Monday, 11 October 2021

मौसम और महामारी

    इसी प्रकार से ऐसे मौसमविभागकी स्थापना हुए 144 वर्ष हो गए उस समय पश्चिम बंगाल में एक बड़ा हिंसक तूफ़ान आया था और अभी सन 2018 में पूर्वोत्तर भारत में जितने भी बड़े हिंसक तूफ़ान आए न तब पूर्वानुमान लगाया जा सका और न अब !उससे जनता तब भी अकेले जूझी होगी आज भी जनता ही जूझ रही है उसे ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से कोई मदद नहीं मिली जो पिछले एक सौ चवालीस वर्षों से चलाए जाते रहे हैं |मौसम से संबंधित संबंधित पूर्वानुमानों के अनुसंधान कितने कारगर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है |ये हमारे मौसम संबंधी वैज्ञानिक  अनुसंधानों की 144 वर्षों की उपलब्धि है |

      भारत सरकार की और से अब स्वास्थ्य  सुरक्षा प्रणाली के तहत महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाए जाने पर बिचार किया जा रहा है इसमें IMDको भी सम्मिलित किया जा रहा है किन्तु जब उसकी अपनी हालत इतनी पतली है तब वह स्वास्थ्य  सुरक्षा प्रणाली को सफल बनाने में कैसे मददगार सिद्ध होगा ! 
इन्हीं बिषयों में काफी पहले मेरे द्वारा की हुई भविष्यवाणियाँ सही होती जा रही थीं उसके प्रमाण आज भी इंटरनेट पर विद्यमान हैं इसी बिषय में चर्चा करने के लिए मैं मौसम विज्ञान विभाग में गया था वहाँ एक मौसम वैज्ञानिक महोदय से मिलाया गया वहाँ उनके पास एक पत्रकार महोदय बैठे इन्हीं बिषयों पर चर्चा कर रहे थे उसी क्रम में पत्रकार महोदय ने उन वैज्ञानिक महोदय से निजी चर्चा में पूछा कि यह कैसे पता लगे कि मौसम संबंधी कौन सी घटना जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित हो रही है और कौन सी घटना अपने आप से घटित हो रही है  जिसके बिषय में पूर्वानुमान के सही होने की आशा की जाए !इस पर हँसते हुए उन्होंने कहा कि सीधी सी बात है हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही निकले उसे मौसम संबंधी सामान्य घटना मान लीजिए और हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही न निकले उसे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटना मान लेना चाहिए | दोनों लोग हँसने लगे चर्चा समाप्त हुई और मैं भी चला आया ! 

     प्राकृतिक क्षेत्र में अक्सर यह अनुभव किया गया है कि केवल कोरोना जैसी भयंकर महामारी ही नहीं अपितु भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफान च्रकवात ,बज्रपात या फिर बढ़ता वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं ने जब जब विकराल  स्वरूप धारण किया है तब तब भयभीत जनता बड़ी आशा से मदद पाने की इच्छा लेकर अपने वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं की ओर देखती है किंतु दुर्भाग्य से महामारी प्राकृतिक आपदाओं जैसे कठिन समय में जब जीवन के लिए विज्ञान की जब सबसे अधिक आवश्यकता होती है  तब वही अनुसंधान धोखा दे जाते हैं |

     ऐसे कठिन बिषयों का वैज्ञानिक अनुसंधान करने में सरकारों के द्वारा लगाए गए लोगों से जब उनकी असफलता का कारण पूछा जाता है तो वो इधर उधर की बातें करने लगते हैं या कुछ ऐसे ऊटपटाँग आंकड़े पेश करके मीडिया को भटका देते हैं जिनका सच्चाई से कोई लेना देना ही नहीं होता है मीडिया उन कल्पित बातों को विज्ञान बता बता कर जनता को भ्रमित किया करता है | 
     इसी शोर शराबे के बीच वैज्ञानिक एक बार धीरे से कह देते हैं कि मैंने तो सरकार को पहले ही बताया था किंतु सरकार ने सुना ही नहीं ! ऐसी बातें सुनते ही विपक्ष की बाछें खिल जाती हैं यहीं से राजनीति शुरू हो जाती है विपक्ष ऐसी वैज्ञानिक विफलताओं के लिए सरकारों को कटघरे में खड़ा करने लगता है सरकारें सफाई देने लगती हैं लोग मुख्य मुद्दे से भटक जाया करते  हैं सत्तापक्ष और विपक्ष के वाद विवाद में मीडिया उलझ जाया करता है आम जनता मीडिया के मुद्दों में रूचि लेने लगती है | उधर महामारी या प्राकृतिक आपदा से जूझ रही जनता बिल्कुल अकेली पड़ चुकी होती है उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता है | 
    विगत एक दो दशकों में जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुईं उनमें से एक आध को छोड़कर अधिकाँश के बिषय में किसी भी प्रकार का कोई पूर्वानुमान वैज्ञानिकों के द्वारा नहीं बताया जा सका था और बाद में कह दिया जाता है कि मैंने तो पहले ही बता दिया था सरकार ने सुना ही नहीं | केदारनाथ ,चेन्नई ,केरल और कश्मीर आदि की बाढ़ में यही हुआ बाद में अपनी आलोचना से आहत होकर उन उन प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने मुख खोलने की हिम्मत की और सच्चाई जनता के सामने सच्चाई रखी कि इस घटना के बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान हमें पहले से नहीं बताया गया था | 
    कोरोना जैसी महामारी के बिषय में कोई पूर्वानुमान पहले से तो बताया ही नहीं जा सका और जब जब जो जो कुछ बताया जाता रहा वो सब कुछ गलत निकल जाता रहा उसे ढकने के लिए एक नया पूर्वानुमान बोल दिया जाता रहा वो भी गलत निकल जाता रहा था इन दोनों को ढकने के लिए कोई ऐसी डरावनी अफवाह फैलाई जाती रही कि महामारी से डरी सहमी जनता उन दोनों गलत पूर्वानुमानों को भूलकर अब नए उस डरावने पूर्वानुमान को सुन कर सहम गए जो बाद में बोला  गया था | 
   मौसम के बिषय में कोई पूर्वानुमान गलत निकले तो हम सही पूर्वानुमान नहीं निकाल सके इसकी जगह मौसम धोखा दे गया बता दिया जाता है | 
  मानसून आने जाने के बिषय में कोई पूर्वानुमान कभी सही नहीं निकला तो यह स्वीकार करने के बजाय कि मानसून आने जाने की सही तारीखों का अनुमान लगाने में हम असफल रहे !कहा गया कि मानसून आने जाने का पैटर्न बदल रहा है इसलिए इसके आने जाने की तारीखों में बदलाव किया जा रहा है | 
   दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान कभी सही नहीं निकला !इसके लिए भी मौसम को धोखेबाज बताया गया अपनी गलती कभी नहीं स्वीकार की गई | 
     हिंसक आँधी तूफानों के बिषय में पूर्वानुमान न लगाए जाने पर कहा जाता है कि चुपके से चक्रवात आ जाते  हैं पता ही नहीं लगता !
     कोरोना जैसी महामारियों के समय में भी यही खिलवाड़ होता रहा !कोरोना संक्रमण के बढ़ने घटने आदि के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताया जाता रहा उसके गलत निकल जाने पर अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय कभी महामारी का म्यूटेशन होने को कभी नया वैरियंट आने को कारण बताकर अपनी कमी को छिपा लिया जाता है | 
     वस्तुतः कोई सैनिक जब सीमा पर लड़ने जाता है तो वो शत्रु को पराजित करने  के लिए जो भी निर्णय लेता है वो शत्रु के सभी संभावित म्युटेशनों एवं नए वैरियंटों को ध्यान में रखकर लेता है तभी वो शत्रु को पराजित कर पाता है | यदि वो ऐसा न करे तो उसकी अपनी थोड़ी भी चूक उसकी अपनी जान पर भारी पड़ सकती है|इसलिए अपनी भी जान का जोखिम सामने देखकर उसे  संभावित सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर निर्णय लेना पड़ता है | ये उसकी अपनी जिम्मेदारी होती है | 
    सैनिकों की उत्साहपूर्ण मजबूत देखकर शत्रु का आधा मनोबल युद्ध प्रारंभ होने से पहले ही टूट  टूट जाता है इसलिए युद्ध में बिजय पाना आसान होता है दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों के कारणों को खोजने की या पूर्वानुमान पता लगाने की जिम्मेदारी जो लोग सँभाल रहे होते हैं वे कुछ भी न करें तो भी उनके अपने लिए न कोई शारीरिक जोखिम होता है और न ही कोई आर्थिक !इसीलिए संबंधित बिषय में जब जो मन आता है बोल दिया जाता है उसके गलत हो जाने पर कुछ और बोल दिया जाता है | इतनी स्वछंदता जिस भी विभाग या क्षेत्र में होगी उससे अपक्षित परिणामों की आशा किसी को नहीं करनी  चाहिए | 
     प्राकृतिक आपदाओं या महामारी से संबंधित अनुसंधानों के बिषय में जब जब आपदाएँ आई हैं तब तब उनका पूर्वानुमान लगाने में विज्ञान असफलहुआ है | ऐसे समय में आवश्यकता इस बात की थी कि इस संकल्प के साथ कमियों को खोजा जाता कि ऐसी परिस्थिति भविष्य में दोबारा पड़ने पर इस प्रकार की असफलता न मिले किंतु आज भूकंप संबंधी असफलता मिलने पर कुछ गहरे गड्ढे खोजकर उसमें कोई मशीन फिट कर के भूकंपों को खोजने का रिसर्च यह जानते हुए शुरू कर दिया जाता है कि इससे कोई परिणाम नहीं निकलेगा | मौसम के बिषय में ऐसी परिस्थिति आने पर कुछ उपग्रह रडार आदि और अधिक लगाने की  बात कर दी जाती है | कुछ सुपर कंप्यूटर खरीदने आदि का संकल्प ले लिया जाता है | यह सब देख सुन कर उस समय तो लगता है कि अब भविष्य में हमारा विज्ञान कभी इस प्रकार से असफल नहीं होगा किंतु फिर वही होता है |हर बार संसाधनों की कमी और रिसर्च की आवश्यकता बता कर आगे बढ़ जाया जाता है | 
    सरकारों से लेकर महामारियों के बिषय में अनुसंधान करने वालों तक को यह सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए कि महामारियों के बिषय में हमारे द्वारा कोई ऐसी तैयारी करके नहीं रखी जा सकी थी जिससे महामारियों को समझने में उनका पूर्वानुमान लगाने में संक्रमितों की संख्या घटने बढ़ने का कारण समझने में या इसका पूर्वानुमान लगाने में थोड़ी भी मदद मिल सकी होती जिससे महामारी से भयभीत जनता को थोड़ी भी मदद पहुँचाई जा सकी होती |ऐसी कोई भी तैयारी पहले से करके नहीं रखी जा सकी थी | 
     केवल  भारत में ही नहीं अपितु  इटली अमेरिका आदि उन्नत चिकित्सा पद्धतियों की दृष्टि से इतने सक्षम देश भी इस एक कमजोरी के कारण इतना नुक्सान उठाने पर विवश हुए | चिकित्सा की दृष्टि से भारत के चिकित्सकों ने भी अपनी जान जोखिम में डालकर अपने परिवारों का मोह त्यागकर जो समर्पण दिखाया है उनके परिजनों अभिभावकों ने ऐसी बिषम परिस्थिति में असहाय भयभीत जनता की मदद करने हेतु चिकित्सकों को उनके कर्तव्यपथ पर डटे रहने का संबल दिया है इस सबके आगे श्रद्धा से सिर झुक जाना स्वाभाविक है |मुझे विश्वास है कि चिकित्सा से संबंधित अनुसंधानों से भी  समय  रहते यदि कुछ भी मदद मिली होती तो संभव है उन चिकित्सकों का भी बहुमूल्य जीवन बचा लिया जाता जनता की जीवन रक्षा यज्ञ में जिन्होंने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी हैं | 

महामारी और जलवायु परिवर्तन -

     महामारी के विषय में अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों  के एकवर्ग का मानना रहा है कि महामारी के घटित होने पर या महामारी से संक्रमितों की संख्या घटने बढ़ने में जलवायु परिवर्तन की बड़ी भूमिका होती है |

                             तापमान बढ़ने घटने का महामारी पर पड़ता है प्रभाव !

19 सितंबर 2020-जिस सितंबर में मौसम करवट लेने लगता है और जाड़े की सुगबुगाहट होने लगती है, इस बार दिल्ली वासी उमस भरी गर्मी झेलने को विवश हैं। तेज धूप की चुभन और उमस पसीना पोंछने पर मजबूर कर रही है, अभी भी बिना एसी के गुजारा नहीं हो पा रहा है। मौसम विशेषज्ञों ने इस स्थिति के पीछे जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ बादलों की बेरूखी को भी जिम्मेदार करार दिया है।

     सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में  मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से कम रहेगी,लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ क्यों ? 

     इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा है  जिसका सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है।सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है।मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है| मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी। 

      इसके बाद एक बार फिर गलत हुई मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी !2020-21 में  लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु अबकी  बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था |

 

जलवायु परिवर्तन                                             

22 जुलाई 21 -एक साथ 40 देशों में मौसम का प्रचंड रूप देखकर वैज्ञानिकों को जलवायु  परिवर्तन का डर सताने लगा है | कोरोना वायरस महामारी के बीच मौसम की भी नाराजगी लोगों को झेलनी पड़ रही है. महामारी तो शायद वैक्‍सीन की वजह से खत्‍म हो जाए लेकिन मौसम वैज्ञानिक अब जलवायु परिवर्तन को लेकर परेशान हैं. एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन और रूस तक मौसम का प्रचंड रूप देखा जा सकता है. जो लोग यह मान रहे थे कि जलवायु परिवर्तन भविष्‍य का खतरा है, वो अब दिन पर दिन बदलते मौसम को देखकर हैरान हैं. आर्कटिक तक क्‍लाइमेट चेंज हावी हो चुका है. यहां पर पोलर बीयर को बर्फ खत्‍म होने के बाद बाहर आते हुए देखा गया है 
     दुनिया के कई देशों में पिछले कुछ हफ्तों में मौसम के बदलते मिजाज को देखा गया है. यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं बाढ़ है, कहीं गर्म हवाएँ हैं  तो कहीं पर सूखे की स्थिति है. यूरोप के 40 देश, नॉर्थ अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कहीं हीट वेव, कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति है. रूस, चीन, अमेरिका और न्‍यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी आग से परेशान हैं |पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही है कहा जा रहा है कि एक सदी में पहली बार ऐसी बाढ़ आई है. बेल्जियम, जर्मनी, लक्‍जमबर्ग और नीदरलैंड्स में 14और15जुलाई को इतनी अधिक बारिश हो गई है जितनी दो माह में होती है. नॉर्थ यूरोप में गर्मी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं. फिनलैंड जहां गर्मी कभी नहीं पड़ती, वहां पर लोग पसीना पोंछने को मजबूर हो रहे हैं. देश के कई हिस्‍सों में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से भी ज्‍यादा हो गया है| रूस में साइबेरिया का तापमान इतना बढ़ गया है कि 216 ये ज्‍यादा जंगलों में आग लगी हुई है | वहीं पश्चिमी-उत्‍तरी अमेरिका में अत्‍यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए हैं | कैलिफोर्निया, उटा और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया है. कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्‍प्रेचर 54.4 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुंच गया था. यह दूसरा मौका था जब इस हिस्‍से में इस कदर तापमान रिकॉर्ड किया गया. इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन, भारत और इंडोन‍ेशिया के कुछ हिस्‍सों में बाढ़ की स्थिति है तो कुछ हिस्‍सों को अभी तक बारिश का इंतजार है |

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