Tuesday, 2 July 2019

जलवायु परिवर्तन

                             जलवायु परिवर्तन क्यों ?
      इसलिए समस्त प्रकार की दुर्घटनाएँ रोकने का प्रयास प्रकृति स्वयं करती है जब हम नदी  तालाब आदि का जल प्रदूषित करते हैं तो प्रकृति अधिक वर्षा और बाढ़ करके पहले उनके जल को हटाती है फिर उन्हें जल के  वेग तो से स्वच्छ करती है इसके बाद उनमें स्वच्छ जल भरती है |जल के बिना जीवन नहीं है इसलिए प्रकृति ये काम मानवता के रक्षण के लिए करती है| हमें बाढ़ का रौद्र रूप तो दिखता है किंतु उसके पीछे छिपा हुआ प्रकृति के द्वारा किया जा रहा इतना बड़ा उपकार नहीं दिखता है|बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए हमें चाहिए कि हम जल को प्रदूषित करना बंद कर दें | प्रकृति को इतना प्रयास नहीं करना होगा और बाढ़ जैसी आपदा से एक सिका तक बचा जा सकता है | 
     बाढ़ आने का एक कारण और भी है वर्षा हमेंशा पृथ्वी की प्यास बुझाने के लिए होती है प्रकृति को पता है कि यदि पृथ्वी के बाहर नदी तालाब स्वच्छ जल से आपूरित रहेंगे और पृथ्वी के अंदर पर्याप्त मात्रा में जल भरा रहेगा तो इन दोनों जलों से वर्ष भर आराम से काम चल जाएगा | दुर्भाग्य से हमने नदियों तालाबों के जल को दूषित कर लिया तथा पृथ्वी के अंदर जल जाने के कुएँ तालाब आदि बंद हो जाने दिए | इससे पृथ्वी के अंदर जल  हो गया तो वो बाहर बहा बहा घूमा करता है तो बाढ़ तो आएगी ही रही बात  पृथ्वी के अंदर के जल की  पहले जल हाथ से निकालना होता था  जितना  जिसके लिए आवश्यक होता था उतना ही जल निकाला जाता था अब तो मशीनों की सहायता से आवश्यकता से अधिक जल का दोहन किया जाता है जिसे निरर्थक बहाया जाता है | प्रकृति एक एक बूँद जल नाम तौल के देती है जितना आवश्यक होता है उतना ही जल देती है |जो जल हम आवश्यकता से अधिक पृथ्वी के अंदर से निकाल लेते हैं उतना ही हमें कम पड़ता जाता है जिसके लिए विचारक कह रहे हैं अगला युद्ध जल के लिए होगा | ऐसी अफवाहें फैलाने  से अच्छा है सिंचाई के लिए वर्षा के जल का संग्रह  ही किया जाए पृथ्वी के अंदर स्थित जल का दोहन न होने दिया जाए | जब पृथ्वी जल पूरित बनी रहेगी तब कुएँ तालाब और नदियाँ भी नहीं सूखेंगी | ऐसे ग्रीष्मऋतु अर्थात गर्मी में जल की आवश्यकता अधिक होती है उसी समय कुएँ नदियाँ तालाब झीलें आदि सूख जाती हैं
      विशेष बात यह है कि जितनी मात्रा में जल धरती के अंदर और बाहर हमेंशा विद्यमान रहना चाहिए जिससे पृथ्वी का तापमान संतुलित रह पाता है यदि उतना जल धरती के कोष में नहीं रहने दिया जाएगा तो पृथ्वी का तापमान बढ़ेगा ही क्योंकि पृथ्वी की सुदूर  गहराई में तापमान अधिक है ही बाहर से भगवान् सूर्य भी निरंतर तप रहे हैं तथा पृथ्वी के अंदर एवं बाहर जल का क्षय प्रति वर्ष बढ़ता जा रहा है इससे पृथ्वी का तापमान बढ़ेगा ही ग्लेशियर पिघलेंगे ही ये तो सबको समझ में आसानी से आ जाने वाली आम बात है |इसमें जलवायु परिवर्तन जैसी कहानियाँ गढ़ने की आवश्यकता क्या है ये सीधी सीधी बात समाज को क्यों न समझाई जाए जिससे समाज अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुशार अपनी भी  भूमिका अदा करे | 
     वायुप्रदूषण जब जब बढ़ता है तो उसे हटाने या शांत करने के लिए प्रकृति स्वयं सतर्क होकर हवा की गति को तीव्र करके उसे इधर उधर उड़ा ले जाती है |इसी प्रक्रिया में बड़े बड़े आँधी तूफ़ान घटित होते हैं | 
     यदि हमें आँधी तूफानों की  विकरालता से बचना है तो हमें सभी को मिलजुल कर वायुप्रदूषण की मात्रा को घटाना होगा |ऐसा करने से हिंसक आँधी तूफानों का आना कम हो सकता है |



    
प्राकृतिक घटनाओं के द्वारा दिए जाते हैं नए नए संदेश !
        इसलिए प्रकृति में प्रत्येक घटना प्रतिवर्ष प्रत्येक दिन अलग अलग प्रकार से घटित होती है !क्योंकि संदेश अलग अलग  होते हैं इसलिए इसमें समानता (equality)खोजने का प्रयास कभी नहीं करना चाहिए यही तो इसकी सुंदरता है |पिछले वर्ष इस तारीख को मानसून आया था अबकी उस तारीख को आया !पिछले बार इतने सेंटीमीटर वर्षा हुई थी अबकी उतनी ही क्यों हुई !सर्दी गर्मी वर्षा आदि ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है !ग्लेशियर पिघल रहे हैं !कुछ जगहों पर बहुत अधिक बारिश हो रही है और कुछ स्थानों पर बहुत कम !आखिर ऐसा क्यों हो रहा है |विज्ञान का काम केवल प्रकृति को समझना है उसके परिवर्तनों को स्वीकार करना एवं उसके अनुरूप समाज को ढलने के लिए प्रेरित करना है |इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के नाम पर या किसी अन्य शंका के आधार पर केवल अफवाहें फैलाना विज्ञान नहीं है | जो चीज सिद्ध ही नहीं की जा सकी है उसे समाज के सामने परोसा ही नहीं जाना चाहिए !समाज ऐसे अपरिपक्व अनुसंधानों वक्तव्यों से क्या और कैसे लाभ लाभ उठा सकता है |प्रकृति में घटनाएँ यदि अलग अलग समय में भिन्न भिन्न प्रकार से घटित हों इसका पूर्वानुमान लगाने में यदि हम सफल न हों तो इसका मतलब यह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है | ऐसा तो जीवन में भी होता रहता है सभी वर्ष सभी महीने सभी दिन सभी घंटे एक जैसे कभी नहीं रहते | इसका मतलब ये तो नहीं है कि जीवन में भी जलवायु परिवर्तन हो रहा है | 
      प्रकृति हो या जीवन परिवर्तन ही तो उसकी सुंदरता है इनके विषय में ऐसी आशा कभी नहीं की जानी चाहिए कि ये रॉबोट की तरह चलेंगे जिस तारीख को मानसून आने के लिए कह देंगे उस तारीख को मानसून आ जाएगा और जब जैसी जहाँ जितनी मात्रा में वर्षा चाहेंगे उतनी वर्षा हो जाएगी ! कैसे हो सकता है | ग्लेशियर यदि आज पिघल रहे हैं तो कभी जमीन भी तो होंगे !उस समय इनके ज़मने में मनुष्य की कोई भूमिका नहीं थी तो आज इसके पिघलने में परेशान होने की क्या आवश्यकता है| जहाँ आज सूखा पड़ता है कभी वहाँ जल भी तो था आज सूखा है फिर भी कभी वहाँ जल रहा होगा इसके लिए इतना अधिक परेशान होने की आवश्यकता क्या है | 
     जीवन हो या प्रकृति यह भी तो एक प्रकार का संगीत है|जिसके स्वर सृष्टि में विभिन्न स्वरूपों में गूँजा करते हैं|सुख दुःख आदि से संबंधित जीवन में घटित होने वाली विभिन्न प्रकार की घटनाएँ जीवनसंगीत के स्वर हैं इसी प्रकार से  प्रकृति का अपना संगीत है आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ भूकंप आदि  प्राकृतिक घटनाएँ ही उस संगीत के स्वर हैं | 
      जिस प्रकार से कोई  कुशल संगीतकार अलग अलग प्रकार की थापें दे दे कर अपनी अपनी रूचि के अनुशार भिन्न भिन्न प्रकार के स्वर निकालता है  कभी कोई अँगुली मारता है कभी कोई दूसरी मारता है  तो कभी तेज आदि अनेकों प्रकार की थापें दे देकर उस संगीत को रुचिकर बना लेता है |  
     श्रोताओं में से जो लोग उस संगीत के रहस्य को नहीं समझते हैं उन्हें उसकी हर थाप पर आश्चर्य होता है पहले तो इतनी तेज थाप मारी अबकी धीमे थाप मारी अबकी बहुत तेज थाप मारी जिसने इतने समय का रिकार्ड तोड़ा है |चूँकि वो संगीत की उस प्रक्रिया से अनभिज्ञ है इसी कारण उसे हर थाप में आश्चर्य हो रहा है क्योंकि थाप का प्रत्येक विंदु एक जैसा नहीं होता है अलग अलग प्रकार की थाप होने के कारण उससे अलग अलग प्रकार के ही स्वर निकलते देखे जाते हैं | उस संगीत से अनभिज्ञ लोगों को प्रत्येक बात में रिकार्ड टूटते दिखते हैं क्योंकि उनका मानना होता है कि प्रत्येक थाप एक जैसी होनी चाहिए उसमें समय का एक निश्चित अंतराल होना चाहिए आदि आदि |संगीत के रहस्य को न समझने वाले तथाकथित संगीत वैज्ञानिकों ने संगीत के विषय में जो आधार  विहीन कल्पनाएँ कर रखी हैं थापें यदि उस प्रकार की नहीं पड़ती हैं तो वे इस थापप्रक्रिया को   संगीत संबंधी 'जलवायुपरिवर्तन' मान लेते हैं |
      यहाँ ध्यान केवल इतना दिया जाना चाहिए कि संगीतकार का उद्देश्य उत्तम स्वर निकालना है वो जैसे भी संभव हो वैसे उसकी अँगुलियाँ चलती जाती हैं अँगुलियाँ चलाना या थापें मारना उसका कर्म तो है किंतु उद्देश्य नहीं उद्देश्य तो उत्तम संगीत है | यदि कोई अकुशल संगीत वैज्ञानिक ये समझने लगता है कि ये तबले को केवल पीट रहा है तो इसको किसी एक प्रकार से ही पीटना चाहिए अन्यथा 'जलवायुपरिवर्तन' हो रहा है ऐसा मान लिया जाना चाहिए | 
      यही स्थिति मौसमसंबंधी घटनाओं की है जो हमें आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ भूकंप आदि केवल घटनाएँ दिखाई पड़ रही होती हैं तो हम इन्हें केवल घटनाएँ मात्र मानकर चल रहे होते हैं जबकि इनके परोक्ष में प्रकृति का गायन चल रहा होता है उस गीत के अनुसार ही प्रकृति रूपी वाद्ययंत्र से आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ भूकंप रूपी स्वर निकल रहे होते हैं | प्रकृति के उस संगीत की लय न समझने के कारण हमें ये प्रकृति आपदाएँ लगती हैं जबकि ये तो समयगीत के अनुशार लगने वाली वे थापें हैं जिन्हें संगीतस्वर कहा जाता है | ये एक जैसी कभी नहीं हो सकती हैं ये हर क्षण बदलती हैं जिन परिवर्तनों से ऊभ कर कुछ लोग इसे जलवायुपरिवर्तन का कारण मानने लगते हैं जबकि ऐसा है नहीं !
      मौसम को समझने के लिए हमें प्रकृति संगीत को समझना होगा जिसके अनुसार ये प्राकृतिक घटनाओं के रूप में स्वर निकल रहे होते हैं | 
     जिस प्रकार से तबले पर थापें गीत के अनुशार लग रही होती हैं उसी प्रकार से वर्षा आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ प्रकृति संगीत के अनुशार घटित हो रही होती हैं किंतु जिस गीत के अनुशार तबले पर थापें लग रही होती हैं या फिर प्रकृति में घटनाएँ घटित हो रही होती हैं उस गीत के विषय में जानकारी न होने एवं उसकी लय की समझ न होने के कारण हम तबले पर पड़ रही थापों में या प्रकृति में घटित हो रही घटनाओं में समानता खोजने लग जाते हैं |वो समानता न मिलने के कारण हम उसका नाम जलवायुपरिवर्तन रख लेते हैं जबकि संगीत में हो या प्राकृतिक घटनाओं में समानता मिलना संभव ही नहीं है क्योंकि जहाँ जैसे स्वरों की आवश्यकता होती है वहाँ  वैसी घटनाएँ घटित होती रहती हैं | 
      जिस प्रकार से गीत की लय को समझे बिना हम टेबल पर पड़ रही भिन्न भिन्न प्रकार की थापों की लय को नहीं समझ सकते हैं ठीक उसीप्रकार से प्राकृतिक घटनाओं की निर्माण पद्धति को समझे बिना आँधी तूफानों  आदि के पूर्वानुमान को नहीं समझ सकते हैं | ऐसे ही रडारों उपग्रहों से बादलों की जासूसी करके मौसम के रहस्य को नहीं समझा जा सकता  है और रहस्य को समझे बिना हम मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |  
    प्राकृतिक घटनाएँ आपस में प्रायः एक दूसरे के साथ जुड़ी होती हैं !    

     तबले पर थाप देते समय अलग अलग अँगुलियाँ हथेली आदि अलग अलग प्रकार से एक एक करके अपनी अपनी भूमिका अदा कर रहे होते हैं जिसमें प्रत्येक थाप पर सभी अँगुलियों की भूमिका एक एक करके बदलती रहती है |इसके बाद भी उन दोनों हाथों में एवं दोनों हाथों की अँगुलियों में परस्पर इतना अच्छा तालमेल होता है कि सब अपनी अपनी बारी पर ही आवश्यकतानुसार ही अपनी अपनी भूमिका अदा करते हैं | इसमें कभी ऐसा भी नहीं होता है कि एक अँगुली जब अपनी थाप दे रही होती है उस समय दूसरी अँगुलियाँ शांत एवं तटस्थ नहीं होती हैं अपितु वे भी अपनी अपनी भूमिका किसी न किसी रूप में अवश्य अदा कर रही होती हैं |
      इसीप्रकार से प्राकृतिक घटनाओं का भी आपस में अद्भुत तालमेल होता है जिस प्रकार से वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान वायु प्रदूषण भूकंप आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ हो सकती हैं या होती हैं उनमें से अधिकाँश घटनाएँ एक दूसरे से संबंधित होती हैं या यूँ कह लें कि एक दूसरे के बारे में कुछ न कुछ संकेत अवश्य  दे रही होती हैं जो भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं से संबंध रखते हैं | प्रकृति में आज घटित हो रही कोई घटना भविष्य में घटित होने वाली किसी दूसरी घटना की सूचना दे रही होती है| जबकि आज घटित होते दिख रही घटना के विषय में भी  इसकी पूर्वसूचना किसी न किसी घटना के द्वारा आज से कुछ सप्ताह पहले प्रकृति के द्वारा अवश्य दी जा चुकी होगी  |
     प्रकृति में कोई घटना अकेली कभी नहीं घटित होती है अपितु प्रत्येक घटना के पीछे घटनाओं का एक समूह होता है जिसमें मुख्य घटना तो एक ही होती है किंतु उसके लक्षणों को व्यक्त करने वाली छोटी छोटी घटनाएँ अनेकों होती हैं |जिस प्रकार से किसी एक चार पहिए वाली गाड़ी का कोई एक पहिया किसी गड्ढे में गिर जाता है तो उसका असर उन बाकी पहियों पर भी पड़ता है और गाड़ी पर भी पड़ता है उसकी गति रूक जाती है !इसीप्रकार से प्रकृति में स्थान स्थान पर अलग अलग समयों में घटित होने वाली घटनाओं के अन्य प्राकृतिक घटनाओं के साथ अंतर्संबंध अवश्य होते हैं |सभी प्राकृतिक घटनाएँ किसी माला के मोतियों की तरह एक दूसरे के साथ गुथी होती हैं |
       प्रकृति में अचानक कभी कोई घटना नहीं घटित होती है प्रत्येक घटना की सूचना प्रकृति कुछ महीने सप्ताह आदि पहले अवश्य देने लगती है बाद वो घटना घटित होती है | प्रकृति के उन संकेतों को समझ न पाने के कारण हमें आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ यहाँ तक कि भूकंप जैसी घटनाएँ अचानक घटित हुई लगती हैं जबकि वे घटनाएँ बहुत पहले से निश्चित होती हैं और धीरे धीरे घटित होती जा रही होती हैं |
      प्रकृति में जो भी घटना जब कभी भी घटित होते दिख रही होती है तो उस घटना को बहुत ध्यान से देखे जाने की आवश्यकता होती है !उसके छै महीने पहले से उस क्षेत्र में घटित हो रही छोटी बड़ी सभी घटनाओं पर दृष्टिपात करना होता है उन घटनाओं के स्वभाव का ध्यान रखना होता है उनसे प्राप्त संकेतों को समझकर वर्तमान घटना के स्वभाव के साथ उन्हें जोड़कर उसका संयुक्त अध्ययन करना होता है !जिससे यह पता लगाना आसान होता है कि भूकंप आदि जो घटना घटित होते आज दिख रही होती है इसका निर्माण कितने पहले से होना प्रारंभ हो चुका था और इससे पहले कौन कौन सी प्राकृतिक घटनाएँ किस किस समय घटित हुई थीं जिनके द्वारा भूकंप जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना संभव हो सकता था | 
      जिस क्षेत्र में जिस प्रकार की घटना घटित होनी होती है वह पंचतत्वों में से जिस तत्व की अधिकता के कारण घटित होनी होती है उस तत्व का अतिरिक्त संग्रह उस क्षेत्र में लगभग 200 दिन पहले से प्रारंभ होने लगता है यही उस घटना का गर्भप्रवेश काल होता है जो अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण प्रारंभ में तो नहीं दिखाई पड़ता है किंतु धीरे धीरे घटनाओं का स्वरूप बढ़ने लगता है और उन घटनाओं के गर्भ लक्षण प्रकट होने लगते हैं |
     प्रकृति की तरह ही मनुष्यादि जातियों में भी गर्भकाल अलग अलग हो सकता है किंतु प्रक्रिया यही रहती है वहाँ भी गर्भकाल के प्रारंभिक समय में गर्भ लक्षण दिखाई भले न पड़ें किंतु धीरे धीरे जैसे जैसे समय बीतते जाता है गर्भ लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं जिन्हें देखकर विशेषज्ञ लोग इस बात का अंदाजा लगा लिया करते हैं कि इस गर्भ को अभी कितने महीने बीते होंगे उसके साथ ही इस बात का पूर्वानुमान भी लगा लेते हैं कि इस गर्भ का प्रसव लगभग कितने सप्ताह बाद होगा !किंतु यह पूर्वानुमान लगाना हर किसी के बश की बात नहीं होती है यह तो केवल कोई विशेषज्ञ ही लगा सकता है |
      इसीप्रकार से संसार में प्रकृति में या जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना का अपना अपना गर्भ प्रवेश काल होता है जिस समय वह घटना प्रारंभ होती है | जीवन या प्रकृति में घटित  होने वाली प्रत्येक घटना उसी के  आधीन होकर घटित होती है |
     इसी प्रकार से आचरण संबंधी गर्भ प्रवेशकाल होता है |जीवन में भी देखें तो जो लोग बेईमानी करके धन कमाते हैं उसका गर्भकाल 11 वर्षों का होता है इसके बाद वह धन नष्ट हो जाता है !जो जिस रस अधिक खाते हैं उसके परिणाम स्वरूप उन्हें ऐसे रोग होते हैं जिनमें मीठा खाना बंद करना पड़ता है !जो किन्हीं दूसरों की बहन बेटियों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं उनकी अपनी बहन बेटियों के साथ कोई दूसरा वैसा ही वर्ताव करता है !जो समय को नष्ट करते हैं समय उनको नष्ट करता है जो आनाज या खाने पीने के सामान को बर्बाद करते हैं एक दिन उस  अन्न या भोजन के लिए उन्हें तरसना पड़ता है जो किसी दूसरे को दुःख देते हैं एक दिन उन्हें स्वयं दुखी होना  पड़ता है जो किसी पद प्रतिष्ठा का  दुरूपयोग करते हैं वे एक दिन उसी प्रकार की पद प्रतिष्ठा के लिए तरसते हैं !जो जल को प्रदूषित करते हैं वे कितना भी स्वच्छ जल पिएँ किंतु उन्हें ऐसे रोग होते हैं जो दूषित जल पीने वालों को होते हैं ,जो हवा को दूषित करते हैं वे कितनी भी स्वच्छ हवा में रहने का प्रयास कर लें किंतु उन्हें रोग ही वही होते हैं जो दूषित हवा में साँस लेने वालों को होते हैं |
     इसप्रकार से जीवन से संबंधित घटनाओं पर यदि बिचार किया जाए तो ऐसी सभी प्रकार की घटनाओं का अपना अपना गर्भकाल होता है उस समय यदि ध्यान न दिया जाए या सँभल कर आचरण न किया जाए तो उसके परिणाम सामने आने लगते हैं |उस समय हम ईश्वर को दोष देते हैं वस्तुतः उन घटनाओं का गर्भकाल तो हमलोगों ने स्वतः बिगाड़ा होता है |कई बार कुछ धार्मिक सदाचारी ईमानदार लोग अपने बच्चों के दुराचरणों से परेशान होकर केवल उन्हें ही दोष देते हैं किंतु सच्चाई कुछ और होती है | जिस समय उन बच्चों का गर्भ में प्रवेश  होता है उस समय उनके माता पिता की जो भावना होती है वह समय उसी भावना से भावित संतान देता है !ऐसे लोग सारे जीवन धार्मिक सदाचारी ईमानदार आदि रहे होते हैं किंतु बच्चे के गर्भ प्रवेश के कुछ क्षण उस बच्चे के जीवन को एवं उससे माता पिता के संबंधों को बनाने या बिगाड़ने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं उनके बिगड़ जाने से बच्चों का जीवन और मातापिता से संबंध सदाचार आदि सबकुछ बिगड़  जाता है |
     कुलमिलाकर अपने शरीर एवं स्वभाव के विरुद्ध घटित हो रही घटनाओं को हम संकट या आपदा मानने लगते हैं जबकि उसके गर्भ प्रदाता हम स्वयं होते हैं संभवतःयही कारण है कि पूर्वज लोग अपनी संतानों को ईमानदारी सदाचरण आदि के लिए प्रेरित किया करते थे क्योंकि वे कर्मपरिणामों से सुपरिचित होते थे |
      जिसप्रकार से हमारे आज के कर्मबीज ही कालांतर में अपने अच्छे बुरे फल देते हैं !जिनमें बुरे फलों से आहत होकर हम उन्हें ईश्वर प्रदत्त आपदा मानने लगते हैं और अच्छे को अपने कर्मों का परिणाम मानने लगते हैं |
      ऐसे ही प्रकृति में प्राकृतिक आपदाओं का निर्माण होता है घटनाएँ तो वहाँ भी घटित होती रहती हैं!जिनमें से कुछ का कारण मनुष्य आदि जीवजंतु होते हैं तो कुछ का कारण प्रकृति स्वयं होती है जब मनुष्यादि प्राणी इतने विकसित नहीं थे उद्योग धंधे नहीं थे मोटरगाड़ियाँ नहीं थीं तब भी आँधीतूफान वर्षा बाढ़ सूखा भूकंप आदि घटनाएँ तो इसीक्रम में घटित होती रही हैं | चूँकि आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से मौसम संबंधी घटनाओं पर विचार करना अभी सौ दो सौ वर्ष पहले से ही प्रारंभ किया गया है इसलिए अपने पास इससे अधिक समय की प्राकृतिक घटनाओं की कोई सूची भी नहीं है इसलिए आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से देखने से ऐसा लगता है कि जलवायुपरिवर्तन ग्लोबलवार्मिंग या आँधीतूफान वर्षा बाढ़ सूखा भूकंप आदि ऐसी सारी घटनाएँ अभी सौ दो सौ वर्ष में ही घटित होने लगी हैं पहले ऐसा कुछ नहीं होता रहा होगा या कम होता रहा होगा ,किंतु ऐसा है नहीं वस्तुतः सभी प्रकार की घटनाएँ सभी युगों में इसी प्रकार से घटित होती रही हैं |ये बात हम केवल कह ही नहीं रहे हैं अपितु आवश्यकता पड़ने पर हम इसे सिद्ध भी कर सकते हैं |
     मानवजीवन की तरह ही  प्राकृतिक घटनाओं का भी गर्भकाल होता है प्राकृतिक घटनाओं के भी गर्भ चिन्हों की पहचान भी प्रकृति विशेषज्ञों को ही होती है वही इस बात का पर्वानुमान लगा सकते हैं कि किस समय किस स्थान की प्रकृति किस प्रकार की घटना के गर्भ को धारण कर रही है और उसके प्रसव का संभावित समय क्या हो सकता है | इसी के आधार पर प्राचीनकाल में प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की परंपरा रही है |



जलवायु किसी स्थान के वातावरण की दशा को व्पक्त करने के लिये प्रयोग किया जाता है। यह शब्द मौसम के काफी करीब है। पर जलवायु और मौसम में कुछ अन्तर है। जलवायु बड़े भूखंडो के लिये बड़े कालखंड के लिये ही प्रयुक्त होता है जबकि मौसम अपेक्षाकृत छोटे कालखंड के लिये छोटे स्थान के लिये प्रयुक्त होता है।

ऋतुविज्ञान वायुमंडल का विज्ञान है।

जलवायु मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं_____ :- (१) सम और (2)विषम| सम जलवायु-: सम जलवायु उस जलवायु को कहा जाता है जहां गर्मियों में ना अधिक गर्मी पड़ती है और ना सर्दियों में अधिक सर्दी जहां तापमान में पाई जाती है वह समुद्र के प्रभाव के कारण तटीय क्षेत्रों में सम जलवायु पाई जाती है ऐसी जलवायु में दैनिक तथा वार्षिक तापांतर बहुत ही कम पाया जाता है | केरल के तिरुवंतपुरम में इसी प्रकार की जलवायु पाई जाती है| विषम जलवायु-: विषम जलवायु उस जलवायु को कहा जाता है जहां गर्मियों में अत्यधिक गर्मी तथा सर्दियों में अधिक सर्दी पड़ती है जहां तापमान वर्ष भर आसमान रहता है ऐसे जलवायु महाद्वीपों के आंतरिक भागों अथवा समुद्र से दूर के भागों में पाई जाती है सूर्य की किरणों से जल की अपेक्षा धरती दिन में जल्दी गर्म और रात में जल्दी ठंड हो जाती है अतः धरती के प्रभाव के कारण विषम जलवायु का जन्म होता है ऐसी जलवायु में दैनिक तापांतर और वार्षिक तापांतर अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है जोधपुर (राजस्थान) तथा अमृतसर (पंजाब) में इसी प्रकार की जलवायु पाई जाती है 


मानसून मूलतः हिन्द महासागर एवं अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आनी वाली हवाओं को कहते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं। ये ऐसी मौसमी पवन होती हैं, जो दक्षिणी एशिया क्षेत्र में जून से सितंबर तक, प्रायः चार माह सक्रिय रहती है। इस शब्द का प्रथम प्रयोग ब्रिटिश भारत में (वर्तमान भारत, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश) एवं पड़ोसी देशों के संदर्भ में किया गया था। ये बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से चलने वाली बड़ी मौसमी हवाओं के लिये प्रयोग हुआ था, जो दक्षिण-पश्चिम से चलकर इस क्षेत्र में भारी वर्षाएं लाती थीं।[1] हाइड्रोलोजी में मानसून का व्यापक अर्थ है- कोई भी ऐसी पवन जो किसी क्षेत्र में किसी ऋतु-विशेष में ही अधिकांश वर्षा कराती है। [2][3] यहां ये उल्लेखनीय है, कि मॉनसून हवाओं का अर्थ अधिकांश समय वर्षा कराने से नहीं लिया जाना चाहिये। इस परिभाषा की दृष्टि से संसार के अन्य क्षेत्र, जैसे- उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, उप-सहारा अफ़्रीका, आस्ट्रेलिया एवं पूर्वी एशिया को भी मानसून क्षेत्र की श्रेणी में रखा जा सकता है। ये शब्द हिन्दी व उर्दु के मौसम शब्द का अपभ्रंश है। मॉनसून पूरी तरह से हवाओं के बहाव पर निर्भर करता है। आम हवाएं जब अपनी दिशा बदल लेती हैं तब मॉनसून आता है।.[4] जब ये ठंडे से गर्म क्षेत्रों की तरफ बहती हैं तो उनमें नमी की मात्र बढ़ जाती है जिसके कारण वर्षा होती है।

उत्तर अमरीकी मॉनसून (जिसे लघुरूप में NAM भी कहते हैं) जून के अंत या जुलाई के आरंभ से सितंबर तक आता है। इसका उद्गम मेक्सिको से होता है और संयुक्त राज्य में मध्य जुलाई तक वर्षा उपलब्ध कराता है। इसके प्रभाव से मेक्सिको में सियेरा मैड्र ऑक्सीडेन्टल के साथ-साथ और एरिज़ोना, न्यू मेक्सिको, नेवाडा, यूटाह, कोलोरैडो, पश्चिमी टेक्सास तथा कैलीफोर्निया में वर्षा और आर्द्रता होती है। ये पश्चिम में प्रायद्वीपीय क्षेत्रों तथा दक्षिणी कैलीफोर्निया के ट्रान्स्वर्स शृंखलाओं तक फैलते हैं, किन्तु तटवर्ती रेखा तक कदाचित ही पहुंचते हैं। उत्तरी अमरीकी मॉनसून को समर, साउथवेस्ट, मेक्सिकन या एरिज़ोना मॉनसून के नाम से भी जाना जाता है।[10][11] इसे कई बार डेज़र्ट मॉनसून भी कह दिया जाता है, क्योंकि इसके प्रभावित क्षेत्रों में अधिकांश भाग मोजेव और सोनोरैन मरुस्थलों के हैं। 

Monday, 1 July 2019

bhumikaa 3

                                                                 भूमिका
      समय बीतता जा रहा है उसके साथ साथ प्रकृति और जीवन में अच्छी बुरी प्राकृतिक घटनाएँ हमेंशा  घटित होती रहती हैं जिनकी तरफ हर समय हर किसी का ध्यान नहीं जाता है किंतु उनमें कुछ ऐसी विशेष या बड़ी घटनाएँ होती हैं जिनकी तरफ सरकारों से लेकर आम जीवन तक हर किसी का ध्यान जाता ही है कई बार इसलिए जाता है कि ऐसी कुछ बड़ी घटनाओं में जान धन की भारी हानि होते देखी जाती है इसलिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के लिए स्वदेश से लेकर विदेश तक सभी का चिंतत होना स्वाभाविक है !
       ऐसी घटनाओं के विषय में यदि घटनाएँ घटित होने से पहले समय से पूर्वानुमान पता लग जाते हैं तो समाज को अपने बचाव के लिए कुछ समय मिल भी जाता है किंतु पूर्वानुमान पता न लग पाने से कुछ घटनाओं में तो भारी जनधन की हानि होते देखी जाती है !ये ऐसी घटनाएँ होती हैं जिनके पूर्वानुमान किसी भी रूप में बताए नहीं गए होते हैं !जबकि सरकारों ने ऐसी प्राकृतिक घटनाओं पर अनुसंधान करने करवाने के लिए एवं प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान उपलब्ध कराने के लिए अधिकाँश देशों की सरकारों ने बड़े बड़े मंत्रालय बनाए हुए हैंउसमें अधिकारी कर्मचारी रखे हुए हैं बड़े बड़े वैज्ञानिक रखे हुए हैं उनमें अनुसंधान के लिए अनेकों प्रकार से प्रयत्न भी किए जाते हैं उसके लिए उपयोगी यंत्र भी ख़रीदे जाते हैं और भी आवश्यक सभी संसाधन उपलब्ध करवाए जाते हैं !उनके कहने पर तमाम उपग्रहों रडारों सुपर कंप्यूटरों आदि का भारी भरकम तामझाम सरकारें उन्हें उपलब्ध करवाती हैं !
        मंत्रालय में सेवाएँ देने वाले अधिकारियों कर्मचारियों पर एवं संबंधित वैज्ञानिकों पर एवं उनके अनुसंधान संसाधनों पर सरकारें पानी की तरह पैसा बहाती हैं उनकी सैलरी से लेकर मंत्रालयों में बिलासितापूर्ण रहन सहन समेत समस्त सुखसुविधाओं में सरकारों के द्वारा खर्च किया जाने वाला संपूर्णधन देश की जनता के द्वारा अत्यंत परिश्रम पूर्वक कमाया हुआ धन होता है !जो टैक्स रूप में सरकारों को प्राप्त होता है !जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्स रूप में लिया गया धन सरकारें जिस किसी मंत्रालय या विभाग पर खर्च करती हैं उससे जनता को मिलता क्या है और सरकार के उस मंत्रालय या विभाग से समाज को कैसे अधिक से अधिक लाभान्वित किया जाए इस विषय में भी बिचार किया जाना चाहिए !
       विशेष कर वैज्ञानिकविषयों से संबंधित अनुसंधानों के परिणाम निकलने में कुछ अधिक समय लगता है किंतु उसकी भी कोई तो सीमा रखनी होती होगी यदि ऐसा न हो तो हमारा अनुसंधान सही दिशा में जा रहा है या नहीं इसका निर्णय किए बिना भी बहुत लंबे समय तक अनुसंधान के नाम पर समय पास किया जा सकता है !भूकंप जैसे कई ऐसे विषय हैं जो इस प्रकार की अनुसंधान भावना के शिकार हैं !जिनके विषय में अभी तक यह ही नहीं पता है कि अनुसंधान करने  के नाम पर अभी तक जो जो कुछ किया गया है वह सही दिशा में था भी या नहीं !अर्थात वह किया जाना चाहिए भी था या नहीं जिस पर अनुसंधान करने के नाम पर धन समय एवं संसाधनों को लगाया जाता रहा है !
       इसका एक पक्ष यह भी है कि जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया के आधार पर भूकंपों का पूर्वानुमान लगाना तो दूर अभी तक यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि भूकंप घटित होने का कारण क्या है क्योंकि यह जिस दिन पता लग जाएगा उसी दिन उन कारणों के आधार पर अनुसंधान पूर्वक भूकंपों से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना सफल हो सकता है !
      इस प्रकार  से अपने द्वारा किए गए भूकंपों से संबंधित अनुसंधानों के विषय में जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया के आधार पर आगे बढ़ा जा रहा है वह प्रक्रिया उस विषय के विज्ञान से संबंधित है भी या नहीं !भूकंपों का रहस्य उद्घाटित हुए बिना किसी भी प्रक्रिया को केवल कल्पना के आधार पर उस विषय का विज्ञान कैसे माना जा सकता है !जिस विषय दे द्वारा अभी तक विज्ञान सिद्ध होकर विश्वसनीय परिणाम प्राप्त कर पाने में अभी तक सफलता ही न मिल पाई हो उस विषय को विज्ञान माना जाना उसे शिक्षा में सम्मिलित किया जाना और उसके कुछ लोगों को उन विषयों का वैज्ञानिक माना जाना कहाँ तक तर्क संगत हैं !भूकंप विज्ञान के साथ यही हो रहा है !कल्पनाओं के घोड़े दौड़कर डिग्रियों की एवं वैज्ञानिकों जैसी पद प्रतिष्ठा की रेवड़ियाँ बाँटी जा रही हैं !कल को भूकंपों से संबंधित रहस्यों का उद्घाटन यदि किसी अन्य प्रक्रिया के द्वारा होता है तब तो भूकंपविज्ञान कहलाने का वास्तविक अधिकार तो उसी प्रक्रिया के पास होगा और उसकी खोज करने वाले लोग ही वास्तविकवैज्ञानिक कहलाने के अधिकारी होंगे !
       भूकंपविज्ञान की तरह ही मौसम विज्ञान है जिस विज्ञान के द्वारा अभी तक आँधी तूफान वर्षा सूखा बाढ़ आदि के विषय में अभीतक पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही न हो पाया हो वो कैसा मौसम विज्ञान !मौसम संबंधी घटनाओं का निर्माण जिन समूद्री भागों में होता है वहाँ से उपग्रहों रडारों आदि के माध्यम से  ऐसी घटनाओं के प्रारंभिक चित्र ले लेना और वे घटनाएँ किस दिशा में कितनी तेजी से बढ़ रही हैं उसी हिसाब से अंदाजा लगाकर ये बता दिया जाता है कि यह घटना किस दिन किस देश प्रदेश या शहर आदि  में पहुँचने की संभावना है उसी हिसाब से अंदाजा लगाकर भविष्यवाणी कर दी जाती है !उससे कई बार कुछ मदद मिल भी जाती है इसके बाद भी इसमें भविष्यवाणी जैसा कुछ होता नहीं है और न ही इसमें कहीं कोई विज्ञान ही अंश होता है  !क्योंकि ऐसे अंदाजे तो आम जीवन में पग पग पर प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के सभी क्षेत्रों में लगाने पड़ते हैं !तो ऐसे सभी अंदाजों को विज्ञान कैसे माना जा सकता है !
       पूर्वानुमान का विज्ञान तो उसे कहा जा सकता है जो किसी भी विषय में किसी भी प्रकार के लक्षण प्रकट होने से पूर्व ही निश्चय पूर्वक बता दे कि ऐसा होगा और वैसा हो जाए वह तो विज्ञान अन्यथा किस बात का विज्ञान ! लक्षण प्रकट हो जाने के बाद तो अपने अपने क्षेत्रों में अनुमान सभी लगा लेते हैं किंतु उन्हें विज्ञान नहीं माना जा सकता !किसी व्यक्ति के अस्वस्थ होने से पूर्व यदि कोई वैज्ञानिक उसके अस्वस्थ होने की सही सही भविष्यवाणी कर देता है !इसका मतलब है कि वो उस विषय का वैज्ञानिक है तभी ऐसा कर पाया है !
     भारतीय प्राचीन वैज्ञानिकों ने प्रकृति और जीवन से संबंधित सभी क्षेत्रों में पूर्वानुमान लगाने के लिए अत्यंत उच्च कोटि के अनुसंधान करके उन्हें गणित के सूत्रों में बाँध दिया है कुछ आकाशीय ,प्राकृतिक एवं शारीरिक लक्षणों से संबंद्ध हैं उनका पारस्परिक तारतम्य है यहाँ अभी यदि ऐसा हो रहा है तो वहाँ उस समय वैसा होगा इस प्रकार से उन्होंने अधिकाँश क्षेत्रों में पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया व्यवस्थित की है !इसी प्रकार से गणित के सूत्रों में बाँध कर भी पूर्वानुमानों के विज्ञान को विकसित किया गया है जिससे तो सैकड़ों हजारों वर्ष पहले की प्राकृतिक एवं जीवन संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान प्रक्रिया विकसित करके उन्होंने अपनी इस वैज्ञानिक विधा को प्रमाणित भी कर दिया था !उसके आधार पर आज भी किसी ग्रहण के विषय में लगाया गया पूर्वानुमान एक एक मिनट तक सही एवं सटीक होता है और सैकड़ों वर्ष पहले ही ग्रहण संबंधी घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !यह प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से बहुत पहले पूर्वानुमान लगाने की सबसे अधिक सही एवं सटीक प्रक्रिया है !
       जीवन से संबंधित घटनाओं का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इस विषय में तो वर्तमान आधुनिक विज्ञान से संबंधित पूर्वानुमान वैज्ञानिकों में दूर दूर तक कहीं कोई चर्चा ही नहीं है जबकि भारत के प्राचीन विज्ञान के हिसाब से ऐसा किया जा सकता है यह प्रमाणित भी हो चुका है !ऐसी परिस्थिति में आधुनिक विज्ञान की तरह ही भारत के प्राचीन विज्ञान के विषय में भी अनुसंधान के लिए संसाधन एवं सुविधाएँ उपलब्ध करवाने में सरकारें सहयोग करें तो ग्रहण के पूर्वानुमान की तरह ही उसी गणित विज्ञान द्वारा प्रकृति और जीवन से संबंधित लगभग सभी प्रकार की घटनाओं का सही एवं सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
          पूर्वानुमान अनुसंधान की आवश्यकता !
    जीवन से संबंधित घटनाओं का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इस विषय में अनुसंधान करने की बात तो दूर इस विषय में सोच बनाने में भी अभी तक असफल रहे  वैज्ञानिकों के एक वर्ग ने तो हाथ खड़े कर रखे हैं उनका मानना है कि जीवन से संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया ही नहीं जा सकता है !शरीरों में अचानक पनप रहे रोगों से संबंधित विषय में पूर्वानुमान लगाए जाने चाहिए किंतु नहीं लगाए जाते हैं इसके अभाव में रोगों का लक्षण जब तक पता लग पाता है तब तक देर हो चुकी होती है !                मानसिक तनाव बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान खोजा जाना बहुत आवश्यक है !आम आदमी की कौन कहे बड़े बड़े पढ़े लिखे उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों कर्मचारियों नेताओं अभिनेताओं को भी तनाव ग्रस्त  होते देखा जाता है !तनाव से प्रभावित हुए बहुत लोग धैर्य छोड़ देते हैं और नशा या अपराध में संलिप्त हो जाते हैं हत्या या आत्महत्या करते देखे जाते हैं ! 
     संबंधों के विषय में जिस देश के पूर्वजों का "वसुधैवकुटुंबकं" अति प्रिय उद्घोष रहा हो जिसमें सारे संसार को एक परिवार की तरह प्रेम पूर्वक व्यवस्थित करने का संकल्प रहा हो जिसके कारण पहले बड़े बड़े संयुक्त परिवार होते देखे जाते थे सभी लोग एक साथ प्रेम पूर्वक रह लिया करते थे !यह उस समय में प्रचलित संबंधविज्ञान की ही देन थी जिसके आधार पर लोग सभी प्रकार के संबंधों के चलने न चलने एवं किस प्रकार से चलने का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे और उसी प्रकार से जीवन से जुड़े सभी प्रकार के संबंधों का  निर्वाह कर लिया करते थे !वर्तमान समय में तो संबंधों के विषय में पूर्वानुमान की प्रक्रिया न होने के कारण सारे संसार को एक परिवार की तरह प्रेम पूर्वक व्यवस्थित करने का संकल्प तो न जाने कहाँ खो गया है अब तो पति पत्नी, भाई भाई , भाई -बहन,पिता -पुत्र जैसे नितांत नजदीकी संबंध भी आए दिन टूटते देखे जाते हैं !
     इसी प्रकार से प्रकृति के संबंध में वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान भूकंप आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ हो सकती हैं वे  किसी न किसी रूप में जीवन को प्रभावित अवश्य करती हैं !यदि इनसे संबंधित पूर्वानुमानों के विषय  में लोगों को पहले से पता हो तो लोग अपने को सतर्क सावधान रहकर समय उपस्थित होने पर अपना एवं अपनों का यथा संभव बचाव कर सकते हैं !
      इसी प्रकार से प्रकृति और जीवन से संबंधित लगभग सभी क्षेत्रों में पूर्वानुमानों की बहुत बड़ी आवश्यकता है किंतु पूर्वानुमान पद्धति के आधार पर पूर्वानुमान लगाने में आधुनिक विज्ञान असफल रहा है और प्राचीन विज्ञान को विज्ञान माना नहीं जा रहा है इसलिए सरकारों के द्वारा अभी तक प्राचीनविज्ञान को उस प्रकार से प्रोत्साहित नहीं किया जा सका है ! 
       जिस वैदिकविज्ञान ने ग्रहण घटित होने से हजारों वर्ष पूर्व ही उसके विषय में गणित के द्वारा पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान विकसित कर लिया हो !जिससे एक एक मिनट सही एवं सटीक पूर्वानुमान लगा लिया जाता हो वह गणित विज्ञान जीवन और प्रकृति से संबंधित प्रत्येक विषय का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम है इसे भी आधुनिक विज्ञान की तरह ही व्यवस्थित किए जाने की आवश्यकता है ! 
       इस विषय में मेरा आग्रह ऐसा भी नहीं है कि भारत वर्ष के प्राचीन वैदिक विज्ञान के आधार पर ही प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जाए अपितु मेरा निवेदन  मात्र इतना है कि प्राचीन विज्ञान या आधुनिक विज्ञान आदि जिस किसी के द्वारा भी प्रकृति एवं जीवन से संबंधित पूर्वानुमान जितना अधिक सही  एवं सटीक उपलब्ध करवाया जा सकता हो सरकार के द्वारा उस विधा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए !
          यह अत्यंत आवश्यक है कि प्रकृति और जीवन से संबंधित पूर्वानुमानों के अभाव में अब समाज को और अधिक प्रतीक्षा नहीं कराई जानी  चाहिए !

   पूर्वानुमान विज्ञान को न समझने वाले लोगों के द्वारा लगाई जाने वाली अटकलें !   
       जीवन से संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के विषय में कभी कोई प्रयास आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा किया गया हो ऐसा मैंने नहीं सुना हैं !प्रकृति से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान प्रायः प्रत्येक  देश सरकारें लगवाती हैं  वो सही हों या गलत ये और बात है किंतु प्राकृतिक घटनाओं में विषय में भी जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं वो भी बताते समय उतनी निश्चिंतता निर्भीकता आदि नहीं होती है ! उनके द्वारा की गई मौसमसंबंधी सभी प्रकार की भविष्यवाणियाँ गलत हो सकती हैं ऐसा पूर्वानुमान बताने के प्रकार से पहले ही पता लग जाता है !सभी प्रकार की प्राकृतिक  घटनाओं से संबंधित भविष्यवाणियों में कोई न कोई ऐसी कहानी गढ़ ली गई है जिससे भविष्यवाणी गलत होते ही सारा दोष उस पर मढ़ दिया जाता है !ये कहानी प्रत्येक विषय से संबंधित भविष्यवाणी में साथ साथ चला करती है भविष्यवाणी पर गलत होने का आरोप लगने से पहले ही संपूर्ण भविष्यवाणी ही उसी कल्पित कहानी की गोद में डाल दी जाती है और इससे भविष्यवक्ताओं की प्रतिष्ठा बच जाती है !
     भूकंप की भविष्यवाणी -  भूकंप से संबंधित भविष्यवाणियाँ समय समय पर भूकंप वैज्ञानिकों के द्वारा की जाती रहती हैं वो गलत होती जाती हैं !उन्हीं वैज्ञानिकों के द्वारा भविष्यवाणियों के साथ साथ भूकंप आने का कारण भी बताया जाता है कि धरती के अंदर संचित गैसों के दबाव के कारण भूकंप आता है !इसके अलावा जमीन के अंदर कुछ टैक्टॉनिक प्लेटें हैं जिनके टकराने से भूकंप आता है !ऐसे ही भूकंपजोन के हिसाब से भारतवर्ष को पाँच श्रेणियों में चिन्हित किया गया है ! ऐसी बातें देख सुनकर लगता है कि भूकंपों के स्वभाव से सुपरिचित वैज्ञानिक लोग इस प्रकार की बातें बोल रहें हैं केवल इतना ही नहीं इसके बाद वे भूकंपों के घटित होने कीभविष्यवाणि भी करते हैं और यह भी बताते हाँ कि उस भूकंप की तीव्रता कितनी होगी !यह सब कोई सुविज्ञ भूकंप वैज्ञानिक ही कर सकता है !
      कुछ वैज्ञानिक समूहों के द्वारा अलग अलग रिसर्च करने के बाद नवंबर 2018 में भविष्यवाणी की गई कि " हिमालय क्षेत्र में 8.5 तीव्रता का भूकंप आ सकता है !"  जवाहरलाल नेहरू सेंटर के भूकंप विशेषज्ञ सीपी राजेंद्रन ने कहा -"हिमालयी क्षेत्र में भारी मात्रा में तनाव है जो भविष्य में केंद्रीय हिमालय में 8.5 या उससे अधिक की तीव्रता का एक भूकंप दर्शाता है।"  'जियोलॉजिकल जर्नल' में प्रकाशित अध्ययन के अनुशार -" "अध्‍ययन हमें यह निष्कर्ष निकालने के लिए मजबूर करता है कि केंद्रीय हिमालय में 15 मीटर की औसत सरकने के कारण 1315 और 1440 के बीच खिंचाव 8.5 या उससे अधिक तीव्रता का एक बड़ा भूकंप  इस क्षेत्र में आ सकता है !" "नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (एनटीयू) की अगुवाई में एक रिसर्च टीम ने भी पाया था कि मध्य हिमालय क्षेत्रों में रिएक्टर पैमाने पर आठ से साढ़े आठ तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आने का खतरा है।"  
   अचानक  भूकंप आ जाने पर - अचानक कहीं कोई भूकंप आ जाता है और उससे जनधन  की भारी हानि हो जाती है ऐसे भूकंपों के विषय में किसी के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया होता है !उस समय जनता के मन में प्रश्न उठता  है कि एक ओर तो इतनी बड़ी बड़ी भविष्यवाणियाँ भूकंप आने के विषय में की जा रही थीं संभावित भूकंप की तीव्रता भी बताई जा रही थी तो दूसरी ओर जो भूकंप आया उसके विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की गई जिससे इतनी जनधन की हानि हो गई ऐसा क्यों ?
     ऐसी परिस्थिति में भूकंप वैज्ञानिकों का एक ही जवाब होता है कि "किसी भूकंप के विषय में सफल भविष्यवाणी कर पाना असंभव है !" उस कल्पित कहानी का ऐसे उपयोग किया जाता है !
 भूकंप की भविष्यवाणियों के विषय में विशेष बात - यदि भूकंपों के आने के विषय में भविष्यवाणी की ही नहीं जा सकती तो समय समय पर भूकंप से संबंधित भविष्यवाणियाँ भूकंप वैज्ञानिकों के द्वारा की क्यों जाती हैं और यदि भविष्यवाणियाँ की जा सकती हैं तो वो भविष्यवाणियाँ ऐसे भूकंपों के आने से पहले क्यों नहीं की जाती हैं जिनसे भारी मात्रा में जनधन की हानि होते देखी जाती है ! 
   वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफानों के विषय में - मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा एक ओर तो जलवायु परिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग जैसी घटनाओं की परिकल्पना करके सैकड़ों साल पहले की डरावनी भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं कि इसके कारण  "भयंकर आँधी तूफ़ान आएँगे "  "अधिक बर्षात होने के कारण खूब बाढ़ आएगी तो दूसरी जगहों पर भीषण सूखा पड़ेगा  !"मौसम चक्र में बदलाव होगा सर्दियों गर्मियों आदि का समय आगे बढ़ जाएगा  !" "सर्दियाँ घट जाएँगी गर्मियाँ बढ़ती जाएँगी" आदि आदि ! 
     वही सैकड़ों वर्ष पहले की मौसम भविष्यवाणियाँ करने वाले वैज्ञानिकों के द्वारा की जाने वाली मौसम संबंधी दस बीस दिन पहले की गई भविष्यवाणियाँ गलत निकलती जा रही हैं !मौसम संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान अभी तक आधे भी नहीं सही हो पा रहे हैं मानसून किस तारीख को कहाँ पहुँचेगा इससे संबंधित मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियाँ एक आध छोड़कर बाक़ी गलत ही हो रही हैं !आँधी तूफानों से संबंधित भविष्यवाणियाँ गलत हो ही रही हैं कभी कोई तीर तुक्का बैठ जाए तो अलग बात है!वायु प्रदूषण के विषय में अभी तक यह बता पाना संभव नहीं हो पाया है कि वायु प्रदूषण प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !यदि मनुष्यकृत है तो मनुष्य के कौन कौन से आचार व्यवहार क्रियाकलाप आदि वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार हैं !ये अभी तक ये नहीं बताया जा सका है !
        भीषण आँधी तूफानों जैसी और भी बहुत सारी घटनाएँ  हैं जिनसे भीषण जनधन की हानि होते देखी जा रही हैं उनके विषय में 20 दिन पहले भी भविष्यवाणियाँ पता लग जाएँ तो जनता अपना बचाव कर सकती है !ऐसी परिस्थित में जो लोग दस बीस दिन पहले की मौसमसंबंधी सही एवं सटीक भविष्यवाणियाँ नहीं कर पा रहे हैं उनके द्वारा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग के नाम पर सैकड़ों वर्ष पहले की डरावनी भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं उन पर कितना विश्वास किया जाए !
       कुछ ऐसी घटनाएँ जिनके पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके !
        
        वैसे तो बहुत सारी ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ  घटित होती रहती हैं जिनका पूर्वानुमान पता ही नहीं लग पाता है और जनधन की हानि होती रहती है !मौसम संबंधी अच्छी बुरी बड़ी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा पाने में प्रायः असफल ही रहते रहे हैं मौसम भविष्यवक्ता लोग !छोटी घटनाओं के विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान भी प्रायः गलत निकल जाते हैं किंतु उधर किसी का ध्यान ही नहीं जाता है क्योंकि उनसे किसी बड़े नुकसान की संभावना ही नहीं होती है !मौसम के संबंध में पूर्वानुमान लगाने की जो  पद्धति है उससे कितने सटीक पूर्वानुमान दिए जा सकते हैं उसके समर्थन में बातें बहुत बड़ी बड़ी की जाती हैं उनके समर्थन प्रतीकात्मक तर्क भी बहुत दिए जाते हैं तमाम सिद्धांत प्रक्रियाएँ आदि समझाई जाती हैं !ताप,वायु,वायुदाब,आर्द्रता,संघनन के रूप,दृश्यता,छादन,वायुमंडल की रचना,जलवाष्प आदि ऐसी बहुत बातें हैं जिनका अनुसंधान  मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान जानने के लिए किया जाता है !ऐसा मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा समझाया जाता है !किंतु ये तो बातें और दावे हैं इन पर बहुत बहा विश्वास नहीं किया जाना चाहिए
इनसे परिणाम क्या निकलकर आता है जनता तो वही देख सकती है और वही देखती भी है जनता मौसम भविष्यवक्ता तो है नहीं जो ऐसी बातों के अभिप्राय जानने में समय लगाए !जनता तो मौसम भविष्यविज्ञानिकों के द्वारा की जाने वाली मौसम संबंधी भविष्यवाणियों का घटनाओं के साथ मिलान करती है कि किन किन घटनाओं की गईं और किन किन घटनाओं की नहीं की गईं की गईं तो उनमें सच कितनी निकलीं और नहीं की गईं तो क्यों ?ऐसी बातों पर विचार करने के लिए पिछले दस वर्षों में मौसम संबंधी जो प्रमुख घटनाएँ घटित हुई हैं उन्हें उद्धृत करके उन पर बिचार करते हैं !
                       सन 2010 से 2020 तक घटित हुई मौसम संबंधी कुछ प्रमुख घटनाएँ -
      सन 2016 के अप्रैल मई में पश्चिमी भारत भीषण गर्मी से दहक रहा था कुएँ तालाब नदियाँ आदि उस वर्ष अप्रत्याशित रूप से सूखते जा रहे थे !पानी के लिए त्राहि त्राहि मची हुई थी इतिहार में पहली बार ट्रेन से लातूर पानी भेजा गया था !इसी गर्मी में तीसों हजार जगहों पर अकारण आग लगने की घटनाएँ घटित होते देखी गई थीं !आग लगने की घटनाओं से तंग आकर बिहार सरकार ने बिहार बासियों को सलाह दी थी आप दिन में हवन करने एवं चूल्हा जलाने से बचें !इस प्रकार की परिस्थिति इसके पहले तो कभी नहीं हुई थी इस वर्ष में कुछ ऐसा विशेष था जिस कारण इस वर्ष ऐसा कुछ विशेष घटित हुआ !
       इस पर मौसम भविष्यवक्ताओं ने पहले कभी कोई  भविष्यवाणी नहीं की थी और जब घटनाएँ घटित हो रही थीं तब किसी के पूछने पर ये लोग केवल इतना बता पाते थे कि ग्लोबलवार्मिंग के कारण ऐसा हो रहा है !समाज के प्रश्नों से तंग आकर ऐसे लोगों को अंत में बोलना पड़ा कि ये घटना अप्रत्याशित है हम इसपर रिसर्च करेंगे !किंतु मौसम भविष्यवक्ताओं के पास ऐसा कोई आधार तो है नहीं जिसके आधार पर रिसर्च की जा सके !इसलिए उसके बाद ऐसी किसी रिसर्च के विषय में कभी कुछ सुनने को ही मिला भी नहीं उस रिसर्च के परिणाम क्या निकले ये तो बाद की बात है रिसर्च भी की गई या नहीं !इस पर भी कभी कोई चर्चा नहीं सुनी गई ! 
      विशेष बात यह है कि जिस समय पश्चिम भारत में  गर्मी बढ़ने ,आग लगने से तथा पानी के लिए त्राहि त्राहि मची हुई थी उसी समय पूर्वी भारत के  असम आदि क्षेत्रों में भीषण वर्षा और बाढ़ के कारण जनजीवन त्रस्त हो रहा था !
      ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा पश्चिम की गर्मी का कारण ग्लोबलवार्मिंग को बताया गया था उन्हीं के द्वारा पूर्व की बारिस और भीषण बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन को बता दिया गया !
     ऐसी अनेकों घटनाएँ घटित होती रहती हैं वर्ष 2018-19 की सर्दी में भीषण बर्फबारी से तंग आकर अमेरिका के राष्ट्रपति ने मौसम भविष्यवक्ताओं को ललकारा था कि कहाँ गई तुम्हारी तथाकथित ग्लोबल वार्मिंग !
       सन 2018 की ग्रीष्म ऋतु में भारत में हिंसक तूफानों की बार बार घटनाएँ घटित हुईं ऐसा इसी वर्ष क्यों हुआ इसका कारण बताया ही नहीं जा सका उसके लिए कह दिया गया इसके लिए रिसर्च की आवश्यकता है किंतु ऐसी कोई रिसर्च हुई भी है हमें नहीं पता हुई भी हो तो उसके परिणाम ग्लोबल वार्मिंग के अलावा मुझे नहीं लगता कि कुछ और दूसरे निकले होंगे !इसी विषय में दूसरी बड़ी बात यह है कि आँधी तूफानों का पूर्वानुमान बता पाने में असमर्थ थे भविष्यवक्ता लोग !अंत में हिम्मत करके इन लोगों ने 7,8-5-2018 को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी जोर शोर से कर दी गई सरकारों ने भरोसा कर लिया और दिल्ली के आसपास के सभी स्कूल कालेज बंद कर दिए गए किंतु उस दिन हवा का झोंका भी नहीं आया !अंत में मौसम भविष्यवक्ताओं को स्वीकार करना पड़ा कि ग्लोबलवार्मिंग के कारण घटित होने वाले ऐसे आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान लगाना अत्यंत कठिन क्या असंभव सा ही है इस लाचारी को किसी समाचार पत्र में छापा गया था जिसकी हेडिंग थी "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"चूँकि भविष्यवक्ताओंके तीर तुक्के इस पर नहीं चले इसका मतलब उनकी अयोग्यता नहीं अपितु "चक्रवात चुपके चुपके से आते हैं" ऐसा लिखा गया !
   16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए किंतु इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन की हानि को घटाया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका ! बाद में कारण बताते हुए कहा गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएँ घटित हो रही हैं ! 
    3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग ने अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की थी किंतु उनकी भविष्यवाणी के विपरीत 7 अगस्त से ही केरल में भीषण बरसात शुरू हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा !जिसकी कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी यह बात केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने भी स्वीकार की थी !बाद में  सरकारी मौसम भविष्यवक्ता ने एक टेलीवीजन चैनल के इंटरव्यू में कहा कि "केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसीलिए इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका  वस्तुतः इसका कारण जलवायु परिवर्तन था !"      
       21 दिसंबर से 25 दिसंबर 2018 तक वायु प्रदूषण इतना अधिक बढ़ा था कि इसे वायु प्रदूषण का आपात काल कहा गया था किंतु इसके विषय में पहले कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी !
     21 अप्रैल 2015 को बिहार में भीषण तूफ़ान आया था उससे  जनधन की भारी हानि हुई थी किंतु इसका कहीं कोई पूर्वानुमान किसी भी रूप में घोषित नहीं किया गया था !
     25 अप्रैल 2015 सुबह 11:56 स्थानीय समय में भूकंप आया जिसका केंद्र भले भारत न रहा हो किंतु जान धन की हानि भारत में भी कम नहीं हुई थी !इसके विषय में किसी भी प्रकार की कोई भविष्यवाणी तो छोड़िए आशंका तक नहीं व्यक्त की गई थी !
       इसी प्रकार की और भी बहुत सारी घटनाएँ घटित होती रहती हैं जिनके घटित होने के बाद में उसी प्रकार की और भी बहुत सारी भविष्यवाणियाँ मौसम भविष्यवक्ता लोग करते देखे जाते हैं जो निराधार गलत एवं झूठी निकल जाती हैं !क्योंकि उनका कोई आधार ही नहीं होता है ! 2मई 2018 की रात में भीषण आँधी तूफ़ान आया जिससे काफी जनधन हानि हुई! इसे देखकर मौसम भविष्यवक्ताओं ने भी 5 ,8 मई को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी कर दी जिसके कारण दिल्ली के आसपास के शहरों के स्कूल कालेज बंद कर दिए गए !किंतु हवा का एक झोंका भी नहीं आया !ये केवल एक प्राकृतिक घटना की बात नहीं है ऐसा लगभग प्रत्येक बड़ी प्राकृतिक घटना के बाद होता ही रहता है रीति रिवाज से बन गया है !जिस प्रकार की घटनाएँ मौसम में घटित होती देख लेते हैं वैसी ही बार बार दोहराते  रहते हैं !अभी ऐसा और होगा अभी और होगा वर्षा हुई तो वर्षा और होगी सर्दी हुई तो सर्दी और होगी गर्मी हुई गर्मी और पड़ेगी इनकी भविष्यवाणी के विपरीत जो कुछ होता है उसके लिए  "जलवायु परिवर्तन"  या "ग्लोबल वार्मिंग" जैसे पालतू शब्द हैं  जिनकी मदद ले ली जाती है !
      कई बार कही वर्षा होने लगती है तो मौसम भविष्य वक्ता लोग कहते हैं कि अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पअभहर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता  है ! 
          
    मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा जब कभी किसी प्राकृतिक घटना पर बार बार "जलवायु परिवर्तन"  कुल मिलाकर अब तो "ग्लोबल वार्मिंग" और 'जलवायुपरिवर्तन' जैसे शब्दों का प्रयोग सुनकर जनता को आभाष हो जाता है मौसम भविष्यवक्ता अपनी की हुई मौसम संबंधी किसी ऐसी भविष्यवाणी में उलझ गए हैं जो गलत हो गई है इसीलिए यवक्ताओं के सिर के ऊपर से गुजर रही हैं तभी तो प्रतिष्ठा बचाने के लिए बार बार  "जलवायु परिवर्तन"ग्लोबल वार्मिंग" और जलवायु परिवर्तन जैस शब्दों का प्रयोग करके जवाबदेही से बचने का प्रयास किया जा रहा है !
            वायु प्रदूषण -
     औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापन है !ज्वालामुखी फटने से वायु प्रदूषण बढ़ता है ! फ्रिज, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों की सीएफसी गैसों के ऊत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है !
     इसके अतिरिक्त मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है वायु प्रदूषण ! दशहरे में रावण जलने से, दिवाली में पटाके जलने से होली में होली जलने से,सर्दी में हवा रुक जाने से गर्मी में हवा के साथ धूल उड़ने से ,गाड़ियों के धुएँ से ,फसलों के अवशेष जलने से,घर बनने से,ईंट भट्ठे चलने से,हुक्का पीने से,महिलाओं के स्प्रे करने से,भौगोलिक कारणों से ऐसे ही और भी तमाम कारण बताए जाते हैं उनसे वायु प्रदूषण बढ़ता है !ऐसे और भी बहुत सारे कारण वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए गिनाए जाते रहते हैं ! जहाँ कहीं से धुआँ धूल उठते देखते हैं उसे ही वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं !यह स्थिति पर्यावरण और मौसम पर काम करने वाले लोगों की है !किसी विषय पर इतनी ढुलमुल बातें किसी वैज्ञानिक के मुख से कभी शोभा नहीं देती हैं !
  

                             वैज्ञानकता विहीन विज्ञान के वैज्ञानिक !

     ग्लोबलवार्मिंग जैसी घटनाएँ कोई नई नहीं हैं इनके लिए यह भी नहीं कहा जा सकता है कि  सौ दो सौ या हजार वर्ष पहले से तापमान बढ़ना प्रारंभ हुआ है उसके पहले ऐसा नहीं होता था !अब पृथ्वी का वातावरण अचानक गर्म होने लगा है अपितु इस विषय में हजारों वर्ष पहले के प्रमाण भी हमारे पास हैं !इस संसार में जिस जिस का जन्म हुआ है उस उस का अंत होना निश्चित है इस ब्रह्मांड का भी एक दिन अंत होता है किंतु वह समय अभी इतना नजदीक नहीं है उसके लिए अभी काफी समय है !उसी क्रम में पृथ्वी समेत समस्त वातावरण के धीरे धीरे गर्म होते जाने की स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसमें मनुष्यकृत कुछ भी नहीं है यह ब्रह्मांड की परिवर्तनशील अपनी क्रमिक स्वाभाविक धारा है !
 जनता की कार्यप्रणाली कैसे रोकी जाए ?
 जनता की कार्यप्रणाली के वे महत्वपूर्ण अंश हैं जो समाज की आवश्यक आवश्यकता बन चुके हैं जो रोके नहीं  दशहरे में रावण जलने से, दिवाली में पटाके जलने से होली में होली जलने से,सर्दी में हवा रुक जाने से गर्मी में हवा के साथ धूल उड़ने से ,गाड़ियों के धुएँ से ,फसलों के अवशेष जलने से,घर बनने से,ईंट भट्ठे चलने से,हुक्का पीने से,महिलाओं के स्प्रे करने से,भौगोलिक कारणों से वायु प्रदूषण बढ़ता है !
विषय का एक तरह से रिसर्च ही कहा जाएगा !जिसमें मौसम संबंधी घटनाएँ 
जिसके आधार पर
    

  वैसे तो जलवायुपरिवर्तन होना संभव नहीं है क्योंकि जल और वायु परिवर्तन होने यह प्रकृति और जीवन के लिए उपयोगी नहीं  रह जाएगा !दूसरी बात यदि एक प्रतिशत यदि ऐसा हो भी रहा होगा तो मनुष्यकृत प्रयासों के बहुत ऊपर की बात होगी इसलिए इतनी बड़ी घटनाओं को मनुष्यकृत प्रयासों से परिवर्तित करने या होने के भ्रम  से बाहर निकलना चाहिए !
      वस्तुतः  सूर्य से प्राप्त ऊर्जा के वितरण में सौर परिस्थितियों के कारण समय समय पर होने विषमता से उत्पन्न असंतुलन ही इस प्रकार के बदलावों के लिए जिम्मेदार हो सकता है जिसे रोक कर रखपाना मनुष्य के बश की बात भी नहीं है !पृथ्वी की जलवायु का निर्धारण और तापमान संतुलन सूर्य से प्राप्त ऊर्जा ही  निर्धारित करती है। यह ऊर्जा हवाओं, समुद्र धाराओं, और अन्य तंत्र द्वारा विश्व भर में वितरित होती रहती है जो अलग-अलग क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती है।शीत ग्रीष्म बसंत वर्षा जैसी ऋतुओं का निर्माण होने का कारण सूर्य के संचार की विधि व्यवस्था है इसके लिए मनुष्य क्या कर सकता है !

वैसे भी उपग्रहों रडारों  से बादलों के देख लेने मात्र से यह निश्चित नहीं हो जाता है कि ये एक जगह बार्स रहे हैं तो दूसरी जगह बरसेंगे ही !जिस प्रकार से किसी नल से पानी निकलता देखकर ये नहीं कहा जा सकता है कि ये बादल जहाँ जाएँगे वहाँ बरसेंगे ही !अपितु देखना ये होता है कि उनके जलस्रोत कितने मजबूत हैं !