Sunday, 7 December 2014

धर्म एवं ज्योतिष आदि प्राचीन विषयों में न्यूज चैनलों के दिमाग पूरी तरह फ्यूज हैं !

                     सरकार एवं समाज की आँखों का काम करता है  
            अंध विश्वास फैलाने के प्रमुख संसाधनों में हैं मीडिया समेत समस्त प्रचार माध्यम  !

      पहले पत्रकारिता का धर्म भी समाज सेवा ही था पत्रकार हर उस विषय के विशेषज्ञ हुआ करते थे जिस विषय में वो समाज को जागृत करना चाहते थे और समाज के साथ कभी गद्दारी नहीं कारते थे धन की आवश्यकता तो हर किसी को पड़ती थी जीवन यात्रा निर्वाह करने के लिए ऐसा तो सबको करना ही होता है किन्तु कुछ प्रणम्य पत्रकार इससे भी ऊपर उठकर अपनी सेवाएँ देश और समाज को देते थे उनमें अद्भुत आत्म बल हुआ करता था उनकी लेखनी में इतनी क्षमता थी कि वैचारिक मामलों में सत्ता उनकी अनुगामिनी हुआ करती थी और वो निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देशहित  एवं जनहित को सर्वोपरि रखते थे विशेषकर वो सत्य से समझौता करने के पक्षधर नहीं होते थे !
       आज मीडिया स्वधर्म पालन से इतना अधिक भटका हुआ है
भी एक प्रकार से झोला छाप पत्रकारों ने झोलाछाप बाबाओं ज्योतिषियों तांत्रिकों वास्तु आदि वालों को महत्त्व दिया !इससे बढ़ता जा रहा है अंध विशवास !

सरकार मीडिया पर भी लगाए अंकुश और बिना डिग्री वाले पत्रकारों ,ज्योतिषियों वास्तुविदों तांत्रिकों पर लगाया जाए पूरी तरह प्रतिबन्ध !अन्यथा बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में पत्रकारिता,ज्योतिष आदि के कोर्स कराए ही क्यों जा रहे हैं ?यदि जिस डिग्री की परवाह मीडिया से जुड़े लोग ही नहीं करते वो डिग्री बनाई ही क्यों गई,विश्व विद्यालयों में उसके विभाग ही क्यों खोले गए उसमें छात्रों के एडमीशन लेकर उनके वर्ष क्यों बर्बाद किए जाते हैं यदि उनका कोई महत्त्व ही नहीं है !क्यों उसके 
  जिन्होंने ज्योतिष का किसी विश्व विद्यालय से कोई कोर्स नहीं किया होता है उन्हें पंचांग तक ठीक से देखने नहीं आता वे ज्योतिष पर रिसर्च कर रहे हैं ऐसा सबको बताते घूमते हैं । जो गृह पिंड तक नहीं बना पाते वो वास्तु पर रिसर्च करता हुआ अपने को बताते हैं । केवल इतना ही अपितु धार्मिक एवं धर्मशास्त्रीय मामलों में शरारती मीडिया उनकी ऐसी तथा कथित रिसर्च को धन बल से प्रमोट भी करता है इसी से फैलता है अंध विश्वास !

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