ब्राह्मणों पर शोषण करने का आरोप लगाकर चुनाव जीतने वाले नेतालोग अब सुधर जाएँ !सतयुग आने वाला है !शिक्षित सदाचारी ईमानदार लोगों को तो कोई दिक्कत नहीं होगी किंतु राजनीति में ऐसे भले लोग होते कितने हैं !
अपनी योग्यता ईमानदारी ,जन सेवा और सदाचरण के बल पर चुनाव जीतने की हिम्मत रखने वाले नेताओं की संख्या राजनैतिक पार्टियों में है कितनी !राजनैतिक पार्टियों के मालिक लोग चरित्रवान सदाचारी ईमानदार लोगों को अपनी पार्टियों में सम्मिलित करने में इसीलिए डरते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि ये बेईमानी न करेगा न करने देगा !इसलिए भले लोगों को राजनैतिक पार्टियों में नेता लोग घुसने ही नहीं देते !किसी नेता पर भ्रष्टाचार जैसे कोई आरोप लगें उसके बीबी बच्चों को पद देकर उनका चेहरा दिखाकर माँग लिए जाते हैं वोट !वैसे भी राजनेता चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीटें रिजर्व कर लेते हैं अपने रिस्तेदारों परिवार वालों को सीटें रिजर्व कर लेते हैं अपने को पैसे देकर सीटें खरीदने वालों की सीटें रिजर्व कर लेते हैं इसके बाद आता है कार्यकर्ताओं का नंबर !किन्तु आमजनता का चुनाव लड़ने लायक कभी नंबर ही नहीं आता है वो तो तालियाँ बजाने के लिए भीड़ लगाने के लिए वोट देने के लिए होती है नेता लोग इसके अलावा आम जनता में से बड़े बड़े ज्ञानी गुणवान योग्य परिश्रमी और ईमानदार लोगों को राजनीति में आने कौन देता है थोड़े बहुत लोग जुगाड़ लगाकर घुस भी आए तो डरा धमका कर बैठा दिए जाते हैं !
अपनी योग्यता ईमानदारी ,जन सेवा और सदाचरण के बल पर चुनाव जीतने की हिम्मत रखने वाले नेताओं की संख्या राजनैतिक पार्टियों में है कितनी !राजनैतिक पार्टियों के मालिक लोग चरित्रवान सदाचारी ईमानदार लोगों को अपनी पार्टियों में सम्मिलित करने में इसीलिए डरते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि ये बेईमानी न करेगा न करने देगा !इसलिए भले लोगों को राजनैतिक पार्टियों में नेता लोग घुसने ही नहीं देते !किसी नेता पर भ्रष्टाचार जैसे कोई आरोप लगें उसके बीबी बच्चों को पद देकर उनका चेहरा दिखाकर माँग लिए जाते हैं वोट !वैसे भी राजनेता चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीटें रिजर्व कर लेते हैं अपने रिस्तेदारों परिवार वालों को सीटें रिजर्व कर लेते हैं अपने को पैसे देकर सीटें खरीदने वालों की सीटें रिजर्व कर लेते हैं इसके बाद आता है कार्यकर्ताओं का नंबर !किन्तु आमजनता का चुनाव लड़ने लायक कभी नंबर ही नहीं आता है वो तो तालियाँ बजाने के लिए भीड़ लगाने के लिए वोट देने के लिए होती है नेता लोग इसके अलावा आम जनता में से बड़े बड़े ज्ञानी गुणवान योग्य परिश्रमी और ईमानदार लोगों को राजनीति में आने कौन देता है थोड़े बहुत लोग जुगाड़ लगाकर घुस भी आए तो डरा धमका कर बैठा दिए जाते हैं !
राजनैतिकदलों में चर्चा करने समझने तथा अपनी बात कहने और दूसरों के विचार सहने योग्य विचारवान कई लोग राजनैतिक दलों में किन्नरों जैसा उपेक्षित जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिए गए हैं हैं वे शिक्षित समझदार अनुभवी एवं जीवंत नेता लोग हैं !किंतु वे अपने इमानधर्म को भी महत्त्व देना चाहते हैं वे अपनी आत्मा की आवाज भी सुनना चाहते हैं इसलिए उनकी उपेक्षा करके राजनैतिक दलों के मालिकों की पहली पसंद होते हैं नेताओं की बीबी बहन बेटियाँ बच्चे एवं नाते रिस्तेदार आदि दूसरी पसंद होते हैं पैसे वाले वे लोग जो पार्टी के मालिक की जेब भर सकते हैं तीसरी पसंद होते हैं पार्टी मालिकों के इशारे पर सदनों में हुल्लड़ मचाने वाले लोग !चर्चा करने की योग्यता रखने वाले लोगों को पसंद कौन करता है उन्हें चुनावी टिकट या पार्टी का पदाधिकार देना कौन चाहता है पार्टी के पदों और चुनावी प्रत्याशियों के रूप में तो अपने और अपनों को ही देखना चाहते हैं नेता लोग !
संसद चर्चा का मंच है किंतु अशिक्षा अल्पशिक्षा अयोग्यता या अनुभव
हीनता के कारण जो सदस्य लोग उस चर्चा में चाह कर भी भाग न ले पा रहे हों वे
सदन में शांत कब तक बैठे रहें वे कुर्सी छोड़कर समय पास करने बाहर निकल
जाएँ ! या कुर्सी पर बैठे बैठे सोवें या मोबाईल फोन में वीडियो देखें या
अपनी पार्टी के मालिक का इशारा पाकर तब तक हुल्लड़ मचाते रहें जब तक मालिक
चुप रहने को न कहे आखिर वे क्या करें !सदन की सार गर्भित चर्चाओं में जो
बोलने और समझने की योग्यता न रखते हों सदनों की कार्यवाही न चलने के लिए वे
कितने दोषी माने जाएँ उनमें जितनी योग्यता है उससे अधिक अपेक्षा उनसे कैसे
की जा सकती है और चाह कर भी उस पर वे खरे कैसे उतरें !
अयोग्य लोग सदनों में जाकर वहाँ की कार्यवाही रोक ही सकते हैं चलाना तो उनके बश का होता नहीं है कार्यवाही चलाने अर्थात चर्चा के लिए जो शिक्षा समझ अनुभव चाहिए वो उनके पास होता नहीं है और दूसरों के अच्छे विचारों को मानने एवं अपने विचारों को विनम्रता पूर्वक औरों को मना लेने की प्रतिभा नहीं होती है वो बेचारे ज्ञानदुर्बल लोग चर्चा कैसे करें !सदनों में चर्चा करना आसान होता है क्या ?
जिस राजनीति में शिक्षा की अनिवार्यता न हो समझ सदाचरण एवं अनुभव का महत्त्व ही न हो केवल अपनों को या पैसे वालों को या प्रसिद्ध लोगों को पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट बाँटे जाने लगे हों वो संसद में आवें या न आवें ! चर्चा करने और समझने की योग्यता रखते हों या न रखते हों वो कुर्सियों पर बैठ के सोवें या समय पास करने के लिए बाहर चले जाएँ या संसद की कार्यवाही के समय ही अपने मोबाईल पर वीडियो देखने लगें या अपने पार्टी मालिकों का आदेश पाकर हुल्लड़ मचाने लगें !किंतु संसद में चर्चा करने और समझने की योग्यता यदि उनमें नहीं है तो वो संसद कीsee more.... http://samayvigyan.blogspot.in/2016/12/blog-post.html
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