साईं न तो संत हैं और न ही भगवान वो एक भ्रम हो सकते हैं!
साईं सनातन धर्म के भगवान तो हो ही नहीं सकते वे संत भी नहीं हैं क्योंकि भगवान हमेंशा मुस्कुराते रहते हैं ' सस्मितं पीतवाससम् ' साईं के चहरे पर न तो कभी मुस्कान दिखी और शरीर पर न ही कभी पीताम्बर !
इसी प्रकार से साईं यदि हमारे संत होते तो आँखें बंद करके ध्यान लगाकर बैठते किन्तु साईँ की हर मूर्ति आँखें खोलकर बैठी होती है मानों चेलों का हिसाब किताब लगाया करते हैं कि कौन आया कौन नहीं आया और कौन क्या लाया क्या नहीं लाया !
साईं पत्थरखण्डों को पूजकर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं कि झूठे हैं हमारे
देवी देवता !और हमारा धर्म पाखण्ड है हमारे यहाँ वेद मन्त्रों का कोई
महत्त्व नहीं है हमारा हमारे देवी देवताओं से कोई लगाव नहीं हैं हम किसी को
भी बना सकते हैं अपना भगवान ! अपने धर्मको मानते मानते क्या हम थक गए हैं क्या इसीलिए साईं को मानने लगे हैं !
मंदिरों में रखे गए साईं पत्थरों को पूजते पूजते लोगों के हृदय पथरीले हो गए !जिनके दुष्प्रभाव से मरती जा रही हैं संवेदनाएँ बिखरते जा रहे हैं सम्बन्ध ,टूटने लगे हैं परिवार और होने लगे हैं तलाक !
मूर्तियाँ पत्थरों से बनाई जाती हैं वो तब तक केवल पत्थर की मूर्तियाँ
रहती हैं जब तक उनमें किसी देवी देवता की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती है और
प्राण प्रतिष्ठा उसी की हो पाती है जिस देवी देवता के प्राण प्रतिष्ठा के
मन्त्र होते हैं , मन्त्र वेद में लिखे गए हैं वेद जब लिखे गए थे मन्त्र
तभी लिखे गए थे । उसके बाद पैदा हुए जिन लोगों की मूर्तियाँ बनाकर पूजी
जाती हैं उनके मन्त्र वेदों में होना संभव ही नहीं है और मन्त्र न होने से बिना मन्त्र के उनकी प्राणप्रतिष्ठा नहीं हो पाती है और प्राण प्रतिष्ठा न होने से वो पत्थर खंड पत्थर ही बना रहते हैं ऐसे पत्थरों को पूजने से लोगों कुछ मिलना तो था ही नहीं किन्तु उनके हृदय पत्थर जैसे जरूर होते जा रहे हैं संवेदनाएँ मरती जा रही हैं सम्बन्ध टूटते जा रहे हैं परिवार बिखरते जा रहे हैं लोग छोटी छोटी बातों पर एक दूसरे की हत्याएँ करने लगे हैं गर्भ में बच्चियाँ मारी जा रही हैं बलात्कार की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं ।ऐसे और भी बहुत सारे साइड इफेक्ट मंदिरों में रखे गए साईंपत्थर खण्डों को पूजने से सामने आ रहे हैं । जिसकी मनोकामनाएँ देवी देवता पूरी नहीं कर पाएँगे उनकी मनोकामनाएँ साईं पूरी करेंगे क्या ?
वर्तमान समय में सर्व धर्म समभाव के नाम पर नाटक करने वाले जो पुरुष अपनी पत्नी जैसा व्यवहार सभी स्त्रियों से करना चाहते हों, इसी प्रकार से जो स्त्रियाँ अपने पति की छवि सभी पुरुषों में देखने लगती हों इसी प्रकार से जो बच्चे चाकलेट देने वाले हर व्यक्ति को अपना बाप बना लेते हों, इसी प्रकार से जो लोग मनोकामनाएँ पूर्ण करवाने के लिए अपना भगवान बदल लेते हों ऐसे लोग आपने को सनातन धर्मी कहते हैं यही शर्म का विषय है क्या यही सनातन धर्म शास्त्रों के संस्कार हैं !आखिर क्या कमी दिखी प्रभु श्री राम ,कृष्ण ,शिव ,दुर्गा अादि अपने आराध्य देवी देवताओं में उन्हें क्यों बदनाम किया गया कि वे मनोकामनाएँ पूरी नहीं कर पातें हैं इसलिए उन्हें सस्पेण्ड करके लोग साईं को पूजने लगे !
पूजना किसे चाहिए ?साईं को या हनुमान जी को ?
लोगों का मानना है कि यदि लॉफिंगमुद्रा अर्थात हँसते हुए चित्र या मूर्तियाँ घर में रखी जाएँ तो घर में हँसी खुशी का वातावरण बनता है । हो सकता है यह ठीक हो यदि इसे सच मान लिया जाए तो ओल्ड मुद्राएँ(साईं मूर्तियाँ )घर में रखने या पूजने से बुढ़ापा क्यों नहीं आ सकता है ?अर्थात आएगा ही !जवानों के बाल झड़ेंगे,बाल सफेद होंगे,दाँत गिरेंगे चश्मा लग जाएगा !और बूढ़ों जैसी निराशा की बातें करने लगेंगे ऐसा हो भी रहा है दूसरी ओर बज्रांग हनुमान जी को पूजने से शरीर बज्र के समान हो जाता है और आ जाती है बुढ़ापे में भी जवानी !अब आप स्वयं सोचिए कि आखिर पूजना किसे चाहिए ?साईं को हनुमान जी को ?
लॉफिंगमुद्रा से घर में यदि हँसी ख़ुशी आ सकती है तो ओल्ड मुद्रा (साईं) पूजने से क्या होगा ?
कुछ लोगों का मानना है कि यदि लॉफिंगमुद्रा अर्थात हँसते हुए चित्र या मूर्तियाँ घर में रखी जाएँ तो घर में हँसी खुशी का वातावरण बनता है । हो सकता है यह ठीक हो यदि इसे सच मान लिया जाए तो ओल्ड मुद्राएँ(साईं मूर्तियाँ )घर में रखने या पूजने से बुढ़ापा क्यों नहीं आ सकता है ?अर्थात आएगा ही !जवानों के बाल झड़ेंगे,बाल सफेद होंगे,दाँत गिरेंगे चश्मा लग जाएगा !और बूढ़ों जैसी निराशा की बातें करने लगेंगे ऐसा हो भी रहा है दूसरी ओर बज्रांग हनुमान जी को पूजने से शरीर बज्र के समान हो जाता है और आ जाती है बुढ़ापे में भी जवानी !अब आप स्वयं सोचिए कि आखिर पूजना किसे चाहिए ?
साईं समर्थक कुछ लोग हमें मूर्ख या अपशब्द कह रहे हैं, उनके सम्मान में सादर समर्पित !
जिस हिन्दू के अपने बाप बाबा आदि पूर्वज जिन श्री राम ,कृष्ण ,शिव
,दुर्गा अादि अपने देवी देवताओं को पूजते रहे हों वो उन्हें भूलकर अज्ञान
वश किसी ऐरे गैरे को भगवान मान बैठे फिर भी अपने बाप बाबा आदि पूर्वजों को
इसलिए मूर्ख मानता हो क्योंकि वो देवी देवताओं को पूजते रहे हों और किसी
साईंबुत की खोज नहीं कर सके हों ऐसे लोगों की गलती क्या दी जाए गलती उनके
माता पिता की है जिन्होंने ऐसी सामाजिक बुराइयों को जन्म दिया है गलती एक
दो लोगों की किन्तु बोझ वो आज पूरे समाज पर बने हुए हैं |साईं बुड्ढे का
पक्ष ले लेकर पूरी सनातन धर्मी समाज को मूर्ख बेवकूप आदि और भी बहुत कुछ
गाली गलौच अादि करते घूम रहे हैं !मनुष्य शरीर रूपी ऐसी बुराइयों को
ब्राह्मण या हिन्दू या सनातन धर्मी कैसे माना जा सकता है यह भी अच्छा है कि
अपने माँ बाप के कुचालों का परिचय वे अपने आचरणों से स्वयं दे रहे हैं कि
वे उनके नहीं है जिनके समाज उन्हें समझ रहा है वस्तुतः वे उनके हैं जिनके
समाज उन्हें नहीं समझ रहा है वे जिनके हैं उनका पक्ष ले रहे हैं सुना है
साईं हिन्दू नहीं थे इस नियम से तो उनके अनुयायी हिन्दू होंगे इसपर विश्वास
कैसे किया जा सकता है अगर वे हिन्दू होते तो हिन्दू देवी देवताओं पर गर्व
करते और मानते हिन्दू धर्मशास्त्रों को और क्यों पूजते साईं को !आखिर क्या
कमी दिखी उन्हें श्री राम ,कृष्ण ,शिव ,दुर्गा अादि अपने देवी देवताओं में
और क्या अच्छाई लगी बुड्ढे साईं के बुत में !