Tuesday, 6 December 2016

नेताओं के मरने पर जनता कितना भी रोवे किंतु लोगों के मरने पर तो नेताओं के दो आँसू भी नहीं निकलते !

      जनता मरे तो नेता सोचते हैं कि चलो कुछ वोट ही तो कम हुए हैं ! ऐसे निष्ठुर नेताओं के भरोसे जी रहे हैं हम लोग !न जाने क्यों आधुनिक नेताओं में जनता के  प्रति संवेदनाएँ नहीं होती हैं क्या इनके हृदय नहीं होते हैं !आखिर क्यों इतने कठोर होते चले जा रहे हैं हमारे नेता लोग !
    अपने चाहने वालों के प्रति तो हिंसक जीव जंतु भी बहुत  प्रेम पूर्वक वर्ताव करते देखे जाते हैं किंतु नेताओं के मन में आम जनता के प्रति वैसी भी भावनाएँ नहीं होती हैं क्यों ? वो जनता को मात्र एक वोट समझते हैं जनता के प्रति इतनी गिरी सोच !सच ही कहा गया है कि नेताओं के साथ कोई कितना भी अच्छा व्यवहार क्यों न करले किंतु नेता कभी किसी के सगे नहीं हो सकते !
     अभी नोटबंदी को ही लें कितने लोग मरे हैं किंतु किसी नेता ने किसी की सुध ली क्या ? उनके घर जाना तो दूर किसी ने फोन करके भी पूछा है क्या उन परिवारों का हाल जिनके परिजन नोटबंदी के महान संग्राम में शहीद हुए हैं !
       सत्ता पक्ष ही नहीं जनता की परेशानियों पर हमदर्दी दिखाने के लिए संसद में उपद्रव उठाने वाला विपक्ष या उसके नेता  ही गए हैं क्या किसी नोटबंदी संग्राम में शहीद हुए व्यक्ति के घर !हमदर्दी होती तब तो जाते !केवल संसद नहीं चलने देते हैं बस किंतु इसमें जनता की हमदर्दी क्या है !ये तो विपक्ष की कमजोरी है उसे अपने विचार रखने नहीं आते वो गूँगे लोग सरकार को अपनी बात नहीं समझा पाते क्योंकि चर्चा करने के लिए शिक्षा समझ अनुभव आदि बहुत कुछ चाहिए होता है किंतु जिसके पास कोई भी योग्यता न हो वो हुड़दंग करके संसद को रोक लेते हैं यही उनकी प्रतिभा का प्रदर्शन है ! संसद रोकने के आलावा उन्हें कुछ आता ही नहीं है वो तो  केवल सरकार की बुराई करना और सुनना चाहते हैं बस ! इसके लिए वो JNU ,दादरी या हैदर बाद कहाँ कहाँ नहीं मारे मारे फिरते हैं !बाकी जनता के दुःख दर्द से विपक्ष का क्या लेना देना !वो तो जनता को हमदर्दी दिखाने के लिए करता है  सारे उपद्रव !जो सरकार  को गाली दे उसके साथ खड़ा हो जाता है विपक्ष !बारे लोकतंत्र !बारी  स्वस्थ लोकतंत्र की खूबसूरती !
        जनता के दरवाजे कोई नेता नहीं जाएगा यह पूछने कि आपने खाया है या नहीं किन्तु उस व्यक्ति की मौत का राजनैतिक लाभ लेने के लिए कैसे कैसे हथकंडे अपनाते हैं निष्ठुर नेता लोग !इनके हृदय में जनता के प्रति दया भावना होती ही नहीं है बिलकुल इसीलिए करते हैं जनता के साथ इतना घटिहा  व्यवहार !तभी तो नेताओं की मृत्यु पर भारी भरकम शोक और तमाम शोक संदेश किन्तु आम जनता मरे तो... !गूँगे बहरे हो जाते हैं यही नेता लोग !मानो !आम जनता मरे तो मरे कोई नेता क्या करे किंतु नेताओं की मृत्यु पर भारी भरकम शोक !
         इतना ही नहीं वैसे भी नेताओं के मन में जनता की औकात क्या होती है ये उनके हर आचार व्यवहार में झलक ही जाती है । 
       बंधुओ !नेता लोग जब जनता को अपनी पार्टी का कोई पद या चुनावी टिकट देने लायक नहीं समझते तो जनता उन्हें वोट देने लायक क्यों समझे !आखिर जनता की ही मजबूरी क्या है कि वो ऐसे नेताओं को वोट दे और चुनाव जितवावे !
        नेता लोग राजनैतिक पार्टियों के पद अपने बेटा बेटी बहू बहन भांजे भतीजे भाई आदि को दे देते हैं फिर भी कुछ पद या टिकट आदि अगर बच जाते हैं तो पैसे वालों से पैसे लेकर उन्हें बेच देते हैं कुछ बचा कर रख लेते हैं उन लोगों को देने के लिए जो प्रसिद्ध अभिनेता खिलाड़ी या देखने में अच्छे लगने वाली सुंदरी स्त्रियाँ और सुंदर पुरुषों हों !उनको दे देते हैं है फिर आम आदमी को आश्वासन देने या झूठे वायदे करने के अलावा उनके पास बचत ही क्या है !ये लोग कितनी गिरी नज़रों से देखते हैं आम आदमी को !इसका अंदाज आप इसी  लगाइए कि शिक्षित समझदार कर्मठ योग्य ईमानदार लोगों की उपेक्षा करके केवल अपने बेटा बेटी बहन भांजा भतीजा भाई आदि अपने ही घर खानदान वालों या नाते रिस्तेदारों को देते हैं पार्टी के पद और चुनाव लड़ने की टिकट !जो जनता को इतनी गिरी नजर से देखते हैं उन्हें आम आदमी वोट क्यों दे !


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