Monday, 28 September 2015

सांसदों,विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी तय करे जनता, कराया जाए जनमत संग्रह !

"अंधा बाँटे रेवड़ी अपने अपने को देय !"बारी सरकारें बारी सरकारी नीतियाँ धिक्कार है ऐसी गिरी हुई सोच को !  
    जो सांसद विधायक नहीं हैं और सरकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन्हें जीने का अधिकार नहीं है क्या या वे इंसान नहीं हैं !वो गरीब ग्रामीण किसान मजदूर ऐसी महँगाई में कैसे जी रहे होंगें !कभी उनके विषय में भी सोचिए !केवल अपना और अपनों का ही पेट भरने के लिए नेता बने थे क्या !किसी बेतन आयोग की सिफारिशें हों या कुछ और बहाना बनाकर सैलरी बढ़ाने की बात हो किंतु ऐसे निर्णय सरकार और सरकारी कर्मचारी ही मिलकर क्यों  ले लेते हैं इसमें जनता को सम्मिलित क्यों नहीं किया जाता है ! 
   राजनीति हो या सरकारी नौकरी यदि ये सर्विस अर्थात सेवा है तो सैलरी क्यों और सैलरी है तो सेवा कैसी !सेवा  और सैलरी साथ साथ नहीं चल सकते !और यदि ऐसा है तो धोखा है !सांसद विधायक या सरकारी सर्विस करने वाले लोग सेवा करने के लिए गए और आज हजारों लाखों की सैलरी उठा रहे हैं फिर भी अपने को सेवक बताते हैं! देश वासियों के साथ इतना बड़ा कपट !धिक्कार है ऐसी सरकारों को जो केवल अपनी और अपने कर्मचारियों की ही चिंता रखती हों बाकी देशवासियों को इंसान ही न समझती हों !बारेलोकतंत्र !!
   सरकारों में सम्मिलित नेताओं और सरकारी कर्मचारियों की आपसी  मिली भगत से एक दूसरे की या फिर अपनी अपनी सैलरी बढ़ाने का ड्रामा सहना आम जनता के लिए अब  दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा है जानिए क्यों ?
     प्रजा प्रजा में भेद भाव का तांडव अब नहीं चलने दिया जाएगा !जनता तय करेगी सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों की जिम्मेदारियाँ ! काम करने के बदले जो सरकारी कर्मचारी जनता से घूस लेकर उसका कुछ हिस्सा सरकारों को भी देते हैं बदले में सरकारें उनकी सैलरी सुविधाओं का ध्यान रखती हैं ।इसलिए ऐसे किसी भी प्रकार के आदान प्रदान का विरोध किया जाएगा !कोई  बेतन आयोग बने या कुछ और इनमें आम जनता तो सम्मिलित नहीं की जाती है वो सब सरकारी लोग  होने के कारण सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ा लेते हैं और किसानों को दिखाते हैं पैंतीस पैंतीस रूपए के चेक ! बारे लोक तंत्र !
   सांसदों ,विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बढ़ाकर गरीबों को अब और अधिक जलील नहीं होने दिया जाएगा !
       भारत माता को जितने दुलारे सांसद विधायक एवं अन्य सरकारी कर्मचारी हैं उससे कम दुलारे देश के किसान और मजदूर नहीं हैं । जो किसान भारत माता के सपूतों के पेट भरता है उसे जलील करना कहाँ तक ठीक है जो मजदूर देश वासियों की सेवा के लिए अपना खून पसीना  बहाता है बिल्डिंगें बनाता है रोड बनाता है नदी नहरें बनाता है भारत माता के आँचल को स्वच्छ और पवित्र रखने के लिए देश की साफ सफाई में लगा रहता है पेड़ पौधे लगाकर खेतों में फसलें उगाकर देश को हरा भरा बनाता है वातावरण को शुद्ध बनाने का प्रयास करता है । भारत माता को सजा सँवारकर देश का सम्मान बढ़ाता है देश को गौरव प्रदान करता है देश को रोग मुक्त बनाता है सांसदों ,विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बढ़ाकर ऐसे किसानों मजदूरों को जलील किया जाना कहाँ तक ठीक है ! 
    यह जानते हुए भी कि अधिकाँश सांसद ,विधायक एवं सरकारी कर्मचारी अपने अपने दायित्वों का निर्वाह ठीक से नहीं कर रहे हैं ,काम न करने, हुल्लड़ मचाने, हड़ताल करने , धरना प्रदर्शन करने तथा अपनी माँगें मनवाने एवं विरोधियों से माँफी मँगवाने की जिद में अपना समय सबसे अधिक बर्बाद करते हैं वे !वो भी सरकारी सैलरी भोगते हुए सरकारी सुख सुविधाएँ लेते हुए भी ड्यूटी टाइम में इस प्रकार के मनोरंजन में सबसे अधिक समय बर्बाद करते हैं कुछ तो सरकारी सुरक्षा के घेरे में रहते हुए भी ऐसे आडम्बर करते हैं ! ये कहाँ तक उचित है ?
आम जनता की आय के आस पास आवश्यकतानुशार रखी जाए सांसदों विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी !
      आम जनता की मासिक आय यदि दो हजार है सरकारी अफसरों कर्मचारियों की सैलरी भी अधिक से अधिक दो गुनी चौगुनी कर दी जाए किंतु उसे सौ गुनी कर देना आम जनता के साथ सरासर अन्याय है !
     यदि किसी ने शिक्षा के लिए परिश्रम किया है तो उसका सम्मान होना ही चाहिए इससे इंकार नहीं किया जा सकता किंतु किसी का सम्मान करने के लिए औरों को अपमानित करना कहाँ तक ठीक है !उसमें भी उस वर्ग पर क्या बीतती होगी जो IAS,PCS जैसी परीक्षाओं में बैठता रहा किंतु बहुत प्रयास करने पर भी सफल नहीं हो पाया !या Ph.D.की किंतु नौकरी नहीं लग पाई जबकि उसके साथी की लग गई उसकी तो सैलरी लाखों में और दूसरे को हजारों नसीब नहीं होते !आखिर उसकी गलती क्या है !वो भी तब जबकि सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है जिसे रोकने में अब तक की सरकारें नाकामयाब रही हैं उसका दंड भोग रहे हैं पढ़े लिखे बेरोजगार लोग !आखिर उनकी पीड़ा कौन समझे ! 
कुछ बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को छोड़ कर सिक्योरिटी किसी को क्यों मिले और मिले तो हर किसी को मिले ! 
      वर्षा ऋतु में छै छै  फिट ऊँची बढ़ी फसलें में छिपे हिंसक जीवों से , आसमान से कड़कती बिजली से , पैरों के नीचे बड़ी बड़ी घासों में छिपे बैठे बिशाल सांपों से भयंकर भय होते हुए भी रात के घनघोर अँधेरे में खेत से  पानी निकालने के लिए कंधे पे फरुहा रख कर निकल पड़ते हैं किसान ! जहाँ हर पल मौत से सामना हो रहा होता है जिनके परिश्रम से देश के अमीर गरीब सबका पेट पलता  है !उनकी कोई सुरक्षा नहीं दूसरी ओर साफ सुथरे रोडों  के बीच सरकारी आवासों में आराम फरमा रहे नेताओं को दी जा रही है सिक्योरिटी इसे क्या कहा जाए !वैसे भी जिन शरीरों को रखाने के लिए जनता को इतनी भारी भरकम धनराशि खर्च करने पड़ रही हो ऐसे बहुमूल्य शरीरों का बोझ जनता पर डालने की अपेक्षा इन्हें भगवान को वापस करने के लिए ही प्रार्थना क्यों न की जाए !
 अब बात सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ने बढ़ाने की !
    आज थोड़ी भी महँगाई बढ़ी या त्यौहार पास आए तो महँगाई भत्ता केवल उनके लिए बाकी देशवासियों को बता देते हैं कि तुम्हारा शोषण ब्राह्मणों ने किया है तुम उन्हीं के शिर में शिर दे मारो !
    भारत माता के परिश्रमी एवं ईमानदार सपूत अकर्मण्य सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बोझ आखिर कब तक ढोते रहेंगे ?
    गरीब किसान मजदूर या गैर सरकारी लोग जो दो हजार रूपए महीने भी कठिनाई से कमा  पाते हैं वो भी दो दो  पैसे बचा कर अपने एवं अपने बच्चों के पालन पोषण से लेकर उनकी   दवा आदि की सारी व्यवस्था करते ही हैं उनके काम काज भी करते हैं और ईमानदारी पूर्ण जीवन भी जी लेते हैं ।जिन्हें नौकरी नहीं सैलरी नहीं उन्हें पेंशन भी नहीं !
   अफसरों को एलियनों की तरह दूसरी दुनियाँ का जीव बनाकर क्यों परोसा जा रहा है समाज में ?आखिर उन्हें आम जनता से घुलमिल कर क्यों नहीं रहना चाहिए !
  अफसर AC वाले कमरों में बिलकुल पैक होकर रहते हैं जिन्हें खोल कर नहीं रखा जा सकता इससे आम जनता अफसरों के कमरों में घुसने से डरा करती है और यदि घुस भी पाई तो वो आफिस उनके प्राइवेट रूम की तरह सजा सँवरा होता है जहाँ पहुँच कर आम जनता को अपराध बोध सा हुआ करता है उस पर  भी किसी ने थोड़ा भी कुछ कह दिया तो बेचारे  डरते हुए बाहर आ जाते हैं क्या सरकारी अफसरों का रोल केवल इतना है कि जनता को झिड़क झिड़क कर भगाते रहें बश !आखिर उनका चेंबर अलग करने की जरूरत क्या है आम जनता से घुल मिल कर काम करने में उनकी बेइज्जती क्यों समझी जाती है ?
    देश की जनसँख्या के एक बहुत बड़े बर्ग को आज तक एक पंखा नसीब नहीं है ,सरकारी आफिसों के AC रोककर उन तक क्यों न पहुँचाई जाए बिजली आखिर वो भी तो इसी लोकतंत्र के अंग हैं उनके भी पूर्वजों ने  तो लड़ी होगी आजादी की लड़ाई !उस आजादी को देश की मुट्ठी भर आवादी भोग रही है आखिर क्यों ?ऊपर से सैलरी बढ़ाने का फरमान !बारे लोकतंत्र !!
 सामाजिक सुरक्षा की आशा पुलिस विभाग से कैसे की जाए !आखिर वो भी तो सरकारी कर्मचारी ही हैं !
      आखिर पुलिस से ही ईमानदार सेवाओं की उम्मीद क्यों ? वे क्यों और कैसे बंद करें अपराध और बलात्कार ! 
     जब सरकारी शिक्षक अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते हैं तो मदद कर रहे हैं प्राइवेट प्राथमिक स्कूल !अन्यथा उनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती क्यों जा रही है ! इसीप्रकार से सरकारी अस्पतालों के बदले चिकित्सा सेवाएँ सँभाल रहे हैं प्राइवेट नर्सिंग होम !सरकारी डाक विभाग की इज्जत बचा रहे हैं कोरिअर वाले ! दूर संचार विभाग विभाग की मदद कर रही हैं प्राइवेट मोबाईल कंपनियाँ !जबकि पुलिस विभाग को तो खुद ही जूझना पड़ता है आखिर उन्हें भी तो सरकारी कर्मचारी होने का गौरव प्राप्त है वो क्यों सँभालें अपने सरकारी नाजुक कन्धों पर !प्राइवेट क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी भी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं!फिर भी सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ानी जरूरी है आखिर क्यों ? 
    सुविधाओं के अभाव की आड़ में काम न करने वाले सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने का औचित्य क्या है ? 
    सरकारी विभागों में एक छोटी सी कमी का बहाना ढूँढ़ कर लोग दिन दिन भर के लिए अघोषित छुट्टी मार लिया करते हैं ऐसे लोगों की सैलरी बढ़ाई जाती है क्यों ?आज सरकार का कोई विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार नहीं है फिर भी सरकारें बढ़ाती जाती हैं उनकी सैलरी आखिर क्यों ?
   जनता से कहा जाता है कि CFL जलाओ बिजली बचाओ !जबकि सरकारी आफिसों में AC लगाने का प्रयोजन क्या है ?
 सरकारीविभागों के आफिस काम करने के लिए हैं या कि सुख भोगने के लिए ! 
     सरकारी आफिसों के AC जितनी बिजली चबा जाते हैं उतने में पूरे देश को प्रकाशित किया जा सकता है और सबको पंखे की सुविधा उपलब्ध कराई  जा सकती है आखिर ग़रीबों को पंखा क्यों नहीं चाहिए वो भी अखवार पढ़ते होंगे उन्हें भी डेंगू का भय सताता होगा ! किंतु बेचारे क्या करें देश की बेशर्म मल्कियत भोग रही है आजादी !सरकारी विभागों के AC नहीं बंद किए जा सकते आम आदमी से कहा जाता है CFL जलाओ बिजली बचाओ !दूसरी रोड लाइट कहो दिन भर जलती रहे !आखिर वो सरकारी कर्मचारी होने के नाते देश के मालिक हैं सब कुछ कर सकते हैं ग़रीबों पर ऐसा अत्याचार आखिर कैसे सहा जाए !
   ACमें रहने वाले लोग आलसी हो जाते हैं काम करना उनके बश का नहीं रह जाता आयुर्वेद के अनुशार ठंडा खान पान रहन सहन आलस्य बढ़ाता है और निद्रा लाता है । AC वाले विभागों में कर्मचारियों से जनता गिड़गिड़ाया करती है लंबी लंबी लाइनें लगी रहती हैं अफसर कैमरे में सब कुछ देख रहे होते हैं किंतु अपने कमरे का दरवाजा खोलकर आम जनता से उसकी समस्याएँ पूछने में तौहीन समझते हैं ऐसे लोग फील्ड पर जाकर सरकारी कामों की क्वालिटी अच्छी करने का प्रयास करेंगे इसकी तो उम्मींद भी नहीं की जानी चाहिए !
     कुल मिलाकर सरकारी कर्मचारियों की पचासों हजार की सैलरी ऊपर से प्रमोशन उसके ऊपर महँगाई भत्ता आदि आदि और उसके बाद बुढ़ापा बिताने के लिए बीसों हजार की पेंसन ! इतने सबके बाबजूद सरकारी कर्मचारियों के एक वर्ग का पेट नहीं भरता है तो वो काम करने के बदले घूँस भी लेते हैं इतना सब होने के बाद भी सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक पढ़ाते  नहीं हैं अस्पतालों में डाक्टर सेवाएँ  नहीं देते हैं डाक विभाग कोरिअर से पराजित है दूर संचार विभाग मोबाईल आदि प्राइवेट विभागों से पराजित है जबकि प्राइवेट क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं। ऐसी परिस्थिति में सरकारी लोगों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाते रहना कहाँ तक न्यायोचित है !

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