मनमोहन सिंह जी के शाप से 40 पर पहुँची पार्टी के युवराज जिन राहुलगाँधी जी से यदि दादरी के अखलाक या हैदराबाद के रोहित या JNU के कन्हैया मिलना चाहते तो राहुल उनसे मिलने का समय भी नहीं देते किंतु मोदी सरकार के द्वारा चलाए जा रहे विकास कार्यों को रोकने के लिए मारे मारे फिर रहे हैं अब !सबको पता था कि इन्हें अखलाक ,रोहित या JNU के कन्हैया से कोई लगाव नहीं है वहाँ केवल इसलिए जा रहे हैं कि दुखी लोगों के बीच बैठकर मोदी सरकार को कोसेंगे तो जनता शायद उन्हीं के बहाने इनकी भी बात सुने !
ये राहुलगाँधी जी अपने परिवार के अलावा देश के किसी और व्यक्ति को PM बनते देख ही नहीं सकते ,दूसरे जितने भी लोग प्रधानमंत्री बने हैं वो इस खानदान को पसंद ही नहीं आए ऐसे लोगों के लिए देश और देशवासी क्या करें !
ये राहुलगाँधी जी अपने परिवार के अलावा देश के किसी और व्यक्ति को PM बनते देख ही नहीं सकते ,दूसरे जितने भी लोग प्रधानमंत्री बने हैं वो इस खानदान को पसंद ही नहीं आए ऐसे लोगों के लिए देश और देशवासी क्या करें !
कोई व्यक्ति शादी न करे तो उसकी होने वाली पत्नी क्वाँरी तो नहीं बैठी रहेगी उसे कोई तो ले ही जाएगा !अब वो रोवे कि वो तो चली गई !ऐसे ही जिन्हें दो बार जनता ने बहुमत दिया किंतु जिम्मेदारी सँभालने की हिम्मत नहीं पड़ी डरते रहे तो जनता ने मोदी जी को सौंप दिया अब रोने धोने से क्या ?तो अब मोदी सरकार को अस्थिर करने के लिए कभी दादरी जाते हैं तो कभी हैदराबाद पहुँचते हैं कभी JNU जाते हैं कभी हरियाणा में वो करवा देते हैं उद्देश्य केवल इतना कि मोदी सरकार के विरुद्ध विद्रोह भड़के ! देशवासियों से आखिर किस जन्म का बदला ले रहे हैं ये !
ऐसे हैरान परेशान बेचैन एवं जनता के द्वारा सत्ता से बेदखल किए गए चारों ओर मारे मारे फिर रहे काँग्रेस के राजनैतिक युवराज का इलाज जब काँग्रेस नहीं कर सकी तो मोदी सरकार क्या करे !वो इन्हें सँभाले या देश का विकास करे !वैसे भी राहुलगाँधी जी का दिल जब मनमोहन सरकार नहीं जीत सकी जो इन्हीं का मुख ताक ताक कर इन्हीं के रहमोकरम पर चल रही थी
!तो मोदी सरकार इन्हें कैसे और क्यों खुश करे !
जिसे दूसरे का बना खाना पसंद न हो वो खुद बना ले और जिसे खुद बनाना भी न आता हो वो अपने कर्म ठोके उसे दूसरा कोई कैसे और क्यों खुश करने में लगा रहे !ये हैं राहुल गांधी जी जिन्हें दो दो बार जनता ने बहुमत दिया किंतु प्रधानमंत्री बनने से डरते रहे तो दूसरे को बना दिया जिसे बनाया उसका काम पसंद नहीं आया अब मोदी सरकार के पीछे पड़े हैं आखिर ये चाहते क्या हैं कि देश के प्रधान मंत्री की कुर्सी इनकी प्रतीक्षा में खाली पड़ी रहे !
राहुल जी को कोई काम करना आता नहीं है
कोई करे तो उसका किया पहले तो समझ में नहीं आता है और यदि कोई इस मुशीबत को
अपने गले डाल भी ले और उन्हें समझा भी दे कि इसका मतलब ये होता है तो फिर
बारी आती है इन्हें पसंद न आने की तो मनमोहन सिंह जी की तरह मोदी जी के पास इतना समय कहाँ है कि अपनी सरकार
समेटे राहुल गाँधी जी के पीछे पीछे घूमे इन्हें मनाने की लिए और इन्हें मनाने में कहीं
थोड़ी भी चूक रह जाए तो ये उनके नेतृत्व वाली सरकार के द्वारा सर्व सम्मति
से पास किए गए बिल फाड़ देंगे वो भी मीडिया के सामने !इस प्रकार से दस
वर्षों तक ब्लैकमेल करते रहे मनमोहन सरकार को !
मनमोहन सिंह जी ने ये दुर्दशा
दसवर्षों तक कैसे झेली होगी इसकी वास्तविकता तो वो और उनकी आत्मा ही जानती
होगी किंतु अनुमान इससे तो लगाया ही जा सकता है कि विश्व में ऐसे बहुत
नेता हुए हैं जो राजनीति में अक्सर हारते जीतते रहते हैं किंतु ऐसे नेता
कितने हुए हैं जिन्होंने जिस पार्टी का नेतृत्व करते हुए दस वर्षों तक
सरकार चलाई हो उस सरकार के द्वारा दस वर्षों तक के किए गए काम काज को
लोकसभा चुनावों में सम्मान पूर्वक जनता के सामने रखने का समय आया उससमय क्या
कारण था कि वो चुनावी कैम्पेन से न केवल बिलकुल गायब रहे अपितु उनके
सामान पैक होने की ख़बरें मीडिया में आती रहीं जब जनता से आँख मिलाकर बात
करने का समय था तब मुख छिपाकर बैठे रहे आखिर क्यों ? उस ईमानदार सीधे
शालीन एवं बेदाग जीवन जीने की कामना वाले महापुरुष के लिए ये चुनावी अग्निपरीक्षा कोई मायने नहीं रखती थी रही हार जीत की बात वो तो चुनावों में चला करती है किंतु किसी भी युद्ध में जब युद्ध के नगाड़े बज चुके हों तब अपने सेना नायक की जरूरत सेना को सबसे अधिक होती है ऐसे समय सेना
नायक ही यदि छिपकर बैठ जाए तो सेना का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होता है किंतु
कोई भी सेना नायक कितना भी बलवान क्यों न हो वो तन की चोट तो झेल जाता है
किंतु अपनों के द्वारा मन पर मारे गए हथौड़ों की चोट तो न कह पाता है और न सह पाता है केवल कोसता रहता है अपनों
के आघातों की चोट असह्य होती है । ऐसे लोग फिर केवल शाप देते हैं जो इतनी
पुरानी पार्टी को चालीस सीटों पर सीमित कर के खड़ा कर देता है ।
सारी काँग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने जिस मंत्रिमंडल में बैठकर सर्व
सम्मति से जिस बिल को पारित किया था वो यदि गलत था तो उन बड़ों से चर्चा की
जा सकती थी उसे कैंसिल किया जा सकता था किंतु उसे फाड़ना वो भी मीडिया के
सामने ये बीमारी नहीं तो क्या है और यदि ये बीमारी नहीं माना जाए तो फिर
इतने अयोग्य लोगों का मंत्रिमंडल बनाकर देश के साथ खिलवाड़ किया क्यों गया
था जिन्हें कुछ आता ही नहीं था ।
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