 पिता का सनेह भी जिसके स्वकीय हो । 
भूल गए सेज के मनोज राग रंग सभी 
हास वा विलाष मंजु सानुराग तीय को ॥ 
घर छोटा छौना छोड़ मन लगता न था 
पै तोड़ गए नाता आज शिशु कमनीय सों । 
संत हो विरक्त अनाशक्त हो स्वदेश भक्त
 सैनिकों हमारे लिए नित्य बंदनीय हो ॥ 2. ॥ 

               सगे सम्बन्धियों के लिए संवेदना -

शहीदों की माताओं  से निवेदन -
माते तुम्हारा ऋणी भारत रहेगा सदा 
पृष्ठ इतिहास के तुम्हारा गीत गाएँगे । 
नमन करेंगे नित्य भावी भारतीय सभी 
आपके बदौलत ही खुशियाँ मनाएँगे ॥ 
देश की वसुंधरा सुरक्षित रहेगी सदा 
बाप की बोई न शत्रु फिर से मझाएँगे । 
तुलना करेगा कौन आपकी पवित्रता से 
बड़े बड़े वीर शिर आपको झुकाएँगे ॥

शहीदों के भाइयों से निवेदन -

भाइयों तुम्हारा प्राण प्यारा बंधु वीरता में 
विश्व के समक्ष एक मानक बना गया ।
बड़े बड़े त्यागियों को लाँघ  गया लाघव से
 दुर्गम पहाड़ों पर शत्रु को छका गया ॥ 
सारी सन्नद्धता से बैठा था विरोधी वहाँ 
उसको खदेड़ निज ध्वज फहरा गया । 
गर्व करो प्यारे वह हाथ था तुम्हारा सव्य 
विपति सहारा बन आज काम आ गया ॥

शहीदों की बहनों से निवेदन -

 बहनों न रोना बंधु  सचमुच सलोना था 
विश्व की निगाहें गड़ीं आज उस भाई पर ।
देश गर्व करता है निधि इतिहास का जो 
वार रहे प्राण लोग ऐसी तरुणाई पर ॥ 
रो रहा है देश दुःख उनके वियोग का है 
यद्यपि धरा पे अपार कीर्ति छाई पर । 
देवियों तुम्हें भी गर्व होना यह चाहिए कि
 बाँधी है न राखी किसी कायर कलाई पर ॥ 

शहीदों की पत्नियों से निवेदन -

आपके समर्पण का विदित प्रभाव यह 
राष्ट्र के विशाल रण में भी नहीं हारा  है ।
 जन्म वा मृत्यु तो सृष्टि का विधान देवि
 प्राण रहे तब लौं न प्रण को विसारा है ॥ 
आप वीर रमणी हैं गर्व रखो भारी यह
 कायर के अंश को न गर्व हेतु धारा है । 
भूल मत जाना इतिहास है तुम्हारा यह
 हारा नहीं रण  में जो प्रीतम  तुम्हारा है ॥

शहीदों की संतानों से निवेदन -

पिता का तुम्हारे यश अमर हुआ है वत्स 
जीवन दिया न किसी कामिनी कि चाह में । 
चोरी लतखोरी द्यूत में न मदमत्त रहा 
प्राण नहीं गए हैं गरीब की कराह में ॥ 
याद रखो ऐसा स्वच्छ संस्कार वीर पुत्र 
हुआ अभिमन्यु था अर्जुन की छाँह में । 
भूल मत जाना वत्स सौंप के गए हैं तात 
देश की सुरक्षा का भार तव बाँह में ॥

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