Tuesday, 19 April 2016

' PK' बुझा पाएँगे क्या काँग्रेस की प्यास या मृगमरीचिका ही सिद्ध होंगे ! साथ ही NDA की विजय में कितना रहा PK प्रभाव !

      नितीश और मोदी जी की विजय में कितना रहा  है PK प्रभाव ?
     मोदी जी का चुनाव वास्तव में क्या PK ने जिताया है !नितीश कुमार की सफलता का श्रेय क्या PK को जाता है अब UP में काँग्रेस की नैया पार कर पाएँगे PK ! चुनावों में PK प्रभाव ! 
 नितीशकुमार जी को विजय दिलाने में PK प्रभाव !
        युगपुरुष अटल जी की सरकार में सम्मानित मंत्री पद का गौरव पा चुके नितीश कुमार जी  आज लालुपुत्रों से पूछ पूछ कर किया करते हैं काम और लालू जी को ठोकते हैं सुबह शाम सलाम नहीं तो राम राम!
   कहाँ अटल जी कहाँ लालूपुत्र !कहाँ केंद्र सरकार और कहाँ बिहार सरकार !नितीश जी जिन लालू जी की निंदा करते रहे उन्हीं का आशीर्वाद है ये मुख्यमंत्री पद !वो भी पौने दो टाँगों का वो टाँगें भी PK कृपा की बदौलत !
   मोदी से भयभीत विपक्ष की घबराहट का सहारा बने PK !
  कभी 'अखलाक' तो कभी 'रोहित' तो कभी 'कन्हैया'अब पकड़ में आए 'PK'जिन्होंने नीतीश जी को विकलाँग बहुमत दिलाया था ! क्या इतने वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद नीतीश जी अपने को इतनी सीटों के लायक भी नहीं समझते थे !इतनी तो उनके अपने बल पर भी आ जातीं !यदि ये सच है तो बिहार के चुनावों में PK की भूमिका क्या मानी जाए ! वैसे भी चुनाव जीतने की कला खुद मोदी जी से सीख के गए हों उनके सहारे हैं नीतीश और काँग्रेस !
      विगत चुनावों में NDA की जीत पर कितना पड़ा PK प्रभाव ?
  विगत चुनावों से पूर्व लगातार दसवर्षीय लंबे नीरस शासन काल के बाद  जनता UPA से पूरी तरह ऊभ चुकी थी इसलिए जनता ने उसे हरा दिया बस इतनी सी घटना है !इसके अलावा कुछ भी नहीं है फिर लोग अपनी अपनी पीठ थपथपाते जा रहे हैं क्यों ?
     UPA को हराने की कमान जनता ने स्वयं अपने हाथों में ले रखी थी उसी भावना से स्वयं मैंने भी दो वर्षों तक 14 से 16 घंटों तक प्रतिदिन बिना किसी पद एवं स्वार्थ के समर्पण पूर्वक भाजपा को समय दिया है इंटरनेट पर हमारी वैचारिक सेवाएँ आज भी इसकी गवाह हैं।
    भाजपा में अपने लिए काम करने वाले लोग तो लाखों  हैं किंतु  भाजपा के लिए काम करने वाले लोग भाजपा में भी बहुत कम हैं उनकी संख्या हजारों में ही होगी ऐसे  लोग लाखों में नहीं होंगे !और जो वर्ग भाजपा से बाहर रहकर  बिना किसी पद प्रतिष्ठा स्वार्थ के भी भाजपा के आदर्शों के प्रति संपूर्ण समर्पण पूर्वक कार्य करते हैं उनकी संख्या बहुत कम है यही भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी है । 
     इनमें भी हमारे जैसे बहुत से भाई बहन ऐसे हैं जो दो वर्षों तक बिना नागा बिना किसी स्वार्थ के 14 से 16 घंटों तक इंटरनेट पर प्रतिदिन सेवाएँ देते रहे हैं  उसके बदले उनकी केवल एक इच्छा रही कि भाजपा अपने सिद्धांतों संस्कारों आदर्शों नैतिकता से कभी भटके न कुर्वानी चाहें जितनी देनी पड़े ऐसे लोगों की भावनाओं का सम्मान आखिर क्यों नहीं किया जाना चाहिए ! हमारे जैसे और भी बहुसंख्यक  भाई बहनों ने निःस्वार्थ भाव से NDA को जिताने के लिए अपना बहुमूल्य समय और सेवाएँ दी हैं मैं इंटरनेट पर दिन दिन भर रात रात भर उन्हें देखता रहा हूँ पार्टी के प्रति काम करते ऐसे लोग कैसे पचा जाएँ NDA की विजय में PK जैसे किसी भी एक व्यक्ति के अकारण महिमा मंडन को !
    ऐसे समर्पित भाई बहनों को उचित प्रतिनिधित्व देना तो दूर उनकी पहचान तक नहीं की गई उनके परिश्रम को कभी सराहा नहीं गया केवल अपनी अपनी पीठें थपथपाई जाने लगीं!पार्टी पदाधिकारियों के ऐसे निष्प्राण व्यवहार ने अपनी गोदी में आए उन भावुक हजारों लोगों को सहेज कर रखने में कोताही बरती है जो लम्बे समय तक पार्टी के लिए संजीवनी बने रह सकते थे ।
    वैसे भी नरेंद्रमोदी जी का चुनाव लड़ने का लंबा अनुभव रहा है उन्हें PK मिले बहुत बाद में ! फिर चुनाव लड़ने और जीतने का वास्तविक अनुभवी कलाकार यदि कोई हो सकता है तो मोदी जी न कि PK !यदि लोक सभा चुनावों की विजय का श्रेय मोदी जी को ही दे दिया जाए तो जो PM रहते हुए दिल्ली का CM पद पार्टी को नहीं  दिलवा सके पार्टी की प्रतिष्ठा नहीं बचा सके वो CM का निर्वाह करते हुए अपने बल पर PM बन गए होंगे क्या ?देश उन पर इतना बड़ा भरोसा करता ही क्यों ? उन्होंने अपने स्तर पर देश के लिए विगत दसवर्षों में ऐसा किया ही क्या था यहाँ तक कि इस भावना चुनावों से पहले वो पूरा देश घूमे भी तो नहीं थे लोगों से ऐसा कोई खास संपर्क करते भी दिखाई नहीं दिए फिर इसमें PK की भूमिका कहाँ से लगती है !
     दूसरी बात विगत लोकसभा चुनाव जीते कम हारे ज्यादा गए थे देश के दो बड़े गठबंधन UPA और  NDA हैं बारी बारी से दोनों सत्ता सँभाल रहे हैं UPA अबकी डबल पारी खेल गया लोकतंत्र के लिए यही ज्यादा था तो अबकी  NDA को आना ही था ! हाँ ,प्रचंड बहुमत प्राप्त करना विशेष बात है किंतु ध्यान ये भी रखना चाहिए कि मोदी जी निर्विरोध प्रधानमंत्री बने हैं उनके सामने दूसरा PM प्रत्याशी कोई था ही नहीं ! पूर्व PM चुनावों के समय ही सामान पैक कर चुके थे !अब जनता मोदी जी को हराती तो जिताती किसे ?नौसिखिया राहुल और केजरीवाल पर तो देश की भारी भरकम जिम्मेदारी नहीं छोड़ी जा सकती थी !इनके आलावा मैदान में और था कौन ?
    UP में UPA (सपा, बसपा ,काँग्रेस) को हराने  के लिए NDA(भाजपा) को जिताने के अलावा जनता के पास और कोई विकल्प ही नहीं था !UPA  ने एक बार में डबल पारी खेली इसलिए डबल पराजय पाई वही डबल विजय मिली NDA को !ये है प्रचंड बहुमत का रहस्य !इसमें PK का क्या और कितना योगदान है ?
     NDA ने चुनाव जीतने के लिए पिछले दस वर्षों में कोई बड़ा आंदोलन या आयोजन ही नहीं किया मोदी जी या अमित शाह जी चुनावों से पहले चुनाव लड़ने और जीतने की भावना से पूरा  देश कभी घूमने नहीं निकले तो उनके कारण उनके या NDA के अन्य प्रयासों को  लोकसभा चुनावों में मिली विजय का श्रेय देना ठीक नहीं होगा !ऐसी परिस्थिति में जब UPA धूमधाम से हारने को तैयार ही था तो NDA को चुनाव जीतने के लिए केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करानी थी मात्र !उतना काम पूरे देश में घूम घूम कर चुनावों के समय मोदी जी ने खूब किया उस भयङ्कर श्रम का श्रेय उन्हें दिया जा सकता है किंतु कुछ सीटें तो उससे बढ़ी होंगी पर चुनाव जीतने के लिए वो काफी नहीं था !कुलमिलाकर इसमें PK की भूमिका तो खोजने पर भी हमें कहीं नहीं मिली !
     लोकतंत्र में अधिकाँश प्रदेशों में सत्ता पक्ष और विपक्ष में बारी बारी से ही हारने और जीतने का सिस्टम चलता है लगभग उसी के तहत दलों की आपसी हार जीत होती रहती है उसी के तहत काँग्रेस जिन जिन प्रदेशों में हारी वहाँ  विपक्ष के नाते भाजपा जीती किंतु 15 वर्ष तक विपक्ष की भूमिका में रहने के बाद सारी  पार्टी के घनघोर परिश्रम एवं बड़े बड़े दिग्गजों सहित स्वयं प्रधानमंत्री जी के उतरने के बाद भी लोकतंत्र के उन नौसिखियों के हाथ दिल्ली के चुनावों में सब कुछ गवाँ बैठना ये सामान्य पराजय  की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता ये उससे बहुत नीचे की स्थिति है इसमें न केवल पार्टी हारी अपितु योग्य सुप्रतिष्ठित CM प्रत्याशी भी हारा वो भी उस क्षेत्र से जो भाजपा का पुराना गढ़ रहा हो जहाँ लोगों की मानसिकता ही भाजपामय हो कृष्णनगर ऐसा क्षेत्र है यहाँ समाज के समर्पण को भाजपा सँभाल कर नहीं रख सकी ।
     ये दिल्ली भाजपा के एकमात्र ऐसे दिग्गज नेता का क्षेत्र है जिसे पार्टी हर परिस्थिति में मुकुट पहनाकर रखती है वो मुकुट पार्टी पदों का हो या सरकारी पदों का और CM प्रत्याशी के पराजित होते समय भी वे केंद्र में मंत्री का दायित्व निर्वाह कर रहे हैं इन सब खूबियों के बाद पार्टी का CM बनना ही चाहिए था यदि ऐसा नहीं हुआ तो सम्मानित विपक्ष का गौरव तो बचना ही चाहिए था कुछ भी नहीं तो CM प्रत्याशी को तो जितवा कर लाना ही चाहिए था वो भी नहीं तो पार्टी की चुनाव जीतने सम्बन्धी प्रतिभा पर प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं !
    दूसरी ओर भाजपा के प्रति निःस्वार्थ भाव से समर्पित इंटरनेट पर भाजपा के लिए दिनरात काम करने वाले उन लोगों से जब मैं बातें करता था तो उनकी बातों में पार्टी के प्रति न केवल समर्पण झलकता था अपितु उनमें से जो जिस स्तर के लोग होते थे उनका उस स्तर में पार्टी को फैलाने का विजन स्पष्ट था ,दूसरी ओर पार्टी के पदाधिकारियों से बात करने पर अधिकाँश लोग विजन विहीन मिले जिनमें केवल अपनी चिंता तो झलकती है किंतु पार्टी की नहीं पार्टी में अधिकाँश कार्यकर्ता आज इसी भावना से जी रहे हैं ।
    ऐसे लोगों के कमजोर कंधों पर खड़ी पार्टी उपजाऊ कैसे बने !कार्यकर्ताओं के निर्माण की फर्टिलिटी ही समाप्त होती जा रही है विरोधियों के आरोपों आक्रमणों का जवाब देने एवं उनका पार्टी पर कम से कम असर हो ऐसी प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों की जरूरत पार्टी को है किंतु मठाधीश लोग उन्हें इसलिए पार्टी में नहीं घुसने देते कि उनका अपना महत्त्व समाप्त हो जाएगा इसीलिए अपने और अपनों के लिए पार्टी में पकड़ बनाए बैठे छोटे बड़े पदाधिकारी लोग पार्टी के प्रति समर्पण पूर्वक काम करने वाले भाईबहनों को पार्टी में घुसने ही नहीं देते !यही कारण है कि चुनावों के समय दूसरी पार्टियों के नेता या फिल्मी कलाकार घुसाने पड़ते हैं ।
       भाषणों के नाम पर पहचानी जाने वाली पार्टी का पक्ष रखने के लिए कुछ लोग टीवी चैनलों पर बहस करने के लिए भेजे जाते हैं घंटा बीत जाता है किंतु ये स्पष्ट ही नहीं हो पाता है कि वो कहना क्या चाह रहे हैं !उनके बात व्यवहारों में सहजता  नहीं आ पाती है उनके वक्तव्यों को दर्शक स्वीकार कैसे करें और उनसे प्रभावित कैसे हों !रही अन्य कार्यकर्ताओं की बात वो लोगों के काम करने तो दूर उनकी बातें नहीं सुनना चाहते केवल अपने से सीनियर लोगों को खुश किया करते हैं क्योंकि वही पद देंगे और जनता उन्हें क्या देगी !जो पद मिलेगा वो उनका  होगा किंतु जो वोट मिलेगा वो तो प्रत्याशियों का होगा !इसलिए ऐसे कार्यकर्ताओं के किसी प्रयास का फल कैसे मान लिया जाए विगत चुनावी विजय को ?कुल मिलाकर विगत चुनावों के समय NDA के विजय प्रयासों में जब NDA की ही भूमिका संदिग्ध है तो NDA के चुनाव जीतने में ' PK' जैसे लोगों की भूमिका का निर्धारण कैसे किया जाए !


   

पशुओं में एक प्रवृत्ति

       पशुओं में एक प्रवृत्ति देखी जाती है कोई हाथी जब किसी गाँव में आ जाता है तो कुत्ते उस पर झपटते भौंकते आदि  बहुत तंग करते हैं किंतु हाथी जब सूँड़ में पकड़ पकड़ कर एक एक को फेंकने लगता है तब उन कुत्तों की हिम्मत दुबारा पास आने की तो पड़ती नहीं है किंतु आड़े तिरछे कोने अतरे इधर उधर दूर दूर से अपनी भड़ास निकालने के लिए'हौउ' 'हौउ' किया करते हैं कई बार कोई बलवान कुत्ता दिखाई पड़ा तो उसके सहारे जोर जोर भौंकने लगते हैं किंतु जब वो भी फ़ेंक दिया जाता है तो फिर किसी  सुरक्षित टीले पर खड़े होकर वहीं से'हौउ' 'हौउ'करनेलगते हैं ।      वर्तमान समय में वही स्थिति देश की राजनीति की है जो जहाँ से चुनाव  हारा वो वहीँ से 'हौउ' 'हौउ' करने लगा ऐसी परिस्थिति में इस बात का मूल्यांकन करना कठिन हो जाता है। 

      

काँग्रेस पार्टी अब PK की शरण में ! उधार की समझदारी से लड़ें जाएँगे चुनाव ! इतनी पुरानी पार्टी में समझदारी का टोटा !!

   पार्टी के द्वारा PK को इम्पोर्ट करने का मतलब है पार्टी में या तो समझदार नेता अब नहीं रहे और या फिर उनकी समझदारी पर पार्टी को संदेह हो गया है या फिर उन पर भरोसा नहीं रहा है !

     पार्टी का शीर्ष नेतृत्व फैसला लेने की तो छोड़िए अपनी बुद्धि से अपना भाषण देने की स्थिति में नहीं है !वो तो कोई लिख देता है तो पढ़ आते हैं ।चुनाव जितवाने के लिए PK , और PM बनने के लिए मनमोहन सिंह जी को रखा गया है !दस वर्षों तक सरकार चलाते रहे राहुल गाँधी जी और जनता की गालियाँ खाते रहे मन मोहन सिंह जी !

      देश की सबसे पुरानी पार्टी जिसने इतने लम्बे समय तक देश पर शासन किया हो ऐसी पार्टी समझदारीक्षय की बीमारी एवं विश्वनीय नेतृत्व क्षमता के अभाव से जूझ रही है !
      समझ के अभाव में केंद्र निर्मित योजनाओं व काम काज में विपक्षोचित कमियाँ मुद्दे आदि न खोज पाने के कारण दूसरों के बनाए मुद्दे हड़पने के लिए जहाँ तहाँ दौड़ा फिर रहा है पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ।अखलाक की दुखद मौत हो या रोहित की मौत या फिर कन्हैया के प्रति हमदर्दी का मतलब इन लोगों के प्रति कोई समर्पण था ये बात नहीं है अपितु इन्हें किसी समझदार PK की तलाश थी जो अधियाँ बटाई पर पार्टी चला ले कुछ खुद कमा  ले कुछ हमें कमा  दे !  
    राहुलगाँधी जी समझदार राजनेता होते तो  मनमोहन सरकार को जैसे  अपनी अँगुलियों पर नचा सकते थे तो उनसे विकास कार्य भी करवा सकते थे, महँगाई भी रोक  सकते थे, महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार भी रोक सकते थे और उनके मंत्रियों के द्वारा किया जाने वाला भ्रष्टाचार तो रोक ही सकते थे ! 
    इसका सीधा सा मतलब है कि राहुलगाँधी जी समझदार राजनेता नहीं हैं और जब वो उपयुक्त राजनेता ही नहीं बन सके तो उपयुक्त प्रधानमंत्री कैसे बन सकेंगे !यदि वो प्रधानमंत्री बन भी जाएँ तो क्या ?जब वो मेकर ऑफ़ प्रधान मंत्री बनकर कुछ नहीं कर सके तो प्रधान मंत्री बन कर कौन सा तीर मार देंगे ! 
जब योग्य अनुभववान  बयोवृद्ध सम्मान्नित कांग्रेसी पदाधिकारी गण राहुल जी! राहुल जी! कह कर पीछे पीछे चले जा रहे थे ,यहाँ तक कि जब राहुल ने बिल फाड़ने की बात की थी वो भी मीडिया के सामने  तब किसी का साहस विरोध करने का क्यों नहीं हुआ!किसी ने ये नहीं पूछा कि इसे फाड़ क्यों रहे हो पहले बता तो दो कि ये गलत है इसलिए फाड़ रहे हो या समझ में नहीं आया है इसलिए ..... !
     समझदारी वाली बात तो जब PK लाए गए तब खुली है । वैसे काँग्रेस में अभी भी सक्षम और समझदार राज नेता हैं जिनके होते हुए पार्टी में बौद्धिक शक्तिबर्द्धक इंजेक्सन PK से क्यों लगवाना पड़ा ! 
    मोदी जी ये चुनाव केवल जीते ही  नहीं अपितु काँग्रेस की कमजोर समझदारी के कारण प्रधानमंत्री निर्विरोध  चुने गए हैं !वैसे भी ऐसे कहीं चुनाव होते हैं जहाँ कोई टक्कर देने वाला ही न हो !भला हो अमेठी और राय बरेली के मतदाताओं का जिन्होंने यशस्वी पूर्वजों का मुख देखकर इनसे सांसद कहलाने का हक़ नहीं जाने दिया अन्यथा तब क्या होता जब ये परिवार संसद से बाहर रहकर संसद में आज क्या हुआ ये अखवार पढ़कर जान पाता !

       विगत चुनावों में U.P.A. ने जिस गैर जिम्मेदारी से  एक नौसिखिया व्यक्ति को डायरेक्ट प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाया था उसका समर्थन जनता आखिर कैसे कर सकती थी !

    उधर तत्कालीन प्रधानमंत्री जी ने चुनावों से पहले ही अपना सामान  बांधना प्रारम्भ कर दिया था आखिर इतनी भी जल्दी क्या थी इससे भी समाज में ठीक सन्देश नहीं गया !जिसने दस वर्ष शासन किया हो उसे जनता की आँखों में आँखें डालकर बात तो करनी ही चाहिए थी मुख छिपकर भागना क्यों ? जनता को सफाई तो देनी ही चाहिए थी कि आखिर उनसे चूक कहाँ हुई है किन्तु जो समय पूरे देश में घूम घूम कर चुनावी सभाओं के माध्यम से समाज के सामने सफाई प्रस्तुत करने का था उस समय वो अपने जाने की तैयारी कर रहे थे !इन सब आचरणों को देखकर तो ऐसा लग रहा था कि विरोधी पार्टियाँ तो काँग्रेस को मात्र प्रधान मंत्री पद से हटाना चाह रही थी किन्तु काँग्रेस पार्टी स्वयं ही  प्रधानमंत्री पद छोड़कर भागने को तैयार बैठी थी ऐसे कहीं लड़े जाते हैं चुनाव !

        आप स्वयं देखिए - काँग्रेस ने अपने प्रति जनता के आक्रोश के कारण अपनी पराजय जानते हुए भी कल्पित पी.एम.प्रत्याशी के रूप में राहुल गांधी को प्रचारित कर रखा था ! किन्तु जनता का सोचना यह था कि यदि राहुल कुछ करने लायक ही होते तो अभी तक U.P.A. के कार्यकाल में वो बहुत कुछ करके दिखा सकते थे और जब वो तब कुछ नहीं कर पाए तो उन्हें अब वोट क्यों देना!जो कभी मंत्री न रहा हो मुख्यमंत्री  भी न रहा हो  ऐसे अनुभव विहीन बिलकुल कोरे नौसिखिया व्यक्ति को U.P.A.डायरेक्ट प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार कैसे हो गया ?ये तो जन भावनाओं एवं प्रधानमंत्री पद की गरिमा के साथ खिलवाड़ है !इस प्रकार से राहुल के प्रति जनता के मन में आक्रोश होना स्वाभाविक था !अपनी इसी जिद्द में जनता ने U.P.A. को बहुत बुरी तरह से हराया था !कुल मिला कर समझदारी के अभाव में बिगाड़ा सारा  खेल !

Thursday, 14 April 2016

केजरीवाल की नकल करने लगा है कन्हैया ! नेता बनने के लिए वो भी अब जूतों चप्पलों की शरण में ! बारी राजनीति !!

    नेता बनने के लिए जूते चप्पल स्याही आदि अपने ऊपर फेंकवा कर विरोधियों का नाम लगा देना फैशन सा बनता जा रहा है ! नेता बनने वाले ऐसे राजनीति के शौकीनों पर कसी जाए नकेल !
     कितने गंदे होते हैं वे लोग जो देश समाज एवं देश के प्रतीकों के प्रति यह जानते हुए भी कि इससे उत्तेजना फैलेगी फिर भी  ऊटपटाँग बोलकर समाज को भड़का देते हैं और बाद में माँगते हैं सिक्योरिटी !ऐसे बड़बोले नेताओं को  सिक्योरिटी मिलनी बंद हो जाए तो ये डरपोक लोग ऊटपटाँग बोलना बंद कर देंगे !अन्यथा ऐसे सरकार कहाँ कहाँ किसको किसको रखाती घूमेंगी !वो भी जनता के पैसे पर ये जनधन का दुरूपयोग है !ये गलत है जनता के साथ सरासर अन्याय है । जनता पर तेंदुए हमला कर रहे हैं महिलाओं पर अपराध बढ़ते जा रहे हैं उन्हें सिक्योरिटी नहीं है नेताओं को रखाते घूम रहे हैं सुरक्षा कर्मी !
     आजकल नेता बनने के लिए कई लोग अपने हमदर्दों से या फिर ठेका या भाड़ा देकर अपने ऊपर जूते चप्पल स्याही आदि हलकी फुल्की चीजें फेंकवाने लगे हैं उन्हें लगने लगा है कि ऐसी ही हरकतें कर के इतने कम समय में यदि कोई मुख्यमंत्री बन सकता है तो मैं क्यों नहीं !
       ऐसे लोगों को चाहिए कि जूते चप्पल चाँटे आदि मार मार कर उन्हें नेता बनाने वाले अपने वालेंटियर्स को कभी नहीं भूलना चाहिए उचित तो ये है कि मंत्री आदि बन जाने के बाद किसी बड़े ग्राउंड में ऐसे अपने वालेंटियर्स के सम्मान के लिए भव्य समारोह करना चाहिए।आपको याद होगा कि अभी कुछ वर्ष पहले एक नेता ने ऐसा किया भी था !एक आम आदमी ने बकायदा अपने वालेंटियर से खुली सभा में चाँटा मरवाकर बाद में उसके घर इस बात के लिए धन्यवाद देने  गया था कि आपके कठिन प्रयास से मीडिया कवरेज बहुत मिली !
     इससे मीडिया कवरेज पूरा मिलता है और नुक्सान कुछ भी होता नहीं है !कुलमिलाकर  जूता और स्याही फेंकने वाले होते हैं नेताओं के अक्सर अपने हमदर्द लोग !आम जनता में इतनी हिम्मत कहाँ होती है वो तो दो चांटे सहकर आ जाते हैं अपने घर !
     कानपुर का एक संस्मरण मुझे याद है बात 1995 की है मेरे परिचित एक दीक्षित जी हैं जो जिला स्तरीय राजनीति में हाथ पैर मारते मारते थक चुके थे कोई जुगत काम नहीं कर रही थी बेचारे राजनीति में कुछ बन नहीं पाए थे !मैंने एक दिन उनसे पूछ दिया कहाँ तक पहुँच पाई आपकी राजनीति ? वो बोले पहुँची तो कहीं नहीं ठहरी हुई है तो हमने कहा क्यों हाथ पैर मारो संपर्क करो लोगों से !तो उन्होंने कहा कि ये सब जितना होना था वो चुका अब तो नेता बनने का डायरेक्ट जुगाड़ करना होगा ,तो मैंने कहा कि वो कैसे होगा तो उन्होंने कहा कि धन और सोर्स है नहीं न कोई खास काबिलियत ही है अब तो राजनीति में सफल होने के लिए लीक से हट कर ही कुछ करना होगा मैंने पूछा  वो क्या ? तो उन्होंने कुछ बिंदु सुझाए - 
  • पहली बात यदि मैं ब्राह्मण न होता तो ब्राह्मणों सवर्णों को गालियाँ दे दे कर नेता बनने की सबसे लोकप्रिय विधा है जिससे बहुत लोग ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच गए ! 
  • दूसरी बात बड़े बड़े मंचों पर खड़े होकर मीडिया के सामने देश के मान्य महापुरुषों प्रतीकों को गालियाँ दी जाएँ, दूसरे बड़े नेताओं पर चोरी, छिनारा ,भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाए जाएँ ,गालियाँ दी जाएँ महापुरुषों की मूर्तियाँ या देश के प्रतीक तोड़े जाएँ जिससे बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हों ! 
  • तीसरी बात किसी सभा में मंच पर अपने ऊपर स्याही या जूता चप्पल आदि कोई भी हलकी फुल्की चीजें फेंकवाई जाएँ जिससे चोट  लगने की  सम्भावना भी न  हो  और प्रसिद्धि भी पूरी मिले इससे एक ही नुक्सान हो सकता है कि सारा अरेंजमेंट मैं करूँ और फेंकने वाले का निशाना चूक गया तो बगल में बैठा कार्यकर्ता नेता बन जाएगा मैं फिर बंचित रह जाऊँगा इस सौभाग्य से ! 
  •  चौथी बात अपने घर में जान से मारने की धमकी जैसे पत्र किसी से लिखवाए भिजवाए जाएँ किंतु पोल खुल गई  तो फजीहत ! 
  •   पाँचवीं बात अपने आगे पीछे  कहीं बम  वम लगवाए जाएँ जो अपने निकलने के पहले या बाद में फूटें किंतु बम लगाने वाला इतना एक्सपर्ट हो तब न !अन्यथा थोड़ी भी टाइमिंग गड़बड़ाई तो क्या होगा पता नहीं ! 
  •  छठी बात किसी दरोगा सिपाही से मिला जाए और उससे टाइ अप किया जाए कि वो यदि किसी चौराहे पर मुझे बेइज्जती कर करके  गिरा गिराकर कर मारे इससे मैं नेता बन जाऊँगा और उसकी तरक्की हो जायेगी !इसी प्रकार से यदि मैं किसी किसी दरोगा को मारूँ तो मैं नेता बन जाऊँगा और उसका ट्राँसफर हो जाएगा ! 
  • सातवीं बात किसी जनप्रिय विंदु को मुद्दा बनाकर खुले आम आमरण अनशन या आत्म हत्या की घोषणा की जाए किंतु कोई मनाने क्यों आएगा मेरा कोई कद तो है नहीं !
  • किसी बड़े नेता पर बलात्कार का आरोप लगाकर प्रसिद्ध हो जाए और  प्रसिद्ध होने पर राजनीति में कद बढ़ ही जाता है किंतु मैं तो ये भी नहीं कर सकता!क्योंकि मैं महिला नहीं हूँ । 
  • यदि मैं अल्प संख्यक होता तो अपने धर्म स्थल की रात बिरात कोई दीवार तोड़वा देता बाद में बनती तो बन जाती नहीं बनती तो भी क्या किंतु मैं अपने धर्म का मसीह बन बैठता लोग हमें मनाते फिरते चुनाव  लिए किंतु मैं ब्राह्मण हूँ ये भी नहीं कर सकता !

Friday, 8 April 2016

भारत के प्राचीन विज्ञान के द्वारा खोले जा सकते हैं मानव जगत से जुड़े प्रकृति के अनंत रहस्य ,बशर्ते सरकार मदद करे तो !

    भारत के प्राचीनविज्ञान को भी जाँचा परखा जाए और कसा जाए आधुनिक  विज्ञान की कठिन कसौटियों पर ! यदि सही  लगे तो प्राचीनविज्ञान पर भी रिसर्च के लिए सहयोग दें !
    बंधुओ ! हमने निजी स्तर पर इसी प्राचीन विज्ञान के द्वारा अभी तक कई क्षेत्रों में काम किया है उसमें कई उत्साह वर्धक परिणाम सामने आए हैं रोगों , मनोरोगों,  मौसम, भूकंप एवं जीवन से जुड़े अन्य विषयों के भी रहस्य सुलझाने में भी प्राचीनविज्ञानकी महत्वपूर्णभूमिका है । 
  बंधुओ ! प्रकृति में घटित होने वाली भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन  करके लगाया जा सकता है भविष्य में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं का अनुमान !वर्षा आँधी तूफान भूकंप आदि की देश काल परिस्थिति से जाना जा सकता है प्राकृतिक एवं सामाजिक भविष्य !
विशेष निवेदन-

 भारत के प्राचीन विज्ञान के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं पर रिसर्च कार्य में आप सभी से सहयोग प्राप्त करने हेतु निवेदन !    प्रकृति में घटित हो रही घटनाएँ भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के संकेत देती हैं जैसे 26-10 -2015 को हिंदू कुश में जो भूकंप आया वो भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधों को मधुर बनाने और मद्रास जैसे समुद्र के किनारे बसे किसी भी शहर में अतिवर्षा के संकेत दे रहे थे इस भूकंपीय शकुन का प्रभाव भविष्य में 6 महीने तक रहना होता है अतएव 26-10 -2015 जैसे भूकंप आने के बाद अप्रैल 2016 तक पाकिस्तान पर भरोसा करके चला जा सकता था इसके बाद नहीं ये बात ज्योतिष विज्ञान के द्वारा मैंने अपने ब्लॉग पर 26-10 -2015 को "इस भूकंप के विषय में क्या कहता है भारत का प्राचीन विज्ञान !जानिए आप भी -"
प्रकाशित किया था जो बिना किसी एडिटिंग के वैसा ही वहाँ पड़ा है उसकी सच्चाई की जाँच भी की जा सकती है और पढ़ा भी जा सकता है see more.... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/10/blog-post_26.html
   केवल इतना ही नहीं अपितु ऐसे ही तीन भूकंप हिंदूकुश में लगातार आए जो शकुन शास्त्र की दृष्टि से एक जैसे ही होने के कारण भारत और पाकिस्तान को मिलाने के पक्षधर थे यही कारण है कि जब जब भारत और पाकिस्तान के बिच कोई हलचल हुई तो भूकंप आया जैसे -     बंधुओ ! आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस समय भारत और पाकिस्तान को आपस में मिलाने में ये भूकंप भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं !पहली बार 26 अक्टूबर 2015 को गीता भारत आई तो उसी दिन भूकंप आया दूसरी बार 25 दिसंबर 2015 को मोदी जी पाकिस्तान गए तो उसी रात में भूकम्प आया !तीसरी बार 2 जनवरी 2016 पाकिस्तान के आतंकवादियों ने भारत में पठान कोट पर हमला किया तो भूकंप आया !
        ऐसी ही दूसरी प्राकृतिक घटना नेपाल में आए भयंकर भूकंप की है जो 25 अप्रैल 2015 को आया था इस  भूकंप का केंद्र नेपाल में जिस जगह था उसी जगह से 22 अप्रैल 2015 को भीषण तूफान आया था जिसने  साथ भारत में भीषण तवाही मचाई थी इसमें बहुत लोग मारे गए थे ज्योतिष में शकुन शास्त्र की दृष्टि से भूकंप से तीन दिन पहले आया तूफान 25 अप्रैल 2015 को आने वाले भूकंप की सूचना दे रहा था !
      ऐसी ही तीसरी घटना अक्टूबर 2015 के आसपास दिल्ली और पंजाब के आकाश में छाई धूल की है ये धूल केवल प्रदूषण न होकर अपितु पाकिस्तान में हुए आतंकी हमले की सूचक थी यदि एस न होता तो भारत के शासकों के लिए इससे और अधिक भय होता !
    महोदय ! आपसे मेरा निवेदन है कि समय समय पर ऐसी अन्य प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन भी मेरे द्वारा किया गया है जिसके परिणाम भी होते देखे गए हैं ज्योतिषशास्त्र में ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के प्रमाण मिलते हैं उन्हीं को आधार बनाकर हमारे द्वारा प्राकृतिक  अध्ययन किया जाता है।ग्रहों नक्षत्रों पेड़ों पौधों पशुओं पक्षियों बादलों एवं आकाश के बदलते रंगों सूर्य चंद्र के मंडलों में होने वाले बदलावों ,नदियों समुद्रोंसरोवरों से संबंधित घटनाओं का अध्ययन करके भविष्य में घटित होने वाली वर्षा भूकंप एवं और भी कई प्रकार की घटनाओं का अग्रिम अनुमान लगाया जा सकता है !
     महोदय ! ऐसी  प्राकृतिक घटनाओं पर भारत के प्राचीन विज्ञान के द्वारा अध्ययन एवं रिसर्च करने के लिए भारत सरकार से हमें सहयोग की अपेक्षा है क्या सरकार इसमें रूचि लेगी यदि हाँ तो इसके लिए हमें सरकार के किस मंत्रालय में किससे  संपर्क करना चाहिए ?
:प्रार्थी  भवदीय :
                              आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
                 संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (रजि.)         
         एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी,एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी, पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसीsee more … http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html
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Wednesday, 6 April 2016

पतंजलि से प्रश्न !

  1. पतंजलि योग पीठ के कुल कार्य  भार में कितने प्रतिशत योग है कितने प्रतिशत व्यायाम और कितने प्रतिशत व्यापार है ?
  2. पतंजलि योग पीठ में ऐसी कौन कौन सी यौगिक  क्रियाएँ की या करवाई या सिखाई जाती हैं जिन्हें महर्षि पतंजलि के योग दर्शन से प्रमाणित किया जा सकता हो ?
  3. पतंजलि योग पीठ में ऐसे कितने प्रतिशत कार्य किए जाते हैं जिनसे महर्षि पतंजलि के आदर्शों सिद्धांतों या ज्ञान विज्ञान की झलक मिलती हो ?
  4. महर्षि पतंजलि योग के द्वारा मलों का नाश करके रोग से मुक्ति दिलाने की बात करते हैं फिर आयुर्वेदिक औषधियों  के प्रयोग को महर्षि पतंजलि के योग आदर्शों का पोषक कैसे मान जाए !
  5.  महर्षि पतंजलि का योग  यदि चित्तवृत्ति के निरोध का लक्ष्य लेकर चलता है तो महर्षि पतंजलि की योग पीठ में चलाया जा रहा भारी भरकम व्यापार उनके चित्तवृत्ति के निरोध के लक्ष्य को कैसे पूरा करता है ?
  6.  महर्षि पतंजलि विरक्तयोगी थे फिर उनके नाम के साथ सौंदर्य बर्धक वस्तुओं को जोड़कर महर्षि पतंजलि योग पीठ पतंजलि के आदर्शों उद्देश्यों की पूर्ति कैसे कर रही है ?
  7. महर्षि पतंजलि यदि सुख पूर्वक स्थिर बैठकर योगाभ्यास करने के आसन का उपदेश करते हैं तो पतंजलि योग पीठ में सिखाए जाने वाले आसन पतंजलि के किस सूत्र से संबंधित हैं ?
  8.  महर्षि पतंजलि योगपीठ में जो आसन सिखाए जाते हैं यदि वे योग हैं तो कसरत ,व्यायाम और योग में अंतर क्या है  ?
  9. महर्षि पतंजलि  की योग पीठ में चलाने वाले योग ,व्यायाम व्यापार आदि में ऐसा क्या क्या है जो महर्षि पतंजलि के बचनों चिंतन साहित्य आदि से प्रमाणित क्या जा सकता  हो ?
                            :प्रार्थी  भवदीय :
                              आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
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Tuesday, 5 April 2016

मनोरोग seen

      मनोरोग बहुत बड़ी बीमारी है निकट भविष्य में इसकी भयंकरता और अधिक बढ़ने के ही अंदेशे लगाए जा रहे हैं विभिन्न संस्थाओं के द्वारा समय समय पर किए गए ऐसे कई सर्वे देखने सुनने को मिलते रहे हैं वर्तमान समय में मानसिक तनाव से वैवाहिक संबंध टूट रहे हैं परिवार छिन्न भिन्न होते जा रहे हैं समाज बिखरता जा रहा है असहन शीलता बढ़ती जा रही है छोटे छोटे बच्चों में नशे की लत लगती जा रही है उन्हें आपराधिक कार्यों में सम्मिलित होते देखा जा रहा है अधेड़ उम्र के लोग भी छोटी छोटी बच्चियों से बलात्कार जैसे जघन्य कृत्यों में सम्मिलित देखे जा रहे हैं हत्याएँ और आत्म हत्याएँ तो आम तौर पर अक्सर देखी सुनी जाने लगी हैं बहन बेटियों का घरों से निकलना दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा है भाई और पिता जैसे लोगों से भी बहनों बेटियों को भय पैदा होता जा रहा है बूढ़े माता पिता को ठुकराया जा रहा है । 
     ऐसी परिस्थिति  में चिकित्सा पद्धति दावे चाहें जो करे किंतु मानसिक तनाव पर नियंत्रण करने की कोई कारगर विधा नहीं है !रही बात योग जैसी प्राचीन विधाओं की इसका भी प्रभाव आम समाज पर बहुत कम है उसके दो कारण है पहला तो योग के द्वारा मनोवृत्तियों पर नियंत्रण करने जैसी  उच्च स्थिति तक आम लोग इतनी आसानी से पहुँच नहीं सकते !रही बात योग के नाम पर समाज जो व्यायाम कर रहा है उसका अधिक से अधिक इतना असर हो पाता है कि उससे कुछ हद तक पेट साफ रहता है इससे कब्ज से उत्पन्न होने वाली बीमारियों पर तो एक हद तक नियंत्रण हो सकता है किंतु मानसिक तनाव रोकने का इसमें भी कोई तर्क संगत कारगर रास्ता नहीं दिखता है !
       ऐसी परिस्थिति में समय - विज्ञान के द्वारा की गई हमारी रिसर्चकार्यको भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो मनोरोग और मानसिक तनाव नियंत्रण के क्षेत्र  भूमिका निभा सकता है ।