आवश्यकता है कि झुग्गी झोपडी वालों के लिए समाज के मन में अपनापन पैदा करने की !
गरीबों को अपनापन दिखाने की नहीं देने की जरूरत है !पूर्णिमा का चंद्रमा सुंदर सबको लगता है और सभी लोग प्रशंसा भी करते हैं किंतु इतना सब कुछ होने के बाद भी चन्द्रमा को कोई अपना नहीं समझता है यही कारण है चन्द्रमा को देखकर सुखी होने वाला सारा संसार क्या इस बात की कभी चिंता करता है कि चंद्रमा अपना है उसे कहीं कोई दुःख दर्द तो नहीं है यही बात तो समस्त सुंदर पेड़ पौधे लताएँ पुष्पों पल्लवों बनों बागों नदियों तालाबों पहाड़ों आदि के विषय में भी है हम सबको देख कर सुखी हो लेना चाहते हैं किंतु वे सब भी सुखी हों उनके लिए ऐसा पवित्र अपनापन अपने मन में हम क्यों नहीं पैदा कर पाते हैं पर्यावरण की चिंता हमें क्यों नहीं होनी चाहिए और इसके बिना हम ऐसी कल्पना कैसे कर सकते हैं कि प्रकृति हमारे लिए सुख दायिनी हो हमारे लिए आरोग्य की वर्षा करे !आँधी तूफान बाढ़ महामारी भूकंप आदि प्रकृति के साथ हमारे द्वारा किए जा रहे कपट पूर्ण आचरण के ही दुष्परिणाम हैं |
यही कपट पूर्ण व्यवहार हम झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले या अन्य सभी गरीब भाई बहनों के साथ करते हैं उन्हें गरीब बनाए रखने वाली बहुत लोगों के पास बहुत योजनाएँ हैं बहुत NGO ऐसे गरीब लोगों के लिए बहुत काम कर रहे हैं बड़ा चंदा इकठ्ठा कर रहे हैं कोई खाने पीने का सामान तो कोई शिक्षा के इंतजाम कर रहा है बहुत लोग दवा चिकित्सा आदि की व्यवस्था सँभाल रहे हैं इन्हें कपडे आदि बाँटने वाले दयालु दाता आदि धनवान बहुत लोग हैं उनमें से ऐसे बहुत लोगों के बड़े बड़े विज्ञापन देखे जाते हैं|आजादी से लेकर आजतक प्रायः सभी राजनैतिक दलों के एजेंडे में ऐसे गरीब लोगों को मदद पहुँचाने वाली लाइन जरूर लिखी जाती है राजनेताओं के भाषण शुरू ही यहीं से होते हैं | बहुत साधू संत लोग भी ऐसे लोगों की मदद करने के नाम पर बहुत धनराशि इकट्ठी करते देखे जाते हैं किंतु इन्हें अपना समझकर इनके लिए शिक्षा संस्कार रोजगार व्यापार आदि की व्यवस्था करते कितने लोग देखे जाते हैं जिनका वास्तविक उद्देश्य ही इन्हें आगे बढ़ाना हो !
आजादी से लेकर आजतक गरीबों झुग्गी झोपड़ी आदि वालों की मदद करने के नाम पर कितने अत्यंत सामान्य लोग बड़े बड़े नेता धनवान और प्रसिद्धि प्राप्त आदि और भी बहुत कुछ हो गए बड़े बड़े ओहदों पर पहुँच गए किंतु गरीब झुग्गी झोपड़ी वाले सब अपनी पुरानी परिस्थिति में ही पड़े हुए हैं क्यों ?क्या ये सच नहीं है कि इनके उत्थान के लिए हम जो कुछ करते दिख रहे थे उसमें लक्ष्य इनके नहीं अपितु अपने उत्थान का था इसलिए हमारा अपना उत्थान तो हुआ किन्तु इनका कोई विकास नहीं हुआ !क्योंकि इनका विकास करना हमारा लक्ष्य ही नहीं था दिखावा मात्र था | हमारे कपट पूर्ण वर्ताव से लगता ये जरूर रहा कि हम गरीबों और झुग्गीवालों के लिए चिंतित हैं जबकि सच्चाई ये नहीं थी |
इसीलिए जैसे हम प्रकृति के साथ कपटपूर्ण वर्ताव करते चले आ रहे हैं तो प्रकृति भी हमारे साथ वैसा ही वर्ताव करने लगी है आँधी तूफान बाढ़ महामारी भूकंप आदि तमाम प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं ठीक उसी प्रकार से हम अपनी ही समाज के गरीब भाई बहनों के साथ जब मदद करने का दिखावा अर्थात कपट पूर्ण व्यवहार करने लगते हैं तो उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप यही समाज हमारे साथ भी अपनेपन का वर्ताव करना भूल जाता है !परिणाम स्वरूप समाज में सभी प्रकार के अपराध फूलने फलने लगते हैं ! चोरी डकैती हत्या बलात्कार लूट पाट जैसे तमाम प्रकार के सामाजिक अपराध समाज के सक्षम कहे जाने वाले वर्ग के द्वारा गरीबों के प्रति किए जाने वाले उपेक्षात्मक और कपटपूर्ण वर्ताव की प्रतिक्रिया मात्र है |
इसलिए आवश्यकता है कि झुग्गी झोपडी वालों के लिए समाज के मन में अपनापन पैदा करने की और उन्हें यह समझाने की कि झुग्गियों में रहने वाले लोगों की जीवन प्रक्रिया कितनी कठिन होती है सरकार का स्वास्थ्य विभाग उत्तम स्वास्थ्य के लिए जिन जिन बातों आचारों व्यवहारों खान पान रहन सहन आदि के लिए रोकता है उन्हें वैसे ही वातावरण में अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ अत्यंत संकीर्ण और मलिन जगहों पर रहना पड़ता है वैसी ही परिस्थितियों में सर्दी गर्मी वर्षात आदि में भी जीवन ढोना पड़ता है | उसी में तिथि त्यौहार विवाह आदि काम काज का भी निर्वाह करना पड़ता है !
ऐसी परिस्थितियों में जैसे तैसे जीवन निर्वाह करने की उनकी मज़बूरी हो सकती है इसीलिए तो तमाम संकट सहकर भी वो उसी परिस्थिति में गुजर बसर करते हैं किंतु का उनके प्रति भी तो कुछ दायित्व है जिसका ईमानदारी पूर्वक निर्वाह किया जाना चाहिए तो ऐसी परिस्थिति ही पैदा न होती | |अक्सर आग आदि के प्रकोप से सैकड़ों झुग्गियाँ जल जाती हैं बाढ़ में बह जाती हैं आँधी में उड़ जाती हैं !इन सबसे बचा तो प्रशासन तोड़ देता है | किंतु इन्हें ऐसी सभी प्रकार की परेशानियों का सामना केवल संघर्ष और सहन शीलता के साथ करना पड़ता है |यहाँ रहने वाले गरीबों की दुर्दशा देखकर इन पर दया करने वाले बहुत लोग आते हैं कोई कुछ कपड़े लत्ते खाने पीने का सामान बाँट जाता है कोई कुछ पैसे दे जाता है बहुत लोग दवाएँ आदि चिकित्सा से संबंधित सुविधाओं से संबंधित सहयोग करते हैं कई लोग अपनी शक्ति समार्थ्य के अनुसार अपना कुछ समय देकर इनको शिक्षित संस्कारित आदि बनाने का प्रयास करते देखे जाते हैं ऐसे सभी लोगों के प्रयास प्रशंसनीय हैं न करने से कुछ करना अच्छा है और कुछ हो न हो झुग्गी में रहने वाले भाई बहनों का समय इसी बहाने बीत रहा होता है इसलिए सबके प्रयास प्रशंसनीय हैं !इसी में मेरा निवेदन मात्र इतना है कि यदि हम इनकी उन्नति के लिए कपट छोड़कर इमान्रदारी पूर्वक संस्कार सृजन के प्रयास करते हैं तो ये सहनशील संघर्षशील महानपरिश्रमी वर्ग समाज के लिए वरदान बन सकता है !हमारे थोड़े से सुधार से पृथ्वी पर चारों ओर हँसते हुए जीवन के दर्शन किए जा सकते हैं ।
गरीबों को अपनापन दिखाने की नहीं देने की जरूरत है !पूर्णिमा का चंद्रमा सुंदर सबको लगता है और सभी लोग प्रशंसा भी करते हैं किंतु इतना सब कुछ होने के बाद भी चन्द्रमा को कोई अपना नहीं समझता है यही कारण है चन्द्रमा को देखकर सुखी होने वाला सारा संसार क्या इस बात की कभी चिंता करता है कि चंद्रमा अपना है उसे कहीं कोई दुःख दर्द तो नहीं है यही बात तो समस्त सुंदर पेड़ पौधे लताएँ पुष्पों पल्लवों बनों बागों नदियों तालाबों पहाड़ों आदि के विषय में भी है हम सबको देख कर सुखी हो लेना चाहते हैं किंतु वे सब भी सुखी हों उनके लिए ऐसा पवित्र अपनापन अपने मन में हम क्यों नहीं पैदा कर पाते हैं पर्यावरण की चिंता हमें क्यों नहीं होनी चाहिए और इसके बिना हम ऐसी कल्पना कैसे कर सकते हैं कि प्रकृति हमारे लिए सुख दायिनी हो हमारे लिए आरोग्य की वर्षा करे !आँधी तूफान बाढ़ महामारी भूकंप आदि प्रकृति के साथ हमारे द्वारा किए जा रहे कपट पूर्ण आचरण के ही दुष्परिणाम हैं |
यही कपट पूर्ण व्यवहार हम झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले या अन्य सभी गरीब भाई बहनों के साथ करते हैं उन्हें गरीब बनाए रखने वाली बहुत लोगों के पास बहुत योजनाएँ हैं बहुत NGO ऐसे गरीब लोगों के लिए बहुत काम कर रहे हैं बड़ा चंदा इकठ्ठा कर रहे हैं कोई खाने पीने का सामान तो कोई शिक्षा के इंतजाम कर रहा है बहुत लोग दवा चिकित्सा आदि की व्यवस्था सँभाल रहे हैं इन्हें कपडे आदि बाँटने वाले दयालु दाता आदि धनवान बहुत लोग हैं उनमें से ऐसे बहुत लोगों के बड़े बड़े विज्ञापन देखे जाते हैं|आजादी से लेकर आजतक प्रायः सभी राजनैतिक दलों के एजेंडे में ऐसे गरीब लोगों को मदद पहुँचाने वाली लाइन जरूर लिखी जाती है राजनेताओं के भाषण शुरू ही यहीं से होते हैं | बहुत साधू संत लोग भी ऐसे लोगों की मदद करने के नाम पर बहुत धनराशि इकट्ठी करते देखे जाते हैं किंतु इन्हें अपना समझकर इनके लिए शिक्षा संस्कार रोजगार व्यापार आदि की व्यवस्था करते कितने लोग देखे जाते हैं जिनका वास्तविक उद्देश्य ही इन्हें आगे बढ़ाना हो !
आजादी से लेकर आजतक गरीबों झुग्गी झोपड़ी आदि वालों की मदद करने के नाम पर कितने अत्यंत सामान्य लोग बड़े बड़े नेता धनवान और प्रसिद्धि प्राप्त आदि और भी बहुत कुछ हो गए बड़े बड़े ओहदों पर पहुँच गए किंतु गरीब झुग्गी झोपड़ी वाले सब अपनी पुरानी परिस्थिति में ही पड़े हुए हैं क्यों ?क्या ये सच नहीं है कि इनके उत्थान के लिए हम जो कुछ करते दिख रहे थे उसमें लक्ष्य इनके नहीं अपितु अपने उत्थान का था इसलिए हमारा अपना उत्थान तो हुआ किन्तु इनका कोई विकास नहीं हुआ !क्योंकि इनका विकास करना हमारा लक्ष्य ही नहीं था दिखावा मात्र था | हमारे कपट पूर्ण वर्ताव से लगता ये जरूर रहा कि हम गरीबों और झुग्गीवालों के लिए चिंतित हैं जबकि सच्चाई ये नहीं थी |
इसीलिए जैसे हम प्रकृति के साथ कपटपूर्ण वर्ताव करते चले आ रहे हैं तो प्रकृति भी हमारे साथ वैसा ही वर्ताव करने लगी है आँधी तूफान बाढ़ महामारी भूकंप आदि तमाम प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं ठीक उसी प्रकार से हम अपनी ही समाज के गरीब भाई बहनों के साथ जब मदद करने का दिखावा अर्थात कपट पूर्ण व्यवहार करने लगते हैं तो उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप यही समाज हमारे साथ भी अपनेपन का वर्ताव करना भूल जाता है !परिणाम स्वरूप समाज में सभी प्रकार के अपराध फूलने फलने लगते हैं ! चोरी डकैती हत्या बलात्कार लूट पाट जैसे तमाम प्रकार के सामाजिक अपराध समाज के सक्षम कहे जाने वाले वर्ग के द्वारा गरीबों के प्रति किए जाने वाले उपेक्षात्मक और कपटपूर्ण वर्ताव की प्रतिक्रिया मात्र है |
इसलिए आवश्यकता है कि झुग्गी झोपडी वालों के लिए समाज के मन में अपनापन पैदा करने की और उन्हें यह समझाने की कि झुग्गियों में रहने वाले लोगों की जीवन प्रक्रिया कितनी कठिन होती है सरकार का स्वास्थ्य विभाग उत्तम स्वास्थ्य के लिए जिन जिन बातों आचारों व्यवहारों खान पान रहन सहन आदि के लिए रोकता है उन्हें वैसे ही वातावरण में अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ अत्यंत संकीर्ण और मलिन जगहों पर रहना पड़ता है वैसी ही परिस्थितियों में सर्दी गर्मी वर्षात आदि में भी जीवन ढोना पड़ता है | उसी में तिथि त्यौहार विवाह आदि काम काज का भी निर्वाह करना पड़ता है !
ऐसी परिस्थितियों में जैसे तैसे जीवन निर्वाह करने की उनकी मज़बूरी हो सकती है इसीलिए तो तमाम संकट सहकर भी वो उसी परिस्थिति में गुजर बसर करते हैं किंतु का उनके प्रति भी तो कुछ दायित्व है जिसका ईमानदारी पूर्वक निर्वाह किया जाना चाहिए तो ऐसी परिस्थिति ही पैदा न होती | |अक्सर आग आदि के प्रकोप से सैकड़ों झुग्गियाँ जल जाती हैं बाढ़ में बह जाती हैं आँधी में उड़ जाती हैं !इन सबसे बचा तो प्रशासन तोड़ देता है | किंतु इन्हें ऐसी सभी प्रकार की परेशानियों का सामना केवल संघर्ष और सहन शीलता के साथ करना पड़ता है |यहाँ रहने वाले गरीबों की दुर्दशा देखकर इन पर दया करने वाले बहुत लोग आते हैं कोई कुछ कपड़े लत्ते खाने पीने का सामान बाँट जाता है कोई कुछ पैसे दे जाता है बहुत लोग दवाएँ आदि चिकित्सा से संबंधित सुविधाओं से संबंधित सहयोग करते हैं कई लोग अपनी शक्ति समार्थ्य के अनुसार अपना कुछ समय देकर इनको शिक्षित संस्कारित आदि बनाने का प्रयास करते देखे जाते हैं ऐसे सभी लोगों के प्रयास प्रशंसनीय हैं न करने से कुछ करना अच्छा है और कुछ हो न हो झुग्गी में रहने वाले भाई बहनों का समय इसी बहाने बीत रहा होता है इसलिए सबके प्रयास प्रशंसनीय हैं !इसी में मेरा निवेदन मात्र इतना है कि यदि हम इनकी उन्नति के लिए कपट छोड़कर इमान्रदारी पूर्वक संस्कार सृजन के प्रयास करते हैं तो ये सहनशील संघर्षशील महानपरिश्रमी वर्ग समाज के लिए वरदान बन सकता है !हमारे थोड़े से सुधार से पृथ्वी पर चारों ओर हँसते हुए जीवन के दर्शन किए जा सकते हैं ।
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