नेताओं
और पत्रकारों के एक बड़े वर्ग में बढ़ती गिद्धवृत्ति
चिंतनीय ! गिद्ध तो मुर्दों का मांस खाते थे किंतु ये तो जीवितों पर झपटने
लगे हैं !आजकल भीड़ देखकर नेताओं को कन्हैया में राजनैतिक स्वाद आने लगा है बड़े
बड़े कद वाले पद लोलुप नेता कन्हैया को लपक लेने के लालच में अकारण उसकी
प्रशंसा के पुल बाँधते जा रहे हैं ऐसे राजनैतिक गिद्धों से खतरा है देश को ! उन्हें देश का अपमान अपमान नहीं दिख रहा है उन्हें केवल वोट दिख रहे हैं !
मोदी सरकार की निंदा करने वाले जिस किसी को भी खोज लाता है विपक्ष ! मीडिया उसी को बना देता है
भविष्य का नेता !""कन्हैया भी दलितों पिछड़ों के शोषण के नाम पर हो सकता
है कि नेता बन जाए !और बन जाए तो अच्छा है किंतु ध्यान इस बात पर होना
चाहिए कि जिस
सभा में "भारत तेरे टुकड़े होंगे" के नारे लगे कन्हैया उस सभा का अंग था
या
नहीं ,उस सभा में अध्यक्षत्वेन कन्हैया का भाषण हुआ या नहीं !कन्हैया केवल
कन्हैया नहीं था वो छात्रसंघ का अध्यक्ष भी था आखिर उसकी ये जिम्मेदारी
क्यों नहीं बनती थी कि उन राष्ट्र द्रोहियों का वहाँ विरोध किया जाता किंतु
कन्हैया के ऐसा न करने के पीछे उसका डर था या समर्थन !
देश में स्थापित सरकारों को गालियाँ ,प्रतीकों का अपमान !नेताओं की निन्दाकरना ,प्रधानमन्त्री का उपहास उड़ाना ,दबे
कुचले गरीब लोगों की हमदर्दी हथियाने जैसी हरकतें ठीक नहीं हैं !अक्सर
नेता लोग ऐसे वायदे करके मुकर जाते हैं जनता ठगी सी खड़ी रहती है देखो केजरीवाल जी तमाम सादगी की बातें करके आज बिराज रहे हैं राजभवनों में ! सैलरी ली सुरक्षा ली सैलरी बढ़ा भी ली विज्ञापन के नाम पर सैकड़ों करोड़ खा गए इसके बाद भी सादगी की प्रतिमूर्ति बने घूम रहे हैं ये निर्लज्जता नहीं तो क्या है !
इसी प्रकार से कुछ लोग सवर्णों को गालियाँ देकर उन पर शोषण का आरोप लगाकर
बड़े बड़े ओहदों पर पहुँच गए लोग !न कुछ लायक लोग नेता मंत्री आदि क्या क्या
नहीं बन गए आजादी के बाद आज तक नेता बनने का सबसे पॉपुलर नुस्खा यही रहा
है कि सवर्णों को गाली दो और राजनीति में घुस जाओ कई पार्टियों के नेताओं को अक्सर ऐसी हरकतें करते देखा जा सकता है !ऐसे लोग ये सारे नाटक नौटंकी करके राजनीति में घुस जाते हैं दलितों पिछड़ों का नारा देकर सरकारों में घुस जाते हैं इसके बाद ग़रीबों के हिस्से हथियाते जाते हैं !कुलमिलाकर
नाम दलितों पिछड़ों का सम्पत्ति सारी अपने नाम सारी सुख सुविधाएँ अपनी !
ऐसे ड्रामे अब बंद होने चाहिए !सवर्ण भी अपने पूर्वजों की निंदा सुनते
सुनते अब तंग आ चुके हैं अब अवसर आ चुका है जब ऐसे दलितभक्त नेताओं की
सम्पत्तियों की जाँच की माँग उठाई जाए और उन्हीं से पूछा जाए कि उनकी
आमदनी के स्रोत क्या हैं फिर समाज के सामने उन्हें और उनकी दलित भक्ति को बेनकाब किया जाए !
जिस
देश में संविधान सर्वोपरि है और यदि संविधान के दायरे में रहकर ही यदि कोई
किसी की मदद करना चाह रहा है तो फिर लड़ना किससे कानून और संविधान पर
भरोसा करते हुए सरकार प्रदत्त अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक तक पहुँचाए
जाएँ ऐसी स्वयं सेवा की भावना समाज में पैदा करनी चाहिए सरकार की कानूनी
सहायता और समाज की स्वयं सेवा का सहयोग पाकर दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों
महिलाओं सबका विकास किया जा सकता है इसके अलावा उस दिन और किस आजादी के नारे लग रहे थे !
कन्हैया केवल नाम रख लेने से कोई कन्हैया नहीं हो जाता है उसके काम
यदि ऐसे हैं तो उनकी सराहना कैसे की जाए !देश समाज एवं मानवता की रक्षा के
लिए आए थे कन्हैया जबकि कंस ने मानवता पर अत्याचार किया था JNU में उस दिन
भी क्या राष्ट्र भक्ति की बातें हुई थीं जो भी भारत के टुकड़ों की बात करता
है या देश के कानून के तहत किसी को जो भी सजा दी गई उस सजा के विरुद्ध
नारे लगाता है ये
देश के संविधान के विरुद्ध बगावत नहीं तो क्या है !भारत माँ का कोई सपूत
ये राष्ट्र विरोधी बातें कैसे सह सकता है वो भी छात्र नेता ही नहीं
छात्रसंघ का अध्यक्ष भी हो उसने ऐसे लोगों का विरोध क्यों नहीं किया इसका
मतलब इसे उन उपद्रवियों का समर्थन क्यों न माना जाए !वैसे भी कन्हैया कभी
कायर या गद्दार नहीं हो सकता जो देश द्रोहियों के मुख से अपने देश के टुकड़े
होने वाले नारे सुन कर सह जाए और जो सह जाए वो कन्हैया नहीं कंस हो सकता
है !
जो छात्र है वो नेता नहीं हो सकता और जो नेता है वो छात्र नहीं हो
सकता !क्योंकि नेतागिरी के पथ पर भटके हुए लोग पढ़ कहाँ पाते हैं शिक्षा एक
प्रकार की तपस्या है जो नेतागीरी के साथ नहीं की जा सकती इसलिए छात्र नेता
शब्द स्वयं में छलावा है ।
आजाद भारत का मतलब ही है संविधान प्रदत्त आजादी जो प्रत्येक व्यक्ति को
मिलनी चाहिए ये उसका अधिकार है और अधिकारों के प्रति समाज को केवल इतना
जागरूक करना है कि अपनी नागरिक आजादी से बंचित न रह जाए किंतु जिस तरह से
उस दिन आजादी के नारे लग रहे थे वो संविधान प्रदत्त आजादी के यदि होते उसके
लिए तो कानून के दरवाजे खुले थे यदि किसी को कहीं दिक्कत थी तो उसके लिए
नारे लगाने के अलावा भी संवैधानिक परिधि में भी तमाम विकल्प थे किंतु वो
वातावरण ही राष्ट्रभावना को चुनौती देने या उपहास उड़ाने जैसा था ।
दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं के शोषण के गीत गाकर कुछ लोग
नेता बन सकते हैं और भी कुछ अयोग्य लोग योग्य स्थानों पर पहुँच सकते हैं
कुछ छात्रवृत्ति के रूप में कुछ धन पा सकते हैं कुछ आटा दाल चावल चीनी आदि
पा सकते हैं आरक्षण पाकर कुछ लोग उन स्थानों पर हो सकता है कि पहुँच जाएँ
जिनके योग्य न होने के कारण उन्हें केवल अपमान ही झेलना पड़े किंतु इतना सब
कुछ पाकर भी अपने हिस्से यदि अपमान ही आया तो पेट तो पशु भी भर लेते हैं
केवल पेट भरने के लिए इतने सारे नाटक क्यों ?क्या हमारा लक्ष्य बंचित
वर्गों में भी प्रतिभा निर्माण नहीं होना चाहिए आरक्षण और सरकारी सुविधाओं
का लालच देकर देश के सबसे बड़ी आवादी वाले वर्ग को विकलांग बनाकर आखिर कब
तक रखा जाएगा !
आज के सौ वर्ष पहले वाले लोग भी दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं
की रक्षा के ही गीत गाते स्वर्ग सिधार गए ,आजादी के बाद आजतक कानून की
छत्र छाया में रहकर विकास करने का सम्पूर्ण अवसर मिला इसके बाद भी सुई वहीँ
अटकी है सवर्णों ने शोषण किया था किंतु यदि सवर्णों के शोषण के कारण ये
लोग पिछड़े होते तो इतने दिन तक सारी सुविधाएँ पाकर ये पल्लवित हो सकते थे
क्योंकि किसी सामान्य सवर्ण वर्ग के व्यक्ति के साथ यदि कोई हादसा हो जाए
जिससे वह बिलकुल कंगाल हो जाए उसके पास कुछ भी न बचा हो सरकार उसे किसी भी
प्रकार की मदद न दे तो वो भूखों मर जाएगा क्या ? वह सवर्ण अपनी कर्म पूजा
के बलपर यदि अपनी तरक्की कर सकता है तो दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों
महिलाओं के शरीरों में ऐसी कौन सी कमजोरी है कि वो इस संघर्ष पथ को नहीं
अपना सकते !उन्हें कौन रोकता है ।
सवर्ण चाहें तो सवर्ण भी अपनी हर समस्या के समाधान के लिए सरकार के
दरवाजे पर कटोरा लेकर खड़े हो सकते हैं हो सकता है कि सवर्ण मान कर सरकार
उन्हें भीख न दे किंतु कटोरा तो नहीं ही फोड़ देगी इस भावना से सवर्ण लोग भी
सरकारी दरवाजों पर जाकर झोली फैला सकते थे किंतु उसे खुश होकर सरकार जितना
जो कुछ भी देती वो भीख होती और भीख केवल पेट भरने के लिए होती है
क्योंकि भीख देने वाला न मरने देता है और न मोटा होने देता है केवल घुट
घुटकर कर जीवन बिताने के लिए ज़िंदा बना रखता है और इस प्रकार से सरकारी
कृपा पर जीने वाले लोग कभी स्वाभिमानी नहीं हो सकते !दूसरी बात ऐसे
परिस्थिति में स्वदेश में तो अपनी सरकार है यहाँ तो अपने प्रति सरकार की
हमदर्दी मिल भी सकती है किंतु विश्व के किसी अन्य देश में तो जो करेगा उसे
मिलेगा अन्यथा घर बैठे वहाँ गुजारा कैसे होगा ! इसीलिए सवर्णों में भी गरीब
वर्ग है किंतु वो सरकारी दरवाजे का भिखारी नहीं बना अपने सम्मान स्वाभिमान
को बचा कर रखा है ।
ये शोषण ये आरक्षण ये दबे कुचले दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं के शोषण के गीत केवल अपने देश में ही गाए सुने जाते हैं बाकी विश्व तो अपने नागरिकों को संवैधानिक सुविधाएँ देता है और तरक्की के रास्ते पर छोड़ देता है और सब दौड़ने लगते हैं एक दूसरे के साथ कोई थोड़ा आगे चलता है कोई थोड़ा पीछे किन्तु यहाँ की तरह ऐसा कभी नहीं होता है कि हर छोटी बड़ी बात के लिए सवर्णों पर शोषण के आरोप लगाकर अपने को पीछे कर लिया जाए !किंतु आपकी तरक्की होने या न होने के लिए आप स्वयं जिम्मेदार हैं न कि सवर्ण !यदि किसी के घर बच्चा न पैदा हो तो दोष पड़ोसी पर कैसे मढ़ दिया जाए ! ये कहाँ का न्याय है । दबे कुचले दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं आदि के हितैषी होने दावा करने वाले लोग ऐसे ही फार्मूले उछालकर देश की आवादी के एक बहुत बड़े वर्ग को स्वाभिमान विहीन बनाते जा रहे हैं उचित तो ये है कि ऐसे जुमले उछालने वाले लोगों से समाज को बचाया जाना चाहिए ।
जो जाति समुदाय संप्रदाय या वर्गवाद के नाम पर विकास की बात करे वो ऐसी भेदभावना से समाज को तोड़ तो सकता है किंतु जोड़ नहीं सकता ! विकास की कोई भी बात जब तक सबके लिए नहीं होगी तब तक कभी भी स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं कर सकती है ।
बड़ी बड़ी रिस्क लेकर जो लोग दिन रात मेहनत करके अपने ब्यापार स्थापित करते हैं उस भयंकर संघर्ष में कई लोगों की तो कई कई पीढ़ियाँ खप जाती हैं ऐसे परिश्रमी लोगों के हिस्से से टैक्स रूप में धन लेकर सरकार देश एवं देशवासियों के विकास के लिए योजनाएँ चलाती है अन्यथा वो ब्यापारी वर्ग भी यदि कायरता करने लगे और कह दे कि सरकार हमारा शोषण करके सबको बाँट रही है तो जाओ हम भी नहीं कर सकते काम ,सरकार हमें भी भोजन वस्त्र उपलब्ध करवावे !आप स्वयं सोचिए कि आखिर सरकार कहाँ से लाएगी !इसलिए जो देश का कमाऊ वर्ग है उससे टैक्स लेना और वो टैक्स खाऊ वर्ग में बाँट देना और ऊपर से ये कहना कि इनके पूर्वजों ने हमारा शोषण किया था इसलिए हम पिछड़ गए !ये कितनी मूर्खता पूर्ण बात है हमें सच्चाई क्यों नहीं स्वीकार करनी चाहिए कि प्राचीन काल में सभी जातियाँ संख्या और सम्पत्तियों में बराबर थीं । सवर्णों ने अपना सारा ध्यान संपत्तियाँ बढ़ाने पर लगाया और जनसंख्या बढ़ने पर संयम रखा तो उनकी जन संख्या उतनी नहीं बढ़ी किंतु संपत्तियाँ बढ़ती गईं !दूसरी ओर दलितों पिछड़ों ने संपत्तियाँ बढ़ाने का इरादा ही छोड़ दिया केवल जनसँख्या ही बढ़ाते चले गए तो सवर्णों के अनुपात में संपत्तियाँ तो घटनी ही थीं इन जनसँख्या बढ़ने में सवर्णों का क्या योगदान था आखिर उन्हें क्यों कोसा जा रहा है आज सवर्णों की संपत्तियां देखकर लालच बढ़ रहा है तो क्या करें सवर्ण ।
ये शोषण ये आरक्षण ये दबे कुचले दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं के शोषण के गीत केवल अपने देश में ही गाए सुने जाते हैं बाकी विश्व तो अपने नागरिकों को संवैधानिक सुविधाएँ देता है और तरक्की के रास्ते पर छोड़ देता है और सब दौड़ने लगते हैं एक दूसरे के साथ कोई थोड़ा आगे चलता है कोई थोड़ा पीछे किन्तु यहाँ की तरह ऐसा कभी नहीं होता है कि हर छोटी बड़ी बात के लिए सवर्णों पर शोषण के आरोप लगाकर अपने को पीछे कर लिया जाए !किंतु आपकी तरक्की होने या न होने के लिए आप स्वयं जिम्मेदार हैं न कि सवर्ण !यदि किसी के घर बच्चा न पैदा हो तो दोष पड़ोसी पर कैसे मढ़ दिया जाए ! ये कहाँ का न्याय है । दबे कुचले दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं आदि के हितैषी होने दावा करने वाले लोग ऐसे ही फार्मूले उछालकर देश की आवादी के एक बहुत बड़े वर्ग को स्वाभिमान विहीन बनाते जा रहे हैं उचित तो ये है कि ऐसे जुमले उछालने वाले लोगों से समाज को बचाया जाना चाहिए ।
जो जाति समुदाय संप्रदाय या वर्गवाद के नाम पर विकास की बात करे वो ऐसी भेदभावना से समाज को तोड़ तो सकता है किंतु जोड़ नहीं सकता ! विकास की कोई भी बात जब तक सबके लिए नहीं होगी तब तक कभी भी स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं कर सकती है ।
बड़ी बड़ी रिस्क लेकर जो लोग दिन रात मेहनत करके अपने ब्यापार स्थापित करते हैं उस भयंकर संघर्ष में कई लोगों की तो कई कई पीढ़ियाँ खप जाती हैं ऐसे परिश्रमी लोगों के हिस्से से टैक्स रूप में धन लेकर सरकार देश एवं देशवासियों के विकास के लिए योजनाएँ चलाती है अन्यथा वो ब्यापारी वर्ग भी यदि कायरता करने लगे और कह दे कि सरकार हमारा शोषण करके सबको बाँट रही है तो जाओ हम भी नहीं कर सकते काम ,सरकार हमें भी भोजन वस्त्र उपलब्ध करवावे !आप स्वयं सोचिए कि आखिर सरकार कहाँ से लाएगी !इसलिए जो देश का कमाऊ वर्ग है उससे टैक्स लेना और वो टैक्स खाऊ वर्ग में बाँट देना और ऊपर से ये कहना कि इनके पूर्वजों ने हमारा शोषण किया था इसलिए हम पिछड़ गए !ये कितनी मूर्खता पूर्ण बात है हमें सच्चाई क्यों नहीं स्वीकार करनी चाहिए कि प्राचीन काल में सभी जातियाँ संख्या और सम्पत्तियों में बराबर थीं । सवर्णों ने अपना सारा ध्यान संपत्तियाँ बढ़ाने पर लगाया और जनसंख्या बढ़ने पर संयम रखा तो उनकी जन संख्या उतनी नहीं बढ़ी किंतु संपत्तियाँ बढ़ती गईं !दूसरी ओर दलितों पिछड़ों ने संपत्तियाँ बढ़ाने का इरादा ही छोड़ दिया केवल जनसँख्या ही बढ़ाते चले गए तो सवर्णों के अनुपात में संपत्तियाँ तो घटनी ही थीं इन जनसँख्या बढ़ने में सवर्णों का क्या योगदान था आखिर उन्हें क्यों कोसा जा रहा है आज सवर्णों की संपत्तियां देखकर लालच बढ़ रहा है तो क्या करें सवर्ण ।
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