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Prachin Vigyan Kaise Kam Karta Tha?
राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान के प्रमुख आयाम
ज्योतिष एक बहुत बडा विज्ञान है।हर क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण योगदान
है।आकाश के वर्षा आँधी तूफान से लेकर पाताल की परिस्थितियों का
वर्णन,सामाजिक विप्लव से लेकर सामाजिक महामारी आदि का भी इससे पता लगाया जा
सकता है।
व्यक्ति गत जीवन से जुड़ी छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी तक सभी बातों से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी,बीमारी तथा भविष्य में होने वाली बीमारियों का भी ज्योतिष से पता लगाया जा सकता है।
प्राचीन भारत में आखिर लोग कैसे रहते थे?
उस
समय में मौसम की जानकारी कैसे की जाती थी, आज इस पर कोई काम नहीं किया जा
रहा है।उस समय न केवल वायुमंडल के अध्ययन का सूक्ष्म अनुभव था अपितु उस
अनुभव को सूत्रों में बॉंधकर उन्हें सिद्धांत रूप दे देना ये बहुत बड़ा काम
किया जाता था ।
जैसे उन्होंने कहा कि
शुक्रवार को यदि बादल आकाश में दिखाई पड़ जाएँ और वो शनिवार को भी बने
रहें तो समझ लेना चाहिए कि पानी जरूर बरसेगा।
यदि पूरब दिशा में बिजली चमकती हो और उत्तरदिशा में हवा चलने लगे तो समझ लेना चाहिए कि वर्षा अवश्य होगी।
इसी प्रकार वायुमंडल के अध्ययन के और बहुत सारे सूक्ष्म अनुभव भी हैं
जिनसे यह पता चलता है कि इस सप्ताह ,महीने या वर्ष में कहॉं कितना पानी
बरसेगा।आँधी,तूफान,ओले,पाला,कोहरा,ठंड,गर्मी आदि कब कहॉं और कितनी पड़ेगी?
किस वर्ष कौन फसल कितनी होगी ? कौन फसल प्रकृति के प्रकोप के कारण कितनी
मारी जाएगी इसका भी आकलन इसी वायुमंडल से कर पाना संभव है।
वायुमंडल में किस तरह का वातावरण बनने पर किस प्रकार की बीमारी या
महामारी आदि फैलने की संभावना बन सकती है इसके भी काफी मजबूत सूत्र प्राचीन
विज्ञान में मिलते हैं।
आयुर्वेद में इस
प्रकार के प्राचीन वैज्ञानिक विवेचन का स्पष्ट विवरण है। वहॉं एक प्रसंग
में स्पष्ट समझाया गया है कोई महामारी या सामूहिक बीमारी फैलने से पहले
वायु मंडल में एक अजीब सा परिवर्तन आ जाता है जैसे जिसप्रकार की बीमारी
होनी होती है उसे रोकने में सक्षम जो बनौषधियॉं अर्थात जंगली जड़ी बूटियॉं
होती थीं सबसे पहले वो या तो सूखने लगती थीं या उनमें कोई कीड़ा लग जाता था
या किसी अन्य प्रकार से वे नष्ट होने लगती थीं। इस प्रकार का प्राकृतिक
उत्पात जहॉं जहॉं दिखाई पड़ता था वहॉं वहॉं उस प्रकार की बीमारी या महामारी
होने या बढ़ने की संभावना विशेष होती है।इसमें बनौषधियों में बीमारी रोकने
का जो विशेष गुण होता है। वह बीमारी पैदा होने से पहले ही नष्ट हो जाता
है। इस दुष्प्रभाव से ही महामारी फैलने पर वह दवा लाभ नहीं करने लगती है।
अतएव बनस्पतियों में परिवर्तन आता देखकर उस युग के कुशल स्वास्थ्य
वैज्ञानिक बड़ी मात्रा में बनौषधियों का संग्रह कर लेते थे।जहॉं की
बनौषधियॉं रोगी न हुई हों वहॉं की तथा बीमारी से पूर्व संग्रह की गई
औषधियॉं उस बीमारी से निपटने में पूर्णतः सक्षम होती थीं। उन्हीं के बल पर
उस युग के कुशल स्वास्थ्य वैज्ञानिक उन महामारियों पर विजय पा लिया करते
थे।
स्वास्थ्य-
आयुर्वेद
आत्मा ,मन और शरीर इन तीन रूपों में स्वास्थ्य को देखता है।इस शरीर से
जन्म जन्मांतर के कर्म संबंधों को स्वीकार करता है अच्छी बुरी परिस्थिति भी
जीवन में हमें इसी कारण भोगनी पड़ती है।बड़ी एवं लंबे समय तक चलने वाली
स्वास्थ्य संबंधी परेशानियॉं भी इसी प्रकार घटित होती हैं।ऐसी परिस्थितियों
में पहली बात बीमारियों का पता लगा पाना कठिन होता है और यदि पता लग भी
जाए तो उन पर दवा असर नहीं करती या बहुत देर से करती है।यहॉ कुशल ज्योतिषी
परिश्रम पूर्वक कारण और निवारण दोनों ढूँढ़ सकता है जिसका पालन करने के बाद
दवा का प्रभाव होना प्रारंभ होगा।
आयुर्वेद
और ज्योतिष दोनों ही भूत प्रेत दोष भी मानते हैं इसीलिए आयुर्वेद के
कई ग्रंथों में भूत प्रेत हटाने के मंत्र भी मिलते हैं।चूँकि ये हमारी
प्राचीन चिकित्सा पद्धति है इसलिए इसे भूल जाना भी उचित नहीं होगा।कुछ
परिस्थितियॉं ऐसी पैदा हो जाती हैं जब कोई व्यक्ति भ्रमित हो जाता है ऐसे
में उसे यह बात समझ में नहीं आती है कि वह व्यक्ति क्या करे कहॉं जाए?जो
चिकित्सा क्षेत्र की तरह पारदर्शी एवं जवाब देय हो।
उदाहरण-
जैसे किसी की जन्मपत्री में शनि और राहु की परस्पर दशा अंतर दशा हो कुंडली
में कष्ट प्रद स्थलों में होने के कारण उस व्यक्ति के पेट में लंबे समय से
दर्द चल रहा है दवा फायदा नहीं कर रही है तो ज्योतिषी उसे शनि राहु का
मंत्र जप बताएगा तांत्रिक उसे भूत प्रेत दोष बताएगा और चिकित्सक बीमारी
बताएगा और तीनों ठीक करने का दावा ठोंक रहे होते हैं अब वो व्यक्ति किस पर
विश्वास करे?यद्यपि धनवान लोग तो ज्योतिषी ,तांत्रिक और चिकित्सक तीनों के
बताए उपाय कर लेंगे किंतु गरीब आदमी कहॉं जाए?
यदि वो किसी तांत्रिक के पास जाए तो वो कितने बहम डालेगा कितना लूटेगा क्या करेगा कुछ पता नहीं ऐसा तांत्रिक पढ़ा
लिखा अर्थात इन विद्याओं को जानता भी है कि नहीं उसे कैसे पता चले ?यही
स्थिति ज्योतिष में भी होती है।वो जिसके पास भी जाएगा वो हो सकता है कि
पहले वाले से ज्यादा पैसे मॉंगे और ज्यादा बहम डाले अब उसके पास चिकित्सा
की तरह पारदर्शिता रखने वाला जवाबदेय कोई दूसरा विकल्प नहीं है।चिकित्सा
में एक एक बीमारी के कई कई छोटे बड़े डाक्टर एवं एक से बढ़कर एक अस्पताल मिल
जाते हैं वो कानूनी दृष्टि से भी जवाबदेय होते हैं किंतु ज्योतिष और तंत्र
के क्षेत्र में इस प्रकार की सुविधा नहीं पाई जाती है। आज की तो ये हालत
है कि जिसे जो मन आवे सो बके,जिससे जितने पैसे चाहे लूटे,अपने नाम के साथ
जो चाहे सो डिग्री लगावे,और अपनी प्रशंसा में जितना चाहे झूठ बोले या किसी
ओर से बोलवावे।
इसीलिए ऐसे समय हमारा संस्थान न केवल यह निर्णय करके देगा कि उस रोगी की बीमारी ज्योतिषी,तांत्रिक और चिकित्सक किससे ठीक होगी अपितु शास्त्रीय एवं कानूनी पारदर्शिता रखते हुए उसे शास्त्रीय ज्योतिषी एवं शास्त्रीय तांत्रिक उचित खर्च में उपलब्ध करा दिए जाएँगे जिन्हें समाज के प्रति विश्वसनीय व्यवहार के लिए बाध्य किया जाएगा। जिनका जादू टोने से कोई सम्बन्ध नहीं होगा।
धर्मशास्त्र -
हमारी
सनातन संस्कृति अत्यंत प्राचीन है यहॉं जन्म से मृत्यु तक हर कुछ कैसे
कैसे करना है। ये सब पहले ही लिखकर रख दिया गया है उसी के अनुशार हमारे
सारे संस्कार एवं त्योहार आदि मनाए जाते हैं।आज आज शास्त्रीय घुसपैठियों के
कारण विद्वानों की शिक्षा का उचित सम्मान न होने से उनकी शास्त्रों से
रुचि घट रही है प्रायः पंडित पुजारी तो पढ़ना ही नहीं चाहते हैं
वे बड़े बड़े कठिन ग्रंथ। उनका काम विवाह पद्धति,गरुड़पुराण,सत्यनारायण
व्रतकथा और पंचांग इन चार किताबों से चल जा रहा है वो क्यों पढ़ें
धर्मशास्त्र के भारी भरकम ग्रंथ ?
इन विषयों के जो वास्तविक विद्वान हैं एक तो उनकी संख्या बहुत कम है दूसरे
उनकी इस विशेषज्ञता के विषय में समाज को समझावे कौन?ऐसे विद्वानों से
संपर्क करके और उनके धर्मशास्त्रीय ज्ञान का समाजहित में प्रचार प्रसार
करने के लिए संस्थान प्रयासरत है।जिससे आम आदमी उनके धर्मशास्त्रीय ज्ञान
का लाभ ले सकेगा।
वेद,
पुराण, उपनिषद,योग,रामायण,वास्तु,हस्तरेखा आदि जो भी प्राचीन विद्याओं से
संबंधित प्रश्न हैं उनके उत्तर देने के लिए व्यवस्था की गई है। ऐसे सभी
बड़े ग्रंथों को अपने पास रखना या पढ़ पाना या पढ़कर समझ पाना आम आदमी के लिए
संभव नहीं हो पाता है वह विद्वान कहॉं ढूँढ़े? ऐसे में उसे कुछ गलत सही पता
है वही बकने बोलने लगता है ऐसे लोगों के लिए भी संस्थान की ओर व्यवस्था की
गई है।ऐसे लोगों को बहुत महॅंगे एवं भारी भरकम ग्रंथ रखने की आवश्यकता नहीं
पड़ती है वो संस्थान के नंबरों पर फोन करके मॉंग सकते हैं संबंधित बिषय की
जानकारी ।
इस प्रकार से और भी धर्म जुड़े
प्रश्न जो भी उचित लगें उनका डाक या फैक्स द्वारा भी लिखित और प्रमाणित
उत्तर प्राप्त कर सकते हैं।
इन सभी कार्यों के लिए वार्षिक, मासिक,आजीवन आदि संस्थान संचालनार्थ
सदस्यता शुल्क है।निजी जीवन से जुड़ी कुंडली , वास्तु आदि निजी जीवन से जुड़ी
जानकारी मॉंगने पर उसकी सदस्यता शुल्क सामान्य प्रश्नों की अपेक्षा अधिक
जमा करनी होती है। आप कभी भी संस्थान के नंबरों फोन करके संपर्क कर सकते
हैं। 09811226973
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राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सलाह
धर्म शास्त्रीय जन जागरण क्रांति में क्या आप भी देना चाहेंगे अपना बहुमूल्य सहयोग !
यदि आप ऐसे किसी बनावटी आत्मज्ञानी, बनावटी ब्रह्मज्ञानी, ढोंगी,बनावटी तान्त्रिक,बनावटी ज्योतिषी, योगी उपदेशक या तथाकथित साधक आदि के बुने जाल में फँसाए जा चुके हैं तो आप हमारे यहाँ कर सकते हैं संपर्क और ले सकते हैं उचित परामर्श ।
कई बार तो ऐसा होता है कि एक से छूटने के चक्कर में दूसरे के पास जाते हैं वहाँ और अधिक फँसा लिए जाते हैं। आप अपनी बात किसी से कहना नहीं चाहते। इन्हें छोड़ने में आपको डर लगता है या उन्होंने तमाम दिव्य शक्तियों का भय देकर आपको डरा रखा है।जिससे आपको बहम हो रहा है। ऐसे में आप हमारे संस्थान में फोन करके उचित परामर्श ले सकते हैं। जिसके लिए आपको सामान्य शुल्क संस्थान संचालन के लिए देनी पड़ती है। जो आजीवन सदस्यता, वार्षिक सदस्यता या तात्कालिक शुल्क के रूप में देनी होगी, जो शास्त्र से संबंधित किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर करने का अधिकार प्रदान करेगी। आप चाहें तो आपके प्रश्न गुप्त रखे जा सकते हैं। हमारे संस्थान का प्रमुख लक्ष्य है आपको अपनेपन के अनुभव के साथ आपका दुख घटाना,बाँटना और सही जानकारी देना।
विशेष बात यह है कि यदि आप चाहें तो आपके प्रश्न के उत्तर में दी गई जानकारी शास्त्रीय प्रमाणों के साथ लिखित रूप में दी जाएगी। जो कानूनी आवश्यकता पड़ने पर भी प्रमाण के रूप में प्रस्तुत की जा सकेगी।
विशेष-
आपके द्वारा शुल्क रूप में जमा की गई धन राशि किसी भी परिस्थिति में वापस नहीं की जाएगी।
नम्र निवेदनः-
आदरणीय सभी सदाचारी, विद्वानों, महात्माओं भागवत वक्ताओं, योगियों, ज्योतिषियों आदि को यदि हमारी किसी बात से ठेस लगी हो तो हम उसके लिए न केवल क्षमाप्रार्थी हैं प्रत्युत आपके दिए हुए मंतव्य को सम्मिलित कर भूल सुधार का बचन देते हैं। हमारा उद्देश्य केवल पाखंड से दूषित हो रहे शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान को बचाना है।
संस्थान के उद्देश्य-
ऋषि मुनियों के स्वाध्याय, साधना, परिश्रम से प्राप्त हुए अपने शास्त्रीय ज्ञानामृत से समाज को लाभान्वित होने का जो अवसर मिला है जो ग्रंथामृत सुलभ हुआ है उससे हर जाति, वर्ग समुदाय, सम्प्रदाय लाभान्वित हो। बिखरते परिवार राष्ट्र समाज फिर से एक दूसरे के साथ पूर्ण विश्वास पूर्वक जुड़ सकें। इससे परिवार, राष्ट्र, समाज फिर से खुशहाल हो सकेगा और अपना एवं अपने परिवार का पेट भरने के लिए प्राच्य विद्याओं के बहाने अपने सरल समाज को फँसने फँसाने का यह घृणित खेल बंद होना चाहिए ।
शास्त्रीय विद्वानों से विशेष आग्रहः-
सभी शास्त्रज्ञानी गुणवानों, सदाचारियों, मुनि महात्माओं, योगियों, ज्योतिषियों, साधकों तांत्रिकों आदि से निवेदन है कि यदि आपका शास्त्रीय स्वाध्याय है या आप किसी भी शास्त्रीय विषय में अपने आपको हर प्रकार के प्रश्नोत्तर के लिए सक्षम समझते हैं तो कृपा करके अपने पत्र व्यवहार का पता तथा फोन नम्बर आदि उपलब्ध कराएँ, और हमारे विद्वज्जनों के समुदाय में सम्मिलित होकर अलंकृत करें संस्थान को।आप अपने घर में ही रहकर पत्र व्यवहार या फोन के माध्यम से यह परोपकार कर सकते हैं,ताकि आपकी योग्यता से समाज को लाभान्वित कराने का पुण्य भागी बनने का सौभाग्य हमें प्राप्त हो सके । याद रखना आपका अपना राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान संपर्क सूत्र की प्रतीक्षा में है।
धर्म भक्त धनवानों से विशेष आग्रहः-
यदि आपको भी लगता है कि धर्म को लेकर चारों तरफ एक दूसरे को बरगलाने का दुखद वातावरण बना हुआ है। हर कोई बिना परिश्रम किए हुए सुख सुविधा पूर्ण जीवन जीने के लिए धर्म का दुरुपयोग कर लेना चाहता है । जिसके लिए टी.वी. आदि सभी प्रकार के विज्ञापनों में वह वर्ग अंधाधुंध धन झोंक रहा है स्वाभाविक है कि वो इसी धार्मिक धंधे से ही निकालना चाहेगा। इसी धर्म की आड़ में धन इकट्ठा करने के लिए वह कितना भी बड़ा कपटकार्य करने को तैयार है।यदि आपको भी धर्म के विषय में सोचते हैं तो दीजिए अपना बहुमूल्य सहयोग ।
शास्त्रीय विद्वानों के पास न विज्ञापनों में खर्च करने
के लिए अनाप सनाप धन है और न ही धोखाधड़ी पूर्वक वो समाज को नोंचना ही चाहते हैं यदि
चाहें तो वो भी उन्हीं लोगों की तरह
निर्ममतापूर्वक धर्म को धंधा बना सकते हैं किंतु वो शास्त्रीय साधक हैं इसलिए उनकी धर्म पर असीम
आस्था है वो इसे धंधा नहीं बनाना चाहते हैं तथापि जीवनयापन का साधन भी वो अपनी विद्या
से ही बनाना चाहते हैं, यह उनका नैतिक अधिकार भी है आखिर जिस प्राचीन विद्या
के अध्ययन में उन्होंने लगभग बारह वर्ष लगाए हैं अब वो अपनी रोजी रोटी के लिए यदि
व्यवसाय आदि करेंगे तो उनकी योग्यता का समाज हित में उपयोग नहीं हो सकेगा। अतः
समाज हित में उनकी योग्यता का लाभ उठाने के लिए राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध
संस्थान ऐसे विद्वानों को एक मंच
उपलब्ध कराकर उनकी योग्यता का लाभ समाज हित में लेना चाहता है। जिसके लिए उन्हें आजीविका के
लिए आर्थिक सहयोग करना आवश्यक होगा।
अतः इसके अलावा भी संस्थान ने ऐसी सभी प्रकार
की अपनी गतिविधियाँ निस्वार्थ रूप से संचालित
करने के लिए जो सदस्यता शुल्क रखी है उसे भी मुक्त किया जा सके इसके लिए सभी धर्म एवं
शास्त्र प्रेमी सज्जनों से धनात्मक सहयोग की अपेक्षा है। यदि आप सहयोग करना या किसी और
को प्रेरित करना चाहें तो हमारे यहॉं
आपका सादर स्वागत है। इसके साथ ही इस व्यवस्था को और अधिक बेहतर बनाने के लिए आपके न केवल
सुझाव अपितु सभी प्रकार के सहयोग सादर आमंत्रित हैं।यदि आप संस्थान कार्यों के प्रचार प्रसार
से लेकर किसी भी प्रकार से सहयोग या समय
देना चाहें तो यह संस्थान के लिए सौभाग्य की बात होगी।
सदस्यता शुल्क माफ करने का विचार क्यों-
प्रायः धार्मिक समाज अभी तक इतना एवं न जाने कितने बार विविध रूपों में ठगा जा चुका है कि अब वह धर्म के मामले में किसी का विश्वास नहीं कर पा रहा है हर किसी से डरने लगा है।संस्थान की गतिविधियों एवं आश्वासनों को भी वह उसी दृष्टि से देख रहा है अतः वह संस्थान के संपर्क में भी आने से डरता है इसलिए सदस्यता शुल्क माफ करने का बिचार है ताकि उसे सभी प्रकार से भय मुक्त किया जा सके।
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धर्म शास्त्रों से जुड़े लोग क्या कानून से ऊपर हैं ?
प्राचीन विद्याओं की उपेक्षा क्यों ?
आज लगभग सारे सामाजिक झगड़े प्राचीन विद्याओं से जुड़े होते हैं किंतु इन
विषयों पर ध्यान बिलकुल नहीं दिया जाता है ऐसे कैसे चलेगा? आप स्वयं सोचिए
धर्म से जुड़ी हर बात को अंध विश्वास कहने का तो आज फैशन सा बन गया है।तंत्र
मंत्र के नाम पर यदि समाज में कहीं कुछ अपराध हो ही रहे हों तो इन्हें
स्वतंत्र अपराध ही मानना चाहिए इसमें तंत्र मंत्र का क्या दोष? तंत्र मंत्र
का तो प्राचीन विद्याओं में बड़ा गौरवपूर्ण स्थान रहा है। उस अत्यंत पवित्र
शब्द का आज गाली की तरह प्रयोग किया जा रहा है।
इसी प्रकार ज्योतिष की स्थिति है इस शास्त्र के नाम पर कुछ बिना पढ़े
लिखे लोगों ने ज्योतिष एवं वास्तु के नाम पर मन चाहे आडंबर फैला रखे हैं
वो जिसके लिए जो चाहें सो कहें बकें या बहम डालें जिस पर कहीं कोई रोक टोक
नहीं है। ज्योतिष की फर्जी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ लगाकर कोई भी
व्यक्ति टी.वी. पर बैठकर या वैसे समाज को मन चाहे ढंग से जब तक चाहे बेवकूफ
बनाता रहे है कोई देखने सुनने रोकने टोकने वाला?आखिर मेडिकल की तरह के
कठोर नियम ज्योतिष में क्यों नहीं लागू किए जा सकते हैं?
योग के नाम पर योगासनों का ड्रामा जम कर चला अरबों रुपए का कारोबार हो रहा
है क्या किसी ने जानने की कोशिश की है कि ऐसे कार्यक्रम करने वालों के
दावों में सच्चाई कितनी होती है?और होती भी है कि नहीं। इसकी जॉंच करने
कराने का काम किसका था ?
इसी प्रकार आरक्षण के नाम पर चल रहे खिलवाड़ का जिम्मेदार आखिर कौन
है?तथाकथित दलित जातियों का कब किसने कहॉं कैसे कितना शोषण किया था।उसमें
दलितों की कितनी भागीदारी थी इसकी भी जॉंच होनी चाहिए थी,क्योंकि सवर्णों
की अपेक्षा दलितों की जन संख्या अधिक थी तो यदि कोई शोषण करना भी चाह रहा
था तो किसी ने सहा क्यों?आदि बातों की जॉंच होनी चाहिए थी।
इसी प्रकार जो परंपरा से हमारे साधुसंतों की श्रेणी में नहीं आते हैं वे
भी साधुसंतई एवं कथा कीर्तन के नाम पर कोई कुछ भी करें कैसे भी पैसे इकट्ठा
करके फिर उन पैसों से कुछ भी करें सब कुछ करने के बाद है कोई रोकटोक?
अन्य धर्मों में भी वही स्थिति है।वहॉं भी कहीं कोई रोक टोक नहीं है इसका
सीधा मतलब क्या यह नहीं है कि धर्म का नाम लेकर कोई कुछ भी कर सकता है।
मेरा विशेष निवेदन मात्र इतना है कि ऐसे किसी भी विषय में किसीप्रकार से
किसी एक अज्ञानी लोभी के द्वारा लोभ वश किए गए किसी अपराध में सारा धर्म
एवं धार्मिक गतिविधि को अंध विश्वास कह कह कर बार बार ललकारा जाने लगता है
जो ठीक नहीं है।
आखिर सरकारी खजाने से इन विद्याओं के प्रशिक्षण के लिए जो विश्व विद्यालय
चलाए जा रहे हैं वो भी अंध विश्वास है क्या?और यदि नहीं तो ऐसे आरोप लगाने
वालों के विरुद्ध भी तो कोई कार्यवाही होनी चाहिए।साथ ही ऐसे विशयों में
अयोग्य लोगों को लेकर मीडिया में बहस चलाने वाले लोगों पर भी सरकारी
नियंत्रण होना चाहिए।किसी भी बहस में यदि किसी अधिकृत संस्थान के चिकित्सक
वैज्ञानिक आदि बुलाए जा सकते हैं तो अधिकृत प्राच्यविद्या विज्ञ क्यों
नहीं? आखिर ये दोष किसका है?और नियंत्रण कौन करेगा?
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान
ज्योतिषविद्यालय ऑनलाइन !
तनाव से मुक्ति पाने के लिए ज्योतिष सीखिए ! 'ज्योतिष एक काम अनेक !'
ज्योतिष से आप स्वयं लाभ उठावें और दूसरों को भी लाभान्वित करें ! दूसरे विषयों को पढ़ने के बाद भी आपको महीनों वर्षों तक नौकरी के लिए धक्के खाने पड़ेंगे! ज्योतिष पढ़ने के तुरंत बाद आप ज्योतिष का कार्य शुरू कर सकते हैं |जिससे आप धन कमाने के साथ साथ प्रसिद्ध हो सकते हैं |
डॉक्टर बनें या ज्योतिषी - डॉक्टर बनने में बहुत पैसे खर्च करने होंगे,किंतु ज्योतिषी बनने में उससे बहुत कम पैसे खर्च होंगे !दूसरी बात बहुत पैसे खर्च करके आप किसी एक रोग के डॉक्टर बन सकेंगे,जिन्हें वो रोग होगा आप केवल उन्हीं लोगों के बीच पॉपुलर हो सकते हैं, किंतु ज्योतिष पढ़कर तो आप सभी की जरूरत बन सकते हैं ,क्योंकि ज्योतिष की आवश्यकता तो सभी को सभी कामों के लिए पड़ती है | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए आप उपयोगी बन सकते हैं !यदि आप चाहते हैं कि आपको बहुत लोग जानें !आप बहुत लोगों के काम आवें और बहुत लोग आपका सम्मान करें तो आप ज्योतिष पढ़ें !
1.डॉक्टर तो रोग होने के विषय में रोगी होने के बाद बता पाते हैं ,जबकि ज्योतिषी तो रोग होने से पहले ही सावधान कर सकते हैं कि कब किसे किस प्रकार का रोग होने की संभावना है |यदि किसी को अपने स्वास्थ्य की चिंता लगी रहती है तो ज्योतिष के द्वारा पता लगाना संभव है कि कोई रोग होने वाला है भी या नहीं !बेकार में ही चिंता किए जा रहे हैं !
रोगी होने के बाद यदि आपको लगता है कि हम स्वस्थ होंगे या नहीं होंगे तो
कब यह चिंता आपको परेशान कर रही है तो ज्योतिष के द्वारा ऐसे प्रश्नों के
उत्तर खोजकर चिंता मुक्त हुआ जा सकता है |
तो आप पता लगा सकते हैं कि डॉक्टर आपको
यदि आपको स्वास्थ्य संबंधी चिंता है तो आपको जब रोग हो जाएगा तब पता लगेगा
कि आपको रोग हो गया,जबकि ज्योतिष से तो आप पहले ही पता कर सकते हैं कि
आपको किस समय कैसा रोग हो सकता है ?
जब स्वस्थ हो जाएँगे तब पता लगेगा कि आप स्वस्थ हो गए !
यदि आपने ज्योतिष वास्तव में पढ़ी हो !
लोग आपको भले ही नाम और रूप से पहचान लेते हों किंतु याद तो आपके स्वभाव एवं कर्मों के आधार पर रखते हैं
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान ! (RPS)
संस्थान के बारे में : राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान दिल्ली स्थित एक अनुसंधान संस्थान है |इसकी स्थापना वैसे तो सन 1992 में हो गई थी,किंतु पंजीकृत सन 2012 में हुआ था |हमारे संस्थान का उद्देश्य समस्यामुक्त सुखशांति युक्त स्वस्थ समाज का निर्माण करना है|इसी लक्ष्य को लेकर अनुसंधानकार्य किए जा रहे हैं | इसमें आयुर्वेद विज्ञान,स्वरविज्ञान,ज्योतिषविज्ञान,जीवजंतुविज्ञान एवं बनस्पतिविज्ञान के साथ साथ पृथ्वी से लेकर आकाश तक में हमेंशा होते रहने वाले प्रकृति परिवर्तनों का भी अध्ययन एवं अनुसंधान करना होता है |प्रकृति में वर्तमान समय में घटित हो रही कोई एक प्राकृतिक घटना भविष्य में घटित होने वाली किसी दूसरी घटना के विषय में सूचना दे रही होती है | इसलिए भावी अनुसंधानों के लिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का संग्रह करके रखना होता है | प्राचीन विज्ञान के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजने हेतु अनुसंधान किया जाता है | इसके साथ ही साथ आकस्मिक रूप घटित होने वाली भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए भी अनुसंधान कार्य किया जा रहा है | गणितविज्ञान के साथ ही साथ समय समय पर उभरने वाले प्राकृतिक संकेतों के आधार पर अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया जाता है कि भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं को टालना या इनके वेग को कम किया जाना संभव नहीं है|इसलिए ऐसी आपदाओं से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाकर रखने हेतु सफल अनुसंधान करने के लिए हमारा संस्थान कृत संकल्प है |
सही पूर्वानुमानों को खोजने के लिए किए जा रहे हैं अनुसंधान -
सृष्टि के प्रारंभिक काल की यदि कल्पना की जाए तो उस समय मनुष्य प्रकृति की प्रत्येक घटना से अपरिचित रहा होगा | उस समय उसे सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के आने जाने का क्रम एवं उनके रहने का समय प्रभाव आदि जब पता नहीं रहता रहा होगा | ऋतु संबंधी घटनाओं से परिचित न होने के कारण उस समय सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ भी किसी आपदा से कम नहीं लगती रही होंगी, अब वही सर्दी गर्मी आदि ऋतुएँ आती हैं अपना अपना प्रभाव भी छोड़ती हैं,लेकिन उनसे किसी को भय नहीं होता है ,क्योंकि लोगों को उनके आने के विषय में पहले से पता होता है |
इसी प्रकार से भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी जो घटनाएँ अचानक घटित हुई सी लगती हैं |उनमें नुक्सान भी अधिक होता है | इसीलिए उनसे हमेंशा डर लगा रहता है कि ऐसी घटनाएँ न जाने कब घटित होने लगें |यदि इनके घटित होने के विषय में पहले से पता लगाया जाना संभव हो जाए कि कब कौन घटना घटित होगी ,तो ऐसी घटनाओं के विषय में लोगों का डर तो बहुत कम हो ही जाएगा | इसके साथ ही ऐसी घटनाओं में जनधन की हानि भी बहुत कम होगी |
पूर्वानुमान पता लगते ही शुरू होगा समाधान !
सृष्टि के प्रारंभिक काल में पहले से जानकारी के अभाव में सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं लगती होंगी !ऋतुजनित ऐसी घटनाओं के समय में भी ऋतुओं का प्रभाव सहना बड़ा कठिन होता होगा | अधिक सर्दी गर्मी वर्षात से पीड़ित बहुत लोग रोगी होकर मृत्यु का शिकार हो जाते होंगे | सर्दी गर्मी वर्षात के आने जाने का क्रम एवं उनके रहने का समय प्रभाव आदि जबसे पता लगा तब से उन्हीं ऋतुओं के प्रभाव से लोग उस प्रकार से रोगी नहीं होते हैं | ऋतुओं के प्रभाव से बचाव की तैयारियाँ आगे से आगे करके रख लिया करते हैं |अब वही सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ आती हैं अपना अपना प्रभाव भी छोड़ती हैं,लेकिन उनसे किसी को भय इसलिए नहीं होता है ,क्योंकि लोगों को उनके आने के विषय में पहले से पता होता है | जिनसे बचाव की तैयारियाँ उन्होंने पहले से ही करके रख ली होती हैं | जिससे भीषण सर्दी ,गर्मी एवं वर्षा आदि के दुष्प्रभावों से यथा संभव बचाव हो जाता है |
ऐसे ही भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी जो घटनाओं
के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना यदि संभव हो जाए और उसी के अनुशार बचाव
के लिए पहले से तैयारियाँ करके रख ली जाएँ तो ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से भी
जनधन का उतना नुक्सान नहीं होगा जितना अभी होता है |
विज्ञान के अभाव में बढ़ती जा रही हैं समस्याएँ
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं से बचाव के लिए जो तैयारियाँ पहले से करके रखनी होती हैं या जो जो अग्रिम सावधानियाँ बरतनी होती हैं | ये सब करने के लिए ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से पूर्वानुमान पता होने की आवश्यकता होती है |
किसी भी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी ऐसे विज्ञान की आवश्यकता होती है | जिसके द्वारा भविष्य को देखना संभव हो | इसके बिना भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को देखा जाना कैसे संभव है |भविष्य में झाँकने ऐसा विज्ञान कोई विज्ञान ही नहीं है जिससे पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो |प्राचीन काल में गणित विज्ञान के द्वारा बहुत सारी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता था | उसी गणित विज्ञान एवं कुछ अन्य प्राकृतिकसंकेतों के आधार पर पूर्वानुमान लगाने के लिए हमारे यहॉंअनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं |
आवश्यक गणित का प्रबंध भी संस्थान में ही है !
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा -बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में गणितविज्ञान के द्वारा अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाया जाना यदि संभव भी हो जाए तो भी प्राचीन गणित विज्ञान के इतने सुयोग्य विद्वानों की बहुत कमी है |जो ऐसी सटीक गणित करने में सक्षम हों जिससे प्राकृतिक आपदाओं या घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो | संस्कृत और ज्योतिष की निरंतर उपेक्षा होने के कारण कोई अपने बच्चे को ऐसे विषय पढ़ाना ही नहीं चाहता है | ऐसी स्थिति में गणित ज्योतिष जैसे विषयों के विद्वान कहाँ से लाए जाएँ !संस्कृत विश्व विद्यालयों में ऐसे विषयों के अध्यापन के लिए नियुक्त शिक्षकों में से किसी के द्वारा कोई ऐसा अनुसंधान नहीं किया जा सका जिससे पिछले दस वर्षों में घटित हुई भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा -बाढ़ एवं महामारी जैसी किसी घटना के विषय में कोई पूर्वानुमान बताया जा सका हो |ऐसी स्थिति में वहाँ से पढ़लिखकर ऐसे गणितवैज्ञानिक कैसे तैयार किए जा सकते हैं जो भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा -बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर समाज की मदद करने में सक्षम होंगे |
ऐसी परिस्थिति में प्रकृत्तिक घटनाओं के विषय में सही सटीक पूर्वानुमान लगाने हेतु अनुसंधानों के लिए आवश्यक गणित संबंधी कार्य भी यथा संभव संस्थान में किए जा रहे हैं |इस गणित के आधार पर लगाए जा रहे पूर्वानुमान सही घटित हो रहे हैं |
प्राकृतिक आपदाओं पर अंकुश लगाया जाना संभव है क्या ?
प्राकृतिक आपदाएँ और मनुष्यजीवन की समस्याओं से संबंधित अनुसंधान -
जीवन को लेकर बहुत ऐसे प्रश्न उठते हैं जिनका उत्तर मिलना बहुत कठिन होता
है | ऐसे ही जीवन में बहुत सारी ऐसी समस्याएँ होती हैं जिनका समाधान निकाला
जाना बहुत कठिन होता है | मनुष्यजीवन को सुखी स्वस्थ सुख सुविधा युक्त समस्यामुक्त रखने का लक्ष्य
लेकर हमारे संस्थान में विविध प्रकार के अनुसंधान किए जा रहे हैं |
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के घटित होने में जो लोग घायल या रोगी होते हैं या जिनकी मृत्यु होती है |उनके साथ ऐसा होना ही होता है ,या प्रयत्न पूर्वक इनकी चपेट में आने से बचा भी जा सकता है | उनके घायल होने,रोगी होने या उनकी मृत्यु होने को मनुष्यकृत प्रयत्नों से टाला जाना कितना संभव है ! ऐसी घटनाओं में जिनकी मृत्यु होती है उस मृत्यु के लिए ऐसी घटनाएँ जिम्मेदार होती हैं या वह मनुष्य जिसकी मृत्यु हुई होती है अथवा उसकी मृत्यु का समय ही पूरा हो चुका होता है |यह पता करने के लिए भी हमारे यहॉं अनुसंधान किया जाता है |
जीवन में अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है |उन
समस्याओं का तनाव उस व्यक्ति को होना निश्चित होता है या प्रयत्न पूर्वक
उससे बचा भी जा सकता है ?ऐसे ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जिस लक्ष्य
की लालषा से प्रयत्न प्रारंभ किया जाता है | उसमें यदि सफलता नहीं मिलती है
तो तनाव होता ही है | ऐसे समय में उस व्यक्ति को तनाव मिलना ही
था या सफलता न मिलने के कारण तनाव मिला है !वह व्यक्ति यदि चाहता तो ऐसे
तनाव से बचा जाना संभव था क्या ?यह खोजने के लिए भी हमारे यहॉँ अनुसंधान
किए जाते हैं |
कुछ लोग अस्वस्थ होते हैं समय से चिकित्सा न मिल पाने के बाद उनकी मृत्यु हो जाती है | सामान्य रूप से इसका कारण समय से चिकित्सा न मिल पाने को माना जाता है,किंतु समय से चिकित्सा होने पर क्या मृत्यु को टालना संभव हो जाता ?ऐसे प्रश्नों के उत्तर भी अनुसंधान पूर्वक खोजे जा रहे हैं |
जीवन में बहुत लोगों के साथ संबंध बनाकर जीना पड़ता है समय समय पर कुछ संबंध बनते बिगड़ते रहते हैं | ऐसा होने का कारण क्या है |ऐसे संबंधों को बिगड़ने से रोका जा सकता है क्या या कि उन्हें बिगड़ना ही होता है |यह पता करने के लिए अनुसंधानों को आगे बढ़ाया जा रहा है !
संस्थान के उद्देश्य :
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसे संकटपूर्ण समय में समाज
को सुरक्षित बचाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है |इनमें में जन धन का नुक्सान बिल्कुल न हो या कम से कम हो, इसके लिए ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से पता लगाना आवश्यक
होता है | ऐसा किया जाना तभी संभव है जब भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं
के विषय में पहले से पता लगाने के लिए ऐसा कोई सक्षम भविष्यविज्ञान हो |
जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को पहले से देख लेने की कोई
वैज्ञानिक प्रक्रिया हो !हमारा लक्ष्य प्राचीन विज्ञान संबंधी अपने
अनुसंधानों के द्वारा उस वैज्ञानिक पद्धति को खोजना है जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना संभव हो सके |
संस्थान के कार्य :
विगत तीस वर्षों से संस्थान के तत्वावधान में भूकंप आँधीतूफ़ान चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसे
विषयों में जो अनुसंधान किए जाते रहे हैं | उनके द्वारा प्राप्त अनुभवों
के आधार पर ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाते रहे
हैं | उनमें से वर्षा होने के विषय में लगाए जाने वाले दीर्घावधि
मध्यावधि पूर्वानुमान प्रायः सही निकलने लगे हैं | चक्रवात आँधी तूफ़ान आदि
के विषय में भी लगाए गए पूर्वानुमान भी प्रायः सही होते देखे जा रहे हैं |ऐसी
सभी प्रकार के पूर्वानुमान प्रमाणित रूप से घटना घटित होने से काफी पहले
ही स्काईमेट, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग एवं पीएमओ की मेल पर भेजे दिए जाते रहे हैं |पीएमओ की मेल पर अभी भी भेजे जा रहे हैं जो साक्ष्य रूप में मेल पर विद्यमान हैं |
कोरोना महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में हमारे संस्थान के द्वारा लगाए
जाते रहे पूर्वानुमान संपूर्ण रूप से सही निकलते देखे गए हैं | महामारी का
विस्तार, प्रसारमाध्यम, अंतर्गम्यता आदि के विषय में लगाए गए अनुमान भी
सही निकले हैं | ये सभी पीएमओ की मेल पर अभी भी विद्यमान हैं |
भविष्य की कार्य योजना : भविष्य में भूकंप आँधीतूफ़ान चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसे विषयों में और अधिक गंभीरता से अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है|जिससे भूकंप जैसी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं को समझना तथा ऐसी घटनाओं के घटित होने के वास्तविक कारण खोजना एवं इनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो सके | वर्षा कहाँ होगी कितनी होगी इस विषय में और अभी स्पष्टता लाए जाने की आवश्यकता है |आँधीतूफ़ान चक्रवात आदि के विषय में अनुसंधानों के द्वारा स्थान पता लगाए जाने पर कार्य चल रहा है कि ऐसी घटनाएँ कब कहाँ से शुरू हो सकती हैं उस स्थान के विषय में पूर्वानुमान लगाए जाने की आवश्यकता है |
राजेश्वरीविद्यालय :
परतंत्रता के समय आक्रांताओं के द्वारा बहुत सारा साहित्य नष्टकर दिया गया था |इससे संबंधित विद्वानों की संख्या भी धीरे धीरे समाप्त होती चली गई | इस सबके बाद भी कुछ ऐसे विद्वान बच गए जो इसप्रकार के अनुसंधान करने में सक्षम थे,किंतु उन्होंने अपनी विद्या किसी को देना उचित नहीं समझा !उसे गुप्त रखते रखते अपने साथ लेते चले गए |अब बहुत कम ऐसे विद्वान बचे होंगे जो प्राचीन विज्ञान से संबंधित अनुसंधानों में मदद करने की क्षमता रखते होंगे !उन्हें खोजकर उनके ज्ञान विज्ञान को उनसे प्राप्त किया जाना बहुत बड़ा कार्य है |जिसे अत्यंत साधनापूर्वक किया जाना आवश्यक है | जहाँ कहीं से उस विद्या की छोटी सी चिंगारी भी मिल जाए उसे ही तपस्या पूर्वक आग के बहुत बड़े ढेर में बदलना है | यह बहुत बड़ी तपस्या का कार्य है जिसे अत्यंत समर्पण पूर्वक किया जाना है |
इतने बड़े कार्य को करने के लिए सुयोग्य समर्पित एवं तपस्वी विद्वानों की
आवश्यकता है | जिन्हें बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभानी होगी | उन्हें संस्थान
के द्वारा पहले से किए जा रहे अनुसंधानों को न केवल और अधिक विस्तार देना
है अपितु इसे भविष्य में सदियों तक चलाने के लिए उस प्रकार की अनुसंधान
सामग्री संग्रहीत करनी है |इसके लिए अनुसंधान में आवश्यक आयुर्वेद विज्ञान,स्वरविज्ञान,ज्योतिषविज्ञान,जीवजंतुविज्ञान एवं बनस्पतिविज्ञान के ऐसे सक्षम विद्वान तैयार करना है | जो गणित विज्ञान के द्वारा तो प्रकृति के स्वभाव को समझने में सक्षम हों ही इसके साथ ही साथ पृथ्वी से लेकर आकाश तक में हमेंशा
होते रहने वाले प्रकृति परिवर्तनों का भी अध्ययन एवं अनुसंधान करने में
सक्षम हों | इसकेसाथ ही शास्त्र में वर्णित प्रयोगों का प्रयोग पूर्वक
परीक्षण करने में सक्षम हों | ऐसे विद्वान तैयार करने के लिए राजेश्वरीविद्यालय की स्थापना करने का उद्देश्य है |
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान ! (RPS)
संस्थापक :आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
Ph.D. By B.H.U
पता : K-71,छाछी बिल्डिंग चौक,कृष्णानगर,दिल्ली-110051
मो. 9811226983 , मेल - RPS1965 @mail.com
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राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की स्थापना की आवश्यकता !
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की स्थापना की आवश्यकता !
प्राकृतिक आपदाओं से बचाव की दृष्टि से वैज्ञानिकअनुसंधानों की भूमिका क्या है ?
वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज की अपेक्षा !
भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिकआपदाएँ हों या महामारियाँ ये सब अचानक घटित होने लगती हैं |ऐसी आपदाएँ घटित होते ही तुरंत नुक्सान हो जाता है या फिर उसी समय नुक्सान होना प्रारंभ जाता है| जिससे जनधन की हानि जो होनी होती है वो हो ही जाती है |इसके तुरंत बाद आपदाप्रबंधन विभाग सारी जिम्मेदारी सँभाल ही लेता है |
ऐसी परिस्थिति में आपदाएँ घटित होने एवं नुक्सान होने के बीच में समय इतना नहीं मिल पाता है कि संभावित प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकें या बचाव के लिए आवश्यक सतर्कता बरती जा सके !
इसलिए आवश्यकता ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की है जिनके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले सरकार एवं समाज को यह जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटना कब घटित होने वाली है |जिससे घटना