Sunday, 16 August 2015

जो नेता नहीं है और सरकारी कर्मचारी भी नहीं है जीने का अधिकार तो उन्हें भी मिलना चाहिए !

   देश की आजादी के त्यौहार का भोर एक गरीब परिवार के लिए इतना दुखद !

" रविवार सुबह आर्थिक तंगी के चलते बीकानेर के एक ही परिवार के पांच लोगों ने आत्महत्या कर ली -एक खबर "
   किंतु यह कैसी आजादी ! जहाँ  केवल कुछ लोग आजाद हैं गरीबों किसानों की पीड़ा कोई तो सुनता आखिर इन्हें अपनापन क्यों नहीं दे पा रही हैं सरकारें ! केवल चुनाव जीतने के लिए गरीबों और किसानों की बेदना का बखान किया जाता है बस ! देश की राजनीति का यह संवेदना शून्य चेहरा है जो गरीबों को सहारा न दे सका किसानों के मन में ढाढस न बँधा सका धिक्कार है ऐसे शासन और सरकारों को ऐसी नियत को जो गरीबों का केवल उपयोग करना जानती है !
        कुछ चेहरे बिकाऊ होते हैं कुछ कुर्सियाँ उपजाऊ होती हैं ! इन भोग्यशालियों को पहचाने कौन ?
     देश के नेता लोग देश की संपत्तियों का भोग कैसे भी कर सकते हैं सरकारों में सम्मिलित लोग हों या उनके कर्मचारी सरकार केवल वहीँ तक सीमित है बाक़ी देशवासी किसके हवाले हैं गरीब से गरीब व्यक्ति भी नेता बनते ही बहुमूल्य हो जाता है उसके पास सम्पत्तियों के बादल कहाँ से फट पड़ते  हैं उसे खुद नहीं पता होता है इसी प्रकार सरकारी कर्मचारी का मतलब सरकारी जिम्मेदारी पर जीवन धारण करने वाला वर्ग ,किन्हीं किन्हीं आफिसों में तो कुर्सियाँ उपजाऊ होती हैं जिनपर बैठते ही धनवर्षा होने लगती है कुछ चेहरों पर कीमत लिखी होती है कि इन्हें खरीदने के लिए क्या कीमत चुकानी पड़ेगी !कुछ कुर्सियों पर बैठे लोगों को अपनी जिम्मेदारी ही नहीं पता होती है देखो सरकारी विभागों को ! इनके वीडियो बना लिए जाएँ तो पता लग जाएगा कि कौन सरकारी हैं कौन प्राइवेट !कुल मिलाकर मेरा प्रश्न ये है कि जो नेता नहीं है और सरकारी कर्मचारी भी नहीं है जीने का अधिकार तो उन्हें भी मिलना चाहिए !

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