Wednesday, 26 November 2014

श्रीमान मोदी जी ! आपके अच्छे दिन तो आ गए किन्तु कब और कैसे आएँगे जनता के अच्छे दिन ?

   मोदी जी! सरकार  की योजनाएँ सरकारी कर्मचारियों के आधीन हैं किंतु उन्हें काम करने की अब  आदत नहीं रही है इसलिए यदि कर्मचारी ही लापरवाह हों तो आखिर इन योजनाओं के लिए काम कौन करेगा और कैसे आएँगे अच्छे दिन ?  
  श्रीमान मोदी जी !जैसा कि सबको पता है कि सरकारी कर्मचारियों का बेतन तो सरकार देती है जबकि उन्हें  काम आम जनता का करना होता है किंतु आम लोग तो उन्हें सैलरी देते नहीं है फिर ऐसे कर्मचारी उनकी बात क्यों सुनें ? जनता भी अपना काम उनसे  किस हक़ या हनक से करवावे ! वो लोग काम करें या न करें पूर्ण रूप से स्वतंत्र होते हैं अब उनसे जिनको काम लेना है वे या तो उनसे हाथ पैर जोड़ कर अपना जरूरी काम करवावें या फिर घूस देकर ! 
    इसके अलावा चूँकि सरकार उनको सैलरी देती है इसलिए सरकार में सम्मिलित लोगों की और अपने से बड़े अफसरों की बात सुनना तो उन बेचारे कर्मचारियों की मजबूरी है क्योंकि वो अफसर उन पर कार्यवाही कर सकते हैं इसलिए उन अफसरों की आव भगत तो वो लोग किया करते हैं किन्तु आम जनता के हाथ में काम कराने के लिए घूस देने के अलावा ऐसे कोई अधिकार नहीं होते इसलिए सरकारी कर्मचारी उनकी बात  सुनते ही नहीं हैं ।
    मित्रो !हर विभाग में सरकार तो जा नहीं सकती, रही बात अफसरों की तो सरकारी तो वो भी हैं इसलिए  वातानुकूलित कमरों से निकलकर बाहर वो  क्यों जाएँ आखिर उनका क्या लाभ है !
   इसीलिए जो काम जितना अच्छा आठ दस हजार रूपए सैलरी देकर एक आम आदमी अपने कर्मचारियों से करवा लेता है वो काम पचास हजार से लेकर एक लाख का बेतन देकर भी सरकार नहीं करवा पाती है आखिर क्यों ? या यूँ कह लिया जाए कि कई विभागों में जिस काम को करने की सैलरी तो सरकारी कर्मचारी लेते हैं किन्तु उन्हीं विभागों का वही काम करते प्राइवेट कर्मचारी हैं !
     सरकार एवं सरकारी कर्मचारी एवं सरकारी स्कूलों के लोग अपने बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं आखिर क्यों ?इसका सीधा सा अर्थ है कि उन्हें सरकारी स्कूलों के काम काज पर भरोसा नहीं होता है और सरकारी कर्मचारी अपनी इस अकर्मण्यता को आभूषण मानते हैं !अन्यथा उन्होंने अब तक कुछ तो सुधार किया होता !
इसी प्रकार से सरकारी चिकित्सा पद्धति पर लोग भरोसा नहीं करते हैं चिकित्सा के लिए प्राइवेट नरसिंग होम में जाते हैं ! सरकारी फोनों पर भरोसा नहीं करते हैं प्राइवेट कंपनी के फोन रखते हैं यही डाक का हाल है पोस्ट आफिस की अपेक्षा कोरियर पर विश्वास अधिक करते हैं । 
     इसप्रकार से  सरकारी काम काज की पद्धति से तंग आकर शिक्षा ,चिकित्सा ,डाक,फोन आदि कई और भी विभागों से जुड़े काम इन्हीं विभागों से सम्बंधित प्राइवेट लोगों या कंपनियों से जनता करवा रही है इस प्रकार से अपनी सेवाओं के द्वारा आम लोगों का विश्वास सरकारी कर्मचारी न जीत पा रहे हैं और न जीतने का प्रयास ही कर रहे हैं और  यदि सरकारी काम काज का यही हाल है तो प्राइवेट विकल्प से विहीन पुलिस जैसे विभागों से असंतुष्ट जनता अपनी पीड़ा किससे कहे ? आज पुलिस से निराश लोग अपराधियों के संरक्षण में जीवन यापन करने पर मजबूर हो रहे हैं वो अपराधी या दबंग वर्ग उन्हें अभय दान दे रहा है और उनसे मासिक या साप्ताहिक वसूली कर रहा है । सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों की ऐसी ही लापरवाही से दबंग वर्ग कालांतर में अलगाववादी उग्रवादी नक्सली आदि तो नहीं बन जाता है !अन्यथा उनके पास इतना धन कहाँ से आता है और क्यों मिलता जाता है भारी भरकम जन समर्थन ?

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