Sunday, 9 November 2014

राजनैतिक वेश्यावृत्ति छीन रही है देश और समाज से जीवन मूल्य एवं मर्यादाएँ !

    ईमानदारी, चरित्र और सिद्धांतों के क्षरण को रोका आखिर कैसे जाए !झूठे आरोपों प्रत्यारोपों की कल्पित बरसात से लहलहाने वाली सत्ता सफलता की फसलों के भरोसे कैसे छोड़ दिया जाए वर्तमान लोकतंत्र !

   जो लोग जिन बात व्यवहारों के लिए कलतक जिन नेताओं  की निंदा करते रहे थे वे उन्हीं की कृपा से आज मंत्री पद की शपथ ले रहे हैं ! ऐसे अविश्वनीय नेताओं ,उनके  बातों ,व्यवहारों एवं आश्वासनों पर बन रहे एवं बनाए जा रहे मंत्रियों की बातों और व्यवहारों पर विश्वास आखिर कैसे किया जाए ! 

      मैं पिछले कुछ वर्षों में राजनीति में पवित्र एवं ईमानदार माने जाने वाली पार्टियों से अक्सर संपर्क करता रहता हूँ कि कोई मुझे भी मेरी योग्यता के अनुरूप अपनी पार्टी में कोई काम दे दे और मैं उस पार्टी का हिस्सा बनकर देश एवं समाज के लिए प्रभावी रूप से कुछ काम करूँ !यद्यपि कर तो आज भी रहा हूँ किन्तु उनमें उतनी गति नहीं दे पा रहा हूँ जितनी राजनेता लोग दे सकते हैं इसी लोभ से नेताओं की चरित्रवती बातों पर भरोसा करके मानव मूल्यों की रक्षा के लिए इसी सप्ताह एक पवित्र पार्टी के प्रतिष्ठित नेता जी से मिलने गया और उन्हें अपने शैक्षणिक योग्यता के प्रमाण पत्रों की एक एक कापी दी एवं अपनी लिखी हुई कई पुस्तकें भेंट कीं जिसमें मेरे द्वारा लिखी गई दोहा चौपाई में दुर्गा सप्तशती भी थी । उन्होंने हमारी पुस्तकें लौटाईं पौटाईं और योग्यता प्रमाण पत्र देखे फिर हमसे बोले क्या करोगे राजनीति में हमने कहा शिक्षा एवं सदाचरण पर कुछ सामाजिक वातावरण तैयार करने की इच्छा से कुछ काम कर रहा हूँ उन्हीं विषयों को आगे बढ़ाना चाहता हूँ बाकी जो पार्टी का आदेश होगा उसे तो पालन करना ही होगा ! उन्होंने हमारी किताबें एवं प्रमाण पत्र साइड में रखते हुए कहा -आचार्य जी एक बात कहूँ बुरा तो नहीं लगेगा हमने कहा लगेगा तो लगने दो जो बात आपके  मुख तक आई है वो सुनना मैं भी चाहता हूँ यदि मुझमें कोई कमी होगी तो सुधार करूँगा तो उन्होंने कहा कि -"राजनीति चंडी पाठ से नहीं अपितु रंडी पाठ से चलती है "कर पाओगे तुम !मैंने कहा समझा नहीं ,तो  उन्होंने कहा राजनीति में अपनी की हुई वोमीटिंग यह कहते हुए जीभ से चाटनी पड़ती है कि यह तो बहुत स्वादिष्ट है मैंने कहा यह कैसे ?तो उन्होंने कहा कि जिन पार्टियों नेताओं सिद्धांतों बातों एवं व्यवहारों  को कभी देश द्रोही या देश एवं समाज के लिए घातक बताया गया हो चुका होता है पार्टी बदलते या गठबंधन बनाते समय उन्हीं आचरणों की यह कहते हुए प्रशंसा करनी पड़ती है कि मैं पहले इन्हें समझ नहीं पाया था इसलिए वहाँ या उस पार्टी में या गठबंधन में था अब समझ में आ गया है इसलिए इस पार्टी में आ गया हूँ इसके बाद कभी किसी स्वार्थ के चलते पुनः पुरानी पार्टी में लौटना हो तो यही कहते हुए लौट जाया जाता है !इसलिए आपके इन प्रमाणपत्रों एवं आपकी लिखी हुई किताबों का मैं क्या करूँ ? यह सब सुनकर मैं वापस अपने घर चला आया ! आप भी देख लीजिए -http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html   

   और भी कुछ विंदु हैं इन्हें भी आप  लोग देखिए इनकी ऐसी बातों पर भी विश्वास  आखिर कैसे किया जाए -

    आरक्षण नीति में  सवर्णों का बहिष्कार क्यों ? सवर्णों को देश की सरकारें अपना क्यों नहीं समझती हैं यह कैसा लोकतंत्र जहाँ इतने बड़े सवर्ण वर्ग की इस गैरजिम्मेदारी से उपेक्षा की जा रही हो !

    आरक्षण का अधिकार सवर्णों को क्यों नही ! क्या सवर्णों को भूख नहीं लगती है या सवर्ण जातियों में सभी लोग संपन्न हैं ! यदि ये मान भी लिया जाए कि सवर्ण जातियों में कुछ लोगों के पास धन अधिक होगा किन्तु जिनके पास नहीं हैं उन्हें इन लोकतांत्रिक सरकारों ने किसके भरोसे आरक्षण से बाहर रख छोड़ा है आखिर उनका सहयोग कौन करेगा कहीं सरकार ऐसा तो नहीं मानती है कि सवर्णों में जो धनी लोग हैं वो खाना खाएँगे तो गरीब सवर्णों की भूख भी शांत हो जाएगी ! या इन गरीब सवर्णों को पडोसी देशों के सहारे छोड़ दिया गया है ,या इन्हें देश के अलगाववादी तत्वों के साथ तालमेल बिठाकर चलने के लिए छोड़ा गया !

    ये राजनेता लोग अपनी चोरी छिपाने के लिए ये किसी को आरक्षण देते हैं ,किसी को महँगाई भत्ता या त्योहारों का बोनस या पेंशन बाँटते हैं ,कहीं दाल चावल बाँट रहे हैं कहीं भोजन सुरक्षा  की बात करते हैं किसी को मोटी  मोटी  सैलरी देकर ऊपर से मस्ती मारने की छूट देते हैं शिक्षक, चिकित्सक, डाककर्मियों से लेकर और बहुत सारे विभागों के कर्मचारी अक्सर काम न करने के लिए प्रसिद्ध हैं फिर भी इससे जनता प्रभावित होती है न कि  सरकारें या ऐसे कर्मचारी !आखिर इन्हें तो सैलरी समय से मिला ही करती है । 
     आखिर नेताओं के पास धन आता कहाँ से है ये करते क्या हैं इनके इतने हाई फाई खर्चे होने के बाद भी इनकी का धनसंपत्ति बढ़ते कैसे चली जाती है ये जब राजनीति में आए थे तब भी इनके पास इतनी ही संपत्ति थी क्या ? यदि नहीं तो बाद में आखिर कहाँ से आ गई ?
     किसी को किसी भी प्रकार का आरक्षण क्यों किसी को भी पेंशन क्यों ?फ्री में किसी को कुछ भी क्यों दिया जाए और बाकी  लोगों को क्यों नहीं !
   सत्तालोभी नेताओं ने देशवासियों को आत्म निर्भर बनाने की जगह सरकार निर्भर बना डाला ! ये नेता रसोई तक घुस गए दाल चावल बाँट रहे हैं फूड सिक्योरिटी बिल का मतलब क्या है ?क्या कोई स्वस्थ व्यक्ति अब अपने लिए भोजन नहीं कमा सकता यदि ऐसा ही है तो फूड सिक्योरिटी बिल नहीं अपितु आजादी के बाद आज तक का हिसाब चाहिए कि नेता लोग जनता के नाम पर अपना घर क्यों भरते रहे उनकी संपत्ति एवं आय स्रोतों की जाँच होनी चाहिए!
     किसी भी राजनैतिक दल के चुनावी घोषणापत्र में आरक्षण नहीं होना चाहिए ?अब लूट बंद होनी चाहिए वो चाहें सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की हो या जाति संप्रदाय  के आधार पर आरक्षण की !

       देश पर सबसे अधिक वर्षों तक शासन करने वाली वाली पार्टी को  आजादी के साठ वर्षों बाद देश की जनता के भोजन की याद आई!ये बहुत बड़ा आश्चर्य है ! 

     सभी प्रकार का आरक्षण  भ्रष्टाचार का दूसरा स्वरूप और सामाजिक बुराई एवं अन्याय है इसे समाप्त करने का संकल्प करो !आरक्षण सामाजिक न्याय कभी नहीं हो सकता ,आरक्षण की व्यवस्था केवल उनके लिए होनी चाहिए जो काम करने लायक न हों अपाहिज हों,अनाथ हों,अनाश्रित हों,असाध्यरोगी हों,पागल हों अत्यंत  परेशान हों ,अत्यंत पीड़ित हों ,अत्यंत गरीब होने के बाद भी शारीरिक लाचारी के कारण बेचारे कमाने लायक न रह गए हों! ऐसे लोगों के विषय में जाति,क्षेत्र,समुदाय,संप्रदाय,स्त्री-पुरुष आदि भेद भावनाओं से ऊपर उठकर उदार भावना एवं अपनेपन से मदद की जानी चाहिए जिससे उन अपाहिजों को लेते भी अच्छा लगे और देने वाले को भी देने में प्रसन्नता हो उन्हें भी लगे कि हमारा हक़ छीन कर वास्तव में उन्हें दिया गया है जिनके प्रति हमारा दायित्व बनता है इसलिए ऐसे लोगों का सहयोग किया जाना चाहिए ऐसे लोग जो कुछ भी करने लायक हों वे पद ऐसे लोगों के लिए आरक्षित कर दिए जाने चाहिए जैसे किसी के पैर कट गए हों किन्तु वह शिक्षित होने के कारण शिक्षा से जुड़े कार्य कर सकता हो पढ़ा सकता हो तो ऐसे कामों में इनका सौ प्रतिशत  आरक्षण इन्हें दिया  जाना  चाहिए ताकि ये भी उत्साह एवं स्वाभिमान पूर्वक जीवन जी सकें !जो स्वस्थ हैं वो तो कुछ भी कर के कमा खा लेंगे। 

     इसलिए आरक्षण की व्यवस्था हमेंशा उन लोगों के लिए की जानी चाहिए जो लोग कुछ करने लायक न रह गए हों अपाहिज हों किन्तु जो करने लायक हों और कुछ करना चाहते हों सरकार उन्हें शिक्षित करने में सहायता करे उन्हें उनके लायक रोजगार उपलब्ध करावे,कम ब्याज पर बाधा मुक्त ऋण देने की  व्यवस्था करे इनमें सरकार को चाहिए कि पक्षपात विहीन होकर सभी के साथ समान दृष्टि से न्याय करे किसी को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि उसके साथ अन्याय हो रहा है क्योंकि प्रजा प्रजा में भेद करना अन्याय भी है अत्याचार भी है अपराध भी है और सबसे बड़ा पाप भी !

      कोई भी पूरी जाति,पूरा क्षेत्र और सम्पूर्ण सम्प्रदाय कभी अपाहिज, असाध्य या अक्षम नहीं हो सकता यदि यह सच है तो किसी पूरी जाति,पूरे क्षेत्र और सम्पूर्ण सम्प्रदाय को सरकार आरक्षण जैसा विशेष दर्जा क्यों दे ?उसके लिए तो अन्य लोगों की तरह ही सारे देश के सभी स्कूल पढ़ने के लिए खुले हैं और प्राइवेट या सरकारी नौकरियों के लिए सभी संस्थान समानरूप से अवसर दे रहे हैं व्यापार के लिए सारा मार्केट खुला हुआ है फिर भी जो लोग पिछड़े हैं उसमें समाज का दोष क्या है आखिर समाज क्यों ऐसे लोगों का बोझ ढोता  फिरे !

      लाख टके का सवाल यह है कि स्वस्थ होने पर भी आरक्षण पाने की इच्छा रखने वाले लोगों से शपथ पूर्वक पूछा जाना चाहिए कि यदि सवर्ण वर्ग के गरीब लोग परिश्रम पूर्वक काम करके बिना आरक्षण के अपनी तरक्की कर सकते हैं तो आप में ऐसी कमजोरी क्या है आप क्यों हिम्मत हार रहे हैं आखिर आपको क्यों लगता है कि अपने परिश्रम के बल पर हम तरक्की नहीं कर सकते ! आखिर आप में ऐसी कमजोरी क्या है?और यदि वास्तव में आप अपने को कमजोर मान ही बैठे हैं तो अपने को ठीक करा लीजिए जाँच कराइए इलाज कराइए इसमें सरकार का सहयोग लीजिए और फिर परिश्रम पूर्वक काम करके अपनी तरक्की  आप स्वयं भी कर सकते हैं इससे आपका उत्साह बढ़ेगा जिससे आप सवर्णों से केवल बराबरी ही नहीं कर सकते हैं अपितु उन्हें पछाड़ भी सकते हैं न केवल इतना अपितु परिश्रम पूर्वक काम करके अपनी तरक्की करने से जिस उत्साह एवं स्वाभिमान का प्राकट्य होगा उससे पीढ़ियों की पीढ़ियाँ पवित्र हो जाएँगी हर कोई आपको अपना आदर्श मानेगा और आदर करेगा !किन्तु आरक्षण के द्वारा ये सब चीजें नहीं मिल पाएँगी केवल पेट भरने का साधन बनता रहेगा वो भी आरक्षण से ! पेट तो पशु भी भर लेते हैं वह भी बिना किसी आरक्षण के इसलिए केवल पेट भरने के लिए ही सारी कवायद क्यों?सच्चाई के साथ आत्मबल एवं मनोबल बढ़ाने के लिए कुछ कीजिए-

      जो लोग कहते हैं कि  पहले सवर्णों ने हमारा शोषण किया था इसलिए हम पिछड़ गए हैं किन्तु यह कई कारणों से सच नहीं है पहला कारण तो यह है कि कब शोषण हुआ था! किसने किया था! कितना किया था !किस प्रकार से किया था! दूसरा सहने वालों ने सहा क्यों  था उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया था ! क्योंकि सहने वालों की संख्या बहुत अधिक थी इसलिए ये भी नहीं कहा जा सकता है कि भयवश इन लोगों ने अपना शोषण सह लिया होगा, इसलिए सच्चाई तो यही  है कि पहले भी किसी ने किसी का शोषण किया ही नहीं होगा! और यदि शोषण की बात को सच मान भी लिया जाए तो पिछले लगभग 60 वर्षों से तो आरक्षण ले रहे हैं वो लोग! आखिर क्यों नहीं कर ली तरक्की?60वर्ष भी थोड़े तो नहीं होते हैं। 

    इसलिए  यदि अपने पीछे रह जाने  के प्रकरण में आत्म मंथन करके यदि अपनी कमजोरी नहीं खोज पाए और उनका सुधार नहीं किया तो कैसे  हो पाएगा विकास ?ऐसे तो सवर्णों के शोषण का रोना धोना लेकर बैठे रहेंगे 60 क्या 600 वर्षों में भी अपना उत्थान कर पाना असम्भव होगा ! आरक्षण तो किसी की कृपा से प्राप्त अवसर है याद रखिए कि किसी की कृपा पूर्वक प्रदान की गई आजीविका कभी आत्मबल या मनोबल नहीं बढ़ने देगी। 

    कुल मिलाकर आरक्षण नाम का इतना बड़ा भ्रष्टाचार जब सरकारी नीतियों में सम्मिलित किया जा सकता है तब  भ्रष्टाचार समाप्त करने का ड्रामा भले ही कोई सरकार करे किन्तु इसे समाप्त कर पाना कठिन ही नहीं असम्भव भी होगा ! 

        आज कुछ सरकारी कर्मचारियों ने अपने को देश वासियों से बिलकुल अलग कर रखा है भ्रष्टाचार का कोई भी  मौका मिलते ही उन्हें डसने में देर नहीं करते हैं इसके बाद भी उन्हें महँगाई ,भत्ता और भी जाने क्या क्या दिया करती हैं सरकारें !उनका बेतन आम जनता की आमदनी की अपेक्षा इतना अधिक होता है फिर और भी बढ़ाया करती हैं सरकारें! न  जाने उनके किस आचरण पर फिदा रहती हैं भारतीय  सरकारें ? ये सरकारों के दुलारे लोग ऐसे धन से चौड़े हो रहे हैं विभागों में कुछ काम धाम तो  करते नहीं हैं वहाँ कोई देखने सुनने वाला ही नहीं होता है हो भी तो कोई कहे ही क्यों उसका अपना कोई नुकसान तो हो नहीं रहा है भुगतना जनता को पड़ता है ! जहाँ इतनी ऐशो आराम हो फिर भी काम न करना पड़े तो वो लोग कुछ तो करेंगे ही!

   कभी  यूनिअन बनाएँगे धरना प्रदर्शन करके अपनी ऊल जुलूल माँगे मनवाएँगें!सरकार मानती भी है इससे उनका हौसला और बढ़ता है । 

        यदि सरकार वास्तव में भ्रष्टाचार ख़त्म करना ही चाहती है तो सरकारी कर्मचारियों के ऐसे सभी संगठनों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए न केवल इतना ही अपितु गैर कानूनी घोषित कर देना चाहिए आखिर वो लोग  सैलरी यूनियन बनाने ,धरना प्रदर्शन करने की लेते हैं या काम करने की !और उन्हें सीधे तौर पर बता दिया जाना चाहिए कि सरकारी व्यवस्था जो आपको दी जा रही है वो समझ में आवे तो काम करो अन्यथा घर बैठो !

            इस प्रकार से उन्हें हटाकर नई नियुक्तियाँ  कर देनी चाहिए जिससे बेरोजगारी घटेगी नए जरूरतवान्  लोगों को काम मिलेगा वो उसकी कदर भी करेंगे मन लगाकर कामभी करेंगे इससे समाज का भी लाभ  होगा काम की गुणवत्ता में सुधार होगा  साथ ही छुट्टी करके गए पुराने कर्मचारियों का  भी भला होगा उनके पास पैसा तो होता ही है उस पैसे से  वो कोई धंधा व्यापार कर लेंगे काम करने के कारण वे भी शुगर आदि बीमारियों से बचेंगे भ्रष्टाचार में कमी आएगी समाज में एक दूसरे के प्रति सामंजस्य  बढ़ेगा आदि आदि । 

     किसी को पेंशन क्यों दी जाए ?

     गरीब किसान मजदूर या गैर सरकारी लोग जो दो हजार रूपए महीने भी कठिनाई से कमा  पाते हैं वो भी दो दो  पैसे बचा कर अपने एवं अपने बच्चों के पालन पोषण से लेकर उनकी   दवा आदि की सारी व्यवस्था करते ही हैं उनके काम काज भी करते हैं और ईमानदारी पूर्ण जीवन भी जी लेते हैं ।

    दूसरी और सरकारी कर्मचारियों की पचासों हजार की सैलरी ऊपर से प्रमोशन उसके ऊपर महँगाई भत्ता आदि आदि और उसके बाद बुढ़ापा बिताने के लिए बीसों हजार की पेंसन दी जा रही है इतने सबके बाबजूद सरकारी कर्मचारियों के एक वर्ग का पेट नहीं भरता है तो वो काम करने के बदले घूँस भी लेते हैं इतना सब होने के बाद भी सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक पढ़ाते  नहीं हैं अस्पतालों में डाक्टर सेवाएँ  नहीं देते हैं डाक विभाग कोरिअर से पराजित है दूर संचार विभाग मोबाईल आदि प्राइवेट विभागों से पराजित है जबकि प्राइवेट क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं। 

    आखिर क्या कारण है कि देश की आम जनता की परवाह किए बिना सरकार के मुखिया,सरकार में सम्मिलित लोग एवं सरकारी कर्मचारी आखिर क्यों भोगने में लगे हैं गैर सरकारी लोगों के खून पसीने की कमाई !देश के लोग कब तक और क्यों उठावें ऐसी सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों का बोझ ?

    जब गरीब आदमी अपनी छोटी सी कमाई में ही बचत करके कर लेता है अपने बुढ़ापे का इंतजाम तो पचासों हजार रूपए महीने कमाने वाले सरकारी कर्मचारियों को क्यों दी जाती है बुढ़ापे में पेंसन ? आखिर ये अंधेर कब तक चलेगी और कब तक चलेगा प्रजा प्रजा में भेद भाव का या तांडव ?और कब तक लूटी जाएगी आम जनता ?  
     क्या देश की आजादी पर केवल सरकार और सरकारी कर्मचारियों  का ही अधिकार है बाकी गैर सरकारी लोगों के पूर्वजों का कोई योगदान ही नहीं है !
      अब सरकार से भ्रष्टाचार  मुक्त उत्तम प्रशासन चाहिए इसके आलावा कृपापूर्ण गैस सिलेंडर ,भोजन बिल, पेंसन, आरक्षण,नरेगा ,मरेगा,मनरेगा आदि कुछ भी नहीं चाहिए !अन्यथा गैर सरकारी कहलाने वाली आम जनता अब दलित-सवर्ण, हिन्दू-मुश्लिम, स्त्री-पुरुष आदि भेद भाव के  रूप में दिए गए किसी भी प्रकार के लालच को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है और न ही आपस में लड़ने को ही तैयार है अब वो सारी  चाल समझ चुकी है । अब तो सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को सुधारना ही होगा अन्यथा अब सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों   के  शोषण विरुद्ध के विरुद्ध लड़ेगी आम जनता अपने अधिकारों के लिए आंदोलनात्मक अंतिम युद्ध !

 

     इस विषय में हमारे निम्न लिखित लेख भी पढ़े जा सकते हैं -

    भ्रष्टाचार के स्रोत क्या हैं और इसे समाप्त कैसे किया जा सकता है ?

     सरकार के  हर विभाग में  भ्रष्टाचार व्याप्त है उससे छोटे से बड़े तक अधिकांश कर्मचारी लाभान्वित होते हैं इसलिए उन पर  भ्रष्टाचार की जो विभागीय जाँच होती है वहाँ क्लीन चिट  मिलनी ही होती है क्योंकि यदि नहीं मिली तो उसके तार उन तक जुड़े निकल सकते हैं  जो जाँच करsee  more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/01/blog-post_19.html

दलित शब्द का अर्थ कहीं दरिद्र या गरीब तो नहीं है ?

   समाज के एक परिश्रमी वर्ग का नाम पहले तो दलित अर्थात दबा, कुचला टुकड़ा,भाग,खंड आदि रखने की साजिश हुई। ऐसे अशुभ सूचक नाम कहीं मनुष्यों के होने चाहिए क्या?  वो भी भारत वर्ष की जनसंख्या के बहुत बड़े वर्ग को दलितsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/03/blog-post_2716.html

आरक्षण बचाओ संघर्ष आखिर क्या है ? और किससे ?

     आरक्षणबचाओसंघर्ष या बुद्धुओं को बुद्धिमान बताने का संघर्ष आखिर क्या है ?ये संघर्ष उससे है जिसका हिस्सा हथियाने की तैयारी है।ये अत्यंत निंदनीय है !  जिसमें  चार घंटे अधिक काम करने की हिम्मत होगी वो आरक्षण माँगेगा ही क्यों ?उसे अsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3571.html

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     चूँकि किसी भी प्रकार का आरक्षण कुछ गरीबों, असहायों को दाल रोटी की व्यवस्था करने के लिए दिया जाने वाला सहयोग है इससे जिन लोगों का हक मारा जाता है वे इस आरक्षण को भीख एवं जिन्हें दिया जाता है उसे भिखारी समझते हैंsee  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_3184.html
आरक्षण एक बेईमान बनाने की कोशिश !
जो परिश्रम करके अपने को जितना ऊँचे उठा लेगा वह उतने ऊँचे पहुँचे यह  ईमानदारी है लेकिन जो यह स्वयं मान चुका हो कि हम अपने बल पर वहाँ तक नहीं पहुँच सकते ऐसी हिम्मत हार चुका हो ।see  more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_8242.html
पहले आरक्षण समर्थक नेताओं की संपत्ति की हो जाँच तब आरक्षण की बात!              
 प्रतिभाओं के दमन का षड़यंत्र

     जब गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात उठी तो उस समय एक मैग्जीन में मेरा लेख छपा था   कि  आरक्षण एक प्रकार की भीख है जो किसी को नहीं लेनी चाहिए, तो आरक्षण समर्थक कई सवर्ण लोगों के पत्र और फोन आए कि जब सभी जातियों को आरक्षण चाहिए तो हमें भी मिलना चाहिए।मैंने उनका विरोध करके कहा था कि किसी को आरक्षण क्यों चाहिए।   यहsee more...http://snvajpayee.blogspot.in/2012/12/blog-post_6099.html


1 comment:

  1. लेख में गंभीर चिंतन किया गया है.आज अगर हम नहीं सजग हुए तो आने वाला कल भयावह हो सकता है.

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