नेताओं , भोगियों ,भिखारियों और व्यापारियों को संत एवं उनके कार्यस्थलों को आश्रम न कहा जाए ! मीडिया भी निभाए इतनी भूमिका !ऐसे लोग संत वेष में ही क्यों न हों तो भी उनके साथ आम जनता जैसा व्यवहार ही होना चाहिए !
संतों के वेष में छिपे नेता लोग -
नेतागिरी करने की उत्कट इच्छा को पूरा करने के लिए कुछ लोग बाया सधुअई नेता बनते हैं अर्थात पहले साधू बनकर धन संग्रह करते हैं समाज में विश्वास जमाते हैं ऐसा भी कहा जा सकता है कि नेता बनने के लिए सधुअई का इस्तेमाल करते हैं इनके रहन सहन आचार व्यवहार आदि में धर्म कर्म पूजा पाठ आदि के कोई लक्षण नहीं होते हैं । ये धार्मिक बातों की अपेक्षा हमेंशा सामाजिक एवं राजनैतिक बातों विचारों में ही रूचि लेते हैं पूर्व संचित पापों के कारण इनका मन पूजा पाठ में नहीं लगता है ऐसे लोग साधुओं जैसा वेष धारण करके हर समय झूठ साँच धोखा धड़ी आदि व्यवहारों से उतना बच नहीं पाते हैं।
नेता बनने के लिए इन्हें पहले साधू क्यों बनाना पड़ता है ?
सधुअई से एक सबसे बड़ा लाभ ये होता है कि ऐसे लोग साधुवेष में होने के कारण धर्म या समाज के नाम पर कभी भी किसी से भी कुछ भी माँग लेते हैं वो भी ऐसा जो कभी वापस देना न पड़े !दूसरा इस वेष में राजनैतिक दृष्टि से बड़े से बड़े नेता से मिलने पहुँच सकते हैं साधुवेष के प्रति आदर होने के कारण वो मना भी नहीं कर सकते !समाज के इसी साधुवेष पर भरोसे को कैस करते हुए चुनाव भी लड़ लेते हैं और जीत भी जाते हैं !
शंका -इतने सारे प्रपंचों में फँसे हुए मन वाले लोग अपने अपने धर्मों सम्प्रदायों के आत्म संयम इंद्रिय निग्रह जैसे कठोर व्रतों एवं धर्मकर्म का निर्वाह कैसे कर पाते होंगें ये लोग !दूसरा यदि यही सबकुछ करना था तो साधुत्व को सुरक्षित बना रहने देते बाकी जो मन आता सो करते आखिर कौन रोक रहा था ?
संतों में छिपे व्यापारी लोग -
व्यापार करने के लिए धन चाहिए यदि अपने पास धन न हो तो उधार लेकर व्यापार में लगाना पड़ेगा उधार देने वाला कुछ गिरवी रखने के लिए माँगेगा ऊपर से व्याज लेगा और जमा भी लेगा ये निश्चित है किन्तु व्यापार में लाभ ही होगा ये निश्चित नहीं है ऐसे में किसी को वह धन लौटाया कब और कैसे जाएगा और बिना इसकी स्योरिटी के कोई कर्जा क्यों देगा !
ऐसी परिस्थिति में बिना इनसारे झंझटों में पड़े ही एक झटके में सधुअई धारण करके बिना किसी बड़े संसाधन के बड़ा से बड़ा व्यापार फैलाया जा सकता है यदि उस व्यापार में कुछ धर्मकर्म ,स्वदेशी आदि पुट लग जाए तो सोने में सोहागा कहीं तक कितना भी धन बढ़ाते चले जाओ और धन के साथ साथ सारी सुख सुविधाएँ बढ़ती स्वयं चली जाती हैं और धन होने के बाद आप कभी भी कुछ भी बन सकते हैं !
संतों में छिपे भोगी अर्थात कामी लोग -
अच्छी अच्छी स्त्रियों से अमर्यादित रूप से जुड़ने भोगने की भावना पूर्ति को अंजाम देने के लिए बाया सधुअई भी एक रास्ता जाता है सृष्टि का सिद्धांत है कि जो स्त्री सुन्दर होती है उसके पति सुख में बाधा होती है
या सुंदरी सा पतिना विहीना यस्याः पतिः सा बनिता कुरूपा !
ऐसी महिलाएँ अपनी सुंदरता के घमंड में ऐसे होटलनुमा आश्रमों के सहारे अपनी गृहस्थी को चौपट कर लेती हैं और अपने अनुकूल पुरुष की तलाश में कई जगह धोखा खाकर इस संसार से निराश हताश होकर विरक्ति की ओर बढ़ने लगती हैं जिसके लिए वो आश्रमों में चक्कर लगाती हैं वहाँ यदि कोई संत हुआ तो समझा बुझाकर वापस घर लौटा देता है और यदि कोई कामी हुआ तो उसे अपने पास रख लेता है जहाँ उनका वास्तविक शोषण होता है ऐसे प्रकरणों में कई बार संतानें तक होते देखी गई हैं और ऐसी महिलाएँ उस होटलनुमा आश्रम में आने जाने वालों के लिए रौनक भर बन कर रह जाती हैं ! जहाँ सुख सुविधाओं के नाम पर उन्हें मिलता तो सबकुछ है किन्तु सब कुछ गँवा कर !ऐसी महिलाएँ देखने में तो बहुत खुश होती हैं किन्तु उनकी अंतर्पीड़ा असह्य होती है और भयंकर पश्चाताप से जूझ रही होती हैं वे !ऐसी महिलाओं का जमावड़ा जैसे जैसे वहाँ बढ़ने लगता है वैसे वैसे वहाँ आने जाने टिकने ठहरने रहने वाले धनदाताओं की भीड़ें भी बढ़ने लगती हैं इस प्रकार से सबकुछ मिल जुलकर उन होटलनुमा आश्रमों का वातावरण बिलकुल स्वर्ग जैसा दिखाई पड़ता है जहाँ कितने भी कैसे भी कर्म कुकर्म क्यों न हों किन्तु आश्रमनाम सुनते ही शिर श्रद्धा से झुक जाता है ये हम लोगों का अपना संस्कार ही है ।
इस समय आश्रमों और सधुअई की आड़ में बहुत कुछ वो हो रहा है जो घोर निंदनीय है किन्तु कहे कौन बहुत पापप्रिय बाबाओं ने सत्ता में ऐसी जड़ें जमा रखी हैं कि उस प्रभाव से चरित्रवान भले साधू संतों का जीना मुश्किल कर देते हैं और कर्म खुद गलत करते हैं और सिक्योरिटी सरकार से माँगते हैं । संत वेष धारण करके जो लोग व्यापार या राजनीति करते हैं तो बुराई भलाई तो होती ही है कोई किसी की बहन बेटी को छेड़े या किसी को गाली गलौच दे और जब अपनी बारी आवे तो सिक्योरिटी माँगता फिरै ये कैसा साधुत्व ?साधू संत तो जंगल में हिंसक जीव जंतुओं के बीच रहकर भी सुरक्षित होते थे और यदि मर जाएँ तो मर जाएँ किंतु उन्हें मरने का भय नहीं होता था वो चरित्रवान संत होते थे ,वो योगी होते थे उन्होंने योगिक क्रियाओं के द्वारा अपने शरीरों को बज्र बना रखा होता था जिनके शरीरों पर अस्त्र शस्त्रों का असर ही नहीं होता था किंतु वो योगी होते थे आजकल तो हर कोई योगी है जिसे दमा या स्वाँस रोग हो वो तो स्वाभाविक योगी है वो तो सहज प्राणायामी होता है !
जो भी बाबा लोग धर्म कर्म से अलग हटकर सांसारिक प्रपंचों में पड़े हुए हैं या व्यापार धंधे में लगे हुए हैं या धन संग्रह में लगे हुए हैं या सांसारिक सुख सुविधाएँ जुटाने में लगे हुए हैं या या आश्रमों के नाम पर होटलों का निर्माण कर रहे हैं उनका रहना खाना पीना सब कुछ गृहस्थों की तरह ही है जहाँ धर्म कर्म की कोई विशेष गतिविधि दिखाई सुनाई नहीं पड़ती या ये सबकुछ केवल दिखाने सुनाने के लिए होता है बाक़ी अंदर की जिंदगी पूरी तरह धार्मिक गति विधियों से विमुख और व्यापारिक या राजनैतिक गतिविधियों से ओत प्रोत होता है ।ऐसे लोगों को संत कैसे कहा जाए !
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