सरकार शिक्षा और संस्कार पर ध्यान दे !अन्यथा अपराध और बलात्कार घटने की कल्पना ही नहीं की जानी चाहिए !
सरकार खुद पढ़ी लिखी हो तब न चाहे कि सरकारी स्कूलों में भी पढ़ाई हो !सरकार में रहने वालों के लिए तो शिक्षा इसीलिए तो अनिवार्य नहीं है कि यदि वे पढ़े लिखे और चरित्रवान होंगे तो समाज में शिक्षा और संस्कार बढ़ जाएँगे फिर सारे काम लोग स्वयं ही करने लगेंगे सरकार बेरोजगार हो जाएगी इसलिए भ्रष्टाचारी लोगों के एक बड़े वर्ग को विधायक सांसद आदि बनाया जाता है और भ्रष्ट लोगों को नौकरी देने के पीछे सरकार का उद्देश्य उनसे अपनी कमाई करवाना होता है इसीलिए हर सरकार भ्रष्टाचार की निंदा तो बहुत करती है किंतु भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही बहुत कम करती है क्योंकि उसमें सरकार के खुद के फँसने का भय होता है जिन पर कार्यवाही होगी हो फटाफट कबूलने लगेंगे सरकारों में सम्मिलित नेताओं के नाम !
सरकार खुद पढ़ी लिखी हो तब न चाहे कि सरकारी स्कूलों में भी पढ़ाई हो !सरकार में रहने वालों के लिए तो शिक्षा इसीलिए तो अनिवार्य नहीं है कि यदि वे पढ़े लिखे और चरित्रवान होंगे तो समाज में शिक्षा और संस्कार बढ़ जाएँगे फिर सारे काम लोग स्वयं ही करने लगेंगे सरकार बेरोजगार हो जाएगी इसलिए भ्रष्टाचारी लोगों के एक बड़े वर्ग को विधायक सांसद आदि बनाया जाता है और भ्रष्ट लोगों को नौकरी देने के पीछे सरकार का उद्देश्य उनसे अपनी कमाई करवाना होता है इसीलिए हर सरकार भ्रष्टाचार की निंदा तो बहुत करती है किंतु भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही बहुत कम करती है क्योंकि उसमें सरकार के खुद के फँसने का भय होता है जिन पर कार्यवाही होगी हो फटाफट कबूलने लगेंगे सरकारों में सम्मिलित नेताओं के नाम !
पुलिस की भूमिका अपराध घटित होने के बाद की है किंतु अपराध होते क्यों है इसके लिए तो शिक्षा व्यवस्था ही जिम्मेदार है जैसी शिक्षा वैसे संस्कार !उचित होगा कि अपराधियों की सजा उनके शिक्षकों को देने का प्रावधान किया जाए ! जो जानकर गरीबों के बच्चों का भविष्य बर्बाद करते अन्यथा अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाते हैं उन्हें पता है यहाँ पढाई होगी नहीं और खिचड़ी में छिपकली निकलेगी !अपने बच्चे बचाकर और गरीबों के मरवा डालो कितनी गन्दी सोच है !ऐसे लोगों के हवाले है शिक्षा व्यवस्था !सरकार सर्वे कराए कि सरकारी शिक्षकों और शिक्षाधिकारियों के कितने प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ाई गए या पढ़ाई जा रहे हैं जो नहीं तो क्यों ये उनसे ही पूछा जाए कि इसके लिए वास्तविक जिम्मेदार तो आप ही हैं !गरीबों के भबच्चों के भविष्य में आग लगाकर अपनों का भविष्य सुधारने के लिए इस नौकरी में आए हैं आप !ऐसे पाप पूर्ण इरादे रखने वालों को नौकरी से तुरंत निकालकर आज तक दी गई सैलरी तुरंत रिफंड ले लेनी चाहिए !
शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों के बच्चे भी यदि सरकारी स्कूलों में ही पढ़ने लगें ऐसा अनिवार्य हो जाए तो मिड डे मील में न छिपकली निकलेगी और पढ़ाई भी अच्छी होने लगेगी !किंतु दूसरों के बच्चों का भविष्य बर्बाद करके अपने बच्चों का भविष्य सुधारना चाहते हैं बेईमान लोग !ऐसे खतरनाक इरादे रखने वाले लोगों की छत्रछाया में पढ़ने वाले बच्चों के यदि संस्कार बिगड़ जाएं तो इसमें आश्चर्य क्या है !अपराधियों और बलात्कारियों की संख्या बढ़ने में इस वर्ग की बहुत बड़ी भूमिका है | शिक्षा अपराधी यदि ऐसे अपराधों से धन कमा कर अपने बच्चे पढ़ा भी लेंगे तो उनके अपने बच्चे इस पाप के कारण संस्कार भ्रष्ट होकर बुढ़ापे में उन्हें उनके पापों की याद दिलाते रहेंगे !
रिजल्ट अच्छा बताकर झूठ बोलती है सरकार !
शिक्षामंत्री जी ! रिजल्ट वो नहीं जो अपनी अपनी पीठ थपथपाने के लिए सरकारी मशीनरी झूठा गढ़ लेती है सैलरी लेनी है तो रिजल्ट तो अच्छा दिखाना मज़बूरी है इसीलिए वो तो झूठ गढ़ लिया जाता है किंतु वास्तविक रिजल्ट तो समाज में दिखाई पड़ता है जो शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों के चरित्र को प्रतिविम्बित करता है !बड़ी भयावह है वो तस्वीर !इसलिए अपराधों और अपराधियों की संख्या बढ़ने के लिए शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों को जिम्मेदार माना जाए !जैसी शिक्षा वैसे संस्कार !इसके लिए पुलिस क्या कर लेगी अपराध होने पर अपराधियों को पकड़ेगी किन्तु अपराध होते क्यों हैं इसके लिए तो शिक्षा विभाग ही जिम्मेदार है !इसलिए समाज में बढ़ते अपराधों के लिए शिक्षा व्यवस्था के भ्रष्टाचार को ही जिम्मेदार क्यों न माना जाए !शिक्षा शिक्षकों और परीक्षाओं में भ्रष्टाचार !अच्छे रिजल्ट के झूठे दावे करती रहती है सरकार !
बिहार टॉपरकांड भी तो इन्हीं शिक्षा अधिकारियों कर्मचारियों के द्वारा किया गया चमत्कार था !मीडिया की सक्रियता के कारण खुली पोल !ऐसा हर प्रदेशों में होता है वैसे तो सरकार के हर विभाग में होता ही यही है !इसीलिए तो भरोसा टूटा है किंतु शिक्षामंत्रालय शिक्षाव्यवस्था एवं शिक्षकों पर से उठता विश्वास चिंता का विषय !
छात्र यदि वास्तव में देश का भविष्य होते हैं तो भविष्य को चौपट करने वालों से कड़ाई से क्यों न नहीं निपटती है सरकार ! स्वच्छता अभियान यदि इतना ही जरूरी है तो शिक्षाव्यवस्था की गंदगी दूर करने को पहली प्राथमिकता क्यों न दी जाए !देश का भविष्य सुधरेगा तो देश सुधरेगा !
शिक्षा के इंतजामों पर भारी भरकम खर्च किंतु जो शिक्षक खुद पढ़े नहीं हैं तो पढ़ाएँगे क्या ?परीक्षा कैसे लेंगे परीक्षा कापियों को जाँचेंगे कैसे !रिजल्ट कैसे बनाएँगे ! चतुर सरकारें सरकारी स्कूलों की कापियाँ जँचवाने में कुछ हाथ पाँव मारकर रिजल्ट अच्छा बनवा लेती हैं थपथपा लेती हैं अपनी पीठ !देश के भविष्य से कपट क्यों ?
सोचने वाली बात है कि घूस और सोर्स के बल पर शिक्षक बनने वाले अयोग्य लोगों का प्रतिशत कम है क्या ? उनकी पहचान करके छँटनी किए बिना अच्छी पढ़ाई हो पाना संभव है क्या ?ऐसे अयोग्य एवं अकर्मण्य लोगों के विरुद्ध कोई कार्यवाही किए बिना ही उन्हें हटाए बिना ही जो चतुर सरकार अच्छा रिजल्ट दिखाकर अपनी पीठ थपथपाती है हमें तो उसकी नियत पर ही शक होता है !ऐसे शिक्षा मंत्रियों की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर इतने बड़े भरोसे के आधारों की जाँच होनी चाहिए !आखिर किस आधार पर वे ऐसे ऊलजलूल दावे ठोंकते रहते हैं क्यों झोंकते हैं अभिभावकों की आँखों में धूल !ऐसे शिक्षामंत्रियों में यदि थोड़ा भी संकोच हो तो वो मीडिया से नहीं अपितु सरकारी स्कूलों में बच्चे पढ़ाने वाले अभिभावकों से आँख मिलाकर बात करने का साहस करें !
मैं पूछता हूँ योग्य और अयोग्य दोनों प्रकार के शिक्षा कर्मचारी व शिक्षक लोग शिक्षा व्यवस्था को बनाने बिगाड़ने में लगे हुए हैं !इन बिगाड़ने वालों को हटाए बिना क्या सुधर सकती है शिक्षा व्यवस्था ? इन्हें हटाने के अलावा कोई विकल्प जब है ही नहीं तो देर क्यों कर रही है सरकार ? योग्य लोगों की पहचान करने के लिए योग्यता परीक्षा ले सरकार और ऐसे लोगों के चंगुल से मुक्त करवाई जाए शिक्षा व्यवस्था !इन्हें नौकारियों से हटाकर योग्य ईमानदार और कर्मठ शिक्षकों के हवाले शिक्षा व्यवस्था किए बिना शिक्षा कैसे सुधर सकती है शिक्षा और कैसे हो सकता है अच्छा रिजल्ट !
विगत कई दशकों से शिक्षा के लिए केवल इंतजाम होते हैं विज्ञापन छपते हैं किंतु शिक्षा कितनी होती है ये सरकार को क्या पता ! सरकार को रिपोर्ट बनाकर वो लोग देते हैं जो शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने के वास्तविक मसीहा हैं उस पर भरोसा करना सरकार की अपनी मजबूरी है जनप्रतिनिधियों आदि का शिक्षित न होना या कम शिक्षित होना भी एक बड़ी बाधा है !
ऐसे लोगों के द्वारा मीडिया को दिखाने के लिए अच्छे आँकड़े पेश करने एवं अच्छी जाँच रिपोर्ट बनाने और शिक्षा मंत्री एवं सरकार की पीठ थपथपाने का मैटीरियल तैयार करने में लगी रहती है सरकारी मशीनरी !किंतु सरकारी स्कूलों में शिक्षा होती है कि नहीं ये देखने की जिम्मेदारी जिनकी है उनसे क्यों न पूछा जाए कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था आम जनता का भरोसा जीतने में नाकाम क्यों रही ?शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद करने के आपके यदि इरादे नहीं थे इसके चौपट होने में आपकी यदि वास्तव में कोई भूमिका नहीं रही है तो शिक्षा व्यवस्था से जुड़े आप सभी लोगों में से कितने अधिकारियों कर्मचारियों ने अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ाए नहीं तो क्यों ?
इसका मतलब शिक्षा व्यवस्था में सुधार आपका लक्ष्य था ही नहीं !इसलिए जो जिम्मेदारी आप निभा ही नहीं सके फिर सैलरी किस बात की ?और आजतक आपको ब्यर्थ में दी गई सैलरी वापस क्यों न ली जाए ?
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