Saturday, 21 February 2015

माँझी मुख्यमंत्री होने के बाद भी अपने को गरीब और महादलित कहते रहे इस दिमागी दरिद्रता को जातिगत आरक्षण से कैसे दूर किया जा सकता है ?

जीतनराम माँझी अपने कार्यकाल में अपने को महादलित सिद्ध करने में सफल हुए या मुख्यमंत्री ?

     "माँझी एक ओर मुख्यमंत्री तो दूसरी ओर अपने को गरीब कहते रहे । उन्हें महादलित भी कहा जाता रहा ! इसी प्रकार से उनके सहयोगी और विरोधी लोग भी उनके विषय में ऐसा ही कहते हैं !"ऐसे लोगों को देश आखिर क्या माने ? महादलित,गरीब या मुख्यमंत्री !

     मुख्यमंत्री जैसा पद पाकर भी यदि कोई गरीब और महा दलित ही बना रहा तो इस दिमागी दरिद्रता की भरपाई जातिगत आरक्षण से कैसे की जा सकती है ?

   महान जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु ने यही तो कहा है जिस पर उन्हें गालियाँ मिलती रहीं आखिर क्यों ?see more....http://samayvigyan.blogspot.in/2014/12/blog-post_27.html
"जीतन राम माँझी एक ओर तो स्वयं मुख्यमंत्री होने  के बाद भी अपने को महादलित और गरीब भी कहते हैं

नीतीश जी ने जब मुख्य मंत्री पद का तोहफा उन्हें दिया था तब महादलित कहकर ही दिया था जब तक वो मुख्यमंत्री रहे तब तक वो अपने मुख्यमंत्री कम और दलित अधिक मानते रहे उसी की चर्चा बार बार करते रहे ,जब वो मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने लगे तब वो अपने को एक राजनेता की तरह रणनीति बनाने के बजाए अपने मन के महादलित को लेकर बैठ गए !इसके बाद केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी उन्हें मदद देने आई वो भी न केवल उनके पीछे का महादलित वोट बैंक देखकर आई और कहती भी यही रही कि महादलित का अपमान हो रहा है इसलिए हम उसका साथ देंगे या दे रहे हैं !बंधुओ !एक व्यक्ति के तौर पर जीतन राम माँझी क्या इतने बुरे हैं या यूँ कह लें कि क्या वो किसी लायक नहीं हैं जो सारी  चर्चा केवल उनके महादलित होने पर ही न केवल दूसरे कर रहे हैं अपितु जीतन राम माँझी भी इसी चर्चा में खुश हैं आखिर क्यों ?क्या उन्हें व्यक्ति के रूप में अपनी प्रतिष्ठा नहीं बनानी और बढ़ानी चाहिए !और यदि ऐसा नहीं है तो सम्मान हमेंशा गुणों को मिलता है जातियों को नहीं !यदि जातियों को आगे करके चलना है तो सम्मान पाने की आशा छोड़ देनी चाहिए !ये बात केवल जीतन राम माँझी पर ही नहीं अपितु यदि कोई ब्राह्मण भी हो तो जाती आगे करके चलने पर उसे भीख और भोजन तो मिल सकता है किन्तु सम्मान नहीं सम्मान तो केवल गुणों को ही मिलता है जातियों को नहीं -

           "गुणैर्हि सर्वत्र पदं निधीयते"

     इस समाज में लगभग जितने जाति धर्म सम्प्रदायों के आधार पर बने संगठन हैं उसके मुखिया लोग त्याग तपस्या की बड़ी बड़ी बातें करते रहेंगे किंतु बिना कुछ किए धरे अपने जीवन का बोझ औरों के कन्धों पर छोड़कर सम्मान पाने की लालसा पीला होते हैं यहाँ भी जो त्याग तपस्या जन सेवा आदि पवित्र आचरण अपने जीवन में उतारने में सफल होते हैं उन्हें सम्मान उन कारणों से मिलता है न कि जातियों धर्मों संगठनों के कारण ! इसलिए माँझी जी जैसे किसी भी जाति संप्रदाय के व्यक्ति को यदि सम्मान पाने की वास्तव में लालसा है तो अपनी जातियों को पीछे करके अपने को आगे करें अन्यथा सवर्णों को कोसते कितना भी रहो किंतु झूठी बातों पर विश्वास करेगा कोई नहीं और करना भी नहीं चाहिए !

     इस देश में न कोई दलित है और न ही महादलित ये सब उन लोगों के सगूफे हैं जो अपने पौरुष और व्यक्तित्व को आगे न करके अपनी जातियों के बल पर जीना  चाहते हैं !

 

 

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