Tuesday, 8 March 2016

महिलाओं की सुरक्षा के लिए अब महिलाएँ भी आगे आएँ और आधुनिक महिलाओं से पुरुषों की भी रक्षा का लें संकल्प !!

    अब स्त्री-पुरुषों,लड़के-लड़कियों को भी ऑड इवेन के हिसाब से घरों से निकलने दिया जाए जिस दिन महिलाएँ रोडों बाजारों के लिए निकलें उस दिन पुरुष दूर दूर तक दिखाई न पढ़ें इसी प्रकार पुरुषों के लिए भी नियम बनाए जाएँ !बंद हो जाएगी सारी  छेड़छाड़ ! पुरुष अपने आपसे किसी महिला को छुएँ न देखें न घूरें न कुछ बोलें न और महिलाओं को जो ठीक लगे सो सब कर सकती हैं महिलाएँ !ये कैसी बराबरी !!
     छोटी छोटी बच्चियों पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए करना होगा ये ....http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/10/blog-post_25.html
   प्यार का खतरनाक खेल खेलते दोनों हैं किंतु बात

बिगड़े तो दोषी पुरुष समाज !ये कैसी बराबरी !!किसी के पास कितनी है धन संपत्ति यह जानने के लिए पहले प्यार करें मन मिलाकर पूछ लें सबकुछ इसके बाद छेड़ छाड़ से लेकर बलात्कार तक का लगाकर आरोप भेज दें जेल समझौता हो तो अच्छा हो अन्यथा सड़े जेल में !बाद में दोषी बेचारा पुरुष समाज !प्यार का खेल दोनों ने खेला और भुगते केवल आदमी !अरे ये कैसी बराबरी ? 
    ससुराल वाले दहेज़ लें न लें उनके मातापिता बहू की कितनी भी प्रताड़ना सहें किंतु कुछ न कहें और यदि कभी कुछ मुख से निकल ही जाए आखिर मर मर कर जिसघर को बनाते हैं उसे बर्बाद होते कैसे देख सकते हैं किन्तु इतनी भी बात बर्दाश्त नहीं है तुरंत होता है दहेज़ का मुकदमा घर भर भेज दिए जाते हैं जेल!ऐसे बचेगा समाज !उचित तो ये है कि ऐसी महिलाओं से उन वृद्ध मातापिता की सुरक्षा के लिए क्यों न बनाए जाएँ कुछ कठोर नियम !ऐसी महिलाओं की असहनशीलता के कारण दिनोंदिन बुढ़ापा बोझ होता जा रहा है।जो घर में घरभर को दबाकर रखती हैं उन्हें बाहर सुरक्षा की जरूरत पड़ती होगी क्या ?सरकार ने भी तो सारे कानून महिलाओं के ही पक्ष में बना रखे हैं ये कोई नहीं सोच रहा आम समाज में सामान्यतौर पर गुजर बसर करने वाले उन परिवारों का क्या होगा जो महिलाओं की प्रताड़ना से नर्क बन चुके हैं आज !पुरुष हों या स्त्री अपने दायित्वों के प्रति जो समर्पित नहीं हैं वे सब दोषी !ऐसे हो सकती है बराबरी !दायित्व भ्रष्ट हर स्त्रीपुरुष का सामाजिक पारिवारिक बहिष्कार हो !
    समाज में मुश्किल से दस प्रतिशत लड़के लड़कियाँ पुरुष स्त्रियाँ आधुनिक खुलेपन की जिंदगी जीने के चक्कर में कर रहे हैं बड़ी बड़ी गलतियाँ !ये नशे से लेकर सारे दुष्कर्मों में एक दूसरे से बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं और बदनामी भुगत रहा है देश का सारा सभ्य समाज !जिसे इस आधुनिकता फैशनेबलनेस से कोई लेना देना ही नहीं है बच्चे पालने मुश्किल हो रहा है उसे !वो एय्याशी करेगा तो खाएगा क्या ? इन दस प्रतिशत फैशनेबल हाईटेक स्त्री पुरुषों ने प्यार आधुनिकता और फैशन के नाम पर बदनाम कर रखा है सारा समाज !        कानून के हिसाब से महिलाएँ सबकुछ कर सकती हैं बेचारे पुरुष नहीं कर सकते !कहने को है बराबरी किंतु हकीकत में बहुत बड़ा अंतर है। बात यदि बराबरी की है तो मैट्रो में दो कमरे महिलाओं के लिए आरक्षित हैं तो दो पुरुषों के लिए भी होने चाहिए किन्तु ऐसा होता तो नहीं है आखिर क्यों ?महिलाओं के लिए भी तो बननी चाहिए कोई आचार संहिता !ऐसा कब तक  चलेगा कि गलती करें महिलाएँ और फाँसी पर लटकाते रहा जाए पुरुषों को ! पुरुष इस समाज के अंग नहीं हैं क्या ?प्यार दोनों मिलकर करते हैं किंतु कोई दुर्घटना पुरुषों पर घटती है तो कोई बात नहीं महिलाओं पर घट जाए तो महिला सुरक्षा की बात उठने लगती है ।
    फाँसी जैसा कठोर कानून बनने के बाद इसके अलावा महिलाओं की सुरक्षा के लिए और क्या किया जाए !सभी पुरुषों को बदनाम करना ठीक नहीं है !पुरुष इस समाज में कैसे रहें ये महिलाएँ ही निर्णय कर दें।आम आदमी हो या आम महिलाएँ प्यार फैशन इस प्रकार के सारे लफड़ों से दूर हैं वे !  
     खजाने को चाहने वाले बहुत लोग होते हैं इसलिए वो बहुमूल्य होता है इसीलिए उसे छिपाकर रखना होता है अन्यथा उसकी सुरक्षा के लिए किससे किससे कैसे कैसे लड़ा जाएगा ! यदि किसी के पास कोई खजाना हो और नैतिक तथा कानूनी दृष्टि से वो उसका अपना हो किंतु यदि उसे एक स्थान से लेकर दूसरे स्थान पर पहुँचाना हो तो उसे लोग छिपाना क्यों चाहते हैं उसे ले जाने के लिए सिक्योरिटी की जरूरत क्यों पड़ती है और यदि कोई खजाना खोलकर केवल सरकारी सिक्योरिटी के बलपर ले जाना चाहे इसका मतलब क्या ये नहीं है कि वो खजाना स्वयं लुटवाना  चाहता है ।
     इसीप्रकार से महिलाओं के संपर्क में रहने से लेकर उन्हें छूने देखने आदि सभी प्रकार से महिलाओं से जुड़ने की इच्छा रखने वाले लोगों से महिलाओं को संपर्क सीमित क्यों नहीं रखने चाहिए !जो सरकारें शहरों की रोडों पर बिना स्पेशल सिक्योरिटी के बैंकों की कैस बैन नहीं भेजती हैं इसका मतलब महिलाओं को भी समझना चाहिए कि आम नागरिकों को मिली सिक्योरिटी पर सरकार स्वयं भरोसा नहीं करती है तो ऐसी सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे महिलाएँ अपने को सुरक्षित कैसे मानती हैं इसलिए उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए निजी तौर पर सतर्कता बरतना चाहिए !क्योंकि कामी पुरुषों के लिए महिलाएँ किसी खजाने से कम नहीं होती हैं । 
     पहले शरीर ढकने के लिए कपड़े पहने जाते थे अब शरीर दिखाने के लिए कपड़े पहने जाते हैं !आजकल मुख्य मुख्य जगहों पर कपड़े पहनकर उन्हें हाईलाईट करने का फैशन चला है इसीलिए कपड़े मुख्य मुख्य जगहों पर पहने जाते हैं तब आचार ब्यवहार संस्कार सृजन को ध्यान में रख कर कपड़ों का चयन किया जाता था उससे चरित्रवान संस्कारी समाज का निर्माण होता था अब फैशनेबल लोग बलात्कारी समाज तैयार कर रहे हैं वो रेप गैंगरेप सेक्स या मासिक धर्म जैसी चीजों को मन और शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया मानते हैं ऐसे इतने आधुनिक स्त्री पुरुषों को कोई रोके कैसे इससे भारत कहीं आधुनिकता की दौड़ में पिछड़ न जाए ! फैशन स्त्रियों का हो या पुरुषों का इसमें नया कुछ नहीं होता है बल्कि फैशन का उद्देश्य ही पुरानी परंपराओं की दीवार लाँघ कर खुला खुला जीवन जीना होता है ऐसी खुली विचार धारा के स्त्री पुरुष लड़के लड़कियाँ का पहनावे से लेकर रहन सहनबोली भाषा मिलना जुलना सब कुछ आधुनिक होता है।पुराने समय में लोग  किसी महिला के प्रति अपनी सेक्सुअल भावना व्यक्त नहीं कर सकते थे इस भावना से उन्हें छू भी नहीं सकते थे पूरा शरीर ढक कर रखना होता था श्रृंगार मर्यादा में रखना होता था संगीत मर्यादित होता था ये सब करने का उद्देश्य सादा सात्विक रहन सहन एवं संस्कारयुक्त चरित्रवान सादा  जीवन उच्च विचार बनाए रखना था किंतु जिसे पुरातन आचार ब्यवहार रहन सहन सब पसंद न हों वो आधुनिक फैशनेबल आदि कुछ भी कहे जा सकते हैं । ये आधुनिक लोग प्राचीन के बिलकुल बिलोम होते हैं आधुनिकों का  रहन सहन आचार ब्यवहार आदि सबकुछ प्राचीनता विरोधी होता है उस समय पूरे कपड़े पहने जाते थे अब आधे पहने जाते हैं पुराने रहन सहन में संस्कार सदाचार आदि सबकुछ होता था प्राचीन का बिलोम शब्द है आधुनिक , इसलिए पुरातन आचार ब्यवहार रहन सहन जिन्हें  पोंगापंथी लगने लगता है ऐसे आधुनिक फैशनेबल लोग जब अपनी जिंदगी का सबकुछ बदल लेंगे तो संस्कार सदाचार आदि कैसे बचा रहेगा !ये भी तो बलात्कार जैसी भ्रष्टता में बदल जाएगा ।
       प्यार करने वाली महिलाएँ हों या पुरुष सम्मिलित तो दोनों ही होते हैं प्यार कभी किसी का अकेले तो हो भी नहीं सकता है दूसरी बात प्यार के पथ पर धोखे भी सबसे अधिक मिलते हैं !प्यार करने वाले स्त्री पुरुष प्रायः शूनशान जगह खोजते हैं और अपराधियों को भी शूनशान जगहें या खाली बसें आदि सवारियाँ ही प्रिय होती हैं ।ऐसी जगहों पर प्रेमी जोड़े जाते ही इसलिए हैं कि वहाँ असामाजिक या अश्लील हरकतें कर सकें और वहाँ पहुँचकर वो करते ही यही सबकुछ हैं ये वो जगहें होती हैं जहाँ समाज का जाना आना कम हो और पुलिस की पहुँच भी कम हो ! एकांत में प्रेमी   की अश्लील हरकतों में रूचि ले रही प्रेमिका को पाकर नशेड़ी अपराधियों में बासना न जगे इसकी कल्पना कैसे कर ली जाए वो भी तब जबकि वो जानते हैं कि प्रेमी जोड़ा अकेले है जबकि अपराधी अक्सर अकेले नहीं होते हैं जो प्रेमी जोड़े ऐसी जगहें ताक कर ही जाते हैं और वहाँ यदि कोई अप्रिय वारदात होती है तो उनकी सुरक्षा समाज या पुलिस कैसे करे कहाँ कहाँ खोजे इन्हें ? और इसमें सारे पुरुष समाज का दोष कैसे ?
       कुछ ऐसी संस्थाएँ बनीं हैं जहाँ सेक्स सुविधाओं के लिए कुछ निश्चित अमाउंट लेकर लड़कियाँ उपलब्ध करवाई जाती हैं कुछ शरारती लड़के आपसी सहमति से खूबघनी एवं पिछड़ी बस्ती में आपसी कंट्रीब्यूशन में कुछ घंटों का किराया देकर एक कमरा लेते हैं उधर चार्ज जमा करके एक लड़की लाई जाती है किंतु उसे ये नहीं बताया जाता है कि लड़के पाँच हैं जिन्हें देखकर लड़की लड़ने लगी किंतु लड़े या कुछ भी करे अब जो होना था वो तो हुआ ही बाद में  लड़की रोड पर छोड़ आई गई जहाँ उसने गैंगरेप का पुलिस कम्प्लेन किया किंतु अब न वो लड़के उस कमरे में होंगे और न ही वो लड़की घनी बस्ती के उस मकान तक पहुँच ही सकती है बताओ ऐसी परिस्थिति में क्या करे पुलिस और महिला सुरक्षा के नाम पर सारे पुरुष समाज को क्यों कोसा जाए !
        मैट्रो में खड़ा प्रेमी प्रेमिका का एक जोड़ा उस भीड़ भरी जगह में एक दूसरे से अश्लील हरकतें कर रहा था लोग देख रहे थे किंतु उन दोनों को शर्म नहीं थी देखने वालों में तीन शरारती लड़के भी थे उन्होंने लड़की को एकदम रोमांटिक मूड में देखा वो ब्याकुल हो गए उन्होंने निश्चय किया कि जिस स्टेशन पर ये लड़की उतरेगी वहीँ हम भी उतरेंगे मेट्रो पास था ही तो यही किया और उस प्रेमी जोड़े का पीछा किया पास में ही एक ओबर ब्रिज था वहाँ  उन दोनों को पकड़ लिया प्रेमी को पीटा प्रेमिका रेप की शिकार हुई !दोषी सारा पुरुष समाज कैसे ?
     राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एक पार्क में मुझे पता लगा कि सौ सौ पचास पचास रूपए में लड़कियाँ उपलब्ध रहती हैं ये मुख्यजगह और मुख्यमार्किट का पार्क है जागरूक नागरिक होने के नाते मैंने वहाँ जाकर देखा तो अश्लील परिस्थिति में कई जोड़े मिले एक आध को डांटा और पुलिस बोलाने की धमकी दी तो वो कहने लगे बोला लीजिए क्या कर लेंगे वो हर सप्ताह के हिसाब से बीत वाले से पैसे बँधे हैं हमारे !मैं दूसरे कोने पर स्थित पार्क के चौकीदार के पास गया शिकायत करने तो उसे कमरे में एक प्रेमी जोड़ा लेटा रखा था पैग लग रहे थे तो मैंने चौकीदार को डाँटा कि तुम्हें यही सबकुछ करने के लिए कमरा मिला है तो उसने कहा पुलिस वाले भी तो यही करते हैं तब तक चैकीदार के पास एक फोन आया कि पार्क के इस कोने की लाइट बंद कर दे तो उसने हमसे कहा कि देखो पुलिस वाला लाइट बंद करवा रहा है अब वहाँ कुछ होगा उसने लाइट बंद कर दी मैंने सोचा मैं फिर जला  दूँ किंतु देखा तो तारों का सारा जाल था तो मैंने कहा ठीक क्यों नहीं कराते ये सब तो उसने कहा कि कोई सुनता ही नहीं है तो मैंने निगम पार्षद को फोन किया तो पता लगा कि परसों ही ठीक करवाया गया है चौकीदार ही ख़राब कर देता है जब हमने चौकीदार को डांटकर पूछा तो उसने बताया कि लाइट  बंद करने और  6-8  पार्क में गस्त न करने के लिए उसे सौ रूपए रोज मिलते हैं तो वो घर से कपड़े लाता है धोया करता है पार्क में !          इसके बाद उधर पहुँचे जहाँ की लाईट बंद करवाई गई थीं तो वहाँ एक लड़की को तीन लोग पीट रहे थे मैंने जाकर छोड़वाने का प्रयास किया तब तक दो पुलिस वाले आए वो हमें वहाँ से जाने के लिए कहने लगे उन्होंने हमें बताया कि ये यहाँ का रोज का काम है ये लड़की अपने प्रेमी से सेक्स कर रही थी उसी समय ये तीनों गूजर लड़के आ गए इन्होंने देख लिया है ये भी करना  चाह रहे हैं लड़की मान नहीं रही है इसलिए झगड़ा हो रहा है !तुम जाओ यहाँ से !
     मैंने सोचा सौ नंबर डायल कर दूँ तो मैंने कर दिया !उन दोनों पुलिस वालों ने प्रेमी जोड़ों को समझाया देख यदि आज एक पकड़ गया तो ये खेल रोज के लिए बंद हो जाएगा इसलिए सब लोग कह देना यहाँ ऐसी कोई बात ही नहीं हुई है वो सब मान गए !जब सौ नंबर वाले आए तो पुलिस वालों के सिखाए के अनुशार वे लड़कियाँ हम पर ऊट पटाँग गंदे आरोप लगाने लगीं और वो लड़के गवाही देने को तैयार उधर पार्क में आने जाने वाले लोग कुछ बोलने को तैयार न थे अंत में उन पुलिस वालों ने और प्रेमी जोड़ों ने आपसी एकजुटता दिखाते हुए हमें अपराधी सिद्धकर दिया !अंत में आज के बाद मैं पंगा नहीं लूँगा इस शर्त पर मुझे छोड़ा गया !
      प्यार के पथ पर रूचि लेने  वाली महिलाओं के आपसी संबंध पुरुषों से जब तक नार्मल रहते हैं तब तक तो वो दोनों प्रेमी प्रेमिका होते  हैं किंतु जिस दिन प्रेमिका किसी नए प्रेमी को पकड़ ले जिसमें प्रेमी की कोई गलती न हो फिर भी वो पुराना प्रेमी  घुट घुट कर मरता रहे या आत्म हत्या कर ले या वो प्रेमिका ही उसकी हत्या करवा दे !ऐसे किसी प्रकरण में केवल एक पुरुष की हत्या मानी जाती है किंतु ऐसी ही दुर्घटना का शिकार यदि कोई लड़की या महिला होती है तो महिलाओं पर अत्याचार मानकर सारे पुरुषों को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है क्यों ?
      महिलाएँ नौकरी पाने के लिए ,प्रमोशन के लिए ,पैसे के लिए ,राजनीति में कोई पद प्रतिष्ठा पाने लिए पीएचडी करते समय गाइड आदि लोगों से अपने काम बनाने के लिए कई बार शारीरिक समझौता करते देखी  जाती हैं जिससे कई महिलाओं को कई उन बड़े पदों पर आसीन देखा जा सकता है जिसके लायक वो नहीं होती हैं किंतु इन बातों के कहीं कोई प्रमाण नहीं होते हैं फिर भी समाज तो सबकुछ समझता है । ऐसे ही प्रकरणों में जब उनका वो लक्ष्य बाधित होता है जिसके लिए समझौता हुआ तब उड़ती हैं बलात्कार की अफवाहें और कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है सारा पुरुष समाज !

Saturday, 5 March 2016

कन्हैया या कंस ? नेता या छात्र ?आजादी या आतंक ?आखिर ये सब हो क्या रहा है !

     नेताओं और पत्रकारों के एक बड़े वर्ग में बढ़ती गिद्धवृत्ति चिंतनीय ! गिद्ध तो मुर्दों का मांस खाते थे किंतु  ये तो जीवितों पर झपटने लगे हैं !भीड़ देखकर नेताओं को कन्हैया में राजनैतिक स्वाद आने लगा है बड़े बड़े कद वाले पद लोलुप नेता कन्हैया को लपक लेने के लालच में अकारण उसकी प्रशंसा के पुल बाँधते  जा रहे हैं ऐसे राजनैतिक गिद्धों से खतरा है देश को ! उन्हें देश का अपमान अपमान नहीं दिख रहा है उन्हें केवल वोट दिख  रहे हैं !
   मोदी सरकार की निंदा करने वाले जिस किसी को भी खोज लाता है विपक्ष ! मीडिया उसी को बना देता है भविष्य का नेता !""कन्हैया भी  दलितों पिछड़ों के  शोषण के नाम पर हो सकता है कि नेता बन जाए !और बन  जाए तो अच्छा है किंतु ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि जिस सभा में "भारत तेरे टुकड़े होंगे" के नारे लगे कन्हैया उस सभा का अंग था या नहीं ,उस सभा में अध्यक्षत्वेन  कन्हैया का भाषण हुआ या नहीं !कन्हैया केवल कन्हैया नहीं था वो छात्रसंघ का अध्यक्ष भी था  आखिर उसकी ये जिम्मेदारी क्यों नहीं बनती थी कि उन राष्ट्र द्रोहियों का वहाँ विरोध किया जाता किंतु कन्हैया के ऐसा न करने के पीछे उसका डर था या समर्थन !           
     देश में स्थापित सरकारों को गालियाँ ,प्रतीकों का अपमान !नेताओं की निन्दाकरना ,प्रधानमन्त्री का उपहास उड़ाना ,दबे कुचले गरीब लोगों की हमदर्दी हथियाने जैसी हरकतें ठीक नहीं हैं !अक्सर नेता लोग ऐसे वायदे करके मुकर जाते हैं जनता ठगी सी खड़ी रहती है देखो केजरीवाल जी तमाम सादगी की बातें करके आज बिराज रहे हैं राजभवनों में ! सैलरी ली सुरक्षा ली सैलरी बढ़ा भी ली विज्ञापन के नाम पर सैकड़ों करोड़ खा गए इसके बाद भी सादगी की प्रतिमूर्ति बने घूम रहे हैं ये निर्लज्जता नहीं तो क्या है !
       इसी प्रकार से कुछ लोग सवर्णों को गालियाँ  देकर उन पर शोषण का आरोप लगाकर बड़े बड़े ओहदों पर पहुँच गए लोग !न कुछ लायक लोग नेता मंत्री आदि क्या क्या नहीं बन गए आजादी के बाद आज तक नेता बनने का सबसे पॉपुलर नुस्खा यही रहा है कि सवर्णों को गाली दो और राजनीति में घुस जाओ कई पार्टियों के नेताओं को अक्सर ऐसी हरकतें करते देखा जा सकता है !ऐसे  लोग ये सारे नाटक नौटंकी करके राजनीति में घुस जाते हैं दलितों पिछड़ों का नारा देकर सरकारों में घुस जाते  हैं इसके बाद ग़रीबों के हिस्से हथियाते जाते हैं !कुलमिलाकर नाम दलितों पिछड़ों का सम्पत्ति सारी  अपने नाम सारी सुख सुविधाएँ अपनी ! ऐसे ड्रामे अब बंद होने चाहिए !सवर्ण भी अपने पूर्वजों की निंदा सुनते सुनते अब तंग आ चुके हैं अब अवसर आ चुका है जब ऐसे दलितभक्त नेताओं की सम्पत्तियों की जाँच की माँग उठाई जाए और उन्हीं से पूछा  जाए कि उनकी आमदनी के स्रोत क्या हैं फिर समाज के सामने उन्हें और उनकी दलित भक्ति को बेनकाब किया जाए !
     जिस देश में संविधान सर्वोपरि है और यदि संविधान के दायरे में रहकर ही यदि कोई किसी की मदद करना चाह रहा है तो फिर लड़ना किससे कानून और संविधान पर भरोसा करते हुए सरकार प्रदत्त अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक तक पहुँचाए जाएँ ऐसी स्वयं सेवा की भावना समाज में पैदा करनी चाहिए सरकार की कानूनी  सहायता और समाज की स्वयं सेवा का सहयोग पाकर  दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं सबका  विकास किया जा सकता है इसके अलावा उस दिन और किस आजादी के नारे लग रहे थे !
      कन्हैया केवल नाम रख लेने से कोई कन्हैया नहीं हो जाता है उसके काम यदि ऐसे  हैं तो उनकी सराहना कैसे की जाए !देश समाज एवं मानवता की रक्षा के लिए आए थे कन्हैया जबकि कंस ने मानवता पर अत्याचार किया था JNU में उस दिन भी क्या राष्ट्र भक्ति की बातें हुई थीं जो भी भारत के टुकड़ों की बात करता है या देश के कानून के तहत किसी को जो भी सजा दी गई उस सजा के विरुद्ध नारे लगाता है ये देश के संविधान के विरुद्ध  बगावत नहीं तो क्या है !भारत माँ का कोई सपूत ये राष्ट्र विरोधी बातें कैसे सह सकता है वो भी छात्र नेता ही नहीं छात्रसंघ का अध्यक्ष भी हो उसने ऐसे लोगों का विरोध क्यों नहीं किया इसका मतलब इसे उन उपद्रवियों का समर्थन क्यों न माना जाए !वैसे भी कन्हैया कभी कायर या गद्दार नहीं हो सकता जो देश द्रोहियों के मुख से अपने देश के टुकड़े होने वाले नारे सुन कर सह जाए और जो सह जाए वो कन्हैया नहीं कंस हो सकता है !
      जो छात्र है वो नेता नहीं हो सकता और जो नेता है वो छात्र  नहीं हो सकता !क्योंकि नेतागिरी के पथ पर भटके हुए लोग पढ़ कहाँ पाते हैं शिक्षा एक  प्रकार की तपस्या है जो नेतागीरी के साथ नहीं की जा सकती इसलिए छात्र नेता शब्द स्वयं में छलावा है । 
    आजाद भारत का मतलब ही है संविधान प्रदत्त आजादी जो प्रत्येक व्यक्ति को मिलनी चाहिए ये उसका अधिकार है और अधिकारों के प्रति समाज को केवल इतना जागरूक करना है कि अपनी नागरिक आजादी से बंचित न रह जाए किंतु जिस तरह से उस दिन आजादी के नारे लग रहे थे वो संविधान प्रदत्त आजादी के यदि होते उसके लिए तो कानून के दरवाजे खुले थे यदि किसी को कहीं दिक्कत थी तो उसके लिए नारे लगाने के अलावा भी संवैधानिक परिधि में भी तमाम विकल्प थे किंतु वो वातावरण ही राष्ट्रभावना को चुनौती देने या उपहास उड़ाने जैसा था । 
        दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं  के शोषण के गीत गाकर कुछ लोग नेता बन सकते हैं और भी कुछ अयोग्य लोग योग्य स्थानों पर पहुँच सकते हैं कुछ छात्रवृत्ति के रूप में कुछ धन पा सकते हैं कुछ आटा दाल चावल चीनी आदि पा सकते हैं आरक्षण पाकर कुछ लोग उन स्थानों पर हो सकता है कि पहुँच जाएँ जिनके योग्य न होने के कारण उन्हें केवल अपमान ही झेलना पड़े किंतु इतना सब कुछ पाकर भी अपने हिस्से यदि अपमान ही आया तो पेट तो पशु भी भर लेते हैं केवल पेट भरने के लिए इतने सारे नाटक क्यों ?क्या हमारा लक्ष्य बंचित वर्गों में भी प्रतिभा निर्माण नहीं होना चाहिए आरक्षण  और सरकारी सुविधाओं का लालच देकर देश के सबसे बड़ी आवादी वाले वर्ग को विकलांग बनाकर आखिर कब तक रखा जाएगा !
       आज के सौ वर्ष पहले वाले लोग भी  दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं की रक्षा के ही गीत गाते स्वर्ग सिधार गए ,आजादी के बाद आजतक कानून की छत्र छाया में रहकर विकास करने का सम्पूर्ण अवसर मिला इसके बाद भी सुई वहीँ अटकी है सवर्णों ने शोषण किया था किंतु यदि सवर्णों के शोषण के कारण ये लोग पिछड़े होते तो इतने दिन तक सारी  सुविधाएँ पाकर ये पल्लवित हो सकते थे क्योंकि किसी सामान्य सवर्ण वर्ग के  व्यक्ति के साथ यदि कोई हादसा हो जाए जिससे वह बिलकुल कंगाल हो जाए उसके पास कुछ भी न बचा हो सरकार उसे किसी भी प्रकार की मदद न दे तो वो भूखों मर जाएगा क्या ? वह सवर्ण अपनी कर्म पूजा के बलपर यदि अपनी तरक्की कर सकता है तो दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं के शरीरों में ऐसी कौन सी कमजोरी है कि वो इस संघर्ष पथ को नहीं अपना सकते !उन्हें कौन रोकता है । 
        सवर्ण चाहें तो सवर्ण भी अपनी हर समस्या के समाधान के लिए सरकार के दरवाजे पर कटोरा लेकर खड़े हो सकते हैं हो सकता है कि सवर्ण मान कर सरकार उन्हें भीख न दे किंतु कटोरा तो नहीं ही फोड़ देगी इस भावना से सवर्ण लोग भी सरकारी दरवाजों पर जाकर झोली फैला सकते थे किंतु उसे खुश होकर सरकार जितना जो कुछ भी देती वो भीख होती और भीख केवल पेट भरने के लिए होती है क्योंकि भीख देने वाला न मरने देता है और न मोटा होने देता है केवल घुट घुटकर कर जीवन बिताने के लिए ज़िंदा बना रखता है और इस प्रकार से सरकारी कृपा पर जीने वाले लोग कभी स्वाभिमानी नहीं हो सकते !दूसरी बात ऐसे परिस्थिति में स्वदेश में तो अपनी सरकार है यहाँ तो अपने प्रति सरकार की हमदर्दी मिल भी सकती है किंतु विश्व के किसी अन्य देश में तो जो करेगा उसे मिलेगा अन्यथा घर बैठे वहाँ गुजारा कैसे होगा ! इसीलिए सवर्णों में भी गरीब वर्ग है किंतु वो सरकारी दरवाजे का भिखारी नहीं बना अपने सम्मान स्वाभिमान को बचा कर रखा है । 
      ये शोषण ये आरक्षण ये दबे कुचले दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं  के शोषण के गीत केवल अपने देश में ही गाए सुने जाते हैं बाकी विश्व तो अपने नागरिकों को संवैधानिक सुविधाएँ देता है और तरक्की के रास्ते पर छोड़ देता है और सब दौड़ने लगते हैं एक दूसरे के साथ कोई थोड़ा आगे चलता है कोई थोड़ा पीछे किन्तु  यहाँ की तरह ऐसा कभी नहीं होता है कि हर छोटी बड़ी बात के लिए सवर्णों पर शोषण के आरोप लगाकर अपने को पीछे कर लिया जाए !किंतु  आपकी तरक्की होने या न होने के लिए आप स्वयं जिम्मेदार हैं न कि सवर्ण !यदि किसी के घर बच्चा न पैदा हो तो दोष पड़ोसी पर कैसे  मढ़ दिया जाए ! ये कहाँ का न्याय है । दबे कुचले दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं आदि के हितैषी होने  दावा करने वाले लोग ऐसे ही फार्मूले उछालकर देश की आवादी के एक बहुत बड़े वर्ग को स्वाभिमान विहीन बनाते जा रहे हैं उचित तो ये है कि ऐसे जुमले उछालने वाले लोगों से समाज को बचाया जाना चाहिए ।
          जो जाति  समुदाय संप्रदाय या वर्गवाद के नाम पर विकास की बात करे वो ऐसी भेदभावना  से समाज को तोड़ तो सकता है किंतु जोड़ नहीं सकता ! विकास की कोई भी बात जब तक सबके लिए नहीं होगी तब तक कभी भी स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं कर सकती है । 
          बड़ी बड़ी रिस्क लेकर जो लोग दिन रात मेहनत करके अपने ब्यापार स्थापित करते  हैं  उस भयंकर संघर्ष में कई लोगों की तो कई कई पीढ़ियाँ खप जाती हैं ऐसे परिश्रमी लोगों के हिस्से से टैक्स रूप में धन लेकर सरकार देश एवं देशवासियों के विकास के लिए योजनाएँ चलाती है अन्यथा वो ब्यापारी वर्ग भी यदि कायरता करने लगे और कह दे कि सरकार हमारा शोषण करके सबको बाँट रही है तो जाओ हम भी नहीं कर सकते काम ,सरकार हमें भी भोजन वस्त्र उपलब्ध करवावे !आप स्वयं सोचिए कि आखिर सरकार कहाँ से लाएगी !इसलिए जो देश का कमाऊ वर्ग है उससे टैक्स लेना और वो टैक्स खाऊ वर्ग में बाँट देना और ऊपर से ये कहना कि इनके पूर्वजों ने हमारा शोषण किया था इसलिए हम पिछड़ गए !ये कितनी मूर्खता पूर्ण बात है हमें सच्चाई क्यों नहीं स्वीकार करनी चाहिए कि प्राचीन काल में सभी जातियाँ संख्या और सम्पत्तियों में बराबर थीं । सवर्णों ने अपना सारा ध्यान संपत्तियाँ बढ़ाने पर लगाया और जनसंख्या बढ़ने पर संयम रखा तो उनकी जन संख्या उतनी नहीं बढ़ी किंतु संपत्तियाँ बढ़ती गईं !दूसरी ओर दलितों पिछड़ों  ने संपत्तियाँ बढ़ाने का इरादा ही छोड़ दिया केवल जनसँख्या ही बढ़ाते चले गए तो सवर्णों के अनुपात में संपत्तियाँ तो घटनी ही थीं इन जनसँख्या बढ़ने में सवर्णों का क्या योगदान था आखिर उन्हें क्यों कोसा जा रहा है आज सवर्णों की संपत्तियां देखकर लालच बढ़ रहा है तो क्या करें सवर्ण ।



    

राहुलगाँधी जी को मोदी सरकार और RSS पसंद नहीं हैं किंतु मनमोहन सरकार इन्हें पसंद थी क्या ?तो फाड़ा क्यों था उनका पास किया हुआ बिल !

मनमोहन सिंह जी के शाप से 40 पर पहुँची पार्टी के युवराज जिन राहुलगाँधी जी से यदि दादरी के अखलाक या हैदराबाद के रोहित या JNU के कन्हैया मिलना चाहते तो राहुल उनसे मिलने का समय भी नहीं देते किंतु मोदी सरकार के द्वारा चलाए जा रहे विकास कार्यों को रोकने के लिए मारे मारे फिर रहे हैं अब !सबको पता था कि  इन्हें  अखलाक ,रोहित या JNU के कन्हैया से कोई लगाव नहीं है वहाँ केवल इसलिए जा रहे हैं कि दुखी लोगों के बीच बैठकर मोदी सरकार को कोसेंगे तो जनता शायद उन्हीं के बहाने इनकी भी बात सुने ! 
      ये राहुलगाँधी जी अपने परिवार के अलावा देश के किसी और व्यक्ति को PM बनते देख ही नहीं सकते ,दूसरे जितने भी लोग प्रधानमंत्री बने हैं वो इस खानदान को पसंद ही नहीं आए ऐसे लोगों  के लिए देश और देशवासी क्या करें !
       कोई व्यक्ति शादी न करे तो उसकी होने वाली पत्नी क्वाँरी तो नहीं बैठी रहेगी उसे कोई तो ले ही जाएगा !अब वो रोवे कि वो तो चली गई !ऐसे ही जिन्हें दो बार जनता ने बहुमत दिया किंतु जिम्मेदारी सँभालने की हिम्मत नहीं पड़ी डरते रहे तो जनता ने मोदी जी को सौंप दिया अब रोने धोने से क्या ?तो अब मोदी सरकार को अस्थिर करने के लिए कभी दादरी जाते हैं तो कभी हैदराबाद पहुँचते हैं कभी JNU जाते हैं कभी हरियाणा में वो करवा देते हैं उद्देश्य केवल इतना कि मोदी सरकार के विरुद्ध विद्रोह भड़के ! देशवासियों से आखिर किस जन्म का बदला ले रहे  हैं ये !
    ऐसे हैरान परेशान बेचैन एवं जनता के द्वारा सत्ता से बेदखल किए गए चारों ओर मारे मारे फिर रहे काँग्रेस के राजनैतिक युवराज का इलाज जब काँग्रेस नहीं कर सकी तो मोदी सरकार क्या करे !वो इन्हें सँभाले या देश का विकास करे !वैसे भी राहुलगाँधी जी का दिल जब  मनमोहन सरकार नहीं जीत सकी जो इन्हीं का मुख ताक ताक कर इन्हीं के रहमोकरम पर चल  रही थी !तो मोदी सरकार इन्हें कैसे और क्यों खुश करे !
     जिसे दूसरे का बना खाना पसंद न हो  वो खुद बना ले और जिसे खुद बनाना भी न आता हो वो अपने कर्म ठोके उसे दूसरा कोई कैसे और क्यों खुश करने में लगा रहे !ये हैं राहुल गांधी जी जिन्हें दो दो बार जनता ने बहुमत दिया किंतु प्रधानमंत्री बनने से डरते रहे तो दूसरे को बना दिया जिसे बनाया उसका काम पसंद नहीं आया अब मोदी सरकार के पीछे पड़े हैं आखिर ये चाहते क्या हैं कि देश के प्रधान मंत्री की कुर्सी इनकी प्रतीक्षा में खाली पड़ी रहे !
      राहुल जी को कोई काम करना आता नहीं है कोई करे तो उसका किया पहले तो समझ में नहीं आता है और यदि कोई इस मुशीबत को अपने गले डाल भी ले और उन्हें समझा भी दे कि इसका मतलब ये होता है तो फिर बारी आती  है इन्हें पसंद न आने की तो मनमोहन सिंह जी की तरह मोदी जी के पास इतना समय कहाँ है कि अपनी सरकार समेटे राहुल गाँधी जी के पीछे पीछे घूमे इन्हें मनाने की लिए और इन्हें मनाने में कहीं थोड़ी भी चूक रह जाए तो ये उनके नेतृत्व वाली सरकार के द्वारा सर्व सम्मति से पास किए गए बिल फाड़ देंगे वो भी मीडिया के सामने !इस प्रकार से दस वर्षों तक ब्लैकमेल करते रहे मनमोहन सरकार को !
   मनमोहन सिंह जी ने ये दुर्दशा दसवर्षों तक कैसे झेली होगी इसकी वास्तविकता तो वो और उनकी आत्मा ही जानती होगी किंतु अनुमान इससे तो लगाया ही जा सकता है कि विश्व में ऐसे बहुत नेता हुए हैं जो राजनीति में अक्सर हारते जीतते रहते हैं किंतु ऐसे नेता कितने हुए हैं जिन्होंने जिस पार्टी का नेतृत्व करते हुए दस वर्षों तक सरकार चलाई हो उस सरकार के द्वारा दस वर्षों तक के किए गए काम काज को लोकसभा चुनावों में सम्मान पूर्वक जनता के सामने रखने का समय आया उससमय क्या कारण था कि वो चुनावी कैम्पेन से न केवल बिलकुल गायब रहे अपितु उनके सामान पैक होने की ख़बरें मीडिया में आती रहीं जब जनता से आँख मिलाकर बात करने का समय था तब मुख छिपाकर बैठे रहे आखिर क्यों ? उस ईमानदार सीधे शालीन एवं बेदाग जीवन जीने की कामना वाले महापुरुष के लिए ये चुनावी अग्निपरीक्षा कोई मायने नहीं रखती थी रही हार जीत की बात वो तो चुनावों में चला करती है किंतु किसी भी युद्ध में जब युद्ध के नगाड़े बज चुके हों तब अपने सेना नायक की जरूरत सेना को सबसे अधिक होती है ऐसे समय सेना नायक ही यदि छिपकर बैठ जाए तो सेना का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होता है किंतु कोई भी सेना नायक कितना भी बलवान क्यों न हो वो तन की चोट तो झेल जाता है किंतु अपनों के द्वारा मन पर मारे गए हथौड़ों की चोट तो न कह पाता है और  न सह पाता है केवल कोसता रहता है अपनों के आघातों की चोट असह्य होती है । ऐसे लोग फिर केवल शाप देते हैं जो इतनी पुरानी पार्टी को चालीस सीटों पर सीमित कर के खड़ा कर देता है ।
    सारी  काँग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने जिस मंत्रिमंडल में बैठकर सर्व सम्मति से जिस बिल को पारित किया था वो यदि गलत था तो उन बड़ों से चर्चा की जा सकती थी उसे कैंसिल किया जा सकता था किंतु उसे फाड़ना वो भी मीडिया के सामने ये बीमारी नहीं तो क्या है और यदि ये बीमारी नहीं  माना जाए तो फिर इतने अयोग्य लोगों का मंत्रिमंडल बनाकर देश के साथ खिलवाड़ किया क्यों गया था जिन्हें कुछ आता ही नहीं था । 
      

Friday, 4 March 2016

काँग्रेस और केजरीवाल केंद्र सरकार के विरुद्ध विद्रोह भड़काने के लिए रख रहे हैं कन्हैया के कंधे पर बंदूक !

    JNU ही नहीं देश के सभी शिक्षण संस्थानों के गौरव की रक्षा के लिए भारत वर्ष का बच्चा बच्चा  बलिदान होने को तैयार है किंतु आतंकवादियों उपद्रवियों और आतताइयों के द्वारा आतंक के अड्डे नहीं बनाने दिए जाएँगे शिक्षण संस्थान !
  "भारत तेरे टुकड़े होंगे"ये भी कुछ नेताओं को पसंद आ गया ऐसे नेताओं के समर्थन में वो बेचारे न केवल JNUपहुँच गए अपितु कन्हैया कन्हैया करते घूम रहे हैं कन्हैया  के पीछे पीछे कि कन्हैया घबड़ाकर कहीं इन मोदी द्रोहियों की पोल न खोल दे !
      हे केजरीवाल जी ! हे राहुलगाँधी जी "भारत तेरे टुकड़े होंगे" क्या ऐसे वाक्य  JNU में उस दिन नहीं बोले गए !क्या देश भक्त छात्रों और छात्र नेताओं को ऐसा बोलने वाले  लोगों पर लगाम नहीं लगानी चाहिए थी क्या देश को इस विश्व विद्यालय के अध्यक्ष से इतनी उम्मींद भी नहीं करनी चाहिए और यदि ऐसा करने वालों पर लगाम नहीं लगा पाए तो विरोध करते दिखाई तो पढ़ ही सकते थे ये उन्हें रोक नहीं सकते थे तो क्या ऐसे राष्ट्र द्रोही नारों का विरोध भी उसी सभा में नहीं किया जा सकता था। किसी भी वीडियो में देश के टुकड़े होंगे इस जहर वाक्य का विरोध होते क्यों नहीं दिखाई दे रहा है ।      
     किसी भी वीडियो में "भारत तेरे टुकड़े होंगे" इस जहर वाक्य का विरोध होते क्यों नहीं दिखाई दे रहा है !क्या उस समय उस सभा में भारत माता के प्रति समर्पित ऐसा कोई सपूत नहीं था कि जिसे ये नारे बुरे लग रहे हों !क्या वो पूरी सभा ही राष्ट्र द्रोहियों की थी ?क्या ऐसे वाक्यों का उद्घोष करने के लिए ही सुनियोजित तरीके से ऐसी सभाओं का संयोजन किया जा रहा है क्या केंद्र सरकार के विरुद्ध विद्रोह भड़काने के लिए देश की राष्ट्रीय  पार्टियाँ  अपनी नैतिकता इस स्तर तक खो चुकी हैं कि उन्हें अब देश से भी मोह नहीं रह गया है यदि ये नहीं तो ऐसे उपद्रवियों का  हौसला बढ़ाने के पीछे इनके इरादे क्या क्या हो सकते हैं और ये फैले कहाँ तक हैं ये तो जाँच का विषय होना चाहिए ! 
  "भारत तेरे टुकड़े होंगे" ऐसे नारे लगाने यदि अपराध है तो अक्सर अधिकाँश अपराधी पहले अपनी राजनैतिक पकड़ मजबूत करते हैं बाद में करते हैं अपराध !ताकि अपराधियों पर कार्यवाही होते समय उनके राजनैतिक आका लोग आगे आकर उनके समर्थन में मोर्चा सँभाल लें ! यदि ये बात सच है तो JNU कांडमें देश द्रोहियों के आका कौन हैं ?यदि वो आका सम्मिलित न होते तो  "भारत तेरे टुकड़े होंगे" ऐसे जहरीले वाक्य बोलने वालों के विरुद्ध कानून यदि अपना काम कर रहा है तो वो नेता टाँग फँसाने का प्रयास क्यों कर रहे हैं !
    हरियाणा में छिड़े आरक्षण नाम के आंदोलन में सम्मिलित बलात्कारी जिस पार्टी के राजनेताओं के गुर्गे थे  JNU कांड भी क्या इन्हीं लोगों ने करवाया है और आज अक्सर वहाँ हाजिरी इसीलिए दे रहे हैं कि भयबश कन्हैया कहीं इनका नाम न कबूल दे इसलिए रटे जा रहे हैं कन्हैया कन्हैया ! इस सभा के आयोजन के लिए वही लोग और वही भावना जिम्मेदार है क्या ?जिन्होंने हरियाणा में आरक्षण आंदोलन के नाम पर किए हैं बलात्कार !अरे देशद्रोही नेताओ ! नरेंद्र मोदी से राजनैतिक बैर निकालने के लिए शिक्षण संस्थानों और छात्रों का दुरुपयोग किया जाना ठीक है क्या ?इतनी नीचता पर उतर जाओगे तुम ये हरोसा नहीं था !       

केजरीवाल जी और काँग्रेस में मुख्य विपक्षी दिखने के लिए चल रहा है कठिन कंपटीशन ! जिसका लाभ लेने के लिए बनाई जाती हैं JNU ,दादरी और  हैदराबाद जैसी परिस्थितियाँ !
      JNU हो या दादरी या फिर हैदराबाद वहाँ वो गए तो वो भी चले गए उन्होंने जाकर मोदी जी की निंदा की तो उन्होंने भी वहीँ पहुँच कर मोदी जी की निंदा की !वस्तुतः ये लोग JNU जाएँ या दादरी या फिर हैदराबाद इन्हें वहाँ घटी घटनाओं या पीड़ित लोगों की संवेदनाओं से कोई लेना देना नहीं होता है और न ही उन घटनाओं के विषय में कोई होमवर्क ही किया होता है बस वहाँ पहुँचते हैं मोदी जी की निंदा करते हैं चले आते हैं काँग्रेस हों या केजरीवाल ये दोनों आपस में एक दूसरे की निंदा नहीं करते क्योंकि राजनीति में निंदा उसकी की जाती है जिसका कोई वजूद हो और जिसका वजूद ही न हो उससे टकराने से मिलेगा क्या ?इसका सीधा सा अर्थ है कि इन दोनों के मन में एक दूसरे का कोई वजूद ही नहीं है वजूद मोदी जी का है तो उन्हीं के पीछे पड़े रहते हैं दोनों !एक सतर्क शिकारी की तरह मुद्दे लूट लेने की बेचैनी इन दोनों के बयानों से साफ झलकती है उसमें समाजहित  कहीं दूर दूर तक नहीं झलकता है !काँग्रेस हों या केजरीवाल ये दोनों बुराई मोदी जी की भले करें किंतु नुक्सान एक दूसरे का ही करते हैं !क्योंकि देश की सरकार 2019 तक के लिए स्थिर है किंतु मुख्य विपक्ष बनने के लिए दोनों कर रहे हैं मारा मारी !    
                काँग्रेस और केजरी वाल
   काँग्रेस ने जब जब जिसे जिसे समर्थन दिया उसे पक्ष विपक्ष दोनों ही भूमिकाओं से हमेंशा हमेंशा के लिए मुक्त कर दिया वो उसके बाद किसी लायक नहीं रहा - श्री चौधरी चरण सिंह जी,श्री चन्द्र शेखर जी, श्री देवगौड़ा जी ,श्री इंद्र कुमार गुजराल जी काँग्रेस के समर्थन से ही प्रधान मंत्री बने थे । श्री देवगौड़ा जी की जगह श्री इंद्र कुमार गुजराल जी को कैसे बनाया गया था प्रधान मंत्री सबने देखा है ?जब संयुक्त मोर्चा की सरकार का केवल सिर बदला गया था !उसी काँग्रेस की कृपा से पहली बार मुख्यमंत्री बने थे  केजरीवाल !
    काँग्रेस जिसे  समर्थन देती है वह चाहे अनचाहे उसका ग्रास बन ही जाता है काँग्रेस किसी दल के साथ कितना भी बुरा बर्ताव क्यों न करे किन्तु जब वह धर्म निरपेक्षता की मौहर बजाने लगती है तब बड़े बड़े मणियारे  बिषैले राजनैतिक दल फन फैला फैला कर नाचते नजर आते हैं!        
       सम्भवतः इसीलिए आम आदमी पार्टी को काँग्रेस जैसे जैसे समर्थन, सुविधाएँ एवं समाधान देती जा रही थी वैसे वैसे केजरी वाल न केवल अपनी शर्तें एवं शंकाएँ बढ़ाते जा रहे थे अपितु पैर एवं दायरा भी फैलाते जा रहे थे ।
      रामायण में एक प्रसंग आता है कि जब हनुमान जी लंका की ओर बढ़ रहे थे  उसी समय सर्पों की माता सुरसा आती है और हनुमान जी को अपने मुख में रखना चाहती है हनुमान जी जैसे जैसे अपना शरीर बढ़ाते हैं वैसे वैसे सुरसा अपना मुख बढ़ाते जाती है ।वही हालात आज दिल्ली की राजनीति में पैदा हो गए हैं काँग्रेस जैसे जैसे केजरीवाल का साथ देने और शर्तें मानने की घोषणा करती चली जा रही थी अरविन्द  केजरीवाल जी वैसे वैसे अपनी शर्तों का पिटारा खोलते  चले जा रहे थे ।
      वैसे मेरा व्यक्तिगत अनुमान है कि जब तक मोदी जी की सरकार केंद्र में रहेगी तब तक काँग्रेस और केजरीवाल जी ऐसे मुद्दे तैयार करते ही रहेंगे जिससे एक दूसरे को अपने से पीछे कर के अपने को फ्रंट पर दिखाया  सके !वैसे दिल्ली में काँग्रेस हार भले गई  हो किंतु केजरीवाल जी की उछलकूद कितने दिन चलने देगी वो !                                                                                                                                                                   जस जस सुरसा बदन बढ़ावा । 
            तासु  दून कपि रूप दिखावा ॥ 
            शत जोजन तेहि आनन कीन्हा।
           अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥  

 इसी विषय में पढ़ें हमारा ये लेख भी -

    भारतमाता आनाथ है क्या ? क्यों सह जाएँ देश भक्त लोग देश विरोधी हरकतों को ? ऐसा करने के पीछे उनकी मजबूरी क्या थी ?भारत में भारतविरोधी नारे लगाए जाएँ और भारतमाता के वीर सपूत सह जाएँ  ऐसा कैसे हो सकता है !ऐसे पापियों का मुख नोच लेंगे ! see  more...http://samayvigyan.blogspot.in/2016/02/see-more-at-httpwww.html

Wednesday, 2 March 2016

शिक्षा नहीं तो शिक्षामंत्री का क्याकाम ?क्या करते हैं उनके अधिकारी कर्मचारी और सैलरी किस बात की ?

    सरकार नहीं सरकारों के बाप को चुनौती !सरकार के पुरखे भी उतर आवें और शिक्षा का बजट चाहें जितना बढ़ा लें किंतु सरकारी शिक्षकों से वो पढ़वा नहीं सकते  !शिक्षा व्यवस्था की हालत इतनी अधिक ख़राब है !तभी समाज में बढ़ रहे हैं अपराध !छात्र लोग संस्कार सीखें आखिर किससे ?
   ये  कलियुगी शिक्षक झूठ बोलते बोलते इतने एक्सपर्ट हो चुके हैं कि स्कूल न जाने या कक्षा में न पहुँचने एवं बच्चों को न पढ़ाने के इतने बहाने होते हैं इनके पास कि सरकारें उसका तोड़ नहीं निकाल सकती हैंपढ़ाने में फिसड्डी शिक्षकों की अपनी यूनियनें हैं हड़ताल करने की पावर है बेतन बढ़वाने की बुद्धि होती है केवल पढ़ाने के लिए बीमार दुखी हैरान परेशान होती है ये प्रजाति !खरोंच को चोट और जुकाम को बीमारी बताकर ले लेते हैं छुट्टी क्या जाता है इनके बाप का !भरें भुगतेंगे बच्चे और उनके माँ बाप जिन्होंने सरकारी स्कूलों में पढने के लिए भेजे हैं अपने बच्चे !
  वस्तुतः सरकारी स्कूल अनाथ होते हैं प्राइवेटस्कूलों की तरह इनका भी कोई मालिक होता तो  अपने स्कूल की प्रतिष्ठा बनाने के लिए मर मिटता किंतु अभागे सरकारी इस्कूलों का ऐसा सौभाग्य कहाँ कि इन्हें भी कोई अपना मानता !प्राइवेटस्कूलों की तरह इनका भी कोई मालिक होता तो इन सरकारी शिक्षकों से कम सैलरी देकर इनसे अच्छी शिक्षा मुहैया करा देता बच्चों को और जीत लेता जनता के दिल !उसके पास न कोई अधिकारी होते हैं और न ही शिक्षकों को गैर जिम्मेदार बनाने वाली ट्रेनिंगें  !केवल स्कूल के प्रति अपनापन होता है इसी भावना से चला लेता है स्कूल जबकि सरकारी शिक्षा व्यवस्था पराए हाथों में है इसलिए जनता ठोंक रही है अपने करम !
     सरकारी स्कूलों में केवल पढ़ाई नहीं होती बाक़ी खाना पूर्ति सारी  होती है !प्राइवेट की अपेक्षा कई गुना ज्यादा सैलरी दी जाती है कापी किताबें दी जाती हैं आफिसों के बाहर नैतिक वाक्यों के कुछ बोर्ड लगा दिए जाते हैं  समय से स्कूल खोलने बंद करने वाले होते हैं कमरे कुर्सी बेंच और उससे सम्बंधित जो भी खर्चे हैं वो सब समय से केवल इसलिए होते हैं क्योंकि उसमें अप्रत्यक्ष रूप से जनता का धन लग रहा होता है किंतु जब बारी आती है शिक्षा व्यवस्था की तब साँप सूँघ जाता है !इतनी निर्लज्जता !शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी तो मिलेगी सैलरी अन्यथा कट जाएगी यदि ऐसी शर्त होती तो  भी क्या नहीं होती पढ़ाई !सरकारी स्कूल इन मंत्रियों अधिकारियों के यदि अपने होते और अपनी जेब से देनी पड़ रही होती सैलरी तो भी क्या होती इतनी ही लापरवाही !अधिकारी मंत्री स्कूलों में झाँकने तक नहीं जाते ऐसे होती है पढ़ाई !कोई फाउंटेनपेन कितना भी अच्छा हो केवल उसके निप का प्वॉइंट ख़राब हो तो उस पेन की सुंदरता से क्या लेना देना!इसी प्रकार से सरकारों में भारी भरकम शिक्षा मंत्रालय हो या शिक्षा व्यवस्था पर बोझ बने वहाँ के अधिकारी कर्मचारियों का सारा ताम झाम !इस नाटक नौटंकी का अर्थ क्या है यदि शिक्षा की जिम्मेदारी कोई निभाने को तैयार ही नहीं है । आफिसों में बैठकर केवल मीटिंगें करने और रजिस्टर रँगने के लिए ही क्या खोले गए  हैं सरकारी स्कूल !स्कूलों की आफिसों में घुसे शिक्षक शिक्षिकाएँ केवल पंचायत करते रहते हैं !
    सरकार इतना खर्च करती है किंतु क्यों नहीं लगाती है स्कूलों में कैमरे !कम से कम सरकारों को अपने काम की औकात तो पता लगे कि कितने काबिल होते हैं ये लोग !मीडिया वालों के सामने शिक्षा सुधार के नाम पर गाल बजाने वाले अकर्मण्य लोग कितने बार जाते हैं स्कूलों में कब अभिभावकों से पूछते हैं उनकी परेशानियाँ !कब मिलते हैं बच्चों से !    
   सरकार नहीं सरकारों के बाप को चुनौती !सरकार के पुरखे भी उतर आवें और शिक्षा का बजट चाहें जितना बढ़ा लें किंतु सरकारी शिक्षकों से वो पढ़वा नहीं सकते  !ये  कलियुगी शिक्षक झूठ बोलते बोलते इतने एक्सपर्ट हो चुके हैं कि स्कूल न जाने या कक्षा में न पहुँचने एवं बच्चों को न पढ़ाने के इतने बहाने होते हैं इनके पास कि सरकारें उसका तोड़ नहीं निकाल सकती हैं और सरकारें निकालें भी क्यों वो  अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाते ही नहीं हैं केवल गरीबों के बच्चे बर्बाद करने के लिए चलाए जा रहे हैं सरकारी स्कूल !इन शिक्षकों की कामचोरी,मक्कारी  और झूठ बोलने के कुसंस्कार बच्चों में यदि थोड़े भी आ गए यह सोच कर सिहर उठता है मन !फिर वो बच्चे मेहनत करके तो नहीं ही कमा खा सकते हैं !कल्पना कीजिए कि यदि वो बच्चे किसी सरकारी स्कूल में शिक्षक न बन पाए तो क्या होगा उनका !ऐसे बच्चे या तो भूखों मरेंगे या अपराध करेंगे और बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाना जब आज इतना कठिन हो रहा है तो आगे क्या होगा !भगवान बचाए ऐसे शिक्षकों से देश और समाज को !
    अधिकांश एम.सी.डी. व  सरकारी प्राथमिक स्कूलों में प्रातः आठ से साढ़े आठ  बजे के बीच शिक्षक लोग स्कूल पहुँचते हैं, नौ से सवा नौ  बजे तक वो एक दूसरे के हाल चाल लेते हैं इसके बाद लंच हो जाता है जो साढ़े दस बजे तक चलता है, इसके बाद सप्ताह में कम से कम एक एक दिन एक एक शिक्षक बीमार होता ही रहता है, एक शिक्षक को जरूरी काम लगा करता है ,किसी किसी को दवा लेने जरूरी जाना होता है।  एक शिक्षक के विशाल सर्कल में किसी न किसी  के साथ कोई न कोई दुर्घटना घटती रहती है, इसलिए उसे स्कूल समय में ही वहाँ देखने जाना जरूरी होता है, एक शिक्षक को स्कूली काम से जरूरी कहीं जाना पड़ा करता है, एक शिक्षक को आवश्यक मीटिंग में जाना ही होता है । किसी किसी को अपने बच्चे के बर्थ डे  की तैयारी करनी होती है, किसी के यहाँ गेस्ट आ रहे होते हैं ऐसी सभी समस्याओं के बीच अभिभावकों को पहले से ही कहा गया होता है कि छुट्टी के पाँच मिनट बाद भी आपके बच्चे की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी इस वाक्य से भयभीत बिचारे अभिभावक अपने बच्चे को लेने के लिए छुट्टी से आधा एक घंटा पहले ही स्कूल आने लगते हैं और ले जाने लगते हैं अपने अपने बच्चे! इस प्रकार से एम.सी.डी. व  सरकारी स्कूलों में छुट्टी होने से पहले ही हो जाती है  छुट्टी !  
       एम.सी.डी. वा सरकारी स्कूलों में जिन बच्चों को पढ़ाने के नाम पर चालीस पचास हजार सैलरी लेने वाले एम.सी.डी. व  सरकारी स्कूलों  के शिक्षकों से लेकर मोटी मोटी सैलरी लेने वाले अधिकारी तक अपने बच्चों को उन प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने में गर्व करते हैं जहाँ दस पाँच हजार रूपए महीने की सैलरी लेने वाले प्राइवेट स्कूलों वाले शिक्षक पढ़ा रहे होते हैं  कितना आश्चर्य है !
     पढ़ाई के नाम पर बहुत सारी योजनाएँ बनती बिलीन होती रहती हैं विज्ञापनों पर खूब खर्च किया जाता है, शिक्षा के लिए बड़े बड़े उत्सव धूम धाम से मनाए जाते हैं, शिक्षा की तरक्की के  नाम पर  झूठ बोलवाने वा  झूठे झूठे सपने दिखाने  के लिए अच्छे अच्छे कपड़े पहना पहना कर अच्छे अच्छे लोग बोलाए जाते हैं, उनके साथ चिपक चिपक कर चित्र खिंचा खिंचा कर आफिस में लगाए लटकाए जाते हैं ! स्कूल की दीवारों पर स्वास्थ्य रक्षक प्रेरणा देने वाले वाक्य लिखे या लिखवाए गए होते हैं किन्तु जिन बच्चों के भविष्य सुधारने के लिए ये सब किया जा रहा होता है बेचारे उन बच्चों को पता तक  नहीं होता है कि उनके भविष्य को सुधारने के लिए ये सब किया जा रहा है उन्हें आभाष ही नहीं कराया जाता है कि उनकी चिंता भी किसी को है ! एम.सी.डी. व  सरकारी स्कूलों का सम्मान समाज में आज इतना अधिक गिर चुका है कि जो माता पिता अपने बच्चों को यहाँ पढ़ाते हैं वे इतनी हीन भावना से ग्रस्त होते हैं कि उनमें इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो अपने बच्चे के शिक्षक से बात कर सकें ?वो और दस बातें सुना देंगे ! जब ये स्थिति राष्ट्रीय राजधानी  की है तो सारे देश के दूर दराज क्षेत्रों का हाल क्या होगा!
       यदि ऐसी शिक्षा व्यवस्था को सुधारने में आप भी कोई जिम्मेदारी निभा सकते हैं तो अवश्य निभाइए यह सबसे पवित्र कार्य होगा क्योंकि बच्चे देश का भविष्य होते हैं देश का भविष्य बिगड़ने मत दीजिए।  गरीब लोग एक बार भोजन कर के रह लेंगे पुराने धुराने आधे अधूरे कपड़े  पहन कर रह लेंगे अपने बच्चे रख लेंगे और समाज की उपेक्षा अपमान सह लेंगे किन्तु एक आशा पर कि उनके बच्चों का भविष्य सुधर जाएगा कभी तो हो पाएँगे इस समाज में सम्मान पूर्वक सर उठाकर चलने लायक !
       अरे!  सम्माननीय शिक्षकों ,अधिकारियों, काँग्रेसियों,भाजपाइयों सहित सभी पार्टियों के नेताओं,सभी अखवारों टी. वी.चैनलों के सम्माननीय पत्रकार बंधुओं समेत इस विश्व गुरु भारत के सभी प्रबुद्ध नागरिकों आप सबसे प्रार्थना है याचना है कि बचा लीजिए गरीबों के बच्चों का भविष्य ! ये वर्त्तमान समाज पर आपका बहुत बड़ा उपकार होगा!
      बलात्कार भ्रष्टाचार आदि अपराधों पर नियंत्रण  करने के लिए बहुत आवश्यक है कि सुधरें शिक्षा और संस्कार !सरकार के साथ साथ शिक्षा सुधार हम सबका भी कर्तव्य है ।अतः  आप सबसे भी  प्रार्थना है कि अपने अत्यंत व्यस्त समय में से थोड़ा  सा समय निकालकर एक बार जरूर देख लिया कीजिए कि आपके पड़ोस के स्कूल पढ़ाई में लापरवाही तो नहीं हो रही है इतनी जिम्मेदारी आप भी निभाइए !अन्यथा -
"जो तटस्थ हैं  समय लिखेगा उनका भी इतिहास"
                                                                                                    निवेदक -
              डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
  संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान

Tuesday, 1 March 2016

Shiksha

  1. सरकारी शिक्षकों का  बहुत बड़ा वर्ग वर्तमान समय में अपने कर्तव्य से भटक चुका है स्कूल न जाने, कक्षा में न पहुँचने या बच्चों को न पढ़ाने के लिए बहाने खोजा  करता है।अधिकाँश शिक्षकों में पढ़ाने संबंधी रूचि ही नहीं रही और न ही बच्चों के भविष्य से ही कोई लगाव दिखता है अपनी कर्तव्यभ्रष्टता पर उन्हें कोई पछतावा भी नहीं दिखता है किसी से कोई भय तो है ही नहीं !अभिभावकों को तो कुछ समझते ही नहीं हैं ,जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों के पास समय कहाँ है जो देखें फिर वो भी सरकारी कर्मचारी ठहरे !वैसे भी शिक्षकों के न पढ़ाने से उनका अपना नुक्सान क्या है उन्हें कोरम भर के भेजना होता होगा भेज देते होंगे! कुलमिलाकर शिक्षक हों या अधिकारी वो और कुछ भी करते हों किंतु बच्चों को अच्छी शिक्षा देने दिलाने में वे भूमिका शून्य हैं जब शिक्षा ही नहीं तो भूमिका कैसी !जरा जरा से जुकाम जैसी बीमारी और खरोंच लग जाने जैसी चोट  पर छुट्टी ले लेने वाले बहानेबाज शिक्षकों के छात्र भविष्य में परिश्रम करेंगे क्या ?ऐसी परिस्थिति में इन स्कूलों से पढ़े बच्चे यदि सरकारी शिक्षक न बन सके तो ये करेंगे क्या ?भूखों मरेंगे या फिर अपराध करेंगे ! सरकार निकट भविष्य में शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे क्या कुछ कदम उठा रही है जिससे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे कुछ बन न सकें तो न सही  कम से कम बिगडें न । उन्हें ऐसे संस्कार तो मिल ही जाएँ कि ये बच्चे भविष्य में जहाँ कहीं जाएँ जो कुछ भी बन पावें उसी में संतोष कर लें ये कर्तव्यभ्रष्ट और लज्जाशून्य न हों अपने परिश्रम की कमाई पर गर्व कर सकें !देश ऐसी शिक्षा व्यवस्था से भी संतोष कर लेगा !
  2. जो सरकारी शिक्षक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं इसका मतलब साफ है कि वो स्वीकार करते हैं कि उनके सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है जबकि इसके लिए जिम्मेदार वे या उन जैसे शिक्षक ही हैं । सरकारी स्कूलों की शिक्षा के विषय में जब उनके ऐसे इरादे स्पष्ट हो ही चुके तो इनकी सैलरी का बोझ बहन करने की सरकार की मजबूरी क्या है ?
  3. प्राइवेटस्कूलों को सरकारी स्कूलों की अपेक्षा काफी कम सैलरी में शिक्षक मिल जाते हैं उनकी शिक्षा की गुणवत्ता भी इतनी अधिक अच्छी होती है कि संपन्न वर्ग से लेकर सरकारी अधिकारी कर्मचारी मंत्री संत्री आदि सब  जब अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाते हैं तो ऐसे अच्छी क्वालिटी के कम सैलरी में मिलने वाले शिक्षक  सरकार को क्यों नहीं मिलते हैं  और यदि मिलते हैं तो सरकार अधिक सैलरी में ऐसे लापरवाह शिक्षकों को रखती क्यों है जो किसी भी वर्ग का विश्वास जीतने में सक्षम नहीं हैं ?ऐसे  शिक्षकों से उन गरीब बच्चों का हित होते सरकार कैसे देखती है जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं ?
  4. सरकारी एक शिक्षक की सैलरी में यदि तीन से पाँच तक वे प्राइवेट शिक्षक रखे जा सकते हैं जिन्होंने  अपने परिश्रम से अभिभावकों का विश्वास जीता हुआ होता है सरकारी  शिक्षकों की सैलरी पर खर्च होने वाले अमाउंट में ही यदि जिम्मेदारी पूर्वक काम करने वाले कम से कम उससे तीन गुने अधिक शिक्षक मिल सकते हैं जिससे शिक्षा के क्षेत्र में सुधार तो होगा ही साथ ही बेरोजगारी भी घटेगी किंतु ऐसा करने मेंसरकार को कठिनाई क्या  है?हम अभिभावकों की सुविधा के लिए सरकारऐसा क्यों नहीं कर सकती ?
  5. हमारी बच्ची दिल्ली के ही एक स्कूल में कक्षा 5 की छात्रा है स्कूल दिल्ली के ही एक केंद्रीय मंत्री के दरवाजे पर है वहाँ शिक्षकों की संख्या लगभग पर्याप्त है किंतु कक्षा तीन में उसे मात्र दो महीने के लिए टीचर मिली फिर वो पढ़ाने नहीं आईं ,कक्षा चार में कभी कोई पढ़ाने आया तो आ गया बाक़ी पूरा साल ऐसे ही बीत गया इस वर्ष कक्षा 5 चल रहा है प्राप्त शिक्षिका CCl  पहले 89 दिनों का ले चुकीं इसी सत्र में दोबारा ले लिया 89 दिन का । ऐसी परिस्थिति में कोई राइटिंग लिखने को बता जाता है कोई सवाल लगाने को रैगुलर किसी की कोई जिम्मेदारी  नहीं है जबकि वो प्रतिभा के टेस्ट में बैठना चाहती है । माना कि CCl  लेना शिक्षिका का विशेषाधिकार है किन्तु जिन छात्रों के बहाने उनको सैलरी मिलती है उनके प्रति भी उनका कोई दायित्व होना चाहिए या नहीं साथ ही उन्हें छुट्टी पास करने वाले जिम्मेदार लोगों को बच्चों की ओर क्यों नहीं देखना चाहिए था ?                                                                                                                                   
                                                                   :प्रार्थी  भवदीय :
                                                       आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी 
    संस्थापक -  राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (रजि.)      
          एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी
    पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसीsee more … http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html

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सरकारी स्कूलों की बेचारी पढ़ाई !ऐसे शिक्षकों के पढ़ाए बच्चे कहाँ से सीखें संस्कार ? शिक्षा में इतना भ्रष्टाचार !

स्कूल न जाने का,कक्षा में न पहुँचने का और पहुँचकर भी बच्चों को न पढ़ाने का केवल बहाना ही खोजा करते हैं आधुनिक सरकारी शिक्षक !
       समाज में दूर दूर तक कहीं कोई घटना घट जाए देश में घटे  या  विदेश में आकाश में हो पाताल में हो धरती पर कहीं हो वो तो अपनी एकदम ख़ास ही होती है मौसम बन बिगड़ रहा हो किसी दिन शर्दी अधिक हो या गर्मी अधिक हो पानी बरस जाए तब तो बात ही और है कोई शादी या तिथि त्यौहार या विद्यालय का कोई उत्सव आदि  आने वाला हो या आकर चला गया हो अपने बीते जीवन की चर्चाएँ हों या भावी जीवन संबंधी रोचक चर्चाएँ  अक्सर इन्हीं बातों में बीत  जाता  है अधिकाँश शिक्षकों में पढ़ाने संबंधी रूचि नहीं रही और न ही बच्चों के भविष्य से कोई लगाव दिखता है न ही अपनी कर्तव्यभ्रष्टता पर कोई पछतावा ,न ही अधिकारियों जनप्रतिनिधियों या सरकार से कोई भय और अभिभावकों को ये कुछ समझते नहीं हैं!ऐसी परिस्थिति में जरुरी नहीं है कि उन लापरवाह एवं नाजुक शिक्षकों  के कुसंग प्रभाव से बिगड़े बच्चे यदि सरकारी शिक्षक न बन सके तो करेंगे क्या ?परिश्रम करना इनके बश का नहीं होगा ये बच्चे या तो भूखों मरेंगे या फिर अपराध करेंगे !अपराधों पर नियंत्रण करना जब अभी कठिन हो रहा है तो आगे क्या होगा !सरकार शिक्षा के क्षेत्र में क्या कुछ ऐसे कदम उठाएगी जिससे सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे कुछ बन न सकें तो कुछ बिगडें भी न कम से कम ऐसे संस्कार तो मिल ही जाएँ कि ये बच्चे भविष्य में जहाँ कहीं जो कुछ भी हो पावें कर्तव्य भ्रष्ट  न हों अपने परिश्रम की कमाई पर गर्व कर सकें !देश इतने में संतोष कर लेगा !
  1. जो सरकारी शिक्षक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं इसका मतलब साफ है कि वो स्वीकार करते हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है जबकि इसके लिए जिम्मेदार वे या उन जैसे शिक्षक ही हैं । सरकारी स्कूलों की शिक्षा के विषय में जब इनके इरादे स्पष्ट हो ही चुके तो इनकी सैलरी का बोझ बहन करने की सरकार की क्या मजबूरी है ?
  2. प्राइवेटस्कूलों के शिक्षक सरकारी स्कूलों की अपेक्षा काफी कम सैलरी में मिल जाते हैं उनकी शिक्षा की गुणवत्ता भी इतनी अधिक अच्छी होती है कि संपन्न वर्ग से लेकर सरकारी अधिकारी कर्मचारी मंत्री संत्री आदि सब  जब अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाते हैं तो ऐसे अच्छी क्वालिटी के कम सैलरी में मिलने वाले शिक्षक  सरकार को नहीं मिलते हैं क्या और यदि मिलते हैं तो सरकार अधिक सैलरी में ऐसे लापरवाह शिक्षकों को क्यों रखती है जो किसी वर्ग का विश्वास जीतने में सक्षम नहीं हैं ?ऐसे  शिक्षकों से उन गरीब बच्चों का हित होते सरकार कैसे देखती है जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं ?
  3. सरकारी एक शिक्षक की सैलरी में यदि तीन से पाँच तक वे प्राइवेट शिक्षक रखे जा सकते हैं जिन्होंने  अपने परिश्रम से अभिभावकों का विश्वास जीता हुआ है वर्तमान समय शिक्षकों की सैलरी पर खर्च होने वाले अमाउंट में ही यदि जिम्मेदारी पूर्वक काम करने वाले कम से कम उससे तीन गुने अधिक शिक्षक मिल सकते हैं जिससे शिक्षा क्षेत्र में तो सुधार होगा ही साथ ही बेरोजगारी भी घटेगी किंतु ऐसा करने में किस प्रकार की कठिनाई है ?
  4. हमारी बच्ची दिल्ली के ही एक स्कूल में कक्षा 5 की छात्रा है स्कूल दिल्ली के ही एक केंद्रीय मंत्री के दरवाजे पर है वहाँ शिक्षकों की संख्या लगभग पर्याप्त है किंतु कक्षा तीन में उसे मात्र दो महीने के लिए टीचर मिली फिर वो पढ़ाने नहीं आईं ,कक्षा चार में कभी कोई पढ़ाने आया तो आ गया बाक़ी पूरा साल ऐसे ही बीत गया इस वर्ष कक्षा 5 चल रहा है प्राप्त शिक्षिका CCl  पहले 89 दिनों का ले चुकीं इसी सत्र में दोबारा ले लिया 89 दिन का  परिस्थिति में कोई राइटिंग लिखने को बता जाता है कोई सवाल लगाने को रैगुलर किसी की कोई जिम्मेदारी  नहीं है जबकि वो प्रतिभा के टेस्ट में बैठना चाहती है । माना कि CCl  लेना शिक्षिका का विशेषाधिकार है किन्तु जिन छात्रों के बहाने उनको सैलरी मिलती है उनके प्रति भी उनका कोई दायित्व होना चाहिए या नहीं साथ ही उन्हें छुट्टी पास करने वाले लोगों को बच्चों की ओर भी नहीं देखना चाहिए था क्या ?ऐसी बिना प्रेन्सिपल से पूछे कभी कोई

परिश्रम पूर्वक कमाकर खाएँगे ऐसे संस्कार उन्हें अधिकाँश शिक्षकों के किसी आचार व्यवहार से नहीं मिल पा  रहे हैं कुछ ऐसे शिक्षकों से   ऐसे कर्तव्यभ्रष्ट लोगों के कुसंस्कारों से बच्चों को बचाने के लिए सरकार क्या कुछ कदम उठाएगी क्या ?
 
का वो बहुमूल्य समय जो सरकार प्राइवेट स्कूलों की अपेक्षा सैलरी रूप में काफी महँगी कीमत देकर खरीदती है शिक्षकों से देश के बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए

 जुकाम तक हो जाए कोई खरोंच लग जाए !


 गा जिसका सैलरी रूप में सरकार पेमेंट  देशवासियों  द्वारा प्रदत्त कर से   प्रसंग अक्सर ऐसी ही चर्चाओं  चर्चाओं में पता ही नहीं चल पाती

ता या में ही क्यों न हो या अपने या अपने घर किसी व्यक्ति को जुकाम तक हो जाए या दूर दूर तक की नाते रिश्तेदारी में किसी को कोई सुख दुःख हो जाए वहाँ जाना आना होता हो न होता हो  किंतु छुट्टी ! गली में कुछ कुत्ते घेर कर भौंकने लगें किसी को काट खाएँ या विदेश में कुछ घटित हो जाए या आकाश पाताल


जुकाम तक हो जाए उस दिन कहीं कोई  और सरकारीशिक्षक ऊपर से सरकार की मेहरबानी केवल सैलरी बढाती जा रही है  सरकार
     महिला शिक्षिकाओं एँ तो जिनका