Friday, 16 June 2017

अफसर शाही के सामने नेता बेचारे लचार हैं इसलिए नेता बेचारों को जनता क्षमा कर दे !!

    अल्प शिक्षितमंत्री सुशिक्षित अफसरों के सामने बोल ही नहीं पाते हैं वो धमका देते हैं कि जैसा तुम कह रहे हो यदि वैसा मैंने कर दिया तो तुम फँस जाओगे !यह सुनते ही मंत्री बेचारे घबड़ा जाते हैं इसके बाद अफसरों की आज्ञा का पालन करने लगते हैं बड़े बड़े मंत्री सांसद विधायक लोग !
    मंत्रियों के द्वारा भेजे हुए सिफारिशी लेटरों को अफसर लोग पढ़ते ही कहाँ हैं और जनता के द्वारा भेजे गए लेटर नेताओं को न पढ़ना आता है और न काम काज की समझ ही होती है वे सिफारिस करके अफसरों के पास भेज देते हैं किंतु अफसरों को क्या पड़ी कि वे जनता के लेटर पढ़ें उन्हें कौन जनता से कोई काम पड़ता है वे तो वोट माँगने जाते नहीं हैं जो बेकार का सिरपालें !
     ट्रेन लड़े या अस्पतालों में बच्चे मरें सरकार को दो ही काम करने होते हैं मरने वालों को मुआबजा देना होता है और लापरवाह अधिकारियों कर्मचारियों को सैलरी देनी होती है ये काम समय पर कर देते हैं सरकारों में बैठे नेता लोग ! 
      ट्रेन लड़ती रहे या अस्पतालों में कुछ भी बिगड़ता रहे अफसरों को क्या चिंता !नेता बेचारों को कुर्सी की चिंता होती है इसलिए वे बेचारे घबड़ा जाते हैं तुरंत उछलकूद शुरू कर देते हैं बेचारे सफाई देने लगते हैं जानते हैं जनता छीन लेगी कुर्सी !किंतु अफसर तो अफसर  ही होते हैं वो तो बड़ी मस्ती में बताते  ट्रेन लड़ी कैसे या अस्पतालों में बच्चे मरे कैसे!क्षण भंगुर सरकार उनका बिगाड़ क्या लेगी !
   ट्रेन के लड़ने में या अस्पताल की लापरवाही में नेताओं की भूमिका क्या है !घूस और सोर्स के बल पर अधिकारी कर्मचारी बने लोगों से सरकार काम कैसे ले और उन्हें हटाने लगे तो जो थोड़ी बहुत लीक पिट भी रही है वो भी बंद हो जाएगी और विपक्ष  करेगा अलग से !सरकार उनका बिगाड़ क्या लेगी !सस्पेंड करेगी तो  चले जाएंगे कोर्ट ट्रांसफर करेगी तो कहीं और जाकर आनंद लेंगे !
    अधिकारीगण लोगों की  समस्याएँ नहीं सुन सकते वे काम क्या करेंगे ? समस्याएँ सुनने के लिए नेता रखे गए हैं वे समस्याएँ सुन सुन कर अफसरों को बताते हैं कि किसका काम करना है किसका नहीं ! अफसर तो अफसर ही होते हैं और नेता तो ठहरे बेचारे नेता !अफसरों की तुलना में नेताओं की शैक्षणिक अयोग्यता और उनके पद की अस्थिरता नेताओं का मनोबल गिराए रहती है ! 'पाँच साल के शेर फिर चूहा' अधिकारियों से आँख मिलाकर बात करने की इनकी हिम्मत ही नहीं पड़ती है !

   अधिकारियों ने जन समस्याएँ सुनने के लिए देश में नेता रखे हुए हैं नेताओं ने जनता की समस्याएँ सुनने के लिए दुकानें  लगा रखी हैं किसका काम करना है किसका नहीं ये नेता डिसाइड करते हैं उस हिसाब से सिफारिशी चिट्ठियाँ  बनती हैं उनमें जिनके काम वास्तव में करने होते हैं उनके लिए कोडवर्ड होते हैं वही काम हो पाते हैं बाक़ी जनता किराया खर्च करती घूमती रहती है !नेता जी समस्याएँ यदि सुनेंगे तो भी काम तो उन्हीं को करना होगा ! 
   जिन नेताओं के पास भ्रष्टाचार की कमाई आती है उन्हीं नेताओं के यहाँ भ्रष्टाचार से बढ़ी समस्याओं के की शिकायत की जाती है किंतु भ्रष्टाचार बंद हो तो नेताओं की आमदनी बंद हो जाए इसलिए जनता की समस्याओं के समाधान के लिए नेता सिफारिशी चिट्ठियाँ बाँटे जा रहे हैं जनता किराया फूँक रही है अधिकारी कर्मचारी चिट्ठियों के बण्डल बनाए जा रहे हैं !नेता यदि ईमानदार हो तो वो चिट्ठियाँ नहीं देगा अपितु उस विभाग से जवाब तलब करेगा कि आपके विभाग से जुड़े कामों के लिए लोग मेरे पास क्यों आ रहे हैं !किन्तु इतना पूछने की हिम्मत वही नेता कर सकता है जिसकी ईमानदारी में थोड़ी भी निष्ठा हो या फिर कर्तव्यनिष्ठा  हो किंतु 'निष्ठा'संकट तो बना ही रहेगा क्योंकि राजनीति मात्र एक धोखा धड़ी है इससे अधिक जो इस पर भरोसा करता है  वो पछताता है !
   नेता प्रायः गरीब घरों से आते हैं प्रायः व्यापार नौकरी आदि करते उन्हें देखा नहीं जाता है इसके बाद भी चल अचल करोड़ों अरबों की सम्पत्तियों के मालिक बन बैठते हैं वो भी सब सुख सुविधाएँ भोगते हुए ये धन ईमानदारी से इकठ्ठा होता है क्या ?नेताओं के धन इकट्ठा करने की प्रक्रिया सभी प्रकार के अपराधों से होकर निकलती है किंतु किसी नेता की हिम्मत नहीं है कि वो नेताओं की सम्पत्तियों और संपत्ति स्रोतों का मिलान करे !यही स्थिति सरकारी अधिकारी कर्मचारियों की है सैलरी एक लाख संपत्ति करोड़ों अरबों की !नेता लोग उन्हें भ्रष्टाचार की अघोषित छूट देते हैं कुछ तो लो कुछ हम जनता के लिए कोरी घोषणाएँ करते जाओ क्योंकि जनता बेवकूप है !इसीलिए राजनैतिक पार्टियों के अक्सर महत्त्वपूर्ण  पदों पर नेता का बेटा ही बैठाया जाता है भ्रष्टाचार की कमाई से पोषित वो नेता पुत्र सब कुछ कर सकता है किंतु भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठा सकता है उस पर ये सबसे बड़ा भरोसा होता है इसी लिए एक से एक अयोग्य लोग नेता पुत्र होने के नाते नेता बनाए गए हैं उनके सैकड़ों गोना अधिक योग्य लोग दरी बिछाते टेंट लगाते घूम रहे हैं !
      नेता बेचारे जनता की समस्याओं का  करें या अपना घर भरें |जन प्रतिनिधियों को यदि इतनी ही शर्म हो तो ऐसे प्रयास स्वयं करें कि उनके क्षेत्र में आने वाले सभी सरकारी विभाग अपने काम निष्ठापूर्वक करें तो जनता नेताओं के पास जाएगी ही क्यों ?किन्तु नेताओं को तो समस्याओं के समाधान का दिखावा करना है इसलिए अपने अपने दरवाजे लगाकर बैठ जाते हैं भीड़ काम धेले का नहीं करते हैं !
  विधायकों सांसदों मंत्रियों के यहाँ जन समस्याएँ सुनने का शौक हो या गाने सुनने का शौक तो शौक ही है  फैशन के इस युग में नेताओं का भी अपना फैशन है  जन समस्याएँ सुनने का और इसमें बुराई भी क्या है ?शौक अपना अपना ! 
    जन समस्याएँ सुनकर नेता लोग उन समस्याओं का करते आखिर क्या हैं कहीं उन जन समस्याओं का सीधे अचार तो नहीं डाल देते हैं ताकि वो अधिक से अधिक दिनों तक सुरक्षित रखी जा सकें जिससे अपना महत्त्व बना रहे !या फिर इन जन समस्याओं का कोई और भी उपयोग करती है सरकार !कहीं इन्हीं जनसमस्याओं से बिजली तो नहीं बनाने लगी है सरकार! या ब्लैक मार्केटिंग ही हो रही हो क्या जाने !आखिर समस्याएँ सुनने में सरकार की इतनी रूचि क्यों है जितनी उनका समाधान खोजने में नहीं है !लगता है कि जनसमस्याओं का समाधान अब नेताओं के बश का है ही नहीं  ये सर्वविदित है |
      जब अधिकारियों कर्मचारियों के चमचों को ये  पता है कि उनकी कोई सुनता नहीं है उन्हें कोई मानता नहीं हैं वैसे भी किसी को कुछ करना धरना है नहीं तो झुट्ठौ क्यों नाटक करते हैं जन समस्याएँ सुनने का !और सुनकर क्या कर लेंगे ?
      सरकारी नेता लोग खुद काम करते नहीं हैं सरकारी मशीनरी पर उनका अंकुश नहीं है बाल बाँका उसका कर नहीं सकते !तो काम न करने वाले अधिकारियों कर्मचारियों के सामने गिड़गिड़ाने के अलावा जनप्रतिनिधि उनका बिगाड़ आखिर क्या लेंगे !गिड़गिड़ानेसे कोई काम करता है क्या ?

    जनप्रतिनिधियों के यहाँ जनसमस्याएँ सुनने की दुकानें प्रातः खोल दी जाती हैं बिना किसी व्यापार के बंद कर दी जाती हैं सायंकाल !दिन भर झूठे  आश्वासनों की बिक्री होती है वो सिफारिशी लेटर बाँटे जा रहे होते हैं जिन पर लगी मोहर और किए गए साइन हँस रहे होते हैं मानो कह रहे हों कि हमें क्यों लिए जा रहे हो बेइज्जती करवाने कोई नहीं मानता है अब हमें !

     तंग केवल वो जनता होती है जो ऐसे नेताओं पर भरोसा करके इनके यहाँ बड़ी आशा लेकर आती है !जिस देश में एक लाख रूपए के कर्ज के पीछे किसान आत्म हत्या कर लेता हो और कई कई लाख महीने की सैलरी उन विभागों के अधिकारियों कर्मचारियों को दी जाती हो जिनके काम न करने के कारण या घूस खोरी के कारण बड़े धूम धाम से बनने वाली सरकारें पाँच वर्ष बाद धक्का मारकर सत्ता से कर दी जाती हों !वो बेचारे सरकारी नेता कागजों फाइलों पर देख  देख देख कर संतोष किया करते हैं कि सरकार तो बड़ा अच्छा काम कर रही है अपने भाषणों में वहीँ फाइलों में लिखा झूठ पढ़ पढ़ कर सुनाया करते हैं जनता मनोरंजन किया करती है !ये शर्म की बात है कि जिस जनता का  विकास करने का आप दवा ठोंक रहे हो उस जनता को पता नहीं होगा क्या कि आपने क्या किया है !किसी भूखे व्यक्ति को समझाया जाए कि मैंने आपको इतनी रोटियाँ दी हैं किंतु उसके पेट में कोई न पहुंची हो तो क्या वो मन लेगा या मान लेना चाहिए !विगत कई दशकों से ऐसे ही घसिट रहा है लोक तंत्र !

     विपक्षी लोग जब सत्ता में आ जाते हैं तब वो भी समस्याओं के समाधान के लिए प्रत्यक्ष देखने की अपेक्षा फाइलों में विकास देखने लगते हैं तो उन्हें भी पूर्व वर्ती सरकार की तरह संतोष हो जाता है कि काम काज अच्छा हो रहा है !विपक्ष में थे तब अपनी इच्छा से चलते थे आम जनता   थे तब विकास की  सच्चाई पता लगती थी कि सत्ता में आते ही अपने को सीक्योरिटी मिलते ही समझ लेते हैं देश अब सुरक्षित हो गया !भ्रष्ट सरकारी मशीनरी इतनी चतुर है वो उन्हें चिकनी रोडों से ले जाती है वे बुद्धू समझ लेते हैं कि रोड तो अब ठीक हो गई हैं | यही हर सरकार की हर योजना की सच्चाई है !नेताओं के कलर की तौलिया बदल बदलकर उन्हें खुश बना रखते हैं अधिकारी कर्मचारी !नेताओं को तौलिए के कलर से ज्यादा चिंता यदि जनता के कामों की होती तो ये जनता के काम करने के लिए भी मजबूर होते किंतु तौलिया बदलने से  ही खुश हो जाते हैं तो जनसेवा की जरूरत ही क्या है !           

      सांसदों विधायकों पार्षदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों के यहाँ जन समस्याएँ सुनने के लिए सुबह से दुकानें लग जाती हैं दूर दूर से दीन दुखी लोग अपने रोजी रोटी से जुड़े अपने जरूरी काम धाम छोड़कर जनप्रतिनिधियों के दरवाजों पर हाजिरी देने के लिए मजबूर होते हैं किंतु जनप्रतिनिधियों की क्या ये जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि वे अपने अधिकारियों कर्मचारियों से पूछें कि आपके जिलों विभागों से संबंधित शिकायतें लेकर हमारे पास क्यों आते हैं आखिर आप से उनका विश्वास क्यों उठा है इसके लिए आप कितने जिम्मेदार हैं वो भी तब जबकि आप इसी काम के लिए सरकार से सैलरी लेते हैं क्या आपकी जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए उस जनता को अपने काम से खुश रखें !कोई नौकर यदि अपने मालिक की इच्छा के अनुरूप काम न करे तो कितने दिन रह पाएगा अपने पद पर कब तक ले पाएगा सैलरी !किंतु ये सरकारी काम में ही संभव हैं जहाँ बिना काम किए भी सब कुछ मिलना संभव होता है इसके दो ही कारण हो सकते हैं या तो उनकी अकर्मण्यता में जनप्रतिनिधि सम्मिलित हैं या फिर उनके भ्रष्टाचार में सहभागिता निभा रहे हैं या फिर जन प्रतिनिधि शैक्षणिक दृष्टि से इतने अक्षम होते हैं कि वे पढ़े लिखे अधिकारियों कर्मचारियों का भयवश सामना करने लायक ही नहीं होते हैं कि वे जनता के कामों के लिए उन पर दबाव दे सकें !जबकि सोर्स और घूस के बल पर नौकरी पाने वाले अधिकारियों कर्मचारियों से ईमानदारी कर्मठता जिम्मेदारी कर्मनिष्ठा पूर्वक जन सेवा करने की अपेक्षा की जा सके !ऐसे लोगों के पदों पर रहते अच्छे काम करना तो दूर उसके सपने भी नहीं देखे जा सकते हैं !
  नेताओं को जनता की समस्याएँ सुनने की जरूरत क्या है जिन्हें काम करना है वे कर्मचारी क्यों नहीं सुनते !अधिकारियों कर्मचारियों को सैलरी क्यों दी जाती है सरकार को उनसे काम लेने की अकल नहीं है तो अपने में सुधार करे पढ़े लिखे ईमानदार नेताओं को टिकट दे !तब चुनावी टिकटें क्यों बेचते हैं राजनैतिक दल !जिनमें की चर्चा में सम्मिलित होने के लिए बोलने और समझने की योग्यता न हो वो नेता वहाँ केवल हुल्लड़ मचाने के लिए क्यों जाएँ तब PM साहब पूछते हैं आप गैर हाजिर क्यों रहते हैं !अरे हाजिर होकर भी क्या करें आखिर उनकी वहाँ भूमिका क्या है ये भी तो बताया जाए !
     हे नेता जी !आप जन समस्याएँ सुन कर भी क्या कर लेंगे जब तक वे काम नहीं करेंगे !जिन अधिकारियों को  काम ही करना होता वे सारी  जनसमस्याएँ पहले ही अपना दायित्व समझ कर निपटा चुके होते किंतु जिन्होंने काम करने की इच्छा ही छोड़ दी हो उनसे कोई काम कैसे करवा लेगा !बड़े बड़े मुख्यमंत्रियों की छवि अपने आचरणों से बना बिगाड़ देने की क्षमता रखने वाले वही सर्व सक्षम अधिकारी कर्मचारी आपको  छोड़ देंगे क्या ?

       जन समस्याएँ सुनने का प्रचलन बड़ी तेजी से बढ़ा है इसी बहाने अपना अपना बड़प्पन परोस रहे हैं बड़े बड़े नेता लोग !विधायक सांसद मंत्री आदि सभी तो जन समस्याएँ सुन रहे हैं सिफारिशी लेटर लिख लिख कर धड़ाधड़ जनता में बँटवा रहे हैं किंतु जिनके आदेशों की अवहेलना आसानी से कर दी जाती हो जिन मंत्रियों की मीटिंगों में जो अधिकारी बैठकर सोया करते हों जिनकी घोषणाओं को तवज्जो न दी जाती हो उनके लिखे लेटरों के साथ वे अधिकारी लोग कैसा सलूक करते होंगे ये उन आफिसों से निकलने वाली रद्दी से ही पता चल पाएगा !

      बीमारी केवल अधिकारियों कर्मचारियों तक ही नहीं है अपितु जिन नेताओं को जनता चुनावों में वोट देकर जितवा देती है जिन के लिए पार्टी कार्यकर्ता दिन रात  जग जग कर परिश्रम करते हैं पार्टियों के आनुसंगिक संगठनों के समर्पित भूमिगत कार्यकर्ता जिनका लक्ष्य ही पार्टी को सत्ता में लाना होता है उसके लिए वो सब कुछ करते हैं जिससे पार्टी सत्ता में आवे किंतु सत्तासीन होने के बाद उसी पार्टी के विधायक सांसद मंत्री मंत्री बने फिरने वाले लोग उन्हीं कार्यकर्ताओं का फोन नहीं उठाते उनसे मिलते नहीं हैं फोन नम्बर बदल लेते हैं सत्तासीन नेताओं की मानसिकता में स्वार्थ का जहर इतना अधिक फैल जाता है कि वे काम केवल अपनों का अपने नाते रिश्तेदारों का ही कर पाते हैं बाक़ी  कार्यकर्ताओं को तो झूठे आश्वासन दे दे कर ही चिपकाए रहते हैं !जनता के लिए कभी न पूरी हो पाने वाली नित नूतन घोषणाएँ !

   मैंने भी कई कई घंटे जिस पार्टी के लिए सोसल साइटों पर समय समर्पित किया वो पार्टी सत्ता में आई फिर हमारी बात मानना तो दूर सुनना ही नहीं चाहते हैं सत्ता मूर्च्छित लोग ! हमारे लिखे हुए पत्रों का उत्तर नहीं देते हमसे फोन पर बात नहीं करते !माँगते माँगते भी मिलने का समय ही नहीं देते हैं जो अपनी जरूरतों को हम भी रख सकें आखिर मेरा भी योगदान तो हमारे लिए फलित होना चाहिए किंतु हमारे द्वारा संपूर्ण रूप से समर्पित होने पर भी जो हमारे साथ ऐसा उपेक्षा पूर्ण वर्ताव करते हैं वे आम जनता के साथ कैसा वर्ताव करते होंगे इसका सहज अनुमान किया जा सकता है | कई बार तो इतना पश्चात्ताप होता है कि हमारा बहुमूल्य समय और समर्पण ऐसे तुच्छ लोगों के लायक तो न था जो इन्सान को इन्सान समझने को ही तैयार नहीं हैं वे जनता के दुःख दर्द को क्या समझेंगे और कैसे दूर कर सकेंगे जन समस्याएँ केवल सुन ही सकते हैं तो सुनते रहें अपना अपना शौक !बहुत लोग गाने भी तो सुना करते हैं ऐसे ही नेता लोग जन समस्याएँ सुना करते हैं |


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