Tuesday, 7 June 2016

पर्दा पृथा का विरोध करने वाले लोग इस पृथा का विकल्प अभी तक तो खोज नहीं पाए !

               पर्दा होने और न होने का अंतर !  
  हमें यह भी याद रखना चाहिए कि रसगुल्लों से भरा थाल लेकर हम कितनी भी देर चौराहे पर बैठे रहें  किंतु यदि उन पर पर्दा पड़ा है तो उन्हें खाने के लिए न कोई ललचाता है न  उनका भाव पूछता है और न ही उनकी कीमत लगाने की ही हिम्मत करता है किंतु यदि उन पर से पर्दा हटा लिया जाए तो देखने वालों की लार भी  बहने लगती है लोग भाव भी पूछने लगते हैं और कीमत भी लगाने लगते हैं ! 
    पर्दा पृथा के पीछे का भाव महिलाओं से शत्रुता न होकर अपितु महिलाओं की सुरक्षा था !पर्दापृथा हटी सुरक्षा संकट में आखिर कोई तो जिम्मेदारी ले महिलाओं की सुरक्षा की !पुलिस के बश की नहीं है महिला सुरक्षा और न ही सरकार से उम्मींद की जानी  चाहिए इन्हें कुछ करना होता तो अब तक कर चुके होते और जो करना था वो कर चुके !अब तो खुद ही करना है जो करना है । सुरक्षा कम स्वरक्षा का अभ्यास करना चाहिए !
     हमारे शारीरिक भूगोल का सबसे बड़ा अनुभव हमें होता है कि हमारे शरीर के दर्शनीय स्थल कौन कौन से हैं और पर्यटकों के लिए किन्हें खुला छोड़ना है किन्हें बंद रखना है !नदी नाले पहाड़ उपवन सरोवर रूपी तीर्थों के कपाट कब खोलने हैं कब बंद रखने हैं किसके सामने खोलने हैं किसके सामने बंद रखने हैं कौन दिखाने हैं कौन छिपाने हैं ये सारा निर्णय उस शरीर के मालिक का अपना होना चाहिए जो उस शरीर को धारण करता है किंतु उसका निर्णय फैशन बनाने वाले लोगों और कपड़े बनाने वाले दर्जियों पर नहीं छोड़ देना चाहिए !अन्यथा वो ऐसी ऐसी जगह कपडे काट देंगे कि कपड़े पहनने की प्रासंगिकता ही समाप्त हो जाएगी !इसलिए हमारी वेषभूषा का निर्णय हमारा अपना होना चाहिए !
     यदि हम अपने को मूल्यवान समझते हैं तो हमें अपने को उनसे बचाकर चलना चाहिए जिनसे हमारी सुरक्षा को खतरा है हमें वैसे नहीं रहना चाहिए जैसे  रहने से हमारी सुरक्षा पर संशय हो !
     फैशन के नाम  पर किसका कौन सा कपड़ा दरजी ने कहाँ कहाँ काट दिया हो पता नहीं किंतु इतना होश तो पहनने वाले को भी रखना चाहिए कि हमारे शरीर में ऐसा कौन सा दर्शनीय स्थल है जिसे दरजी ने जिसे पर्यटकों के लिए खुला छोड़ना इतना जरूरी समझा है । 
     महिलाओं के दिमाग में खुलेपन और फैशन की  हवा वो लोग भरा करते हैं जिनका महिलाओं की सुरक्षा से कोई लेना देना ही नहीं होता वे महिलाओं को केवल एक मशीन समझते हैं ऐसे भटके हुए विचारकों को खुले मंच पर चुनौती है कि वो उपाय भी तो सुझाएँ कि महिलाओं की सुरक्षा के बारे में वे क्या सोचते हैं !सभी महिलाओं को पुलिस कैसे और कहाँ तक रखावे !अगर पुलिस के बश का होता तो ठीक हो जाता अबतक किंतु सारे उपाय करने के बाद भी महिलाओं के प्रति हो रही हिंसात्मिका घटनाएँ चिंतनीय हैं !यदि पर्दा पृथा बंद हुई और महिलाओं के खुलेपन का समर्थन किया गया तो इसका लाभ क्या हुआ !
    कुछ दिमागी दिवालिया लोगों की सीख में आकर फैशन के नाम पर आए दिन हो रही हैं महिलाओं की हत्याएँ आखिर पर्दा पृथा बंद करवाने वाले महिला शरीरों के खुलेपन  के समर्थक लोग सरकारों को कोसने के अलावा महिलाओं की सुरक्षा के लिए खुद क्यों नहीं करते हैं कुछ !
    भाई-बहनों, पिता-पुत्रियों, मामा-भांजियों, चाचा -भतीजियों,  देवर- भाभियों , ससुर और बहुओं के संबंध पहले तो नहीं सुने जाते थे इतने किंतु आज कल तो अक्सर सुनने को मिल जाते हैं ये पर्दा पृथा को बंद कराने के साइड इफेक्ट हैं । मजे की बात ये है कि पर्दाविरोधियों के पास इस बात के जवाब भी नहीं हैं  और न ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई प्रभावी चिंतन केवल अपनी बासनात्मिका दृष्टि का चारा तैयार करने के लिए किया करते हैं पर्दा पृथा का विरोध !
     आज महिलाओं की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है समाज में राक्षसी वृत्तियाँ महिला शरीरों को देखकर जिस तरह से पागल होती देखी जा रही हैं उसमें फैशन जैसी चीजों की उपेक्षा करके सबसे पहली प्राथमिकता सुरक्षा को दी जानी चाहिए जिसके लिए पर्दा पृथा और सतर्कता दोनों आवश्यक हैं सरकारी सुरक्षा तो होनी ही चाहिए किंतु रोड पर निकलने वाली हर महिला को सिक्योरिटी नहीं दी जा सकती !ये आम लोगों की बात है रही बात बड़े लोगों की वे कोठी से निकले गाड़ी में बैठ गए कई के पास तो सिक्योरिटी भी होती है वे जैसे चाहें वैसे रहें किंतु उनकी नक़ल आम महिला नहीं कर सकती !इसलिए मुख ढकना पड़े तो ढकें किंतु अपने बहुमूल्य जीवन की सुरक्षा का लक्ष्य सर्वोपरि रखें !
      यदि पर्दा नहीं तो कोई और रास्ता भी नहीं है खुली समाज में खुलेपन में रहने वाली महिलाओं की सुरक्षा का ! जैसे बहुत बड़ा बहुमूल्य खजाना लेकर वो भी खुला कंगलों की बस्तियों से निकलना बुद्धिमानी नहीं होती उसी प्रकार से महिला शरीरों के भुक्खड खुले शरीरों को देखकर कब कहाँ आपा खो बैठें किसको पता !कोई दुर्घटना घटने से पहले कम्प्लेन कैसा और घटना घटने के बाद कम्प्लेन का लाभ क्या ? जो कुछ होना था वो हो गया अब अपराधी को फाँसी भी हो जाए तो पीड़ित को क्या लाभ !इसलिए समाज के कुछ नासमझ थोथे लोग महिला समाज में खुलेपन के नामपर हवा भरा करते हैं किंतु सुरक्षा की बात कर दो तो वो लोग दाँत चिआर देते हैं !

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