Wednesday, 22 February 2017

राजनीति सब कुछ छीन लेती है !शिक्षित और चरित्रवान कितने लोग हैं जो टिक पाते हैं राजनीति के अखाड़े में !

      राजनीति में शिक्षित और ईमानदार लोगों की संख्या बहुत कम है क्यों ?आखिर इसकी चिंता क्यों नहीं की जानी चाहिए !अशिक्षा या अलप शिक्षा के कारण सदनों में भी हुल्लड़ मचने लगते हैं लोग !खाली बैठकर क्या करें वे लोग जिन्हें चर्चा समझ में आती नहीं है और कर पाते नहीं हैं !
     वेश्याओं और भ्रष्ट नेताओं में सबसे बड़ा अंतर ये है कि वेश्याएँ जो कहती हैं वो करती भी हैं किंतु नेता लोग जो भी कहते हैं वो नहीं करते !बड़े बड़े राजनैतिकदलों के घोषणापत्र पूरी तरह झूठ के पुलिंदा होते हैं। 
    नेता लोग जनता के हित की बातें करके जनता के हिस्से के पैसे से अपना घर भर लेते हैं देश जबसे आजाद हुआ हर चुनाव में गरीबी दूर करने का नारा लगाकर चुनाव जीतते हैं किंतु गरीब तो गरीब ही रहते हैं नेता रईस हो जाते हैं !एक से एक कंगले नेता कब और कैसे करोड़पति हो जाते हैं किसी को पता ही नहीं होता है उनके पास व्यापार करने को न पैसे न समय फिर भी अनाप शनाप कमाई !किसी को नहीं पता होता है कि नेताओं के पास कहाँ से आता है इतना सारा धन किंतु वेश्याओं की कमाई में पारदर्शिता होती है !वेश्याएँ भी नेताओं की तरह ही यदि केवल कमाई ही करना चाहतीं तो राजनीति के धंधे से वो भी कमा सकती थीं अकूत संपत्ति  किंतु उन्होंने अपना दावन दागदार नहीं होने देती हैं इसीलिए तो अपना शरीर दाँव पर लगाकर चरित्र और सिद्धांत बचा लेती हैं किंतु राजनीति तो वो भी छीन लेती है !उठना बैठना बोलना आदि सब कुछ बनावटी होता है राजनीति में !
    वेश्याओं को भी पता है कि राजनीति सबसे बड़ा कमाऊ धंधा है राजनीति में अपार संपत्ति एवं भारी भरकम सुख सुविधाएँ हैं सामाजिक सम्मान प्रतिष्ठा आदि सारे सुख भी हैं ,काम केवल चुनाव जीतना इसी बल पर सारे राजभोग   भोगते हैं राजनेता ! चुनाव तो वेश्याएँ भी औरों की अपेक्षा अधिक आसानी से जीत सकती हैं उनका धंधा ही लोगों को प्रभावित करना है शिक्षा की आवश्यकता चुनाव लड़ने के लिए होती नहीं है सबसे अलग अलग ढंग से आँख मार कर खुश करना नेताओं से ज्यादा उन्हें आता है नेताओं से अधिक अच्छे ढंग से वे झूठ बोल लेती हैं फिर भी वेश्याएँ वेश्यावृत्ति की सारी जलालत सहती हैं किंतु राजनीति में नहीं आती हैं !

   वेश्याएँ इस कटु  सच्चाई को समझती हैं कि वेश्यावृत्ति में केवल शरीर का ही सौदा करना होता है जबकि  वर्तमान राजनीति तो धंधा ही चरित्र और सिद्धांतों की बोली लगवाने का है ।वेश्याएँ शरीर आर्थिक परिस्थितियों के कारण बेचती हैं किंतु अपना चरित्र बचा लेती हैं वेश्याएँ सोचती हैं कि कमाई के लालच में राजनीति करनी शुरू की तो चरित्र चला जाएगा !चरित्र की चिंता में बेचारी सारी दुर्दशा सहती हैं किंतु नेता कहलाना पसंद नहीं करती हैं ।
        राजनीति का कितना अवमूल्यन हुआ है आज ।आप स्थापित सरकारों में सम्मिलित लोगों को चोर छिनार भ्रष्टाचारी कहकर जीत लेते हैं चुनाव !आप ब्राह्मणों सवर्णों को गाली देकर जीत लेते हैं चुनाव !दलितों महिलाओं गरीबों अल्पसंख्यकों की बातें करके जीत लेते हैं चुनाव !विकार के आश्वासन देकर जीत लेते हैं चुनाव !इसीलिए सदाचारी ,योग्य और लोगों को राजनीति में घुसने कौन देता है !किस पार्टी में जगह है ऐसे लोगों के लिए !ये वर्तमान समय के हमारे लोकतंत्र का चरित्र है ।
      संसद और विधान सभा जैसे अत्यंत पवित्र सदनों की गरिमा ही चरित्र और सिद्धांतों की रक्षा करने से है किंतु कितने चरित्रवान  और सिद्धांतवादियों को प्रवेश मिल पाता है राजनीति में !इसी प्रकार से संसद और विधान सभा जैसे सदन होते ही चर्चा के लिए हैं चर्चा करने के लिए उच्च शिक्षा को  अनिवार्य क्यों न बनाया जाए !जो सदस्य अपनी अयोग्यता के कारण औरों की कही हुई बात समझेंगे ही नहीं अपनी समझा नहीं सकेंगे उनका इन सदनों में और काम ही क्या है उदास बैठने के अलावा ! या तो वे हुल्लड़ मचावें या सोवें या बाहर निकलकर कहीं गप्पें मारें आखिर ऐसे सदनों में और वो करें भी तो क्या कहाँ तक उदास बैठे रहें !
    चरित्र ,सिद्धांत शिक्षा और सदाचरण जैसे महत्त्वपूर्णमूल्यों को चुनाव लड़ने के लिए अनिवार्य करने के लिए बहुमत चाहिए !भले और शिक्षित लोगों का बहुमत कभी हो ही नहीं सकता भीड़ होती ही जनरल बोगी में हैं !माना कि अवसर सबको मिलना चाहिए किंतु इसका मतलब ये भी तो नहीं है कि अशिक्षित और अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठा दिया जाए मूर्खों को कलट्टर बना दिया जाए अशिक्षितों को शिक्षक बना दिया जाए यदि ये सब होना गलत है तो इन सम्मानित सदनों के सदस्यों के लिए भी शिक्षा और योग्यता के उच्चमानदंड क्यों न बनाए जाएँ !
    संसद और विधान सभा जैसे सदनों के सदस्यों पर कम जिम्मेदारी होती है क्या ?उनमें से अयोग्य लोग अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कैसे कर सकेंगे !किंतु ऐसा सब कुछ सोचने वाले सजीव राजनेता कहाँ और कितने हैं जिनसे उमींद की जाए कि ये देश के लिए भी कुछ सोचेंगे !
     राजनीति में शिक्षित योग्य ईमानदार सदाचारी लोग आवें ऐसा बोलते तो सब हैं किंतु ऐसे लोगों को अपनी पार्टी में घुसने कौन देता है जिसने एहसान व्यवहार में घुसने भी दिया तो वो उसे पहले वैचारिक बधिया (नपुंसक) बनाने की प्रतिज्ञा करवाता है बाद में घुसने देता है ताकि वो पार्टी में आकर चरित्र और सिद्धांतों का झंडा उठाए न घूमें  !
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