- विज्ञान का अधूरापन और समय -
-भूमिका -
मौसमसंबंधी वैज्ञानिक अध्ययन का मतलब होता है प्रकृतिपरिवार का संपूर्ण अध्ययन !प्रकृति के अलग अलग अंगों के अलग अलग प्रभाव को अलग अलग परिभाषित नहीं किया जा सकता !चूँकि प्रकृति के सभी अंगों में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों का असर पड़ना इसी प्राकृतिक वातावरण और जीवन पर होता है !इसलिए बदलाव अलग अलग भले दिखाई पड़ें किंतु उनका असर संयुक्त होता है !
किसी गाड़ी का एक पहिया यदि किसी गड्ढे में फँस जाए तो उसका प्रभाव केवल उसी एक पहिए पर नहीं रह जाता है अपितु उससे शेष तीन पहियों एवं उस गाड़ी की गति रुक जाती है !
किसी पकवान को बनाते समय उसमें डाली जाने वाली सभी सामग्रियों का स्वाद तभी तक अलग होता है जब तक़ वे एक में मिल नहीं जाती हैं एक में मिलते ही पकवान तैयार होने के बाद उन सबका संयुक्त स्वाद एक साथ होता है जिसे उस व्यंजन का स्वाद माना जाता है !
इसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में किसी एक परिवर्तन का अर्थ अलग नहीं निकाला जा सकता है भले वो तापमान का बढ़ना ही क्यों न हो !प्रकृति में कोई घटना अकेले कभी नहीं घटती है उनका अपना समूह होता है उस समूह की समझ रखने वाले प्रकृतिविद्वान लोग घटनाओं के स्वभाव को आसानी से समझ लेते हैं और उससे संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लेते हैं !
वर्तमान समय में प्राकृतिक वातावरण के गर्म होने की चर्चा बहुत तेजी से उठाई जा रही है सभी ओर से ग्लोबलवार्मिंग अर्थात तापमान बढ़ने की बात उठाई जा रही है तापमान यदि बढ़ता है तो शीतमान घटता है तभी तो उसके बढ़ने का एहसास हो पाता है!संभव है कि शीतमान घटने के कारण तापमान बढ़ रहा हो! इसलिए केवल पापमान बढ़ने के पीछे ही क्यों भागना अपितु शीतमान गिरने के भी कारण खोजे जाने चाहिए !किंतु ऐसा किए बिना ही ग्लोबल वार्मिंग के तमाम प्रकार के एक से एक डरावने दुष्प्रभाव बताए जा रहे हैं जो कुछ लोगों की आशंकाओं पर आधारित महज कोरी कल्पनाएँ हैं जिनके प्रमाण स्वरूप में प्रस्तुत करने के लिए उनके पास इसके अलावा कुछ भी नहीं है कि ग्लोबलवार्मिंग के फल स्वरूप भविष्य में आँधी तूफ़ानों की आवृत्तियाँ बढ़ेंगी कहीं बाढ़ होगी और कहीं सूखा होगा आदि !किंतु देखा जाए तो ऐसी घटनाएँ इसी क्रम में हर कालखंड में घटित होती रही हैं किसी वर्ष में कोई घटना कुछ कम किसी वर्ष में कोई घटना कुछ अधिक घटित होती रही है !
ये प्राकृतिक घटनाएँ हैं जिनके एक जैसा घटित होने की कल्पनाएँ कभी नहीं की जा सकती हैं और न ही एक तिथि तारीख समय आदि में ही इन्हें बाँधकर रखा जा सकता है ! हमें याद रखना चाहिए कि मानवनिर्मित घटनाएँ अपने अनुशार घटाई जा सकती हैं प्राकृतिक घटनाएँ नहीं तभी तो वो प्राकृतिक हैं !नहरें मानवनिर्मित अपने इच्छा के अनुशार समतल और एक जैसी गहराई के स्तर से बनाई जा सकती है किंतु नदियों के निर्माण में ऐसा कोई निश्चित पैमाना नहीं होता है वे कहीं भी कैसी भी हो सकती हैं !इसलिए किसी कालखंड में गर्मी बढ़ना किसी में सर्दी बढ़ना किसी में सूखा पड़ना किसी में वर्षा बाढ़ आदि कभी आँधी तूफानों की अधिकता होना ये सब प्रकृति की शैली है !
मानव निर्मित ट्रेन किस दिन किस रूट से जाएगी उसकी स्पीड कितनी होगी कितने बजे ट्रेन चलेगी कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचेगी आदि सब कुछ निश्चित होता है !जिसका सबकुछ निश्चित है जैसे ट्रेन का किसी स्टेशन पर आने और जाने का समय निश्चित है जिसकी जानकारी उस ट्रेन चालक को भी होती है वो उसी समय सारिणी का प्रतिदिन पालन भी करता है इसलिए उसे किसी दिन देर हुई देर मानी जाएगी और यदि जल्दी हुआ तो जल्दी माना जाएगा !उसके विषय में तो कहा जा सकता है कि वो आज लेट हो गई या आज जल्दी पहुँच गई किंतु मानसून के विषय में इस नियम को कैसे लागू किया जा सकता है ये तो वर्षा ऋतु है जिसका आगमन किसी भी दिन हो सकता है !
किस तारीख को मानसून कहाँ पहुँचेगा ये समय सारिणी मानसून के पास तो होती नहीं है और तो उसकी सम्मति लेकर यह समय सारिणी बनाई भी नहीं गई है मानसून को इसकी जानकारी भी नहीं होती है और न ही वो इसका पालन ही करता है !वर्षाऋतु में वर्षाशुरू होने का दिन तारीख निश्चित नहीं होता वो तो वर्षा ऋतु के समय में जिस दिन पानी बरसना प्रारंभ हो जाए वहीं से शुरू मान ली जाती है ! इसलिए स्वयं ही मानसून की तारीख निश्चित करना और बाद में प्रिमानसून बारिश या देर में आया मानसून कहना ये सब निराधार कल्पनाएँ हैं !
अखवारों में आए दिन इस प्रकार की भाषा पढ़ने को मिलती है - मानसून चलपड़ा है मानसून ठिठक गया है मानसून धोखा दे रहा है मानसून रुका हुआ है आदि !इस वर्ष यहाँ इतने सेंटीमीटर बारिश हुई या इस महीने में इतनी बारिश हुई या इस वर्ष इस महीने में हुई बारिश ने इतने वर्षो का रिकार्ड तोड़ा ,गर्मी ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा और सर्दी ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा !आँधी तूफानों ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है !
अरे सरकारें मौसम भविष्यवक्ताओं पर उनकी सुख सुविधाओं के लिए जो धन खर्च करती हैं वो देश वासियों के खून पसीने से प्राप्त कमाई का अंश होता है !वो जहाँ जिन पर खर्च किया जाए उसके विषय में जनता के प्रति कुछ तो जवाबदेही होनी ही चाहिए !
सरकारें जिन्हें मौसम भविष्यवक्ताओं के रूप में देश से परिचय करवाती हैं उनका काम केवल मौसम के विषय की भविष्यवाणी करना होता है जनता केवल इसी एक काम को करने के लिए उन पर और उनके अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि खर्च करती है इसके बाद ये उन मौसम भविष्यवक्ताओं को सोचना है कि वो जनता के इस काम में खरे उतर सकते हैं या नहीं !
ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी मौसम भविष्यवक्ताओं की बातों में कोई सच्चाई है या नहीं या ये केवल कोरी कल्पनाएँ हैं इससे आम जनता को क्या लेना देना उसे वर्तमान प्राकृतिक वातावरण के अनुशार वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफानों आदि से संबंधित पूर्वानुमान चाहिए होता है दे सकते हैं तो ठीक अन्यथा मौसम भविष्यवक्ताओं की ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी बहानेबाजी से जनता का क्या लेना देना !
-भूमिका -
मौसमसंबंधी वैज्ञानिक अध्ययन का मतलब होता है प्रकृतिपरिवार का संपूर्ण अध्ययन !प्रकृति के अलग अलग अंगों के अलग अलग प्रभाव को अलग अलग परिभाषित नहीं किया जा सकता !चूँकि प्रकृति के सभी अंगों में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों का असर पड़ना इसी प्राकृतिक वातावरण और जीवन पर होता है !इसलिए बदलाव अलग अलग भले दिखाई पड़ें किंतु उनका असर संयुक्त होता है !
किसी गाड़ी का एक पहिया यदि किसी गड्ढे में फँस जाए तो उसका प्रभाव केवल उसी एक पहिए पर नहीं रह जाता है अपितु उससे शेष तीन पहियों एवं उस गाड़ी की गति रुक जाती है !
किसी पकवान को बनाते समय उसमें डाली जाने वाली सभी सामग्रियों का स्वाद तभी तक अलग होता है जब तक़ वे एक में मिल नहीं जाती हैं एक में मिलते ही पकवान तैयार होने के बाद उन सबका संयुक्त स्वाद एक साथ होता है जिसे उस व्यंजन का स्वाद माना जाता है !
इसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में किसी एक परिवर्तन का अर्थ अलग नहीं निकाला जा सकता है भले वो तापमान का बढ़ना ही क्यों न हो !प्रकृति में कोई घटना अकेले कभी नहीं घटती है उनका अपना समूह होता है उस समूह की समझ रखने वाले प्रकृतिविद्वान लोग घटनाओं के स्वभाव को आसानी से समझ लेते हैं और उससे संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लेते हैं !
वर्तमान समय में प्राकृतिक वातावरण के गर्म होने की चर्चा बहुत तेजी से उठाई जा रही है सभी ओर से ग्लोबलवार्मिंग अर्थात तापमान बढ़ने की बात उठाई जा रही है तापमान यदि बढ़ता है तो शीतमान घटता है तभी तो उसके बढ़ने का एहसास हो पाता है!संभव है कि शीतमान घटने के कारण तापमान बढ़ रहा हो! इसलिए केवल पापमान बढ़ने के पीछे ही क्यों भागना अपितु शीतमान गिरने के भी कारण खोजे जाने चाहिए !किंतु ऐसा किए बिना ही ग्लोबल वार्मिंग के तमाम प्रकार के एक से एक डरावने दुष्प्रभाव बताए जा रहे हैं जो कुछ लोगों की आशंकाओं पर आधारित महज कोरी कल्पनाएँ हैं जिनके प्रमाण स्वरूप में प्रस्तुत करने के लिए उनके पास इसके अलावा कुछ भी नहीं है कि ग्लोबलवार्मिंग के फल स्वरूप भविष्य में आँधी तूफ़ानों की आवृत्तियाँ बढ़ेंगी कहीं बाढ़ होगी और कहीं सूखा होगा आदि !किंतु देखा जाए तो ऐसी घटनाएँ इसी क्रम में हर कालखंड में घटित होती रही हैं किसी वर्ष में कोई घटना कुछ कम किसी वर्ष में कोई घटना कुछ अधिक घटित होती रही है !
ये प्राकृतिक घटनाएँ हैं जिनके एक जैसा घटित होने की कल्पनाएँ कभी नहीं की जा सकती हैं और न ही एक तिथि तारीख समय आदि में ही इन्हें बाँधकर रखा जा सकता है ! हमें याद रखना चाहिए कि मानवनिर्मित घटनाएँ अपने अनुशार घटाई जा सकती हैं प्राकृतिक घटनाएँ नहीं तभी तो वो प्राकृतिक हैं !नहरें मानवनिर्मित अपने इच्छा के अनुशार समतल और एक जैसी गहराई के स्तर से बनाई जा सकती है किंतु नदियों के निर्माण में ऐसा कोई निश्चित पैमाना नहीं होता है वे कहीं भी कैसी भी हो सकती हैं !इसलिए किसी कालखंड में गर्मी बढ़ना किसी में सर्दी बढ़ना किसी में सूखा पड़ना किसी में वर्षा बाढ़ आदि कभी आँधी तूफानों की अधिकता होना ये सब प्रकृति की शैली है !
मानव निर्मित ट्रेन किस दिन किस रूट से जाएगी उसकी स्पीड कितनी होगी कितने बजे ट्रेन चलेगी कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचेगी आदि सब कुछ निश्चित होता है !जिसका सबकुछ निश्चित है जैसे ट्रेन का किसी स्टेशन पर आने और जाने का समय निश्चित है जिसकी जानकारी उस ट्रेन चालक को भी होती है वो उसी समय सारिणी का प्रतिदिन पालन भी करता है इसलिए उसे किसी दिन देर हुई देर मानी जाएगी और यदि जल्दी हुआ तो जल्दी माना जाएगा !उसके विषय में तो कहा जा सकता है कि वो आज लेट हो गई या आज जल्दी पहुँच गई किंतु मानसून के विषय में इस नियम को कैसे लागू किया जा सकता है ये तो वर्षा ऋतु है जिसका आगमन किसी भी दिन हो सकता है !
किस तारीख को मानसून कहाँ पहुँचेगा ये समय सारिणी मानसून के पास तो होती नहीं है और तो उसकी सम्मति लेकर यह समय सारिणी बनाई भी नहीं गई है मानसून को इसकी जानकारी भी नहीं होती है और न ही वो इसका पालन ही करता है !वर्षाऋतु में वर्षाशुरू होने का दिन तारीख निश्चित नहीं होता वो तो वर्षा ऋतु के समय में जिस दिन पानी बरसना प्रारंभ हो जाए वहीं से शुरू मान ली जाती है ! इसलिए स्वयं ही मानसून की तारीख निश्चित करना और बाद में प्रिमानसून बारिश या देर में आया मानसून कहना ये सब निराधार कल्पनाएँ हैं !
अखवारों में आए दिन इस प्रकार की भाषा पढ़ने को मिलती है - मानसून चलपड़ा है मानसून ठिठक गया है मानसून धोखा दे रहा है मानसून रुका हुआ है आदि !इस वर्ष यहाँ इतने सेंटीमीटर बारिश हुई या इस महीने में इतनी बारिश हुई या इस वर्ष इस महीने में हुई बारिश ने इतने वर्षो का रिकार्ड तोड़ा ,गर्मी ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा और सर्दी ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा !आँधी तूफानों ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है !
अरे सरकारें मौसम भविष्यवक्ताओं पर उनकी सुख सुविधाओं के लिए जो धन खर्च करती हैं वो देश वासियों के खून पसीने से प्राप्त कमाई का अंश होता है !वो जहाँ जिन पर खर्च किया जाए उसके विषय में जनता के प्रति कुछ तो जवाबदेही होनी ही चाहिए !
सरकारें जिन्हें मौसम भविष्यवक्ताओं के रूप में देश से परिचय करवाती हैं उनका काम केवल मौसम के विषय की भविष्यवाणी करना होता है जनता केवल इसी एक काम को करने के लिए उन पर और उनके अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि खर्च करती है इसके बाद ये उन मौसम भविष्यवक्ताओं को सोचना है कि वो जनता के इस काम में खरे उतर सकते हैं या नहीं !
ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी मौसम भविष्यवक्ताओं की बातों में कोई सच्चाई है या नहीं या ये केवल कोरी कल्पनाएँ हैं इससे आम जनता को क्या लेना देना उसे वर्तमान प्राकृतिक वातावरण के अनुशार वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफानों आदि से संबंधित पूर्वानुमान चाहिए होता है दे सकते हैं तो ठीक अन्यथा मौसम भविष्यवक्ताओं की ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी बहानेबाजी से जनता का क्या लेना देना !