Friday, 1 August 2014

' भागवत कथाओं में भ्रष्टाचार ' अाखिर किस लोभ से भागवत को भोगवत बना रहे हैं लोग ?

   यदि धार्मिक समाज अपने दायित्व का निर्वहन ठीक से करता तो संभव है कि अपराध, भ्रष्टाचार एवं बलात्कार जैसे अपराध इतने न बढ़ने पाते ! 

    जो भागवत वक्ता स्वयं ही भागवत में कहे हुए भागवत वक्ताओं के आचार व्यवहार का पालन न करके अपितु मजनूँ बने घूमते हों वो किस मुख से दूसरों को सुनाएँ समझाएँगे भागवत !और ऐसे लोगों की बातें लोग मान भी क्यों लेंगे जिन्हें भागवत की बातें मानने में खुद शर्म लगती हो ! 

     नाच गाना का मैं विरोधी नहीं हूँ किन्तु यह सब कुछ अपनी जगह ठीक होता है चूँकि वह भी हमारी शास्त्रीय विधा है भगवान शिव ने भी तो नृत्य किया था किन्तु  भागवत कथाओं में नाच गाना ठीक नहीं होता है !      

      वस्तुतः भागवत आत्मरंजन का ग्रन्थ है किन्तु इसे मनोरंजन की तरह परोसा जा रहा है ये केवल गलत ही नहीं अपितु सामाजिक कई बड़ी बुराइयों की जड़ भी है  ! जैसे खीर भी अच्छी होती है और चटनी भी अच्छी होती है दोनों चीजें खाने में अच्छी लगती भी हैं किन्तु यदि दोनों को अच्छा समझकर दोनों को ही एक में मिला दिया जाए तो दोनों का स्वाद तो नष्ट हो ही जाएगा साथ ही उससे स्वास्थ्य भी बिगड़ेगा क्योंकि कहते हैं कि दूध और खटाई मिलने से दूध फट जाता है ठीक इसीप्रकार भागवत कथाओं में संगीत के मिल जाने भागवत कथाओं का उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है।अब आजकल की भागवत कथाओं के नाम पर आयोजित की जा रही कथा रैलियों   को   ही  लें  जहाँ कथाओं के नाम पर हुल्लड़ करने वाले  लोग भागवत  की पोथी खोलना ही न जानते हों किन्तु श्रंगार बिलकुल मजनुओं जैसा करते हैं उनसे भागवत कहने की आशा कैसे की जाए ! 

     स्वामी अखंडानंद जी महाराज जी ने भक्ति सूत्रं  की टीका करते हुए लिखा है कि किसी व्यक्ति के शरीर का श्रृंगार उसके मन की बासना अर्थात सेक्स को प्रकट करता है ! इस नियम से तो स्पष्ट है कि मजनुओं जैसा श्रृंगार करने वाले भागवती गायक बासनात्मिका भावनाओं को छलकाते डोल रहे होते हैं वे समाज को नचा गवा रहे होते हैं ऐसी भगदड़ भागवत जैसे ग्रंन्थ के लिए उचित ही नहीं है फिर भी जो विरक्त और विद्वान भागवत वक्ता  हैं मेरी ये टिप्पणी उनके लिए नहीं है वो स्वतन्त्र हैं मुझे विश्वास है कि वो वही करेंगे जो धर्मशास्त्र  सम्मत होगा !क्योंकि उन्हें धर्म की चिंता हमसे अधिक है ।  

    बंधुओं!भागवत परम वैराग्य का एवं बहुत कठिन ग्रन्थ है विद्वानों की परीक्षा भी भागवत में ही होती है जिसका विषय इतना कठिन हो उसे संगीत के माध्यम से कैसे समझा या समझाया जा सकता है । लोग कहते हैं कि भागवत कठिन होती है लोग रूचि नहीं लेते हैं इसलिए थोड़ा गाना बजाना करना पड़ता है इस पर मेरा निवेदन यह है कि यदि किसी कक्षा में मैथ  पढ़ाना हो ,ये माना जा सकता है कि मैथ समझना समझाना दोनों कठिन होता है जल्दी से समझ में नहीं आता है तो क्या तबला ढोलक बजाते हुए केवल मैथ मैथ गाने से मैथ समझ में आ जाएगी !और यदि नहीं आ जाएगी तो भी मैथ की कक्षा में समय पास करने के लिए शिक्षक लोग ढोलक बजाते हुए केवल मैथ मैथ करें तो क्या ये छात्रों के साथ धोखाधड़ी नहीं है और यदि है तो भागवत वक्ता भागवत कथा के नाम पर भोगवत करते अर्थात भजन सुनाते घूम रहे हैं "राधे राधे रटो चले आएँगे बिहारी"

     अरे जब मैथ मैथ करने से मैथ नहीं चली आएगी तो राधे राधे कहने से राधे और बिहारी कैसे चले आएँगे ! समय पास करने के लिए समाज के साथ कितना बड़ा धोखा हो रहा है !भागवत कथाओं के नाम पर इतना डालडा !आश्चर्य !!

       भागवत वक्त भागवत कथाओं के नाम पर इतनी धोखाधड़ी करते घूम रहे हैं !यदि नहीं तो आत्मा और परमात्मा के विषय में गूढ़ व्याख्या करने वाला ग्रन्थ भागवत तबला ढोलक बजाकर केवल राधे राधे गाकर कैसे समझाया जा सकता है ? और यदि समझाया जा सकता होता तो व्यास जी ,शुकदेव जी आदि क्या नाच गा नहीं सकते थे या उनको नाचना गाना आता नहीं था या वो नाचना गाना सीख भी नहीं सकते थे !इसलिए उन्होंने ये साब आडम्बर नहीं किया था । 

      यहाँ मेरे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि हमें शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान को जानना चाहिए उसे ही मानना चाहिए और जो उसके अनुशार चलता हो उसे ही धार्मिक आदि मानना चाहिए!अब आजकल की भागवत कथाओं के नाम पर आयोजित की जा रही रैलियों को ही लें जहाँ कथाओं के नाम पर हुल्लड़ करने वाले लोग भागवत की पोथी खोलना जानते हों न जानते हों किन्तु श्रंगार बिलकुल मजनुओं जैसा करते हैं स्वामी अखंडानंद जी महाराज जी ने भक्ति सूत्रं  की टीका करते हुए लिखा है कि किसी व्यक्ति के शरीर का श्रृंगार उसके मन की बासना अर्थात सेक्स को प्रकट करता है ! इस नियम से तो स्पष्ट है कि मजनुओं जैसा श्रृंगार करने वाले भागवती गायक बासनात्मिका भावनाओं को छलकाते डोल रहे होते हैं वे समाज को नचा गवा रहे होते हैं ऐसी भगदड़ भागवत जैसे ग्रंन्थ के लिए उचित नहीं है फिर भी जो विरक्त और विद्वान भागवत वक्ता  हैं मेरी ये टिप्पणी उनके लिए नहीं है मुझे विश्वास है कि वो वही करेंगे जो धर्मशास्त्र  सम्मत होगा !क्योंकि उन्हें धर्म की चिंता हमसे अधिक होती है । 

       यहाँ मेरे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि हमें शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान को स्वयं जानना चाहिए उसे ही मानना चाहिए और जो उसके अनुशार चलता हो उसे ही धार्मिक आदि मानना चाहिए!      

         चाहें बाबा हों या भागवत वक्ता  या ज्योतिषी आदि कोई भी मैं सबसे अपेक्षा करता हूँ कि शास्त्रों की मर्यादा बनाए या बचाए रखने का प्रयास सभी लोग करें और समाज को  भी शास्त्रीय विषयों में भी इतना तो जागरूक होना ही चाहिए कि किसी भी बाबा,भागवत वक्ता या ज्योतिषी आदि जो भी लोग हैं उनका परीक्षण करते रहना चाहिए यदि उनका अपना जीवन शास्त्र पद्धति के अनुशार है तभी उनसे जुड़ने का फायदा है अन्यथा नहीं !कई घटनाएँ ऐसी सुनने में आ चुकीं कि महिलाओं ने किसी को गुरु बनाया उनसे दीक्षा ली किन्तु गुरु जी अपनी शिष्या  पर ही आकृष्ट हो गए और उससे बासनात्मक सुख पाने के लिए छीना झपटी करने लगे जब उसने विरोध किया तो कहते हैं कि गुरु की इच्छा का अपमान करती हो तुम्हें पाप पड़ेगा वो भयभीत हो गयी और उसने सम्बन्ध स्वीकार कर लिए बाद में गुरू जी ने समझाया कि आपको पवित्र करने के लिए यह सब करना अत्यंत आवश्यक था वैसे हमें बासना से क्या लेना देना किन्तु आपके लिए हमें यह सब करना पड़ा जैसे पति पत्नी का सम्बन्ध होता है वैसा ही तो गुरु शिष्य का सम्बन्ध होता है यदि सम्बन्ध ही न स्थापित करना हो तो सम्बन्ध किस बात का !आदि आदि ऊटपटाँग बातें समझाकर गुरु जी नित्य लीला करते रहे ऊपर से समझावें कि किसी और गुरु की बात न सुनना नहीं तो वो लोग भटका देंगे !       

     धर्म किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं है सभी सनातन धर्मी सनातन धर्मशास्त्रीय मर्यादाओं से बँधे हुए हैं सब को मिलजुलकर उनका पालन करना चाहिए !धर्म शास्त्रीय या शास्त्रीय नियमों के विरुद्ध आचार व्यवहार अपनाने वाले लोग धार्मिक जैसे दिखते तो हैं किन्तु धार्मिक होते नहीं हैं !

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