Friday, 29 August 2014

    आज भारत की पहचान हिंदुस्थान और भारत वर्ष दोनों ही नामों से होती है ।चूँकि  सम्राट 'भरत' के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है इसलिए महाराज भरत के राष्ट्र की शासन व्यवस्था तो शास्त्र प्रतिपादित थी अर्थात सभी कार्य शास्त्रों के अनुशार किए जाते थे सनातन धर्मशास्त्रों से नियंत्रित शासन व्यवस्था जिस देश की हो वो भारत वर्ष है पहले अपने देश में भी ऐसा ही था।     हिंदुस्थान या हिन्दूराष्ट्र  ये दोनों एक जैसे शब्द हैं हिन्दुओं के रहने का स्थान 'हिंदुस्थान'और हिंदुओं का राष्ट्र (देश) ही हिंदुस्थान या हिन्दूराष्ट्र है ।
         

 
      ही है दूसरा हिंदुओं के रहने का स्थान होने के कारण हिंदुस्थान कहा गया इंडिया शब्द का हमारे देश की पहचान से कोई सम्बन्ध नहीं है ये तो मिला हुआ नाम है ।

Thursday, 28 August 2014

साईं व्यापारियों ने साईं की बिक्री बढ़ाने के लिए बड़े सारे भ्रमात्मक विज्ञापन फैला रखे हैं !

     धर्मशास्त्र कहते हैं कि पाप करोगे तो परेशान होगे पुण्य करोगे तो सुखी रहोगे !इसलिए पुण्य करो !! 

      साईं कहते हैं पाप करो या पुण्य हमारे यहाँ आओगे तो मौज करोगे !इसलिए कुछ भी करो !!

    ऐसी परिस्थिति में भीड़ और चढ़ावा दोनों साईं का ही बढ़ेगा स्वाभाविक है ! 

    इसके विरुद्ध साईं वालों ने नारा दिया  कि पाप करो या पुण्य साईं सबपर कृपा करेंगे सबको माफ कर देंगे सबकी तरक्की करेंगे !इसलिए साईं के यहाँ सामान्य लोगों की भीड़ थी पर बहुत अधिक नहीं थी किन्तु साईँ के इस विज्ञापन का ही कमाल है कि जितने घूस खोर ,भ्रष्टाचारी ,मिलावट खोर आदि सारे पापी लोग भी साईं के यहाँ ही जाने लगे और अपनी भ्रष्ट कमाई में साईं का हिस्सा भी निकालने लगे !बलात्कारी जो पहले लुकछिप कर डरे सहमे रहते थे वो अब डंके की चोट पर करने लगे बलात्कार !और ये सारे अपराध दिनोदिन बढ़ने लगे या यूँ कह लें कि जैसे जैसे साईं का प्रचार प्रसार बढ़ रहा है वैसे वैसे अपराध भ्रष्टाचार और बलात्कार बढ़ते जा रहे हैं हर कोई यही सोच रहा है कि कितने भी अपराध करो साईं तो माफ कर ही देंगे भ्रष्टाचारी अपनी पाप की कमाई में से साईं का हिस्सा निकालकर खुलके कर रहे हैं भ्रष्टाचार ,ले रहे हैं घूस ,कर रहे हैं खाने पीने वाली चीजों में मिलावट और सबको एक ही विज्ञापन पर भरोसा है कि साईं तो माफ कर ही देंगे !इस सारे पाप से पैदा कमाई में साईं का हिस्सा भी मोटा बन जाता है तो साईं का चढ़ावा करोड़ों क्या अरबों में भी हो सकता है!और ये क्या ग़रीबों के बश की बात है कि वो साईं को सोने चाँदी के बड़े बड़े महँगे मुकुट खड़ाऊँ आदि साईँ को भेंट करे ! ये सब को पता है कि इसयुग में पुण्य करने वालों की अपेक्षा पाप करने वाले अधिक बढ़ रहे हैं वो धर्म स्थानों में जाते हैं तो वहाँ उनके पापों की निंदा की जाती है और समझाया जाता है कि पाप मत करो अन्यथा परेशान होगे और उनकी मजबूरी ये है कि उनके धंधे का आधार ही पाप है मिलावट करते हैं सेक्स रैकेट चलाते  हैं तो बंद कैसे कर दें जब धंधा उनका वाही है !तो उन्हें ऐसा देवता चाहिए जो उनके इसी पाप में प्रशासन की तरह अपना भी हिस्सा ले किन्तु उनके पाप को पाप न कहे और पापों के दंड की बात न करे  इन्हें ऐसा देवता चाहिए था किन्तु गलत काम का समर्थन कोई देवता क्यों करेगा उसे सोने चाँदी के मुकुट खड़ाऊँ पहनने की इतनी शौक कहाँ होती है वो तो गलत को गलत ही कहेंगे और गलत कार्यों का दंड भी देंगे !जब देवताओं के पास पापियों की दाल नहीं गली तो देव  मंदिरों से निराश होकर साईँ मंदिरों में जाने लगे !और बढ़ने लगी साइयों की भीड़ !इसमें साईंयों का वह विज्ञापन काम कर रहा है जिसमें   साईं विक्रेताओं ने जो यह भ्रम फैलाया है कि बाबा सारे पापों को माफ करके सारे काम बना  देते हैं ये सबसे बड़ा भ्रमात्मक विज्ञापन है इसका दुष्प्रभाव आज समाज पर यह पड़ रहा है कि जो सफल है वो तो अपनी सफलता का श्रेय साईं जैसे बुड्ढों को  देने लगा किन्तु जो असफल है वो अपनी गरीबी के लिए अपराधी किसे  माने ! यदि साईं दे सकते थे  तो गरीबों को भी देते अन्यथा समुद्र में वर्षा हो तो उस वर्षा का क्या महत्त्व इसलिए देवी देवता तो आध्यात्मिक सहायता करते हैं जो साईं के बश की बात नहीं है क्योंकि वो भी साधारण मनुष्य थे या नहीं भी थे क्योंकि साईं नामका कोई व्यक्ति हुआ भी है या नहीं इसके भी कोई स्पष्ट प्रमाण अभी तक किसी को नहीं मिले हैं अभी तक साईं के नाम से केवल भ्रम ही भ्रम है सच्चाई कुछ भी नहीं है।  

       ये हमारा भ्रम है कि देवी देवता अपने आपसे हमारी तरक्की कर रहे हैं तरक्की अपने सत्कर्मों से होती है जिनका फल देवी देवता या भगवान हम सबको देते हैं यदि ऐसा न होता तो कोई गरीब क्यों होता और हमें सत्कर्म क्यों करने पड़ते !तरक्की सबकी बराबर हो रही होती !

Wednesday, 27 August 2014

प्रमोदसाईं एवं संजयसाईं नाथ जैसों की धर्मसभा या साईंयों से पैसे ऐंठने के लिए पाखण्ड ?

   धर्म शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान से शून्य कुछ लोग मीडिया की मदद से अपने को धर्माचार्य कहने लगे हैं और साईं को भगवान !इन पाखंडियों का बोझ आखिर क्यों उठावे सनातन धर्म ?  

  निरर्थक रूप से दाढ़ा झोटा बढ़ाकर रहने वाले कलियुगी पीठाधीश्वर प्रमोद साईं ने विद्यालय से केवल राजनैतिक विज्ञान और इतिहास की पढ़ाई ही की है इसके अलावा संस्कृत शिक्षा में जिसका कोई अध्ययन ही न हो धर्म विषय में उसका कोई बचन प्रमाण कैसे  सकता है ! धर्म के नाम पर जिसके पास केवल दाढ़ा झोटा हो,शिक्षा के नाम पर राजनीति हो, आचरण के नाम पर केवल राजनीति हो और चिंतन के नाम पर केवल साईँ का समर्थन और धन हो ,ऐसे किसी भी धार्मिक योग्यता विहीन व्यक्ति के द्वारा समायोजित किसी भी पाखंड को धर्मसभा कैसे कहा जा सकता है ?      

   वैसे भी साईं का सनातन धर्म से लेना देना ही क्या है उनके समर्थन में धर्म सभा हो भी कैसे सकती है !दूसरी बात धर्म सभा ऐसा कोई व्यक्ति कैसे आयोजित कर सकता है जिसने  धर्म एवं धर्म शास्त्रों का अध्ययन ही न किया हो जिसने विद्यालयीय शिक्षा के रूप में केवल राजनीति पढ़ी हो और राजनीति ही करता भी हो, केवल चुनावी फंड जुटाने के लिए महात्मा बन गया हो लक्ष्य अभी भी राजनीति ही हो !

   नेतागिरी करने का शौकीन ऐसा कोई भी आदमी अचानक दाढ़ा झोटा बढ़ाकर न केवल बाबा बन जाए अपितु कलियुगी पीठाधीश्वर नाम से अपनी अलग पहचान बनाकर  शास्त्रीय साधूसंतों में घुसपैठ करने लग जाए और यहाँ की धर्म शास्त्रीय मर्यादाएँ तार तार कर रहा हो ,शास्त्रीय संतों का अपमान कर रहा हो ,अपने बोल बचनों से  सनातन धर्मियों  का अपमान करने पर तुला हो !

   बंधुओ ! प्रमोद साईं नामका ऐसा कलियुगी पीठाधीश्वर धर्मक्षेत्र में घुसपैठ करके धर्मशास्त्रों, धर्मशास्त्रीय संतों एवं धर्म संसद का अपमान कर रहा हो और सनातन धर्म पर एक नया बुड्ढा भगवान बनाकर  थोपना चाह रहा हो और ये सोचा जाए कि सनातनधर्मी यह पाप सह जाएँ किन्तु आखिर क्यों इसका लक्ष्य तो राजनीति करना हो सकता है किन्तु उनकी धर्मनिष्ठा का क्या हो जिन्होंने अपना समस्त जीवन केवल धर्म के लिए ही सौंप रखा है उन विद्वान पवित्र धर्मनिष्ठ साधू संतों महापुरुषों का दोष आखिर क्या है उनके मंदिरों में क्यों रखवा दिए गए हैं साईं नाम के पत्थर इनसे सारे मंदिरों की मर्यादाएँ नष्ट हो रही हैं ।

     सुना है कि ऐसा उपद्रवी कलियुगी प्रमोद साईं अबकी बार चुनाव भी लड़ा था जरा सोचिए कि यदि ये चुनावों में जीत गया होता तो जो दुर्दशा ये अभी धर्म की कर रहा है तब वो राजनीति की कर रहा होता ! संसद संविधान एवं राजनैतिक समाज तीनों के लिए कितना बड़ा खतरा बन गया होता ! तब तो ये  कहता कि हम  तो अपनी अलग संसद लगाएँगे ,अलग संविधान लिखवाएँगे और भी बड़े सारे अन्याय करता भ्रष्टाचारियों से पैसे ले लेकर उनके पक्ष में संसद में लाविंग करता रहता उन्हीं के पक्ष में चीखता चिल्लाता रहता किन्तु भला हो उस क्षेत्र की समझदार जनता का जिसने ऐसे अधम को समय रहते पहचान लिया और चुनावों में पराजित करके संसद को अपवित्र होने से बचा लिया इसीप्रकार से भला हो हमारे साधू संतों का जिन्होंने ऐसे लोगों को मुख न लगाकर धर्म संसद की पवित्रता को बचा लिया !

    इसीप्रकार से प्रमोद साईं जैसे अन्य धार्मिक निरक्षर लोगों को भी मीडिया ने केवल धनलोभ से ही तो मुख लगा रखा होगा अन्यथा धर्मशास्त्र के विषय में वैसे लोगों का क्या सम्बन्ध है जो धर्मशास्त्रों से विमुख हों !

    धर्म के विषय में कोई भी निर्णय लेने के लिए संस्कृत विश्वविद्यालयों से सुशिक्षित विद्वान ही अधिकृत माने जाने चााहिए वो गृहस्थ हों या विरक्त !अन्यथा धर्मशास्त्रीय विषयों का निर्णय यदि संजयसाईंनाथ ,बाबाप्रज्ञाकुंद ,बाबाकुचक्रपाणी जैसे धर्मशास्त्रों से अनभिज्ञ अशास्त्रीय एवं अँगूठाटेक लोगों को ही लेना है तो विद्वान लोग आखिर किस काम आएँगे और क्या प्रयोजन रह जाएगा इन संस्कृत विश्वविद्यालयों का ,क्यों खर्चा कर रही है सरकार इन पर भारी भरकम धनराशि  यदि इनकी मर्यादा का अतिक्रमण ही करना है तो ?

    बात बात में संविधान और कानून की दुहाई देने वाला मीडिया साईँ समर्थक जिन धार्मिक तस्करों को अपनी तथाकथित धार्मिक बहसों में बुलाकर बैठा लेता है क्या मीडिया ने कभी उनसे पूछा  है कि आपने धर्म शास्त्रों के विषय में पढ़ा क्या है! किस संस्कृत विश्वविद्यालय से पढ़ा है! किस डिग्री तक अर्थात कितना पढ़ा है ! आप साईं के समर्थन में जो बोल रहे हैं उसके आपके पास शास्त्रीय प्रमाण क्या हैं ?आखिर उनसे क्यों नहीं पूछता है मीडिया !बिना शास्त्रों को आधार बनाए कराई  जा रही बहसों का औचित्य आखिर क्या है ऐसे तो जो जितनी जोर शोर मचा सकता हो जो जितनी गालियाँ दे सकता हो जो जितना बेशर्म हो मीडिया में तो वही उतना प्रमाणित मान लिया जाएगा !क्या ये पद्धति ठीक है !क्या ये मीडिया की जिम्मेदारी नहीं है कि जो जिस विषय का विशेषज्ञ हो उसे ही उस प्रकार की बहसों में सम्मिलित किया जाना चाहिए अन्यथा केवल चोंच लड़वाकर सनातन धर्मशास्त्रों का उपहास उड़वाने के लिए आयोजित की जाती हैं ये टी.वी. चैनलीय धर्म संसदें ! मीडिया की ऐसी ही संदिग्ध भूमिका को देखकर लगने लगता है कि इस सारे साईं षड्यंत्र में कहीं मीडिया भी सम्मिलित तो नहीं है !

     किसी अन्यधर्म में उनके आस्था पुरुष के पहनने वाले वस्त्रों की कोई नकल भर कर ले कि वहाँ मरने मारने की बात आ जाती है । तब यही मीडिया उसे गलत सिद्ध करने का साहस क्यों नहीं करता है और इन्हें अपनी अपनी आस्था और अपनी अपनी पसंद के वस्त्र पहनने की आजादी के जुमले क्यों नहीं उछालता है मीडिया तब लगाकर दिखाए ऐसी तथाकथित धर्म संसदें !

     जिन्हें धन के कारण साईं अच्छे लगते हैं अब ऐसे ही धार्मिक जगत से विस्थापित बिना पेंदी के लोटों ने धर्मसभा नाम का पाखण्ड करने का एलान किया है। साईं वालों के पैसे देखकर पागल हुए साधुवेष  में ये इतने लज्जाविहीन लोग हैं कि  इन्होंने श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा जी के समकक्ष एक अनाम खानाबदोश बुड्ढे की मूर्तियाँ  लगाने का समर्थन किया है इसे सनातन धर्म के साथ साजिश क्यों न समझा जाए! किसी भी सच्चे सनातन धर्मी को  इन  कुकृत्यों के कारण  घृणा होने  लगी है ऐसे धार्मिक पाखंडियों से !

     जिन्होंने धर्म शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए कभी किसी संस्कृत विश्व विद्यालय में एडमीशन तक नहीं लिया है इसके बाद भी एक मात्र बेशर्मी के बल पर इनका मनोबल इतना बढ़ चुका है कि ये बड़े बड़े विद्वान संतों की बातों को गलत सिद्ध करने के लिए धर्मसभा का पाखण्ड करने की बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं !धर्मशास्त्रीय  ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में इन साईं पिट्ठुओं का किसी संस्कृत विश्व विद्यालय से कभी कोई संबंध ही नहीं  रहा है इस कारण ये बेचारे धर्म शास्त्रों को पढ़ भी नहीं पाए आखिर उन्हें पढ़ना समझना कोई हँसी खेल तो है नहीं जो रास्ते चलते पढ़ लेंगे ! फिर धर्म सभा कैसी !केवल चुनावी फंड जुटाने के लिए यह पाप !धिक्कार हैं हमें ऐसे लोग सनातनधर्म को खोखला करते जा रहे हैं और हम विवश होकर सह रहे हैं अपने धर्म की छीछालेदर !क्या किसी अन्य धर्म में ऐसा संभव था !

      


 

   

 

Tuesday, 26 August 2014

नकली धर्म सभाएँ





 शराबी कबाबी चिलमी  मांसभक्षी साईंलोग क्या अपने को संत और धर्माचार्य समझने लगे हैं !आखिर क्यों दे रहे हैं साधू संतों को गालियाँ ?
        साईं की संपत्ति देखकर संत ईर्ष्या नहीं कर रहे हैं अपितु संतों का सम्मान देखकर साईंयों को ईर्ष्या हो रही है शराबी कबाबी चिलमी  मांस भक्षी साईँयों को लगने लगा है कि जैसे पिछले दरवाजे से साईं घुस आए और सनातन धर्मियों के भगवान बनने की फिराक में हैं ,इसी प्रकार से ऐसी ही सारे दुर्गुणों से भरी पुरी शास्त्रीय अयोग्यता से संपन्न साईंसंतानें  अपने गुरु की तरह ही घुसपैठ करके संत एवं धर्माचार्य बनने की फिराक में हैं,साईं गिरोह के लोग बड़ी बड़ी बातें एवं बड़ी बड़ी गालियाँ बक रहे हैं सनातनी साधू समाज को इसके लिए इन विधर्मियों ने अर्थबल  से मीडिया को भी प्रभावित कर रखा है अब ये विधर्मी अधर्म सभाओं का आयोजन कराना चाह रहे हैं कलियुगी पीठाश्वर प्रमोद साईं के नेतृत्व में तथाकथित अधर्म सभा के लिए नकली बाबा बनाए जा रहे हैं !ऐसे ही होंगी नकली धर्म सभाएँ !!
                      

Monday, 25 August 2014

संत यदि साईं भक्त को बोलवाना न चाहते तो उसे मंच और माइक देते ही क्यों ?

  चूँकि साईं नशा करते थे कहीं ये साईं समर्थक नशे में ही तो नहीं थे !क्योंकि वो भाषण में अपने विषय से भटक गए थे सुना जाता है कि वो इतने भी होश में नहीं थे!

 पहले भी धन बल से कई नकली बाबा प्रभावित करके साईं के पक्ष में किए जा चुके हैं कहीं ये भी उसी तरह का षड्यंत्र तो नहीं था !

   संजय कसाई नाथ जिस ढंग से अक्सर श्री शंकराचार्य जी को अपशब्द बका  करते थे कहीं  ये उसी उपद्रवी का स्वरचित षडयंत्र  तो नहीं था !

    मित्रो ! सुना जा रहा है कि कोई व्यक्ति अपने को साईं समर्थक बताकर धर्म संसद में गया था जो साईं ट्रस्ट की ओर से अधिकृत नहीं था फिर भी उसे विचार रखने का अवसर दिया गया यदि संतों के मन में साईं समर्थकों  के  प्रति कोई पूर्वाग्रह होता तो उसे मंच पर पहुँच कर माइक में बोलने का सौभाग्य ही कैसे मिल सकता था फिर भी वहाँ बवाल हो गया !  इसमें धर्म संसद का क्या दोष ? 

        देखिए बवाल तो होना ही था कुछ लोगों का अनुमान है कि उन्हें कुछ उपद्रवियों ने भाँग वाँग खिलाकर शायद भगदड़ मचाने के लिए ही भेजा हो वैसे भी यदि वो महानुभाव वास्तव में साईं समर्थक थे तो स्वाभाविक है कि साईं बाबा के आचार विचार खान पान से वो सहमत रहे होंगे और यदि साईं मांस आदि का सेवन करते थे चिलम आदि पीकर नशा करते थे तो उनके अनुयायी इन दुर्गुणों से घृणा क्यों करेंगे इसकी तो आशा ही नहीं की जानी चाहिए और साईं के समर्पित अनुयायी तो ऐसा करते ही होंगे अन्यथा समर्पण कैसा ! नशा पत्ती  करने वाले लोग किसी सभा में जाने लायक कहाँ होते हैं और यदि जाएँगे तो भगदड़ मचेगी ही ! 

       हमें किसी से सूचना मिली कि अपने को साईं भक्त कहने वाले वे लोग इतने भी होश में नहीं थे कि यह धर्म संसद आयोजित किस मुद्दे पर की गई है और हम बोल क्या रहे हैं और जो कुछ उनके मन में आया सो बकने बोलने लगे !यह किसी के लिए भी शोभा नहीं देता है साईं ट्रस्ट को यदि सम्मिलित होना ही था तो सीधे तौर पर होते अन्यथा ये सब करना ठीक नहीं कहा जा सकता है वैसे भी कई नकली बाबाओं का आर्थिक पूजन करके साईं वालों ने प्रभावित कर रखा है आज वो सनातन धर्मियों की भाषा न बोलकर साईंयों की भाषा ही बोलते हैं मुझे आशंका है की ये भगदड़ी भी कहीं नकली बाबाओं की तरह ही अर्थलोभ के ही शिकार न हों !

साईं समर्थकों ravan

सनातन धर्मियो ! साईं सम्प्रदायी धार्मिक लुटेरों से सावधान !

     सनातनधर्मियों को साईं प्रकरण से एक बड़ी सीख मिली है और आयु के  पड़ाव पर आकर भी श्रद्धेय शंकराचार्य जी की सतर्कता एवं साहस से सनातन धर्म के साथ किए जा रहे एक बड़े षड्यंत्र का न केवल पर्दाफास हो सका है अपितु सनातन धर्मियों के साथ घटित हो रहे साईँहादसे को बिलम्ब से ही सही टालने के प्रयास तो किए जा पा रहे हैं । श्रद्धेय शंकराचार्य जी के साथ खड़े समस्त धर्माचार्य,विद्वान एवं अपने धर्म की रक्षा के लिए मर मिटने का संकल्प सँजोए उमड़ते आम भारतीयों की भारी भीड़ ने साईंधार्मिक तस्करों तक यह सन्देश पहुँचाने में सफलता हासिल की है ! 

    सनातन धर्म के प्रबल प्रहरियों के प्रखर प्रयासों से मुझे विश्वास है कि अब आसानी से खदेड़े जा सकेंगे साईं सम्प्रदायी धार्मिक लुटेरे ! 

 

 

 

       संत जैसा वेष धारण करके  रावण  ने सीता जी को छला था और  भगवंत जैसा वेष धारण करके साईं ने शास्त्रीय संस्कृति को छला है !

   साईं समर्थकों की भारी संख्या से भयभीत होकर क्या हमें भुला देनी चाहिए अपनी शास्त्रीय संस्कृति ?

    रावण के समर्थक भी बहुत थे और साईं के भी बहुत हैं रावण के समर्थक भी बहुत बड़े बड़े लोग थे और साईं के भी हैं रावण के पास भी संपत्ति बहुत अधिक थी ,सोने की लंका रावण के पास थी साईं के पास भी संपत्ति बहुत है इनके पास भी सोना चांदी से भंडार भरे हैं रावण स्वयं राजा था साईं चेले बड़े बड़े मंत्री संत्री होते हैं यदि साईं के प्रति लोगों की बहुत आस्था है तो रावण के प्रति भी तो लोगों की आस्था बहुत थी किन्तु  रावण के समर्थक अधिक हैं यह सोचकर  श्री राम जी को क्या करना चाहिए था !क्या सीता  जी को लंका में ही छोड़कर वापस अयोध्या आ जाना चाहिए  था ?

Sunday, 24 August 2014

                       सनातन धर्मी संतों की शीर्ष अदालत में साईँ बाबा हाजिर हों !3!!

         बंधुओ ! सनातन धर्म की परम्पराओं से जो परिचित हैं उन्हें पता है कि हमारे यहाँ भगवान भी जब अवतार लेते हैं तब उन्हें ज्ञान दुर्बल आम जनता तो उस तरह से पहचान नहीं पाती है आम लोग तो  किसी को भी पूजने लगते हैं इसलिए संत ही आगे बढ़ कर शास्त्रीय आधार पर भगवान के अवतार होने के समय का निर्णय लेते हैं और समाज में अवतार की घोषणा करते हैं तब भगवान के अवतार की प्रतीक्षा और होती है।  और  स्वागत की तैयारियाँ और उनके दर्शन के लिए  चराचर जगत प्रकृति श्रंगार कर लेती है क्या अनुपम वातावरण होता है ! किन्तु आज साईं वाले कहने लगे कि साईं भी भगवान ही थे ! यह सुनकर  सनातन धर्मी संतों की शीर्ष अदालत ने तलब किया है सईंयों  को  कि यहाँ आकर रखें अपना पक्ष !आखिर एक चिल्मी आदमी को भगवान कहने के पीछे उनका अपना स्वार्थ क्या है ?
                          

                          
                  साईं बाबा अपने भक्तों के सपने में आए और भगवान बनने से मुकर गए !
       सनातन धर्मी संतों की शीर्ष अदालत में पहुँचने से जस्ट दो दिन पहले अचानक साईँ बाबा ने अपने भक्तों को स्वप्न  में दर्शन दिए और कहा कि पागलो !मैंने तुमसे कब कहा था कि तुम मुझे भगवान मानो !मेरी मूर्तियाँ मंदिरों में घुसेड़ कर लगा दो और करने लगो आरती पूजा का ड्रामा !आखिर तुमने तो लड्डुओं का धंधा चलाने के लिए हमें मरवा दिया !वहाँ एक से एक विद्वान संत महात्मा इकट्ठे हो रहे हैं जब तुम सनातन धर्म के सगे नहीं हुए जिसमें तुम्हारा जन्म हुआ है तो तुम हमारे क्या होगे ! तुम तो हमारे नाम पर चंदा उगाहने एवं लड्डुओं का व्यापार करने के लिए हमें चौराहे पर खड़ाकर रखा है महीनों से असली सनातन धर्मियों की गालियाँ  खा रहा हूँ !हे लड्डू व्यापारियो ! हे चंदा भिखारियो खबरदार !हमारा नाम बदनाम करवाने के लिए अब श्री राम भक्त सनातन धर्मी संतों की शीर्ष अदालत में पहुँच मत जाना तुम नाक कटाने के लिए !तुम्हें तमीज से बोलना नहीं आता वो लोग वेद शास्त्रों की बातें  बोलेंगे वो सब बातें तुम्हारे सर के ऊपर से निकलेंगी इसलिए कुंद्बुद्धियो ! मत जाना वहाँ यह कहते हुए साईं बाबा अंतर्ध्यान हो गए  !
      इसके बाद साईं वालों ने धर्मसंसद में अचानक न जाने का निर्णय लिया और नहीं ही गए तो अब मुझे भी यह सपना सच लगने लगा है ।वैसे यह बात साईं संप्रदाय के ही किसी व्यक्ति ने हमें बताई थी। जो कह रहा था कि अपने लिए एक साईं चरित्र मैंने भी लिखा है हमें साईं चरित्र का दर्शन स्वप्न में हुआ था!                                                                                                                                                                               




किन्तु अभी कुछ वर्षों से साईंयों को एक गलतफहमी हो गई है कि जिसकी मूर्तियाँ

Saturday, 23 August 2014

सनातन धर्म को खोखला करने वाले कलियुगी पीठाधीश्वर प्रमोद साईं ने तोड़ी नीचता की सारी सीमाएँ !

        साईं ने और कुछ किया हो न किया हो किन्तु संतों जैसे वेष धारी  सनातन धर्म के  घुसपैठिये कालनेमियों की पहचान तो करवा ही दी है दुनियाँ ने देखा है कि सनातन धर्म के ये बिकाऊ चेहरे सनातन धर्मी साधू संतों के वस्त्रों में अपने घृणित कलेवर को लिपेटकर किस तरह ढो रहे हैं अपनी अधम काया का निंदनीय बोझ ! इनका रहना तो सनातन धर्मियों के वेष  में ,माँगना खाना सनातन धर्मियों के यहाँ  और बफादारी सनातनधर्म द्रोहियों की !और गद्दारी सनातन धर्म के साथ ! आश्चर्य !!     

     इन्होंने आज एक निजी टी. वी. चैनल पर बैठकर यह कहते हुए सनातन धर्म को शर्मसार किया है कि धर्मसंसद में साईं के विरुद्ध कोई निर्णय हुआ तो मैं जान पर खेल जाऊँगा !इस साईं संतान की जान यदि  साईं के लिए इतनी ही समर्पित है तो सनातन धर्म में ये कर क्या रहे हैं !

" रे ! रे ! जम्बुक मुंच मुंच सहसा नीचं सुनिंद्यम् वपुः |"

      साईं को संत और भगवंत मानने का तो सवाल ही नहीं है क्योंकि दोनों लक्षणों पर वो खरे नहीं उतरते किन्तु  सनातनधर्मी साधू संतों जैसा वेष  धारण करने वाले कलियुगी पीठाधीश्वर नेताबाबा प्रमोदकुमार एवं कुचक्रपाणी जैसे कालनेमियों को पहचनवाने में मदद जरूर की है ! 

     उनका विवादित बयान इस बात की पुष्टि करता है कि इन कालनेमियों ने पैसे के लोभ में अपनी जान की ,अपने धर्म वेष  की एवं अपने धर्म की कितनी दुर्दशा करवा रखी है यदि पैसे की इन्हें इतनी ही भूख थी तो साईंयों के हाथ बिकने से अच्छा था कहीं बैठकर भीख माँग लेते किन्तु सनातन धर्म के साथ गद्दारी तो नहीं  ही करनी चाहिए थी ।सनातन धर्म ने उनका बिगाड़ा आखिर क्या था !

Friday, 22 August 2014

मंदिरों में रखे गए साईं पत्थरों को पूजने के दुष्प्रभाव !

   साईं न तो संत हैं और न ही भगवान वो एक भ्रम हो सकते हैं!

   साईं सनातन धर्म के भगवान तो हो ही नहीं सकते वे संत भी नहीं हैं क्योंकि भगवान हमेंशा मुस्कुराते रहते  हैं ' सस्मितं पीतवाससम् ' साईं के चहरे पर न तो कभी मुस्कान दिखी और शरीर पर न ही कभी पीताम्बर !

      इसी प्रकार से साईं यदि हमारे संत होते तो आँखें बंद करके ध्यान लगाकर बैठते किन्तु साईँ की हर मूर्ति आँखें खोलकर बैठी होती है मानों चेलों का हिसाब किताब लगाया करते हैं कि कौन आया कौन नहीं आया और कौन क्या लाया क्या नहीं लाया !

     साईं पत्थरखण्डों को पूजकर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं कि झूठे हैं हमारे देवी देवता !और हमारा धर्म पाखण्ड है हमारे यहाँ वेद मन्त्रों का कोई महत्त्व नहीं है हमारा हमारे देवी देवताओं से कोई लगाव नहीं हैं हम किसी को भी बना सकते हैं अपना भगवान ! अपने धर्मको मानते मानते क्या हम थक गए हैं क्या इसीलिए साईं को मानने लगे हैं !

    मंदिरों में रखे गए साईं पत्थरों को पूजते पूजते लोगों के हृदय पथरीले हो गए !जिनके दुष्प्रभाव से मरती जा रही हैं संवेदनाएँ बिखरते जा रहे हैं सम्बन्ध ,टूटने लगे हैं परिवार और होने लगे हैं तलाक !

       मूर्तियाँ पत्थरों से बनाई जाती हैं वो तब तक केवल पत्थर की मूर्तियाँ रहती हैं जब तक उनमें किसी देवी देवता की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती है और प्राण प्रतिष्ठा उसी की हो पाती है जिस देवी देवता के प्राण प्रतिष्ठा के मन्त्र होते हैं , मन्त्र वेद में लिखे गए हैं वेद जब लिखे गए थे मन्त्र तभी लिखे गए थे ।  उसके बाद पैदा हुए जिन लोगों की मूर्तियाँ बनाकर पूजी जाती हैं उनके मन्त्र वेदों में होना संभव ही नहीं है और मन्त्र न होने से बिना मन्त्र के उनकी प्राणप्रतिष्ठा नहीं हो पाती है और प्राण प्रतिष्ठा  न होने से वो पत्थर खंड  पत्थर ही बना रहते हैं ऐसे पत्थरों को पूजने से लोगों कुछ मिलना तो था ही नहीं किन्तु उनके हृदय पत्थर जैसे जरूर होते जा रहे हैं संवेदनाएँ मरती जा रही हैं सम्बन्ध टूटते जा रहे हैं परिवार बिखरते जा रहे हैं लोग छोटी छोटी बातों पर एक दूसरे की हत्याएँ करने लगे हैं गर्भ में बच्चियाँ मारी जा रही  हैं बलात्कार की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं ।ऐसे और भी बहुत सारे साइड इफेक्ट मंदिरों में रखे गए साईंपत्थर खण्डों को पूजने से सामने आ रहे हैं ।    जिसकी मनोकामनाएँ देवी देवता पूरी नहीं कर पाएँगे उनकी मनोकामनाएँ साईं पूरी करेंगे क्या ?

     वर्तमान समय में सर्व धर्म समभाव के नाम पर नाटक करने वाले जो पुरुष अपनी पत्नी जैसा व्यवहार सभी स्त्रियों से करना चाहते हों, इसी प्रकार से जो स्त्रियाँ अपने पति की छवि सभी पुरुषों में देखने  लगती हों इसी प्रकार से जो बच्चे चाकलेट देने वाले हर व्यक्ति को अपना बाप बना लेते हों, इसी प्रकार से जो लोग मनोकामनाएँ पूर्ण करवाने के लिए अपना भगवान बदल लेते हों  ऐसे लोग आपने को सनातन धर्मी कहते हैं यही शर्म का विषय है क्या यही सनातन धर्म शास्त्रों के संस्कार हैं !आखिर क्या कमी दिखी प्रभु श्री राम ,कृष्ण ,शिव ,दुर्गा अादि अपने आराध्य देवी देवताओं में उन्हें क्यों बदनाम किया  गया कि वे मनोकामनाएँ पूरी नहीं कर पातें हैं इसलिए उन्हें सस्पेण्ड करके लोग साईं को पूजने लगे !

    पूजना किसे चाहिए ?साईं को या हनुमान जी को ?

  लोगों का मानना है कि यदि लॉफिंगमुद्रा अर्थात हँसते  हुए चित्र या मूर्तियाँ घर में रखी जाएँ तो घर में हँसी खुशी का वातावरण बनता है । हो सकता है यह ठीक हो यदि इसे सच मान लिया जाए तो ओल्ड मुद्राएँ(साईं मूर्तियाँ )घर में रखने या पूजने से बुढ़ापा क्यों नहीं आ सकता है ?अर्थात आएगा ही !जवानों के बाल झड़ेंगे,बाल सफेद होंगे,दाँत गिरेंगे चश्मा लग जाएगा !और बूढ़ों जैसी निराशा की बातें करने लगेंगे ऐसा हो भी रहा है दूसरी ओर बज्रांग हनुमान जी को पूजने से शरीर बज्र के समान हो जाता है और आ जाती है बुढ़ापे में भी जवानी !अब आप स्वयं सोचिए कि आखिर पूजना किसे चाहिए ?साईं को हनुमान जी को ?

 

लॉफिंगमुद्रा  से घर में यदि हँसी ख़ुशी आ सकती है तो ओल्ड मुद्रा (साईं) पूजने से क्या होगा ?

    कुछ  लोगों का मानना है कि यदि लॉफिंगमुद्रा अर्थात हँसते  हुए चित्र या मूर्तियाँ घर में रखी जाएँ तो घर में हँसी खुशी का वातावरण बनता है । हो सकता है यह ठीक हो यदि इसे सच मान लिया जाए तो ओल्ड मुद्राएँ(साईं मूर्तियाँ )घर में रखने या पूजने से बुढ़ापा क्यों नहीं आ सकता है ?अर्थात आएगा ही !जवानों के बाल झड़ेंगे,बाल सफेद होंगे,दाँत गिरेंगे चश्मा लग जाएगा !और बूढ़ों जैसी निराशा की बातें करने लगेंगे ऐसा हो भी रहा है दूसरी ओर बज्रांग हनुमान जी को पूजने से शरीर बज्र के समान हो जाता है और आ जाती है बुढ़ापे में भी जवानी !अब आप स्वयं सोचिए कि आखिर पूजना किसे चाहिए ?


 साईं समर्थक कुछ लोग हमें मूर्ख या अपशब्द कह रहे हैं, उनके सम्मान में सादर समर्पित !

       जिस हिन्दू के अपने बाप बाबा आदि पूर्वज जिन श्री राम ,कृष्ण ,शिव ,दुर्गा अादि अपने देवी देवताओं को पूजते रहे हों वो उन्हें भूलकर अज्ञान वश किसी ऐरे गैरे को भगवान मान बैठे फिर भी अपने बाप बाबा आदि पूर्वजों को इसलिए मूर्ख मानता हो क्योंकि वो देवी देवताओं को पूजते रहे हों और किसी साईंबुत की खोज नहीं कर सके हों ऐसे लोगों की गलती क्या दी जाए गलती उनके माता पिता की है जिन्होंने ऐसी सामाजिक बुराइयों को जन्म दिया है गलती एक  दो लोगों की किन्तु बोझ वो आज पूरे समाज पर बने हुए हैं |साईं बुड्ढे का पक्ष ले लेकर पूरी सनातन धर्मी समाज को मूर्ख बेवकूप आदि और  भी बहुत कुछ गाली गलौच अादि  करते घूम रहे हैं  !मनुष्य शरीर रूपी ऐसी बुराइयों को ब्राह्मण या हिन्दू या सनातन धर्मी कैसे माना जा सकता है यह भी अच्छा है कि अपने माँ बाप के कुचालों का परिचय वे अपने आचरणों से स्वयं दे रहे हैं कि वे उनके नहीं है जिनके समाज उन्हें समझ रहा है वस्तुतः वे उनके हैं जिनके  समाज उन्हें नहीं समझ रहा है वे जिनके हैं उनका पक्ष ले रहे हैं सुना है साईं हिन्दू नहीं थे इस नियम से तो उनके अनुयायी हिन्दू होंगे इसपर विश्वास कैसे किया जा सकता है अगर वे हिन्दू होते तो हिन्दू देवी देवताओं पर गर्व करते और मानते हिन्दू धर्मशास्त्रों को और क्यों पूजते साईं को !आखिर क्या कमी दिखी उन्हें श्री राम ,कृष्ण ,शिव ,दुर्गा अादि अपने देवी देवताओं में और क्या अच्छाई लगी बुड्ढे साईं के बुत में !

 

 

     

    

नारी प्रतिष्ठा

     
                                        नम्र निवेदन -
      आपकी धर्म विषयक रूचि एवं चिंतन ने मुझे प्रोत्साहित एवं प्रभावित किया है। अच्छा होगा कि आप योजना बद्ध ढंग  समाज  पर कुछ लिखें बहुत आवश्यकता इस चीज की भी है कि कुछ बातें महिलाओं से जुड़े सदाचरण पर लिखी जाएँ जिसमें कुछ महिलाओं की अपनी अत्याधुनिक जीवन शैली कहाँ कहाँ उनके अपने जीवन एवं समाज के लिए घातक हो रही है इन विषयों को समाज हित में उठाया जाए ! मैं समाज में नारी प्रतिष्ठा जैसे विषयों पर लेखन के लिए आपसे सहयोग की अपेक्षा करता हूँ क्योंकि इसकी आवश्यकता समाज को बहुत अधिक है ये काम हमारी अपेक्षा आप बहुत अच्छा कर सकती हैं इसलिए मैं आपसे निवेदन कर रहा हूँ आप अन्यथा मत लेना । आप यदि उचित समझें तो अपना संपर्क नंबर हमें दे सकते हैं हमारा ये है 9811226973 
                                                                                                                                 भवदीय डॉ.वाजपेयी 

Wednesday, 20 August 2014

ऐसी बेचैन मित्र आत्माओं को ईश्वर सदाचरण सहने की सामर्थ्य दे !

कुत्ते बिल्लियों की तरह सार्वजनिक जगहों पर अश्लील वारदातों को अंजाम देने वालों को  प्रेमी प्रेमिका कैसे कहा जा सकता है ! ये तो बीमारी हैं !

   बहन बेटियों के साथ हो रही अश्लील वारदातों को सहना अब कठिन हो गया है बलात्कारों की खबरें सुनते सुनते अब समाचार पढ़ने और देखने से डर लगने लगा है, मैं सार्वजनिक जगहों पर अश्लील वारदातें करने वाले नगोडों का बहिष्कार करना चाहता हूँ !इसलिए मैं उनके विरोध में लिख ही सकता हूँ सो लिखता रहूँगा ये मेरा कर्तव्य है बलात्कारियों को पढ़कर दुःख होना स्वाभाविक भी  है ,इसलिए बलात्कार जैसी अप्रिय घटनाओं को अंजाम देने वाले उन रेप स्पेशलिस्टों को मैं भाग्यशाली मानता हूँ जो अश्लील वारदातों को अंजाम देने वाले नगोड़े लोग या उनके शुभ चिंतक लोग हमसे तंग आकर अपनी  फेसबुकी  फ्रैंडलिस्ट से हमें बाहर खदेड़ रहे हैं !ऐसी बेचैन मित्र आत्माओं को ईश्वर सदाचरण  सहने की सामर्थ्य दे साथ ही उनकी दिवंगत मनुष्यता को ईश्वर के चरणों में चिर शांति मिले ! मेरी प्रभु से यही प्रार्थना है !



Tuesday, 19 August 2014

रेप रोकने के लिए सरकार को कानून बनाना था सो बना दिया अब बारी है समाज की !

         बंधुओ ! रेप की बढ़ती वारदातें निःसंदेह घोर चिंता का विषय हैं अभी तक तो केवल बलात्कार ही था  पाँच पाँच वर्ष की बच्चियों एवं बच्चों के मलमूत्रांगों से जो खिलवाड़ किया जा रहा है उसे बलात्कार नहीं अपितु उन पर दारुण दुराचार माना  जाएगा जिन बेचारों को ये भी नहीं पता है कि सेक्स होता क्या है उन्हें सेक्स गतिविधियों में सम्मिलित किया जाना एवं के साथ सेक्स कितना गिरता जा रहा है समाज !
        भाइयो बहनो ! इसे मिलजुल कर रोकना होगा सरकार को जो कानून बनाना था सो बना दिया अपराधियों को जो सजा फाँसी होगी सो देखी जाएगी किन्तु लाख टके का  सवाल ये है कि अभी क्या हो क्योंकि इस तरह की दुर्घटनाओं से बचने के लिए अभी कुछ करना होगा


Monday, 18 August 2014

dincharya 2

भोजन करने सम्बन्धी महत्वपूर्ण नियम 

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[१] पांच अंगो ( दो हाथ , २ पैर , मुख ) को अच्छी तरह से धोकर ही भोजन करें !

[२] गीले पैरों खाने से आयुमें वृद्धि होती है !

[३] प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है , क्योंकि पाचन क्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से २ घंटे बाद तक एवं सूर्यास्त से २-३ घंटे पहले तक प्रवल रहती है !
[४] पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुँह करके ही भोजन करना चाहिए !
[५] दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
[६] पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन करने से रोग की वृद्धि होती है !
[७] शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूटे फूटे वर्तनों में भोजन नहीं करना चाहिए !
[८] मल मूत्र का वेग होने पर,कलह के माहौल में,अधिक शोर में,पीपल,वट वृक्ष के नीचे भोजन नहीं करना चाहिए !
[९] परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
[१०] खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके , उनका धन्यवाद देते हुए ,
तथा सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो ऐसी प्रार्थना करके भोजन करना चाहिए !
[११] भोजन बनाने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटियाँ अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालों को खिलाये !
[१२] ईर्षा , भय , क्रोध, लोभ,रोग , दीन भाव,द्वेष भाव के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
[१३] आधा खाया हुआ फल , मिठाईयाँ आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
[१४] खाना छोड़ कर उठ जाने पर पुनः उस भोजन को नहीं करना चाहिए !
[१५] भोजन के समय मौन रहें !
[१६] भोजन को बहुत चबा चबा कर खाएं !
[१७] रात्री में भरपेट न खाएं !
[१८] गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा नहीं खाना चाहिए !
[१९] सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन , अंत में कडुवा खाना चाहिए !
[२०] सबसे पहले रस दार , बीचमें गरिष्ठ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करें !
[२१] थोडा खाने वाले को --आरोग्य , आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान , और सौंदर्य प्राप्त होता है !
[२२] जिसने ढिंढोरा पीट कर खिलाया हो वहाँ कभी न खाएं !
[२३] कुत्ते का छुवा , रजस्वला स्त्री का परोसा, श्रृाद्ध का निकाला , बासी , मुँह से फूँक मारकर
ठंडा किया , बाल गिरा हुआ भोजन , अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन
कभी न करें !
[२४] कंजूस का, राजा का,वेश्या के हाथ का,शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए

 

 बहाने 

 

1 - मुझे उचित शिक्षा लेने का अवसर नही मिला 

अचित शिक्षा का अवसर फोर्ड मोटर्स के मालिक हेनरी फोर्ड को भी नही मिला ।

2- बचपन मे ही मेरे पिता का देहाँत हो गया था

प्रख्यात संगीतकार ए . आर . रहमान के पिता का भी देहांत बचपन मे हो गया था।

3 - मै अत्यंत गरीब घर से हू 

पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी गरीब घर से थे ।

4- बचपन से ही अस्वस्थ था 

आँस्कर विजेता अभिनेत्री मरली मेटलिन भी बचपन से बहरी व अस्वस्थ थी ।

5 -मैने साइकिल पर घूमकर आधी जिंदगी गुजारी है

निरमा के करसन भाई पटेल ने भी साइकिल पर निरमा बेचकर आधी जिन्दगी गुजारी ।

6- एक दुर्घटना मे अपाहिज होने के बाद मेरी हिम्मत चली गयी

प्रख्यात नृत्यांगना सुधा चन्द्रन के पैर नकली है ।

7 - मुझे बचपन से मंद बुद्धि कहा जाता है 

थामस अल्वा एडीसन को भी बचपन से मंदबुद्धि कहा जाता था।

8 - मै इतनी बार हार चूका अब हिम्मत नही 

अब्राहम लिंकन 15 बार चुनाव हारने के बाद राष्ट्रपति बने।

9 - मुझे बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पङी

लता मंगेशकर को भी बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पङी थी।

10 - मेरी लंबाई बहुत कम है 

सचिन तेंदुलकर की भी लंबाई कम है। 

11 - मै एक छोटी सी नौकरी करता हू इससे क्या होगा 

धीरु अंबानी भी छोटी नौकरी करते थे।

12 - मेरी कम्पनी एक बार दिवालिया हो चुकी है , अब मुझ पर कौन भरोसा करेगा 

दुनिया की सबसे बङी शीतल पेय निर्माता पेप्सी कोला भी दो बार दिवालिया हो चुकी है ।

13 - मेरा दो बार नर्वस ब्रेकडाउन हो चुका है , अब क्या कर पाऊगा 

डिज्नीलैंड बनाने के पहले वाल्ट डिज्नी का तीन बार नर्वस ब्रेकडाउन हुआ था।

14 - मेरी उम्र बहुत ज्यादा है 

विश्व प्रसिद्ध केंटुकी फ्राइड के मालिक ने 60 साल की उम्र मे पहला रेस्तरा खोला था।

15 - मेरे पास बहुमूल्य आइडिया है पर लोग अस्वीकार कर देते है 

जेराँक्स फोटो कापी मशीन के आइडिये को भी ढेरो कंपनियो ने अस्वीकार किया था पर आज परिणाम सामने है ।

16 - मेरे पास धन नही 

इन्फोसिस के पूर्व चेयरमैन नारायणमूर्ति के पास भी धन नही था उन्हे अपनी पत्नी के गहने बेचने पङे।

17 - मुझे ढेरो बिमारिया है 

वर्जिन एयरलाइंस के प्रमुख भी अनेको बीमारियो मे थे | राष्ट्रपति रुजवेल्ट के दोनो पैर काम नही करते थे।

कुछ लोग कहेगे कि यह जरुरी नही कि जो प्रतिभा इन महानायको मे थी , वह हम मे भी हो ________

सहमत हू मै लेकिन यह भी जरुरी नही कि जो प्रतिभा आपके अंदर है वह इन महानायको मे भी हो 

सार यह है कि 

"" आज आप जहा भी है या कल जहाँ भी होगे इसके लिए आप किसी और को 
जिम्मेदार नही ठहरा सकते , इसलिए आज चुनाव करिये " सफलता और सपने चाहिए या खोखले बहाने .......?



 

संघ के राष्ट्रवादी विचारों पर हो हल्ला क्यों ?

  हिंदुस्तान के लोगों ने हिंदुत्ववादी शक्तियों के हाथ सत्ता सौंपकर हिंदुत्व पर भरोसा किया है!

    अब देश की जनता जो चाहेगी वो होगा कुछ लोगों के शोर मचाने से कुछ नहीं होगा !संघ परिवार की हिन्दू राष्ट्रवादी भावना से विश्व सुपरिचित है देश सुपरिचित है देश के सभी राजनैतिक दल एवं उनके नेता सुपरिचित हैं देशवासी सुपरिचित हैं देश का मीडिया सुपरिचित है !इसीलिए भाजपा समेत समस्त आनुषांगिक  संगठनों के साथ सम्पूर्ण संघ परिवार  की  ही दशकों से आलोचना भी होती रही फिर भी अर्थात  वो सब कुछ सहते हुए भी संघ परिवार ने अपनी पहचान इसी रूप में बना रखी है। 

     दूसरी ओर देश के राजनैतिक वातावरण में दो प्रमुख गठबंधन हैं NDA और UPA, हिंदुत्व समर्थक लोग NDA से जुड़ते गए और जो विरोधी थे वो UPA से  जुड़ते चले गए ! इसीप्रकार से  भाजपा में मोदी जी की पहचान भी कट्टर हिन्दू के रूप में ही बनी हुई है ।मोदी जी को P.M. प्रत्याशी के रूप में जैसे ही आगे बढ़ाया गया वैसे ही एक तथाकथित धर्म निरपेक्ष दल NDA को छोड़कर चला गया था !इन सब बातों से ये प्रमाणित हो ही चुका था कि अबकी NDA हिंदुत्व के पथ पर आगे बढ़ेगा  इसी बात का प्रचार प्रसार UPA वालों ने खूब जोर शोर से किया भी था इसके बाद भी देश की जनता ने हिंदुत्व(NDA) को चुना और उस बनावटी धर्मनिरपेक्षता (UPA)को नकारा है ! इसलिए अब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों एवं दलों को साम्प्रदायिकता का हो हल्ला करना बंद कर देना चाहिए !और उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए कि देश की जनता का विश्वास उनसे टूट चुका है !

     संघ जैसे राष्ट्र प्रहरी संगठन एवं भाजपा को लेकर क्यों किया जाता है अक्सर दुष्प्रचार ? !?see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2014/08/blog-post_13.html

 


   

Saturday, 16 August 2014

मोदी जी के भाषण पर भाष्य !

पीएम का भाषण जीरो इफेक्ट वाला: कांग्रेस 

    किन्तु  मोदी जी तो हमेंशा जीरो से ही हीरो बने हैं !

 

     बुलेट प्रूफ शीशे की दीवार भी नहीं लगी ।

    किन्तु जो लोग किसी से अपनेपन  के सम्बन्ध बनाते हैं और खुद तो बुलेट प्रूफ शीशे की दीवार की सुरक्षा में छिपकर खड़े हो जाते और जनता खुले में खड़ी होती है क्या उसकी जान और जीवन की कोई कीमत नहीं है ?और ऐसा करने वालों के मन में जनता के प्रति अपनापन कैसे माना जा सकता है !ये तो वही दशा हुई कि ' हमारा हाथ गरीब आदमी के साथ ' किन्तु जब कोई बीमारी आरामी आवे तब आप  तो इलाज कराने के लिए जहाज पर बैठकर विदेश चले जाएँ किन्तु गरीब आदमी इलाज के अभाव में घुटघुट कर मरता रहे !और जब चुनाव फिर आवें तो फिर कहने लगो कि ' हमारा हाथ गरीब आदमी के साथ 'ऐसे नेताओं पर भरोसा कैसे किया जाए !इसीलिए मोदी जी ने ठीक किया जैसे जनता खड़ी थी वैसे स्वयं भी !ऐसे लोग गर्व से कह सकते हैं कि ' हमारा हाथ गरीब आदमी के साथ '!

  मोदी जी ने लाल किला की प्राचीर से बिना लिखा हुआ भाषण अपने मन से दिया !
      बंधुओ !इसमें बड़ी बात क्या है अपनों से बात करते समय हर कोई ऐसा  ही करता है क्या आप अपने माता पिता भाई बहन पत्नी पुत्र पुत्रियों से बाते करते समय लिखकर ले जाते हैं और पढ़कर चले आते हैं इसीप्रकार से नाते रिश्तेदारों बंधु बांधवों मित्रों से बात करते समय क्या कोई लिखकर ले जाता है !और यदि कोई लिखकर ले जाए तो क्या उन बातों में अपनापन  होगा क्यों वो बातें अपने हृदय की होंगी !बंधुओ ! क्या उन बातों का समाज पर उतना प्रभाव  पड़ पाएगा !सच्चाई तो यह है कि वो जस्ट लाइक टेपरिकार्डर की तरह होगा !इसलिए अपनी बातें अपने शब्दों में अपने भावों एवं अपनी इच्छानुशार अपनी भाव भंगिमाओं के साथ जब आप कहते हैं तो उनसे सामने वाले के मन में भी अपनापन प्रकट होता है और वो आपको अपना मानने लगता है यदि कोई गलती भी हुई तो जब हृदय पथ पर संबंध बन रहे होते हैं तो किसी को कहाँ होता है गलतियों का एहसास ?वही मोदी जी ने किया है अपनी बात अपनों को बताने के लिए इतना तामझाम क्यों सीधी बात रख दी मोदी जी जनता ने भी उसी भावना से समझ लिया है किन्तु कुछ हृदय शून्य लोगों को ये भाव पक्ष की बातें समझ में ही नहीं आ रही हैं !आखिर देश के प्रधानमंत्री को अपने देशवासियों के साथ अपनेपन  से बातें  क्यों नहीं करनी चाहिए !
 

    स्वतंत्रता दिवस पर पीएम नरेंद्र मोदी के द्वारा दिए गए भाषण को प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने जीरो इफेक्ट वाला बताया है। कांग्रेस ने कहा कि पीएम के भाषण में कुछ भी नया नहीं था।कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने इसे पीएम की जीरो इफेक्ट स्कीम बताते हुए कहा कि पीएम की ओर से किसी नए विचार, नई पहल या फिर नई योजना की घोषणा नहीं की गई। 

      किंतु शकील साहब ! जिसके भाषण को आप जीरो इफेक्ट वाला बता रहे हो वो ऐसे ही भाषणों के बल पर हीरो बन गया और आज भी आपको उसमें और उसके भाषणों में ही जीरो का आभाष हो रहा है और आप अपने को हीरो न जाने किस बल पर मान बैठे हैं आपकी पार्टी में किसी एक ऐसे नेता का नाम बताओ जो अच्छा भाषण दे लेता हो सोनियाँ जी, राहुल जी,मनमोहन जी,या स्वयं आप और आप जैसे लोग !

    पार्टी प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि,"पीएम के पहले भाषण से कुछ नए की उम्मीद थी, उम्मीद थी कि वो अगले पांच साल का खाका पेश करेंगे लेकिन अफसोस पीएम असफल रहे।मोदी का भाषण भविष्य की रूपरेखा पेश नहीं कर पाया "

       विपक्ष ये तो है मनीष जी! मोदी जी के भाषण में भ्रष्टाचारियों का भविष्य क्या होगा उसकी अनदेखी की गई है आखिर ये बताया तो जाना चाहिए कि कोयला घोटाला खेल घोटाला आदि जितने भी प्रकार के घोटाले हुए हैं उन घोटालों का अब क्या होगा और उन्हें करने वालों का क्या होगा! वो अब कैसे कमाएँगे खाएँगे या सरकार उनके लिए कोई फंड अलाट करेगी । आखिर पिछले दस वर्षों में भ्रष्टाचार की मंडी बन चुके सरकारी तंत्र का कारोबार ठप्प  न पड़ने दिया जाए उसके लिए क्या कुछ कर रही है सरकार !

  राहुल की वजह से नहीं हारी कांग्रेस: एंटनी (श्री न्यूज़ )  

    किन्तु  एंटनी साहब ये बात तो सबको पता है कि काँग्रेस के हारने की वजह राहुल हो ही नहीं सकते वो केवल जीतने की वजह ही हो सकते हैं क्योंकि अच्छे सारे काम उस परिवार के खाते में और बुरे बुरे सारे काम पार्टी जनों पर डाल  कर खुद सफेद पोश बने रहो काँग्रेस की ये कौन सी नीति है ! इसका एक पक्ष ये भी है कि राहुल सरकार में तो थे नहीं और गलतियाँ सरकार से हुई हैं जिसके परिणाम स्वरूप हार हुई है किन्तु जब सरकार भ्रष्टाचार के कारोबार में सम्मिलित थी तब राहुल थे कहाँ और क्यों नहीं निभा रहे थे अपनी जिम्मेदारियाँ आखिर जनता से वोट वो माँ बेटे अपने  विश्वास पर माँग कर लाते थे उस विश्वास पर उनकी सरकार खरी क्यों नहीं उतरी और तब राहुल मौन क्यों बने रहे ?

 कांग्रेस की हार के सहायक कारणों’ में से मीडिया भी एक था क्योंकि उसका सारा ध्यान एक व्यक्ति पर केंद्रित था।-गुलाम नवी आजाद  

    किन्तु  आजाद साहब !मीडिया एक व्यक्ति के साथ नहीं अपितु जनसमूह के साथ था सरकार की लीला मंडली से देश तंग था देश भी और मीडिया भी !जहाँ सच दिखाई  दिया वहाँ मीडिया ने उसका साथ दिया !   ये तो है मोदी जी के भाषण में भ्रष्टाचारियों का भविष्य क्या होगा उसकी अनदेखी की गई है आखिर ये बताया तो जाना चाहिए कि वो अब कैसे कमाएँगे खाएँगे या सरकार उनके लिए कोई फंड अलाट करेगी । आखिर पिछले दस वर्षों में भ्रष्टाचार की मंडी बन चुके सरकारी तंत्र का कारोबार ठप्प  न पड़ने दिया जाए उसके लिए क्या कर रही है सरकार !


 

 

 

 

 

                                                

 

 

 




Friday, 15 August 2014

'जनता का विश्वास जीतने में अब तक नाकाम रहे हैं राजनैतिक दल !

    अब धीरे धीरे यह स्पष्ट हो गया है कि UPA के कुशासन से त्रस्त जनता मजबूरी में  NDA की ओर मुड़ती है और  NDA से त्रस्त UPA  की ओर !किंतु भरोसा किसी पर नहीं होता है !चूँकि जनता के पास और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होता है !किन्तु विजयी दलअपनी पीठ बेकार में ही थपथपाते रहते हैं और गढ़ते रहते  हैं अपनी अपनी बहादुरी के कल्पित किस्से !

    अक्सर पड़ते रहने वाले अपने छोटे छोटे कामों के लिए भ्रष्टाचार ने जनता को त्रस्त कर रखा है देशवासियों के दुखदर्द को टटोलते सब हैं बोलते सब हैं किन्तु करने के लिए कुछ भी कोई दल या नेता तैयार नहीं है!आज सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं सरकारी अस्पतालों में दवाई नहीं डाककर्मियों में  सुनवाई नहीं ,सरकारी फोन या इंटरनेट की स्थिति डामाडोल है जहाँ जहाँ  सरकारी वहाँ वहाँ ढिलाई जहाँ जहाँ प्राइवेट वहाँ वहाँ चुस्ती आखिर कारण क्या है !

  बंधुओ !राजनैतिक दलों और नेताओं से निराश देशवासियों  की स्थिति किसी बियाबान जंगल में प्यास से पीड़ित भटकते हुए किसी  प्यासे पथिक की तरह की है वो जिस तालाब के पास दौड़ कर जाता है वो तालाब सूखा निकल जाता है उसमें पानी नहीं होता है किन्तु उस पथिक को अपनी ओर दौड़ कर आता देख कर वो तालाब अपनी पीठ थपथपाने लगता है ! मित्रो ,क्या उस तालाब को  इस बात की पीड़ा  नहीं होनी चाहिए कि उस पथिक की प्यास बुझाने में हम असफल रहे हैं !

    इसी प्रकार से देश की जनता की स्थिति आज उस स्वयंवर की तरह है जिसमें कन्या वरमाला लेकर वर की खोज में भटक रही है कभी किसी राजा के  गले में डाल देती है वरमाला और कभी किसी राजा के किन्तु वो उसकी खुशी मना पावे इसके पहले वो निकाल भी लेती है उसके गले से अपनी वर माला फिर चक्कर लगाने लगती है उसी स्वयंवर सभा में इसप्रकार से जिस जिस राजा के पास पहुँचती है वो सोचने लगते हैं कि यह कन्या शायद हम पर प्रभावित होकर हमारा ही पतिरूप में वरण करना चाहती है किन्तु तब तक वो निराश कन्या आगे बढ़ जाती है आखिर क्या खोट है उन राजाओं में क्या वे पुरुष नहीं हैं आखिर क्या कमी है उनमें क्यों नहीं पा सके उस कन्या की वरमाला ? क्या अकारण अपनी पीठ थपथपाने की जगह उन्हें आत्म मंथन नहीं करना चाहिए ?       

        बंधुओ ! UPA के कुशासन से त्रस्त होकर विकल्प विहीन जनता ने NDA और भाजपा का वरण  जिस मजबूरी में किया था वो किसी से छिपी नहीं है ऐसी परिस्थिति में अपनी अपनी कल्पित कार्यकुशलता की झूठी प्रशंसा करने के बजाए उचित तो था कि विनम्रता पूर्वक चुपचाप जनता का आदेश स्वीकार करके सरकार को जन सेवा शुरू करनी चाहिए थी और मंथन इस बात  पर होना चाहिए था कि आखिर हमारे किन सेवा कार्यों से प्रभावित होकर  देश की जनता ने दिया होगा हम लोगों को वोट उन उन कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए था ! किन्तु  उसकी जगह  NDA के लोग आपस में ही कल्पित बहादुरी के लिए थपथपाने लगे एक दूसरे की पीठ !और  NDAकी भारी विजय का श्रेय आपस में ही एक दूसरे को गिफ्ट करने लगे । यहाँ तक कि पड़ोसी देश ने उसकी सीमा में भूलवश बहकर चले गए हमारे एक सैनिको छोड़ क्या दिया यहाँ अपना एवं अपनी सरकार की जोरदारी का गुणगान किया जाने लगा उसी पड़ोसी ने जब जीना  दूभर कर दिया तो बात चीत भी बंद हो गई है आखिर कौन पूछे इनसे कि कहाँ चला गया आपका जोरदार इफेक्ट ?

   इसी प्रकार से सत्तासीन दल के एक जिम्मेदार व्यक्ति के गैर जिम्मेदार बयान को जनता कैसे स्वीकार कर ले जिन्होंने अपने अतिप्रिय कल्पित चाणक्य बाबा जी का उत्साह बर्द्धन करते हुए उन्हें कृष्ण बता दिया , हो सकता है कि उन्होंने लोकसभा के चुनाव 2014 की भारी विजय का अपने को अर्जुन भी मान लिया हो !  

     यदि ऐसा हुआ भी हो तो क्या यह जरूरी नहीं था कि इस विजय के कारणों को खोजने के लिए देखा जाता आत्मदर्पण में एक बार अपना भी मुख और फिर बनते बनाते चुनावी  महाभारत के कल्पितकृष्ण और अर्जुन !किन्तु जिन्हें अच्छी प्रकार से पता है कि पिछले दस वर्षों में हम जनता के किसी काम नहीं आ सके फिर भी जनता ने हम पर भरोसा किया है तो अभी ही परिश्रम पूर्वक उसके विश्वास पर खरे उतर जाएँ !

   बधुओ! सरकार में सम्मिलत किसी विभाग के प्रमुख ने अपने किसी विश्वास पात्र से अपनी मनोदशा बताते हुए कहा होगा कि हमने तो निश्चय कर लिया है कि सरकार में सम्मिलित रहना है तो हाँ जी हाँ जी कहना है रही बात काम करने की तो काम करेंगे तो कुछ गलतियाँ भी हो सकती हैं किन्तु काम न करने से पहली बात तो गलतियाँ नहीं  होंगी और दूसरी बात ईमानदार और स्वच्छ छवि बनी रहेगी !ऐसी बेदाग़ छवि का राजनैतिक जीवन में बड़ा लाभ होता है अपनी अकर्मण्यता के कारण अपने अपने प्रदेशों में पार्टी की लोटिया डुबा चुके कई धुरंधर केंद्र में पा जाते हैं अच्छे अच्छे पद ! राजनीति में ऐसे उदाहरण कई बार मिल जाते हैं । खैर ,क्या करना हमलोगों को !

    बंधुओ ! विगत लोकसभा चुनावों में भाजपा की विजय का श्रेय भाजपा एवं उसके नेताओं की कर्मठता को नहीं दिया जा सकता !  हमारी इस बात से यदि किसी को आपत्ति हो तो मैं पूछना चाहता हूँ  कि यदि पिछले दस वर्षों तक UPA के कुशासन से जनता त्रस्त थी तो NDA या विशेषकर भाजपा के नेताओं ने जनता का दुख दर्द बाँटने का क्या प्रयास किया था ?

   UPA सरकार की जन विरोधी नीतियाँ ,घोटाले, भ्रष्टाचार आदि से जनता अकेले जूझती रही किन्तु UPA सरकार के बीते 9 वर्षों तक NDA या विशेषकर भाजपा जनता की सशक्त आवाज तक नहीं बन सकी,कोई  जनांदोलन भी नहीं खड़ा कर सकी ,जनता ने स्वयं आंदोलन किए समाज सेवियों ने आंदोलन किए किन्तु NDA और भाजपा की ओर से क्यों नहीं किया गया कोई सशक्त जनांदोलन ! केवल इतना कहते  रहने से बात नहीं बन जाती कि मनमोहन सिंह जी अबतक के सबसे कमजोर प्रधान मंत्री रहे हैं और यदि ऐसा मान भी लिया जाए तो भी NDA और भाजपा के नेताओं को ही जवाब देना चाहिए कि जब इतने कमजोर प्रधानमन्त्री को आप लोग दस वर्ष तक हिला भी नहीं सके तो यदि कोई सशक्त प्रधानमंत्री होता तो आप क्या कर लेते ?अर्थात भाजपा और NDA की अपनी स्थिति मनमोहन सिंह जी जैसे कमजोर प्रधानमंत्री से भी कमजोर थी !

मित्रो ! इसी विषय में आप लोग पढ़ें हमारा यह  लेख भी -  ……… 

  बिगत लोकसभा चुनावों में भाजपा एवं NDA को मिली चुनावी विजय का वास्तविक नायक कौन ? 

   इन चुनावों में भ्रष्टाचार भगाना जनता का अपना मुद्दा था लोक सभा में भाजपा को मिली विजय का श्रेय जनता के अलावा किसी और को नहीं दिया जा सकता !  बंधुओ ! पिछले कुछ वर्षों से सरकार बनाने बिगाड़ने का  काम see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2014/08/blog-post_11.html

आज स्वतन्त्रता दिवस है ! साईं घुसपैठियों से स्वतंत्र कराए जाएँ सनातन धर्म मंदिर !

सनातन धर्म मंदिरों को साईं मुक्त बनाने का संकल्प लें !देश अब पाखंडों से तंग आ चुका है !  
      सनातन धर्मियो ! आज स्वतंत्रता दिवस है इस दिन देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था  ! इसलिए सनातन धर्म के मंदिरों को साईं से मुक्त कराने हेतु संकल्प लेने का अवसर है आज !

         बंधुओ ! जिन सनातन धर्म के मंदिरों में साईं नामक संगमरमरी ओल्ड मुद्राएँ रखी गई हैं वहाँ सनातन धर्म के देवी देवता कितना अपमान झेल रहे हैं पता है मंदिर प्रशासन से लेकर पुजारी तक केवल साईं सेवा में लगा होता है वहीँ सफाई होती है वहीँ मुकुटऔर पोशाकें  बदली जाती हैं वहीँ बार बार भोग लगता है वहीँ पांच बार नमाज आरती होती है सब कुछ केवल वहीँ होती है वहीँ चहल पहल होती है आपके देवी देवताओं के मंदिरों में देवी देवताओं की ही हो रही होती है घोर उपेक्षा , अपमान एवं उनकी अवहेलना !!

साईं पत्थरों को मंदिरों में रखने से हानियाँ !
मंदिरों में नाक मुख आँखें कान आदि बनाकर रखे गए साईं नाम के पत्थर पूजने से अनेकों प्रकार के नुक्सान हैं !मंदिरों में रखे गए साईं पत्थरों को पूजने से समाज को भारी भ्रम होगा और कहीं आगामी पीढ़ियाँ भगवानों की प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों को भी साईं पत्थरों की तरह ही पत्थर न समझने लगे जिससे अनादि कालीन सनातन संस्कृति से जुड़ी संतानें भ्रमित होकर भटक न जाएँ इसलिए सनातन धर्मियों को मिलजुलकर अपने मंदिरों से साईं पत्थरों को जल्दी से जल्दी बाहर करना होगा अन्यथा सनातन मंदिरों का आस्तित्व ही समाप्त होता दिख रहा है कई सनातन धर्म के देव मंदिर आज साईं मंदिरों के नाम से प्रसिद्ध होने लगे हैं ये चिंता का विषय है !see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2014/07/blog-post_31.html
 

        अरे  सनातन धर्मियो !

  क्या साईं राम से मुक्त नहीं करा सकते अपने श्री राम मंदिरों को ?

 क्या साईं श्याम से मुक्त नहीं करा सकते अपने श्री श्याम मंदिरों को ?

क्या साईं नाथ से मुक्त नहीं करा सकते बाबा भोले नाथ मंदिरों को ?

 क्या साईं माता से मुक्त नहीं करा सकते अपने देवी मंदिरों को ?

 क्या साईं बाबा से मुक्त नहीं करा सकते अपने संकटमोचन श्री हनुमान जी के मंदिरों को ?

 

साईं पत्थरों को मंदिरों में रखने से हानियाँ !


     बंधुओ!मंदिरों में नाक मुख आँखें कान आदि बनाकर रखे गए साईं नाम के पत्थर पूजने से अनेकों प्रकार के नुक्सान हैं !मंदिरों में रखे गए साईं पत्थरों को पूजने से समाज को भारी भ्रम होगा और कहीं आगामी पीढ़ियाँ भगवानों की प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों को भी साईं पत्थरों की तरह ही पत्थर न समझने लगे जिससे अनादि कालीन सनातन संस्कृति से जुड़ी संतानें भ्रमित होकर भटक न जाएँ इसलिए सनातन धर्मियों को मिलजुलकर अपने मंदिरों से साईं पत्थरों को जल्दी से जल्दी बाहर करना होगा अन्यथा सनातन मंदिरों का आस्तित्व ही समाप्त होता दिख रहा है कई सनातन धर्म के देव मंदिर आज साईं मंदिरों के नाम से प्रसिद्ध होने लगे हैं ये चिंता का विषय है !see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2014/07/blog-post_31.html


श्री राम सेतु की रक्षा संबंधी निर्णय के लिए मोदी सरकार को बधाई !

श्रीराम सेतुके विषय में मोदी सरकार मानेगी  श्री राम का आदेश !

         मोदी सरकार को इस बात के लिए बधाई कि  श्री राम सेतु की रक्षा के विषय में बिना किसी किन्तु परन्तु के स्पष्ट नीति अपनाई  कि हम श्रीराम सेतु को नहीं तोड़ेंगे !इसका सीधा सा मतलब है कि आप श्री राम सेतु की रक्षा करेंगे !

      मोदी जी !मुझे प्रसन्नता केवल इसी बात की नहीं है कि आपने श्री रामसेतु को सुरक्षित रखने का बचन दिया है अपितु ख़ुशी इस  बात के लिए भी है कि श्री राम जी ने आप जैसे  सभी भारत वर्ष के भावी प्रशासकों से श्री राम सेतु की रक्षा के लिए जो याचना की थी, श्री राम जी की उस  याचना को आपने न केवल विनम्रता पूर्वक सेवा  भावना पूर्वक श्री राम जी के आदेश के रूप में यथावत  स्वीकार किया है अपितु इसे अपना कर्तव्य भी समझा है इसके अलावा श्री रामसेतु के विषय में श्री राम जी के आदेश पर ही बिना किसी किन्तु परन्तु के सीधे सीधे अपना शिर झुका दिया है ये सनातन धर्मियों के लिए गौरव की बात है आपका ये सदाचरण अच्छा लगा बहुत अच्छा लगा , ईश्वर आपको एवं आपके सहयोगियों को चिरायुष्य दे !

 श्री राम सेतु के विषय में श्री राम जी ने स्वयं कहा था कि  

     भूयो भूयो भाविनो भूमिपालाः

                नत्वा नत्वायं याचते रामचंद्रः । 

     सामान्योयं धर्मसेतुर्नराणां 

                  काले काले पालनीयो भवद्भिः || 

                          - स्कन्ध पुराण धर्म सेतु माहात्म्य

भावार्थ -भविष्य में भारत वर्ष  में शासन करने वाले राजाओ ! याद रखना कि इस धर्म सेतु का भारतीय संस्कृति पर बहुत बड़ा ऋण है इसलिए मैं आप सबसे नतमस्तक होकर याचना करता हूँ कि अपना तन मन धन न्यौछावर करके भी आप लोग इस धर्म सेतु की रक्षा करना ,हर युग के नर नारियों से भी मेरी यही प्रार्थना है !

इस विषय में पढ़िए ये लिंक भी -

      कैसे भूल जाएगा हिन्दू समाज श्री राम सेतु के महान महत्त्व को?

सेतुसमुद्रम परियोजना के तहत भारत और श्रीलंका के बीच से जहाजों के गुजरने के लिए रामसेतु को पार करते हुए 30 मीटर चौड़े 12 मीटर गहरे और 167 किलोमीटर see more...http://snvajpayee.blogspot.in/2013/02/blog-post_5909.html

Wednesday, 13 August 2014

संघ जैसे राष्ट्र प्रहरी संगठन एवं भाजपा को लेकर क्यों किया जाता है अक्सर दुष्प्रचार !?

देश ,समाज और संस्कृति के प्रति समर्पित है आर .एस.एस. !

      बंधुओ !विश्वास किया जाना चाहिए कि देश के प्रति स्वश्रृद्धा  से  समर्पित  आर. एस. एस. के  ये ऐसे पवित्र प्रचारक हैं जो अपने दुलारे देश के विरुद्ध कुछ करने और बोलने की बात तो दूर कुछ सोच भी नहीं सकते, कुछ सह नहीं सकते।राष्ट्रनिष्ठा के प्रति ये इतने कट्टर लोग हैं  ये अत्यंत ऊँची राष्ट्रवादी सोच के धनी लोग हैं जो तुच्छ जिजीविषा कभी नहीं स्वीकार करेंगे।देश और समाज के लिए जिन्होंने अपना  जीवन ही दाँव पर लगा रखा है अपने देश और समाज पर कोई हमला करे वो दुर्दिन देखने के लिए ये जीवित रहना भी पसंद नहीं करेंगे मैं इनकी राष्ट्र निष्ठा से निजी तौर पर भी सुपरिचित हूँ जहाँ तक मेरी समझ मेरा साथ देती है मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि ये अपने देश के विरुद्ध कुछ होते देखकर भी  जीने के लिए पैदा ही नहीं हुए हैं ऐसे सज्जनों की आवश्यकता देश को है।जिस किसी को न हो तो न रहे बाक़ी देश को है ।    

      राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों की पवित्र एवं विरक्त जीवन शैली होती है उनका वाणी एवं आचरण पर अद्भुत संयम देखा जाता है भारतीय समाज एवं संस्कृति के प्रति समर्पित उनका आचार व्यवहार है देश ही उनका परिवार है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ साथ उसके अतिरिक्त भी समाज के ऐसे सभी सज्जन एवं साधु चरित्र लोगों पर एवं देश की रक्षा में समर्पित बंदनीय सैनिकों के ऊपर कोई भी टिप्पणी सात्विक शब्दों में अत्यंत सावधानी पूर्वक की जानी चाहिए।मैं मानता हूँ कि संत वही है  जिसका आचरण सदाचारी और विरक्त हो। जाति,क्षेत्र,समुदाय,संप्रदाय वाद से ऊपर उठकर ऐसे लोगों के प्रति सम्मान भावना का संस्कार नौजवानों में डालना ही चाहिए ।       

    मोहन भागवत जी एक सक्षम विचारक हैं उन्होंने अपना  सारा जीवन देश  और समाज के लिए समर्पित कर रखा है उनके सक्षम संगठन के विभिन्न आयाम देश के कोने कोने में जनहित में विभिन्न प्रकार के काम कर रहे हैं।गरीबों, बनबासियों, आदिवासियों, ग्रामों, नगरों, शहरों के साथ साथ स्वदेश  से लेकर विदेशों  तक का उनका अपना अनुभव है।वो ग्रामों, शहरों की संस्कृति से अपरिचित नहीं अपितु सुपरिचित हैं। ऐसी भी कल्पना नहीं करनी चाहिए कि उन्हें देश के किसी पीड़ित की ब्यथा सुनकर पीड़ा नहीं अपितु प्रसन्नता होती होगी।हो सकता है कि कई बार उनकी बात का अभिप्रायार्थ उस प्रकार से समाज में न पहुँच सका हो जैसा कि वो पहुँचाना चाहते हों किंतु उनकी समाज एवं देश निष्ठा पर किसी भी चरित्रवान, सात्विक एवं सज्जन व्यक्ति को संदेह नहीं होना चाहिए।श्री मोहन भागवत जी के  सार गर्भित सुचिंतित वक्तव्य पर निंदा आलोचना का ये ढंग उचित नहीं कहा जा सकता है।जिस प्रकार से कुछ पद लोलुप लोग किसी पर भी विशेषकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बंधित लोगों का नाम याद आते ही अकारण उनकी निंदा करने की लत के शिकार होते जा रहे हैं इस तरह की आदत देश हित में नहीं मानी जा सकती।   

   इसके अलावा भी भाजपा समेत इसके समस्त संगठनों की आलोचना जितनी निर्ममता पूर्वक विभिन्न राजनैतिक दलों या नेताओं के द्वारा की जाती है किसी लज्जावान व्यक्ति या समूह के लिए ऐसा कर पाना सम्भव नहीं है !

     आप स्वयं देखिए कि गुजरात की जनता मोदी जी के विषय में  चिल्ला चिल्लाकर न केवल यह कहती रही कि मोदी जी अच्छी सरकार चला रहे हैं अपितु उनका समर्थन भी बार बार करती रही तभी तो उनकी सरकार हर बार बनती रही फिर भी गुजरात में चुनावों के समय दिल्ली से नेता लाद लाद कर गुजरात की जनता को यह समझाने के लिए भेजे जा रहे थे कि मोदी जी गलत हैं या मोदी जी धर्म विशेष के लोगों के लिए खतरा हैं आखिर इसे झगड़ा भड़काने की साजिश क्यों न समझा जाए ! जो गुजरात की जनता को नहीं पता था वो स्वप्न इन्होंने कैसे देख लिया होगा उसके आधार इनके पास क्या थे ! फिर भी इन्हें लग रहा था कि हम्हीं समझदार हैं किन्तु जनता इन्हें बार बार इस बात का एहसास करवाती रही कि वास्तव में समझदार कौन है !यही हाल अबकी पूरे देश की जनता ने किया फिर भी इन्हें समझ में नहीं आ रहा है !इन्हें इस बात का भी अनुमान नहीं है कि अब आर.एस.एस. या भाजपा को तालिबानी कहने का अर्थ सम्पूर्ण भारत वर्ष की जनता को चुनौती देना है क्योंकि सत्ता तो उन्हें देश की जनता ने सौंपी है एक राजनैतिक दल की हैसियत सुरक्षित रखने की दृष्टि से भी किसी दल के लिए आर. एस. एस. या भाजपा की निराधार आलोचना करना इसलिए भी ठीक नहीं है क्योंकि इस समय जनता उनके साथ उन्हें अच्छा समझ कर ही खड़ी हुई है और लोकतंत्र में जनता से बड़ा कोई होता नहीं है !      

   किसी भी राजनैतिक सामाजिक संगठन को चाहिए कि वो आर. एस. एस.जैसे संगठनों में सम्मिलित होकर इनकी गतिविधियाँ देखे एवं इनकी सामाजिक सांस्कृतिक साधना की सराहना करें इन्हें प्रोत्साहित करें इनका सहयोग करें और कहीं शंका लगती है तो उस पर चर्चा करें या शंका समाधान करें ,किन्तु ऐसा बिना कुछ किए ही बिना किसी आधार प्रमाण के इनके विषय में कुछ अनर्गल बोलते रहना ठीक पद्धति नहीं है !      

     आज आर .एस.एस. की तुलना कोई तालिबान से कर रहा है तो कोई भगवा आतंकवाद बता रहा है कोई देश और समाज को तोड़ने वाला बता रहा है वो भी वो लोग जो देश की सरकार में अभी तक रह चुके हों फिर प्रश्न तो उठता है कि यदि ये गलत हैं तो ऐसे लोगों के विरुद्ध इन्होंने कोई जाँच क्यों नहीं करवाई !

    एक बार एक राष्ट्रीय राजनैतिक दल  के मंथन शिविर में भाजपा को आर.एस.एस.की कठपुतली बताया गया और भाजपा का रिमोट आर.एस.एस. के हाथ में बताया गया आखिर क्यों ?और यदि ऐसा है भी तो संघ जैसे चरित्र प्रहरी संगठन के प्रति इतनी आशंकाएँ क्यों हैं आखिर क्या भूल हुई है उससे ! केवल यही न कि देश की गौरव रक्षा हेतु वो मर मिटने के लिए तैयार है! वो स्वदेशियों को स्वाभिमानी बनाना चाहता है आर. एस. एस.की सोच में ही नहीं है कि कोई राष्ट्रवादी भारतीय किसी विदेशी के सामने गिड़गिड़ाकर राजनैतिक या गैर राजनैतिक पद प्रतिष्ठा पाने के लिए दुम हिलाए या  भीख माँगे !

      आर.एस.एस.एक स्वतंत्र संगठन है राष्ट्रभक्ति की भावना से कार्य करने की उनकी अपनी शैली है।सत्ता सुख की ईच्छा छोड़कर देश के लाखों लोग उनके साथ जुड़कर समाज सुधार के विभिन्न कार्यों में लगे रहते हैं ।वे मंत्री मुन्त्री पद के लोभ में किसी अभारतीय का चरण चुम्बन नहीं करना चाहते हैं तो इसमें उनका दोष क्या है?वो भारतीयता पर गर्व करते हैं इसमें किसी को बुरा क्यों लगे और लगे तो लगे।आखिर उन्हें अनावश्यक रूप से क्यों कोसा जाता है ?

       आर .एस.एस. की विचार धारा में स्वदेश के प्राचीन पवित्र संस्कारों के आधार पर  जीना सिखाया जाता है। जिसमें न तो आधुनिक लव है और न ही लव मैरिज।ऐसे लव लबाते लोग किसी पवित्र संगठन में सड़ांध पैदा करें इससे अच्छा है कि ऐसे लोग दूर ही रहें और  उन्हें उनकी शैली में काम करने दें। आखिर बलात्कार, भ्रष्टाचार,महँगाई से लुटे  पिटे  बचे  खुचे   देश का पुनर्निमाण करने के लिए जिन देश भक्त  स्वयं सेवकों की जरूरत देश को है उनके निर्माण  कार्य में ऐसे संगठन निरंतर प्रशंसनीय कार्य करते चले आ रहे हैं।अपने आकाओं को प्रसन्न करने एवं सत्ता पाने के लालच में आर .एस.एस. की आलोचना कितनी न्यायोचित है ?ये अकारण  निंदा करने की परंपरा ठीक नहीं है ।

    अब बात यहाँ संस्कारों की है  लव मैरिज के लालच में लोग पहले लव करते हैं फिर लव मैरिज ।लव में असफल होने पर बलात्कार करते हैं उसके बाद हत्या करते हैं जो आज देश की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है!ऐसा होने पर बलात्कारी नवजवानों को फाँसी की सजा की माँग उठती है ।यदि फाँसी की सजा हो जाए तो फाँसी के फंदे पर लटकने वाला भारतीय नवजवान ही होगा।जिसकी ऊर्जा कभी देश हित में काम आ सकती थी उसे प्रेम प्यार के चक्कर में पड़कर मनोरंजन के लिए जिंदगी गँवानी पड़ी।

     इस प्रेम प्यार के चक्कर में पड़कर मरने और मारने वाले दोनों युवक युवतियाँ भारतीय ही तो हैं इसलिए संस्कारों के अभाव में यह नुकसान देश को उठाना पड़ता है इसलिए यह चिंतन भी होना चाहिए कि ऐसा क्या किया जाए जिससे भारतीय युवा वर्ग लव वब के चक्कर में न पड़े और अपने प्राचीन संस्कारों पर न केवल गर्व करें अपितु उन्हें अपने आचरण में भी उतारें । इससे जब लव मैरिज का लालच ही नहीं होगा तो लोग  लव  वब के चक्कर में  पड़ेंगे ही क्यों ?और जब इस चक्कर में ही नहीं  पड़ेंगे तो उन्हें प्रेम पंथ में असफल होने का दुःख ही क्यों होगा ?इसलिए वो  बलात्कार जैसा जघन्य अपराध नहीं करेंगे तो किसी की हत्या करने की आवश्यकता ही क्यों पड़ेगी ? जब बलात्कार  ही नहीं होगा तो नवजवानों को फाँसी की सजा नहीं होगी यदि फाँसी की सजा न हुई तो बलात्कार से पीड़ित एवं बलात्कारी दोनों युवा सुसंस्कारित हो कर देश के काम आ सकेंगे ये ही भारत के प्राचीन संस्कार हैं इन्हें हर भारतीय प्रचारित करे तो इससे किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, और आर.एस.एस. की विचारधारा में स्वदेश के प्राचीन पवित्र संस्कारों के आधार पर ही यदि  जीना सिखाया जाता है तो और अच्छी बात है यदि इससे देश की एक बड़ी पार्टी भाजपा भी जुड़ी है तो यह  सबसे अच्छी बात है।इससे किसी को तकलीफ क्यों होनी चाहिए?हाँ जिन पार्टियों में भारतीय संस्कारों की कमी के कारण उनके वरिष्ठ लोग ही लव और लव मैरिज में जब रूचि ले रहे हों  तो वो किसी और को कैसे रोक  सकेंगे ?और उन्हें  आर.एस.एस. बुरा तो लगेगा ही जहाँ तक आर.एस.एस. की विचार धारा की कठपुतली जैसी शब्दावली भाजपा के लिए यदि कोई प्रयोग करता है तो वह हीन भावना से ग्रस्त ही माना जाएगा ।

     आर.एस.एस. राष्ट्रवाद की बात करता है भारतीयों के प्राचीन संस्कारों एवं प्राचीन विद्याओं की बात करता है।अपने दुलारे भारतवर्ष को सबल सक्षम समृद्ध एवं संस्कारी बनाने का सपना लिए ऋषि तुल्य हजारों विरक्त, तपस्वी, पवित्र, प्रचारकों ने अविवाहित रहकर अपना जीवन देश लिए समर्पित कर रखा है।वे लोग देश के कोने कोने के गाँव गाँव में जन जन से मिलकर प्राचीन राष्ट्र भक्तों का बताया हुआ सन्देश प्रचारित करते हैं।उनका सादा जीवन एवं सहज रहन सहन होता है। 

    इसलिए जो लोग आर.एस.एस.की कठपुतली कहकर भाजपा की निंदा करना चाहते हैं उन्हें यह भी जानना चाहिए कि उनसे निंदा नहीं अपितु भाजपा के संस्कारों की प्रशंसा हो रही है ।

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।