Saturday, 6 February 2021

कोरोना महामारी है या विज्ञान को चुनौती !

               कोरोना महामारी  के बिषय में कुछ सुलगते सवाल !

       भारतवर्ष में कोरोनामहमारी को प्रारंभ हुए एक वर्ष हो चुका है और अब धीरे धीरे समाप्त भी होती जा  रही है पिछले वर्ष 17 सितंबर 2020 को कोरोना संक्रमितों संख्या क्रमिक रूप से बढ़कर लगभग एक लाख के पास पहुँच गई थी !उसके बाद यह संख्या क्रमिक रूप घटते घटते अब लगभग दस हजार के  पहुँच गई है वो भी दिनों दिन कम होती जा रही है आशा है कि कुछ समय में यह बिल्कुल समाप्त भी हो जाएगी |
      देश में चुनी हुई  सरकार है जिसे देशवासी अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्सरूप  धन देते हैं उस धन को सरकार विकास कार्यों के लिए खर्च करती है उसके साथ ही उसीधन से कुछ धनराशि जनता के जीवन की कठिनाइयों को कम करने एवं जनता की आवश्यकताओं की आपूर्ति को आसान बनाने के लिए चिकित्सा मौसम आदि अनेकों प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों पर खर्च की जाती है | वैज्ञानिकों एवं वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए जुटाए जाने वाले संसाधनों पर हमेंशा प्रचुरधनराशि खर्च कर दी  जाती है | यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि जनता बड़ीमुसीबत से यह धनराशि अर्जित करती है जो टैक्स रूप में वैज्ञानिक अनुसंधानों आदि के लिए सरकारों को देती है | यह धन सरकारें जिन चिकित्सा मौसम आदि अनेकों प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों पर खर्च किया करती हैं उन अनुसंधानों का परीक्षण कभी कभी ही हो पाता है |उस समय ही इस बात का अंदाजा लग पाता है कि सरकारों के द्वारा अनुसंधानों पर खर्च किया जाने वाला धन कितना सार्थक एवं कितना निरर्थक व्यय किया जा रहा है | 

       मौसमसंबंधी घटनाएँ हमेंशा से घटित होती रही हैं सर्दी में हेमंत शिशिर ऋतुओं में सर्दी ,बसंत और ग्रीष्म ऋतु में गर्मी और वर्षाऋतु में वर्षा होती ही है सर्दी गर्मी वर्षा अपनी अपनी ऋतुओं में  होगी ही कभी कुछ कम होगी तो कभी कुछ अधिक होगी |एक जैसी तो कभी होती नहीं है हर जगह हरवर्ष एक जैसी वर्षा भी नहीं होती है और न ऐसा होना संभव ही है|इसलिए इतना तो जनता को भी पता होता है और इसकी तैयारी करके वो आगे से आगे चलती भी है फिर भी इनके बिषय में निश्चित पूर्वानुमान मिलता है तो जनता को उसका लाभ मिल जाता है |

     अलग अलग देशों प्रदेशों में अलग अलग वर्षों में अपनी अपनी ऋतुओं में ऋतुओं का अपना प्रभाव यदि बहुत कम या बहुत अधिक होता है या एक ऋतु अपना प्रभाव अपनी ऋतु के  साथ साथ दूसरी ऋतु में दिखाई पड़ता है जैसे सर्दी  या गर्मी के समय में वर्षा और बाढ़ जैसी घटनाएँ होती दिखें तो इसके लिए जनता तैयार नहीं  होती है इसलिए इससे जनता का अन्य सभी प्रकार का नुक्सान तो होता  ही है इसके साथ ही ऐसा  ऋतुविपरीत वातावरण बनने से रोगकारक हो जाता है इससे तरह तरह के रोग पैदा होते हैं |

      ओलेगिरने ,बज्रपात होने या  अत्यधिक बारिश एवं बाढ़ तथा हिंसक  आँधी तूफानों से जनता का अधिक नुक्सान होता है इसके लिए जनता को पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |ऐसे समय ही मौसम वैज्ञानिकों द्वारा किए जाने वाले मौसम संबंधी अनुसंधानों की परीक्षा होती है किंतु ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण यदि जलवायुपरिवर्तन को बताकर  अपनी जिम्मेदारी से यदि पल्ला झाड़ लिया जाएगा जैसा कि अभी तक किया जाता रहा है तो मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले मौसम संबंधी अनुसंधानों की आवश्यकता और उद्देश्य ही क्या रह जाएगा |जिन अनुसंधानों का जनता के हित में कोई लाभ ही नहीं होगा अनुसंधानों के नाम पर किए जाने वाले निरर्थक ऐसे दिखावे की आवश्यकता ही क्या रह जाएगी |ये सरकारों और वैज्ञानिकों को तय करना है कि उनके द्वारा किए करवाए जाने वाले अनुसंधान जनता की आवश्यकताओं पर कितने खरे  उतरते हैं |

    भूकंपों के बिषय में आज तक जो भी अनुसंधान किए गए हों जितने भी आँकड़े अंदाजे आदि लगाए गए हों उनसे भूकंपों के बिषय में ऐसी कोई जानकारी नहीं जुटाई जा सकी है जिससे भूकंपों के पूर्वानुमान से लेकर भूकंपों के कारण तक कुछ भी पता लगाए जा सके हों |

       इसी प्रकार से जून 2013 एवं फरवरी 2021 में ग्लेशियर संबंधी आपदा हो या  भूकंपों और बाढ़ आदि से संबंधित आपदा हो ,चक्रवात बज्रपात सुनामीं आदि जितनी भी प्रकृति में घटित होने वाली आकस्मिक घटनाएँ  हैं उनके बिषय में विज्ञान हमेंशा से मौन रहा है | जब जिस प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ अचानक घटित हो जाती हैं उसके कुछ समय बाद तक कुछ वैसी और घटनाएँ घटित होने की आशंकाएँ जताया करते हैं जब वैसा  नहीं होता है तब उस बिषय में रिसर्च करने की बात करते हैं कुछ समय और बीत जाने के बाद उसे जलवायु परिवर्तन के कारण घटित हुई घटना बता दिया करते हैं लोगों को यह पहले  से ही पता होता है कि इसके बाद अब क्या कहा जाएगा | 
        वैज्ञानिक अनुसंधानों को इतना कमजोर नहीं होना चाहिए कि उनके द्वारा खोजी गई जानकारी इतनी आसानी पूर्वक जनता की सामान्य शंकाओं  समाधान करने में सक्षम न हो | 
                                             उद्देश्यों से भटकते वैज्ञानिक अनुसंधान          
      कुलमिलाकर वैज्ञानिक अनुसंधानों का मतलब किसी बिषय में कुछ ऐसे सत्य खोज कर लाना होता है जो आम आदमी की कल्पनाओं से कुछ अलग हटकर बिलकुल नया एवं वैज्ञानिक तर्कों की कसौटी परकसा जा  सकता हो | 
      मौसम के बिषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर जो जो कल्पनाएँ की जाती हैं पूर्वानुमान के नाम पर जो भी अंदाजे लगाए जाते हैं वे तीर तुक्के यदि सही निकल जाते हैं तब तो उन्हें पूर्वानुमान मान लिया जाता है और यदि गलत निकल जाते हैं तो इसका कारण ग्लोबलवार्मिग या जलवायुपरिवर्तन जैसी चीजों को बता दिया जाता है | 
      अनुसंधानों के नाम पर वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिन जिन कारणों को जिम्मेदार बताया जाता है उनके बीत जाने के बाद तो वायु प्रदूषण कम हो जाना चाहिए किंतु ऐसा होते तो नहीं देखा जाता है | वायु प्रदूषण जब  बढ़ा रहता है तब तक दशहरा होली दीपावली पराली सर्दी गर्मी वाहन उद्योग निर्माण ईंटभट्ठा  हुक्का स्प्रै आदि न जाने कितने कल्पित कारण एक  दूसरा दूसरे बाद तीसरा चौथा पाँचवाँ आदि न जाने कितने कारण खोज खोज कर फिट कर दिए जाते हैं उन कारणों के विद्यमान रहते हुए भी जब वायुप्रदूषण कम या समाप्त हो जाता है तब उसके कुछ और दूसरे कारण गिना दिए जाते हैं | ये दोनों प्रकार के तर्क वैज्ञानिक कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं |
      डेंगू प्रायः हर वर्ष वर्षात में होता है और बिना किसी औषधि के निश्चित समय बाद समाप्त भी हो जाता है | उसके बिषय में अनुसंधान करके बताया गया कि मच्छरों के कारण यह फैलता है किंतु मच्छरों के कारण यदि फैलता होता तो जब डेंगू समाप्त होता है तब ऐसा तो नहीं माना जा सकता कि प्रतिवर्ष जब उस प्रकार के सब मच्छर समाप्त हो जाते हैं  तब डेंगू समाप्त होता है जबकि यदि डेंगू के प्रसार का कारण मच्छर होते तो ऐसा होना चाहिए था | 
      कोरोना से बचाव के लिए जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर सैनिटाइजर सोशल डिस्टेंसिंग लॉकडाउन मास्क आदि के प्रयोग को आवश्यक बताया गया उससे सरकार और समाज ने यह समझा कि जो लोग ऐसा नहीं  करेंगे उन्हें संक्रमण का  खतरा अधिक होगा किंतु प्रत्यक्षतौर पर ऐसा होते  देखा गया घनी बस्तियों में रहने वाले लोग हों या महानगरों  भारी संख्या में पलायन करने वाले मजदूर या भारी संख्या में आंदोलनरत किसान हों जबकि वैज्ञानिक तर्कों  आधार पर तो ऐसा होना चाहिए था | धनतेरस और दीपावली जैसी त्योहारी बाजारों में साप्ताहिक बाजारों में या सामान्य बाजारों में उमड़ी भारी भीड़ के कारण संक्रमण बढ़ा तो नहीं अपितु जैसे जैसे नियम टूटते गए कोरोना संक्रमण वैसे वैसे समाप्त होता चला गया |
      वैज्ञानिकों ने कहा कि गर्मी बढ़ने के साथ साथ कोरोना समाप्त होता जाएगा किंतु गर्मी में कोरोना संक्रमण और अधिक बढ़ गया और सर्दी में कोरोना संक्रमण के समाप्त होने की बात कही गई थी जबकि जैसे जैसे सर्दी बढ़ती गई वैसे वैसे कोरोना समाप्त होता चला गया | 
      कुल मिलाकर महामारी के  बिषय में वैज्ञानिकों  के द्वारा जो जो कुछ बताया गया वो प्रायः गलत निकला !अपनी सच्चाई प्रमाणित करने में अक्षम रहे वैज्ञानिक  अनुसंधान ! ऐसे कमजोर  अनुसंधानों के आधार पर महामारी के घटित होने का कारण एवं पूर्वानुमान पता लगाने की कल्पना कैसे की जा सकती है |
                    अधूरे एवं असत्य अनुसंधानों के कारण होने वाले नुक्सान !

      प्रायः सभी देशों प्रदेशों में सरकारें अपने वैज्ञानिकों द्वारा बताई जाने वाली अधिकाँश बातों को विज्ञान सम्मत मान कर उन पर न केवल स्वयं विश्वास करती हैं अपितु उन पर विश्वास करके उन्हें मानने के लिए जनता को भी बाध्य किया करती हैं | उस प्रकार के शक्त  शक्त  नियम कानून बना दिए जाते हैं जिन्हें न पालन करने पर उन पर भारी भरकम आर्थिक दंड लगाया जाता है | जिससे कम से कम नुक्सान हो इससे सरकारी तंत्र के आर्थिक पूजन की पृथा का प्रचलन बढ़ता है | ऐसे अधूरे अनुसंधानों के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है |

     वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर ऐसी धार विहीन अवैज्ञानिक सलाहों के कारण जनता जहाँ एक ओर वायु प्रदूषण महामारी या अन्य सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रही होती है वहीँ दूसरी ओर अनुशासन के नाम पर सरकारी उत्पीड़न का शिकार हो रही होती है | 

     वैज्ञानिक अनुसंधानों  के द्वारा वायुप्रदूषण बढ़ने का निश्चित कारण न पता होने पर भी वायु प्रदूषण बढ़ाने के कारण खोजने के नाम पर कुछ अवैज्ञानिक कल्पितकारण गढ़ लिए जाते हैं उन्हें ही सच मानकर उन्हें मानने के लिए जनता को बाध्य किया जाता है |जनता भी एक ओर तो वायु प्रदूषण से जूझ रही होती है तो दूसरी ओर उसी का चालान करके उससे पैसे वसूले जा रहे होते हैं | 

    परालीजलाना ,वाहनचलाना ,उद्योगधंधे चलाना ,ईंटभट्ठा चलाने जैसे कार्यों से बहुत बड़े वर्ग की आजीविका जुड़ी होती है उसे अचानक रोक पाना उन लोगों के लिए संभव नहीं होता क्योंकि कार्य संचालन के लिए निकलने वाला खर्च ,अपना खर्च एवं कर्मचारियों की सैलरी आदि सब कुछ उसी से निकालना होता है |वो अपनाखर्च किसी तरह रोक भी लें तो बाक़ी पैसों का इंतिजाम करना भी तो आसान नहीं होता है | इसलिए उन्हें ऐसा करने में कठिनाई होती है | 

        ऐसे कार्यों से संबंधित लोग तो अपनी मजबूरी कारण ऐसे कठोर सरकारी नियमों का पालन नहीं कर पा रहे होते हैं सरकारें अनुशासनभंग करने के लिए दोषी मानकर उन्हें आर्थिक आदि दृष्टि से दंडित किया करती हैं | 

   ऐसे अवैज्ञानिक सुझाव देने वाले वैज्ञानिकों ,उनकी सलाह मानकर ऐसे नियम बनाने वाले सरकारों में सम्मिलित लोगों एवं इनके पालन की जिम्मेदारी निभाने वाले अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी समेत सुख सुविधा के समस्त खर्चे उनके परिवारों का आर्थिक बोझ  जनता उठाती है | इसी लिए वे जनता का कामकाज रोककर कहीं खड़े हो  जाते हैं उन्हें लगता है कि जनता उनकी बात नहीं मानती है इसलिए वे जनता पर आर्थिक दंड लगाने लगते हैं जबकि उनकी बात  न मानना जनता की मजबूरी होती है जनता की इस अवस्था का अनुभव उन्हें इसलिए नहीं होता है क्योंकि उन्हें जनता की तरह उन समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता है | 

      जनता की आय निश्चित नहीं होती है उसे परिश्रम पूर्वक उसी काम से होने वाली अपनी कमाई से ऐसे सरकारी लोगों के जीवन का बोझ ढोना पड़ता है इसके साथ ही अपना एवं  अपनी घर गृहस्थी तथा कार्यक्षेत्र के आश्रितों का बोझ उठाना पड़ता है | अपनी इस जिम्मेदारी को ईमानदारी पूर्वक उठाने के लिए अचानक काम रोकना उनके लिए इतना आसान नहीं होता है सरकारी नियम निर्धारकों के द्वारा अपनी सैलरी सुख सुविधाओं आदि की तरह ही यदि ऐसे लोगोंकी सैलरी आदि भी सरकारी धन से देना निश्चय किया होता तो  उन्हें भी कोई दिक्कत नहीं होती !

      सरकारों ने वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ने का वास्तविक कारण खोजने की जिनको जिम्मेदारी सौंपी है इसी काम के लिए सरकारें उन्हें सैलरी आदि समस्त सुख सुविधाएँ देती हैं फिर भी वे वास्तविक कारण न खोज पाएँ इसके लिए उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है किंतु जो वे `

        डेंगू प्रारंभ होने का कारण उसके लक्षण उसकी औषधि आदि खोजने की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गई थी वे उस दिशा में भले कुछ भी न कर पाए हों किंतु उनके बताए हुए काल्पनिक कारणों को न माने तो जनता का चालान कर दिया जाता है |एक निश्चित समय के बाद कूलर गमले आदि में कहीं पानी मिले तो  चालान आखिर क्यों ?जब तक इस बात का निश्चय नहीं होता है कि डेंगू फैलने का वास्तविक कारण वास्तव में क्या है |

   इसीप्रकार से कोरोना महामारी के समय लॉकडाउन सोशल डिस्टेंसिंग मास्कधारण सैनिटाइजर आदि के प्रयोग से कोरोना संक्रमण को रोकने में कोई मदद मिलती है भी है या नहीं क्योंकि ऐसी चीजों का अनुपालन जहाँ या जिन्होंने नहीं किया उन्हें  खतरे से जूझना पड़ा हो ऐसे कोई विशेष उदाहरण नहीं मिलते हैं दूसरी ओर ऐसे नियमों का जिन्होंने कड़ाई से पालन किया था उनका कोई विशेष बचाव हो गया हो ऐसा भी व्यवहार में नहीं देखा गया है | इसके बाद भी सच्चाई प्रमाणित हुए बिना ही ऐसी काल्पनिक बातें निर्ममता पूर्वक जनता पर थोपने का उचित आधार क्या था |किस अनुसंधान या ट्रायल  आधार पर जनता के चालान काटे गए |    

        भारत में कोरोना समाप्त होने का वास्तविक कारण क्या था ?

 

 

 कोरोना महामारी को समझने में असफल रहे वैज्ञानिक ! केवल तीर तुक्के लगाए  जाते रहे !
  सरकारों के महामारी के विशेषज्ञों को यह तो समझ में आया ही नहीं कि कोरोना प्रारंभ कब क
हाँ कैसे हुआ इसका विस्तार क्षेत्र कितना है इसका प्रसार माध्यम क्या है मौसम का इस पर क्या असर पड़ता है ये हवा में है या नहीं बिना मास्क बिना सैनिटाइजेशन और बिना शोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने वाले मजदूरों आंदोलनरत किसानों पर कोरोना का प्रभाव क्यों नहीं पड़ा ?

           महामारी के विशेषज्ञों को महामारी के बिषय में और तो कुछ पता नहीं ही था उनके पास इस बात का भी कोई संतोष जनक तर्क संगत जवाब नहीं था कि भारत में सितंबर महीने से कोरोना अचानक घटा कैसे ?ये चमत्कार उन्हें समझ में नहीं आ रहा इसके बाद भी सरकारें  उन्हें महामारी का विशेषज्ञ वैज्ञानिक मानती हैं | 
   दूसरी ओर जिसने कोरोना को न केवल समझा उसे सरकारें वैज्ञानिक नहीं मानती हैं उसके अनुसंधान को महत्त्व नहीं देती हैं उसकी बात सुनने का अवसर नहीं देती हैं इसे भारतीय की मूलविज्ञान भावना का प्रोत्साहन कैसे कहा जा सकता है और ये कैसे माना जा सकता है कि सरकार महामारी से निपटने की दृष्टि से गंभीर है | 
        कोरोना महामारी के बिषय में पीएमओ को चार मेलें भेजी गईं पहली मेल 19 मार्च 2020को ,दूसरी मेल 16 जून 2020 को ,तीसरी मेल 7 सितंबर 2020 को और चौथी मेल 26 अक्तू॰ 2020,को भेजी गई थी | 
अपितु 19 मार्च 2020 पीएमओ को मेल भेजकर सरकार को कोरोना के बिषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ देने का  प्रयास किया जिसमें कोरोना महामारी  के बिषय में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि कोरोना महामारी हवा में विद्यमान है इसलिए सारी हवा जल बनस्पतियाँ आदि सभी उपयोगी चीजें संक्रमित हो चुकी हैं | इस महामारी  के लक्षण नहीं पहचाने जा सकेंगे इसकी कोई औषधि नहीं बनाई जा सकेगी !आहार बिहार सदाचार संयम ब्रह्मचर्य  अपनाने से प्रतिरोधक क्षमता तैयार करके इस महामारी से बचा जा सकता है| यह महामारी 6 मई से समाप्त हो जाएगी |
दूसरी मेल :16 जून 2020 को ,"इसके बाद यह महामारी 9 अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और  16 नवंबर के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"
तीसरी मेल :7 सितंबर 2020 को ,वैक्सीन के बिषय में -
      श्रीमान जी | वेदविज्ञान की दृष्टि से कोरोना संक्रमण बढ़ने का समय केवल 24 सितंबर तक ही है इसके बिषय में मैंने 16 जून 2020 को आपकी मेल पर एक पत्र लिखकर निवेदन किया था "9 अगस्त से कोरोना संक्रमण फिर से बढ़ने लगेगा जो 24 सितंबर तक क्रमशः बढ़ता चला जाएगा | 25 सितंबर से कोरोना संक्रमण कम होना प्रारंभ होगा और 13 नवंबर 2020 तक धीरे धीरे समाप्त होता चला जाएगा |" हमारे द्वारा किए गए इस पूर्वानुमान के अनुशार ही कोरोना संक्रमण 9 अगस्त से बढ़ना प्रारंभ हुआ है और 25 सितंबर से समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा | इसलिए 25 सितंबर से पहले यदि किसी औषधि या वैक्सीन आदि के प्रभाव का परीक्षण प्रमाणित हो चुका होता जिसके सेवन से किसी देश प्रदेश जिला आदि को कोरोना संक्रमण से मुक्ति दिलाने में सफलता मिल चुकी होती तब तो उसे कोरोना की औषधि या वैक्सीन के रूप में मान्यता देना न्यायसंगत होता किंतु अभी तक ऐसा कुछ हो नहीं पाया है | 25 सितंबर के बाद कोरोना के स्वतः समाप्त होने का समय प्रारंभ हो चुका होगा | उस समय के प्रभाव से कोरोना संक्रमण हमेंशा हमेंशा के लिए क्रमशः  स्वतः समाप्त होता  चला जाएगा |    ऐसी परिस्थिति में  25 सितंबर के बाद बनी किसी भी औषधि या वैक्सीन के प्रभाव का परीक्षण होना संभव न हो पाने के कारण उसे कोरोना की औषधि या वैक्सीन के रूप में मान्यता दिया जाना न्याय संगत नहीं होगा |
चौथी मेल :26 अक्तू॰ 2020,सर्दी में बढ़ेगा का खंडन करते हुए -'हमारे अनुसंधान के अनुशार 16 नवंबर 2020 में कोरोना महामारी बिना किसी दवा  या वैक्सीन आदि के ही संपूर्ण रूप से हमेंशा हमेंशा  के लिए समाप्त हो जाएगी | कोरोना के समाप्त होते ही  वैक्सीन बना लेने का दावा कर दिया जाएगा क्योंकि उसके बाद परीक्षण संभव ही नहीं होगा और यदि संभव हो भी तो उसका समाज हित में उपयोग आखिर क्या होगा क्योंकि कोरोना महामारी इसी रूप में अब कभी नहीं आएगी !'
    इस प्रकार से इन चारों मेलों के द्वारा कोरोना  बिषय में उन बहुत सारी बातों को आगे से आगे बताया गया है जो बाद में घटित होती रही हैं | वैज्ञानिकों के द्वारा यह बात बाद में कही गई है कि कोरोना स्वरूप बदल रहा है जबकि मेल में तो 19 मार्च को  दिया गया था कि महामारी के लक्षण पहचाने नहीं जा सकेंगे | कोई दवा नहीं बनाई सकेगी !जब  कोरोना  प्रभाव रहा तब तक कोई वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी | कोरोना महामारी हवा में विद्यमान है बाद  वैज्ञानिकों के द्वारा  स्वीकार किया गया कि संक्रमण हवा में है |प्रतिरोधक क्षमता बढाकर बचाव  के लिए जो 19 मार्च को कहा गया है वही सुझाव बाद में वैज्ञानिकों ने दिया है | यह महामारी 6 मई से समाप्त हो जाएगी | संपूर्ण विश्व में 6 मई के बाद कोरोना संक्रमण अत्यंत कम होता चला गया था | 
      16 जून वाली मेल में लिखा है -"यह महामारी 9 अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और  16 नवंबर के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा!"  ऐसा  ही होता देखा भी जा रहा है | बिना किसी औषधि के समाप्त हुआ है कोरोना !
 7 सितंबरवाली मेल में लिखा है -" 25 सितंबर के बाद कोरोना के स्वतः समाप्त होने का समय प्रारंभ हो चुका होगा | उस समय के प्रभाव से कोरोना संक्रमण हमेंशा हमेंशा के लिए क्रमशः  स्वतः समाप्त होता  चला जाएगा |    ऐसी परिस्थिति में  25 सितंबर के बाद बनी किसी भी औषधि या वैक्सीन के प्रभाव का परीक्षण होना संभव न हो पाने के कारण उसे कोरोना की औषधि या वैक्सीन के रूप में मान्यता दिया जाना न्याय संगत नहीं होगा | 
26 अक्तू॰ 2020,सर्दी में बढ़ेगा का खंडन करते हुए -"हमारे अनुसंधान के अनुशार 16 नवंबर 2020 में कोरोना महामारी बिना किसी दवा  या वैक्सीन आदि के ही संपूर्ण रूप से हमेंशा हमेंशा  के लिए समाप्त हो जाएगी | कोरोना के समाप्त होते ही  वैक्सीन बना लेने का दावा कर दिया जाएगा !" ऐसा ही हुआ है !
   ऐसी परिस्थिति में कोरोना को ठीक ठीक से समझने में जो प्रक्रिया सही घटित हुई है सरकारें उस विज्ञान को विज्ञान नहीं मानतीं और जिसे विज्ञान मानती हैं वो प्रक्रिया महामारी को समझने में सक्षम ही नहीं है |

 महामारी को ठीक तरह से समझे बिना महामारीसे मुक्ति दिलाने के लिए 

                                                                   कोई प्रभावी औषधि कैसे बनाई जा सकती है ?

  वे मेलें -

 वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती :भारत में सितंबर से महामारी अचानक घटी कैसे ?

        वैज्ञानिक इसका कारण समझपाने में अक्षम हैं जबकि हमारे द्वारा 16 जून को पीएमओ को भेजी गई मेल में लिखा गया है कि 25 सितंबर 2020 से कोरोना समाप्त होने लगेगा और 16 नवंबर2020  से कोरोना समाप्त हो जाएगा !जबकि वैज्ञानिकों को अभी तक इसी बात में संशय हो रहा है कि आखिर सितंबर से कोरोना संक्रमण घटने का कारण क्या है ?
         ऐसी परिस्थिति में ये प्रमाणित हो जाता है कि कोरोना महामारी के बिषय में वैज्ञानिकों को  कुछ भी  है जबकि मेरे द्वारा कोरोना संक्रमण के स्वभाव को सही सही समझा गया है |

       पिछले साल सितंबर तक भारत में कोरोना वायरस के रोजाना करीब एक लाख मामले सामने आ रहे थे. ये वो समय था जब भारत कोविड-19 की सबसे ज्यादा मार झेलने वाले अमेरिका से आगे निकलने की राह पर था. मरीजों से अस्पताल भरे पड़े थे जनवरी 2021 में 10 हजार मरीज आ रहे हैं इतनी संख्या अचानक घटने का कारण क्या है ?

 वैज्ञानिकों द्वारा इस  बिषय में लगाए जाने वाले तीर तुक्के -https://www.aajtak.in/lifestyle/news/photo/covid-19-how-corona-virus-daily-cases-declined-in-india-scientists-say-its-a-mystery-tlif-1204595-2021-02-08-1

 

 महामारी को समझपाने में क्या सफल हो पाया है विज्ञान !

       चिकित्सा  करने से पूर्व उस  रोग को समझने के लिए पहले रोगी की जाँच की जाती है जाँच रिपोर्ट को अच्छी प्रकार से समझकर ही रोगी की चिकित्सा प्रारंभ की जाती है| जाँच के लिए जब मशीनें नहीं थीं तब भी वैद्य लोग नाड़ी देखकर अथवा लक्षणों के आधार पर रोग निदान किया करते थे | उसके आधार पर औषधियों का निर्माण करके किसी रोगी को रोग मुक्ति दिलाना संभव हो पाता था | ऐसा किसी भी सामान्य रोग में किया जाता था | 

      महामारी जैसे महारोग चूँकि सामूहिक रूप से बहुत बड़े वर्ग को प्रभावित करते हैं इसलिए ऐसे सामूहिक रोगों के परीक्षण के लिए प्रकृति परिवर्तनों के आधार पर प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान रोगाणुओं की पहचान की  जाती थी | उसके आधार पर किसी महारोग के स्वभाव ,लक्षण,संक्रमकता, विस्तार ,प्रसारमाध्यम एवं उस पर पड़ने वाले मौसम आदि के प्रभाव का अनुसंधान करके उस महारोग के बिषय में जो अनुमान लगाए जाते थे वे जितने प्रतिशत सच निकलते थे उतने प्रतिशत उस महारोग के परीक्षण को सही मान लिया जाता था | यद्यपि इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लग जाता था | पहले महामारी फैलती थी फिर उसके लक्षणों आदि के बिषय में अनुमान लगाया जाता था फिर उन अनुमानों का विद्यमान परिस्थितियों के साथ मिलान किया जाता था जैसे जैसे और परिस्थितियों में एकरूपता बनती जाती थी वैसे वैसे महामारी के परीक्षण को सफल मानकर उस महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए औषधियों का निर्माण प्रारंभ किया जाता था | इस प्रक्रिया का पालन करने बहुत लंबा समय लग जाया  करता था तब महामारी का संक्रमण काफी अधिक बढ़ जाता था | 

      इससे बचने के लिए उस युग में महामारियों (महारोगों)का पूर्वानुमान लगाने की परंपरा थी जिसके आधार पर भविष्य में होने वाली महामारियों का एवं उनके स्वभाव ,लक्षण,संक्रमकता, विस्तार ,प्रसारमाध्यम तथा उस पर पड़ने वाले मौसम आदि के प्रभाव का पूर्वानुमान महामारी प्रारंभ होने के बहुत पहले लगा लिया जाता था |यहाँ तक कि उससे मुक्ति दिलाने  के लिए औषधियों का भी निर्माण भी महामारी प्रारंभ होने के बहुत पहले कर लिया जाता था |जिससे महामारी को प्रारंभ  नियंत्रित कर लिया जाता था |इससे महामारियों के प्रकोप से जनधन की अधिक हानि होने  बचाव हो जाया करता था | 

      इस पद्धति से ही मैं जो जो पूर्वानुमान कोरोना महामारी के बिषय में लगाकर  प्रधान मंत्री जी की मेल पर भेजता रहा हूँ वे सब सही निकलते रहे हैं | प्रमाण रूप में वे मेलें अभी भी विद्यमान हैं जिनकी कॉपी  इसी पुस्तक में आगे प्रकाशित की जा रही है | उन पूर्वानुमानों पर कितना ध्यान दिया गया मुझे नहीं पता किंतु ध्यान देने से कुछ मदद अवश्य मिल सकती थी ऐसा विश्वास पूर्वक कहा जा  सकता है | 

      वर्तमान समय में कोरोना महामारी के  स्वभाव ,लक्षण,संक्रमकता, विस्तार ,प्रसारमाध्यम एवं उस पर पड़ने वाले मौसम आदि के प्रभाव के बिषय में वैज्ञानिक विशेषज्ञों के द्वारा पूर्वानुमान तो नहीं ही लगाए जा सके अपितु जितने प्रकार के अनुमान भी लगाए गए वे या तो गलत होते चले गए या फिर वैज्ञानिक विशेषज्ञों के अनुमान परस्पर विरोधाभासी निकले जिससे उनकी विश्वसनीय सच्चाई सामने नहीं आ सकी |कुछ तो अवैज्ञानिक तीरतुक्के मात्र थे जैसा होते देखा गया वैसी ही आगे के लिए कल्पना कर ली गई | 

      कुलमिलाकर महामारी के  बिषय में जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर जो अनुमान किए गए वे ही गलत निकल जाने का मतलब था कि किए गए अनुसंधानों से महामारी को समझा नहीं जा सका ऐसी परिस्थिति में महामारी को समझे बिना महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए कोई भी औषधि या वैक्सीन आदि कैसे बनाई जा सकती है | सामान्य पेट दर्द सर्दी जुकाम बुखार में तो रोग की प्रकृति का सही सही परीक्षण किए बिना औषधि नहीं बनाई जाती है और न ही चिकित्सा प्रारंभ की जाती है तो इतनी बड़ी कोरोना जैसी महामारी को ठीक ठीक समझे बिना उसकी वैक्सीन कैसे बनाई जा सकती है फिर भी जब मैंने सुना कि महामारी को ठीक तरह से समझे बिना वैक्सीन बना ली गई है तो मुझे आश्चर्य अवश्य हुआ | 

                                                    महामारी पर मौसम का प्रभाव ! 

     महामारी पर मौसम का प्रभाव कितना पड़ता है या नहीं पड़ता है इस पर विभिन्न वैज्ञानिकों के बिचारों में मतभेद रहने पर भी अधिकाँश विशेषज्ञ वैज्ञानिकों की यह मान्यता रही है कि कोरोना पर मौसमी गतिविधियों का प्रभाव पड़ता है | इसीलिए तो किसी वैज्ञानिक ने कहा कि ग्रीष्म (गर्मी)ऋतु आने पर तापमान बढ़ने से कोरोना संक्रमण समाप्त हो जाएगा | कुछ वैज्ञानिकों ने कहा कि वर्षा ऋतु आने पर तापमान बढ़ने से कोरोना संक्रमण कम हो जाएगा कुछ ने कहा वर्षाऋतु के प्रभाव से कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा !कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि हेमंत और शिशिर(सर्दी) ऋतु में कोरोना संक्रमण बहुत अधिक बढ़ जाएगा | कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि वायु प्रदूषण बढ़ने का प्रभाव भी कोरोना संक्रमण को बढ़ाता है | 

     ऐसे ही मौसम के बिषय में और भी बहुत सारे मत प्रस्तुत किए गए जिनसे कोरोना संक्रमण बढ़ने की आशंका व्यक्त की गई थी !ऐसी परिस्थिति में कोरोना संक्रमण को ठीक तरह समझने के लिए मौसम को ठीक ठीक प्रकार से समझना होगा  और उसके बाद मौसम संबंधी विद्वान् वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए चिकित्सा वैज्ञानिकों एवं मौसमवैज्ञानिकों का संयुक्त अनुसंधान किया जाना चाहिए था |

   ऐसी परिस्थिति में मौसम को समझने का ही यदि कोई विश्वसनीय विज्ञान नहीं खोजा जा सका है तो यदि यदि महामारी होने या महामारी से संबंधित संक्रमण बढ़ने का कारण मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाएँ हों भी तो उसका पता लगाया कैसे जाएगा और जब तक मौसम में होने वाले परिवर्तनों की प्रकृति को सही सही नहीं समझा जा सकेगा तब तक महामारी पर पड़ने वाले मौसमसंबंधी प्रभाव का अध्ययन करना कैसे संभव हो सकता है |

      1864 में कलकत्ता में एक विनाशकारी उष्णकटिबंधीय चक्रवात आया और इसके बाद 1866 और 1871 में मानसून की बारिश नहीं हुई। वर्ष 1875 मेंभारत सरकार ने भारत मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की थी । भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए 144 वर्ष बीत गए किंतु आज तक वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा उस लक्ष्य की ओर बढ़ने से संबंधित कुछ भी तो नहीं किया जा सका मौसमविज्ञान के नाम से प्रसिद्ध वर्तमान जुगाड़ू तीर तुक्कों  को मौसम का विज्ञान कहना विज्ञान भावना का अपमान है |क्योंकि इनसे प्रकृति के स्वभाव को समझने की कल्पना ही नहीं की जा सकती है|

      किसी गाँव के एक तरफ जंगल था जंगल से निकल कर हाथी उस गाँव में घुस कर खूब उत्पात मचाया करते थे जब तक गाँव वाले एकत्रित होकर उन हाथियों को भगा पाते तब तक गाँववालों का काफी नुक्सान हो चुका होता था !परेशान  होकर गाँव वालों ने गाँव के बाहर कैमरे लगवा लिए !अब तो जंगल से गाँव की ओर आने वाले हाथी दूर से ही हाथी दिख जाया करते थे गाँव वाले लाठी डंडे लेकर उन्हें बाहर के बाहर ही खदेड़ आया करते थे | इससे हाथियों के द्वारा गाँव वालों का होने वाला नुक्सान तो बच जाता था किंतु इस जुगाड़ को हाथीविज्ञान मान लेना ठीक नहीं है क्योंकि इस जुगाड़ से  हाथियों के स्वभाव को समझना संभव नहीं है | 

      इसी प्रकार से वर्तमान मौसमी जुगाड़ से उपग्रहों रडारों के द्वारा चक्रवातों की जासूसी कर के उनसे होने वाला संभावित नुक्सान बचा लिया जाता है जुगाड़ से जनधन की सुरक्षा भी कई बार हो जाती है इसके बाद भी इसे चक्रवातों का विज्ञान इसलिए नहीं माना जा सकता है क्योंकि इन दिनों में चक्रवात उठ सकता है ऐसा पूर्वानुमान पहले से लगा पाना संभव न होने के कारण ऐसे तीर  तुक्कों को वैज्ञानिक अनुसंधानों की श्रेणी में सम्मिलित करना ठीक नहीं होगा | 

       कुलमिलाकर प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले मौसमसंबंधी वास्तविक वैज्ञानिकों को इस दायित्व को संभालना होगा क्योंकि वर्तमान समय में मौसमविज्ञान की जगह मौसमी घटनाओं की जासूसी लेती जा रही है जिसके द्वारा कोरोना महामारी के स्वभाव को ठीक ठीक से समझपाना संभव नहीं होगा |मौसमी घटनाओं की जासूसी से हमारा अभिप्राय आँधी तूफ़ान या बादल वर्षा या वायु प्रदूषण से संबंधित घटनाओं को किसी एक स्थान पर घटित होते रडारों उपग्रहों आदि की मदद से देखकर उनकी गति और दिशा के आधार पर तीर तुक्का लगा लेना मौसम विज्ञान नहीं हो सकता अपितु मौसम विज्ञान का मतलब है जो घटनाएँ जब किसी भी स्थान पर किसी भी रूप में प्रत्यक्षतौर पर दिखाई ही न पड़ रही हों वैसी घटनाओं के के बिषय में भी जिस विज्ञान के द्वारा पूर्वानुमान लगा लिया जाए वह वास्तविक मौसम विज्ञान है | उसके आधार पर प्रकृति को समझना संभव हो पाता है | 

                महामारी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव !

       कोरोना वायरस की उत्पत्ति और प्रकोप में जलवायु परिवर्तन की भूमिका बताई जा रही है वैज्ञानिकों के एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन और वायरसों की उत्पत्ति के बीच संबंध हो सकता है। कोरोना प्रकोप के साथ ही 2002-03 में सार्स महामारी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हो सकता है।

   ऐसी परिस्थिति में जलवायु परिवर्तन और वायरसों की उत्पत्ति के बीच संबंध को ठीक ठीक समझे बिना जलवायु परिवर्तन से महामारी  संबंधित अध्ययनों अनुसंधानों को कैसे सफल बनाया जा  सकता है |      
  जलवायुपरिवर्तन जैसी कल्पनाएँ यदि सही हों भी तो महामारी के बिषय में अनुसंधान करने से पहले जलवायुपरिवर्तन के बिषय  अनुसंधान करना आवश्यक है फिर तो उसके बिना कोरोना महामारी के  बिषय में कोई भी अनुसंधान किया जाना कैसे संभव है | 

       जलवायु परिवर्तन मनुष्यकृत है या प्राकृतिक है सबसे पहले इसी की खोज करनी होगी |यदि मनुष्यकृत है तो मनुष्य ऐसा क्या क्या करना छोड़ दे जिससे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम हो सकता है |दूसरी बात जलवायु परिवर्तन होने से ऐसा क्या क्या हो रहा है जो जो जलवायु परिवर्तन होने से रुक जाएगा और मनुष्य जीवन खुशहाल हो  जाएगा !प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने से मुक्ति मिलेगी | ऐसी सभी बातों का पता लगाया जाना चाहिए जो प्रमाणित रूप से घटित होते भी दिखाई दें |  

      जलवायु परिवर्तन का वास्तविक स्वरूप अभी तक प्रस्तुत नहीं किया जा सका  है और न ही यह बताया जा सका है कि जलवायु परिवर्तन से होता क्या क्या है | अभी तक तो वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए किसी पूर्वानुमान के गलत हो जाने पर या किसी आवश्यक बिषय का पूर्वानुमान न लगा पाने पर उसे अप्रत्याशित बता कर उसका कारण बताने के लिए जलवायु परिवर्तन नामक शब्द की कल्पना की गई है | उसी के उदाहरण भी मिलते हैं |  उसी के आधार पर कुछ पूर्वानुमान भी बता दिए जाते हैं

पूर्वोत्तर भारत सन 2018 के अप्रैल मई में बार बार आए हिंसक आँधी तूफानों में से किसी के बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका और जो लगाए भी गए वे सारे के सारे गलत निकलते चले गए !यहाँ तक कि 7और 8 मई को दिल्ली के आस पास भीषण हिंसक आँधी तूफ़ान आने की चेतावनी दी गई थी भयभीत सरकारों ने स्कूल कॉलेजों में छुट्टी कर दी और तूफ़ान आने का इंतजार किया जाने लगा किंतु हवा का एक झोंका भी नहीं आया | मौसम विभाग के तत्कालीन निदेशक श्री के जे रमेश जी ने एक टीबी चैनल से अपने साक्षात्कार में कहा कि ग्लोबलवार्मिंग के कारण तूफ़ान अचानक आ जाते हैं पता ही नहीं चल पाता है |उनके इसी बयान के आधार पर मीडिया में हेडिंग छपी -"चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"

      मौसमपूर्वानुमान लगाने की जिम्मेदारी सँभाल रहे सरकारी मौसम विशेषज्ञों के द्वारा जब जैसा मौसम चल रहा होता है तब तैसी भविष्यवाणियाँ कर  दी जाती हैं सर्दी हो रही होती है तो सर्दी और अधिक होने की गर्मी हो रही होती है तो गर्मी और अधिक होने की बादल या वर्षा हो रही होती है तो वर्षा और अधिक होने की भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं यदि वे सच हो जाती हैं तो भविष्यवाणी और गलत हो जाती हैं तो जलवायुपरिवर्तन! जलवायु परिवर्तन जैसे शब्दों का सृजन ही इसीलिए हुआ है भविष्यवाणियाँ गलत हो जाने पर ये मुख छिपाने के काम बहुत अच्छे आते हैं | इसके अतिरिक्त प्राकृतिक क्षेत्रों में ऐसे काल्पनिक शब्दों की कोई भूमिका ही नहीं है|  

     3 अगस्त 2018 को मौसमविभाग ने दक्षिण भारत के बिषय में दीर्घावधि मौसमविज्ञान की दृष्टि से भविष्यवाणी करते हुए अपनी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से प्रकाशित किया था कि अगस्त सितंबर में सामान्य वर्षा होगी !जबकि उसी 6 अगस्त 2018 से उसी दक्षिण भारत में भीषण वर्षा होनी प्रारंभ हुई 15 अगस्त तक भीषण वर्षा और बाढ़ से 111 वर्षों का रिकार्ड टूटा !केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्षा होने के बिषय में कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था |इस पर मौसम विभाग के तत्कालीन निदेशक श्री के जे रमेश जी ने एक टीबी चैनल से अपने साक्षात्कार में कहा कि जलवायुपरिवर्तन  के कारण अप्रत्याशित वर्षा हुई जिसका पूर्वानुमान नहीं लग पाया | 

     सितंबर 2019 में बिहार में हुई भीषण वर्षा के बिषय में भी कोई विश्वसनीय पूर्वानुमान नहीं दिया जा सका !एक दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने किसी पत्रकार के पूछने पर कहा कि मौसम पूर्वानुमान के नाम पर सुबह कुछ बताया जाता है दोपहर में कुछ दूसरा बताया जाता है और शाम को कुछ और बताया जाता है इसलिए मैं तो यही कहूँगा कि जबतक हस्त नक्षत्र रहेगा तब तक वर्षा होगी | 

          अक्टूबर2014  PM मोदी जी को बनारस में ट्रॉमा सेंटर का उद्घाटन करना था हुदहुद साइक्लोन के कारण उसे कैंसिल  किया गया | इसके बाद 28 जून 2015 में प्रधानमंत्री मोदी जी की बनारस में सभा भी होनी थी और ट्रॉमा सेंटर का उद्घाटन भी करना था किंतु भीषण वर्षा के कारण वो सभा उसी दिन कैंसिल करनी पड़ी | वही सभा 16 जुलाई 2015 में रखी गई में उसदिन भी भीषण वर्षा होने के कारण सभा को कैंसिल करना पड़ा !प्रधानमंत्रीजी के कार्यक्रम के आयोजन में भारी भरकम धनराशि खर्च  होती हैमौसम पूर्वानुमान की सेवाएँ यदि उन्हीं के काम नहीं आएँगी तो आम जनता क्या अपेक्षा कर सकती है |

      2016 में आधे भारत में भीषण गर्मी एवं बहुत अधिक आग लगने की घटनाएँ घटित हुईं जिससे बचाव के लिए बिहार सरकार को जनता से अपील करनी पड़ी कि आप हवन न करें एवं दिन में चूल्हा न जलाएँ | इसी वर्ष पहली बार लातूर में ट्रेन से पानी भेजना पड़ा था ! आखिर ऐसा इसी वर्ष क्यों हुआ इसका कारण पता लगाकर इसका पूर्वानुमान बताया जाना चाहिए था किंतु इसका कारण भी ग्लोबल वार्मिंग ही बता दिया गया था | 


       

वर्षा वर्षा के बिषय में भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं

                    महामारी से बचाव के लिए किए गए उपाय कितने प्रभावशाली ?

के गलत निकलते जाने कारण उनके आधार पर  औषधि  वैक्सीन आदि का निर्माण संभव नहीं था जब बनी तब मुझे।  

      

को ठीक ठीक समझे बिना भी क्या उस महारोग से मुक्ति दिलाने के लिए औषधि या वैक्सीन आदि बनाई जा सकती है ?

 

 

रोग लक्षणों का अनुमान लगाया जाता था

     

     सभी रोगों को समझने के लिए 

    पहले रोग परीक्षण और बाद में चिकित्सा का विधान है !इसीलिए तो रोगी की जाँच रिपोर्ट  आने के बाद ही चिकित्सा प्रारंभ की जाती है |रोग को ठीक ठीक समझ करके ही चिकित्सा प्रारंभ की जाती है सामान्य रोगों में भी ऐसा होते ही देखा  

 चिकित्सा  करने से पूर्व किसी रोगी की जाँच की

आदि को समझे बिना समझे बिना उसकी औषधि या वैक्सीन आदि किस आधार पर बनाई जा सकती है ?


 महामारी ने वैज्ञानिक अनुसंधानों की असफलताओं को उजागर किया है | 

 महामारी ने असफल अनुसंधानों को सच मानने वाली सरकारों को सोचने के लिए विवश किया है !

 महामारी ने प्राकृतिक विषयों का अनुसंधान करने में सक्षम वास्तविकविज्ञान पर मोहर लगाई है | 
  महामारी ने अनुसंधान प्रक्रिया के मजबूत विकल्प को प्रस्तुत किया है | सरकारें चाहें तो सच को स्वीकार करें अथवा ढोती रहें घिसे पिटे अपने उसी काल्पनिक आधारविहीन परिणामविहीन तर्कशून्य काल्पनिकविज्ञान को !
 
 
               भूमिका 
  महामारी मौसम और वैज्ञानिक अनुसंधान
     जिस प्रकार से वायु प्रदूषण वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि बिषयों में अनुसंधान हमेंशा चला करते हैं मौसम  वैज्ञानिक अनुसंधान तो हमेंशा ही चला करते हैं उन अनुसंधानों के बदले में क्या कुछ प्राप्त होता है ये नहीं पता लगता है क्योंकि मूल्याङ्कन की जिम्मेदारी उन्हीं की है जो अनुसंधान करते है | 
      जिसे परीक्षा देनी होती है उसे ही यदि प्रश्नपत्र बनाने की जिम्मेदारी दे दी जाए वही परीक्षा देने बैठे और वही कॉपी जाँचे और वही नंबर देकर वही परीक्षा परिणाम घोषित करे तो ऐसा रिजल्ट कितना विश्वसनीय हो सकता है ये कल्पना की बात है | 
 
यदि देता है वही यदि कॉपी
 
उनसे के बदले 
     
1720,1820,1920,2020 के आस पास लगभग सौ वर्षों में प्रत्येक बार महामारी आई तो उस चिकित्सकीय प्रयासों से कोवहीँ ई विशेष मदद नहीं मिल सकी चिकित्सकीय अनुसंधान महामारी के स्वभाव को समझने में या उसके बढ़ते प्रभाव को रोकने में 1720 में जहाँ खड़े थे 2020 के कोरोनाकाल में वहीँ पर खड़े मिले | पहले की महामारियों के बिषय में कुछ भी पता नहीं था और इस महामारी के बिषय में भी कुछ पता नहीं था | न तब महामारी को रोकने के लिए कोई दवा बनाई जा सकी थी और न ही अब !न तब महामारी के विस्तार का पता लगाया जा सका था और न ही अब !न तब महामारी के प्रसार माध्यम का अनुमान लगाया जा सका था और न ही अब !महामारी पर मौसम का क्या असर होता है न तब पता था और न ही अब पता है |