Tuesday 12 October 2021

korona mahamari


 
तापमान -
कोरोना महामारी और तापमान


-गर्मी की मदद से कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है. कई दावों में पानी को गर्म करके पीने की सलाह दी जा रही है. यहां तक कि नहाने के लिए गर्म पानी के इस्तेमाल की बात कही जा रही है.गर्म पानी पीने और सूरज की रोशनी में रहने से इस वायरस को मारा जा सकता है. इस दावे में आइसक्रीम को ना खाने की सलाह भी दी गई |  
4 अप्रैल 2020-अमेरिका की नेशनल एकेडमिक्स ऑफ साइंसेज ने अपनी स्टडी में कहा हैकि गर्म मौसम कोरोना वायरस को रोकने में मदद नहीं करेगा !ऑस्ट्रेलिया और ईरान में चीन और यूरोपीय देशों के मुकाबले फिलहाल गर्म मौसम है लेकिन वहां वायरस का  प्रसार अपने चरम पर है.  ऐसे में ज्यादा टेंपरेचर और मौसम में आर्द्रता की बढ़ोतरी से यह ना माना जाए कि मामलों में कमी आएगी |

24अप्रैल 2020-होमलैंड सुरक्षा सचिव के विज्ञान और तकनीकी विभाग के सलाहकार विलियम ब्रायन ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों कहा कि सरकारी वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया है कि सूरज की पराबैंगनी किरणें पैथोगेन यानी वायरस पर प्रभावशाली असर डालती हैं। उम्मीद है कि गर्मियों में इसका प्रसार कम होगा।सोलर लाइट सतह और हवा दोनों में इस वायरस को मारने की क्षमता रखता है।नमी में वृद्धि अर्थात अधिक ठंडक भी वायरस के लिए फायदेमंद नहीं है।बिलियन ब्रायन ने मैरीलैंड स्थित नेशनल बायोडिफेंस एनालिसिस एंड काउंटर मेजर्स सेंटर की एक रिसर्च में पाया गया कि नमी को 80 फीसदी बढ़ाए जाने के बाद आधा वायरस 6 घंटे में खत्म हो गया। जब इसी परीक्षण को सूरज की किरणों के बीच किया गया तो इसे खत्म होने में दो मिनट लगे।
11 मई 2020 भारतीय विषाणु वैज्ञानिक नगा सुरेश वीरापु का कहना है कि उच्च तापमान से कोरोना वायरस के संक्रमण में कमी आएगी लेकिन गर्मी में वायरस के पूरी तरह के खत्म होने की धारणा पूरी तरह से निराधार है.

27 मई 2020 - मेडिकल कालेज के  मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ.जे.एस.कुशवाहा और डॉ ब्रजेश कुमार का कहना है कि गर्मी लगने पर मस्तिष्क में तापमान नियंत्रित करने वाला सिस्टम ध्वस्त हो जाता  है इसके साथ  कोरोना संक्रमण और अधिक घातक हो सकता है |
3 जून 2020गर्म मौसम में कोरोना वायरस का संक्रमण थम जाएगा, इस उम्मीद में इस बार सर्दी के मौसम में ही गर्मियों को बड़ी बेसब्री से इंतजार हो रहा था। अब जबकि तेज गर्मी का एक महीना यानी मई बीत चुका है अभी तक ऐसा कुछ दिखाई नहीं पड़ा है |
14 अगस्त 2020 :वैज्ञानिकों को आशंका है कि सर्दी के मौसम में दुनिया को कोरोना वायरस की 'सेंकेंड वेव' का सामना करना पड़ सकता है, जो पहले से 'कहीं अधिक जानलेवा' होगी. ये पूर्वानुमानभले ही जटिल और बेहद अनिश्चित लगे, लेकिन कई वजहें हैं जो चिंता को बढ़ा देती हैं |

12 जून 2020-भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि गर्म और शुष्क मौसम में सतह पर कोरोना वायरस के सक्रिय रहने की गुंजाइश कम हो जाती है।

14 अगस्त 2020 :वैज्ञानिकों को आशंका है कि सर्दी के मौसम में दुनिया को कोरोना वायरस की 'सेंकेंड वेव' का सामना करना पड़ सकता है, जो पहले से 'कहीं अधिक जानलेवा' होगी. ये पूर्वानुमानभले ही जटिल और बेहद अनिश्चित लगे, लेकिन कई वजहें हैं जो चिंता को बढ़ा देती हैं |

11 अक्टूबर 2020 को एम्स निदेशक डॉ.रणदीप गुलेरिया ने कहा कि सर्दियों में सांस लेने संबंधी वायरल संक्रमण अधिक होने की उम्मीद रहती है.सर्दियों में तापमान कम रहने की वजह से वायरस के लंबे वक्त रहने का खतरा रहता है. इस वजह से बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होते हैं |

   विशेष :5 अप्रैल 2020कुछ लोगों का मानना है कि जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी कोरोना वायरस का प्रकोप ख़त्म होता जाएगा. लेकिन जानकार कहते हैं कि महामारियां, आमतौर पर मौसमी बीमारियों के वायरस जैसी नहीं होतीं.ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं जो मौसम बदलते समय सिर उठाती हैं. जैसे ही मौसम स्थिर होता है, वो ख़त्म हो जाती हैं. मौसमी बुख़ार इसकी सबसे आम मिसाल है.इसी तरह टायफ़ाइड या ख़सरा अक्सर गर्मी के मौसम में सिर उठाती है. मैदानी इलाक़ों में ख़सरा अक्सर गर्मी के मौसम में पैर फैलाता है. जबकि, उष्णकटिबंधीय इलाक़ों में ये बीमारी सूखे मौसम में सबसे ज़्यादा फैलती हैकोविड-19 वायरस सबसे पहले चीन में दिसंबर महीने में फैलना शुरू हुआ था. और तभी से ये वायरस लगातार फैल रहा है. अमरीका और यूरोप के देशों में भी इसने क़हर बरपाया हुआ है. अभी तक देखा गया है कि ठंडे इलाक़ों में ये काफ़ी तेज़ी से फैल रहा है|
 3 मई 2021,जर्नल साइंटफिक रिपोर्ट में प्रकाशित शोध पत्र में कहा गया है कि सर्दियों में ज्‍यादा मामले आएंगे और गर्मियों के मौसम में कम मामले देखने को मिलेंगे। भूमध्‍य रेखा के पास मौजूद देशों में कोरोना वायरस के कम मामले सामने आएंगे जबकि जो देश धरती के उत्‍तरी और दक्षिणी हिस्‍से में स्थित हैं, उन्‍हें ज्‍यादा कोरोना वायरस मामलों से जूझना पड़ेगा। शोधकर्ताओं ने 117 देशों के आंकड़े के आधार पर यह शोध प्रकाशित किया है। शोध में खुलासा हुआ है कि कोरोना वायरस महामारी पूरे साल कई बार चरम पर आएगी | 
 कोरोना महामारी और वायुप्रदूषण :8 अप्रैल 2020अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने से कोविड-19 के कारणमौत होने का अधिक जोखिम है। ऐसा अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है।हार्वर्ड टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने कहा कि शोध में सबसे पहले लंबी अवधि तक हवा में रहने वाले सूक्ष्म प्रदूषक कण (पीएम2.5) और अमेरिका में कोविड-19 से मौत के खतरा के बीच के संबंध का जिक्र किया गया है।
  26 अप्रैल 2020 वायु प्रदूषण के कणों पर कोरोना वायरस का चला पता, ज्यादा प्रदूषित इलाके में देखा गया उच्च संक्रमण !पिछले अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण के कण रोगाणुओं को पनाह देते हैं और इसके जरिये बर्ड फ्लू, खसरा और अन्य बीमारियों के संक्रमण की संभावना रहती है। 
28 अक्टूबर 2020 -इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानि आईसीएमआर का कहना है कि लंबे समय तक प्रदूषण के प्रभाव में रहने से कोविड-19 से मौत का ख़तरा बढ़ सकता है.आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ बलराम भार्गव का कहना है, ''यूरोप और अमरीका में प्रदूषित इलाक़ों में और लॉकडॉउन के दौरान होने वाली मौत का तुलनात्मक अध्ययन किया गया और इसमें ये जानने की कोशिश की गई कि प्रदूषित हवा का इससे क्या संबंध है. पता चला कि प्रदूषण, कोविड को और घातक बना रहा है. प्रदूषण और कोविड से होने वाली मौत में संबंध है, ये बात अब शोध से पूरी तरह स्पष्ट है."दरअसल कॉर्डियोवेसकूलर रिसर्च जर्नल ने एक शोध किया था जिसमें ये पाया गया कि वायु प्रदूषण, कोविड-19 के दौरान मौत के ख़तरे को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है. 
 शोध में कहा गया है कि जिन क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता को लेकर कड़े मानक अपनाए गए हैं और वायु प्रदूषण का स्तर कम है, वहां कोविड-19 से होने वाली मौत का प्रतिशत कम है. जैसा कि ऑस्ट्रेलिया. वहीं शोध में पूर्वी एशिया, सेंट्रल यूरोप, पश्चिमी अमरीका के इलाक़ों का ज़िक्र किया गया है जहां प्रदूषण का स्तर अधिक होने के साथ-साथ मौत का प्रतिशत भी अधिक है.अध्ययन में इस बात का भी ज़िक्र है कि चीन, पोलैंड और चेक रिपब्लिक सरीखे देशों में प्रदूषण और कोविड-19 के मिले जुले असर की वजह से कहीं ज़्यादा लोगों ने जान गंवाई है.नेशनल हार्ट इंस्टीच्यूट के डॉ ओपी यादव और दिल्ली के इंस्टीच्यूट ऑफ़ लिवर एंड बिलियरी साइंस (आईएलबीएस) के डॉ. एसके सरीन दोनों का ही मानना है कि कोविड के दौरान प्रदूषण से हो रही मौत का अप्रत्यक्ष रुप से संबंध हो सकता है, लेकिन किसी भी अध्ययन में कॉज़ एंड इफ़ेक्ट नहीं बताया गया है.डॉ एसके सरीन कहते हैं, ''बहुत लंबे समय तक प्रदूषण का प्रभाव और कोविड के दौरान उससे ज़्यादा मौत हो रही है इसका कोई डायरेक्ट कॉज़ और इफ़ेक्ट नहीं है| अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानि एम्स के पल्मनेरी विभाग के प्रमुख डॉक्टर अनंत मोहन का कहना है कि ये पहली सर्दियां होगीं जब लोग कोविड का भी सामना कर रहे हैं. जिन लोगों को सांस लेने में तक़लीफ होती है उनकी प्रदूषण के दौरान दिक्क़तें और बढ़ जाती हैं और अगर ऐसे उन मरीज़ों को कोविड हो जाता है तो उनके फेफड़ों पर और घातक असर हो सकता है और उनको अस्पताल में भर्ती कराने की ज़रूरत पड़ती है और मौत की आशंका बढ़ जाती है.| 
विशेष :यदि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिस प्रकार से कुछस्थान जिम्मेदार हैं उसी प्रकार से वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए समय भी जिम्मेदार होता है | भारत में अक्टूबर नवंबर आदि सर्दी के महीनों में वायु प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाता है किंतु सन 2020 के सर्दी के महीनों  में वायु प्रदूषण तो बढ़ा किंतु कोरोना संक्रमण तो दिनोंदिन समाप्त होता जा रहा था | इसलिए वायु प्रदूषण के कारण कोरोना संक्रमण के बढ़ने की बात तर्क संगत नहीं है  |     वायुप्रदूषण  बढ़ने से कोरोना संक्रमण बढ़ता है या नहीं ? 
   17 जून 2021 को कोरोना के मामले और मौत को लेकर पहले दो अध्ययन सामने आए  हैं !इस तथ्य को साबित करने के लिए पहली बार दो अलग अलग चिकित्सीय अध्ययन सामने आए हैं। इनमें से एक मालवीय नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जयपुर के शोद्यार्थियों का है। जबकि दूसरा अध्ययन हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का है।
  मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित दोनों अध्ययन में यह साबित हुआ है -"वायु प्रदूषण के मामले में सबसे गंभीर राष्ट्रीय राजधानी में पीएम2.5, पीएम10, एसओ2, एनओ2, ओ3 और कार्बन डाई ऑक्साइड महामारी के प्रसारित होने में सहायक रहा है। जयपुर स्थित मालवीय नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के कुलदीप सिंह और आर्यन अग्रवाल ने अध्ययन में बताया कि दिल्ली में कोरोना के मामले, मौत और संक्रमण दर बढ़ाने में प्रदूषण और मौसम सहायक है।
दिल्ली में अप्रैल से दिंसबर 2020 के बीच रोजाना औसतन दो हजार लोग कोरोना संक्रमित हुए 39 की मौत हुई है |इसे देखकर लगता है  कि वायुप्रदूषण भी महामारी से संक्रमितों की संख्या बढ़ाने एवं मृतकों की  संख्या बढ़ाने में मददगार रहा है |
घनी आबादी के अलावा उमस और वायु प्रदूषण ने भी दिल्ली में कोरोना महामारी को बढ़ावा दिया। यही वजह है कि पिछले साल राजधानी ने संक्रमण की तीन-तीन बार लहर का सामना किया। 
  दूसरी तरफ मामले कम होने की सूरत में प्रदूषण की भूमिका पर शोधार्थियों का कहना है कि यह प्रक्रिया काफी जटिल और लंबी अवधि के अंतराल से समझी जा सकती है। जब प्रदूषण पीक पर होता है तो संक्रमण को भी फैलने का मौका मिलता है। इसके बाद स्थिति नियंत्रण में आती है लेकिन वापस फिर प्रदूषित कणों के फैलने से नई लहर सामने आने लगती है। "
 "हमीरपुर स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अभिषेक सिंह ने अध्ययन में लिखा है कि कोरोना संक्रमित और मौत दोनों को ही लेकर उमस एवंवायु प्रदूषण की भूमिका रही है। अभी तक मौत के विशलेषण को लेकर ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है।"
 इसमें  विशेष बात यह है कि यदि वायु प्रदूषण बढ़ने को कोरोना संक्रमण बढ़ने में सहायक मान लिया जाए तो जहाँ जहाँ जिस जिस समय में वायु प्रदूषण बढ़ता है वहाँ वहाँ उस उस समय में कोरोना संक्रमण बढ़ना चाहिए किंतु सभी जगह ऐसा होते नहीं देखा जाता है | दिल्ली और सूरत के मामलों में ही साम्यता नहीं देखी गई है | इसके अतिरिक्त वायु प्रदूषण पिछले कई वर्षों से बढ़ता देखा जा रहा है किंतु कोरोना संक्रमण हमेंशा तो नहीं रहता  या बढ़ता है |
  मौसम और महामारी-10 अगस्त 2020-डब्ल्यूएचओ ने कहा कि कोरोना वायरस में मौसमी प्रवृत्ति दिखाई नहीं पड़ रही है। इसी वजह से इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना कठिन होता जा रहा है।
18 मार्च 2021 को संयुक्त राष्ट्र ने कोरोना संक्रमण पर मौसम संबंधी फैक्टर्स और हवा की क्वालिटी से पड़ने वाले असर को जानने के लिए UN के विश्व मौसम विज्ञान संगठन की तरफ से 16 सदस्यों वाली टीम बनाई गई है | इस टीम की पहली रिपोर्ट में सामने आया है कि अगर यह महामारी लंबे समय तक जारी रहती है तो कुछ सालों में यह मौसमी बीमारी बनकर रह जाएगी. संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाई गई रिसर्च टीम ने बताया कि सांस संबंधी संक्रमण अक्‍सर मौसमी होते हैं. कोरोना वायरस भी मौसम और तापमान के मुताबिक अपना असर दिखाएगा.टीम ने अपने रिसर्च में सिर्फ बाहर के मौसम और हवा की क्वालिटी को आधार बनाया है | स्टडी में सामने आया है कि कोरोना वायरस ठंड में, सूखे मौसम के अलावा जहां अल्ट्रावायलेट किरणें कम होती हैं, वहां ज्यादा दिनों तक सर्वाइव करता है. लेकिन अभी तक यह साफ नहीं है कि मौसम संबंधी फैक्टर्स का ट्रांसमिशन रेट पर क्या असर होता है. हालांकि कुछ ऐसे सबूत मिले हैं हवा की खराब क्वालिटी इसके खतरे को बढ़ा सकती है |
 30 अप्रैल 2021 को मौसम विज्ञानी प्रोफेसर एचएन मिश्रा ने बताया कि वैज्ञानिकों के शोध में सामने आया है कि मौसम में बदलाव कोरोना संक्रमण की कमी में प्रभावी भूमिका निभाएगा। शोध पत्र के मुताबिक कोरोना वायरस तीन तरह से प्रभावी है। स्पर्श (कंटैजियस),  विस्तार (एक्सपेंसिव) और मेढ़क की चाल ( लीप फ्रांगिंग) की स्थितियों में कोरोना वायरस हवा में तैर रहा है। तेज गर्मी के बाद तेज बारिश होने से वायुमंडल से वायरस का प्रभाव कम होगा। 
महामारी और जलवायु परिवर्तन :21अप्रैल 2020 - कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल, ब्रिटेन में चल रही लू ! कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वहां अप्रैल में भीषण गर्मी और लू चल रही है.|
 
 22 अप्रैल 2020 - कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका खस्ताहाल ! ट्रंप पर बड़ी आफत !अमेरिका ने हाल ही में 1200 साल का सबसे भयावह सूखा देखा है. ये सूखा 18 साल तक चला. यानी साल 2000 से 2018 तक. सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका  हुआ है
22 मई 2020 - कोरोना को लेकर अपने देश के वैज्ञानिकों पर भड़के ट्रंप, कही ये बातडोनाल्ड ट्रंप ने इस हफ्ते दो बार कहा कि हमारे देश के वैज्ञानिकों की बात बेसिर पैर की है. उनकी बातों में कोई सबूत नहीं है|देश के कई बड़े वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की सलाह को खारिज करते हुए ट्रंप लॉकडाउन हटाना चाहते थे |
30  मई 2020- भारत में इस साल  मई के महीने में भी गर्मी नहीं है मार्च और अप्रैल के बाद मई के महीने में भी तेज़ हवाएं चलीं और रुक-रुक कर बारिश होती रही !

12 जुलाई 2020 - बारिश-बाढ़ और भूकंप, प्रकृति के कहर से चीन का बुरा हाल !चीन इन दिनों प्रकृति के कहर से जूझ रहा है। लगातार हो रही भारी बारिश के बाद आई बाढ़ से 52 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। जिसके बाद 4 लाख लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया है। वहीं 12 जुलाई को उत्तर-पूर्वी शहर तंगशान आए भूकंप ने लोगों को पिछले हादसे की याद दिलाकर और डरा दिया है। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 5.1 मापी गई। हालांकि, इस भूकंप में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।

जलवायु परिवर्तन का मजाक :
29 दिसंबर  2017  ट्रंप ने ग्‍लोबल वार्मिंग का बनाया मजाक, कहा- बर्फीली हवाओं से दिलाएगा राहत दुनिया
अमेरिका का पूर्वी क्षेत्र इन दिनों कड़ाके की सर्दी से गुजर रहा है। सर्द हवाओं ने आम जनजीवन को पूरी तरह अस्‍त-व्‍यस्‍त कर दिया है, पर अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने इस मौके का इस्‍तेमाल ग्‍लोबल वार्मिंग पर तंज कसने के लिए किया। उन्‍होंने मजाकिया लहजे में कहा कि धरती के बढ़ते तापमान से शायद कड़ाके की सर्दी से निपटने में मदद मिल सके।
29 जनवरी 2019 को शाम में भयानक ठंड का शिकार हुए मिडवेस्ट रीजनका हवाला देते हुए ट्रंप ने ग्लोबल वार्मिंग को ताना मारते हुए उसे तेजी से वापस आने के लिए कहा है। ट्रंप ने ट्वीट किया कि, 'खूबसूरत मिडवेस्ट में ठंडी हवाओं के चलते तापमान माइनस 60 डिग्री तक पहुंच गया है। ठंड ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है। आने वाले दिनों में और भी ठंडा होने की उम्मीद है। लोग एक मिनट के लिए भी बाहर नहीं आ पा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के साथ क्या हो रहा है? कृपया तेजी से वापस आएं, हमें आपकी आवश्यकता है!'
5 मई 2020  मानव निर्मित है  जलवायु परिवर्तन : दुनिया के प्रमुख वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव-प्रेरित है और चेतावनी देता है कि तापमान में प्राकृतिक उतार-चढ़ाव मानव गतिविधि द्वारा बढ़ाए जा रहे हैं। इसे जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जाना जाता है। मानव गतिविधियों ने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि की है, जिससे तापमान बढ़ रहा है। चरम मौसम और पिघलने वाली ध्रुवीय बर्फ संभावित प्रभावों में से हैं। पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 15C है लेकिन अतीत में बहुत अधिक और कम रहा है।जलवायु में प्राकृतिक उतार-चढ़ाव आते हैं लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान अब कई गुना अधिक तेजी से बढ़ रहा है।
 अक्टूबर 2020 -इस बात से सहमत नहीं थे कि पृथ्वी के बढ़ते तापमान के लिए मनुष्य जिम्मेदार थे।

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