"बिहार का टॉपरकांड" पकड़ा गया इसलिए दोषी और जो सतर्कता और चतुराई से शिक्षा का सत्यानाश करने के काम करते हैं उन्हें ईमानदार कैसे मान लिया जाए !उनके काम काज का मूल्यांकन क्यों न किया जाए !हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि स्कूल यदि अच्छे संस्कारों के केंद्र हैं तो बुरे संस्कारों के केंद्र भी वही हैं जो शिक्षक अयोग्य कामचोर आलसी होंगे उनसे बच्चे क्या सीखेंगे !इसीलिए तो अपराधियों
की फौज तैयार कर रही हैं दुर्भाग्य पूर्ण शिक्षा नीतियाँ!शिक्षा और
संस्कारों के सत्यानाश के लिए सरकार और शिक्षाविभाग ही दोषी है !
सारा देश इस बात को स्वीकार करता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है धनवान लोगों से लेकर विधायक सांसद मंत्री सरकारी अधिकारी कर्मचारी शिक्षक यहाँ तक कि सरकारी शिक्षा को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी और सरकारी शिक्षक भी ये स्वीकार करते हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है इसीलिए तो ये सभी लोग सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाते नहीं हैं !
सरकारी शिक्षा को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और सरकारी शिक्षकों को सैलरी देना सरकार की मजबूरी है नहीं तो वो सरकार के विरुद्ध शोर मचाएँगे ये पूरी तरह खाली लोग हैं इनके पास कोई काम होता नहीं है ये हड़ताल करने की योजना बनाने के लिए मीटिंग करते हैं फिर हड़ताल की तैयारियों के लिए मीटिंग फिर हड़ताल फिर उसकी समीक्षा के लिए मीटिंग केवल मीटिंग मीटिंग हैं बस और है क्या सरकारी शिक्षा और कामकाज में !
ये शिक्षक पढ़ाना नहीं चाहते या पढ़ा नहीं पाते हैं या इनमें पढ़ाने की योग्यता ही नहीं है क्योंकि भ्रष्टाचार से इनकार तो नहीं किया जा सकता इसीलिए ये बात तो देश के बच्चे बच्चे की जबान पर है कि यदि आपके पास घूस देने के लिए पैसे हैं और सोर्स है तो नौकरी मिलेगी अन्यथा नहीं !ऐसी परिस्थिति में अयोग्य शिक्षक और अधिकारी खाली बैठकर करें क्या इसीलिए तो बेचारों ने मीटिंग और हड़ताल दो पसंदीदा काम चुन रखे हैं वही करते रहते हैं ।
सरकारें अपने कर्मचारियों के साथ "हम भी खाएँ तुम भी खाओ चुपचाप पड़े रहो"वाले सिद्धांतों के अनुशार चलना चाहती हैं इसीलिए किसी न किसी बहाने से उनकी सैलरी अनाप शनाप बढ़ाती रहती हैं ये खाली लोग फिर भी हड़ताल करने पर उतारू हो जाते हैं ये तो अपना खालीपन दूर करने के लिए ऐसा करते हैं किंतु सरकारों में सम्मिलित लोग घबड़ा जाते हैं कि कहीं हमारे भ्रष्टाचार की पोल न खोल दें तो सरकारें फिर उन्हें कुछ दे देती हैं ! सरकारों के डरने के कारण ही आज शिक्षकों की सैलरियाँ सातवाँ आसमान चूम रही हैं !प्राइमरी प्राइवेट स्कूलों में शिक्षक जो पढ़ाने वाले हैं वे दस पंद्रह हजार में मिल जाते हैं वही सरकारी स्कूलों को न पढ़ाने वाले शिक्षक बहुत महँगे मिलते हैं अंतर इतना है कि प्राइवेट स्कूलों में मालिक की जेब से पैसे जाते हैं जबकि सरकारी स्कूलों में जनता का पैसा होता है इसलिए उसकी चिंता कौन करे !
जैसे जब किसी सत्संग कथा कीर्तन आदि में भीड़ नहीं जुटती है तब आयोजक भीड़ जुटाने के लिए कुछ न कुछ बाँटना शुरू करते हैं खाना कपड़ा आदि कुछ भी । यही हाल सरकारी स्कूलों की शिक्षा का भी है पढ़ाई में दम नहीं है इसलिए चीजों का लालच देकर भीड़ें इकठ्ठा की जा रही होती हैं आखिर सरकारी अधिकारियों शिक्षकों को सैलरी देने के लिए कुछ बहाना तो चाहिए ही !अन्यथा लोग कहने लगेंगे जब बच्चे नहीं हैं तो बंद करो स्कूल !इसलिए सरकारें सरकारी स्कूलों में बच्चों की भीड़ दिखाने के लिए खाना कपड़े किताबें दवाइयाँ आदि सब कुछ बाँटती रहती हैं ।इसलिए वहाँ बच्चे भी पढ़ने के लिए कम और खाने के लिए ज्यादा जाते हैं धीरे धीरे सरकारी स्कूल अब बाँटने के लिए ही प्रसिद्ध होते जा रहे हैं लंगर चलाने वाले गुरुद्वारों की तरह !
सरकारों में साहस हो तो शिक्षकों की परीक्षा लें एक बार उसके लिए ईमानदार एक्जामनर खोजें ईमानदारी से प्रश्न पत्र बनाए जाएँ और इमानदारी से कापियाँ जाँची जाएँ और घोषित हो रिजल्ट !अभी सब दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा !कम से कम 50 प्रतिशत अधिकारी कर्मचारी घर बैठ जाएँगे !उनकी जगहों पर योग्य बेरोजगारों को रोजगार मिल जाएगा और शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो जाएगा !किंतु ऐसा कठोर कदम कोई ईमानदार और साहसी सरकार ही उठा सकती है जिसके अपने दामन में दाग न हों !
सरकारी शिक्षा को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और सरकारी शिक्षकों को सैलरी देना सरकार की मजबूरी है नहीं तो वो सरकार के विरुद्ध शोर मचाएँगे ये पूरी तरह खाली लोग हैं इनके पास कोई काम होता नहीं है ये हड़ताल करने की योजना बनाने के लिए मीटिंग करते हैं फिर हड़ताल की तैयारियों के लिए मीटिंग फिर हड़ताल फिर उसकी समीक्षा के लिए मीटिंग केवल मीटिंग मीटिंग हैं बस और है क्या सरकारी शिक्षा और कामकाज में !
ये शिक्षक पढ़ाना नहीं चाहते या पढ़ा नहीं पाते हैं या इनमें पढ़ाने की योग्यता ही नहीं है क्योंकि भ्रष्टाचार से इनकार तो नहीं किया जा सकता इसीलिए ये बात तो देश के बच्चे बच्चे की जबान पर है कि यदि आपके पास घूस देने के लिए पैसे हैं और सोर्स है तो नौकरी मिलेगी अन्यथा नहीं !ऐसी परिस्थिति में अयोग्य शिक्षक और अधिकारी खाली बैठकर करें क्या इसीलिए तो बेचारों ने मीटिंग और हड़ताल दो पसंदीदा काम चुन रखे हैं वही करते रहते हैं ।
सरकारें अपने कर्मचारियों के साथ "हम भी खाएँ तुम भी खाओ चुपचाप पड़े रहो"वाले सिद्धांतों के अनुशार चलना चाहती हैं इसीलिए किसी न किसी बहाने से उनकी सैलरी अनाप शनाप बढ़ाती रहती हैं ये खाली लोग फिर भी हड़ताल करने पर उतारू हो जाते हैं ये तो अपना खालीपन दूर करने के लिए ऐसा करते हैं किंतु सरकारों में सम्मिलित लोग घबड़ा जाते हैं कि कहीं हमारे भ्रष्टाचार की पोल न खोल दें तो सरकारें फिर उन्हें कुछ दे देती हैं ! सरकारों के डरने के कारण ही आज शिक्षकों की सैलरियाँ सातवाँ आसमान चूम रही हैं !प्राइमरी प्राइवेट स्कूलों में शिक्षक जो पढ़ाने वाले हैं वे दस पंद्रह हजार में मिल जाते हैं वही सरकारी स्कूलों को न पढ़ाने वाले शिक्षक बहुत महँगे मिलते हैं अंतर इतना है कि प्राइवेट स्कूलों में मालिक की जेब से पैसे जाते हैं जबकि सरकारी स्कूलों में जनता का पैसा होता है इसलिए उसकी चिंता कौन करे !
जैसे जब किसी सत्संग कथा कीर्तन आदि में भीड़ नहीं जुटती है तब आयोजक भीड़ जुटाने के लिए कुछ न कुछ बाँटना शुरू करते हैं खाना कपड़ा आदि कुछ भी । यही हाल सरकारी स्कूलों की शिक्षा का भी है पढ़ाई में दम नहीं है इसलिए चीजों का लालच देकर भीड़ें इकठ्ठा की जा रही होती हैं आखिर सरकारी अधिकारियों शिक्षकों को सैलरी देने के लिए कुछ बहाना तो चाहिए ही !अन्यथा लोग कहने लगेंगे जब बच्चे नहीं हैं तो बंद करो स्कूल !इसलिए सरकारें सरकारी स्कूलों में बच्चों की भीड़ दिखाने के लिए खाना कपड़े किताबें दवाइयाँ आदि सब कुछ बाँटती रहती हैं ।इसलिए वहाँ बच्चे भी पढ़ने के लिए कम और खाने के लिए ज्यादा जाते हैं धीरे धीरे सरकारी स्कूल अब बाँटने के लिए ही प्रसिद्ध होते जा रहे हैं लंगर चलाने वाले गुरुद्वारों की तरह !
सरकारों में साहस हो तो शिक्षकों की परीक्षा लें एक बार उसके लिए ईमानदार एक्जामनर खोजें ईमानदारी से प्रश्न पत्र बनाए जाएँ और इमानदारी से कापियाँ जाँची जाएँ और घोषित हो रिजल्ट !अभी सब दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा !कम से कम 50 प्रतिशत अधिकारी कर्मचारी घर बैठ जाएँगे !उनकी जगहों पर योग्य बेरोजगारों को रोजगार मिल जाएगा और शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो जाएगा !किंतु ऐसा कठोर कदम कोई ईमानदार और साहसी सरकार ही उठा सकती है जिसके अपने दामन में दाग न हों !
" बिहार का टॉपरकांड हो या UP के शिक्षकों की स्पेलिंग मिस्टेक " इसे केवल
UP और बिहार के शिक्षकों तक ही नहीं सीमित माना जाना चाहिए अपितु यही
हाल सारे देश का है शिक्षा विभाग की ऐसी हरकतें कहीं कहीं झलक जाती हैं
सरस्वती नदी की तरह किंतु जैसे सरस्वती नदी का रहस्य जानने के लिए भयंकर
खुदाई जरूरी है वैसे ही शिक्षा विभाग का भ्रष्टाचार पता लगाने के लिए सरकार
को उठाने होंगे कठोर कदम !
इसके लिए चाहिए देश में ईमानदार ,साहसी और कर्तव्यनिष्ठ
प्रधानमंत्री मुख़्यमंत्री शिक्षामंत्री आदि !वो भ्रष्ट शिक्षकों और
अधिकारियों की पहचान करे और फिर जनता को विश्वास में लेकर अपराधियों को न
केवल निकाल बाहर करे अपितु उनसे वसूली जाए आज तक दी गई सारी सैलरी !योग्य
लोगों के अधिकार अयोग्य लोगों को देने एवं जनता के धन का दुरुपयोग करने की
दोषी सरकार इसके लिए जिम्मेदार तत्कालीन अधिकारियों के साथ अपराधियों जैसे
कठोर दंड का प्रावधान करे !उनकी चल अचल संपत्तियों को जब्त करे सरकार !देश
का बेड़ा गर्क किया है उन लोगों ने !ऐसे ही अपराधियों के कारण एक से एक
पढ़ी लिखी प्रतिभाएँ आज खेती किसानी करने या मेहनत मजदूरी करके दिन काटने पर
मजबूर हैं ।
देश का शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार का इतनी बुरी तरह से शिकार है कि नेताओं
के साथ लगे रहने वाले ठेलुहेचमचे और उनके नाते रिस्तेदार शिक्षा विभाग के
अधिकारियों के परिचित हेती व्यवहारी या घूस देने वाले लोगों को रेवड़ियों की
तरह बाँटी जाती हैं नौकरियाँ जिसमें कहीं किन्हीं नियमों का पालन हुआ
होगा !इसीलिए सरकार के हर विभाग की भद्द पिटी पड़ी है हर जगह भ्रष्टाचार है ।
शिक्षा विभाग की " बिहार का टॉपरकांड हो या UP के शिक्षकों की
स्पेलिंग मिस्टेक " इसमें शिक्षकों और शिक्षा विभाग का क्या दोष ! ये तो
झलकियाँ हैं हकीकत तो बहुत खराब है जिनसे जो पूछा गया वे वो नहीं बता पाए
जिनसे पूछा ही नहीं गया उन्हें विद्वान कैसे मान लिया जाए !
सरकार ने शिक्षकों की सैलरी बढ़ाने
के अलावा शिक्षा के लिए और किया ही क्या है !नौकरियाँ बेच लीं पैसे वालों
के हाथ ! शुद्ध शिक्षित लोगों की प्रतिभा पहचानकर उन्हें भी रोजगार उपलब्ध
कराने की जिम्मेदारी क्यों नहीं समझी सरकार ने !शिक्षा के लिए कठोर से कठोर
परिश्रम करने वालों को ऐसा कौन सा मंच उपलब्ध करवाया गया जहाँ वो भी अपनी
प्रतिभा को प्रस्तुत कर सकें !शिक्षित लोग घूस नहीं दे सकते ,उनका सोर्स
नहीं है या वो ऊँची जातियों के हैं इसलिए प्रतिभाओं को ठुकराया गया और पैसे
को पकड़ा गया है !
UP: कॉलेजों के कई टीचर नहीं बता सके अंग्रेजी के सामान्य शब्दों की स्पेलिंग !-जनसत्ता
see more...http://www.jansatta.com/national/bjp-demands-governor-to-probe-in-up-
teachers-fail-to-spell-english-words/114763/
अधिकाँश शिक्षकों की स्थिति ये है कि वे जिन कक्षाओं को पढ़ाने के
लिए रखे गए हैं उन्हें यदि उन्हीं कक्षाओं की परीक्षाओं में बैठा दिया जाए
तो पास होने वाले शिक्षकों की संख्या का परसेंटेज इतना कम होगा कि सरकार
देश की जनता के सामने मुख दिखाने लायक नहीं रह जाएगी ! ऐसे लोगों को सैलरी
लुटा रही है सरकार !सरकारी स्कूलों की भद्द पिटने का मुख्य कारण यही है जो
खुद नहीं पढ़े होंगे ऐसे शिक्षकों को स्कूल देख कर डर तो लगेगा ही ! ऐसे
लोग कक्षाओं में जाकर छात्रों से आँखें मिलाने की हिम्मत ही नहीं कर पाते
हैं बेचारे !इसी लिए किसी न किसी बहाने से गायब रहते हैं शिक्षक ! क्या समय
पास करने के लिए बनें हैं स्कूल !जिस गाय के पास दूध ही नहीं होगा वो
पेन्हाएगी क्या ख़ाक !दूध देने वाली गउएँ ही बछड़ों को दुलार करती हैं और लुक
छिपकर चोरी चोरी दूध पिला देती हैं अपने बछड़ों को ! क्योंकि उन्हें बछड़े
की चिंता होती है !काश ! उन पशुओं से ही शिक्षक कुछ सीख पाते तो बच्चों के
भविष्य से थोड़ा भी लगाव रखने वाले शिक्षक अपनी माँगें मनवाने के लिए हड़ताल
तो नहीं ही करते !क्योंकि इससे नुक्सान ही केवल बच्चों का होता है ।
स्कूलों में अँगेजी की मीनिंग की स्पेलिंग सही सही कितने शिक्षक
लोग बता पाएँगे ये तो आशा ही नहीं करनी चाहिए वो साफ कह देंगे कि हम
हिन्दुस्तान पर गर्व करते हैं इसलिए अंग्रेजी क्यों हिंदी क्यों नहीं ! बात
यदि हिंदी की है तो मैं सरकार को चुनौती देता हूँ कि वो अपने शिक्षकों से
हिंदी की ही परीक्षा लेकर दिखादे ! बशर्ते पेपर बनाते समय सुझाव हमारे भी
सम्मिलित किए जाएँ !यदि हिंदी की सामान्य परीक्षा में देश के 50 प्रतिशत
शिक्षक भी पास हो जाएँ तो सरकार अपने शासन पर गर्व कर सकती है शिक्षा के
हालात इतने अधिक खराब हैं इसलिए जो शिक्षक पास न हों उन्हें खदेड़ बाहर करे
सरकार !
संस्कृत शिक्षा के नाम पर संस्कृत पढ़ाने के लिए जो शिक्षक रखे जाते
हैं अक्सर वो कुछ और न पढ़ा सकने योग्य ढीले ढाले जिजीविषा मुक्त शिक्षकों
का ही नाम 'शास्त्री जी' रख लिया जाता है और उन्हीं के जर्जर दिमाग के
सहारे ढोई जा रही होती है संस्कृत ! दूसरी ओर संस्कृत जानने वाले
संस्कृतविद्यालयों के छात्र बेरोजगारी से परेशान होकर मारे मारे घूम रहे
हैं कलश पूजन करवाते शादी विवाह पढ़ते !उनके पास घूस देने के पैसे नहीं
हैं सोर्स नहीं है ।
ये दायित्व सरकार का है कि योग्य लोगों को ही योग्य पदों पर बैठावे
!अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठकर भारीभरकम सैलरी देकर पूजने से आज
हर किसी की इच्छा है कि सरकारी नौकरी मिले !अगर पूछ दो क्यों तो बोले उसमें
पहली बात तो
काम नहीं करना पड़ता है और दूसरी बात सैलरी बढ़ाने की चिंता नहीं होती है
सरकार खुद बढ़ाती रहती है । सरकार के कई विभाग ऐसे हैं जहाँ ब्रेनडेड आदमी
आराम से अपने दायित्व का निर्वहन कर सकता है ! बारी नौकरी बारे काम !
देखें इसे भी -
UP: कॉलेजों के कई टीचर नहीं बता सके अंग्रेजी के सामान्य शब्दों की स्पेलिंग !-जनसत्ता
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