राजनैतिकदलों में किन्नरों जैसा उपेक्षित जीवन बिता रहे हैं कई शिक्षित,समझदार अनुभवी चरित्रवान एवं जीवंत नेता लोग !और भ्रष्ट बेईमान अशिक्षित अयोग्य एवं दुश्चरित्र नेताओं को दिए जाते हैं टिकट और बनाया जाता है प्रत्याशी !
अधिकाँश राजनैतिक पार्टियों के मालिक लोकतंत्र के दुश्मनों के वे अपने नाते रिस्तेदार सगे संबंधी आदि वे लोग होते हैं या फिर पैसे देकर टिकट खरीद लेने वाले लोग होते हैं !पार्टी के लिए खून पसीना बहाने वाले ईमानदार कार्यकर्ता हाथ मलते रह जाते हैं !ऐसी पापी पार्टियों और लोकतंत्र के शत्रु नेताओं नेताओं का बहिष्कार किया जाए !
राजनैतिकदल चुनावी टिकट अपने घर परिवार वालों को देते हैं नाते रिस्तेदारों को देते हैं या फिर बेच लेते हैं ऐसे पक्षपात से पैदा हुए प्रत्याशी जब चुनाव जीत का जाते हैं तो सदनों में हुल्लड़ मचाते हैं कार्यवाही रोकते हैं उपद्रव आदि जो कुछ भी कर पाते सब कुछ करते हैं किंतु नेताओं के घर खानदान वाले या नाते रिस्तेदार आदि
बेचारे लोग सदनों की चर्चा में भाग नहीं ले पाते क्योंकि उसके लिए शिक्षा ज्ञान अनुभव राष्ट्रचिंतन संस्कार सदाचार परोपकार सेवाभाव ईमानदारी जैसे तमाम गुण चाहिए जिसकी उमींद नेताओं के सगे सम्बन्धियों और टिकट खरीदकर चुनाव लड़ने वाले लोगों से नहीं की जा सकती ! ऐसे में ये सदनों में जाकर हुल्लड़ और उपद्रव ही करेंगे जनता के पैसों से चलने संसद का बहुमूल्य समय बर्बाद करवाने पर आमादा है देश के बड़े बड़े राजनैतिक दल वो चर्चा करेंगे कैसे जिनमें चर्चा करना तो छोड़ी समझने लायक भी शिक्षा न हो ऐसे लोगों की योग्यता को जानते हुए भी जो पार्टियां टिकट देती हैं उनके इरादे ही संसद की कार्यवाही चलने देने के नहीं होते !
अयोग्य लोग सदनों में जाकर वहाँ की कार्यवाही रोक ही सकते हैं चलाना तो उनके बश का होता नहीं है कार्यवाही चलाने अर्थात चर्चा के लिए जो शिक्षा समझ अनुभव चाहिए वो उनके पास होता नहीं है और दूसरों के अच्छे विचारों को मानने एवं अपने विचारों को विनम्रता पूर्वक औरों को मना लेने की प्रतिभा नहीं होती है वो बेचारे ज्ञानदुर्बल लोग चर्चा कैसे करें !सदनों में चर्चा करना आसान होता है क्या ?
जिस राजनीति में शिक्षा की अनिवार्यता न हो समझ सदाचरण एवं अनुभव का महत्त्व ही न हो केवल अपनों को या पैसे वालों को या प्रसिद्ध लोगों को पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट बाँटे जाने लगे हों वो संसद में आवें या न आवें ! चर्चा करने और समझने की योग्यता रखते हों या न रखते हों वो कुर्सियों पर बैठ के सोवें या समय पास करने के लिए बाहर चले जाएँ या संसद की कार्यवाही के समय ही अपने मोबाईल पर वीडियो देखने लगें या अपने पार्टी मालिकों का आदेश पाकर हुल्लड़ मचाने लगें !किंतु संसद में चर्चा करने और समझने की योग्यता यदि उनमें नहीं है तो वो संसद की चर्चा में सहभागी कैसे बनें !ऐसे लोगों को पद - प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट प्रदान करने वालों को ही दोषी क्यों न माना जाए !
संसद चलने का मतलब होता ही है विचारों का आदान प्रदान ! किंतु विचारशून्य लोग संसद चलने क्यों दें इसके लिए शिक्षा जरूरी है । आजकल तो नेता बनने के लिए प्रसिद्ध होना जरूरी है भले ही वह प्रसिद्धि कितने भी कुकर्मों से ही क्यों न मिली हो ! नेता लोग अपने घर ख़ानदान वालों नाते रिस्तेदारों के अलावा पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकटों का हकदार केवल उन्हें मानते हैं जो चुनावी टिकट खरीद सकते हों या अच्छे बुरे कैसे भी कामों से प्रसिद्ध हो चुके हों भले वो बदनाम ही क्यों न हों !
लोकतंत्र की टाँगें सहलाने का दंभ भरने वाले राजनैतिक पार्टियों के मालिक निर्लज्ज नेतालोग उन योग्य और समाज साधकों की उपेक्षा करके या यूँ कहें कि उनका हक़ मार कर अपने उन बेटा बेटी बहू बहन भांजों भतीजों आदि को पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट देते हैं जिन्हें राजनीति का कुछ भी पता ही नहीं होता है !तालियाँ बजवाने नारे लगाने रैलियाँ निकालने के लिए होते हैं कार्यकर्ता किंतु पद प्रतिष्ठा पाने और चुनावी टिकट पाने के लिए होते हैं वे स्पेशल लोग जिनपर पार्टी मालिकों की कृपा होती है या वो पैसे देते हैं या फिर प्रसिद्ध होते हैं या फिर पार्टी मालिकों के अपने बेटा बेटी बहू भांजे भतीजे आदि पार्टी मालिकों के बिलकुल अपने लोग !
संसद चर्चा का मंच है किंतु जो अशिक्षित लोग न समझ सकते हों न समझा सकते हों वे हुल्लड़ न मचावें तो करें क्या ?वे गूँगेनेता बेचारे खुद कुछ बोल नहीं सकते और जो बोल रहे होते हैं उनकी समझ नहीं सकते वो तो दिहाड़ी मजदूरों की तरह अपने अपने पार्टी मालिकों का मुख ताका करते हैं उनका इशारा मिलते ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने लगते हैं पार्टियों में सबके काम अलग अलग बँटे होते हैं कि किसको कौन कैसी गालियाँ देगा कौन कितनी देर चीखे चिल्लाएगा !कौन बंदरों की तरह उछलकूद करके गैलरी में आ जाएगा या कौन कागज फाड़ कर किसी सम्मानित पदाधिकारी पर फ़ेंक देगा कौन किसे कैसे अपमानित करेगा आदि आदि !
ईमानदार लोग पार्टी अनुशासन के कैद खाने में पड़े पड़े बेचारे बुढ़ापे की प्रतीक्षा में अपने बहुमूल्य जीवन को घुट घुट कर बिताने के लिए मजबूर होते हैं !दूसरी ओर अशिक्षित अयोग्य अनुभव विहीन असंस्कारित लोगों को पार्टियों के पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट दिए जा रहे होते हैं । वे जीत कर जब सदनों में पहुँचते हैं तब चीखते चिल्लाते हुल्लड़ मचाते अपशब्द बकते कागज फाड़ फाड़ कर फेंकते हैं !पार्टी मालिकों के बँधुआ मजदूरों की तरह उनका इशारा पाते ही बंदरों की तरह उछल कूद शुरूकर देते हैं सदनों के योग्य से योग्य लोगों का अपमान करने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती यहाँ तक कि पीठासीन अधिकारियों के अनुशासन आदेश आदि की भी वेपरवाह नहीं करते हैं वो लोग !अपनी पार्टी के सर्वोच्च ठेकेदार का इशारा मिले बिना वे शांत होते ही नहीं हैं !
बंधुओ !किसी राजनैतिक पार्टी में किन्नर बनकर रहने से अच्छा है कि आप जनसेवा व्रती बनें और अपनी जीवंतता सिद्ध करें !
बंधुओ ! सभी भाई बहनों से निवेदन है कि यदि आप राजनैतिक पार्टियों जुड़कर देश सेवा करना चाहते हैं उसके लिए आप किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़े भी हैं किंतु वो पार्टी और उसके नेता आपको इतनी गिरी निगाह से देखते हैं कि वो पार्टी संगठन के सभी पद और सरकार बनने के बाद सरकार के सभी पद वो खुद ले लेते हैं या अपने घर खानदान वाले या नाते रिश्तेदारों ,परिचितों या पैसे वालों को दे देते हैं या फिर पैसे लेकर बेच देते हैं !और आपको केवलवोट और वोटमाँगने वाला मात्र बनाकर रखना चाहते हैं और आपको पार्टी से केवल इसलिए जोड़े रखना चाहते हैं ताकि आप जैसे लोग उनका आदेश पाते ही उनके लिए भौंकने लगें जिससे उनका रूतबा कायम हो,उनकी प्रतिष्ठा बढ़े वो चुनाव जीतें उन्हें महत्व मिले वो पद पावें और वो सब कुछ बनते रहें और आप उनके बनने खुशियाँ मनाते एवं जगह जगह उनका स्वागत करते घूमते रहें !क्या आप भी अपने को इतनी गिरी हुई निगाहों से देखते हैं यदि हम तो क्यों उनके पीछे पीछे घूमें ?
ऐसे राजनैतिक पार्टियों के मालिक या नेता लोग आम समाज को यदि इतनी गिरी निगाह से देखते हैं कि उन्हें कोई पद प्रतिष्ठा देने लायक ही नहीं समझते हैं तो आम समाज को भी चाहिए कि वो उसी शैली में ऐसे घमंडी नेताओं और राजनैतिक पार्टियों को अपना भी परिचय दें !
आप भी ऐसे नेताओं और पार्टियों का बहिष्कार करें जो आप से कम पढ़े लिखे ,आपसे कम प्रतिभा संपन्न, आप से कम काम करने वाले ,आप से कम चरित्रवान, आप से कम अच्छा बोल लेने वाले ,नशा करने वाले, गाली गलौच करने वाले,गुंडा गर्दी करने वाले लोगों को पद प्रतिष्ठा और महत्त्व देने वाली पार्टियों से आप केवल बेइज्जती सहने के लिए जुड़े हैं क्या ?
जहाँ आपका कोई मान सम्मान इज्जत प्रतिष्ठा ही न हो तो ऐसी पार्टी को आप तुरंत छोड़ कर शुरू कीजिए अपने निजी सामाजिक कार्य जीवंतता का परिचय दीजिए !यदि आपके अंदर वास्तव में क्षमता है तो आपके कामों से जनता खुश होगी अपने आप !ऐसे में आप किसी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ें या फिर निर्दलीय जनता आपको विजय अवश्य दिलवाएगी क्योंकि हार जीत जनता के वोटों से होती है न कि पार्टियों और नेताओं से !इसलिए आप अपनी प्रतिभा पहचानिए पहचान बनाइए !
अधिकाँश राजनैतिक पार्टियों के मालिक लोकतंत्र के दुश्मनों के वे अपने नाते रिस्तेदार सगे संबंधी आदि वे लोग होते हैं या फिर पैसे देकर टिकट खरीद लेने वाले लोग होते हैं !पार्टी के लिए खून पसीना बहाने वाले ईमानदार कार्यकर्ता हाथ मलते रह जाते हैं !ऐसी पापी पार्टियों और लोकतंत्र के शत्रु नेताओं नेताओं का बहिष्कार किया जाए !
राजनैतिकदल चुनावी टिकट अपने घर परिवार वालों को देते हैं नाते रिस्तेदारों को देते हैं या फिर बेच लेते हैं ऐसे पक्षपात से पैदा हुए प्रत्याशी जब चुनाव जीत का जाते हैं तो सदनों में हुल्लड़ मचाते हैं कार्यवाही रोकते हैं उपद्रव आदि जो कुछ भी कर पाते सब कुछ करते हैं किंतु नेताओं के घर खानदान वाले या नाते रिस्तेदार आदि
बेचारे लोग सदनों की चर्चा में भाग नहीं ले पाते क्योंकि उसके लिए शिक्षा ज्ञान अनुभव राष्ट्रचिंतन संस्कार सदाचार परोपकार सेवाभाव ईमानदारी जैसे तमाम गुण चाहिए जिसकी उमींद नेताओं के सगे सम्बन्धियों और टिकट खरीदकर चुनाव लड़ने वाले लोगों से नहीं की जा सकती ! ऐसे में ये सदनों में जाकर हुल्लड़ और उपद्रव ही करेंगे जनता के पैसों से चलने संसद का बहुमूल्य समय बर्बाद करवाने पर आमादा है देश के बड़े बड़े राजनैतिक दल वो चर्चा करेंगे कैसे जिनमें चर्चा करना तो छोड़ी समझने लायक भी शिक्षा न हो ऐसे लोगों की योग्यता को जानते हुए भी जो पार्टियां टिकट देती हैं उनके इरादे ही संसद की कार्यवाही चलने देने के नहीं होते !
अयोग्य लोग सदनों में जाकर वहाँ की कार्यवाही रोक ही सकते हैं चलाना तो उनके बश का होता नहीं है कार्यवाही चलाने अर्थात चर्चा के लिए जो शिक्षा समझ अनुभव चाहिए वो उनके पास होता नहीं है और दूसरों के अच्छे विचारों को मानने एवं अपने विचारों को विनम्रता पूर्वक औरों को मना लेने की प्रतिभा नहीं होती है वो बेचारे ज्ञानदुर्बल लोग चर्चा कैसे करें !सदनों में चर्चा करना आसान होता है क्या ?
जिस राजनीति में शिक्षा की अनिवार्यता न हो समझ सदाचरण एवं अनुभव का महत्त्व ही न हो केवल अपनों को या पैसे वालों को या प्रसिद्ध लोगों को पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट बाँटे जाने लगे हों वो संसद में आवें या न आवें ! चर्चा करने और समझने की योग्यता रखते हों या न रखते हों वो कुर्सियों पर बैठ के सोवें या समय पास करने के लिए बाहर चले जाएँ या संसद की कार्यवाही के समय ही अपने मोबाईल पर वीडियो देखने लगें या अपने पार्टी मालिकों का आदेश पाकर हुल्लड़ मचाने लगें !किंतु संसद में चर्चा करने और समझने की योग्यता यदि उनमें नहीं है तो वो संसद की चर्चा में सहभागी कैसे बनें !ऐसे लोगों को पद - प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट प्रदान करने वालों को ही दोषी क्यों न माना जाए !
संसद चलने का मतलब होता ही है विचारों का आदान प्रदान ! किंतु विचारशून्य लोग संसद चलने क्यों दें इसके लिए शिक्षा जरूरी है । आजकल तो नेता बनने के लिए प्रसिद्ध होना जरूरी है भले ही वह प्रसिद्धि कितने भी कुकर्मों से ही क्यों न मिली हो ! नेता लोग अपने घर ख़ानदान वालों नाते रिस्तेदारों के अलावा पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकटों का हकदार केवल उन्हें मानते हैं जो चुनावी टिकट खरीद सकते हों या अच्छे बुरे कैसे भी कामों से प्रसिद्ध हो चुके हों भले वो बदनाम ही क्यों न हों !
लोकतंत्र की टाँगें सहलाने का दंभ भरने वाले राजनैतिक पार्टियों के मालिक निर्लज्ज नेतालोग उन योग्य और समाज साधकों की उपेक्षा करके या यूँ कहें कि उनका हक़ मार कर अपने उन बेटा बेटी बहू बहन भांजों भतीजों आदि को पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट देते हैं जिन्हें राजनीति का कुछ भी पता ही नहीं होता है !तालियाँ बजवाने नारे लगाने रैलियाँ निकालने के लिए होते हैं कार्यकर्ता किंतु पद प्रतिष्ठा पाने और चुनावी टिकट पाने के लिए होते हैं वे स्पेशल लोग जिनपर पार्टी मालिकों की कृपा होती है या वो पैसे देते हैं या फिर प्रसिद्ध होते हैं या फिर पार्टी मालिकों के अपने बेटा बेटी बहू भांजे भतीजे आदि पार्टी मालिकों के बिलकुल अपने लोग !
दूसरी ओर समाज
को बदलने की क्षमता रखने वाले कई बहुमूल्य राजनेतालोग राजनैतिक पार्टियों
में केवल तालियाँ बजाने बधाइयाँ गाने एवं नेग न्योछावर माँगने के लिए रखे
गए हैं !ऐसे लोगों से पार्टियों के अंदर न कोई कुछ पूछता है न बताता है न
कहीं बुलाता है
किंतु ये राजनैतिक बेरोजगार लोग पार्टी कार्यक्रमों में स्वयं ही जाया आया
पूछा बताया करते हैं !ये ऐसे
ऐसे दो दो कौड़ी के भ्रष्टाचारियों की चाटुकारिता करते देखे जाते हैं जिनमें न
शिक्षा न सदाचरण और न ही समाज सेवा की भावना ही होती है जिन्हें जीवन भर पढ़ा सिखा समझा सकते हैं वो समझदार लोग !
भ्रष्टनेताओं के हिसाब से देखा जाए तो संसद में हुल्लड़ मचाने के लिए शिक्षा एवं
समझदारी की जरूरत पड़ती ही कहाँ है !इसलिए सदाचारी नेता बेरोजगार हैं
और भ्रष्टाचारियों के आँगन की बहार हैं !ये राजनीतिक का पतन नहीं तो क्या कहा
जाएगा !संसद चर्चा का मंच है किंतु जो अशिक्षित लोग न समझ सकते हों न समझा सकते हों वे हुल्लड़ न मचावें तो करें क्या ?वे गूँगेनेता बेचारे खुद कुछ बोल नहीं सकते और जो बोल रहे होते हैं उनकी समझ नहीं सकते वो तो दिहाड़ी मजदूरों की तरह अपने अपने पार्टी मालिकों का मुख ताका करते हैं उनका इशारा मिलते ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने लगते हैं पार्टियों में सबके काम अलग अलग बँटे होते हैं कि किसको कौन कैसी गालियाँ देगा कौन कितनी देर चीखे चिल्लाएगा !कौन बंदरों की तरह उछलकूद करके गैलरी में आ जाएगा या कौन कागज फाड़ कर किसी सम्मानित पदाधिकारी पर फ़ेंक देगा कौन किसे कैसे अपमानित करेगा आदि आदि !
ईमानदार लोग पार्टी अनुशासन के कैद खाने में पड़े पड़े बेचारे बुढ़ापे की प्रतीक्षा में अपने बहुमूल्य जीवन को घुट घुट कर बिताने के लिए मजबूर होते हैं !दूसरी ओर अशिक्षित अयोग्य अनुभव विहीन असंस्कारित लोगों को पार्टियों के पद प्रतिष्ठा एवं चुनावी टिकट दिए जा रहे होते हैं । वे जीत कर जब सदनों में पहुँचते हैं तब चीखते चिल्लाते हुल्लड़ मचाते अपशब्द बकते कागज फाड़ फाड़ कर फेंकते हैं !पार्टी मालिकों के बँधुआ मजदूरों की तरह उनका इशारा पाते ही बंदरों की तरह उछल कूद शुरूकर देते हैं सदनों के योग्य से योग्य लोगों का अपमान करने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती यहाँ तक कि पीठासीन अधिकारियों के अनुशासन आदेश आदि की भी वेपरवाह नहीं करते हैं वो लोग !अपनी पार्टी के सर्वोच्च ठेकेदार का इशारा मिले बिना वे शांत होते ही नहीं हैं !
बंधुओ !किसी राजनैतिक पार्टी में किन्नर बनकर रहने से अच्छा है कि आप जनसेवा व्रती बनें और अपनी जीवंतता सिद्ध करें !
बंधुओ ! सभी भाई बहनों से निवेदन है कि यदि आप राजनैतिक पार्टियों जुड़कर देश सेवा करना चाहते हैं उसके लिए आप किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़े भी हैं किंतु वो पार्टी और उसके नेता आपको इतनी गिरी निगाह से देखते हैं कि वो पार्टी संगठन के सभी पद और सरकार बनने के बाद सरकार के सभी पद वो खुद ले लेते हैं या अपने घर खानदान वाले या नाते रिश्तेदारों ,परिचितों या पैसे वालों को दे देते हैं या फिर पैसे लेकर बेच देते हैं !और आपको केवलवोट और वोटमाँगने वाला मात्र बनाकर रखना चाहते हैं और आपको पार्टी से केवल इसलिए जोड़े रखना चाहते हैं ताकि आप जैसे लोग उनका आदेश पाते ही उनके लिए भौंकने लगें जिससे उनका रूतबा कायम हो,उनकी प्रतिष्ठा बढ़े वो चुनाव जीतें उन्हें महत्व मिले वो पद पावें और वो सब कुछ बनते रहें और आप उनके बनने खुशियाँ मनाते एवं जगह जगह उनका स्वागत करते घूमते रहें !क्या आप भी अपने को इतनी गिरी हुई निगाहों से देखते हैं यदि हम तो क्यों उनके पीछे पीछे घूमें ?
ऐसे राजनैतिक पार्टियों के मालिक या नेता लोग आम समाज को यदि इतनी गिरी निगाह से देखते हैं कि उन्हें कोई पद प्रतिष्ठा देने लायक ही नहीं समझते हैं तो आम समाज को भी चाहिए कि वो उसी शैली में ऐसे घमंडी नेताओं और राजनैतिक पार्टियों को अपना भी परिचय दें !
आप भी ऐसे नेताओं और पार्टियों का बहिष्कार करें जो आप से कम पढ़े लिखे ,आपसे कम प्रतिभा संपन्न, आप से कम काम करने वाले ,आप से कम चरित्रवान, आप से कम अच्छा बोल लेने वाले ,नशा करने वाले, गाली गलौच करने वाले,गुंडा गर्दी करने वाले लोगों को पद प्रतिष्ठा और महत्त्व देने वाली पार्टियों से आप केवल बेइज्जती सहने के लिए जुड़े हैं क्या ?
जहाँ आपका कोई मान सम्मान इज्जत प्रतिष्ठा ही न हो तो ऐसी पार्टी को आप तुरंत छोड़ कर शुरू कीजिए अपने निजी सामाजिक कार्य जीवंतता का परिचय दीजिए !यदि आपके अंदर वास्तव में क्षमता है तो आपके कामों से जनता खुश होगी अपने आप !ऐसे में आप किसी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ें या फिर निर्दलीय जनता आपको विजय अवश्य दिलवाएगी क्योंकि हार जीत जनता के वोटों से होती है न कि पार्टियों और नेताओं से !इसलिए आप अपनी प्रतिभा पहचानिए पहचान बनाइए !
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