नितीश और मोदी जी की विजय में कितना रहा है PK प्रभाव ?
मोदी जी का चुनाव वास्तव में क्या PK ने जिताया है !नितीश कुमार की
सफलता का श्रेय क्या PK को जाता है अब UP में काँग्रेस की नैया पार कर
पाएँगे PK ! चुनावों में PK प्रभाव !
नितीशकुमार जी को विजय दिलाने में PK प्रभाव !
युगपुरुष अटल जी की सरकार में सम्मानित मंत्री पद का गौरव पा चुके
नितीश कुमार जी आज लालुपुत्रों से पूछ पूछ कर किया करते हैं काम और लालू
जी को ठोकते हैं सुबह शाम सलाम नहीं तो राम राम!
कहाँ अटल जी कहाँ लालूपुत्र !कहाँ केंद्र सरकार और कहाँ बिहार सरकार !नितीश जी जिन लालू जी की निंदा करते रहे उन्हीं का आशीर्वाद है ये मुख्यमंत्री पद !वो भी पौने दो टाँगों का वो टाँगें भी PK कृपा की बदौलत !
मोदी से भयभीत विपक्ष की घबराहट का सहारा बने PK !
कभी 'अखलाक' तो कभी 'रोहित' तो कभी 'कन्हैया'अब पकड़ में आए 'PK'जिन्होंने नीतीश जी को विकलाँग बहुमत दिलाया था ! क्या इतने वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद नीतीश जी अपने को इतनी सीटों के लायक भी नहीं समझते थे !इतनी तो उनके अपने बल पर भी आ जातीं !यदि ये सच है तो बिहार के चुनावों में PK की भूमिका क्या मानी जाए ! वैसे भी चुनाव जीतने की कला खुद मोदी जी से सीख के गए हों उनके सहारे हैं नीतीश और काँग्रेस !
विगत चुनावों में NDA की जीत पर कितना पड़ा PK प्रभाव ?
विगत चुनावों से पूर्व लगातार दसवर्षीय लंबे नीरस शासन काल के बाद जनता UPA से पूरी तरह ऊभ चुकी थी इसलिए जनता ने उसे हरा दिया बस इतनी सी घटना है !इसके अलावा कुछ भी नहीं है फिर लोग अपनी अपनी पीठ थपथपाते जा रहे हैं क्यों ?
UPA को हराने की कमान जनता ने स्वयं अपने हाथों में ले रखी थी उसी भावना से स्वयं मैंने भी दो वर्षों तक 14 से 16 घंटों तक प्रतिदिन बिना किसी पद एवं स्वार्थ के समर्पण पूर्वक भाजपा को समय दिया है इंटरनेट पर हमारी वैचारिक सेवाएँ आज भी इसकी गवाह हैं।
भाजपा में अपने लिए काम करने वाले लोग तो लाखों हैं किंतु भाजपा के लिए काम करने वाले लोग भाजपा में भी बहुत कम हैं उनकी संख्या हजारों में ही होगी ऐसे लोग लाखों में नहीं होंगे !और जो वर्ग भाजपा से बाहर रहकर बिना किसी पद प्रतिष्ठा स्वार्थ के भी भाजपा के आदर्शों के प्रति संपूर्ण समर्पण पूर्वक कार्य करते हैं उनकी संख्या बहुत कम है यही भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी है ।
कहाँ अटल जी कहाँ लालूपुत्र !कहाँ केंद्र सरकार और कहाँ बिहार सरकार !नितीश जी जिन लालू जी की निंदा करते रहे उन्हीं का आशीर्वाद है ये मुख्यमंत्री पद !वो भी पौने दो टाँगों का वो टाँगें भी PK कृपा की बदौलत !
मोदी से भयभीत विपक्ष की घबराहट का सहारा बने PK !
कभी 'अखलाक' तो कभी 'रोहित' तो कभी 'कन्हैया'अब पकड़ में आए 'PK'जिन्होंने नीतीश जी को विकलाँग बहुमत दिलाया था ! क्या इतने वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद नीतीश जी अपने को इतनी सीटों के लायक भी नहीं समझते थे !इतनी तो उनके अपने बल पर भी आ जातीं !यदि ये सच है तो बिहार के चुनावों में PK की भूमिका क्या मानी जाए ! वैसे भी चुनाव जीतने की कला खुद मोदी जी से सीख के गए हों उनके सहारे हैं नीतीश और काँग्रेस !
विगत चुनावों में NDA की जीत पर कितना पड़ा PK प्रभाव ?
विगत चुनावों से पूर्व लगातार दसवर्षीय लंबे नीरस शासन काल के बाद जनता UPA से पूरी तरह ऊभ चुकी थी इसलिए जनता ने उसे हरा दिया बस इतनी सी घटना है !इसके अलावा कुछ भी नहीं है फिर लोग अपनी अपनी पीठ थपथपाते जा रहे हैं क्यों ?
UPA को हराने की कमान जनता ने स्वयं अपने हाथों में ले रखी थी उसी भावना से स्वयं मैंने भी दो वर्षों तक 14 से 16 घंटों तक प्रतिदिन बिना किसी पद एवं स्वार्थ के समर्पण पूर्वक भाजपा को समय दिया है इंटरनेट पर हमारी वैचारिक सेवाएँ आज भी इसकी गवाह हैं।
भाजपा में अपने लिए काम करने वाले लोग तो लाखों हैं किंतु भाजपा के लिए काम करने वाले लोग भाजपा में भी बहुत कम हैं उनकी संख्या हजारों में ही होगी ऐसे लोग लाखों में नहीं होंगे !और जो वर्ग भाजपा से बाहर रहकर बिना किसी पद प्रतिष्ठा स्वार्थ के भी भाजपा के आदर्शों के प्रति संपूर्ण समर्पण पूर्वक कार्य करते हैं उनकी संख्या बहुत कम है यही भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी है ।
इनमें भी हमारे जैसे बहुत से भाई बहन ऐसे हैं जो दो वर्षों तक बिना नागा बिना किसी स्वार्थ के 14 से 16 घंटों
तक इंटरनेट पर प्रतिदिन सेवाएँ देते रहे हैं उसके बदले उनकी केवल एक इच्छा रही कि भाजपा अपने सिद्धांतों संस्कारों आदर्शों नैतिकता से कभी भटके न
कुर्वानी चाहें जितनी देनी पड़े ऐसे लोगों की भावनाओं का सम्मान आखिर क्यों
नहीं किया जाना चाहिए ! हमारे जैसे और भी बहुसंख्यक भाई बहनों ने
निःस्वार्थ भाव से NDA को जिताने के लिए अपना बहुमूल्य समय और सेवाएँ दी
हैं मैं इंटरनेट पर दिन दिन भर रात रात भर उन्हें देखता रहा हूँ पार्टी के
प्रति काम करते ऐसे लोग कैसे पचा जाएँ NDA की विजय में PK जैसे किसी भी एक
व्यक्ति के अकारण महिमा मंडन को !
ऐसे समर्पित भाई बहनों को उचित प्रतिनिधित्व देना तो दूर उनकी पहचान तक नहीं की गई उनके परिश्रम को कभी सराहा नहीं गया केवल अपनी अपनी पीठें थपथपाई जाने लगीं!पार्टी पदाधिकारियों के ऐसे निष्प्राण व्यवहार ने अपनी गोदी में आए उन भावुक हजारों लोगों को सहेज कर रखने में कोताही बरती है जो लम्बे समय तक पार्टी के लिए संजीवनी बने रह सकते थे ।
वैसे भी नरेंद्रमोदी जी का चुनाव लड़ने का लंबा अनुभव रहा है उन्हें PK मिले बहुत बाद में ! फिर चुनाव लड़ने और जीतने का वास्तविक अनुभवी कलाकार यदि कोई हो सकता है तो मोदी जी न कि PK !यदि लोक सभा चुनावों की विजय का श्रेय मोदी जी को ही दे दिया जाए तो जो PM रहते हुए दिल्ली का CM पद पार्टी को नहीं दिलवा सके पार्टी की प्रतिष्ठा नहीं बचा सके वो CM का निर्वाह करते हुए अपने बल पर PM बन गए होंगे क्या ?देश उन पर इतना बड़ा भरोसा करता ही क्यों ? उन्होंने अपने स्तर पर देश के लिए विगत दसवर्षों में ऐसा किया ही क्या था यहाँ तक कि इस भावना चुनावों से पहले वो पूरा देश घूमे भी तो नहीं थे लोगों से ऐसा कोई खास संपर्क करते भी दिखाई नहीं दिए फिर इसमें PK की भूमिका कहाँ से लगती है !
दूसरी बात विगत लोकसभा चुनाव जीते कम हारे ज्यादा गए थे देश के दो बड़े गठबंधन UPA और NDA हैं बारी बारी से दोनों सत्ता सँभाल रहे हैं UPA अबकी डबल पारी खेल गया लोकतंत्र के लिए यही ज्यादा था तो अबकी NDA को आना ही था ! हाँ ,प्रचंड बहुमत प्राप्त करना विशेष बात है किंतु ध्यान ये भी रखना चाहिए कि मोदी जी निर्विरोध प्रधानमंत्री बने हैं उनके सामने दूसरा PM प्रत्याशी कोई था ही नहीं ! पूर्व PM चुनावों के समय ही सामान पैक कर चुके थे !अब जनता मोदी जी को हराती तो जिताती किसे ?नौसिखिया राहुल और केजरीवाल पर तो देश की भारी भरकम जिम्मेदारी नहीं छोड़ी जा सकती थी !इनके आलावा मैदान में और था कौन ?
UP में UPA (सपा, बसपा ,काँग्रेस) को हराने के लिए NDA(भाजपा) को जिताने के अलावा जनता के पास और कोई विकल्प ही नहीं था !UPA ने एक बार में डबल पारी खेली इसलिए डबल पराजय पाई वही डबल विजय मिली NDA को !ये है प्रचंड बहुमत का रहस्य !इसमें PK का क्या और कितना योगदान है ?
NDA ने चुनाव जीतने के लिए पिछले दस वर्षों में कोई बड़ा आंदोलन या आयोजन ही नहीं किया मोदी जी या अमित शाह जी चुनावों से पहले चुनाव लड़ने और जीतने की भावना से पूरा देश कभी घूमने नहीं निकले तो उनके कारण उनके या NDA के अन्य प्रयासों को लोकसभा चुनावों में मिली विजय का श्रेय देना ठीक नहीं होगा !ऐसी परिस्थिति में जब UPA धूमधाम से हारने को तैयार ही था तो NDA को चुनाव जीतने के लिए केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करानी थी मात्र !उतना काम पूरे देश में घूम घूम कर चुनावों के समय मोदी जी ने खूब किया उस भयङ्कर श्रम का श्रेय उन्हें दिया जा सकता है किंतु कुछ सीटें तो उससे बढ़ी होंगी पर चुनाव जीतने के लिए वो काफी नहीं था !कुलमिलाकर इसमें PK की भूमिका तो खोजने पर भी हमें कहीं नहीं मिली !
लोकतंत्र में अधिकाँश प्रदेशों में सत्ता पक्ष और विपक्ष में बारी बारी से ही हारने और जीतने का सिस्टम चलता है लगभग उसी के तहत दलों की आपसी हार जीत होती रहती है उसी के तहत काँग्रेस जिन जिन प्रदेशों में हारी वहाँ विपक्ष के नाते भाजपा जीती किंतु 15 वर्ष तक विपक्ष की भूमिका में रहने के बाद सारी पार्टी के घनघोर परिश्रम एवं बड़े बड़े दिग्गजों सहित स्वयं प्रधानमंत्री जी के उतरने के बाद भी लोकतंत्र के उन नौसिखियों के हाथ दिल्ली के चुनावों में सब कुछ गवाँ बैठना ये सामान्य पराजय की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता ये उससे बहुत नीचे की स्थिति है इसमें न केवल पार्टी हारी अपितु योग्य सुप्रतिष्ठित CM प्रत्याशी भी हारा वो भी उस क्षेत्र से जो भाजपा का पुराना गढ़ रहा हो जहाँ लोगों की मानसिकता ही भाजपामय हो कृष्णनगर ऐसा क्षेत्र है यहाँ समाज के समर्पण को भाजपा सँभाल कर नहीं रख सकी ।
ये दिल्ली भाजपा के एकमात्र ऐसे दिग्गज नेता का क्षेत्र है जिसे पार्टी हर परिस्थिति में मुकुट पहनाकर रखती है वो मुकुट पार्टी पदों का हो या सरकारी पदों का और CM प्रत्याशी के पराजित होते समय भी वे केंद्र में मंत्री का दायित्व निर्वाह कर रहे हैं इन सब खूबियों के बाद पार्टी का CM बनना ही चाहिए था यदि ऐसा नहीं हुआ तो सम्मानित विपक्ष का गौरव तो बचना ही चाहिए था कुछ भी नहीं तो CM प्रत्याशी को तो जितवा कर लाना ही चाहिए था वो भी नहीं तो पार्टी की चुनाव जीतने सम्बन्धी प्रतिभा पर प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं !
दूसरी ओर भाजपा के प्रति निःस्वार्थ भाव से समर्पित इंटरनेट पर भाजपा के लिए दिनरात काम करने वाले उन लोगों से जब मैं बातें करता था तो उनकी बातों में पार्टी के प्रति न केवल समर्पण झलकता था अपितु उनमें से जो जिस स्तर के लोग होते थे उनका उस स्तर में पार्टी को फैलाने का विजन स्पष्ट था ,दूसरी ओर पार्टी के पदाधिकारियों से बात करने पर अधिकाँश लोग विजन विहीन मिले जिनमें केवल अपनी चिंता तो झलकती है किंतु पार्टी की नहीं पार्टी में अधिकाँश कार्यकर्ता आज इसी भावना से जी रहे हैं ।
ऐसे लोगों के कमजोर कंधों पर खड़ी पार्टी उपजाऊ कैसे बने !कार्यकर्ताओं के निर्माण की फर्टिलिटी ही समाप्त होती जा रही है विरोधियों के आरोपों आक्रमणों का जवाब देने एवं उनका पार्टी पर कम से कम असर हो ऐसी प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों की जरूरत पार्टी को है किंतु मठाधीश लोग उन्हें इसलिए पार्टी में नहीं घुसने देते कि उनका अपना महत्त्व समाप्त हो जाएगा इसीलिए अपने और अपनों के लिए पार्टी में पकड़ बनाए बैठे छोटे बड़े पदाधिकारी लोग पार्टी के प्रति समर्पण पूर्वक काम करने वाले भाईबहनों को पार्टी में घुसने ही नहीं देते !यही कारण है कि चुनावों के समय दूसरी पार्टियों के नेता या फिल्मी कलाकार घुसाने पड़ते हैं ।
ऐसे समर्पित भाई बहनों को उचित प्रतिनिधित्व देना तो दूर उनकी पहचान तक नहीं की गई उनके परिश्रम को कभी सराहा नहीं गया केवल अपनी अपनी पीठें थपथपाई जाने लगीं!पार्टी पदाधिकारियों के ऐसे निष्प्राण व्यवहार ने अपनी गोदी में आए उन भावुक हजारों लोगों को सहेज कर रखने में कोताही बरती है जो लम्बे समय तक पार्टी के लिए संजीवनी बने रह सकते थे ।
वैसे भी नरेंद्रमोदी जी का चुनाव लड़ने का लंबा अनुभव रहा है उन्हें PK मिले बहुत बाद में ! फिर चुनाव लड़ने और जीतने का वास्तविक अनुभवी कलाकार यदि कोई हो सकता है तो मोदी जी न कि PK !यदि लोक सभा चुनावों की विजय का श्रेय मोदी जी को ही दे दिया जाए तो जो PM रहते हुए दिल्ली का CM पद पार्टी को नहीं दिलवा सके पार्टी की प्रतिष्ठा नहीं बचा सके वो CM का निर्वाह करते हुए अपने बल पर PM बन गए होंगे क्या ?देश उन पर इतना बड़ा भरोसा करता ही क्यों ? उन्होंने अपने स्तर पर देश के लिए विगत दसवर्षों में ऐसा किया ही क्या था यहाँ तक कि इस भावना चुनावों से पहले वो पूरा देश घूमे भी तो नहीं थे लोगों से ऐसा कोई खास संपर्क करते भी दिखाई नहीं दिए फिर इसमें PK की भूमिका कहाँ से लगती है !
दूसरी बात विगत लोकसभा चुनाव जीते कम हारे ज्यादा गए थे देश के दो बड़े गठबंधन UPA और NDA हैं बारी बारी से दोनों सत्ता सँभाल रहे हैं UPA अबकी डबल पारी खेल गया लोकतंत्र के लिए यही ज्यादा था तो अबकी NDA को आना ही था ! हाँ ,प्रचंड बहुमत प्राप्त करना विशेष बात है किंतु ध्यान ये भी रखना चाहिए कि मोदी जी निर्विरोध प्रधानमंत्री बने हैं उनके सामने दूसरा PM प्रत्याशी कोई था ही नहीं ! पूर्व PM चुनावों के समय ही सामान पैक कर चुके थे !अब जनता मोदी जी को हराती तो जिताती किसे ?नौसिखिया राहुल और केजरीवाल पर तो देश की भारी भरकम जिम्मेदारी नहीं छोड़ी जा सकती थी !इनके आलावा मैदान में और था कौन ?
UP में UPA (सपा, बसपा ,काँग्रेस) को हराने के लिए NDA(भाजपा) को जिताने के अलावा जनता के पास और कोई विकल्प ही नहीं था !UPA ने एक बार में डबल पारी खेली इसलिए डबल पराजय पाई वही डबल विजय मिली NDA को !ये है प्रचंड बहुमत का रहस्य !इसमें PK का क्या और कितना योगदान है ?
NDA ने चुनाव जीतने के लिए पिछले दस वर्षों में कोई बड़ा आंदोलन या आयोजन ही नहीं किया मोदी जी या अमित शाह जी चुनावों से पहले चुनाव लड़ने और जीतने की भावना से पूरा देश कभी घूमने नहीं निकले तो उनके कारण उनके या NDA के अन्य प्रयासों को लोकसभा चुनावों में मिली विजय का श्रेय देना ठीक नहीं होगा !ऐसी परिस्थिति में जब UPA धूमधाम से हारने को तैयार ही था तो NDA को चुनाव जीतने के लिए केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करानी थी मात्र !उतना काम पूरे देश में घूम घूम कर चुनावों के समय मोदी जी ने खूब किया उस भयङ्कर श्रम का श्रेय उन्हें दिया जा सकता है किंतु कुछ सीटें तो उससे बढ़ी होंगी पर चुनाव जीतने के लिए वो काफी नहीं था !कुलमिलाकर इसमें PK की भूमिका तो खोजने पर भी हमें कहीं नहीं मिली !
लोकतंत्र में अधिकाँश प्रदेशों में सत्ता पक्ष और विपक्ष में बारी बारी से ही हारने और जीतने का सिस्टम चलता है लगभग उसी के तहत दलों की आपसी हार जीत होती रहती है उसी के तहत काँग्रेस जिन जिन प्रदेशों में हारी वहाँ विपक्ष के नाते भाजपा जीती किंतु 15 वर्ष तक विपक्ष की भूमिका में रहने के बाद सारी पार्टी के घनघोर परिश्रम एवं बड़े बड़े दिग्गजों सहित स्वयं प्रधानमंत्री जी के उतरने के बाद भी लोकतंत्र के उन नौसिखियों के हाथ दिल्ली के चुनावों में सब कुछ गवाँ बैठना ये सामान्य पराजय की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता ये उससे बहुत नीचे की स्थिति है इसमें न केवल पार्टी हारी अपितु योग्य सुप्रतिष्ठित CM प्रत्याशी भी हारा वो भी उस क्षेत्र से जो भाजपा का पुराना गढ़ रहा हो जहाँ लोगों की मानसिकता ही भाजपामय हो कृष्णनगर ऐसा क्षेत्र है यहाँ समाज के समर्पण को भाजपा सँभाल कर नहीं रख सकी ।
ये दिल्ली भाजपा के एकमात्र ऐसे दिग्गज नेता का क्षेत्र है जिसे पार्टी हर परिस्थिति में मुकुट पहनाकर रखती है वो मुकुट पार्टी पदों का हो या सरकारी पदों का और CM प्रत्याशी के पराजित होते समय भी वे केंद्र में मंत्री का दायित्व निर्वाह कर रहे हैं इन सब खूबियों के बाद पार्टी का CM बनना ही चाहिए था यदि ऐसा नहीं हुआ तो सम्मानित विपक्ष का गौरव तो बचना ही चाहिए था कुछ भी नहीं तो CM प्रत्याशी को तो जितवा कर लाना ही चाहिए था वो भी नहीं तो पार्टी की चुनाव जीतने सम्बन्धी प्रतिभा पर प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं !
दूसरी ओर भाजपा के प्रति निःस्वार्थ भाव से समर्पित इंटरनेट पर भाजपा के लिए दिनरात काम करने वाले उन लोगों से जब मैं बातें करता था तो उनकी बातों में पार्टी के प्रति न केवल समर्पण झलकता था अपितु उनमें से जो जिस स्तर के लोग होते थे उनका उस स्तर में पार्टी को फैलाने का विजन स्पष्ट था ,दूसरी ओर पार्टी के पदाधिकारियों से बात करने पर अधिकाँश लोग विजन विहीन मिले जिनमें केवल अपनी चिंता तो झलकती है किंतु पार्टी की नहीं पार्टी में अधिकाँश कार्यकर्ता आज इसी भावना से जी रहे हैं ।
ऐसे लोगों के कमजोर कंधों पर खड़ी पार्टी उपजाऊ कैसे बने !कार्यकर्ताओं के निर्माण की फर्टिलिटी ही समाप्त होती जा रही है विरोधियों के आरोपों आक्रमणों का जवाब देने एवं उनका पार्टी पर कम से कम असर हो ऐसी प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों की जरूरत पार्टी को है किंतु मठाधीश लोग उन्हें इसलिए पार्टी में नहीं घुसने देते कि उनका अपना महत्त्व समाप्त हो जाएगा इसीलिए अपने और अपनों के लिए पार्टी में पकड़ बनाए बैठे छोटे बड़े पदाधिकारी लोग पार्टी के प्रति समर्पण पूर्वक काम करने वाले भाईबहनों को पार्टी में घुसने ही नहीं देते !यही कारण है कि चुनावों के समय दूसरी पार्टियों के नेता या फिल्मी कलाकार घुसाने पड़ते हैं ।
भाषणों के नाम पर पहचानी जाने वाली पार्टी का पक्ष रखने के लिए कुछ लोग
टीवी चैनलों पर बहस करने के लिए भेजे जाते हैं घंटा बीत जाता है किंतु ये
स्पष्ट ही नहीं हो पाता है कि वो कहना क्या चाह रहे हैं !उनके बात
व्यवहारों में सहजता नहीं आ पाती है उनके वक्तव्यों को दर्शक स्वीकार कैसे
करें और उनसे प्रभावित कैसे हों !रही अन्य कार्यकर्ताओं की बात वो लोगों
के काम करने तो दूर उनकी बातें नहीं सुनना चाहते केवल अपने से सीनियर लोगों
को खुश किया करते हैं क्योंकि वही पद देंगे और जनता उन्हें क्या देगी !जो
पद मिलेगा वो उनका होगा किंतु जो वोट मिलेगा वो तो प्रत्याशियों का होगा
!इसलिए ऐसे कार्यकर्ताओं के किसी प्रयास का फल कैसे मान लिया जाए विगत
चुनावी विजय को ?कुल मिलाकर विगत चुनावों के समय NDA के विजय प्रयासों में
जब NDA की ही भूमिका संदिग्ध है तो NDA के चुनाव जीतने में ' PK' जैसे
लोगों की भूमिका का निर्धारण कैसे किया जाए !