शब्दों के साथ अकारण इतनी छेड़छाड़ क्यों ? जिन्हें कुँआरी कन्याओं को
'श्रीमती' कहने में कष्ट है उन्हें कुँआरे पुरुषों को श्रीमान् कहने में दिक्कत क्यों नहीं होती !
यहाँ भाषविज्ञान मानक हिंदी या परंपराओं जैसी बातें कहाँ से आ जाती हैं इस सीधी सी बात पर किंतु परंतु क्यों ? "श्रीमती " शब्द का प्रयोग महिलाओं के लिए आदर प्रकट करने के लिए किया जाता है जबकि पुरुषों के लिए इसी अर्थ में 'श्रीमान्' शब्द के प्रयोग करने का विधान है । ऐसी स्थितियों में समस्त स्त्री पुरुष जाति के लिए या तो इन्हीं शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए ! अन्यथा अविवाहिता स्त्रियों "सुश्री" आदि शब्दों का मनगढंत प्रयोग करते समय ध्यान ये भी रखा जाना चाहिए कि अविवाहित पुरुषों के लिए किस शब्द का प्रयोग किया जाए ?
यहाँ भाषविज्ञान मानक हिंदी या परंपराओं जैसी बातें कहाँ से आ जाती हैं इस सीधी सी बात पर किंतु परंतु क्यों ? "श्रीमती " शब्द का प्रयोग महिलाओं के लिए आदर प्रकट करने के लिए किया जाता है जबकि पुरुषों के लिए इसी अर्थ में 'श्रीमान्' शब्द के प्रयोग करने का विधान है । ऐसी स्थितियों में समस्त स्त्री पुरुष जाति के लिए या तो इन्हीं शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए ! अन्यथा अविवाहिता स्त्रियों "सुश्री" आदि शब्दों का मनगढंत प्रयोग करते समय ध्यान ये भी रखा जाना चाहिए कि अविवाहित पुरुषों के लिए किस शब्द का प्रयोग किया जाए ?
पुल्लिंग में 'श्रीमान् \ ' स्त्रीलिंग में 'श्रीमती ' तो अविवहित कन्या
के नाम के आगे किस लिङ्ग का प्रयोग किया जाए ? मानक हिन्दी जैसी बातों का
उल्लेख यहाँ करना केवल ना समझी है क्योंकि जहाँ शब्दों के उच्चारण या लेखन
में असुविधा हो रही हो वहाँ मानकी करण का सहारा लिया जाता है किंतु इन
शब्दों के लेखन और उच्चारण में ऐसी कोई कठिनाई नहीं है दूसरी बात मानक
शब्दों में मतभेद की पूरी गुंजाइस रहती कोई मानता है कोई नहीं मानता है
!इसलिए मानकहिंदी के शब्द प्रमाण नहीं हो सकते यही कारण है कि केंद्रीय
हिंदी संस्थान और NCERT में इसी विषय को लेकर अभी तक मतभेद बना हुआ है
केंद्रीय हिंदी संस्थान मानक हिंदी में रूचि रखता है जबकि NCERTने इसे नकार
दिया है ।
इसी प्रकार से बात भाषा विज्ञान की है वहाँ कोई शब्द नया नहीं जोड़ा जा सकता है वहाँ तो प्रचलित शब्दों पर ही अनुसंधान चलाना होता है ।भाषा विज्ञान के द्वारा मदर को मादर भी सिद्ध किया जाना क्यों जरूरी है !अंग्रेज अपने संकुचित मुख यंत्र के कारण यदि 'ठाकुर' को 'टैगोर'और 'उपाध्याय' को 'झा' कहने लगे तो ये उनकी मजबूरी थी जिसे हमें हथियार नहीं बनाना चाहिए हम 'ठाकुर' को 'ठाकुर' एवं 'उपाध्याय' को 'उपाध्याय' कह सकते हैं तो हमें इस विषय में किसी भी भाषा वैज्ञानिक की मदद की क्या आवश्यकता है ।
इसी विषय में पढ़िए हमारा ये लेख -
इसी प्रकार से बात भाषा विज्ञान की है वहाँ कोई शब्द नया नहीं जोड़ा जा सकता है वहाँ तो प्रचलित शब्दों पर ही अनुसंधान चलाना होता है ।भाषा विज्ञान के द्वारा मदर को मादर भी सिद्ध किया जाना क्यों जरूरी है !अंग्रेज अपने संकुचित मुख यंत्र के कारण यदि 'ठाकुर' को 'टैगोर'और 'उपाध्याय' को 'झा' कहने लगे तो ये उनकी मजबूरी थी जिसे हमें हथियार नहीं बनाना चाहिए हम 'ठाकुर' को 'ठाकुर' एवं 'उपाध्याय' को 'उपाध्याय' कह सकते हैं तो हमें इस विषय में किसी भी भाषा वैज्ञानिक की मदद की क्या आवश्यकता है ।
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उमाभारती जी विवाहिता नहीं हैं किंतु महिला तो हैं ! 'श्रीमती' शब्द का प्रयोग महिलाओं को सम्मान देने के लिए किया जाता है |किसी को सम्मान देने के लिए बनाए गए हैं'श्री' 'श्रीमान्' 'श्रीमती' 'श्रीमत्' आदि शब्द !seemore … http://samayvigyan.blogspot.in/2015/08/blog-post_15.html
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