सरकारों के खून में पाया जाने वाला गद्दारी जन्य दोष अब तो कई सरकारी कर्मचारियों में भी दिखने लगा है! 
  समाज के अंग होने के बाद भी इनके मन में आज समाज के प्रति अपनापन खतम सा होता दिख 
रहा है घूस दो तो काम होगा  अन्यथा नहीं होगा आप कानूनी अधिकारों की 
पर्चियाँ पकड़े घूमते रहो !लोगों का मानना है चूँकि घूँस आदि भ्रष्टाचार के 
माध्यम से लिया धन का हिस्सा जब सरकारी दुलारे राजापूत सरकार तक पहुँचा 
देते हैं तब अपने नौनिहालों पर खुश होकर सरकारें उन्हें महँगाई भत्ता बढ़ा 
चढ़ा कर देने लगती हैं सैलरी ड्योढ़ी दोगुनी आदि कुछ भी कर देती हैं वो कुछ 
काम करें न करें किन्तु सैलरी तो बढ़ानी ही होती है!अपनों को तो सरकार एक दम
 बरदान की तरह बाँटती रहती है दुश्मन तो केवल आम जनता है सरकार एवं सरकारी 
कर्मचारी दोनों ही आम जनता को पराया समझने लगते हैं! 
   
 सरकारी प्राथमिक  स्कूलों को ही लें उनकी पचासों हजार सैलरी होती है किंतु
 वो सरकारी दुलारे या तो स्कूल नहीं जाते हैं यदि गए  भी तो जब मन आया  या 
घर बालों की याद आई तो  बच्चों की तरह स्कूल से भाग आते हैं पढ़ने पढ़ाने की 
चर्चा वहाँ  कहाँ कौन  करता है और कोई करे भी तो क्यों? इनकी इसी लापरवाही 
से बच्चों के भोजन में  गंदगी  की ख़बरें तो हमेंशा से मिलती रहीं किन्तु इस
 बीच तो जहर तक  भोजन में निकला बच्चों की मौतें तक हुई हैं किंतु बच्चे तो
 आम जनता के थे कर्मचारी  अपने हैं इसलिए थोड़ा बहुतशोर शराबा मचाकर ये 
प्रकरण ही बंद कर दिया जाएगा ! आगे आ रही है दिवाली पर फिर बढ़ेगी सैलरी 
महँगाई भत्ता आदि आदि!
   
 अपने शिक्षकों को दो  चार दस हजार की  सैलरी देने वाले प्राइवेट स्कूल 
अपने बच्चों को शिक्षकों से अच्छे ढंग से पढ़वा  लेते हैं और लोग भी बहुत 
सारा धन देकर वहाँ अपने बच्चों का एडमीशन करवाने के लिए ललचा रहे होते हैं 
किंतु वही लोग फ्री में पढ़ाने वाले सरकारी स्कूलों को घृणा की नजर से देख 
रहे होते हैं! यदि सोच कर  देखा जाए तो लगता  है कि यदि प्राइवेट स्कूल न 
होते तो क्या होता? सरकारी शिक्षकों,स्कूलों के भरोसे कैसा होता देश की 
शिक्षा का हाल?
   
 सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के एक बड़े वर्ग ने जिस प्रकार से जनता के 
विश्वास को तोड़ा है वह किसी से छिपा  नहीं है आज लोग सरकारी अस्पतालों पर 
नहीं प्राइवेट नर्शिंग होमों पर भरोसा करते हैं,सरकारी डाक पर नहीं कोरियर 
पर भरोसा करते हैं,सरकारी फ़ोनों की जगह प्राइवेट कंपनियों ने विश्वास जमाया
 है! सरकार के हर विभाग का यही  हाल है! जनता का विश्वास  सरकारी कर्मचारी 
किसी क्षेत्र में नहीं जीत पा रहे हैं सच्चाई यह है कि सरकारी कर्मचारी 
जनता की परवाह किए बिना फैसले लेते हैं वो जनता का विश्वास जीतने की जरूरत 
ही नहीं समझते इसके दुष्परिणाम पुलिस के क्षेत्र में साफ दिखाई पड़ते हैं 
चूँकि पुलिस विभाग में प्राइवेट का विकल्प नहीं है इसलिए वहाँ उन्हीं से 
काम चलाना है चूँकि वहाँ काम प्रापर ढंग से चल नहीं पा रहा है जनता हर 
सरकारी विभाग की तरह ही पुलिस विभाग से भी असंतुष्ट है इसीलिए पुलिस और 
जनता के  बीच हिंसक झड़पें तक होने लगी हैं जो अत्यंत गंभीर चिंता का विषय 
है उससे  भी ज्यादा चिंता  का विषय यह है कि कोई अपराधी तो किसी वारदात के 
बाद भाग जाता है किन्तु वहाँ पहुँची पुलिस के साथ जनता अपराधियों जैसा 
वर्ताव करती है उसे यह विश्वास ही नहीं होता है कि पुलिस वाले हमारी 
सुरक्षा के लिए आए हैं !!! 
    
 इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही मैं सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  
के सामने एक प्रश्न छोड़ता हूँ कि जनता का विश्वास जीतने की जिम्मेदारी  
आपकी आखिर  क्यों नहीं है?
    
 मेरा मानना है कि यदि पुलिस विभाग की तरह ही  अन्य क्षेत्रों में भी 
प्राइवेट का विकल्प न होता तो वहाँ भी हो रही होतीं हिंसक झड़पें!मुझे 
अंदेशा है कि आरक्षण लीला की राजनैतिक सच्चाई जिस दिन जनता समझेगी उस दिन 
सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों  के विरुद्ध जो जनाक्रोश जनता में जागेगा वह 
भारतीय समृद्ध लोकतंत्र के लिए भयावह सुनामी की तरह होगा! इसलिए अभी भी समय
 है कि सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को  सारे छल कपट छोड़ कर जनता का 
विश्वास जीतने का प्रयास करना चाहिए !
     
 आज भ्रष्टाचार के आरोप हर विभाग पर लगाए जा रहे हैं इस देश की भोली भाली 
सीधी साधी जनता के साथ यह खुली गद्दारी है  जिसे छिपाने केलिए जनता को जाति
 संप्रदाय के नाम पर आरक्षण  की भीख बाँटते रहते हैं!वो भी लोगों के मस्तक 
पर केवल भिखारी होने का ठप्पा लगा देते हैं किसी को कुछ  देना ही होता तो 
आजादी के इतने दिन बीत गए लोगों की स्थिति अब तक सुधर गई होती और आरक्षण 
समाप्त भी हो गया होता, लोग आपस में भाईचारे से रहने भी  लगते किन्तु लाख 
टके का सवाल है कि फिर राजनीति कैसे होती ?अब तक आम जनता के हिस्से में 
केवल  आश्वासन  और उन्माद आते हैं!कि तुम्हारा शोषण किसने किया ! 
हिन्दू-मुश्लिमों को , आदमी-औरतों को , हरिजन -सवर्णों को अलग अलग ढंग से भड़काकर लड़ाने का काम नेताओं ने संभाल रखा है केवल भाषण अमन चैन के देते हैं इनके इरादों में ही खोट है कैसे होगी समाज में शांति?
वर्तमान समय में समाज अपनी हर प्रकार की समस्याओं का समाधान राजनीति में ही खोजने लगा है उसका अपना मन मरता चला जा रहा है ! यही कारण है कि राजनेताओं के मनोबल इतने अधिक बढ़ गए हैं कि वो हमेशा कुछ कुछ देने की बातें करने लगे हैं भीख में वोट मँगाकर जनसेवा का अधिकार पाने वाले राजनैतिक भिखारी आज जनता को भिखारी सिद्ध कर देने में लगे हैं! यह देश का दुर्भाग्य ही है!अब लोगों स्वयं जाग कर इन कुचालों का पर्दाफास करना होगा और जीतना होगा एक दूसरे का बहुमूल्य विश्वास यही हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान का उद्देश्य समाज को आत्म निर्भर बनाना है, जिससे समाज अपनी हर जरूरत के लिए सरकार की कृपा पर ही आश्रित न रहे!आखिर पुराने समय में भी तो लोग आपसी भाई चारे से रह लेते थे! धन्यवाद!!!
हिन्दू-मुश्लिमों को , आदमी-औरतों को , हरिजन -सवर्णों को अलग अलग ढंग से भड़काकर लड़ाने का काम नेताओं ने संभाल रखा है केवल भाषण अमन चैन के देते हैं इनके इरादों में ही खोट है कैसे होगी समाज में शांति?
वर्तमान समय में समाज अपनी हर प्रकार की समस्याओं का समाधान राजनीति में ही खोजने लगा है उसका अपना मन मरता चला जा रहा है ! यही कारण है कि राजनेताओं के मनोबल इतने अधिक बढ़ गए हैं कि वो हमेशा कुछ कुछ देने की बातें करने लगे हैं भीख में वोट मँगाकर जनसेवा का अधिकार पाने वाले राजनैतिक भिखारी आज जनता को भिखारी सिद्ध कर देने में लगे हैं! यह देश का दुर्भाग्य ही है!अब लोगों स्वयं जाग कर इन कुचालों का पर्दाफास करना होगा और जीतना होगा एक दूसरे का बहुमूल्य विश्वास यही हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान का उद्देश्य समाज को आत्म निर्भर बनाना है, जिससे समाज अपनी हर जरूरत के लिए सरकार की कृपा पर ही आश्रित न रहे!आखिर पुराने समय में भी तो लोग आपसी भाई चारे से रह लेते थे! धन्यवाद!!!
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