Sunday, 30 July 2017

अपराधियों के आका जैसे गैर जिम्मेदार लोगों को अपनी नौकरी पर भी नहीं रखते सरकार उनसे भी चला रही है काम !

  सरकारी काम काज की इतनी कमजोर क्वालिटी है कि इस मशीनरी के बल पर सरकार कैसे कर सकती है अपराधों और अपराधियों का मुकाबला !(श्रद्धेय सैनिकों एवं इमानदार कर्मठ कर्मचारियों से क्षमा याचना के साथ !) 
    काल्पनिक तौर पर  सरकारी मशीनरी को दो चार दिन के लिए यदि अपराधियों के काम काज को करने की जिम्मेदारी सौंप दी जाए तो ये वो भी नहीं निभा सकते !ये अपराध शुरू करने से पहले ही पकड़ जाएँगे इन्हेंघूस देकर सारे रहस्य उगलवाए जा सकते हैं !भ्रष्टाचार के कारण इनके बनवाए बमोँ में या तो  मिट्टी निकलेगी यदि ठीक बन भी गए तो लापरवाही के कारण समय से ठीक जगह रखे नहीं जा पाएंगे और रख गए तो फूटेंगे ही नहीं मिस हो जाएँगे !एक बम रखने के लिए कई कई टेंडर पास होंगे सबको पता लग जाएगा किंतु इनके रखे हुए बम फूट नहीं सकते  !
     काम के मामले में इतनी कमजोर क्वालिटी के अधिकारियों कर्मचारियों के बलपर इतनी बड़ी बड़ी योजनाएं बना डालती है सरकार !जिससे सरकार की घोषणाएं सुन सुन कर जनता तंग हो हो जाती है !सरकार को लिखे गए पत्रों में टाइप के पैसे और रजिस्ट्री के पैसे तक बेकार चले जाते हैं !भाषणों में CM,PMजैसे लोग कहते सुने जाते हैं हमें लिख कर भेजो !जो लोग इनकी बातों पर भरोसा कर लेते हैं वे मुसीबत मोल ले लेते हैं सौ दो सौ रूपए फोकट में गँवा बैठते हैं अपने दो चार दिन बर्बाद कर लेते हैं | 
    पत्रों की भाषा में तमाम 'श्री' और 'जी'लगाकर एक एक मात्रा सुधारकर पत्र लिखते हैं | ठीक ठीक एड्रेस लिखकर कितनी आशा और उत्साह से आर्डिनरी डाक से नहीं अपितु रजिस्ट्री करते हैं किंतु  निर्मम सरकार काम करे न करे उनके उत्तर भी देने की जिम्मेदारी नहीं समझती !क्या उन्हें ये जान्ने का अधिकार भी नहीं होना चाहिए कि उनका पत्र सरकार को मिल गया है !
   सरकार की ऐसी ही लापरवाही के कारण नौकर शाही राज कर रही है देश में क्योंकि उसके विरुद्ध न कोई शिकायत सुनी जाती है और न ही कार्यवाही होते देखी जाती है !
  इसीलिए तो अपराधियों की अपराध कमाई अपराधियों में घरों में नहीं मिलती है अपितु उन लोगों के यहाँ से मिलती है जिन पर सरकार ने जिम्मेदारीडाल रखी है अपराध रोकने की!उनके ऊपर जब कभी छापे पड़ते हैं तब पता लगता है कि किस अधिकारी कर्मचारियों ने कितने अपराधों में अपराधियों का साथ देकर ये अकूत संपत्ति इकठ्ठा की है | 
   आखिर अपराधी जो धन कमाते हैं वो जाता  कहाँ है उनके घर में दिखता नहीं शरीर पर कुछ होता नहीं बच्चे फटीचर बने रहते हैं फिर वो धन उनके आका लोग ही तो नहीं खा जाते हैं बड़े बड़े नेताओं और अधिकारियों की अकूत सम्पत्तियों के संग्रह में अपराधियों का कितना योगदान है इस पर भी सघन जाँच की जानी चाहिए !
    अपराधी लोग आपराधिक कमाई करने के बाद भी प्रायः गरीब ही बने रहते हैं किंतु अपराधियों को पकड़ने के लिए जिम्मेदार अधिकारी मालामाल हो जाते हैं क्यों ?कहाँ से आती हैं उनके पास इतनी संपत्तियाँ !इसमें सरकार सम्मिलित नहीं है तो जाँच कराए निकलेंगे अपराधों के बड़े बड़े मगरमच्छ !यदि सरकार भी हिस्सा लेती है तो चुप बैठे भ्रष्टाचार के विरुद्ध शोर क्यों मचाती है सरकार ?
     जिसकी जब नौकरी लगी थी तब कितनी संपत्ति थी उसके पास और आज कितनी है ?सैलरी कितनी मिलती है ?बाकी संपत्ति  आई कहाँ से ?उसकी जाँच हो और दोषियों पर कार्यवाही की जाए !निर्दोष कर्मचारियों को प्रोत्साहित किया जाए !
   अवैध संपत्ति प्रकरण में जनता मुख्य दोषी है ही नहीं फिर क्यों धमकाया जा रहा है जनता को !
    अवैध संपत्तियों से या अवैध काम काज से सबसे अधिक पैसा कमाया है उसे रोकने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों ने उन्होंने अकूत संपत्तियाँ कमाई हैं इस अवैध कारोबार से !सरकार जाँच करवाकर ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों  की   संम्पत्तियाँ जप्त क्यों नहीं करती है साथ ही आज तक दी गई सैलरी उनसे वसूले सरकार !उसके बाद अवैध सम्पत्तियों के लिए जनता को दोषी माना जाए तब हो जनता पर कार्यवाही !ऐसे प्रकरणों में जनता मुख्य दोषी है ही नहीं फिर क्यों धमकाया जा रहा है जनता को !
   सरकार चाह ले तो अपराध रोके भी जा सकते हैं किंतु अपराध रुकने से जिनका घाटा होने लगता हैं वे रुकने ही नहीं देते !अपराधी बेचारे क्या करें !एकबार संग साथ में पढ़ कर धोखे से अपराधियों की श्रेणी में नाम चढ़ गया तो अब तो करने ही पड़ेंगे अपराध ,अपने लिए न सही तो भाड़े के अपराध तो करने ही पड़ेंगे उन्हें अन्यथा भोगेंगे !गरीबों का साथ कब देता है कानून !चाकू खरभुजे पर गिरे या खरभूजा चाकू पर कटेगा खरभूजा ही ऐसे ही सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों  से कानूनी मदद की आशा ले कर जाने वाले गरीब लोग या तो निराश होकर लौटते हैं या फिर अपराधी बनने का संकल्प लेकर !
       अब तो देश का बच्चा मानता है कि जिस काम के लिए जो अधिकारी रखे गए हैं वो काम इसलिए नहीं होता है कि काम के स्थानों पर आराम के इंतजाम सरकार ने इतने अधिक करवा रखे हैं कि आफिस पहुँचते ही नींद आने लग जाती है|संतरी कह देता है कि साहब मीटिंग में हैं !जनता उनसे कुछ पूछने की हैसियत नहीं रखती और सरकार के पास इतना पता करने का न समय है न जरूरत !इसलिए सरकारी कार्यालय आजादी से आजतक सोते चले आ रहे हैं !कर्मचारियों की सैलरी पेंसन  सरकार खाते में पहुँचाती जा रही है |सरकार का निगरानी तंत्र इतना नाकाम है कि जो बिल्कुल काम न करे उसकी भी शिकायत सरकार तक कैसे पहुँच पाएगी और कौन पहुँचा पाएगा !   
     जिस कम्प्लेन  की जाँच करने कर्मचारी जाते हैं वहाँ जो जो घूस देता है वो निर्दोष होता है और जो नहीं देता है सारा दोष उसी के मत्थे मढ़कर उसी के विरुद्ध भेज देते हैं रिपोर्ट !
      रही बात सरकारों में उच्च पदों पर बैठे नेता लोग उन्हें केवल दो जिम्मेदारी सँभालनी होती हैं पहली मीडिया में कुछ अच्छा बोलने के लिए जिससे जनता का ध्यान भटकाया जा सके तो दूसरा गरीबों की भलाई करने के लिए हो हल्ला मचाया जा सके क्योंकि वोट काम करके नहीं अपितु दूसरों को बदनाम करके आसानी से लिया जा सकता है | जनता की आँखों में धूल झोंककर ही लेना होता है वोट !उसके प्रयास में संपूर्ण समय लगे रहते हैं नेता लोग !
   आजादी के बाद आजतक सरकार के नाम पर ऐसे ही खेल खेले जा रहे हैं !काम के लिए जनता पार्षद के पास जाती है विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री तक सबके पास जाती है जो मिलता है उससे मिल लेती है जो नहीं मिलता है वहाँ से लौट आती है !जनता के काम करने के लिए अधिकारी कर्मचारी स्वतंत्र होते हैं वो काम करें न करें !जनता का दबाव वो क्यों मानेंगे आखिर अधिकारी हैं जनता की क्या औकात जो उन पर दबाव डाले और सरकार दबाव डालेगी क्यों ?उसका अपना तो कोई काम रुकता नहीं है | वैसे भी सरकार की नैया डुबाने तारने वाले वही होते हैं | 
    आजादी के बाद आजतक इसी गैरजिम्मेदारी के साथ घसीटा जा रहा है लोकतंत्र किसी विभाग में कोई जिम्मेदारी समझता ही नहीं है | सरकार तो सरकार है सरकार जनता के कामों से सरोकार रखे तो सरकार किस बात की !प्रधानमंत्री जी तरह तरह की घोषणाएँ तो किया करते हैं योजनाएँ बना बना कर परोसा करते हैं किंतु उनकी बात उनके अधिकारी कर्मचारी मानते कितनी हैं इस सच को तो केवल जनता ही  समझती है जिसे हमेंशा फेस करना पड़ता है ! वो यदि अपनी पीड़ा बताना भी चाहे तो बोलने बताने के लिए माध्यम बहुत हैं  किंतु शिकायत कहीं भी भेजो तो न कार्यवाही होती है और न ही जवाब आता है | न जाने सरकार कहाँ रहती है और कितनी जागरूकता से काम कर रही है जो जिनके लिए काम कर रही है उन्हें ही बताना पड़ रहा है कि हम काम कर रहे हैं |
     सुना है कि सोशल साइटों में तो केवल सरकार एवं सरकार में बैठे लोगों की निंदा करने संबंधी बातों पर ही ध्यान दिया जाता है उन्हीं का संग्रह किया जाता है और उन्हीं पर कार्यवाही की जाती है बाकि अपनी जरूरत की बातें कोई कितनी भी लिखता रहे ध्यान ही नहीं दिया जाता है न कोई जवाब आता है |  तब से मैंने भी लेटर लिखने बंद कर दिए पहले तो मैं भी लिखा करता था किंतु सच्चाई समझने के बाद मन ही नहीं हुआ लिखने का | रही बात जनता की तो जनता बेचारी तो बनी ही भटकने के लिए है भटका करती है सरकार के इस द्वार से उस द्वार तक शायद कहीं उसकी भी आवाज सुन ली जाए किंतु जनता को जीवित मानने वाले हैं कितने नेता अधिकारी कर्मचारी लोग !!   


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