Sunday, 23 June 2019

वर्तमान समय में 1

                                                  - विज्ञान का अधूरापन और समय -          
                                                                 
                                                                   -भूमिका -
         मौसमसंबंधी वैज्ञानिक अध्ययन का मतलब होता है प्रकृतिपरिवार का संपूर्ण अध्ययन !प्रकृति के अलग अलग अंगों के अलग अलग प्रभाव को अलग अलग परिभाषित नहीं किया जा सकता !चूँकि प्रकृति के सभी अंगों में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों का असर पड़ना इसी प्राकृतिक वातावरण और जीवन पर होता है !इसलिए बदलाव अलग अलग भले दिखाई पड़ें किंतु उनका असर संयुक्त होता है ! 
        किसी गाड़ी का एक पहिया यदि किसी गड्ढे में फँस जाए तो उसका प्रभाव केवल उसी एक पहिए पर नहीं रह जाता है अपितु उससे शेष तीन पहियों एवं उस गाड़ी की गति रुक जाती है !
        किसी पकवान को बनाते समय उसमें डाली जाने वाली सभी सामग्रियों का स्वाद तभी तक अलग होता है जब तक़ वे एक में मिल नहीं जाती हैं एक में मिलते ही पकवान तैयार होने के बाद उन सबका  संयुक्त स्वाद  एक साथ होता है जिसे उस व्यंजन का स्वाद माना जाता है !
         इसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में किसी एक परिवर्तन का अर्थ अलग नहीं निकाला जा सकता है भले वो तापमान का बढ़ना ही क्यों न हो !प्रकृति में कोई घटना अकेले कभी नहीं घटती है उनका अपना समूह होता है उस समूह की समझ रखने वाले प्रकृतिविद्वान लोग घटनाओं के स्वभाव को आसानी से समझ लेते हैं और उससे संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लेते हैं !
        वर्तमान समय में प्राकृतिक वातावरण के गर्म होने की चर्चा बहुत तेजी से उठाई जा रही है सभी ओर से ग्लोबलवार्मिंग अर्थात तापमान बढ़ने की बात उठाई जा रही है तापमान यदि बढ़ता है तो शीतमान घटता है तभी तो उसके बढ़ने का एहसास हो पाता है!संभव है कि शीतमान घटने के कारण तापमान बढ़ रहा हो!  इसलिए केवल पापमान बढ़ने के पीछे ही क्यों भागना अपितु शीतमान गिरने के भी कारण खोजे जाने चाहिए !किंतु ऐसा किए बिना ही ग्लोबल वार्मिंग के तमाम प्रकार के एक से एक डरावने दुष्प्रभाव बताए जा रहे हैं जो कुछ लोगों की आशंकाओं पर आधारित महज कोरी कल्पनाएँ हैं जिनके प्रमाण स्वरूप में प्रस्तुत  करने के लिए उनके पास इसके अलावा कुछ भी नहीं है कि ग्लोबलवार्मिंग के फल स्वरूप भविष्य में आँधी तूफ़ानों की आवृत्तियाँ बढ़ेंगी कहीं बाढ़ होगी और कहीं सूखा होगा आदि !किंतु देखा जाए तो ऐसी घटनाएँ इसी क्रम में हर कालखंड में घटित होती रही हैं किसी वर्ष में कोई घटना कुछ कम किसी वर्ष में कोई घटना कुछ अधिक घटित होती रही है !
     ये प्राकृतिक घटनाएँ हैं जिनके एक जैसा घटित होने की कल्पनाएँ कभी नहीं की जा सकती हैं और न  ही एक तिथि तारीख समय आदि में ही इन्हें बाँधकर रखा जा सकता है !  हमें याद रखना चाहिए कि मानवनिर्मित घटनाएँ अपने अनुशार घटाई जा सकती हैं प्राकृतिक घटनाएँ नहीं तभी तो वो प्राकृतिक हैं !नहरें मानवनिर्मित  अपने इच्छा के अनुशार समतल और एक जैसी गहराई के स्तर से बनाई जा सकती है किंतु नदियों के निर्माण में ऐसा कोई निश्चित पैमाना  नहीं होता है वे कहीं भी कैसी भी हो सकती हैं !इसलिए किसी कालखंड में गर्मी बढ़ना किसी में सर्दी बढ़ना किसी में सूखा पड़ना किसी में वर्षा  बाढ़ आदि कभी आँधी तूफानों की अधिकता होना ये सब प्रकृति की शैली है !
    मानव निर्मित ट्रेन किस दिन किस रूट से जाएगी उसकी स्पीड कितनी होगी कितने बजे ट्रेन चलेगी कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचेगी आदि सब कुछ निश्चित होता है !जिसका सबकुछ निश्चित है जैसे ट्रेन का किसी स्टेशन  पर  आने और जाने का समय निश्चित है जिसकी जानकारी उस ट्रेन  चालक को भी होती है वो उसी समय सारिणी का प्रतिदिन पालन भी करता है इसलिए उसे किसी दिन देर हुई देर मानी जाएगी और यदि जल्दी हुआ तो जल्दी माना जाएगा !उसके विषय में तो कहा जा सकता है कि वो आज लेट  हो गई या आज जल्दी पहुँच गई किंतु मानसून के विषय में इस नियम को कैसे लागू किया जा सकता है ये तो वर्षा ऋतु है जिसका आगमन किसी भी दिन हो सकता है !
      किस तारीख को मानसून कहाँ पहुँचेगा ये समय सारिणी मानसून के पास तो होती नहीं  है  और तो  उसकी सम्मति लेकर यह समय सारिणी बनाई भी नहीं गई है मानसून  को इसकी जानकारी भी नहीं होती है और न ही वो इसका पालन ही करता है !वर्षाऋतु में वर्षाशुरू होने का दिन तारीख निश्चित नहीं होता वो तो वर्षा ऋतु के समय में जिस दिन पानी बरसना प्रारंभ हो जाए वहीं से शुरू मान ली जाती है ! इसलिए स्वयं ही मानसून की तारीख निश्चित करना और बाद में प्रिमानसून बारिश या देर में आया मानसून कहना ये सब निराधार कल्पनाएँ  हैं !
      अखवारों में आए  दिन इस प्रकार की भाषा पढ़ने को मिलती है - मानसून चलपड़ा है मानसून ठिठक गया है मानसून धोखा दे रहा है मानसून रुका हुआ है आदि !इस वर्ष यहाँ इतने सेंटीमीटर बारिश हुई या इस महीने में इतनी बारिश हुई या इस वर्ष इस महीने में हुई बारिश ने इतने वर्षो का रिकार्ड तोड़ा ,गर्मी ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा और सर्दी ने इतने वर्षों का  रिकार्ड तोड़ा !आँधी तूफानों ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है !
      अरे सरकारें मौसम भविष्यवक्ताओं पर उनकी सुख सुविधाओं के लिए जो धन खर्च करती हैं वो देश वासियों के खून पसीने से प्राप्त कमाई का अंश होता है !वो जहाँ जिन पर खर्च किया जाए उसके विषय में जनता के प्रति कुछ तो जवाबदेही होनी  ही चाहिए !
       सरकारें जिन्हें मौसम भविष्यवक्ताओं के रूप में देश से परिचय करवाती हैं उनका काम केवल मौसम के विषय की भविष्यवाणी करना होता है जनता केवल इसी एक काम को करने के लिए उन पर और उनके अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि खर्च करती है इसके बाद ये उन मौसम भविष्यवक्ताओं को सोचना है कि वो जनता के इस काम में खरे उतर सकते हैं या नहीं !  
       ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी मौसम भविष्यवक्ताओं की बातों में कोई सच्चाई है या नहीं या ये केवल कोरी कल्पनाएँ हैं इससे आम जनता को क्या लेना देना उसे वर्तमान प्राकृतिक वातावरण  के अनुशार वर्षा  बाढ़ सूखा आँधी तूफानों आदि से संबंधित पूर्वानुमान चाहिए होता है दे सकते हैं तो ठीक अन्यथा मौसम भविष्यवक्ताओं की ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी बहानेबाजी से जनता का क्या लेना देना !
      कोई ब्यंजन बनाने के लिए किसी रसोइया को जिम्मेदारी दे दी जाए उसके मन मुताबिक़ सामान एवं व्यंजन निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध करवा दी जाए इसके बाद  उसकी इच्छा के अनुशार सुस्वादिष्ट व्यंजन बनाकर उसके सामने प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी उस रसोइए की होती है यदि वो ऐसा नहीं कर पा रहा है तो उसकी रसोई निर्माण संबंधी अयोग्यता का प्रमाण माना जाएगा !उसे उस व्यंजन निर्माण कार्य से इसलिए अलग कर दिया जाएगा कि यह काम उसके बश का नहीं है !अब यदि वह ब्यंजन बिगड़ जाने के बाद में बतावे कि मशाले कुटे नहीं थे या आटा गीला हो गया था या नमक ज्यादा पड़ गया था कढ़ाही तेज हो गई थी !उसके द्वारा दी जाने वाली ऐसी दलीलों को कोई नहीं सुनता है ऐसी परिस्थिति में मौसमभविष्य बताने के लिए नियुक्त किए जाने वाले मौसम संबंधी भविष्यवक्ताओं के द्वारा उनके द्वारा की जाने वाली मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के गलत होने पर जनता उनकी ऐसी ( ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना') दलीलें क्यों सुने !               >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>                  
                                                               मौसम विज्ञान का इतिहास 
       आधुनिक विज्ञान के हिसाब से मौसमविज्ञान का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार का है -"वायुविज्ञान के प्राचीनतम ग्रंथ ऐरिस्टॉटल (384-322 ई.पू.) रचित 'मीटिअरोलॉजिका' तथा उनके शिष्यों की पवन तथा ऋतु संबंधी रचनाएँ प्राप्त हुई बताई जाती हैं। ऐरिस्टॉटल के पश्चात्‌ अगले दो हजार वर्षो में ऋतुविज्ञान की अधिक प्रगति नहीं हुई। 17वीं तथा 18वीं शताब्दी में मुख्यत: यंत्रप्रयोग तथा गैस आदि के नियम स्थापित हुए। इसी काल में तापमापी का आविष्कार सन्‌ 1607 में गैलीलियों गेलीली ने किया और एवेंजीलिस्टा टॉरीसेली ने सन्‌ 1643 में वायु दाबमापी यंत्र का आविष्कार किया। इन आविष्कारों के पश्चात्‌ सन्‌ 1659 में वायल के नियम का आविष्कार हुआ। सन्‌ 1735 में जार्ज हैडले ने व्यापारिक वायु (ट्रैड विंड) की व्याख्या प्रस्तुत की तथा उसमें हैडले ने व्यापारिक वायु (ट्रेड विंड) की व्याख्या प्रस्तुत की तथा उसमें सबसे पहले वायुमंडलीय पवनों पर पृथ्वी के चक्कर के प्रभाव को सम्मिलित किया। जब सन्‌ 1783 में ऐंटोनी लेवोसिए ने वायुंमडल की वास्तविक प्रकृति का ज्ञान प्राप्त कर लिया और सन्‌ 1800 में जॉन डॉल्टन ने वायुमंडल में जलवाष्प के परिवर्तनों पर और वायु के प्रसार तथा वायुमंडलीय संघनन के संबंध पर प्रकाश डाला तभी आधुनिक ऋतुविज्ञान का आधार स्थापित हो गया। 19वीं शताब्दी में विकास अधिकतर संक्षिप्त ऋतुविज्ञान के क्षेत्र में हुआ। अनेक देशों ने ऋतुवैज्ञानिक संस्थाएँ स्थापित की और ऋतु वेधशालाएँ खोलीं। इस काल में ऋतु पूर्वानुमान की दिशा में भी पर्याप्त काम हुआ। 20 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक वायु के वेग तथा दिशा आदि के प्रेक्षणों के बढ़ जाने के कारण जो सूचनाएँ ऋतुविशेषज्ञों को प्राप्त होने लगीं उनसे ऋतुविज्ञान की अधिक उन्नति हुई। ऊपरी वायु के ऐसे प्रेक्षणों से ऋतुविज्ञान की अनेक समस्याओं को समझने में बहुत अधिक सहायता मिली।"ये जानकारी हमने संबंधित साहित्य से उद्धृत की है !
       ऐसी परिस्थिति में जो आधुनिक मौसम विज्ञान अभी अपना आस्तित्व बनाने में ही लगा हुआ है जिसे अभी प्रकृतिवातावरण एवं प्रकृति परिवर्तनों को समझने के लिए सैकड़ों वर्ष अनुसंधान के लिए चाहिए ! क्योंकि ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी यदि कोई परिस्थितियाँ बनती भी हों तो उससे संबंधित अध्ययनों अनुभवों एवं अनुसंधानों के लिए सैकड़ों वर्ष चाहिए !क्योंकि ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन जैसी आशंकाओं का अनुसंधान लंबे कालखंड के ही कुछ उदाहरणों का अनुसंधान करके कुछनिष्कर्ष निकाला जा सकता है !अन्यथा ऐसी कहानियों को  प्रमाणित करने के लिए किसी के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे विज्ञान भावना से  प्रमाण माने जाने योग्य हो !
                                            भारत का प्राचीन मौसम विज्ञान 
      प्राचीन काल से ही मनुष्य ऋतु तथा जलवायु की अनेक घटनाओं से प्रभावित होता रहा है।लाखों वर्ष पहले से वैदिक और पौराणिक ग्रंथों में इस प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं एवं उनके विषय में प्राप्त किए जा सकने वाले पूर्वानुमान पद्धतियों का वर्णन मिलता है !जिसपर वेद विज्ञान से संबंधित प्राचीन वैज्ञानकि अभी तक अनुसंधान करते रहे और समाज उससे हमेंशा लाभान्वित होता रहा है !
       पृथ्वी का तापमान बढ़ना या घटना ये प्रकृति के अंदर का अपना विषय है जैसे प्रातःकाल सूर्य की रोशनी में गर्मी कम होती है दोपहर होते होते जिस क्रम में गर्मी बढ़ती जाती है उसी क्रम में दोपहर बाद घटती भी तो जाती है !इससे किसी को कोई परेशानी नहीं होती है !
      इसी प्रकार से हेमंत और शिशिर ऋतु में धूप में गर्मी कम होती है बसंत और ग्रीष्म ऋतु आते आते गर्मी बहुत अधिक बढ़ जाती है इसके बाद वर्षा और शरदऋतु में तापमान धीरे धीरे घटता चला जाता है !
       पहले  एक दिन में तीन प्रकार के तापमान देखे गए फिर एक वर्ष में इसी प्रकार से लगभग 6888 वर्षों का एक संयुक्त समय है जिसमें तापमान की तीनों अवस्थाओं के दर्शन होते हैं !पहले 984 वर्षों तक हिमयुग होता है जिसमें ठंडक अधिक होती है और वर्षा अधिक होती है उसके बाद 1312 वर्षों का अंतराल होता है जिसमें धीरे धीरे वर्षा और ठंडी घटती जाती है और तापमान बढ़ता जाता है जब तापमान अपने शीर्ष पर पहुँच चुकता है तब वहाँ 984 वर्षों तक ठहरता है इसके बाद तेज हवाएँ चलनी प्रारंभ होती हैं और वर्षा होने लगती है इसमें लगभग 1312 वर्षोंका अंतराल  होता है जिसमें प्रकृति का वातावरण धीरे धीरे शांत होता चला जाता है तापमान गिरता और हवाओं की गति धीमी होती चली जाती है इस प्रकार का उत्तम वातावरण 984 वर्षों तक टिकता है इसके बाद हिमयुग में प्रवेश कर जाता है !इसीप्रकार का एक क्रम और है जिसमें दोनों की वर्ष गणना में कुछ अंतर पड़ जाता है किंतु क्रम लगभग वही रहता है आवृत्तियाँ उसी प्रकार से चलती हैं !ये प्रकृति का क्रम है !
       जिस प्रकार से वर्ष का क्रम दिन से बड़ा है उसी प्रकार से  इतने अधिक वर्षों का क्रम एक वर्ष से बड़ा है !जो हमेंशा से चलता आ रहा है जिसमें कुछ नया नहीं है किस कालखंड में आँधी तूफ़ान नहीं आए किसमें सूखा नहीं पड़ा !रामायण काल में सूखा पड़ा था इसलिए जनक जी ने हल चलाया था ऐसा वर्णन मिलता है !इसी प्रकार से आँधी तूफानों भूकंपों कईबार बार चर्चा मिलती है !महर्षि बाल्मीकि वेदपाठी विद्वान थे किंतु एक बार अकाल पड़ा उस समय भूख मिटाने के कारण उन्हें लुटेरों का साथ करना पड़ा जिससे उनके लूटे हुए अन्न धन से उन्हें भी भोजन मिल जाया करता था ! इसी प्रकार से महाभारतकाल में भीषण आँधी तूफ़ानों एवं अकाल पड़ने का वर्णन मिलता है हस्तिनापुर राज्य को सात बार गंगा जी बहा ले गईं ! सैकड़ों स्थानों पर इसी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं घटनाओं के दर्शन मिल जाते हैं !ये आस्थावान लोगों के कुछ कथा प्रसंगों से संबंधित घटनाएँ हैं इसलिए सैकड़ों स्थानों पर इसी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के दर्शन हो जाते हैं !
     आधुनिक भविष्यवक्ताओं को सोचना चाहिए कि प्राकृतिक घटनाएँ पहली बार नहीं घटित हो रही हैं और न ही इनका इतिहास सौ दो सौ साल या हजार पाँच सौ वर्ष पुराना ही है इनका इतिहास अनादिकालीन है आँधी तूफ़ान बाढ़ वर्षा सूखा भूकंप महारियाँ इस युग की देन नहीं हैं वेदों पुराणों में इसीलिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं की चर्चा मिलती है  जिसके प्रशमन के लिए समय समय पर राजाओं के द्वारा किए जाने वाले यज्ञ विधान का वर्णन मिलता है !
     ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन जैसे जुमलों पर विश्वास करना केवल उन देशों की मजबूरी हो सकती है जिनके पास प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित कोई लिखित इतिहास न रहा हो या इनके विषय का कोई समृद्ध विज्ञान न रहा हो ! प्राचीन काल में भी भारतीय ज्ञान विज्ञान अत्यंत  समृद्ध था और आज भी अत्यंत समृद्ध है !हजारों वर्ष पुराने प्राकृतिक इतिहास में  ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन जैसे नामों का ही नहीं अपितु ऐसे विचारों का भी वर्णन कहीं नहीं मिलता है ! 
      इस प्रकार की ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी जितने भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ  देखी सुनी जा रही हैं ये सभी एक ही प्रकृति परिवार के अभिन्न अंग हैं !अंतर इतना है कि प्राचीन प्रकृति परिवार के स्वभाव को समझने वाले लोग इन्हें अलग अलग करके नहीं देखते थे इनका संयुक्त अध्ययन करके आँधी तूफ़ान बाढ़ वर्षा सूखा भूकंप जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !
                            ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन का सच !
          जिस मौसम विज्ञान का कारोबार ही सौ दो सौ वर्ष पहले प्रारंभ हुआ हो वह ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन जैसी सैकड़ों वर्षों में घटित होने वाली दीर्घावधि घटनाओं के विषय में इतने कम समय में कितना अध्ययन किया गया होगा कितना डेटा संग्रह हुआ  होगा कितना अनुभव जुटाया जा सका होगा और इन सबको मिलकर कितना अनुसंधान किया होगा !इतने कम समय में ये सबकुछ हो पाना संभव नहीं था !खैर जो हुआ हो न हुआ हो फिर भी अफवाह उड़ा दी गई कि ग्लोबलवार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण भीषण आँधी तूफ़ान घटित होंगे !सूखा  पड़ेगा भीषण बाढ़ आएगी आदि जो जो कुछ बोलकर समय को जितना अधिक से अधिक डरवाया जा सकता था उसमें कोई कसर नहीं छोड़ी गई !इसका समाज पर बहुत बड़ा असर हुआ है !समाज ने इसी के अनुसार अपनी योजनाएँ बनानी प्रारंभ कर दी हैं !बहुत से स्त्री पुरुषों ने इसी ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन की अफवाहों से भयभीत होकर बच्चे न पैदा करने का मन बना लिया है !ऐसे ही ब्रिटेन में महिलाओं के एक वर्ग का कहना है कि वह नहीं चाहती हैं कि आने वाली पीढ़ियों को ग्लोबलवॉर्मिंग से कोई नुकसान उठाना पड़े ! ऐसी महिलाओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन गंभीर समस्या बनती जा रही है. उन्हें दुनिया में सूखे, अकाल, बाढ़ और ग्लोबल वार्मिंग का डर सता रहा है !
       ऐसी परिस्थिति में यदि इस भावना से भावित होकर बहुत सारे लोग इस प्रकार से बच्चे न पैदा करने का रास्ता चुन लेते हैं और यह भावना इसीप्रकार से यदि जोर पकड़ गई तो ग्लोबलवार्मिंग एवं जलवायुपरिवर्तन जैसी घटनाओं से संबंधित कल्पनाओं में कोई सच्चाई है भी या नहीं तथा इससे उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभावों(सूखा,अकाल,बाढ़ ) से कोई नुक्सान होगा या नहीं ये तो भविष्य के गर्त में है किंतु ऐसी अफवाहों से इतना नुक्सान तुरंत होने का खतरा अभी से सामने दिखाई पड़ रहा है कि यह सृष्टि तो अभी दो चार पीढ़ियों में ही समाप्त होने का खतरा मड़राने लगा है !
       वैसे भी जो मौसम भविष्यवक्ता लोग  दो चार दिन पहले की सूखा, अकाल, वर्षा ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में अभी तक असफल रहे हैं !उनके विषय में विश्वासपूर्वक स्पष्ट रूप से कुछ  भी कह पाने की स्थित नहीं होते  हैं !जिनके द्वारा बताए गए मौसम संबंधी दीर्घावधि(एक दो महीने पहले के ) पूर्वानुमान 50 प्रतिशत से भी कम सच हो पाते हैं जबकि सिद्धांततः आधे से कम सच निकलने वाले पूर्वानुमानों को भविष्यवाणी नहीं माना जाता है !क्योंकि इतने प्रतशत तो आम आदमी के द्वारा लगाए जाने वाले तीर तुक्के भी सच निकल ही जाते हैं !
       ऐसी परिस्थिति में इस प्रकार के मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की जाने वाली ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन जैसी सैकड़ों वर्षों बाद में घटित होने वाली अत्यंत दीर्घावधि घटनाओं के विषय में विश्वास किस आधार पर कर लिया जाना चाहिए !तथा  ऐसी कल्पित प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण उन्हीं लोगों के द्वारा सैकड़ों हजारों वर्ष पहले के विषय में लगाए गए सूखा, अकाल, वर्षा ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी मौसम संबंधी घटनाओं के पूर्वानुमान पर कितना भरोसा कर लिया जाए इसका चिंतन समाज को स्वयं करना चाहिए !
    अभी हाल के वर्षों की मौसम संबंधी कुछ घटनाएँ और उनके पूर्वानुमान -
      
     3 अगस्त 2018 को भारतसरकार के द्वारा अगस्त सितंबर के लिए सामान्य वर्षा होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु 7   अगस्त 2018 को केरल में भीषण वर्षात शुरू हुई जो 14 अगस्त तक चली जिसमें केरल  डूबने उतराने लगा !यहाँ तक कि बाढ़पीड़ित केरल के मुख्यमंत्री को कहना पड़ा कि मुझे इस  विषय में सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई सूचना नहीं दी गई थी और न ही ऐसी कोई भविष्यवाणी ही की गई थी !जब इतनी अधिक वर्षा हो गई तब उन्हीं मौसम भविष्यवक्ताओं ने सच्चाई स्वीकार करते हुए कहा कि बारिश अप्रत्याशित होने के कारण उनकी समझ से बाहर थी !इसका कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है !
    इसी प्रकार से 16 -6 -2013 में केदार नाथ जी में घटित हुई इतनी बड़ी घटना जिसमें 4400 लोग मारे गए या लापता हो गए 4200 से अधिक गाँवों का आपस में संपर्क टूट गया ,991 स्थानीय लोग मारे गए 11091 से अधिक जानवर बाढ़ में बह गए या दब कर मर गए !ग्रामीणों की 1309 हेक्टेयर जमीन बाढ़ में बह गई थी 2141 भवनों का नामों निशान  मिट गया था 100 से ज्यादा होटल ध्वस्त हो गए थे
। यात्रा मार्ग में फंसे 90 हजार यात्रियों को सेना ने और 30 हजार लोगों को पुलिस ने बाहर निकाला। आपदा में नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 सड़कें 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल बह गए या क्षतिग्रस्त हो गए।मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इस विषय में भी कोई स्पष्ट पूर्वानुमान  नहीं  बताया गया था !
     सन 2016 में 10 अप्रैल के बाद से शुरू होकर मई जून तक आधे भारत में भीषण गर्मी होती रही इसी समय में आग लगने की हजारों घटनाएँ घटित हुईं यहाँ तक कि इसीकारण बिहार सरकार को जनता से अपील करनी पड़ी कि दिन में चूल्हा न जलाएँ और हवन  न करें !इसी समय कुएँ नदी तालाब आदि सभी तेजी से सूखे जा रहे थे !इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ इसी कारण से ट्रेन से पानी की सप्लाई करनी पड़ी थी ! ऐसी परिस्थिति में गर्मी की ऋतु तो प्रतिवर्ष आती है किंतु ऐसी दुर्घटनाएँ तो हरवर्ष नहीं दिखाई सुनाई पड़ती हैं !इस वर्ष ऐसा होगा इस विषय में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था ?
      इसी प्रकार से सन 2018 में  11 अप्रैल और 2 मई को आए तूफान की वजह से जन धन का भारी नुकसान हुआ था। तूफान में हजारों पेड़ टूट गए थे।मई जून में आँधी तूफ़ान की कई बड़ी घटनाएँ घटित हुईं जिनके विषय में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई अग्रिम अनुमान नहीं बताया गया था !उधर जब घटनाएँ घटित होने लगीं जनधन की हानि भी काफी मात्रा में होने लगी तो मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा भी बहते पानीमें हाथ धोने की कोशिश की गई उनके द्वारा भी  आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणियाँ भी की जाने लगीं जो गलत निकलत चली गईं !7-8 मई के विषय में सरकारी मौसम भविष्य वक्ताओं ने भीषण तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की गई कुछ प्रदेशों में सरकारों के द्वारा सतर्कता बरतते हुए स्कूल कालेज बंद कर दिए गए ! जबकि उस दिन हवा का एक झोंका भी नहीं आया !ऐसी घटनाएँ पूरे समय में घटित होती रहीं और इनका पूर्वानुमान देने में भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियाँ लगातार गलत होती चली गईं !
      17 अप्रैल 2019 को भीषण बारिश आँधी तूफ़ान बिजली गिरने आदि की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी तैयार गेहूँ भीग गया !लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हुई !इसका भी कोई पूर्वानुमान मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा  नहीं बताया गया था ?    
    इसी प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को 28 जून 2015 को बनारस पहुँचकर बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर के साथ इंट्रीगेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम और बनारस के रिंग रोड का शिलान्यास करना था। इसके लिए काफी बढ़ा आयोजन किया गया था किंतु उस दिन अधिक वर्षा होती रही इसलिए कार्यक्रम रद्द करना पड़ा !इसके बाद इसी कार्यक्रम के लिए 16 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम तय किया गया !उसमें भी लगातार बारिश होती रही उस दिन भी मौसम के कारण प्रधानमंत्री जी की सभा रद्द करनी पड़ी !रधानमंत्री जी का कार्यक्रम सामान्य नहीं होता है उसके लिए सरकार की सभी संस्थाएँ सक्रिय होकर अपनी अपनी भूमिका अदा करने लगती हैं कोई किसी के कहने सुनने की प्रतीक्षा नहीं करता है !ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि सरकार के मौसमभविष्यवक्ताओं  ने अपनी भूमिका का निर्वाह क्यों नहीं किया ?प्रधानमंत्री जी की इन दोनों सभाओं के आयोजन पर भारी भरकम धन खर्च करना पड़ा था ! उस सभा में 25 हज़ार आदमियों को बैठने के लिए एल्युमिनियम का वॉटर प्रूफ टेंट तैयार किया गया था ! जिसकी फर्श प्लाई से बनाई गई थी जिसे बनाने के लिए दिल्ली से लाई गई 250 लोगों की एक टीम दिन-रात काम कर रही थी ।वाटर प्रूफ पंडाल, खुले जगहों पर ईंटों की सोलिंग और बालू का इस्तेमाल कर मैदान को तैयार किया गया था ! ये सारी कवायद इसलिए थी कि मौसम खराब होने पर भी कार्यक्रम किया जा सके किंतु मौसम इतना अधिक ख़राब होगा इसका किसीको अंदाजा ही नहीं था !मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इस विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था !
     इसके अलावा भी बहुत सारी छोटी बड़ी घटनाएँ तो अक्सर घटित होती रहती हैं सबका उद्धृत किया जाना यहाँ संभव नहीं है चूँकि बड़ी घटनाओं के विषय में तो सभी चिंतित होते हैं इसलिए उधर सबका ध्यान जाता है !इसलिए ऐसे समय में मौसम भविष्यवक्ताओं  की सच्चाई सामने आ  ही जाती है !
      इसके अतिरिक्त मुख्य बात एक और है कि भारत में सरकार के द्वारा जून से सितंबर तक वर्षा होने का समय माना जाता है इसके विषय में प्रतिवर्ष मौसम भविष्यवक्ताओं को दीर्घावधि पूर्वानुमान बताना होता है !इस चार पाँच महीने पहले का पूर्वानुमान एक साथ बताने का आजतक साहस नहीं कर सके ये भी अप्रैल से लेकर अगस्त तक तीन बार में बताया जाता है !फिर भी इनके सही होने का अनुपात इतना कम है कि इन्हें सिद्धांततः भविष्यवाणी नहीं माना जा सकता !
       मानसून किस तारीख को आएगा इसकी तारीख भविष्यवक्ताओं के द्वारा हर वर्ष बताई जाती है यह बात और है कि उस तारीख में शायद कभी मानसून आता भी हो किंतु ऐसा होना बहुत कम वर्षों में ही संभव हो पाया है !
         ऐसी परिस्थिति में जिन मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा दोचार महीने पहले के मौसम संबंधी सही पूर्वानुमान बता पाना संभव हो पाता हैं उन्हीं  मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा यह बताया जा रहा है कि ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन के कारण ही आज के सैकड़ों वर्ष बाद घटित होने वाली सूखा, अकाल, वर्षा ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी मौसम संबंधी घटनाओं की भविष्यवाणी की जा रही है ऐसी बातों पर कितना विश्वास किया जाए ये समाज स्वतः करे !
                                               बादलों की जासूसी करना विज्ञान नहीं है !  
      हमें याद रखना होगा कि जासूसी के बलपर हम किसी विषय को विज्ञान नहीं सिद्ध कर सकते हैं !जासूसी तो जासूसी है भले वह उपग्रहों या राडारों से ही क्यों न की जाए !जासूसी करके हम किसी व्यक्ति की गतिविधियों पर निगरानी रख सकते हैं किंतु उस व्यक्ति का अगला कदम क्या होगा इसके विषय में किसी भी जासूस को कुछ भी पता नहीं होता वो केवल तीर तुक्के भिड़ाया करता है !यही स्थिति मौसम भविष्यवक्ताओं की है !
       ऐसा माना जा सकता है कि राजनैतिक पत्रकारों की तरह ही मौसमी पत्रकार भी होते हैं !जिस प्रकार से बड़े बड़े राजनैतिक पत्रकार राष्ट्रीय राजधानी में संसद भवन के आस पास डेरा डाले रहते हैं वहीँ जगह जगह अपने कैमरे फिट किए होते हैं वहीँ से नेताओं की गतिविधियों पर नजर रखा करते हैं नेता लोगों के हिलने डुलने,बोलने बताने हँसने मुस्कुराने आने जाने आदि की रिकार्डिंग किया करते हैं उन्हीं के आधार पर समाचार तैयार करते रहते हैं !इसी के आधार पर उनकी गतिविधियों को देख देखकर उनके विषय में नए नए अनुमान लगाया करते हैं !वो सही हों गलत हों इसकी उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती है !उनकी गाड़ी जिस रोड की ओर जाते दिखती है उस रोड पर जो जो नेता रहते हैं उसका अनुमान लगाकर वो अनुमान लगाने लगते हैं कि संभवतः ये उनके यहाँ जाएँगे !आदि आदि !कुछ पत्रकार कुछ नेताओं को या क्षेत्रों को चुन लेते हैं वे उनकी गतिविधियों पर नजर रखते हैं और उनके विषय में अनुमान लगाया करते हैं !पत्रकार लोग अपनी इस प्रकार की संभावनाओं आशंकाओं को भविष्यवाणी कहकर नहीं प्रस्तुत  करते हैं इसलिए उनके अनुमानों के गलत होने को कोई गंभीरता से लेता भी नहीं है ! वे समाचारों की दृष्टि से कोई ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन जैसी अफवाहें भी नहीं फैला रहे होते हैं ! जो भविष्य में समाज के लिए बहुत दुखदायी सिद्ध होने वाला हो सकता हो !
        इसीप्रकार  से मौसम संबंधी राजधानी समुद्र या विशेषकर प्रशांत महासागर है जहाँ  मौसम संबंधी अधिकाँश घटनाएँ प्रारंभ होती हैं यहीं अग्निवृत्त (फायर ऑफ़ रिंग) हैऔर यहीं सबसे अधिक भूकंप और सुनामी आदि की घटनाएँ घटित होती हैं चक्रवातादिकों की निर्माणस्थली है !इसलिए मौसमी भविष्यवक्ताओं (पत्रकारों) ने यहाँ अपने रडार उपग्रह आदि लगाए हुए हैं जिनसे बादलों आँधी तूफानों आदि की गतिविधियों की निगरानी किया करते हैं !
      वहाँ से बादल आँधी तूफ़ान आदि जो कुछ भी निकलते दिखा तो उनकी दिशा और गति के हिसाब से ऐसे मौसमी पत्रकार लोग मौसम संबंधी आशंकाएँ संभावनाएँ व्यक्त किया करते हैं कि ये किस देश प्रदेश शहर आदि में कब कब पहुँच सकते हैं उसी हिसाब से मौसम संबंधी समाचार तैयार किया करते हैं और आशंकाएँ संभावनाएँ बताया करते हैं !इसे मसम विज्ञान कैसे कहा जा सकता है !
    किसी नहर में जब पानी छोड़ा जाता है या किसी नदी में जब बाढ़ आती है उस पानी की गति के हिसाब से यह अनुमान लगा लिया जाता है कि यह पानी किस दिन किस शहर में पहुँचेगा !किंतु इसे नदी या नहर का विज्ञान नहीं नहीं माना जा सकता है !
    किसी गाँव का एक छोर जंगल की ओर पड़ता था उसी छोर से कभी कभी हाथियों का झुंड गाँव में घुस आता था और काफी तोड़फोड़ कर  जाता था इसके बाद गाँव के लोग लाठी डंडे ईंटों पत्थरों से खदेड़ बाहर करते थे लेकिन तब तक गाँव वालों का काफी नुक्सान हो चुका  होता था !इससे बचने के लिए गाँव वालों ने जंगल की दिशा में अपने गाँव के बाहर कैमरे लगा दिए जिससे हाथियों के गाँवों में प्रवेश करने से पहले ही वो देख लिया करते थे कि हाथी गाँव की ओर आ रहे हैं तभी से अपने बचाव के उपाय कर लिया करते थे इससे उनका बचाव हो भी जाता था किंतु इसे हाथी विज्ञान नहीं कहा जा सकता और उन गाँव वालों को हाथी वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है !
     इसी प्रकार से मौसम के क्षेत्र में भी उपग्रहों रडारों के माध्यम से मौसम संबंधी कुछ घटनाओं को देखने और घटित होने में कई बार कुछ समय मिल जाता है जिससे उस घटना से संभावित जनधन की हानि को यथा संभव प्रयास पूर्वक कम कर लिया जाता है ! जिसे मदद की दृष्टि से अच्छा माना जाता है किंतु उसे विज्ञान नहीं माना जा सकता है !
        ऐसी परिस्थिति में उपग्रहों और रडारों से चित्र देख देख कर उनके आधार पर वर्षा आँधी तूफानों आदि के विषय में संभावनाएँ आशंकाएँ व्यक्त करते रहने वाले मौसम भविष्यवक्ताओं को आज से उन सूखा, अकाल, वर्षा ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान पूर्वानुमान पूर्वानुमान कैसे पता चल गया पूर्वानुमान कैसे पता चल गया जो ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन जैसी काल्पनिक घटनाओं के फलस्वरूप अभी से सैकड़ों वर्षों बाद में घटित होने वाली अत्यंत दीर्घावधि घटनाओं के विषय में अभी से बताए जा रहे हैं !उसके लिए ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन  संबंधी चित्र किन उपग्रहों और रडारों में देखे गए हैं जिसके आधार पर इतनी बड़ी बड़ी अफवाहें फैलाई जा रही हैं !
           तीन दिन पहले का मौसम पूर्वानुमान बताने में जिन मौसम भविष्यवक्ताओं को कई कई बार हिचकोले खाने पड़ते हैं अपनी भविष्यवाणियों में बार बार संशोधन करने पड़ते हैं !इसके बाद भी जिन मौसमभविष्यवक्ताओं को अत्यंत झिझक पूर्वक बोलते देखा जाता है ऐसा होने की आशंका है या वैसा होने की संभावना है !वही लोग ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन के असर पर कितने बेधड़क ढंग से बताते देखा जा रहा है कि आज के सौ या पचास या दो सौ वर्ष बाद क्या क्या नफा नुक्सान हो जाएगा !देखिए -
        "ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन  के कारण भारत, चीन, अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीका, वियतनाम, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, फिलीपींस और मिडिल ईस्ट के कई देशों को नुकसान होगा। सबसे अधिक नुकसान भारत को होगा। मुंबई और कोलकाता के अधिकांश हिस्से डूब जाएंगे। अत्यधिक गर्मी के कारण खेत सूख जाएंगे, जिससे देश की 22.8 करोड़ और आबादी बेरोजगार हो जाएगी।"इसमें कुछ सच्चाई भी होगी क्या ये सोचकर  आश्चर्य अवश्य होता है !

  

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