Friday, 30 June 2017

झुग्गीवालों या गरीबों पर दया दिखाने वालों की नहीं अपितु दायित्व निभाने वालों की जरूरत !

आवश्यकता है कि झुग्गी झोपडी वालों के लिए समाज के मन में अपनापन पैदा करने की !
   गरीबों को अपनापन दिखाने  की नहीं देने की जरूरत है !पूर्णिमा का चंद्रमा सुंदर सबको लगता है और सभी लोग  प्रशंसा भी करते हैं किंतु  इतना सब कुछ होने के बाद भी चन्द्रमा को कोई अपना नहीं समझता है यही कारण है चन्द्रमा को देखकर सुखी होने वाला सारा संसार क्या इस बात की कभी चिंता करता है कि चंद्रमा अपना है उसे कहीं कोई दुःख दर्द तो नहीं है यही बात तो समस्त सुंदर पेड़ पौधे लताएँ पुष्पों पल्लवों बनों बागों नदियों  तालाबों पहाड़ों आदि के विषय में भी है हम सबको देख कर सुखी हो लेना चाहते हैं किंतु वे  सब भी सुखी हों उनके लिए ऐसा पवित्र अपनापन अपने मन में हम क्यों नहीं पैदा कर पाते हैं पर्यावरण की चिंता हमें क्यों नहीं होनी चाहिए और इसके बिना हम ऐसी कल्पना कैसे कर सकते  हैं कि प्रकृति हमारे लिए सुख दायिनी हो हमारे लिए आरोग्य की वर्षा करे !आँधी तूफान बाढ़ महामारी भूकंप आदि प्रकृति के साथ हमारे द्वारा किए जा रहे कपट पूर्ण आचरण के ही दुष्परिणाम हैं |
        यही कपट पूर्ण व्यवहार हम झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले या अन्य सभी गरीब भाई बहनों के साथ करते हैं उन्हें गरीब बनाए रखने वाली बहुत लोगों के पास बहुत योजनाएँ हैं बहुत  NGO ऐसे गरीब लोगों के लिए बहुत काम कर रहे हैं बड़ा चंदा इकठ्ठा कर रहे हैं कोई खाने पीने का सामान तो कोई शिक्षा के इंतजाम कर रहा है बहुत लोग दवा चिकित्सा आदि की व्यवस्था सँभाल रहे हैं इन्हें कपडे आदि बाँटने वाले दयालु दाता आदि धनवान बहुत लोग हैं उनमें से ऐसे बहुत लोगों के बड़े  बड़े विज्ञापन देखे जाते हैं|आजादी से लेकर आजतक प्रायः सभी राजनैतिक दलों के एजेंडे  में ऐसे गरीब लोगों को मदद पहुँचाने वाली लाइन जरूर लिखी जाती है राजनेताओं के भाषण शुरू ही यहीं से होते हैं | बहुत साधू संत लोग भी ऐसे लोगों की मदद करने के नाम पर बहुत धनराशि इकट्ठी करते देखे जाते हैं किंतु इन्हें अपना समझकर इनके लिए शिक्षा संस्कार रोजगार व्यापार आदि की व्यवस्था करते कितने लोग देखे जाते हैं जिनका वास्तविक उद्देश्य ही इन्हें आगे बढ़ाना हो !
     आजादी से लेकर आजतक गरीबों झुग्गी झोपड़ी आदि वालों की मदद करने के नाम पर कितने अत्यंत सामान्य लोग बड़े बड़े नेता धनवान और प्रसिद्धि प्राप्त आदि और भी बहुत कुछ हो गए बड़े बड़े ओहदों पर पहुँच गए किंतु  गरीब झुग्गी झोपड़ी वाले सब अपनी पुरानी परिस्थिति में ही पड़े हुए हैं क्यों ?क्या ये सच नहीं है कि इनके उत्थान के लिए हम जो कुछ करते दिख रहे थे उसमें लक्ष्य इनके नहीं अपितु अपने उत्थान का था इसलिए हमारा अपना उत्थान तो हुआ किन्तु इनका कोई विकास नहीं हुआ !क्योंकि इनका विकास करना हमारा लक्ष्य ही नहीं था दिखावा मात्र था | हमारे कपट पूर्ण वर्ताव से लगता ये जरूर रहा कि हम गरीबों और झुग्गीवालों के लिए चिंतित हैं जबकि सच्चाई ये नहीं थी |
       इसीलिए जैसे हम प्रकृति के साथ कपटपूर्ण वर्ताव करते चले आ रहे हैं तो प्रकृति भी हमारे साथ वैसा ही वर्ताव करने लगी है आँधी तूफान बाढ़ महामारी भूकंप आदि तमाम प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं ठीक उसी प्रकार से हम अपनी  ही समाज के गरीब भाई बहनों के साथ जब मदद करने का दिखावा अर्थात कपट पूर्ण व्यवहार करने लगते हैं तो उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप यही समाज हमारे साथ भी अपनेपन का वर्ताव करना भूल जाता है !परिणाम स्वरूप समाज में सभी प्रकार के अपराध फूलने फलने लगते हैं ! चोरी डकैती हत्या बलात्कार लूट पाट जैसे तमाम प्रकार के सामाजिक अपराध समाज के सक्षम कहे जाने वाले वर्ग के द्वारा गरीबों के प्रति किए जाने वाले उपेक्षात्मक और कपटपूर्ण वर्ताव की प्रतिक्रिया मात्र है |
    इसलिए आवश्यकता है कि झुग्गी झोपडी वालों के लिए समाज के मन में अपनापन पैदा करने की और  उन्हें यह समझाने की कि झुग्गियों में रहने वाले लोगों की जीवन प्रक्रिया कितनी कठिन होती है सरकार का स्वास्थ्य विभाग उत्तम स्वास्थ्य  के लिए जिन जिन बातों आचारों व्यवहारों खान पान रहन सहन आदि के लिए रोकता है उन्हें वैसे ही वातावरण में अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ अत्यंत संकीर्ण और मलिन जगहों पर रहना पड़ता है वैसी ही परिस्थितियों में सर्दी गर्मी वर्षात आदि में भी जीवन ढोना पड़ता है | उसी में तिथि त्यौहार विवाह आदि काम काज का भी निर्वाह करना पड़ता है !
      ऐसी परिस्थितियों में जैसे तैसे जीवन निर्वाह करने की  उनकी  मज़बूरी हो सकती है इसीलिए तो तमाम संकट सहकर भी वो उसी परिस्थिति में गुजर बसर करते हैं किंतु का उनके प्रति भी तो कुछ दायित्व है जिसका ईमानदारी पूर्वक निर्वाह किया जाना चाहिए तो ऐसी परिस्थिति ही पैदा न होती | |अक्सर आग आदि के प्रकोप से सैकड़ों झुग्गियाँ जल जाती हैं बाढ़ में बह जाती हैं आँधी में उड़ जाती हैं !इन सबसे बचा तो प्रशासन तोड़ देता है | किंतु इन्हें ऐसी सभी प्रकार की परेशानियों का सामना केवल संघर्ष और सहन शीलता के साथ करना पड़ता है |यहाँ रहने वाले गरीबों की दुर्दशा देखकर इन पर दया करने वाले बहुत लोग आते हैं कोई कुछ कपड़े लत्ते  खाने पीने का सामान बाँट जाता है कोई कुछ पैसे दे जाता है बहुत लोग दवाएँ आदि चिकित्सा से संबंधित सुविधाओं से संबंधित सहयोग करते हैं कई लोग अपनी शक्ति समार्थ्य के अनुसार अपना कुछ समय देकर इनको शिक्षित संस्कारित आदि बनाने का प्रयास करते देखे जाते हैं ऐसे सभी लोगों के प्रयास प्रशंसनीय हैं न करने से कुछ करना अच्छा है और कुछ हो न हो झुग्गी में रहने वाले भाई बहनों का  समय इसी बहाने बीत रहा होता है इसलिए सबके प्रयास प्रशंसनीय हैं !इसी में मेरा निवेदन मात्र इतना है कि यदि हम इनकी उन्नति के लिए कपट छोड़कर इमान्रदारी पूर्वक  संस्कार सृजन के  प्रयास करते हैं तो ये सहनशील संघर्षशील महानपरिश्रमी वर्ग समाज के लिए वरदान बन सकता है !हमारे थोड़े से सुधार से पृथ्वी पर चारों ओर हँसते  हुए जीवन के दर्शन किए जा सकते हैं । 
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Thursday, 29 June 2017

घूँघटप्रथा का इतिहास काँग्रेसियों को पता ही नहीं है इसीलिए बोल रहे हैं झूठ !ये सत्ता की प्यास का पागलपन भर है !

     काँग्रेसउवाच-  'महिलाओं का घूंघट करना हरियाणा की मूल संस्कृति नहीं है। यह प्रथा विदेशी आक्रमणों के बाद घुसपैठियों के डर से शुरू हुई। बीजेपी सरकार आगे की सोचने के बजाय और राज्य को आगे ले जाने के बजाय बीत चुके समय में चली जाना चाहती है।'see more... ttp://navbharattimes.indiatimes.com/state/punjab-and-haryana/chandigarh/controversy-on-haryana-governments-ad-which-says-veil-is-pride-of-state/articleshow/59352609.cms
      बंधुओ !काँग्रेसी मानसिकता ही इस तरह की है कि  इस देश में जो पहले होता चला आ रहा है वो पिछड़ापन और जो विदेशों से आया है वही हमारी सभ्यता संस्कृति और संस्कार हैं !घूँघट प्रथा की निंदा करने वाले समझदारी के पुलिंदों से पूछा जाए -
    • कांग्रेसियों को भारत के पवित्र इतिहास और परंपराओं से इतनी घृणा क्यों है देश के इतिहास और संस्कृति को मोड़ने मरोड़ने की आदत वो छोड़ क्यों नहीं देते !
    • घूँघट' को पिछड़ेपन का प्रतीक बताने  वाले काँग्रेसी लोग क्या खुद को पिछड़ेपन से ग्रस्तमाताओं की संतान मानते हैं ?
    • घूँघट यदि पिछड़ेपन का प्रतीक है चूँकि भारत में पहले से किया जाता है तो नाक पोंछना शौचना कुल्ला करना कैसे आधुनिक हो गया ?
    • घूँघट करना यदि पिछड़ेपन की सोच तो सफाई से रहना सभ्यता संस्कार भी तो उन्हीं माताओं ने सिखाए थे  इसे भी क्या पिछड़ापन मानते हैं काँग्रेसी !
    • हमारी ये औकात नहीं है कि हम अपने पूर्वजों द्वारा निभाई गई परम्पराओं में कामियाँ निकाल सकें !
    • काँग्रेसियों को खुले मंच पर खुली बहस के लिए चुनौती -वो सिद्ध करें कि "महिलाओं का घूंघट करना हमारी मूल संस्कृति नहीं है। यह प्रथा विदेशी आक्रमणों के बाद घुसपैठियों के डर से शुरू हुई। " 
    •   कोई भी स्वाभिमानी भारतीय कांग्रेसियों के इस झूठ को कैसे सह ले कि हमारे पूर्वज इतने डरपोक रहे होंगे कि उन्होंने आक्रमणकारियों के भय से पर्दा प्रथा प्रारम्भ कर दी हमारी माताएँ इतनी डरपोक थीं क्या ?
    • घूँघटप्रथा यदि पिछड़ापन का प्रतीक है तो क्या घूँघटमारने वाली माताओं को तमीज सिखाना चाहती है काँग्रेस !
    •  घूँघट मारने की प्रथा देश में अनंत काल से चली आ रही है इसके पवित्र उद्देश्य रहे हैं ये किसी के डर से नहीं अपितु नारियों की स्वरक्षा के लिए स्वनिर्मित संस्कार था !काँग्रेसी यदि चाहें तो मैं इसके समर्थन में आदिकालीन प्रमाण प्रस्तुत करने को तैयार हूँ वो खुली बहस खुले मंच पर करने को तैयार हों !
    •  ये देश के लिए शर्म की बात है  कि  इतने दिन तक शासन करने के बाद भी ये  लोग देश के इतिहास और परंपराओं को समझ नहीं पाए हमेंशा भारतीयों को संस्कारों की दृष्टि से भिखारी सिद्ध करते रहते हैं क्यों ?
    • काँग्रेसी नेता यदि इतने ही योग्य थे तो देश में सबसे अधिक समय तक शासन करके देश को ऐसा बना क्यों नहीं सके कि महिलाएँ घूँघट खोलकर स्वाभिमान पूर्वक सुरक्षित रह पातीं !
    • घूँघट प्रथा का विरोध करने वालों से निवेदन है कि वो अभी भी घूँघट प्रथा को छोड़कर कोई एक भी ऐसा कारगर सुझाव बतावें जिसे अपनापाना संभव हो और उससे महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी दी जा सकती हो !
    •   यदि ऐसा कर पाना संभव है तो कांग्रेसी सरकारों ने बलात्कारों पर अंकुश लगाया क्यों नहीं ?
    • जो माताएँ बहनें अभी भी घूँघटप्रथा को अपनाए  हुए हैं उन्हें पिछड़ेपन से ग्रस्त बताना उनका अपमान नहीं है क्या ?वो दुनियाँ को किसी दूसरे की आँखों से क्यों देखें और समझें !उनकी निंदा करना कहाँ तक उचित है ?
      विशेष -घूँघट रखना या न रखना ये महिलाओं का स्वतंत्र अधिकार है किंतु अपनी परंपराओं की निंदा करना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा !

    Wednesday, 28 June 2017

    दिल्ली सरकार कहती है दिल्ली में भ्रष्टाचार कहाँ है किंतु भ्रष्टाचार कहाँ नहीं है क्या बताएगी दिल्लीसरकार ?

     दिल्ली सरकार और  MCD का मिला जुला भ्रष्टाचार !दोनों के बहाने कर रहे हैं दोनों भ्रष्टाचार!अधिकारी कर्मचारी ले रहे हैं दिल्ली सरकार के कलियुगी रामराज्य का आनंद !
          पूर्वी दिल्ली के कृष्णा नगर में K-71,छाछी बिल्डिंग चौक पर दुग्गल बिल्डिंग नाम से 16 फ्लैटों वाली एक बिल्डिंग है जिसकी ऊँचाई लगभग 57 फिट है अलाउड 50 फिट है बाद में अवैध बनाए गए ऊपरी मंजिल पर दो फ्लैट !इसी बिल्डिंग के ऊपर 30 फिट ऊँचा मोबाईल टॉवर लगाया है जिसकी अनुमति न MCD से ली गई और न बिल्डिंग में बने 16 फ़्लैट मालिकों से ही कोई सहमति ली गई !जो इस बिल्डिंग के फ्लैटों में रहते और रेडिएशन से लेकर मोबाईल टावर के द्वारा होने वाली सारी समस्याएँ सहते हैं |इस मोबाईल टॉवर का किराया जिसे मिलता है  वो न इस बिल्डिंग में रहता है और न ही इसमें उसका कोई फ्लैट है न ही उसे बिल्डिंग से कोई मतलब ! इस मोबाईल टॉवर के मैकेनिक बिल्डिंग के बीचोबीच बनी सीढ़ी से छत पर जाते आते हैं रिहायसी बिल्डिंग होने के कारण यहाँ रहने वालों को उन अपरिचितों से सभी प्रकार का रिस्क रहता है विस्फोटक आदि ही रखकर चले जाएँ कौन जिम्मेदार होगा !छत पर रखी पानी की टंकियाँ पाइप आदि कई बार तोड़ चुके हैं अभी भी टूटी पड़ी हैं |मेनगेट लकड़ी का है वो कई बार तोड़ चुके हैं |अब बिल्डिंग का गेट रात भर खुला पड़ा रहता है अगर कभी कोई हादसा होता है तो इसके लिए दिल्ली सरकार के अधिकारी कर्मचारी और EDMC जिम्मेदार होगी मोबाईल टावर से आने वाले लाखों रूपए किराए में से बिल्डिंग में कभी कुछ नहीं लगाया गया पिछले कई वर्षों से बेसमेंट में पानी भरने लगा है मोबाईल टावर हटने से पहले अपने खर्चे से फ्लैट वाले इसे ठीक नहीं करना चाहते हैं और बिल्डिंग गिरने से पहले दिल्ली सरकार और निगम इस टावर को हटाना नहीं चाहते हैं !लगभग 12 वर्ष बीत गए हटाना ही होता तो अब तक हट न जाता !यदि अवैध काम इतने लंबे समय तक चल सकते हैं तो कोई वैध काम करने का परमीशन क्यों ले !हर कोई घूस देकर अवैध काम ही क्यों नहीं कर लेगा !अवैध काम करने वालों को EDMC वाले स्टे दिला देते हैं और खुद घूस खाते रहते हैं पैरवी ही नहीं करते !      दिल्लीसरकार के अधिकारी कर्मचारी हों या EDMC के वे भी तो दिल्लीसरकार के ही अंडर में आते हैं !यदि इस बिल्डिंग के साथ कोई हादसा हो जाता है तो क्या दिल्ली सरकार ये कहकर बच जाएगी कि मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं थी !सब जगह शिकायत करके कहीं सुनवाई न होने पर सब जगह घूस खोरी से निराश मोबाईल टॉवर के कारण आधी बिल्डिंग खाली हो गई है और लोग भी धीरे धीरे जा रहे हैं ये है दिल्ली सरकार की  भ्रष्ट कानून व्यवस्था ! ऐसे अवैध काम करवाने वाले या अभी तक चलने देने के लिए जिम्मेदार घूस खोर अधिकारियों कर्मचारियों पर कार्यवाही करे दिल्ली सरकार और यदि हिस्सा उसे भी पहुँचता हो तो वो भी EDMC  की आड़ लेकर भ्रष्टाचार से कमाई करना जारी रखे !सरकार यदि ईमानदार है तो बिना किसी शिकायत के ऐसे अवैध कार्यों पर नकेल कसे और हटावे ऐसे अवैध मोबाईल टॉवर अन्यथा दिल्ली की  भ्रष्ट कानून व्यवस्था को ईमानदार बताती रहे  !

    Friday, 23 June 2017

    दलितों के लिए हर योजना हर पद हर अनुदान तो सवर्णों के लिए क्या ? देश में सवर्ण किराए पर रहते हैं क्या ?

     जातिवाद मिटाने का नाटक करने वाले नेतालोग  जातिवाद के बिना एक कदम भी नहीं बढ़ाते !घृणा होती है ऐसी तुच्छ सोच पर !
        लोकतंत्र में यदि सब बराबर हैं तो दलितराग क्यों?आजादी की लड़ाई में  सवर्णों का भी बहुत बड़ा योगदान है!किंतु आज सवर्णों की उपेक्षा ऐसे की जा रही है कि जैसे सवर्णों का कोई योगदान ही नहीं है क्यों ?
        सवर्णों की उपेक्षा करके नेता लोग कुछ खुद खा रहे कुछ अपने  चहेते दलितों को खिला रहे हैं जिनके बहाने वे बेचारे खुद खा पा रहे हैं !जैसे भैंसें ज्यादा दूध दें इस उद्देश्य से उन्हें खूब गुड़ खिलाया जाता है न कि भैंसों की सेहत सुधारने के लिए !
         नेता लोग  सवर्णों का हौआ दिखाते जा रहे हैं मनगढंत कहानियाँ सुनाते जा रहे हैं उन्हें समझाते हैं सवर्णों ने शोषण किया था इसलिए गरीब हैं दलित !ऐसे हमदर्द नेताओं के घर वालों के नाम निकलती हैं भ्रष्टाचार से अर्जित अनेकों प्रापर्टियाँ !वैसे बेचारे ईमानदार हैं !
        ये बात स्वयं दलितों को सोचनी होगी कि घोड़ी वाला घोड़ी को चने इसलिए नहीं खिलाता कि घोड़ी की सेहत बने अपितु घोड़ी सवारी करने लायक बनी रहे इसलिए खिलाए जाते हैं चने !इसीकारण तो जैसे घोड़ी की सेहत नहीं सुधर पाती है उसी तरह आजादी से आज तक दलितों को न मरने दिया जा रहा है न मोटा होने दिया जा रहा है !इस साजिश के पीछे नेताओं का कितना शातिर दिमाग है !सवर्णों का भय दिखाकर अपनी गुलामी करा रहे हैं नेता लोग !हरबार वोट लेकर धक्का मार देते हैं इसीलिएतो नहीं हो पाया दलितों का विकास !
        दलितों के नाम पर पास किया फंड नेताओं के पास नहीं तो गया कहाँ और नेताओं के घरों में संपत्तियों के अंबार लगे कैसे ?है कोई हिसाब किताब !है कोई जवाब देने वाला !बड़े बड़े ईमानदारों की सरकारें देखी गईं वो भी जातिवादी निकले और बहुसंख्य भ्रष्टनेताओं की सम्पत्तियों पर कोई ठोस कार्यवाही होते नहीं दिखी भरोसा किस पर किया जाए ! 
           'दलित ' शब्द कोई योग्यता है अभाव है स्वभाव है गुण है गौरव है आखिर हैं क्या दलित !और  सवर्ण क्या हैं और क्या है सवर्णों का अपराध आखिर हर जगह क्यों की जा रही है सवर्णों की उपेक्षा !इस पर खुली मंच पर कराई  जाए खुली बहस ! तब देखा जाए कि दलितों के पिछड़ने में सवर्ण दोषी हैं या स्वयं दलित !
       किसी के घर बच्चा न हो रहा हो तो क्या पड़ोसी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाएगा !
         कुलमिलाकर जातियों के आधार पर पद की परंपरा स्वस्थ समाज की पहचान नहीं हो सकती  !जातियों के आधार पर दिए जाने वाली पद प्रतिष्ठा में दूसरी जातियों के लोगों को सम्मिलित होने में भी लज्जा लगती है !जिनकी उपेक्षा की जा रही हो वो जातियाँ अपना स्वाभिमान समाप्त करके क्यों खड़ी हों ऐसे जातिवादियों के साथ  और समर्थन में !
        आरक्षण देने की बात आवे तो शोषित पीड़ित  हैं दलित !शिक्षा में बराबरी करनी हो तो अयोग्य हैं दलित !आटा दाल चावल बाँटना हो तो गरीब हैं दलित !सरकारी योजनाओं का लाभ देना हो तो दबे कुचले हैं दलित !बड़े से बड़ा पद देना हो तो उसके लिए भी सुपात्र हैं दलित !
          दलितों के विकास के लिए कुछ ऐसा किया जाए !  कम से कम 50 वर्षों के लिए देश की राजनीति रोजगार व्यापार और सरकारी अधिकारी कर्मचारी सारे पदों पर केवल दलित ही बैठा दिए जाएँ !राजनैतिक पार्टियों के छोटे से छोटे पदों से बड़े से बड़े पदों तक केवल दलित लोग ही बैठें !पार्षद विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री आदि  सभी पदों पर केवल दलित बैठाए जाएँ ! तो भी सवर्णों को अपनी योग्यता पुरुषार्थ और परिश्रम के बल पर उन्नति करने से कोई रोक नहीं सकता !
    दलित हैं कौन हुए कैसे दलित शब्द का अर्थ क्या है ?
    एक बार जरूर पढ़ें मेरा यह लेख खोलें यह लिंक   see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2013/01/blog-post_9467.html

    Friday, 16 June 2017

    अफसर शाही के सामने नेता बेचारे लचार हैं इसलिए नेता बेचारों को जनता क्षमा कर दे !!

        अल्प शिक्षितमंत्री सुशिक्षित अफसरों के सामने बोल ही नहीं पाते हैं वो धमका देते हैं कि जैसा तुम कह रहे हो यदि वैसा मैंने कर दिया तो तुम फँस जाओगे !यह सुनते ही मंत्री बेचारे घबड़ा जाते हैं इसके बाद अफसरों की आज्ञा का पालन करने लगते हैं बड़े बड़े मंत्री सांसद विधायक लोग !
        मंत्रियों के द्वारा भेजे हुए सिफारिशी लेटरों को अफसर लोग पढ़ते ही कहाँ हैं और जनता के द्वारा भेजे गए लेटर नेताओं को न पढ़ना आता है और न काम काज की समझ ही होती है वे सिफारिस करके अफसरों के पास भेज देते हैं किंतु अफसरों को क्या पड़ी कि वे जनता के लेटर पढ़ें उन्हें कौन जनता से कोई काम पड़ता है वे तो वोट माँगने जाते नहीं हैं जो बेकार का सिरपालें !
         ट्रेन लड़े या अस्पतालों में बच्चे मरें सरकार को दो ही काम करने होते हैं मरने वालों को मुआबजा देना होता है और लापरवाह अधिकारियों कर्मचारियों को सैलरी देनी होती है ये काम समय पर कर देते हैं सरकारों में बैठे नेता लोग ! 
          ट्रेन लड़ती रहे या अस्पतालों में कुछ भी बिगड़ता रहे अफसरों को क्या चिंता !नेता बेचारों को कुर्सी की चिंता होती है इसलिए वे बेचारे घबड़ा जाते हैं तुरंत उछलकूद शुरू कर देते हैं बेचारे सफाई देने लगते हैं जानते हैं जनता छीन लेगी कुर्सी !किंतु अफसर तो अफसर  ही होते हैं वो तो बड़ी मस्ती में बताते  ट्रेन लड़ी कैसे या अस्पतालों में बच्चे मरे कैसे!क्षण भंगुर सरकार उनका बिगाड़ क्या लेगी !
       ट्रेन के लड़ने में या अस्पताल की लापरवाही में नेताओं की भूमिका क्या है !घूस और सोर्स के बल पर अधिकारी कर्मचारी बने लोगों से सरकार काम कैसे ले और उन्हें हटाने लगे तो जो थोड़ी बहुत लीक पिट भी रही है वो भी बंद हो जाएगी और विपक्ष  करेगा अलग से !सरकार उनका बिगाड़ क्या लेगी !सस्पेंड करेगी तो  चले जाएंगे कोर्ट ट्रांसफर करेगी तो कहीं और जाकर आनंद लेंगे !
        अधिकारीगण लोगों की  समस्याएँ नहीं सुन सकते वे काम क्या करेंगे ? समस्याएँ सुनने के लिए नेता रखे गए हैं वे समस्याएँ सुन सुन कर अफसरों को बताते हैं कि किसका काम करना है किसका नहीं ! अफसर तो अफसर ही होते हैं और नेता तो ठहरे बेचारे नेता !अफसरों की तुलना में नेताओं की शैक्षणिक अयोग्यता और उनके पद की अस्थिरता नेताओं का मनोबल गिराए रहती है ! 'पाँच साल के शेर फिर चूहा' अधिकारियों से आँख मिलाकर बात करने की इनकी हिम्मत ही नहीं पड़ती है !

       अधिकारियों ने जन समस्याएँ सुनने के लिए देश में नेता रखे हुए हैं नेताओं ने जनता की समस्याएँ सुनने के लिए दुकानें  लगा रखी हैं किसका काम करना है किसका नहीं ये नेता डिसाइड करते हैं उस हिसाब से सिफारिशी चिट्ठियाँ  बनती हैं उनमें जिनके काम वास्तव में करने होते हैं उनके लिए कोडवर्ड होते हैं वही काम हो पाते हैं बाक़ी जनता किराया खर्च करती घूमती रहती है !नेता जी समस्याएँ यदि सुनेंगे तो भी काम तो उन्हीं को करना होगा ! 
       जिन नेताओं के पास भ्रष्टाचार की कमाई आती है उन्हीं नेताओं के यहाँ भ्रष्टाचार से बढ़ी समस्याओं के की शिकायत की जाती है किंतु भ्रष्टाचार बंद हो तो नेताओं की आमदनी बंद हो जाए इसलिए जनता की समस्याओं के समाधान के लिए नेता सिफारिशी चिट्ठियाँ बाँटे जा रहे हैं जनता किराया फूँक रही है अधिकारी कर्मचारी चिट्ठियों के बण्डल बनाए जा रहे हैं !नेता यदि ईमानदार हो तो वो चिट्ठियाँ नहीं देगा अपितु उस विभाग से जवाब तलब करेगा कि आपके विभाग से जुड़े कामों के लिए लोग मेरे पास क्यों आ रहे हैं !किन्तु इतना पूछने की हिम्मत वही नेता कर सकता है जिसकी ईमानदारी में थोड़ी भी निष्ठा हो या फिर कर्तव्यनिष्ठा  हो किंतु 'निष्ठा'संकट तो बना ही रहेगा क्योंकि राजनीति मात्र एक धोखा धड़ी है इससे अधिक जो इस पर भरोसा करता है  वो पछताता है !
       नेता प्रायः गरीब घरों से आते हैं प्रायः व्यापार नौकरी आदि करते उन्हें देखा नहीं जाता है इसके बाद भी चल अचल करोड़ों अरबों की सम्पत्तियों के मालिक बन बैठते हैं वो भी सब सुख सुविधाएँ भोगते हुए ये धन ईमानदारी से इकठ्ठा होता है क्या ?नेताओं के धन इकट्ठा करने की प्रक्रिया सभी प्रकार के अपराधों से होकर निकलती है किंतु किसी नेता की हिम्मत नहीं है कि वो नेताओं की सम्पत्तियों और संपत्ति स्रोतों का मिलान करे !यही स्थिति सरकारी अधिकारी कर्मचारियों की है सैलरी एक लाख संपत्ति करोड़ों अरबों की !नेता लोग उन्हें भ्रष्टाचार की अघोषित छूट देते हैं कुछ तो लो कुछ हम जनता के लिए कोरी घोषणाएँ करते जाओ क्योंकि जनता बेवकूप है !इसीलिए राजनैतिक पार्टियों के अक्सर महत्त्वपूर्ण  पदों पर नेता का बेटा ही बैठाया जाता है भ्रष्टाचार की कमाई से पोषित वो नेता पुत्र सब कुछ कर सकता है किंतु भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठा सकता है उस पर ये सबसे बड़ा भरोसा होता है इसी लिए एक से एक अयोग्य लोग नेता पुत्र होने के नाते नेता बनाए गए हैं उनके सैकड़ों गोना अधिक योग्य लोग दरी बिछाते टेंट लगाते घूम रहे हैं !
          नेता बेचारे जनता की समस्याओं का  करें या अपना घर भरें |जन प्रतिनिधियों को यदि इतनी ही शर्म हो तो ऐसे प्रयास स्वयं करें कि उनके क्षेत्र में आने वाले सभी सरकारी विभाग अपने काम निष्ठापूर्वक करें तो जनता नेताओं के पास जाएगी ही क्यों ?किन्तु नेताओं को तो समस्याओं के समाधान का दिखावा करना है इसलिए अपने अपने दरवाजे लगाकर बैठ जाते हैं भीड़ काम धेले का नहीं करते हैं !
      विधायकों सांसदों मंत्रियों के यहाँ जन समस्याएँ सुनने का शौक हो या गाने सुनने का शौक तो शौक ही है  फैशन के इस युग में नेताओं का भी अपना फैशन है  जन समस्याएँ सुनने का और इसमें बुराई भी क्या है ?शौक अपना अपना ! 
        जन समस्याएँ सुनकर नेता लोग उन समस्याओं का करते आखिर क्या हैं कहीं उन जन समस्याओं का सीधे अचार तो नहीं डाल देते हैं ताकि वो अधिक से अधिक दिनों तक सुरक्षित रखी जा सकें जिससे अपना महत्त्व बना रहे !या फिर इन जन समस्याओं का कोई और भी उपयोग करती है सरकार !कहीं इन्हीं जनसमस्याओं से बिजली तो नहीं बनाने लगी है सरकार! या ब्लैक मार्केटिंग ही हो रही हो क्या जाने !आखिर समस्याएँ सुनने में सरकार की इतनी रूचि क्यों है जितनी उनका समाधान खोजने में नहीं है !लगता है कि जनसमस्याओं का समाधान अब नेताओं के बश का है ही नहीं  ये सर्वविदित है |
          जब अधिकारियों कर्मचारियों के चमचों को ये  पता है कि उनकी कोई सुनता नहीं है उन्हें कोई मानता नहीं हैं वैसे भी किसी को कुछ करना धरना है नहीं तो झुट्ठौ क्यों नाटक करते हैं जन समस्याएँ सुनने का !और सुनकर क्या कर लेंगे ?
          सरकारी नेता लोग खुद काम करते नहीं हैं सरकारी मशीनरी पर उनका अंकुश नहीं है बाल बाँका उसका कर नहीं सकते !तो काम न करने वाले अधिकारियों कर्मचारियों के सामने गिड़गिड़ाने के अलावा जनप्रतिनिधि उनका बिगाड़ आखिर क्या लेंगे !गिड़गिड़ानेसे कोई काम करता है क्या ?

        जनप्रतिनिधियों के यहाँ जनसमस्याएँ सुनने की दुकानें प्रातः खोल दी जाती हैं बिना किसी व्यापार के बंद कर दी जाती हैं सायंकाल !दिन भर झूठे  आश्वासनों की बिक्री होती है वो सिफारिशी लेटर बाँटे जा रहे होते हैं जिन पर लगी मोहर और किए गए साइन हँस रहे होते हैं मानो कह रहे हों कि हमें क्यों लिए जा रहे हो बेइज्जती करवाने कोई नहीं मानता है अब हमें !

         तंग केवल वो जनता होती है जो ऐसे नेताओं पर भरोसा करके इनके यहाँ बड़ी आशा लेकर आती है !जिस देश में एक लाख रूपए के कर्ज के पीछे किसान आत्म हत्या कर लेता हो और कई कई लाख महीने की सैलरी उन विभागों के अधिकारियों कर्मचारियों को दी जाती हो जिनके काम न करने के कारण या घूस खोरी के कारण बड़े धूम धाम से बनने वाली सरकारें पाँच वर्ष बाद धक्का मारकर सत्ता से कर दी जाती हों !वो बेचारे सरकारी नेता कागजों फाइलों पर देख  देख देख कर संतोष किया करते हैं कि सरकार तो बड़ा अच्छा काम कर रही है अपने भाषणों में वहीँ फाइलों में लिखा झूठ पढ़ पढ़ कर सुनाया करते हैं जनता मनोरंजन किया करती है !ये शर्म की बात है कि जिस जनता का  विकास करने का आप दवा ठोंक रहे हो उस जनता को पता नहीं होगा क्या कि आपने क्या किया है !किसी भूखे व्यक्ति को समझाया जाए कि मैंने आपको इतनी रोटियाँ दी हैं किंतु उसके पेट में कोई न पहुंची हो तो क्या वो मन लेगा या मान लेना चाहिए !विगत कई दशकों से ऐसे ही घसिट रहा है लोक तंत्र !

         विपक्षी लोग जब सत्ता में आ जाते हैं तब वो भी समस्याओं के समाधान के लिए प्रत्यक्ष देखने की अपेक्षा फाइलों में विकास देखने लगते हैं तो उन्हें भी पूर्व वर्ती सरकार की तरह संतोष हो जाता है कि काम काज अच्छा हो रहा है !विपक्ष में थे तब अपनी इच्छा से चलते थे आम जनता   थे तब विकास की  सच्चाई पता लगती थी कि सत्ता में आते ही अपने को सीक्योरिटी मिलते ही समझ लेते हैं देश अब सुरक्षित हो गया !भ्रष्ट सरकारी मशीनरी इतनी चतुर है वो उन्हें चिकनी रोडों से ले जाती है वे बुद्धू समझ लेते हैं कि रोड तो अब ठीक हो गई हैं | यही हर सरकार की हर योजना की सच्चाई है !नेताओं के कलर की तौलिया बदल बदलकर उन्हें खुश बना रखते हैं अधिकारी कर्मचारी !नेताओं को तौलिए के कलर से ज्यादा चिंता यदि जनता के कामों की होती तो ये जनता के काम करने के लिए भी मजबूर होते किंतु तौलिया बदलने से  ही खुश हो जाते हैं तो जनसेवा की जरूरत ही क्या है !           

          सांसदों विधायकों पार्षदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों के यहाँ जन समस्याएँ सुनने के लिए सुबह से दुकानें लग जाती हैं दूर दूर से दीन दुखी लोग अपने रोजी रोटी से जुड़े अपने जरूरी काम धाम छोड़कर जनप्रतिनिधियों के दरवाजों पर हाजिरी देने के लिए मजबूर होते हैं किंतु जनप्रतिनिधियों की क्या ये जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि वे अपने अधिकारियों कर्मचारियों से पूछें कि आपके जिलों विभागों से संबंधित शिकायतें लेकर हमारे पास क्यों आते हैं आखिर आप से उनका विश्वास क्यों उठा है इसके लिए आप कितने जिम्मेदार हैं वो भी तब जबकि आप इसी काम के लिए सरकार से सैलरी लेते हैं क्या आपकी जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए उस जनता को अपने काम से खुश रखें !कोई नौकर यदि अपने मालिक की इच्छा के अनुरूप काम न करे तो कितने दिन रह पाएगा अपने पद पर कब तक ले पाएगा सैलरी !किंतु ये सरकारी काम में ही संभव हैं जहाँ बिना काम किए भी सब कुछ मिलना संभव होता है इसके दो ही कारण हो सकते हैं या तो उनकी अकर्मण्यता में जनप्रतिनिधि सम्मिलित हैं या फिर उनके भ्रष्टाचार में सहभागिता निभा रहे हैं या फिर जन प्रतिनिधि शैक्षणिक दृष्टि से इतने अक्षम होते हैं कि वे पढ़े लिखे अधिकारियों कर्मचारियों का भयवश सामना करने लायक ही नहीं होते हैं कि वे जनता के कामों के लिए उन पर दबाव दे सकें !जबकि सोर्स और घूस के बल पर नौकरी पाने वाले अधिकारियों कर्मचारियों से ईमानदारी कर्मठता जिम्मेदारी कर्मनिष्ठा पूर्वक जन सेवा करने की अपेक्षा की जा सके !ऐसे लोगों के पदों पर रहते अच्छे काम करना तो दूर उसके सपने भी नहीं देखे जा सकते हैं !
      नेताओं को जनता की समस्याएँ सुनने की जरूरत क्या है जिन्हें काम करना है वे कर्मचारी क्यों नहीं सुनते !अधिकारियों कर्मचारियों को सैलरी क्यों दी जाती है सरकार को उनसे काम लेने की अकल नहीं है तो अपने में सुधार करे पढ़े लिखे ईमानदार नेताओं को टिकट दे !तब चुनावी टिकटें क्यों बेचते हैं राजनैतिक दल !जिनमें की चर्चा में सम्मिलित होने के लिए बोलने और समझने की योग्यता न हो वो नेता वहाँ केवल हुल्लड़ मचाने के लिए क्यों जाएँ तब PM साहब पूछते हैं आप गैर हाजिर क्यों रहते हैं !अरे हाजिर होकर भी क्या करें आखिर उनकी वहाँ भूमिका क्या है ये भी तो बताया जाए !
         हे नेता जी !आप जन समस्याएँ सुन कर भी क्या कर लेंगे जब तक वे काम नहीं करेंगे !जिन अधिकारियों को  काम ही करना होता वे सारी  जनसमस्याएँ पहले ही अपना दायित्व समझ कर निपटा चुके होते किंतु जिन्होंने काम करने की इच्छा ही छोड़ दी हो उनसे कोई काम कैसे करवा लेगा !बड़े बड़े मुख्यमंत्रियों की छवि अपने आचरणों से बना बिगाड़ देने की क्षमता रखने वाले वही सर्व सक्षम अधिकारी कर्मचारी आपको  छोड़ देंगे क्या ?

           जन समस्याएँ सुनने का प्रचलन बड़ी तेजी से बढ़ा है इसी बहाने अपना अपना बड़प्पन परोस रहे हैं बड़े बड़े नेता लोग !विधायक सांसद मंत्री आदि सभी तो जन समस्याएँ सुन रहे हैं सिफारिशी लेटर लिख लिख कर धड़ाधड़ जनता में बँटवा रहे हैं किंतु जिनके आदेशों की अवहेलना आसानी से कर दी जाती हो जिन मंत्रियों की मीटिंगों में जो अधिकारी बैठकर सोया करते हों जिनकी घोषणाओं को तवज्जो न दी जाती हो उनके लिखे लेटरों के साथ वे अधिकारी लोग कैसा सलूक करते होंगे ये उन आफिसों से निकलने वाली रद्दी से ही पता चल पाएगा !

          बीमारी केवल अधिकारियों कर्मचारियों तक ही नहीं है अपितु जिन नेताओं को जनता चुनावों में वोट देकर जितवा देती है जिन के लिए पार्टी कार्यकर्ता दिन रात  जग जग कर परिश्रम करते हैं पार्टियों के आनुसंगिक संगठनों के समर्पित भूमिगत कार्यकर्ता जिनका लक्ष्य ही पार्टी को सत्ता में लाना होता है उसके लिए वो सब कुछ करते हैं जिससे पार्टी सत्ता में आवे किंतु सत्तासीन होने के बाद उसी पार्टी के विधायक सांसद मंत्री मंत्री बने फिरने वाले लोग उन्हीं कार्यकर्ताओं का फोन नहीं उठाते उनसे मिलते नहीं हैं फोन नम्बर बदल लेते हैं सत्तासीन नेताओं की मानसिकता में स्वार्थ का जहर इतना अधिक फैल जाता है कि वे काम केवल अपनों का अपने नाते रिश्तेदारों का ही कर पाते हैं बाक़ी  कार्यकर्ताओं को तो झूठे आश्वासन दे दे कर ही चिपकाए रहते हैं !जनता के लिए कभी न पूरी हो पाने वाली नित नूतन घोषणाएँ !

       मैंने भी कई कई घंटे जिस पार्टी के लिए सोसल साइटों पर समय समर्पित किया वो पार्टी सत्ता में आई फिर हमारी बात मानना तो दूर सुनना ही नहीं चाहते हैं सत्ता मूर्च्छित लोग ! हमारे लिखे हुए पत्रों का उत्तर नहीं देते हमसे फोन पर बात नहीं करते !माँगते माँगते भी मिलने का समय ही नहीं देते हैं जो अपनी जरूरतों को हम भी रख सकें आखिर मेरा भी योगदान तो हमारे लिए फलित होना चाहिए किंतु हमारे द्वारा संपूर्ण रूप से समर्पित होने पर भी जो हमारे साथ ऐसा उपेक्षा पूर्ण वर्ताव करते हैं वे आम जनता के साथ कैसा वर्ताव करते होंगे इसका सहज अनुमान किया जा सकता है | कई बार तो इतना पश्चात्ताप होता है कि हमारा बहुमूल्य समय और समर्पण ऐसे तुच्छ लोगों के लायक तो न था जो इन्सान को इन्सान समझने को ही तैयार नहीं हैं वे जनता के दुःख दर्द को क्या समझेंगे और कैसे दूर कर सकेंगे जन समस्याएँ केवल सुन ही सकते हैं तो सुनते रहें अपना अपना शौक !बहुत लोग गाने भी तो सुना करते हैं ऐसे ही नेता लोग जन समस्याएँ सुना करते हैं |


    Saturday, 10 June 2017

    किसानों के टुकड़ों पर पलने वाले जिम्मेदार नेताओं से निवेदन "किसानों के आदेशों का पालन करे सरकार !"

     किसानों का आंदोलन नहीं ये आत्मपीड़ा है इसलिए  किसानों के आंदोलन को सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल समझने की भूल न करे सरकार !किसान स्वाभिमानी लज्जाशील एवं अपनी जिम्मेदारी के पालन के लिए मर मिटने वाले ईमानदार दृढ़ संकल्पी लोग हैं !जो नेता या सरकारी कर्मचारी गल्तियाँ करके भी नौकरी से त्यागपत्र नहीं देते उनसे तुलना कैसे की जा सकती है जीवन से त्यागपत्र  दे देने वाले किसानों की !
         सरकार किसानों की शासक नहीं अपितु सेवक है सेवकों ने उन पर गोलियाँ चलाकर मर्यादाएँ लाँघी हैं इसलिए उन्हें दण्डित किया ही जाना चाहिए ऐसा दुस्साहस !धिक्कार है किसानों की कमाई खाकर भी गद्दारी करने वाले नेताओं अधिकारियों कर्मचारियों को ! किसानों के दुःख दर्द में हिस्सा न बटाने वालों को उनके साथ न खड़े होने वालों को ! आंदोलन करने का उनके पास समय कहाँ है ये सरकारी कर्मचारी थोड़े हैं जो नौकरी के नाम पर बिना काम किए भी मीटर डाउन बना रहे !ये किसान होने के नाते शर्मदार और स्वाभिमानी लोग हैं !ये जिस दिन अपने परिवारों की जिम्मेदारी निभाने में असफल होते हैं उसी दिन मर जाना पसंद करते हैं उनकी जीवंतता के प्रमाण हैं किसानों की आत्महत्याएँ !जबकि सरकारों में सम्मिलित नेतालोग हों या अधिकारी कर्मचारी जिम्मेदारी निभाना तो जिनके बश का है ही नहीं जिम्मेदारी समझने को भी तैयार नहीं हैं सरकार के सरे विभाग उनकी अकर्मण्यता की गवाही दे रहे हैं जिनकी भद्द पिट रही है जनता गवाह है जिनके काम वे नहीं करते या घूस लेकर करते हैं !इसलिए किसानों से तुलना किसी की नहीं की जा सकती !फिर भी किसानों को नहीं किन्तु सरकारी कर्मचारियों को भारी भरकम सैलरी देती है सरकार !कोई कितना भी बड़ा कलट्टर आदि अधिकारी क्यों न हो हिम्मत हो तो किसानों की बराबरी करके दिखाए कृषिकार्यों में वो भी श्रमदान देकर अनुभव करें किसानों के त्याग तपस्या पूर्ण जीवन का !यदि वे खा सकते हैं तो कर क्यों नहीं सकते ! 
          किसानों की पीड़ा देश की पीड़ा है किसानों की उन्नति देश की उन्नति है किसानों की कमाई केवल किसानों के लिए नहीं होती अपितु सारे देश यहाँ तक कि भारत सरकार को अपने सरे ओहदों की परवाह न करते हुए किसानों  के हृदयों में उतरने का प्रयास करना चाहिए देश में सबसे अधिक परिश्रम और सबसे अधिक संघर्ष पूर्ण जीवन जीकर भी हम सभी लोगों का पेट भरते हैं किसान !जब हम कुछ भी खाने के लिए उठाते हैं वो किसी किसान का उत्पन्न किया होता है  किसानों पर गोली चलाने वाले अधिकारियों कर्मचारियों को अक्षम्य अपराधी माना जाए उन पर केस चलाया जाए उन्हें दी गई आज तक की सैलरी वापस ली जाए !एवं किसानों के लिए भी प्राइमरी टीचरों के बराबर की सैलरी माँगी जाए जहाँ जो उचित समझौता हो वो स्वीकार किया जाए यहाँ तक तो ठीक है किंतु इसके आगे भाजपा विरोध करने से उन्हें कुछ नहीं हासिल होगा क्योंकि भजपा के आलावा जो दल सत्ता में आए वो अपना दामन दागदार होने से बचा नहीं सके जबकि भाजपा सरकार पर अभी तक कोई दाग नहीं लगा है और नॉट बदली जैसे कई बड़े फैसले उन्होंने लिए हैं कुछ गड़बड़ियाँ हुई हैं किंतु उपलब्ध राजनैतिक दलों की अपेक्षा बहुत कम हैं और भ्रष्टाचार को समूल उखाड़ फेंकने के लिए कई बड़े कदम उठाते दिख रहे हैं संभवतः वो ऐसा कर पाने में सफल भी होंगे !इसलिए उन्हें बिना किसी किन्तु परन्तु के समय देते हुए सहयोग किया जाना चाहिए !विपक्ष के हो हल्ला का उद्देश्य जनहित नहीं अपितु सत्ता प्राप्ति है किन्तु उन्हें सत्ता देकर भी जनता को क्या मिलेगा देश में सबसे अधिक दिनों तक शासन उन्होंने ने ही किया तब क्यों नहीं कर सके किसानों  का विकास !आज घूम रहे हैं जनता को भड़काते !ऐसे नेताओं को धिक्कार है !

    Saturday, 3 June 2017

    बिहार जैसे टॉपरकांडों को करवाने वाले बेईमानों को सैलरी तो किसानों को क्यों नहीं ?

     किसान तो देश का पेट भरते हैं किंतु इन्हें नहीं अपितु कामचोर आलसियों को भारी भरकम सैलरी देती है सरकार !देश का पेट भरने वाले किसानों को सैलरी देने में दम निकलती है क्यों ?उन्हें भी सैलरी दे न ज्यादा तो चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के बराबर ही दे !सरकारी कर्मचारी कुछ करें न करें सैलरी तो उन्हें भी दी जाती है किसान तो करते हैं ये बात पक्की है फिर उन्हें सैलरी देने में किस बात का संकोच !
        अधिकारी लोग रौब दिखाने के अलावा जन सेवा के किस काम आते हैं सारे काम बिगड़े ही उनकी लापरवाही के कारण हैं फिर भी सरकार उनकी सैलरी बढ़ाए जा रही है किसानों की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है !तभी तो किसान आत्म हत्या करते हैं !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को फोकट की सैलरी उठाते देखते हैं उनकी सुख सविधाएँ देखते हैं उनका वर्क लोड देखते हैं दूसरी ओर अपनी परिस्थितियाँ देखते हैं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों  और किसानों मजदूरों की आमदनी के अनुपात में इतना बड़ा अंतर !उन्हें इस देश के आजाद होने का क्या सुख मिला !आधे पेट तो वो परतंत्रता के दिनों में भी रह लेते थे !अन्नदाता  किसान की इतनी उपेक्षा ! 
         जो अधिकारी कर्मचारी खुद पढ़े नहीं तो पढ़ा कैसे सकते हैं परीक्षा कैसे ले सकते हैं  कॉपी कैसे जाँच लेंगे !सरकार के पास सैलरी इतनी इफरात है इसलिए ऐसे लोगों कोदे रही है अपनी जेब से देना होता तो शायद ही दे पाते !टॉपर बनाने के लिए वो डगर चलते लोगों को पकड़ पकड़ कर टॉपर बनाते जा रहे हैं  वो जिसे पा रहे हैं उसे टॉपर घोषित कर दे रहे हैं पीछा साल भी तो यही हुआ था !इसमें गलती सरकार की है ऐसे लोगों को डिग्री बाँटने की जिम्मेदारी ही क्यों दे रखी है जिन्हें अकल ही नहीं हैं !बंदरों के हाथ माचिस पकड़ाई जाएगी तो यही होगा !घूस और सोर्स के बल पर नौकरियाँ पाने वाले लोगों के काम में क्वालिटी की उम्मींद नहीं कीजानी चाहिए !
        जिस छात्र ने  1990 से उसने गलतियाँ कीं तो उसे तबसे अब तक न पकड़ पाने वाले अधिकारी कर्मचारी 101 प्रतिशत दोषी हैं ऐसे लोगों को सैलरी देने वाली सरकार1001 प्रतिशत दोषी है जिसने ऐसे गैरज़िम्मेदारों कामचोरों की फौज इकट्ठी कर रखी है आजादी के बाद से लेकर अभी तक पूरे देश में यही चल रहा है ! 
         जिन आलसी अधिकारियों कर्मचारियों को तुरंत कार्यमुक्त करने की जरूरत है उचित तो है कि उन्हें अब तक दी गई सैलरी भी वसूली जाए किंतु दुर्भाग्य कि ऐसे लोगों पर से जनता का ध्यान हटाने के लिए सरकार उनका ट्रांसफर कर देती है !सैलरी वहाँ भी मिलेगी सुख सुविधाएँ वहाँ भी हैं !किंतु जो चौपटानंद यहाँ नहीं कुछ कर पाए ऐसे लोगों की खेप भर भर कर सरकार दूसरी जगहों पर क्यों भेज रही है वहाँ जाकर भी तो वहाँ के लोगों पर बोझ ही बनेंगे !
         अब तो देश में केवल ईमानदार और काम करने वाले अधिकारी कर्मचारी रखे जाने चाहिए !कामचोरों मक्कारों को तुरंत बाहर किया जाए !छोटे छोटे कामों के लिए किसानों को सौ सौ चक्कर कटवाते हैं आफिसों के ऊपर से घूस माँगते हैं !पसीने से पवित्र हुए शरीर धारण करने वाले किसान उनसे गिड़गिड़ाया करते हैं जो उनके पैरों की धूल के बराबर भी नहीं होते अब तो ऐसे संवेदना शून्य लोगों को अधिकारी मानने में लज्जा लगती है जिनके मन में देश वासियों के प्रति अपनापन ही नहीं है ऐसे सैलरी खाऊ घूस खाऊ काम चोर लोगों को बार बार धिक्कार !ऐसे लोगों को पालकर रखने वाली सरकार को उससे हजार गुणा ज्यादा बार धिक्कार !!

    Friday, 2 June 2017

    बिहार टॉपर स्‍कैम:बारे सरकारी शिक्षा विभाग ! ऐसे बेईमानों को भी सैलरी देती है सरकार !

        अपने पिता की कमाई से सैलरी देनी हो तो ऐसे अधिकारियों कर्मचारियों शिक्षकों  को कौन सैलरी दे देगा जो न पढ़े हों न पढ़ा पाते हों न परीक्षा ले पाते हों न कापियाँ जाँच पाते हों !फोकट में टॉपर पर टॉपर करते ज रहे हों अपनी तो भद्द पिटवाते ही हैं सरकार की भी भद्द पिटवा रहे हों !
         बिहार टॉपर स्‍कैम: इस 'म्‍यूजिक ब्‍वॉय' के मैजिक से याद आई 'प्रोडिकल गर्ल' रूबी ! किंतु इसमें छात्रों का मजाक उड़ाना ठीक नहीं है ऐसे लोगों को टॉपर बनाने वाली सरकारी मशीनरी  में सम्मिलित अधिकारी कर्मचारी कुछ पढ़े लिखे हैं ही नहीं सोर्स और घूस के बल पर नौकरी पाए हैं !मजा तो तब आएगा जब उन अधिकारियों कर्मचारियों शिक्षकों की परीक्षा ले ली जाए ईमानदारी से और काँपियाँ जाँच दी जाएँ ईमानदारी से तो इतने चौकाने वाले परिणाम सामने आएँगे कि उन परिणामों के आधार पर  छाटणी कर दी जाए और नै नियुक्तियाँ की जाएँ तो देश के बेरोजगारों के बहुत बड़े ईमानदार शिक्षित वर्ग को रोजी रोटी मुहैया करवा सकती है सरकार !इतने कामचोर भ्रष्ट लोग भरे हैं सरकारी शिक्षा विभाग में !सबसे पहले ऐसे बेईमानों की खोज होनी चाहिए जो देश का बचपन बर्बाद कर रहे हैं जिनकी आवारागर्दी के कारण बच्चे अपराधी बन रहे असहन शील बन रहे हत्या या आत्म हत्या करने पर आमादा हैं बड़ों का सम्मान नहीं छोटों से स्नेह नहीं आखिर ये कैसी शिक्षा ! 
    कुल  मिलाकर देश को अपराध के गर्त में झोंकने का सम्पूर्ण श्रेय केवल शिक्षा से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों और शिक्षकों को दिया जाना चाहिए !
         

    शिक्षा व्यवस्था के साथ गद्दारी करने वालों को सैलरी दी जाती है देशवासियों के खून पसीने की कमाई से !

           नक़ल करवाने में लगी है जो सरकारी मशीनरी   उन पर भी सैलरी उड़ेल रही है सरकार बारी उदारता !एक ओर गरीबों ग्रामीणों मजदूरों किसानों का संघर्ष पूर्ण मुसीबतों भरा जीवन तो दूसरी ओर शिक्षा व्यवस्था के  साथ गद्दारी करने वाले नक़ल करवाने वालों का सुख सुविधापूर्ण जीवन ! सच कहें तो शिक्षा कर्म से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों की घिनौनी करतूतें देखकर अब तो शिक्षा व्यवस्था से ही घृणा होने लगी है अब तो किसी को बताने में भी शर्म  लगने लगी है कि मैंने भी चार विषय से MA किया है !आप स्वयं देखिए -see more.... http://aajtak.intoday.in/karyakram/video/special-report-24th-march-over-ayodhya-and-ram-mandir-1-919535.html

        नक़ल रोकने के लिए जिम्मेदार लोगों ने पूरी ताकत झोंक रखी है नक़ल करवाने में !बारे सरकारी काम काज की शैली !इतनी गद्दारी करते हैं सरकार के अपने लोग इसके बाद भी सरकार उन्हें देती है सैलरी ये सरकार के हिम्मत की बात है किंतु सैलरी जनता की कमाई से देनी होती है इसमें सरकारों का मोह कैसा !
            काम करने के नाम पर गद्दारी करने की सैलरी उठा रहे हैं बहुत लोग !सरकार ख़ुशी ख़ुशी देती जा रही है उन्हें भारी भरकम सैलरी !जितनी सैलरी में आम मार्केट में तीन से चार शिक्षक मिल जाएँ वो भी पढ़े लिखे परिश्रम करने वाले ईमानदार लोग किंतु उतनी सैलरी सरकार अपने एक एक शिक्षक को देती है फिर भी वे लोग यदि शिक्षा व्यवस्था के साथ गद्दारी कामचोरी मक्कारी बेईमानी आदि करने लगें तो दोष सरकार का नहीं तो किसका है !
          सरकारी कर्मचारियों से काम लेना जब सरकार के बश का है ही नहीं और न ले पा रही है फिर उन्हें क्यों दे रही है सैलरी और जनता से क्यों लेती है टैक्स !भ्रष्टाचार मुक्त ईमानदार सेवाएँ उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है !इसमें सरकारी कर्मचारी यदि सरकार का साथ नहीं देते हैं तो ये समस्या सरकार के अपने परिवार की है किन्तु सरकार यदि जनता से टैक्स लेती है तो सरकार की सेवाओं के प्रति दिनोंदिन मरते जा रहे जनता के विश्वास को जिन्दा करना सरकार का धर्म है और स्वधर्म का पालन करे सरकार !
        शिक्षाअधिकारी प्रेंसिपल शिक्षक और पुलिस विभाग से संबंधित जो लोग गद्दारी कर रहे हैं छात्रों के भविष्य के साथ उनसे शक्तिपूर्वक निपटे सरकार !सरकारों के भ्रष्टाचार की पोल न खोल दें केवल इसलिए सैलरी लुटाई जा रही है उन्हें !सरकार आगे से आगे बढ़ाती जाती है उनकी भी सैलरी ! उन्हें भी न केवल सारी सुविधाएँ दी जाती हैं अपितु छींकने खाँसने नहाने धोने आदि हर काम की छुट्टी भी देती है सरकार !
        इसमें सरकार के पिता जी का जाता क्या है सैलरी तो जनता की जेब से जाती है वाहा वाही सरकार की होती है छुट्टियों पर छुट्टियाँ घोषित करना कामचोरी को प्रोत्साहित करना नहीं तो क्या है ?
         इन्हें सैलरी नक़ल कराने के लिए दी जाती है क्या ?
          शिक्षक ,प्रेंसिपल और शिक्षाअधिकारी हों या पुलिस विभाग !बच्चों के भविष्य के साथ गद्दारी कर रही है भ्रष्ट सरकारी मशीनरी ! ऐसे लोगों को भी सरकार न केवल सैलरी आदि सारी सुविधाएँ देती जा रही है अपितु इन भ्रष्टाचारियों की भी सैलरी बढ़ाती जा रही है!ये सैलरी देश वासियों के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टैक्स से देती है सरकार !ये नहीं भूला जाना चाहिए । 
            गरीबों ग्रामीणों मजदूरों किसानों की ओर देखो दिन रात शर्दी गर्मी हमेंशा कर्तव्य पालन में लगे रहते हैं कितना संघर्ष पूर्ण मुसीबत की जिंदगी जीते हैं वे लोग !इनमें बहुत बड़ा वर्ग अच्छे खासे पढ़े लिखे लोगों का है जिनके पास घूस देने के पैसे नहीं थे सोर्स लगाने के लिए दलाल नहीं थे इसलिए उनकी सरकारी नौकरी नहीं लग पाई वे भी बेचारे पढ़े लिखे होनहार लोग आज मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करने पर मजबूर हैं !दूसरी ओर सरकारें सरकारी विभागों में बैठे गद्दारों मक्कारों कामचोरों बेईमानों को भी सैलरी बाँटे जा रही हैं जो सरकार से भारी भरकम सैलरी लेकर भी अपराधियों और शिक्षा माफियाओं का साथ देते देखे जाते हैं शिक्षा से जुड़े लोग शिक्षा विभाग चौपट करने पर लगे हुए हैं चिकित्सा से जुड़े लोग चिकित्सा विभाग चौपट कर रहे हैं किंतु इन विभागों से जुड़े अधिकारियों के चेहरों पर जिम्मेदारियों का जरा सा एहसास नहीं दिखाई देता है और न ही उनकी कोई भूमिका ही समझ में आती है सरकारी विभागों में एक एकांत कमरा रूपी कोप भवन बना दिया जाता है जहाँ वातानुकीलित वातावरण में समय पास किया करता है भूमिका विहीन ये वर्ग !
          किसान भी अपने खेतों की ओर चक्कर मारने जाते हैं किंतु अधिकारी आफिसों में आराम करते हैं उन्हें उनके विभाग की लापरवाहियाँ मीडिया वाले बताते हैं तब वो बड़े आराम से कह रहे होते हैं मैंने जाँच के आदेश दे दिए हैं रिपोर्ट मँगवाई है दोषियों पर कठोर कार्यवाही होगी किंतु सोचने वाली बात है कि जिनका अधिकारी इतना आलसी हो उसके कर्मचारी कितने सक्रिय और ईमानदार होंगे कल्पना की जा सकती है ! जाँच करने वालों में भी सम्मिलित लोग वे ही होते हैं जो वहाँ उन शिक्षा माफियाओं की मदद कर रहे होते हैं ऐसी परिस्थिति में रिपोर्टें बिलकुल ओके आती हैं न कोई अपराध और न कोई अपराधी !कैमरे झूठ वीडियो गलत !सबजगह रामराज्य !
        खेती के मामलों में भ्रष्टाचार करने वाले लेखपाल से ही उसी से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले की मँगवाई जाती है जाँच रिपोर्ट !सरकार के हर विभाग का यही हाल है !सरकारी विभागों का शोषितों पीड़ितों के साथ जाँच नाम का ये इतना भद्दा मजाक है जैसा छोटे छोटे बच्चे अपनी हँसी मजाक के खेलों में भी नहीं खेलते हैं ।इसीलिए सरकारी कामकाज की शैली से उठता जा रहा है जनता का विश्वास ! 
              शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े ईमानदार लोगों का सर शर्म से झुक जाता होगा जब वे देखते होंगे नक़ल करवाने वाले शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों की ऐसी कुकार्यशैली उनकी पीड़ा का एहसास हमें है उनसे क्षमा याचना के साथ मुझे कठोर शब्दों का प्रयोग करना पड़ रहा है !