खेलों के लिए गुरु द्रोणाचार्य अवार्ड दिए जाने पर आपत्ति क्यों ?
गुरु दक्षिणा में सबसे महत्वपूर्ण चीज माँगे जाने की परंपरा रही है ! धनुर्वीर के लिए अँगूठे का महत्त्व सबसे अधिक होता है ,इसलिए प्राणप्रिय विद्या देने वाले गुरु ने यदि अँगूठा माँग ही लिया तो यदि उनके शिष्य को बुरा नहीं लगा तो हमारी औकात क्या है कि हम उस पर प्रश्न उठावें जिसका सम्मान करते हुए उनके शिष्य ने ही दे दिया अँगूठा !
साथ ही यह कहना कहाँ तक न्योयाचित है कि उन्होंने अपने शिष्य से अँगूठा माँग लिया था इसलिए उनके नाम पर पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए !
कितना बेहूदा तर्क है यह ! आखिर देश काल परिस्थिति पर बिना विचार किए हुए ऐसे प्रश्न खड़े ही क्यों किए जाते हैं !गुरु द्रोणाचार्य जी युद्ध विद्या सिखाने वाले गुरु थे जहाँ मरना या मार देना खेल समझा जाता है ऐसे दिव्य गुरु को गुरु दक्षिणा में आधा किलो पालक मँगवा लेनी चाहिए थी या इसी प्रकार का कुछ और माँग लेते ये सलाह देने वाले हम कौन होते हैं हम कैसे कह सकते हैं कि अँगूठा माँगना गलत था ।
रण कौशल सीखने वाले विद्यार्थी वीर एकलव्य की प्रशंसा इस बात के लिए की जानी चाहिए कि उसने गुरुदक्षिणा में हँसते हुए अँगूठा दे दिया था ये उसकी विद्या एवं गुरु के प्रति गंभीर निष्ठा को व्यक्त करता है उसने गुरु की अमोघवाणी को ब्यर्थ नहीं जाने दिया !
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