बंधुओ ! आज धुलेठी पर्व की आप सबको बहुत बहुत बधाई !! आखिर क्यों मनाया जाता है धुलेठी पर्व ?
बंधुओ !इस त्यौहार की मर्यादा बनाए रखने में ही भलाई है अन्यथा कुछ विधर्मी लोग हमारे पर्वों को बदनाम करने के लिए कीचड़ कैमिकल आदि हानि कारक चीजें भी चलाने लगे हैं बहुत मजनूँ लोगों को तो यह त्यौहार केवल इसीलिए अधिक प्रिय है क्योंकि इस दिन वो लोग कुछ उन लोगों के उन अंगोपांगों को रंग लगाने के बहाने छू पाते हैं जिनके लिए वर्ष भर तरसा करते हैं ऐसे लोगों को तो न तो प्रह्लाद जी से कुछ लेना देना होता है न ही होलिका से उन्हें तो केवल अश्लील हरकतें करने के लिए ये दिन सबसे अधिक सुविधाजनक लगता है जो अशोभनीय है इससे अपने त्योहारों की गलत छवि विधर्मी लोगों तक पहुँचती है जिसका वे उपहास उड़ाते हैं इसलिए हमारा सभी अपने भाई बहनों से अनुरोध है कि हम अपने धर्म की गरिमा बचाए रखें इसी में हम सभी की भलाई है !कुछ लोग होली मनाने के नाम
पर कुछ भी नंगई करना चाहते हैं उन्हें समझा दिया जाना चाहिए कि होली रंगों
का त्यौहार तो है किन्तु नंगों का त्यौहार नहीं है इसलिए नंगई बर्दाश्त
नहीं की जाएगी !
भाई बहनो !आप सभी को पता ही है कि भक्त
प्रह्लाद जी की बुआ होलिका भगवान सूर्य की कृपा से प्राप्त दिव्य वस्त्र को
ओढ़ कर अपनी गोद में भतीजे प्रह्लादको लेकर बैठी थीं किन्तु अग्नि
प्रज्ज्वलित होते ही वो दिव्य वस्त्र जिसे ओढ़ने वाला जलता नहीं था प्रभु
कृपा प्रसाद से वो दिव्य वस्त्र उड़कर प्रह्लाद जी पर आ गिरा जिससे
प्रह्लाद जी ढक गए और बच गए किंतु होलिका जल गईं अगले दिन प्रातः प्रह्लाद
जी से स्नेह करने वाले सखा गण वहाँ आए भस्म (राख) का ढेर देख कर सह नहीं
सके प्रह्लादजी जैसे अपने प्रिय मित्र का वियोग धैर्य टूट गया प्रह्लाद जी
का गुणानुवाद गाते हुए बेचारे रोने लगे उन्हें व्याकुल देखकर प्रह्लाद जी
उसी भस्म (राख)के ढेर से प्रकट हुए जिससे बहुत सारी भस्म (राख)उड़ने लगी यह
देखकर प्रसन्नता से झूम उठे साथी भी लिपट गए अपने प्राण प्रिय सखा
प्रह्लाद जी से ,ख़ुशी से वही राख धूल उड़ा उड़ा कर सभी आपस में खेलने लगे
इसीलिए इसे धुलेठीपर्व के रूप में मनाया जाने लगा तब से यह पर्व बड़े
श्रद्धा विश्वास के साथ आज तक मनाया जाता है !
इस सुदिन पर
हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि जैसे प्रह्लाद जी के मित्रों को उनके
बिछुड़े प्रह्लाद जी मिल गए ऐसी कृपा ईश्वर सब पर करे और सबके बिछुड़े सबको
मिल जाएँ !
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