Wednesday, 7 December 2016

संसद की कारवाही रोकना इतना जरूरी होता है क्या ? आखिर चर्चा से क्यों नहीं निकाले जा सकते हैं समाधान !

    नेताओं के मन में जनता की और जनता के धन की औकात ही क्या होती है ये परखिए उनके आचार विचार और व्यवहार से !
      नेता लोग आम जनता को यदि अपनी पार्टी का कोई बड़ा पद देने या चुनावी टिकट देने लायक ही नहीं समझते हैं  तो जनता उन्हें वोट देने लायक क्यों समझे !आखिर जनता की ही मजबूरी है क्या कि वो ऐसे नेताओं को वोट दे और चुनाव जितवावे !
        नेता लोग प्रायः राजनैतिक पार्टियों के पद अपने बेटा बेटी बहू बहन भांजे भतीजे भाई आदि को दे देते हैं फिर भी कुछ पद या टिकट आदि अगर बच जाते हैं तो पैसे वालों से पैसे लेकर उन्हें बेच देते हैं कुछ बचा कर रख लेते हैं उन लोगों को देने के लिए जो प्रसिद्ध अभिनेता खिलाड़ी या देखने में अच्छे लगने वाली सुंदरी स्त्रियाँ और सुंदर पुरुषों को देते हैं जिनके सदन में उपस्थित रहने की उम्मीदें ही प्रायः बहुत कम होती हैं तो वो जनता के मुद्दे क्या उठाएँगे और चर्चा क्या करेंगे !
 नेताओं को अपने चेहरों से उनके चेहरे अच्छे लगते हैं इसलिए उन्हें देनी पड़ती है टिकट !वो भी केवल चेहरा ही दिखाने कभी  कभी  चले आया करते हैं बस !बाकी  राजनैतिक पार्टियों के मालिकों के पास आम आदमी के लिए आश्वासन देने या झूठे वायदे करने के अलावा और बचता  ही क्या है ! 
    संसद की कार्यवाही चलाने में जनता की गाढ़ी कमाई की भारी भरकम धनराशि खर्च होती है ये सबको पता है यदि उसके प्रति राजनैतिक पार्टियों के मालिक नेता लोग थोड़ी भी जिम्मेदारी समझते हों तो ऐसे लोगों को चुनावी टिकटें ही न दें जो संसद में चर्चा करने और  समझने की योग्यता न रखते हों !जो शिक्षित शालीन योग्य अनुभवी आदि न हों !बोलने ,समझने और समझाने की योग्यता न रखते हों !
     जिन्हें सदन की चर्चा छोड़ छोड़ कर समय पास करने के लिए बार बार बाहर जाना पड़ता हो !घंटों कुर्सियाँ खाली पड़ी रहती हों,या सदन में ही बैठकर मोबाईल पर वीडियो देख देखकर समय पास किया करते हों या केवल हुल्लड़ मचाते समय या उपद्रव करने के लिए ही सदन में उपस्थित होते हों !ऐसे चर्चा में भाग न ले सकने योग्य लोगों को चुनावी टिकट देती ही क्यों हैं राजनैतिक पार्टियाँ !  
   नेता लोग  लोग कितनी गिरी नज़रों से देखते हैं आम आदमी को !
  आम जनता का कोई व्यक्ति शिक्षित समझदार कर्मठ योग्य ईमानदार आदि कैसा भी क्यों न हो किंतु उसकी उपेक्षा करके अपने बेटा बेटी बहन भांजा भतीजा भाई आदि अपने ही घर खानदान वालों या नाते रिस्तेदारों को देते हैं पार्टी के पद और चुनाव लड़ने की टिकट !जो जनता को इतनी गिरी नजर से देखते हैं उन्हें आम आदमी वोट क्यों दे !             
    राजनैतिक पार्टियों के मालिक नेता लोग अपने कार्यकर्ताओं को उन दिहाड़ी मजदूरों की तरह पार्टियों में रखते हैं जिनमें योग्यता न हो अनुभव न हो निर्णय लेने की क्षमता न हो ऐसे राजनैतिक दीन हीन बेचारगी भरे लोग जब तक अपनी पार्टी के मालिक के इशारे पर सदनों में शोर मचाया करते हैं पार्टी मालिकों की इच्छानुसार संसद की कारवाही रोकने में हुल्लड़ मचा  मचा कर मदद करते हैं और समाज में घूम घूम कर पार्टियों के मालिकों के गुण  गाया करते हैं तब तक तो ठीक हैं और जैसे ही ऐसा करना बंद कर देते हैं वैसे ही उन्हें कभी भी निकाल बाहर किया जा सकता है तो वो पार्टी मालिकों के लिए कभी कोई खतरा नहीं बनने  पाते हैं !क्योंकि उनका अपना कोई जनाधार ही नहीं होता है ।
    संसद जैसे सदनों की कार्यवाही चलाने में जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से भारी भरकम धन राशि खर्च की जाती है किंतु चर्चा केवल इसलिए नहीं हो पाती कि शिक्षा योग्यता अनुभव सहनशीलता एवं दूसरे सदस्यों की बात समझ पाने एवं अपनी बात समझा  पाने की क्षमता के अभाव के कारण सत्ता पक्ष के निर्णयों का विपक्ष हमेंशा विरोध ही करता रहता है !केवल सांसदों की सैलरी एवं सुख सुविधा बढ़ाने में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेता है विपक्ष !उस दिन सदनों में ऐसी शांति पूर्ण कार्यवाही चल रही होती है जैसे कोई पूजा पाठ आदि चल रहा हो !किंतु जब जनहित के निर्णय लेने होते हैं तब लड़ झगड़ कर काम नहीं होने देते हैं ये लोग !जनता की कमाई से चलने वाली कार्यवाही में जनता के ही कामों में रोड़ा लगाया करते हैं ये लोग !ये कहाँ तक न्यायोचित है !
   नेताओं की गतिविधियाँ देखकर लगता है कि संसद की कार्यवाही केवल इसलिए है कि जनता को अपने विपक्षी होने का एहसास करवा सकें और सत्ता पक्ष अपने सत्ता स्वामी होने का एहसास करवा सके !बस !!
    

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