किसान मुसीबत से मरें या न मरें किंतु उनके बलिदान को न समझने वाले नेता उनकी उपेक्षा करके उन्हें मरने पर मजबूर कर देते हैं !
इसलोक तंत्र का सुख सरकारी नेता लूटते हैं और सरकारों के कर्मचारी इसी महान बलिदान के बल पर ये दोनों एक दूसरे का दुःख दर्द बाँटा करते हैं कर्मचारी साल भर जिन्हें कमाकर देंगे उनका उत्साह बर्धन के लिए उन्हें कुछ वापस भी करना पड़ता है इसीलिए देश में थोड़ी भी महँगाई बड़ी या त्यौहार आए तो महँगाई भत्ता केवल उनके लिए बाकी देशवासियों को बता देते हैं कि तुम्हारा शोषण ब्राह्मणों ने किया है तुम उन्हीं के शिर में शिर दे मारो !अभी ही देखो फसलें किसानों की नष्ट हुईं उन्हें तो चेक सौ सौ पचास पचास रूपए के और कर्मचारियों की सैलरी बढ़ी हजारों में !
जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं तो क्या वे वे देश के नागरिक नहीं हैं आखिर उनके बुढ़ापे की चिंता सरकार को क्यों नहीं है ?
इसलोक तंत्र का सुख सरकारी नेता लूटते हैं और सरकारों के कर्मचारी इसी महान बलिदान के बल पर ये दोनों एक दूसरे का दुःख दर्द बाँटा करते हैं कर्मचारी साल भर जिन्हें कमाकर देंगे उनका उत्साह बर्धन के लिए उन्हें कुछ वापस भी करना पड़ता है इसीलिए देश में थोड़ी भी महँगाई बड़ी या त्यौहार आए तो महँगाई भत्ता केवल उनके लिए बाकी देशवासियों को बता देते हैं कि तुम्हारा शोषण ब्राह्मणों ने किया है तुम उन्हीं के शिर में शिर दे मारो !अभी ही देखो फसलें किसानों की नष्ट हुईं उन्हें तो चेक सौ सौ पचास पचास रूपए के और कर्मचारियों की सैलरी बढ़ी हजारों में !
जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं तो क्या वे वे देश के नागरिक नहीं हैं आखिर उनके बुढ़ापे की चिंता सरकार को क्यों नहीं है ?
गरीब किसान मजदूर या गैर सरकारी लोग जो दो हजार रूपए महीने भी कठिनाई से
कमा पाते हैं वो भी दो दो पैसे बचा कर अपने एवं अपने बच्चों के पालन पोषण
से लेकर उनकी दवा आदि की सारी व्यवस्था करते ही हैं उनके काम काज भी
करते हैं और ईमानदारी पूर्ण जीवन भी जी लेते हैं ।जिन्हें नौकरी नहीं सैलरी नहीं उन्हें पेंशन भी नहीं !
दूसरी और सरकारी कर्मचारियों की पचासों हजार की सैलरी ऊपर से प्रमोशन
उसके ऊपर महँगाई भत्ता आदि आदि और उसके बाद बुढ़ापा बिताने के लिए बीसों
हजार की पेंसन दी जा रही है इतने सबके बाबजूद सरकारी कर्मचारियों के एक
वर्ग का पेट नहीं भरता है तो वो काम करने के बदले घूँस भी लेते हैं इतना सब
होने के बाद भी सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक पढ़ाते नहीं हैं
अस्पतालों में डाक्टर सेवाएँ नहीं देते हैं डाक विभाग कोरिअर से पराजित है
दूर संचार विभाग मोबाईल आदि प्राइवेट विभागों से पराजित है जबकि प्राइवेट
क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी
विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं।
आखिर क्या कारण है कि देश की आम जनता की परवाह किए बिना सरकार के
मुखिया,सरकार में सम्मिलित लोग एवं सरकारी कर्मचारी आखिर क्यों भोगने में
लगे हैं गैर सरकारी लोगों के खून पसीने की कमाई !देश के लोग कब तक और क्यों
उठावें ऐसी सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों का बोझ ?
जब गरीब आदमी अपनी छोटी सी कमाई में ही बचत करके कर लेता है अपने बुढ़ापे का इंतजाम तो
पचासों हजार रूपए महीने कमाने वाले सरकारी कर्मचारियों को क्यों दी जाती है
बुढ़ापे में पेंसन ? आखिर ये अंधेर कब तक चलेगी और कब तक चलेगा प्रजा प्रजा
में भेद भाव का या तांडव ?और कब तक लूटी जाएगी आम जनता ?
क्या देश की आजादी पर केवल सरकार और सरकारी कर्मचारियों का ही अधिकार है बाकी गैर सरकारी लोगों के पूर्वजों का कोई योगदान ही नहीं है !
अब सरकार से भ्रष्टाचार मुक्त उत्तम प्रशासन चाहिए इसके आलावा
कृपापूर्ण गैस सिलेंडर ,भोजन बिल, पेंसन, आरक्षण,नरेगा ,मरेगा,मनरेगा आदि
कुछ भी नहीं चाहिए !अन्यथा गैर सरकारी कहलाने वाली आम जनता अब दलित-सवर्ण,
हिन्दू-मुश्लिम, स्त्री-पुरुष आदि भेद
भाव के रूप में दिए गए किसी भी प्रकार के लालच को स्वीकार करने के लिए
तैयार नहीं है और न ही आपस में लड़ने को ही तैयार है अब वो सारी चाल समझ
चुकी है । अब तो सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को सुधारना ही होगा अन्यथा
अब सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों के शोषण विरुद्ध के विरुद्ध लड़ेगी आम जनता अपने अधिकारों के लिए आंदोलनात्मक अंतिम युद्ध !
No comments:
Post a Comment