Saturday, 30 April 2016

कन्हैया भक्ति में लीन नीतीश कर रहे हैं उसकी जय जयकार ! साहब साहब कर रही है बिहार सरकार !

   नेताओं और पत्रकारों के एक बड़े वर्ग में बढ़ती गिद्धवृत्ति चिंतनीय ! गिद्ध तो मुर्दों का मांस खाते थे किंतु  ये तो जीवितों पर झपटने लगे हैं !आजकल  भीड़ देखकर नेताओं को कन्हैया में राजनैतिक स्वाद आने लगा है बड़े बड़े कद वाले पद लोलुप नेता कन्हैया को लपक लेने के लालच में अकारण उसकी प्रशंसा के पुल बाँधते  जा रहे हैं ऐसे राजनैतिक गिद्धों से खतरा है देश को ! उन्हें देश का अपमान अपमान नहीं दिख रहा है उन्हें केवल वोट दिख  रहे हैं !
   मोदी सरकार की निंदा करने वाले जिस किसी को भी खोज लाता है विपक्ष ! मीडिया उसी को बना देता है भविष्य का नेता !""कन्हैया भी  दलितों पिछड़ों के  शोषण के नाम पर हो सकता है कि नेता बन जाए !और बन  जाए तो अच्छा है किंतु ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि जिस सभा में "भारत तेरे टुकड़े होंगे" के नारे लगे कन्हैया उस सभा का अंग था या नहीं ,उस सभा में अध्यक्षत्वेन  कन्हैया का भाषण हुआ या नहीं !कन्हैया केवल कन्हैया नहीं था वो छात्रसंघ का अध्यक्ष भी था  आखिर उसकी ये जिम्मेदारी क्यों नहीं बनती थी कि उन राष्ट्र द्रोहियों का वहाँ विरोध किया जाता किंतु कन्हैया के ऐसा न करने के पीछे उसका डर था या समर्थन !           
     देश में स्थापित सरकारों को गालियाँ ,प्रतीकों का अपमान !नेताओं की निन्दाकरना ,प्रधानमन्त्री का उपहास उड़ाना ,दबे कुचले गरीब लोगों की हमदर्दी हथियाने जैसी हरकतें ठीक नहीं हैं !अक्सर नेता लोग ऐसे वायदे करके मुकर जाते हैं जनता ठगी सी खड़ी रहती है देखो केजरीवाल जी तमाम सादगी की बातें करके आज बिराज रहे हैं राजभवनों में ! सैलरी ली सुरक्षा ली सैलरी बढ़ा भी ली विज्ञापन के नाम पर सैकड़ों करोड़ खा गए इसके बाद भी सादगी की प्रतिमूर्ति बने घूम रहे हैं ये निर्लज्जता नहीं तो क्या है !
       इसी प्रकार से कुछ लोग सवर्णों को गालियाँ  देकर उन पर शोषण का आरोप लगाकर बड़े बड़े ओहदों पर पहुँच गए लोग !न कुछ लायक लोग नेता मंत्री आदि क्या क्या नहीं बन गए आजादी के बाद आज तक नेता बनने का सबसे पॉपुलर नुस्खा यही रहा है कि सवर्णों को गाली दो और राजनीति में घुस जाओ कई पार्टियों के नेताओं को अक्सर ऐसी हरकतें करते देखा जा सकता है !ऐसे  लोग ये सारे नाटक नौटंकी करके राजनीति में घुस जाते हैं दलितों पिछड़ों का नारा देकर सरकारों में घुस जाते  हैं इसके बाद ग़रीबों के हिस्से हथियाते जाते हैं !कुलमिलाकर नाम दलितों पिछड़ों का सम्पत्ति सारी  अपने नाम सारी सुख सुविधाएँ अपनी ! ऐसे ड्रामे अब बंद होने चाहिए !सवर्ण भी अपने पूर्वजों की निंदा सुनते सुनते अब तंग आ चुके हैं अब अवसर आ चुका है जब ऐसे दलितभक्त नेताओं की सम्पत्तियों की जाँच की माँग उठाई जाए और उन्हीं से पूछा  जाए कि उनकी आमदनी के स्रोत क्या हैं फिर समाज के सामने उन्हें और उनकी दलित भक्ति को बेनकाब किया जाए !
     जिस देश में संविधान सर्वोपरि है और यदि संविधान के दायरे में रहकर ही यदि कोई किसी की मदद करना चाह रहा है तो फिर लड़ना किससे कानून और संविधान पर भरोसा करते हुए सरकार प्रदत्त अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक तक पहुँचाए जाएँ ऐसी स्वयं सेवा की भावना समाज में पैदा करनी चाहिए सरकार की कानूनी  सहायता और समाज की स्वयं सेवा का सहयोग पाकर  दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं सबका  विकास किया जा सकता है इसके अलावा उस दिन और किस आजादी के नारे लग रहे थे !
      कन्हैया केवल नाम रख लेने से कोई कन्हैया नहीं हो जाता है उसके काम यदि ऐसे  हैं तो उनकी सराहना कैसे की जाए !देश समाज एवं मानवता की रक्षा के लिए आए थे कन्हैया जबकि कंस ने मानवता पर अत्याचार किया था JNU में उस दिन भी क्या राष्ट्र भक्ति की बातें हुई थीं जो भी भारत के टुकड़ों की बात करता है या देश के कानून के तहत किसी को जो भी सजा दी गई उस सजा के विरुद्ध नारे लगाता है ये देश के संविधान के विरुद्ध  बगावत नहीं तो क्या है !भारत माँ का कोई सपूत ये राष्ट्र विरोधी बातें कैसे सह सकता है वो भी छात्र नेता ही नहीं छात्रसंघ का अध्यक्ष भी हो उसने ऐसे लोगों का विरोध क्यों नहीं किया इसका मतलब इसे उन उपद्रवियों का समर्थन क्यों न माना जाए !वैसे भी कन्हैया कभी कायर या गद्दार नहीं हो सकता जो देश द्रोहियों के मुख से अपने देश के टुकड़े होने वाले नारे सुन कर सह जाए और जो सह जाए वो कन्हैया नहीं कंस हो सकता है !
      जो छात्र है वो नेता नहीं हो सकता और जो नेता है वो छात्र  नहीं हो सकता !क्योंकि नेतागिरी के पथ पर भटके हुए लोग पढ़ कहाँ पाते हैं शिक्षा एक  प्रकार की तपस्या है जो नेतागीरी के साथ नहीं की जा सकती इसलिए छात्र नेता शब्द स्वयं में छलावा है । 
    आजाद भारत का मतलब ही है संविधान प्रदत्त आजादी जो प्रत्येक व्यक्ति को मिलनी चाहिए ये उसका अधिकार है और अधिकारों के प्रति समाज को केवल इतना जागरूक करना है कि अपनी नागरिक आजादी से बंचित न रह जाए किंतु जिस तरह से उस दिन आजादी के नारे लग रहे थे वो संविधान प्रदत्त आजादी के यदि होते उसके लिए तो कानून के दरवाजे खुले थे यदि किसी को कहीं दिक्कत थी तो उसके लिए नारे लगाने के अलावा भी संवैधानिक परिधि में भी तमाम विकल्प थे किंतु वो वातावरण ही राष्ट्रभावना को चुनौती देने या उपहास उड़ाने जैसा था । 
        दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं  के शोषण के गीत गाकर कुछ लोग नेता बन सकते हैं और भी कुछ अयोग्य लोग योग्य स्थानों पर पहुँच सकते हैं कुछ छात्रवृत्ति के रूप में कुछ धन पा सकते हैं कुछ आटा दाल चावल चीनी आदि पा सकते हैं आरक्षण पाकर कुछ लोग उन स्थानों पर हो सकता है कि पहुँच जाएँ जिनके योग्य न होने के कारण उन्हें केवल अपमान ही झेलना पड़े किंतु इतना सब कुछ पाकर भी अपने हिस्से यदि अपमान ही आया तो पेट तो पशु भी भर लेते हैं केवल पेट भरने के लिए इतने सारे नाटक क्यों ?क्या हमारा लक्ष्य बंचित वर्गों में भी प्रतिभा निर्माण नहीं होना चाहिए आरक्षण  और सरकारी सुविधाओं का लालच देकर देश के सबसे बड़ी आवादी वाले वर्ग को विकलांग बनाकर आखिर कब तक रखा जाएगा !
       आज के सौ वर्ष पहले वाले लोग भी  दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं की रक्षा के ही गीत गाते स्वर्ग सिधार गए ,आजादी के बाद आजतक कानून की छत्र छाया में रहकर विकास करने का सम्पूर्ण अवसर मिला इसके बाद भी सुई वहीँ अटकी है सवर्णों ने शोषण किया था किंतु यदि सवर्णों के शोषण के कारण ये लोग पिछड़े होते तो इतने दिन तक सारी  सुविधाएँ पाकर ये पल्लवित हो सकते थे क्योंकि किसी सामान्य सवर्ण वर्ग के  व्यक्ति के साथ यदि कोई हादसा हो जाए जिससे वह बिलकुल कंगाल हो जाए उसके पास कुछ भी न बचा हो सरकार उसे किसी भी प्रकार की मदद न दे तो वो भूखों मर जाएगा क्या ? वह सवर्ण अपनी कर्म पूजा के बलपर यदि अपनी तरक्की कर सकता है तो दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं के शरीरों में ऐसी कौन सी कमजोरी है कि वो इस संघर्ष पथ को नहीं अपना सकते !उन्हें कौन रोकता है । 
        सवर्ण चाहें तो सवर्ण भी अपनी हर समस्या के समाधान के लिए सरकार के दरवाजे पर कटोरा लेकर खड़े हो सकते हैं हो सकता है कि सवर्ण मान कर सरकार उन्हें भीख न दे किंतु कटोरा तो नहीं ही फोड़ देगी इस भावना से सवर्ण लोग भी सरकारी दरवाजों पर जाकर झोली फैला सकते थे किंतु उसे खुश होकर सरकार जितना जो कुछ भी देती वो भीख होती और भीख केवल पेट भरने के लिए होती है क्योंकि भीख देने वाला न मरने देता है और न मोटा होने देता है केवल घुट घुटकर कर जीवन बिताने के लिए ज़िंदा बना रखता है और इस प्रकार से सरकारी कृपा पर जीने वाले लोग कभी स्वाभिमानी नहीं हो सकते !दूसरी बात ऐसे परिस्थिति में स्वदेश में तो अपनी सरकार है यहाँ तो अपने प्रति सरकार की हमदर्दी मिल भी सकती है किंतु विश्व के किसी अन्य देश में तो जो करेगा उसे मिलेगा अन्यथा घर बैठे वहाँ गुजारा कैसे होगा ! इसीलिए सवर्णों में भी गरीब वर्ग है किंतु वो सरकारी दरवाजे का भिखारी नहीं बना अपने सम्मान स्वाभिमान को बचा कर रखा है । 
      ये शोषण ये आरक्षण ये दबे कुचले दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं  के शोषण के गीत केवल अपने देश में ही गाए सुने जाते हैं बाकी विश्व तो अपने नागरिकों को संवैधानिक सुविधाएँ देता है और तरक्की के रास्ते पर छोड़ देता है और सब दौड़ने लगते हैं एक दूसरे के साथ कोई थोड़ा आगे चलता है कोई थोड़ा पीछे किन्तु  यहाँ की तरह ऐसा कभी नहीं होता है कि हर छोटी बड़ी बात के लिए सवर्णों पर शोषण के आरोप लगाकर अपने को पीछे कर लिया जाए !किंतु  आपकी तरक्की होने या न होने के लिए आप स्वयं जिम्मेदार हैं न कि सवर्ण !यदि किसी के घर बच्चा न पैदा हो तो दोष पड़ोसी पर कैसे  मढ़ दिया जाए ! ये कहाँ का न्याय है । दबे कुचले दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं आदि के हितैषी होने  दावा करने वाले लोग ऐसे ही फार्मूले उछालकर देश की आवादी के एक बहुत बड़े वर्ग को स्वाभिमान विहीन बनाते जा रहे हैं उचित तो ये है कि ऐसे जुमले उछालने वाले लोगों से समाज को बचाया जाना चाहिए ।
          जो जाति  समुदाय संप्रदाय या वर्गवाद के नाम पर विकास की बात करे वो ऐसी भेदभावना  से समाज को तोड़ तो सकता है किंतु जोड़ नहीं सकता ! विकास की कोई भी बात जब तक सबके लिए नहीं होगी तब तक कभी भी स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं कर सकती है । 
          बड़ी बड़ी रिस्क लेकर जो लोग दिन रात मेहनत करके अपने ब्यापार स्थापित करते  हैं  उस भयंकर संघर्ष में कई लोगों की तो कई कई पीढ़ियाँ खप जाती हैं ऐसे परिश्रमी लोगों के हिस्से से टैक्स रूप में धन लेकर सरकार देश एवं देशवासियों के विकास के लिए योजनाएँ चलाती है अन्यथा वो ब्यापारी वर्ग भी यदि कायरता करने लगे और कह दे कि सरकार हमारा शोषण करके सबको बाँट रही है तो जाओ हम भी नहीं कर सकते काम ,सरकार हमें भी भोजन वस्त्र उपलब्ध करवावे !आप स्वयं सोचिए कि आखिर सरकार कहाँ से लाएगी !इसलिए जो देश का कमाऊ वर्ग है उससे टैक्स लेना और वो टैक्स खाऊ वर्ग में बाँट देना और ऊपर से ये कहना कि इनके पूर्वजों ने हमारा शोषण किया था इसलिए हम पिछड़ गए !ये कितनी मूर्खता पूर्ण बात है हमें सच्चाई क्यों नहीं स्वीकार करनी चाहिए कि प्राचीन काल में सभी जातियाँ संख्या और सम्पत्तियों में बराबर थीं । सवर्णों ने अपना सारा ध्यान संपत्तियाँ बढ़ाने पर लगाया और जनसंख्या बढ़ने पर संयम रखा तो उनकी जन संख्या उतनी नहीं बढ़ी किंतु संपत्तियाँ बढ़ती गईं !दूसरी ओर दलितों पिछड़ों  ने संपत्तियाँ बढ़ाने का इरादा ही छोड़ दिया केवल जनसँख्या ही बढ़ाते चले गए तो सवर्णों के अनुपात में संपत्तियाँ तो घटनी ही थीं इन जनसँख्या बढ़ने में सवर्णों का क्या योगदान था आखिर उन्हें क्यों कोसा जा रहा है आज सवर्णों की संपत्तियां देखकर लालच बढ़ रहा है तो क्या करें सवर्ण ।



    

अधिकारियों कर्मचारियों का पेट नहीं भर पा रही है सरकार तभी तो है भ्रष्टाचार !

   सरकारों और सरकारी अधिकारियों की भ्रष्टाचार की भूख निगले  जा रही है आम लोगों की जिंदगियाँ ! सरकारों में सम्मिलित लोग कहते हैं भ्रष्टाचार घटा है ये नीचता निर्लज्जता  नहीं तो क्या है ?किंतु भ्रष्टाचार घटाने के लिए उन्होंने किया क्या है ये किसी को नहीं बताते !
    सरकारी कर्मचारी केवल अपने अधिकारियों की चमचागिरी किया करते हैं और अधिकारी केवल सरकारों की सुनते हैं उन्हीं के पीछे दुम हिलाते हैं ! जनता की कोई नहीं सुनता उन्हें अपनी बात सुनाने और मनाने के लिए जनता के पास केवल एक अधिकार है घूस दो काम करवाते रहो अन्यथा चिल्लाते रहो !
   ये घूस नेताओं के चहरे की चमक है उनकी खांसी दूर करने की दवा है उनके घरों की रौनक है उनकी अकर्मण्य निकम्मी संतानों के भरण पोषण का साधन है ये घूंस ही उन नेताओं के जीवन की संजीवनी है । अन्यथा  नेताओं के पास क्या था जब वो राजनीति में आए थे और आज क्या नहीं है उनके पास !संपत्तियों के लगे हैं अंबार इनका कोई नहीं है कारोबार आखिर कैसे हो रहा है ये इतना बड़ा चमत्कार !जब तक इस पर नहीं होगा प्रहार तब तक नहीं दूर होगा भ्रष्टाचार !
       हर चुनाव भ्रष्टाचार के विरोध के नारे लगाकर लड़ा जाता है किंतु भ्रष्टाचार के प्रति समर्पित अधिकारियों कर्मचारियों को अपने भ्रष्टाचार का इतना बड़ा जरूर होता है कि जब मैं बंडल लेकर पहुँचूँगा तो ये नेता आँखें झुकाकर रख लेगा !इस प्रकार से भ्रष्टाचार के प्रति समर्पित सरकारी गुर्गे उस भ्रष्टाचार विरोधी नारे लगाने वाले नेता को मिनटों में मुर्गा बना देते हैं इसके  बाद ऐसे बेईमान नेताओं  की हिम्मत कहाँ पड़ती है कि वो अपने उन कमाऊपूत अधिकारियों कर्मचारियों से आँख मिलाकर बात कर सकें !जनता सोचती है कि हमारे ईमानदार नेता जी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाएँगे जबकि वो खुद भ्रष्टाचारी हो जाते हैं ये खेल बहुत वर्षों से चला आ रहा है और भारत भ्रष्टाचार के दलदल में फँसता जा रहा है । 
    ऐसे आत्मबल चरित्र बल संस्कार बल से बिहीन लोग भ्रष्टाचार भगाएँगे उनसे ये उम्मींद नहीं की जानी चाहिए !क्योंकि चरित्रवान ईमानदार नेता अधिकारी अपनी सैलरियों से केवल अपनी जरूरतें ही पूरी कर सकते हैं अकूत संपत्तियाँ नहीं जुटा सकते !ईमानदार नेता हों या अधिकारी कर्मचारी उनकी ईमानदारी और चरित्रवत्ता का बखान वो स्वयं नहीं करते उनका चेहरा चरित्र और वाणी का ओज और संयम करता है !
       अब इस देश को जरूरत है वास्तव में किसी ईमानदार चरित्रवान निडर प्रशासक की है जो देश की जनता के सामने ईमानदारी की चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार हो !उसके लिए उसकी कसौटी होगी कि आजादी के बाद आज तक के नेताओं की संपत्तियाँ और उनके स्रोत पता करके जनता के सामने रखे कि जब वो नेता लोग राजनीति में आए थे तब उनके पास क्या था और आज जो है वो कहाँ से  आया !साथ ही उसके लिए उन्होंने प्रयास क्या क्या किए और क्या उन प्रयासों से उतनी संपत्तियाँ बना पाना संभव था यदि नहीं तो सरकार ऐसी संपत्तियों प्रापर्टियों को जनहित में जब्त करे !
      ऐसा कर पाना आम नेताओं के लिए अत्यंत कठिन काम है इसके लिए कोई जीवित व्यक्ति चाहिए क्योंकि इसमें जिस साहस चरित्र त्याग और बलिदान की जरूरत है वो सबके बश की बात  नहीं है । उसकी अपेक्षा वर्तमान समय में राजनैतिक फलक पर विराजमान मोदी जी जैसे नेताओं से की जा सकती है उनके अलावा इस समय जो नेता लोग होंगे भी उन्हें या तो मैं जानता नहीं हूँ या वो विभिन्न कारणों से सत्ता के समीप पहुँचने की स्थिति में ही नहीं हैं चूंकि मोदी जी हैं दूसरा उन्हें जनता के सामने ईमानदार साहस की कसौटी पर कसा नहीं जा सका किंतु मोदी जी इतने दिन से मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं फिर भी उनका जीवन खुली किताब है उनकी संपत्तियाँ और उनके आश्रितों की संपत्तियाँ सादगी और सरल सहज जीवन शैली इस का प्रमाण हैं !इसलिए मोदी जी से आशा है कि वो भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए कुछ करेंगे !
   
    

केजरीवाल जी में हिम्मत है तो दिल्ली का भ्रष्टाचार मिटाकर दिखाएँ और दिल्ली की रोडों पर से अतिक्रमण हटाएँ !

     दूसरों की कमियाँ दिखाने के लिए केजरीवाल जी किसी भी हद तक जा सकते हैं किंतु अपनी कमियाँ लापरवाही गैर जिम्मेदारी अदूरदर्शिता सरकारी धन की बर्बादी लगता उन्हें दिखाई ही नहीं देती शिकायती पत्रों पर न कार्यवाही होती है और न ही जवाब दिए जाते हैंआखिर क्या बदलाव हुआ दिल्ली में !
      केजरीवाल जी !कहाँ गई आपकी सादगी ?प्रदूषण मुक्त दिल्ली बनाने की केवल बातें करके करोड़ों रुपए पानी की तरह विज्ञापनों में बहा रहे हैं आप तो प्रदूषण हटाने में कितना धन खर्च करेंगे !  दिल्ली की हकीकत ये है कि साठ  साठ  फिट चौड़े रोड 30 -30 फिट में समिट कर रह गए हैं वहाँ घंटों का लगता है जाम !कई मार्केटों में जिनकी पाँच फिट की दुकानें हैं वे दस फीड रोड  पर लगाए बैठे हैं मुख्यमंत्री में यदि  हिम्मत  है ईमानदारी है औरउन्हें वास्तव में घूस का लोभ नहीं है और यदि वो दिखाना चाहते हैं कि दिल्ली से भ्रष्टाचार भगा दिया गया है तो अतिक्रमण हटाने की चुनौती को स्वीकार करें और हटाएँ उन्हें !'ऑड इवन' के नियम से भी यदि गाड़ियाँ चलें तो क्या जाम में फँसने पर वो धुआँ नहीं सुगंध फेंकेगी !इसी प्रकार से कई पार्कों की जगह में मकान बने खड़े हैं हिम्मत है तो गिराएँ न !

 'ऑडइवन' के ड्रामे से  दिल्ली को उस प्रदूषण सेhttps://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-2flIXTCt4Ndumf92CGfBt7pq1q3oOFocgqvZ3XrvM5RPuSsTzDaG0s2mIXFfD5MExdStG9j9b28xVHc2DLh5VjRxTkpOFFgfVkjAlmpoZRrRNDbJ0ieU4kcwzwEfnvXjcWhdgL2jL6Y/s1600/c.jpgदिल्ली सरकार के द्वारा प्रदूषण मुक्त करने का नाटक किया जा रहा है जिसके लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह विज्ञापनों में बहाए जा रहे हैं !उस दिल्ली की हकीकत ये है कि दिल्ली के इस स्कूल के आगे तपती दोपहर में बच्चे एवं अभिभावक दोपहर में खुले रॉड पर खड़े होते हैं अतिक्रमण के कारण इस पेड़ की छाया में बैठ भी नहीं सकते !बिना घूस दिए अतिक्रमण करने दिया गया होगा क्या? see more... http://samayvigyan.blogspot.in/2016/04/blog-post_18.html  साठ  साठ  फिट चौड़े रोड 30 -30 फिट में समिट कर रह गए हैं वहाँ घंटों का लगता है जाम !कई मार्केटों में जिनकी पाँच फिट की दुकानें हैं वे दस फीड रोड  पर लगाए बैठे हैं मुख्यमंत्री में  हिम्मत  है तो हटाएँ उन्हें !'ऑड इवन' के नियम से भी यदि गाड़ियाँ चलें तो क्या जाम में फँसने पर वो धुआँ नहीं सुगंध फेंकेगी !इसी प्रकार से कई पार्कों की जगह में मकान बने खड़े हैं हिम्मत है तो गिराएँ न !      केजरीवाल जी ! दिल्ली की ही कई जगहों पर एक एक बिल्डिंगें ऐसी हैं जिनमें 15 -20 फ्लैट बने होते हैं बिल्डर बेचकर चला जाता है बिल्डिंग की छत गुंडे मवाली खरीद लेते हैं और पैसे के बल से सरकारी मशीनरी को खरीदकर  बिल्डिंग में रहने वालों की बिना किसी सहमति के बिना ऐसी छतों पर लगा देते हैं सौ प्रतिशत गैर कानूनी टॉवर !किंतु उनमें रहने वालों को ये भी नहीं पता होता है कि टावर लगवा कौन रहा है उसका किराया कौन खा रहा है !वो पुलिस में कहते हैं तो वो कहते हैं निगम में कहो निगम वाले कहते हैं दिल्ली सरकार से कहो ! तब तक टावर लग जाता है ये है भ्रष्टाचार !
     ऐसी सामूहिक बिल्डिंगों की छत पर टॉवर में फाल्ट ठीक करने के नाम पर जाने वाले अपरिचित टेक्नीशियन आदि छतों पर टावर के बहाने कभी भी कितना भी बड़ा विस्फोटक रख रख कर जा सकते हैं उनसे कोई पूछने वाला नहीं होता है  कौन जिम्मेदार होगा उस महबिनाश का ?
   ऐसे मोबाइल टावरों से निकलने वाला रेडिएशन भुगत रहे हैं बिल्डिंगों में रहने वाले लोग !रेडिेशन के दुष्प्रभाव से लोग रोगी और  मनोरोगी होते चले जा रहे हैं दिल्ली का बढ़ता अपराध ग्राफ इसका जीता जागता उदाहरण है ये जनता की अपनी रिसर्च है इसे झुठलाने वालों को खुले मंच पर बहस की चुनौती है !ऐसे भयंकर रेडिेशन का  खतरा भुगत रहे हैं वो लोग जिनकी जेब में टावर के किराए का एक पैसा भी नहीं जाता है ऐसे गुंडे मवालियों का कोर्ट कचहरियों में सामना करना उन फ्लैटों में रहने वालों के बश की बात नहीं होती है !
     कई जगहों पर तो ऐसी बिल्डिंगों में इसी गुंडागर्दी के बलपर बिल्डिंग में रहने वाले लोगों की पहले से लगी हुई पानी की टंकियाँ तक छत से उतार दी गई हैं बिल्डिंग में  रहने वाले अपनी  टंकियों में पानी तक नहीं भर सकते !भगवान न करे यदि ऐसी बिल्डिंगों में कहीं कोई आग लग जाए तो बिल्डिंग में रहने वाले लोगों के पास आग बुझाने तक का पानी नहीं होता है और ये सारा काम भ्रष्टाचार के कारण ही तो है !केजरीवाल जी !भ्रष्टाचार घटने के पोस्टर लगा रहे हैं !
    जाते हैं जिस प्रदूषण से  दिल्ली में भ्रष्टाचार न होता तो स्थितियाँ ऐसी न होतीं !कहने को सरकारें बदलती हैं बाकी वास्तविकता वही रहती है क्योंकि पैसा हर किसी को प्यारा होता है !आप स्वयं देखिए -
        ये समझने के लिए  अपनी आँखों से देखिए दिल्ली और अनुभव कीजिए पूछिए दिल्ली की जनता से कि वो क्या फेस कर रही है !बैनरों पोस्टरों खबरों को देखकर भ्रमित मत होना ये तो सरकारें अपने बेरोजगार नाते रिस्तेदारों को रोजगार उपलब्ध करने के लिए जो बजट पास करती हैं उसे दिखाने के लिए कुछ बैनर पोस्टर तो लगाने ही पड़ते हैं !
   स्कूल की छुट्टी दोपहर दो बजे होती है तपती दोपहर में छुट्टी होने से पहले खुली धूप में बच्चों का इंतजार किया करते हैं अभिभावक कुछ अभिभावक आने में लेट हो जाते हैं उनका इन्तजार इसी धूप में खड़े बच्चे किया करते हैं छुट्टी होते समय भीड़ बहुत होती है जाम लग जाता है तो बच्चे तपती धूप में उस जाम में फँसे से रहते हैं अगर जाम खुलने का इंतजार करना चाहें तो कहाँ खड़े हों गेट पर जो जगह जो छाया बच्चों के खड़े होने की है उसमें अतिक्रमण हो गया है घड़े वाले कहते हैं कि हमारा पैसा हर विभाग में पहुँचता है कोई हटा ले उसे चुनौती !दिल्ली सरकार कहती है दिल्ली में भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है !

      विज्ञापनों पोस्टरों और हकीकत के अंतर को समझने के लिए दिल्ली आपको अपनी आँखों से देखनी पड़ेगी तब अनुभव होगा कि नेता झूठे विज्ञापनों पर जनता का पैसा कितना बर्बाद करते हैं उतना काम करें तो राम राज्य हो जाए !see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2016/04/blog-post_18.html

Wednesday, 27 April 2016

माननीय दिल्ली सरकार ! इस स्कूल की ओर भी देखिए एक बार !

 दिल्ली को साफ करने के लिए 'स्वच्छता अभियान' और प्रदूषण मुक्त करने के लिए 'ऑड इवन' जैसी व्यवस्थाएं करने के बाद भी एक स्कूल के सामने गन्दगी का अम्बार ऐसा लगा हो कि खड़े होने की कहीं जगह ही न हो !गेट के पास छाया होने के बाद भी अभिभावक और उनके बच्चे दोपहर दो बजे खुले आसमान के नीचे भयंकर धूप में खड़े होने पर मजबूर हों !
      पूर्वी दिल्ली गाँधी नगर के पास महिला कालोनी के सामने जो "राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय गाँधी नगर" है इस विद्यालय के गेट के पास में अंदर बहुत बड़ा ग्राउंड है कहीं बिलकुल छाया नहीं है स्कूल के सामने ही गेट के बाहर एक बहुत बड़ा छायादार पेड़ है उसकी छाया बहुत घनी है अगर थोड़ा बहुत पानी बरस जाए तो नीचे नहीं आता किंतु दुर्भाग्य ये है कि स्कूल के सामने एवं स्कूल की बाउंड्री के पास होने के कारण कानूनी
तौर पर स्कूल के बच्चों का अधिकार है छुट्टियों के समय उस जगह पर खड़े होकर धूप और बर्षा बचाने का किंतु उस पेड़ की सुंदर छाया में घड़ा बेचने वाले ने अतिक्रमण पूर्वक कब्जा जमा रखा है पेड़ के नीचे की सम्पूर्ण जगह पर घड़े फैला रखे हैं वो लोग कुछ जगह में अपनी चारपाई डालकर लेट जाते हैं उन्हें देखकर रेडी वाले भी वहीँ खड़े होने लगे हैं वहीँ वो नशा पत्ती करते हैं भद्दी भद्दी गालियाँ देते हैं जो बच्चों और अभिभावकों को
सुनना सहना उनकी मजबूरी होती है इन सबके बाबजूद वहाँ बैठने क्या खड़े होने लायक कहीं जगह नहीं बचती है !उसके अलावा गेट के आस पास दूर दूर तक छाया का कहीं नामोनिशान नहीं होता है । 
      दोपहर दो बजे जब छुट्टी होने को होती है तब अभिभावक लोग अपने बच्चों को लेने आधा घंटे पहले आकर उस तपती धूप में गेट पर खड़े हो जाते हैं दूसरी बात छुट्टी होते  समय बड़ा विद्यालय होने के नाते भीड़ अधिक हो ही जाती है तो रोड पर जाम भी लग जाता है ऐसी परिस्थिति में बच्चे उस तपती हुई धूप से बचने के लिए यदि रुकना चाहें तो कहाँ रुकें ! जिन अभिभावकों अपने बच्चे लेने आने में कुछ देर हो गई है वे बच्चे अपने माता  पिता का इंतजार करने के लिए कहाँ खड़े हों !या तो धूप में खड़े होकर उन लोगों की गालियाँ सुनें या कहीं और जाएँ !अपुष्ट सूत्रों से जानकारी तो यहाँ तक मिली है कि नशीले द्रव्यों की सप्लाई तक यहाँ से की जाती है यदि ये बात एक प्रतिशत भी सही हुई तो ये स्कूल के पास घड़ा बेचने वाले लोग बच्चों के भविष्य के साथ बड़ा खिलवाड़ कर रहे हैं । 
       अतएव आपसे निवेदन है कि बच्चों अभिभावकों एवं विद्यालय की गौरव रक्षा के लिए यदि आप उचित समझें तो इस अतिक्रमण को हटवाएं और उस पेड़ के नीचे बच्चों को बैठने लायक  स्वच्छ वातावरण तैयार करवाएँ !
     स्कूल के अंदर बाहर 'स्वच्छ भारत अभियान' के बैनर पोस्टर लगे हों स्वच्छता पर बड़े बड़े कार्यक्रम चलाए जा रहे  हों और स्कूल के सामने का यह वातावरण हो कितना उचित है आप स्वयं देखिए -


 माननीया मंत्री जी -
        (मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार )
                                       आपको सादर नमस्कार !

 विषय - संस्कृत और प्राचीन ग्रंथों विषयों से सम्बंधित रिसर्च के विषय में -
  महोदया -
     विदित हो कि मैंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय वाराणसी से व्याकरणाचार्य (MA)एवं ज्योतिषाचार्य(MA)  किया है 'तुलसी साहित्य और ज्योतिष' पर काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से Ph .D.की है प्राचीन विज्ञान के आधार पर ही 'ग्रंथ लेखन एवं फ़िल्म निर्माण' में ज्योतिष योगदान\ रोग एवं मनोरोग विज्ञान की दृष्टि से !  आयुर्वेद,योग,मानवव्यवहार  रोग, मनोरोग, भूकंप, वर्षा आदि प्राकृतिक सामाजिक व्यवाहरिक पारिवारिक आदि जगत के लिए अत्यंत लाभकारी महत्त्व पूर्ण शोधकार्य प्राचीन विज्ञान और संस्कृत के आकर ग्रंथों के आधार पर मैंने किया है जिसे कहीं भी कभी भी किसी भी मंच पर सिद्ध किया जा सकता है ।सरकार यदि इस विषय में मेरी मदद करे तो मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि मानवता का तो बहुत बड़ा लाभ तो होगा ही साथ ही कई वो पहलू जिनके रहस्य आधुनिक चिकित्सा एवं विज्ञान के लिए वरदान सिद्ध हो सकते हैं !
       अतएव आपसे निवेदन है कि आप मुझे समय दें और  इस विषय में मेरी बात सुनें !यदि आपको उचित लगे तो हमारे रिसर्च कार्य में सरकार हमारी मदद करे !
                                                          निवेदक  भवदीय -
          राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान (रजि.)
------------------------------ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी --------------------------------
एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी
पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसी
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Tuesday, 26 April 2016

अरे कन्हैेये !मीडिया ने महत्त्व क्या दे दिया अपने को CM-PM समझने लगे तुम !

जनता की नजरों से  गिर चुके नेताओं के हीरो कन्हैेये !दिल्ली का मुख़्यमंत्री बनने के लिए ऐसी वैसी हरकतें मत कर !गला वला मत दबवा क्या भरोस किसी दिन कोई जोर से न  दबा दे ! 
   अरे पगले ! फैसले कभी अपनी सुविधानुसार नहीं आया करते !ये नक्सलियों की निजी पंचायतों में होता होगा कि जो अपने को पसंद न आवे उसे कह दो अस्वीकार्य है!अगर कोई ऐसे फैसलों से असहमत भी हो तो भी अपनी बात कहने के लिए कानून की शरण ले या बाया  लोकतंत्र चुनौती दे !ऊट पटांग बोल बोल कर JNU जैसे बड़े शिक्षण संस्थानों की प्रतिष्ठा के साथ क्यों खिलवाड़ करता जा रहा है यहाँ तुम अपनी लड़ाई नहीं लड़ रहे अपितु अपने विश्व प्रसिद्ध  शिक्षण संस्थान के संस्कारों का इतना गंदा परिचय दे रहे हो तुम !राजनीति करने के लिए झुट्ठौ अपना गला दबवाते घूम रहा है !अपने ऊपर क्यों करवा रहा है कागजी हमले ! दिल्ली का मुख़्यमंत्री बनना चाह रहा है क्या ?अपने ऊपर जूते मत फेंकवा ! राजनीति करनी है तो विश्व विद्यालय की बेइज्जती भी मत करा सीधे राजनीति में आ !अन्यथा लोग पढ़ने लिखने वाले छात्रों को भी तुम्हारी दृष्टि से ही देखने लगेंगे !वहाँ के पढ़ने लिखने वाले छात्रों पर रहम कर !बक्स दे वहाँ पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य और बना रहने दे वहाँ के शिक्षकों का गौरव ! तेरे बहाने ही सही वहाँ के 'कंडोमों' तक की चर्चा तो हो गई और कितनी बेइज्जती करवाना चाह रहा है JNU की !ऐसे कैसे कोई माता पिता अपने बेटा बेटियों को ऐसे शिक्षण संस्थानों में भेजना पसंद करेगा !  
     जनता की नजरों से  गिर चुके राजनेताओं के हीरो हैं PK और कन्हैया! ऐ  कन्हैेये ! दिल्ली का मुख़्यमंत्री बनने के लिए ऐसी वैसी हरकतें मत कर !गला वला मत दबवा क्या भरोस किसी दिन कोई जोर से न  दबा दे अपने ऊपर जूता मत फेंकवा !बल्कि तुम मुख्यमंत्री बनोगे तो क्या करोगे दिल्ली वालों के साथ उसके लिए ये अपना एक अलग नारा दे दे - जैसे -"   "  'न ऑड न इवेन' रोड रहेंगे बिलकुल खाली ! न गाड़ियाँ  न एक्सीडेंट ! न ट्रेफिक न ट्रेफिक व्यवस्था !रोडों  पर न आदमी न औरतें !न अपराध न बलात्कार !घर घर सामान पहुँचाएगी दिल्ली सरकार !"
    अरे झुट्ठे कन्हैेये ! किसकी लड़ाई लड़ रहे हो तुम ! क्यों भ्रम फैला रहे हो समाज में !अचानक क्यों होने लगे तेरे ऊपर हमले पहले क्यों नहीं हुए !  दिल्ली के अगले चुनावों में मुख्यमंत्री बनने के लिए ये ऊट पटांग हरकतें कर रहे हो तो साफ साफ कहो उसके लिए जहाज में जाकर गला दबवाने की क्या जरूरत !
  अब कन्हैया भी दिल्ली के मुख़्यमंत्री पद का सशक्त दावेदार है मुख्यमंत्री बनने कला उसे भी आ गई जूतेचप्पल फेंकवा रहा है अपने ऊपर !जेल घूम आया !अपने ऊपर हमले करवा लेता है ,अपने को धमकी धुमकी दिलवा लेता है !मुख़्यमंत्री बनाने वाली ऐसी बहुत हरकतें सफलता पूर्वक कर चुका है वो !
   अगली शर्दियों से अपनी लीला मंडली के साथ रजाई लेकर जंतर मंतर की रोडों पर लेटेगा ,ग़रीबों का हमदर्द दिखने के लिए कुछ दिन रात  झुग्गियों में गुजारेगा !दलितों का हमदर्द दिखने के लिए अंबेडकर साहब की मूर्ति कुछ दिन साथ लेकर घूमेगा! चोरी चोरी व्यापारियों से चंदा लेगा ! सवर्णों और पैसे वालों के प्रति घृणा पैदा करेगा ! सरकारों और नेताओं को बेईमान बताएगा अपने को आम आदमी बताएगा ऐसा करते करते बन जाएगा अगले चुनावों में मुख़्यमंत्री !बारी दिल्ली बारे दिल्ली वाले कितनी जल्दी और कैसी कैसी बातों से खुश हो जाते हैं ! 
     मोदीद्रोहियों का हीरो है कन्हैया !दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने तक वो हर हरकत करेगा जो करते कर रहा जो इसके लिए इसलिए वो वैसी हर हरकत कर रहा है ! नेता बनने के लिए जूते चप्पल स्याही आदि अपने ऊपर फेंकवा कर विरोधियों का नाम लगा देना फैशन सा बनता जा रहा है ! नेता बनने वाले ऐसे राजनीति के शौकीनों पर कसी जाए नकेल !
     कितने गंदे होते हैं वे लोग जो देश समाज एवं देश के प्रतीकों के प्रति यह जानते हुए भी कि इससे उत्तेजना फैलेगी फिर भी  ऊटपटाँग बोलकर समाज को भड़का देते हैं और बाद में माँगते हैं सिक्योरिटी !ऐसे बड़बोले नेताओं को  सिक्योरिटी मिलनी बंद हो जाए तो ये डरपोक लोग ऊटपटाँग बोलना बंद कर देंगे !अन्यथा ऐसे सरकार कहाँ कहाँ किसको किसको रखाती घूमेंगी !वो भी जनता के पैसे पर ये जनधन का दुरूपयोग है !ये गलत है जनता के साथ सरासर अन्याय है । जनता पर तेंदुए हमला कर रहे हैं महिलाओं पर अपराध बढ़ते जा रहे हैं उन्हें सिक्योरिटी नहीं है नेताओं को रखाते घूम रहे हैं सुरक्षा कर्मी !
     आजकल नेता बनने के लिए कई लोग अपने हमदर्दों से या फिर ठेका या भाड़ा देकर अपने ऊपर जूते चप्पल स्याही आदि हलकी फुल्की चीजें फेंकवाने लगे हैं उन्हें लगने लगा है कि ऐसी ही हरकतें कर के इतने कम समय में यदि कोई मुख्यमंत्री बन सकता है तो मैं क्यों नहीं !
       ऐसे लोगों को चाहिए कि जूते चप्पल चाँटे आदि मार मार कर उन्हें नेता बनाने वाले अपने वालेंटियर्स को कभी नहीं भूलना चाहिए उचित तो ये है कि मंत्री आदि बन जाने के बाद किसी बड़े ग्राउंड में ऐसे अपने वालेंटियर्स के सम्मान के लिए भव्य समारोह करना चाहिए।आपको याद होगा कि अभी कुछ वर्ष पहले एक नेता ने ऐसा किया भी था !एक आम आदमी ने बकायदा अपने वालेंटियर से खुली सभा में चाँटा मरवाकर बाद में उसके घर इस बात के लिए धन्यवाद देने  गया था कि आपके कठिन प्रयास से मीडिया कवरेज बहुत मिली !
     इससे मीडिया कवरेज पूरा मिलता है और नुक्सान कुछ भी होता नहीं है !कुलमिलाकर  जूता और स्याही फेंकने वाले होते हैं नेताओं के अक्सर अपने हमदर्द लोग !आम जनता में इतनी हिम्मत कहाँ होती है वो तो दो चांटे सहकर आ जाते हैं अपने घर !
     कानपुर का एक संस्मरण मुझे याद है बात 1995 की है मेरे परिचित एक दीक्षित जी हैं जो जिला स्तरीय राजनीति में हाथ पैर मारते मारते थक चुके थे कोई जुगत काम नहीं कर रही थी बेचारे राजनीति में कुछ बन नहीं पाए थे !मैंने एक दिन उनसे पूछ दिया कहाँ तक पहुँच पाई आपकी राजनीति ? वो बोले पहुँची तो कहीं नहीं ठहरी हुई है तो हमने कहा क्यों हाथ पैर मारो संपर्क करो लोगों से !तो उन्होंने कहा कि ये सब जितना होना था वो चुका अब तो नेता बनने का डायरेक्ट जुगाड़ करना होगा ,तो मैंने कहा कि वो कैसे होगा तो उन्होंने कहा कि धन और सोर्स है नहीं न कोई खास काबिलियत ही है अब तो राजनीति में सफल होने के लिए लीक से हट कर ही कुछ करना होगा मैंने पूछा  वो क्या ? तो उन्होंने कुछ बिंदु सुझाए - 
  • पहली बात यदि मैं ब्राह्मण न होता तो ब्राह्मणों सवर्णों को गालियाँ दे दे कर नेता बनने की सबसे लोकप्रिय विधा है जिससे बहुत लोग ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच गए ! 
  • दूसरी बात बड़े बड़े मंचों पर खड़े होकर मीडिया के सामने देश के मान्य महापुरुषों प्रतीकों को गालियाँ दी जाएँ, दूसरे बड़े नेताओं पर चोरी, छिनारा ,भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाए जाएँ ,गालियाँ दी जाएँ महापुरुषों की मूर्तियाँ या देश के प्रतीक तोड़े जाएँ जिससे बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हों ! 
  • तीसरी बात किसी सभा में मंच पर अपने ऊपर स्याही या जूता चप्पल आदि कोई भी हलकी फुल्की चीजें फेंकवाई जाएँ जिससे चोट  लगने की  सम्भावना भी न  हो  और प्रसिद्धि भी पूरी मिले इससे एक ही नुक्सान हो सकता है कि सारा अरेंजमेंट मैं करूँ और फेंकने वाले का निशाना चूक गया तो बगल में बैठा कार्यकर्ता नेता बन जाएगा मैं फिर बंचित रह जाऊँगा इस सौभाग्य से ! 
  •  चौथी बात अपने घर में जान से मारने की धमकी जैसे पत्र किसी से लिखवाए भिजवाए जाएँ किंतु पोल खुल गई  तो फजीहत ! 
  •   पाँचवीं बात अपने आगे पीछे  कहीं बम  वम लगवाए जाएँ जो अपने निकलने के पहले या बाद में फूटें किंतु बम लगाने वाला इतना एक्सपर्ट हो तब न !अन्यथा थोड़ी भी टाइमिंग गड़बड़ाई तो क्या होगा पता नहीं ! 
  •  छठी बात किसी दरोगा सिपाही से मिला जाए और उससे टाइ अप किया जाए कि वो यदि किसी चौराहे पर मुझे बेइज्जती कर करके  गिरा गिराकर कर मारे इससे मैं नेता बन जाऊँगा और उसकी तरक्की हो जायेगी !इसी प्रकार से यदि मैं किसी किसी दरोगा को मारूँ तो मैं नेता बन जाऊँगा और उसका ट्राँसफर हो जाएगा ! 
  • सातवीं बात किसी जनप्रिय विंदु को मुद्दा बनाकर खुले आम आमरण अनशन या आत्म हत्या की घोषणा की जाए किंतु कोई मनाने क्यों आएगा मेरा कोई कद तो है नहीं !
  • किसी बड़े नेता पर बलात्कार का आरोप लगाकर प्रसिद्ध हो जाए और  प्रसिद्ध होने पर राजनीति में कद बढ़ ही जाता है किंतु मैं तो ये भी नहीं कर सकता!क्योंकि मैं महिला नहीं हूँ । 
  • यदि मैं अल्प संख्यक होता तो अपने धर्म स्थल की रात बिरात कोई दीवार तोड़वा देता बाद में बनती तो बन जाती नहीं बनती तो भी क्या किंतु मैं अपने धर्म का मसीह बन बैठता लोग हमें मनाते फिरते चुनाव  लिए किंतु मैं ब्राह्मण हूँ ये भी नहीं कर सकता !

Monday, 25 April 2016

मोदी जी पर 4 आने के भी घपले घोटाले के दाग नहीं है उन्हें 'अशुभ' बता रहे हैं हजारों करोड़ के चाराचोर !

   भाजपा को चाहिए कि वो ऐसे खूसटों से बचाकर रखे मोदी जी का प्रभावी व्यक्तित्व और संघ का सम्मान एवं हिंदुत्व  का गौरव तथा अपने सांस्कृतिक प्रतीक !भाजपा में रहकर केवल अपने लिए कार्यकरने वाले लोगों की अपेक्षा भाजपा के लिए काम करने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं  की प्रतिभा के साथ साथ उनकी अतिरिक्त योग्यता को भी महत्त्व मिलना चाहिए !जो ऐसेकुतर्कोंएवंआरोपों काप्रभावीजवाब देने मेंसक्षम हों !
पार्टी के स्थानीय कार्यकर्त्ता अपनी स्वयं की छवि जनसेवक  नेता की क्यों नहीं बना पा रहे हैं जिससे उनकी निजी पहचान भी पार्टी के विकास में सहायक हो ! योग्य ,अनुभवी ,कानून विद, भाषाविद तथा शालीन  भाषा भाषी एवं पार्टी के पक्ष में तर्क पूर्ण प्रस्तुति की क्षमता रखने वाले कुशल वक्ताओं को भी पार्टी से जोड़ने की जाए अतिरिक्त पहल !विरोधी लोग मोदी जी, भाजपा ,आरएसएस आदि के विषय में कुछ भी बोल जाते हैं किंतु अपने बचाव पक्ष की तर्क पूर्ण प्रस्तुति इतनी सक्षम क्यों नहीं हो पा रही है कि अपने तर्कों से ऐसे लोगों को लगाम दी जा सके !कभी केजरीवाल ,कभी लालू ,कभी कन्हैया कभी कोई और कुछ भी बोल जाते हैं देश के लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए देश प्रधानमंत्री के लिए जिनके सम्मान की रक्षा करना लोकतंत्र पर भरोसा करने वाले हर राष्ट्रवादी स्त्री पुरुष का कर्तव्य है क्योंकि प्रधानमंत्री केवल किसी पार्टी का नहीं अपितु देश का होता है !इसी उत्साहित भावना से बचाल नेताओं का प्रतीकार किया जाए !

    मोदी जी को ही हर जगह मोर्चा सँभालना पड़ता है आखिर क्यों ?पार्टी प्रांतों में कुछ  स्थापित नेताओं के अलावा भी तो प्रतिभावान कार्यकर्ता लोग होंगे पार्टी में उन्हें भी क्यों न प्रोत्साहित किया जाए !नई भर्तियों में परिचयवाद  परिवार वाद आदि भूलकर कार्यकर्ताओं के चयन में  प्रतिभावाद  को प्राथमिकता क्यों न दी जाए ! और उनके कंधों पर रखकर विकसित किया जाए स्थानीय नया नेतृत्व  ! 

      जनप्रिय लोकाकर्षक भावों को सौम्य भाषा में प्रकट कर पाने वाले नेता  क्यों नहीं पनपने  रहे हैं !आज टीवी चैनलों में भाजपा का पक्ष रखने वाले लोग घंटे घंटे भर की बहसों में कभी ये नहीं समझा पा रहे होते हैं कि आखिर वो क्या कहने को भेजे गए थे !क्या  कहना चाह रहे हैं और कह क्या रहे हैं पूरी पूरी बहसों में भाजपाई प्रवक्ताओं के चेहरे से जनाकर्षक भाव गायब होते हैं सब कुछ बनावटी सा लगता है उन्हें अपने पुराने नेताओं से क्यों कुछ सीखना नहीं चाहिए !

   आज भी मोदी जी अपनी बातों से जन भावनाओं के विशाल समुद्र को मथते हुए अपार भीड़ के हृदयों तक उतर जाते हैं अटल अडवाणी जोशी जी आदि और भी श्रद्धेय लोग बहस करते समय या भाषण करते समय हृदय  पक्ष  को भी साथ ले जाया करते थे जिससे उनकी बातें लोगों के हृदयों तक उतर जाया करती थीं तब होती थी सजीव बहस और उसका पड़ता था लोगों पर प्रभाव !आज केजरीवाल भी ऐसा करने में सफल हैं तो भाजपा की नई पीढ़ी का ध्यान आखिर है किधर ! केवल अपने से बड़े नेताओं का नाम ले लेकर चुनाव जीतने का अपरिपक्व खेल आखिर कब तक चलेगा !

     दिल्ली के चुनावों में मोदी जी को यदि इसप्रकार से अड़ाया न गया होता तो कम से कम उनकी शाख बचाई जा सकती थी जिनके बल पर कार्यकर्ता आज भी उत्साहित किया जा सकता है किन्तु आज दिल्ली का भाजपाई कार्यकर्त्ता न केवल निरुत्साहित है अपितु वो सत्ता से चिपकना चाहता है उसे  बचा कर रखना भाजपा के लिए बहुत जरूरी है जो केवल नैतिकता के आधार पर ही संभव है !

     बिहार में एकबार फिर दाँव पर लगाया गया मोदी जी के उसी व्यक्तित्व का !स्थानीय नेतृत्व के निष्प्रभावी होने से मोदी जी का प्रभावी व्यक्तित्व भी उतना असर नहीं छोड़ पाता है जितना होना चाहिए !  बंधुओ !भाजपा की दिल्ली पराजय का कारण 'आप' न होकर अपितु  भाजपा का अपना उदासीन नेतृत्व था !जिसकी कमजोरी के कारण ही दिल्ली भाजपा पहले भी लगातार कई चुनाव हार चुकी थी । 

  अब भी कई ऐसे ही प्रांतों में प्रतिभावान लोगों को प्रस्तुत ही नहीं होने दिया जाता और प्रभावी रूप से कुछ परोस पाने  की उनकी अपनी क्षमता नहीं होती है! इसीलिए अनावश्यक रूप से बारबार लेना पड़ता है मोदी जी का नाम !जिसकी वहाँ जरूरत ही नहीं होती है ।  

     भारतीय जनता पार्टी में भी आज कार्यकर्ताओं की भर्ती का आधार परिवारवाद परिचयवाद नेतासमूहवाद चाटुकारितावाद आदि हावी होते देखा जा रहा है ऐसी परिस्थिति में योग्य विद्वान अनुभवी सम्बद्ध विषयों की जानकारी रखने वाले अपनी बात को समझाने की क्षमता रखने वाले कार्यकर्ताओं का नितांत अभाव होता जा रहा है पार्टी की विचारधारा को समाज की स्वीकरणीय शैली में परोसने की शैली ही समाप्त होती जा रही है जो भाजपा की मुख्य पहचान रही है । नेताओं के पास अपनी बातों के समर्थन में न कोई ऐतिहासिक उदाहरण होते हैं न कोई गद्य गरिमा न कोई भाषा का लालित्य न कोई हाव भाव ! आजकल टीवी चैनलों पर घंटों चलने वाली बहसों  में भाजपा का पक्ष रखने वाले लोगों की भाषा में जनता को परोसा जाने वाला साधारणीकरण बिलकुल गायब होता जा रहा है, बहसों में व्यक्तिवैचित्र्यवाद के आधार पर केवल समय पार किया जाता है वही कुछ कानूनी आँकड़े बार बार पढ़कर रिपीट किए जा रहे होते हैं कई बार तो एंकर पूछ कुछ रहा होता है उत्तर कहीं और का होता है कई बार तो उत्तर देने के लिए उद्धृत किया जाने वाला उदाहरण इतना विस्तारित  एवं अरुचिकर होता है कि मूलबात  से उसका कोई सम्बन्ध ही नहीं रह  जाता है इससे मूल बात एवं उदाहरण दोनों भटक जाते हैं इस घालमेल से  जनता तक कुछ पहुँच ही नहीं पाता है । 
   श्रोताओं में अगर कुछ पढ़े लिखे लोग समझ भी पा रहे होंगे तो उनकी बातों से वो सहमत नहीं होते पत्रकार हों या विपक्ष के लोग वो आपकी सही बात भी क्यों टिकने देंगे और आम जनता आपकी बात समझ नहीं पा रही होती है इसलिए आम जनता के हृदयों तक पहुँचने के लिए भाजपा को हर जगह मोदी जी की जरूरत पड़ती है किंतु मोदी जी अब केवल मोदी जी ही नहीं हैं अपितु वो देश के प्रधानमन्त्री भी हैं और सत्ता में होने के कारण उनसे दस काम अच्छे होंगे तो एक बिगड़ भी सकता है जिसे विपक्ष के लोग जनता के सामने परोसने लगते हैं उसको दबाने के लिए जितना समय प्रांतों में मोदी जी को देना जरूरी होता है अब उतना वो वहाँ दे नहीं सकते उनकी तमाम मजबूरियाँ हैं इसीलिए भाजपा दिल्ली  चुनावों में सहज नहीं हो पाई  !
    जिन प्रदेशों में वहाँ के प्रांतीय नेता बिना मोदी जी के बिना भी अपनी क्षमता के आधार पर जनता से हृदय के सम्बन्ध बना पाते हैं वहाँ वो अपने पुरुषार्थ से पार्टी की पहचान बनाने में सफल होते हैं ! वहाँ पार्टी की स्वाभाविक विजय होती है किंतु कुछ बाहरी नेता या अभिनेताओं के बलपर नहीं जीते जा सकते चुनाव अब हर किसी को विकास और विकास के लिए उसकी बातों पर विश्वास चाहिए । इसलिए जनता से अच्छे लोगों को लेकर उनके समर्पण ज्ञान गुण गौरव अनुभव आदि का भी उपयोग किया जाना चाहिए !

अरे कन्हैेये !अपने ऊपर क्यों करवा रहा है कागजी हमले ! झुट्ठौ क्यों दबवा रहा है अपना गला ! दिल्ली का मुख़्यमंत्री बनना चाह रहा है क्या ?

जनता की नजरों से  गिर चुके राजनेताओं के हीरो हैं PK और कन्हैया! 
      ऐ  कन्हैेये ! दिल्ली का मुख़्यमंत्री बनने के लिए ऐसी वैसी हरकतें मत कर !गला वला मत दबवा क्या भरोस किसी दिन कोई जोर से न  दबा दे अपने ऊपर जूता मत फेंकवा !बल्कि तुम मुख्यमंत्री बनोगे तो क्या करोगे दिल्ली वालों के साथ उसके लिए ये अपना एक अलग नारा दे दे - जैसे -"   "  'न ऑड न इवेन' रोड रहेंगे बिलकुल खाली ! न गाड़ियाँ  न एक्सीडेंट ! न ट्रेफिक न ट्रेफिक व्यवस्था !रोडों  पर न आदमी न औरतें !न अपराध न बलात्कार !घर घर सामान पहुँचाएगी दिल्ली सरकार !"
    अरे झुट्ठे कन्हैेये ! किसकी लड़ाई लड़ रहे हो तुम ! क्यों भ्रम फैला रहे हो समाज में !अचानक क्यों होने लगे तेरे ऊपर हमले पहले क्यों नहीं हुए !  दिल्ली के अगले चुनावों में मुख्यमंत्री बनने के लिए ये ऊट पटांग हरकतें कर रहे हो तो साफ साफ कहो उसके लिए जहाज में जाकर गला दबवाने की क्या जरूरत !
  अब कन्हैया भी दिल्ली के मुख़्यमंत्री पद का सशक्त दावेदार है मुख्यमंत्री बनने कला उसे भी आ गई जूतेचप्पल फेंकवा रहा है अपने ऊपर !जेल घूम आया !अपने ऊपर हमले करवा लेता है ,अपने को धमकी धुमकी दिलवा लेता है !मुख़्यमंत्री बनाने वाली ऐसी बहुत हरकतें सफलता पूर्वक कर चुका है वो !
   अगली शर्दियों से अपनी लीला मंडली के साथ रजाई लेकर जंतर मंतर की रोडों पर लेटेगा ,ग़रीबों का हमदर्द दिखने के लिए कुछ दिन रात  झुग्गियों में गुजारेगा !दलितों का हमदर्द दिखने के लिए अंबेडकर साहब की मूर्ति कुछ दिन साथ लेकर घूमेगा! चोरी चोरी व्यापारियों से चंदा लेगा ! सवर्णों और पैसे वालों के प्रति घृणा पैदा करेगा ! सरकारों और नेताओं को बेईमान बताएगा अपने को आम आदमी बताएगा ऐसा करते करते बन जाएगा अगले चुनावों में मुख़्यमंत्री !बारी दिल्ली बारे दिल्ली वाले कितनी जल्दी और कैसी कैसी बातों से खुश हो जाते हैं ! 
     मोदीद्रोहियों का हीरो है कन्हैया !दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने तक वो हर हरकत करेगा जो करते कर रहा जो इसके लिए इसलिए वो वैसी हर हरकत कर रहा है ! नेता बनने के लिए जूते चप्पल स्याही आदि अपने ऊपर फेंकवा कर विरोधियों का नाम लगा देना फैशन सा बनता जा रहा है ! नेता बनने वाले ऐसे राजनीति के शौकीनों पर कसी जाए नकेल !
     कितने गंदे होते हैं वे लोग जो देश समाज एवं देश के प्रतीकों के प्रति यह जानते हुए भी कि इससे उत्तेजना फैलेगी फिर भी  ऊटपटाँग बोलकर समाज को भड़का देते हैं और बाद में माँगते हैं सिक्योरिटी !ऐसे बड़बोले नेताओं को  सिक्योरिटी मिलनी बंद हो जाए तो ये डरपोक लोग ऊटपटाँग बोलना बंद कर देंगे !अन्यथा ऐसे सरकार कहाँ कहाँ किसको किसको रखाती घूमेंगी !वो भी जनता के पैसे पर ये जनधन का दुरूपयोग है !ये गलत है जनता के साथ सरासर अन्याय है । जनता पर तेंदुए हमला कर रहे हैं महिलाओं पर अपराध बढ़ते जा रहे हैं उन्हें सिक्योरिटी नहीं है नेताओं को रखाते घूम रहे हैं सुरक्षा कर्मी !
     आजकल नेता बनने के लिए कई लोग अपने हमदर्दों से या फिर ठेका या भाड़ा देकर अपने ऊपर जूते चप्पल स्याही आदि हलकी फुल्की चीजें फेंकवाने लगे हैं उन्हें लगने लगा है कि ऐसी ही हरकतें कर के इतने कम समय में यदि कोई मुख्यमंत्री बन सकता है तो मैं क्यों नहीं !
       ऐसे लोगों को चाहिए कि जूते चप्पल चाँटे आदि मार मार कर उन्हें नेता बनाने वाले अपने वालेंटियर्स को कभी नहीं भूलना चाहिए उचित तो ये है कि मंत्री आदि बन जाने के बाद किसी बड़े ग्राउंड में ऐसे अपने वालेंटियर्स के सम्मान के लिए भव्य समारोह करना चाहिए।आपको याद होगा कि अभी कुछ वर्ष पहले एक नेता ने ऐसा किया भी था !एक आम आदमी ने बकायदा अपने वालेंटियर से खुली सभा में चाँटा मरवाकर बाद में उसके घर इस बात के लिए धन्यवाद देने  गया था कि आपके कठिन प्रयास से मीडिया कवरेज बहुत मिली !
     इससे मीडिया कवरेज पूरा मिलता है और नुक्सान कुछ भी होता नहीं है !कुलमिलाकर  जूता और स्याही फेंकने वाले होते हैं नेताओं के अक्सर अपने हमदर्द लोग !आम जनता में इतनी हिम्मत कहाँ होती है वो तो दो चांटे सहकर आ जाते हैं अपने घर !
     कानपुर का एक संस्मरण मुझे याद है बात 1995 की है मेरे परिचित एक दीक्षित जी हैं जो जिला स्तरीय राजनीति में हाथ पैर मारते मारते थक चुके थे कोई जुगत काम नहीं कर रही थी बेचारे राजनीति में कुछ बन नहीं पाए थे !मैंने एक दिन उनसे पूछ दिया कहाँ तक पहुँच पाई आपकी राजनीति ? वो बोले पहुँची तो कहीं नहीं ठहरी हुई है तो हमने कहा क्यों हाथ पैर मारो संपर्क करो लोगों से !तो उन्होंने कहा कि ये सब जितना होना था वो चुका अब तो नेता बनने का डायरेक्ट जुगाड़ करना होगा ,तो मैंने कहा कि वो कैसे होगा तो उन्होंने कहा कि धन और सोर्स है नहीं न कोई खास काबिलियत ही है अब तो राजनीति में सफल होने के लिए लीक से हट कर ही कुछ करना होगा मैंने पूछा  वो क्या ? तो उन्होंने कुछ बिंदु सुझाए - 
  • पहली बात यदि मैं ब्राह्मण न होता तो ब्राह्मणों सवर्णों को गालियाँ दे दे कर नेता बनने की सबसे लोकप्रिय विधा है जिससे बहुत लोग ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच गए ! 
  • दूसरी बात बड़े बड़े मंचों पर खड़े होकर मीडिया के सामने देश के मान्य महापुरुषों प्रतीकों को गालियाँ दी जाएँ, दूसरे बड़े नेताओं पर चोरी, छिनारा ,भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाए जाएँ ,गालियाँ दी जाएँ महापुरुषों की मूर्तियाँ या देश के प्रतीक तोड़े जाएँ जिससे बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हों ! 
  • तीसरी बात किसी सभा में मंच पर अपने ऊपर स्याही या जूता चप्पल आदि कोई भी हलकी फुल्की चीजें फेंकवाई जाएँ जिससे चोट  लगने की  सम्भावना भी न  हो  और प्रसिद्धि भी पूरी मिले इससे एक ही नुक्सान हो सकता है कि सारा अरेंजमेंट मैं करूँ और फेंकने वाले का निशाना चूक गया तो बगल में बैठा कार्यकर्ता नेता बन जाएगा मैं फिर बंचित रह जाऊँगा इस सौभाग्य से ! 
  •  चौथी बात अपने घर में जान से मारने की धमकी जैसे पत्र किसी से लिखवाए भिजवाए जाएँ किंतु पोल खुल गई  तो फजीहत ! 
  •   पाँचवीं बात अपने आगे पीछे  कहीं बम  वम लगवाए जाएँ जो अपने निकलने के पहले या बाद में फूटें किंतु बम लगाने वाला इतना एक्सपर्ट हो तब न !अन्यथा थोड़ी भी टाइमिंग गड़बड़ाई तो क्या होगा पता नहीं ! 
  •  छठी बात किसी दरोगा सिपाही से मिला जाए और उससे टाइ अप किया जाए कि वो यदि किसी चौराहे पर मुझे बेइज्जती कर करके  गिरा गिराकर कर मारे इससे मैं नेता बन जाऊँगा और उसकी तरक्की हो जायेगी !इसी प्रकार से यदि मैं किसी किसी दरोगा को मारूँ तो मैं नेता बन जाऊँगा और उसका ट्राँसफर हो जाएगा ! 
  • सातवीं बात किसी जनप्रिय विंदु को मुद्दा बनाकर खुले आम आमरण अनशन या आत्म हत्या की घोषणा की जाए किंतु कोई मनाने क्यों आएगा मेरा कोई कद तो है नहीं !
  • किसी बड़े नेता पर बलात्कार का आरोप लगाकर प्रसिद्ध हो जाए और  प्रसिद्ध होने पर राजनीति में कद बढ़ ही जाता है किंतु मैं तो ये भी नहीं कर सकता!क्योंकि मैं महिला नहीं हूँ । 
  • यदि मैं अल्प संख्यक होता तो अपने धर्म स्थल की रात बिरात कोई दीवार तोड़वा देता बाद में बनती तो बन जाती नहीं बनती तो भी क्या किंतु मैं अपने धर्म का मसीह बन बैठता लोग हमें मनाते फिरते चुनाव  लिए किंतु मैं ब्राह्मण हूँ ये भी नहीं कर सकता !

Friday, 22 April 2016

केजरीवाल जी को चुनौती है वो सिद्ध करें कि 'ऑडइवन' से दिल्ली वाले तंग कम और खुश ज्यादा हैं !

स्कूलों में राजनीति !
स्कूलोंमें नेता दर्शन
       पोस्टर देखकर ये पता लगापाना कठिन हो रहा है कि 'ऑडइवन' का प्रचार करने के लिए केजरीवाल जी की फोटो लगाई गई है या केजरीवाल जी के चित्रों का प्रचार करने के लिए 'ऑडइवन' योजना बनाई गई है ! 
    अब तो बहुत लोग  कहने भी लगे हैं कि दिल्ली सरकार में केजरीवाल जी के चित्रों को लगाने का बहाना खोजने के लिए बनाई जाती हैं 'ऑडइवन' जैसी योजनाएँ  !    
     कुल मिलाकर दिल्ली सरकार में बैठे नेता नौसिखिए हैं इन्हें केवल निंदा करना आता है इसलिए इनकी बौद्धिक मदद करने के लिए विपक्षी दलों के अनुभवी नेताओं को आगे आना चाहिए अन्यथा ये पाँच साल ऐसे ही पार कर देंगे ! विपक्ष के वो अनुभवी लोग सरकार को प्रचार प्रसार के लिए 'ऑडइवन'जैसी बहु बहुखर्चीली निरर्थक योजनाओं को रोकने के लिए बाध्य करें !जिससे 'ऑडइवन'जैसी योजनाओं के प्रचार प्रसार पर जनता के विकास के लिए जनता के द्वारा टैक्स रूप में प्राप्त धन का दुरूपयोग रोका जा सके ! जनता के धन का सदुपयोग तथा जनता के हितों की रक्षा करना और जनहित के काम करने के लिए सरकारों को बाध्य करना ये विपक्ष की अपनी भी जिम्मेदारी है !
    'ऑडइवन'में दिल्लीसरकार ने प्रशासन और जनता से लेकर मीडिया तक को उलझा रखा है इस योजना के न कोई तर्क है न कोई परिणाम !केवल ऐसी योजनाओं के प्रचार में पैसा फूँका जा रहा है !टीवी चैनलों से लेकर बैनरों पोस्टरों तक हर जगह 'ऑडइवन'का केवल प्रचार है इसमें पैसे क्या नहीं लग रहे होंगे!आखिर वो पैसे हैं तो  दिल्ली की जनता के जो दिल्ली के विकास के लिए देती है जनता !वही जनता परेशान है तो लानत है ऐसी  योजनाओं को !
   दिल्ली सरकार में बैठे नेता यदि नौसिखिए हैं तो ऐसे नेताओं की बौद्धिक मदद करने के लिए विपक्षी दलों के अनुभवी नेताओं को आगे आना चाहिए और इन्हें समझाना चाहिए कि जनहितकारी योजनाओं को लागू करने का मजा ही तभी है जब जनता तंग न हो ! इतनी बड़ी मेट्रो बनी जनता दुखी नहीं हुई किंतु 'ऑडइवन'से दुखी है ऊपर से चार लफोडे टीवी चैनलों के सामने आकर बोल जाते हैं कि'ऑडइवन'से दिल्ली की जनता तो खुश है पता नहीं इस ख़ुशी के सैम्पल कहाँ से उठाते हैं ये लोग या फिर झूठ बोलते हैं । 
    'ऑडइवन' से धनी लोगों को तो कोई ख़ास दिक्कत नहीं वो गाड़ियाँ बढ़ा लेते हैं किंतु मध्यमवर्गीय लोग जिन्होंने लोन पर गाड़ियाँ ली हुई हैं जिसका ब्याज आज भी भर रहे हैं वे उन्हें बिना गाड़ी वाला बना रही गई दिल्ली सरकार   !
      विपक्ष को चाहिए कि वो सरकार को बाध्य करे कि आम आदमी पार्टी के नेता अपने प्रचार प्रसार के लिए ऐसी निरर्थक बहु बहुखर्चीली योजनाएँ रोकें !'ऑडइवन'जैसी योजनाओं के प्रचार प्रसार पर जनता के विकास के लिए जनता के द्वारा टैक्स रूप में प्राप्त धन का दुरूपयोग रोका जा सके !
      जनता के धन का सदुपयोग तथा जनता के हितों की रक्षा करना और जनहित के काम करने के लिए सरकारों को बाध्य करना ये विपक्ष की अपनी भी जिम्मेदारी है !     दिल्ली को जाम मुक्त बनाने के लिए रोडों पर से अतिक्रमण हटाना बहुत आवश्यक है कई जगह तो जितनी चौड़ी रोडें कागजों में हैं मौके पर उसकी आधी चौथाई ही बची हैं बाक़ी पर लोगों ने कब्ज़ा कर रखा  है कई जगह रोडें टूटी पड़ी हैं पूर्वी दिल्ली की कुछ बस्तियां नक्सा पास होने के बाद भी अतिक्रमण के कारण ऐसी हैं कि किसी को अचानक किसी बड़े अस्पताल की जरूरत पड़े तो समय से पहुँच पाना असम्भव होगा !इसमें उनका क्या दोष है ये तो सरकारों की लापरवाही है । 
       कई जगह चौराहों पर जाम लगता जाएगा भीड़ बढ़ती जाएगी किंतु वहाँ या तो पुलिस होती नहीं या उसे मतलब नहीं होता है  देखा करती है कई बार तो बहुत बड़े बड़े जाम के इतने छोटे छोटे कारण होते हैं कि कोई जरा से इशारा कर दे तो जाम खुल जाए किंतु इतना करने वाले लोग भी उपलब्ध नहीं हैं !पुलिस वाले सामने खड़े होते हैं । 
    ऐसी जगहों पर 'ऑडइवन' के समय जाम नहीं लगने पाता क्योंकि इन दिनों में प्रशासन सतर्क रहता है वालेंटियर अपनी सेवाएँ देते हैं मीडिया भी सतर्क रहता है इसलिए जाम लगाने वाले लोग भी चौकन्ने रहते हैं ऐसे  कारणों से यदि थोड़ा  प्रदूषण घट भी जाए तो सरकार अपनी पीठ थपथपाने लगती है जबकि 'ऑडइवन' के बिना भी रोडों पर यदि ऐसी  सतर्कता बरती जाए तो बिना 'ऑडइवन' के भी जाम एवं प्रदूषण पर 'ऑडइवन'जैसा नियंत्रण तो किया ही जा सकता है ।
    'ऑडइवन' जैसी सरकारी लीलाओं से आज हर वर्ग परेशान है जिनका संबंध प्रदूषण घटाने से कम अपनी पार्टी नेताओं के चेहरे चमकाने से ज्यादा है । दिल्ली के लोगों की व्यस्ततम जिंदगी में 'ऑडइवन'नामक एक नया बखेड़ा खड़ा कर रही है दिल्ली सरकार जिससे दिल्ली की जनता का कोई विशेष भला होते नहीं दिखता !
     
   दिल्ली के स्कूलों में घुसाई जा रही है राजनीति !स्कूलों को आत्म विज्ञापन का माध्यम बनाया जा रहा है एक स्कूल में भारी भरकम चार पोस्टर देखे उनमें जिन नेताओं के चित्र हैं क्या उन्हें शिक्षा का देवता मान लिया जाए !आखिर उनके चित्रों का शिक्षा से क्या संबंध है ?ये लोग नेता हैं क्या ये सच नहीं है नेताओं के प्रति समाज में इतना निरादर है अविश्वास है फिर भी सुकोमल मानस बच्चों के सामने उन्हीं नेताओं के चित्र परोसे जाएँ उन्हें नेता देखने के लिए मजबूर किया जाए ये शिक्षा जगत के लिए और बच्चों के भविष्य  के लिए कितना उचित है ! शिक्षा संबंधी विज्ञापनों में स्कूलों छात्रों शिक्षकों के
शिक्षा में चौधराहट ! 
शिक्षा संबंधी चित्र होते उनमें शिक्षा जगत से जुड़े कुछ प्रेरक महापुरुषों के चित्र दिए जा सकते थे शिक्षा और संस्कारों से जुड़े कुछ प्रेरक वाक्य लिखे जा सकते थे जिन्हें देखकर शिक्षा का वातावरण कुछ सुधरता किंतु वहाँ अरविंद जी और मनीष जी के चित्रों की क्या भूमिका ये दोनों न तो शिक्षक हैं और न ही  छात्र !जो हैं जहाँ हैं वहाँ उनका सम्मान है किंतु शिक्षण संस्थानों का प्रयोग अपने प्रचार के लिए करना ठीक नहीं है !सरकारी सभी योजनाओं में कुछ कमियाँ  तो रह ही जाती हैं उसी तरह इन योजनाओं में भी रही होंगी !विपक्ष यदि उनका उसी तरह प्रतीकार करना चाहे तो वो भी इन्हीं जगहों पर इनका खंडन करते हुए पोस्टर लगा सकता है क्या ?यदि नहीं तो सत्ता पक्ष क्यों ?क्या वो स्कूलों या ऐसी सरकारी जगहों का  मालिक है !
     इसी प्रकार से अन्य विभागों से संबंधित विज्ञापनों में भी किया जा रहा है किंतु ये ढंग तो ठीक नहीं है कि जब आपको अपने चित्रों वाले पोस्टरों पर धूल मिट्टी लगी दिखने लगती है तो आप किसी योजना का नाम लेकर उसी के बहाने अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं और अपने बैनरों पोस्टरों से पाट देते हैं सारी दिल्ली !

   ऐसे 'ऑडइवनों' से तो हर विभाग की असफलता छिपाई जा सकती है जैसे महँगाई बढ़े तो एक एक दिन छोड़कर खाना शुरू करा दिया जाएगा !स्कूलों में बच्चों की भीड़ें कम करने के लिए बच्चों की डेट आफ बर्थ में फिट कर दिया जाएगा  'ऑडइवन' किस दिन किस बच्चे को स्कूल जाना है बता दिया जाएगा ! दिल्ली में यदि बाढ़ आ जाएगी तो दिल्ली वालों के पेशाब करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा क्या ?
  वस्तुतः  दिल्ली में'ऑड इवन 'योजना तो दिल्ली  सरकार के परिवहन विभाग के फेल होने की निशानी है जो दिल्ली वालों को उचित रोड मुहैया नहीं करा सकी ! ये बुद्धू लोग उसका भी उत्सव मना रहे हैं !
     दिल्ली की जनता के द्वारा दिल्ली के विकास के लिए दिए गए धन से विज्ञापन बनाने यदि इतने ही जरूरी थे पैसा इतना ही इफरात था तो उसमें जिसका पैसा लगता है या जिस विषय से संबंधित आफिस आदि होता है चित्र उसके लगने चाहिए नेताओं के क्यों ?
         आप सरकार के द्वारा चलाई जा रही 'ऑड इवेन' योजना भी तो इसी मानसिकता की प्रतीक है!इसका उद्देश्य यदि रोडों पर बाहनों की संख्या घटाना है तो स्वच्छता अभियान की तरह ही नैतिक निवेदन भी तो किया जा सकता था अन्यथा किस किस विषय में जनता पर थोपा जाएगा 'ऑड इवन" भीड़ तो हर जगह है और जन संख्या है तो भीड़ तो होगी ही इसका एक ही रास्ता है या तो संसाधन बढ़ाए जाएँ या फिर भीड़ घटाई जाए !
    केजरीवाल जी !अपने चित्रों के प्रचार पसार पर जो भारी भरकम धनराशि आप खर्च  करते हैं वो न आपके पिता जी की कमाई है और न ही आपकी !ये धन दिल्ली वाले दिल्ली का विकास करने के लिए सरकारों को देते हैं यदि सरकारों में बैठे लोग उस धन को उन लंबे चौड़े बड़े बड़े पोस्टरों को बनाने और चिपकाने पर खर्च करने लगें जो केवल आपके चित्रों को घर घर और जन जन तक पहुँचाने के लिए लगाए जाते हों  !
      हे केजरीवाल जी !आत्म विज्ञापनों में सरकारी नेताओं के द्वारा फूँकी जाने वाली ये दिल्ली वालों की धनराशि के विषय में क्या आपको पता है कि दिल्ली वाले कितनी मेहनत से अपना खून जलाकर और पसीना बहाकर कमाते हैं किंतु दिल्ली वालों को आप अपना नहीं समझते इसीलिए उनके पैसे के विज्ञापनों में बर्बाद होने से आपको दर्द नहीं होता है !
     केजरीवाल जी ! जरा सोचिए आपने अपने पिता जी कमाई से एक कलेंडर भी बनवाकर पहले कभी लगाया था अपने नाम और चित्र का ! आपने शिक्षा में इतनी बड़ी सफलता हासिल की थी या इतनी बड़ी पोस्ट मिली थी तब आपको इतनी ख़ुशी कभी क्यों नहीं हुई कि पोस्टर बनवाकर लगवा लेते ! तो आज दिल्ली वाले भी संतोष कर लेते कि तुम बचपन से ही पोस्टरों के शौकीन रहे हो !किंतु पहले ऐसा हुआ नहीं अब फ्री की सरकारी सम्पदा देखकर यदि इसे बर्बाद करने के लिए मन मचल ही  पड़ा है तो ये ढंग ठीक है क्या ?दिल्ली वालों के विकास का धन आज फ्री का लग रहा है आपको !
   केजरीवाल जी !यदि तब पोस्टर नहीं लगे तो नुक्सान क्या हुआ ?आज क्या लोगों को पता नहीं है कि तुम क्या हो और क्या थे ! जब बिना पोस्टरों प्रचारों के तुम्हारे विषय में सबको सबकुछ पता हो गया तो दिल्ली वालों के साथ जो भी अच्छा बुरा करोगे वो भी दुनियाँ  को पता हो ही जाएगा उसके लिए इतनी आतुरता क्यों ?माना कि दिल्ली वालों को आप अपना नहीं मानते इसलिए उनकी परेशानियों और पैसों से आपको लगाव नहीं है और पिता जी आपके अपने थे इसलिए उनके पैसे से लगाव था इसीलिए उनकी कमाई को बर्बाद नहीं किया और दिल्ली वालों की कर रहे हो !
      केजरीवाल जी !यदि आप कहें कि और लोग भी तो ऐसा करते हैं तो याद रखिए करते सब हैं किंतु इतना नहीं करते और इतने भोड़े ढंग से नहीं करते और यदि करते भी हों तो ये भी सोचिए कि इन्हीं कारणों से उनकी तुम निंदा किया करते थे तभी तो दिल्ली वाले तुमपर खुश हुए कि चलो ये सादगी पसंद ईमानदार है इसलिए ऐसा नहीं करेगा किंतु तुम भी यदि सबकुछ वैसा ही करने लगे जिसके लिए नेताओं की बुराई किया करते थे !तो इसे दिल्ली की जनता अपने साथ हुई धोखा धड़ी ही मानेगी !
      केजरीवाल जी !पोस्टरों से अच्छाई बुराई को कुछ उछाला तो जा सकता है किंतु बनाया नहीं जा सकता है !यदि ऐसा हो सकता होता तो सारे गंदे और गलत अपराधी लोग अपने विषय में अच्छी बातें लिखकर पोस्टर लगवा दिया करते और उन्हें लोग अच्छा समझने  लगते !

                       


स्कूलों में राजनीति !

Wednesday, 20 April 2016

'केजरीवाल' हैं या ' दिल्ली के देवता' ! चौराहों आफिसों स्कूलों तक में लगे हैं उनके चित्र !

स्कूलों में राजनीति !
'ऑड इवन' योजना तो कामचोर अकर्मण्य सरकारों की हर असफलता पर अपना मुख छिपानेका घोसला मात्र है !
    दिल्ली सरकार की योजनाएँ तो बहाना हैं मुख्य काम तो 'केजरीवाल जी '  के चित्र चिपकाना है योजनाओं की आड़ में  केवल बहाने खोज खोजकर लगाए जा रहे हैं केजरीवाल के चित्र ! 
   दिल्ली के स्कूलों में घुसाई जा रही है राजनीति !स्कूलों को आत्म विज्ञापन का माध्यम बनाया जा रहा है इसी प्रकार से मैंने झील बस स्टैंड के स्कूल में ऐसे ही भारी भरकम चार पोस्टर देखे उनमें जिन नेताओं के चित्र हैं क्या उन्हें शिक्षा का देवता मान लिया जाए !आखिर उनके चित्रों का शिक्षा से क्या संबंध है ?ये लोग नेता हैं क्या ये सच नहीं है नेताओं के प्रति समाज में इतना निरादर है अविश्वास है फिर भी सुकोमल मानस बच्चों के सामने उन्हीं नेताओं के चित्र परोसे जाएँ उन्हें नेता देखने के लिए मजबूर किया जाए ये शिक्षा जगत के लिए और बच्चों के भविष्य  के लिए कितना उचित है ! शिक्षा संबंधी विज्ञापनों में स्कूलों छात्रों शिक्षकों के
शिक्षा में चौधराहट ! 
शिक्षा संबंधी चित्र होते उनमें शिक्षा जगत से जुड़े कुछ प्रेरक महापुरुषों के चित्र दिए जा सकते थे शिक्षा और संस्कारों से जुड़े कुछ प्रेरक वाक्य लिखे जा सकते थे जिन्हें देखकर शिक्षा का वातावरण कुछ सुधरता किंतु वहाँ अरविंद जी और मनीष जी के चित्रों की क्या भूमिका ये दोनों न तो शिक्षक हैं और न ही  छात्र !जो हैं जहाँ हैं वहाँ उनका सम्मान है किंतु शिक्षण संस्थानों का प्रयोग अपने प्रचार के लिए करना ठीक नहीं है !सरकारी सभी योजनाओं में कुछ कमियाँ  तो रह ही जाती हैं
उसी तरह इन योजनाओं में भी रही होंगी !विपक्ष यदि उनका प्रतीकार करना चाहे तो वो भी इन्हीं जगहों पर इनका खंडन करते हुए पोस्टर लगा सकता है क्या ?यदि नहीं तो सत्ता पक्ष क्यों ?क्या वो स्कूलों या ऐसी सरकारी जगहों का  मालिक है !
     इसी प्रकार से अन्य विभागों से संबंधित विज्ञापनों में भी किया जा रहा है किंतु ये ढंग तो ठीक नहीं है कि जब आपको अपने चित्रों वाले पोस्टरों पर धूल मिट्टी लगी दिखने लगती है तो आप किसी योजना का नाम लेकर उसी के बहाने अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं और अपने बैनरों पोस्टरों से पाट देते हैं सारी दिल्ली !

   ऐसे 'ऑडइवनों' से तो हर विभाग की असफलता छिपाई जा सकती है जैसे महँगाई बढ़े तो एक एक दिन छोड़कर खाना शुरू करा दिया जाएगा !स्कूलों में बच्चों की भीड़ें कम करने के लिए बच्चों की डेट आफ बर्थ में फिट कर दिया जाएगा  'ऑडइवन' किस दिन किस बच्चे को स्कूल जाना है बता दिया जाएगा ! दिल्ली में यदि बाढ़ आ जाएगी तो दिल्ली वालों के पेशाब करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा क्या ?
  वस्तुतः  दिल्ली में'ऑड इवन 'योजना तो दिल्ली  सरकार के परिवहन विभाग के फेल होने की निशानी है जो दिल्ली वालों को उचित रोड मुहैया नहीं करा सकी ! ये बुद्धू लोग उसका भी उत्सव मना रहे हैं !
     दिल्ली की जनता के द्वारा दिल्ली के विकास के लिए दिए गए धन से विज्ञापन बनाने यदि इतने ही जरूरी थे पैसा इतना ही इफरात था तो उसमें जिसका पैसा लगता है या जिस विषय से संबंधित आफिस आदि होता है चित्र उसके लगने चाहिए नेताओं के क्यों ?
         आप सरकार के द्वारा चलाई जा रही 'ऑड इवेन' योजना भी तो इसी मानसिकता की प्रतीक है!इसका उद्देश्य यदि रोडों पर बाहनों की संख्या घटाना है तो स्वच्छता अभियान की तरह ही नैतिक निवेदन भी तो किया जा सकता था अन्यथा किस किस विषय में जनता पर थोपा जाएगा 'ऑड इवन" भीड़ तो हर जगह है और जन संख्या है तो भीड़ तो होगी ही इसका एक ही रास्ता है या तो संसाधन बढ़ाए जाएँ या फिर भीड़ घटाई जाए !
      'केजरीवाल जी ! 'आप तो 'ऑड इवन"योजना बनाएँगे तब प्रचार !जब लागू करेंगे तब प्रचार ! रोज बयान देंगे तब प्रचार !और बाद में योजना के सफल होने का उत्सव मनाया जाएगा तब प्रचार !कुल मिलाकर इस योजना का उद्देश्य ही आपके चित्रों का प्रचार करने के लिए बैनर पोस्टर लगाना है । यदि आपकी नियत साफ होती और आप वास्तव में दिल्ली को जाम की समस्या से मुक्ति दिलाना चाहते तो दिल्ली की रोडों पर से अतिक्रमण हटवा देते बिना विज्ञापन  दिए ही निकलने वाले लोग आपका गुण गाने लगते !
   केजरीवाल जी !अपने चित्रों के प्रचार पसार पर जो भारी भरकम धनराशि आप खर्च  करते हैं वो न आपके पिता जी की कमाई है और न ही आपकी !ये धन दिल्ली वाले दिल्ली का विकास करने के लिए सरकारों को देते हैं यदि सरकारों में बैठे लोग उस धन को उन लंबे चौड़े बड़े बड़े पोस्टरों को बनाने और चिपकाने पर खर्च करने लगें जो केवल आपके चित्रों को घर घर और जन जन तक पहुँचाने के लिए लगाए जाते हों  !
      हे केजरीवाल जी !आत्म विज्ञापनों में सरकारी नेताओं के द्वारा फूँकी जाने वाली ये दिल्ली वालों की धनराशि के विषय में क्या आपको पता है कि दिल्ली वाले कितनी मेहनत से अपना खून जलाकर और पसीना बहाकर कमाते हैं किंतु दिल्ली वालों को आप अपना नहीं समझते इसीलिए उनके पैसे के विज्ञापनों में बर्बाद होने से आपको दर्द नहीं होता है !
     केजरीवाल जी ! जरा सोचिए आपने अपने पिता जी कमाई से एक कलेंडर भी बनवाकर पहले कभी लगाया था अपने नाम और चित्र का ! आपने शिक्षा में इतनी बड़ी सफलता हासिल की थी या इतनी बड़ी पोस्ट मिली थी तब आपको इतनी ख़ुशी कभी क्यों नहीं हुई कि पोस्टर बनवाकर लगवा लेते ! तो आज दिल्ली वाले भी संतोष कर लेते कि तुम बचपन से ही पोस्टरों के शौकीन रहे हो !किंतु पहले ऐसा हुआ नहीं अब फ्री की सरकारी सम्पदा देखकर यदि इसे बर्बाद करने के लिए मन मचल ही  पड़ा है तो ये ढंग ठीक है क्या ?दिल्ली वालों के विकास का धन आज फ्री का लग रहा है आपको !
   केजरीवाल जी !यदि तब पोस्टर नहीं लगे तो नुक्सान क्या हुआ ?आज क्या लोगों को पता नहीं है कि तुम क्या हो और क्या थे ! जब बिना पोस्टरों प्रचारों के तुम्हारे विषय में सबको सबकुछ पता हो गया तो दिल्ली वालों के साथ जो भी अच्छा बुरा करोगे वो भी दुनियाँ  को पता हो ही जाएगा उसके लिए इतनी आतुरता क्यों ?माना कि दिल्ली वालों को आप अपना नहीं मानते इसलिए उनकी परेशानियों और पैसों से आपको लगाव नहीं है और पिता जी आपके अपने थे इसलिए उनके पैसे से लगाव था इसीलिए उनकी कमाई को बर्बाद नहीं किया और दिल्ली वालों की कर रहे हो !
      केजरीवाल जी !यदि आप कहें कि और लोग भी तो ऐसा करते हैं तो याद रखिए करते सब हैं किंतु इतना नहीं करते और इतने भोड़े ढंग से नहीं करते और यदि करते भी हों तो ये भी सोचिए कि इन्हीं कारणों से उनकी तुम निंदा किया करते थे तभी तो दिल्ली वाले तुमपर खुश हुए कि चलो ये सादगी पसंद ईमानदार है इसलिए ऐसा नहीं करेगा किंतु तुम भी यदि सबकुछ वैसा ही करने लगे जिसके लिए नेताओं की बुराई किया करते थे !तो इसे दिल्ली की जनता अपने साथ हुई धोखा धड़ी ही मानेगी !
      केजरीवाल जी !पोस्टरों से अच्छाई बुराई को कुछ उछाला तो जा सकता है किंतु बनाया नहीं जा सकता है !यदि ऐसा हो सकता होता तो सारे गंदे और गलत अपराधी लोग अपने विषय में अच्छी बातें लिखकर पोस्टर लगवा दिया करते और उन्हें लोग अच्छा समझने  लगते !

                       


स्कूलों में राजनीति !