'भारतरत्न जिसे दिया जाए वो भारतरत्न हो भी '
वस्तुतः समस्त भारतीयों के गौरवपुरुष को ही भारत रत्न मिलना चाहिए ! वह ऐसा हो जो जाति क्षेत्र समुदाय संप्रदायवाद की भावना से ऊपर उठकर समस्त भारतीय लोगों के प्रति अपनेपन की भावना से काम करता हो !इसके अलावा जिसकी सोच इतनी उदात्त न हो उसे उसकी सोच,योग्यता और जन सेवा कार्यों के आधार पर 'रत्न' बनाया जा सकता है जैसे जिसने साहित्य के लिए काम किया वो साहित्य रत्न ,जिसने धर्म के लिए काम किया वो धर्मरत्न ,जिसने हिंदुओं के लिए काम किया वो हिन्दूरत्न जिसने मुस्लिमों के लिए काम किया हो वो इस्लामरत्न जिसने दलितों के लिए किया वो दलित रत्न जिसने महिलाओं के लिए किया वो महिला रत्न जिसने क्षत्रियों के लिए किया वो क्षत्रिय रत्न अादि आदि और जिसने समूचे भारत वासियों के लिए काम किया हो या उदात्त सोच रखी हो अपनापन रखा हो वो भारतरत्न है और हो भी क्यों न !किन्तु जिसने काम केवल ब्राह्मणों के लिए किया हो तो उसे मिलना तो चाहिए ब्राह्मण रत्न किन्तु वो माँग करे भारत रत्न की ये कहाँ तक उचित है !
जहाँ तक अटल जी या मालवीय जी की बात है इन्होंने सारे भारतवासियों के विकास के लिए अपनेपन से कार्य किए हैं इसमें किसी को शंका नहीं होनी चाहिए और न ही किसी को अंगुली उठानी चाहिए !हाँ ,और भी जो महापुरुष हुए हैं उन्हें भी उसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए !
जातियों सम्प्रदायों के नाम पर ऐसे पुरस्कारों की परिकल्पना ही नहीं की जानी चाहिए ! अपने गुण ,विद्या और परिश्रम
से स्वाभिमानपूर्वक प्राप्त की गई सफलता बहुमूल्य होती है सम्मान का आधार भी उसी को माना जाना चाहिए ।
जो लोग आरक्षण के बिना घर की रसोई नहीं चला पाते वे देश न चला पाने के लिए सवर्णों को दोषी ठहरावें ये कहाँ तक उचित है और इन बातों पर भरोसा कैसे किया जाए क्योंकि वहाँ तो आरक्षण की सुविधा भी नहीं होगी ,ऐसी परिस्थितियों में किसी का विकास न होने के लिए सवर्णों को दोषी ठहराना न्यायोचित नहीं है आखिर कौन कहता है कि आप आरक्षण लें आप चाहें तो उन जातियों की बराबरी कर सकते हैं जो गरीब होकर भी बिना आरक्षण के भी अपने संघर्ष के द्वारा परिश्रम पूर्वक अपनी तरक्की करना चाहे तो कर के अपना परिचय दे सकते हैं ।जातिगत सुविधा भोगने के समर्थक लोगों को आदर्श कैसे माना जा सकता है ।
जो जातिगत आधार पर मिलने वाले आरक्षण के समर्थक हैं उन्हें ये भी तो सोचना होगा कि यदि जातियाँ न होतीं तो आरक्षण भी नहीं होता और मनुस्मृति न होती तो जातियाँ न होतीं ! इसलिए जातिगत आरक्षण का आधार ही है मनुस्मृति ! फिर मनुवाद का विरोध या मनुस्मृति को जलाने का नाटक क्यों ? अक्सर क्यों दी जाती हैं महान जाति वैज्ञानिक महर्षि मनु को गालियाँ !जिन्होंने लाखों वर्ष पहले जिनके विषय में लिखकर रख दिया था कि इन इन जातियों के लोग त्याग, संयम,स्वाभिमान एवं पवित्रता आदि भावों से विमुख होने के कारण आत्मग्लानि से हमेंशा ग्रसित रहेंगे !इसी कारण अत्यंत परिश्रमी होने के बाद भी ये अपना उत्थान अपने बल पर नहीं कर सकेंगे !ये दिल और दिमाग से काम न लेकर काम में केवल अपना शरीर ही लगाते रहेंगे इसलिए राजा को चाहिए कि इन्हें सेवा कार्य सौंपे ! चूँकि अज्ञान के कारण इनकी संतानें भी इसी भावना से भावित होती रहेंगी और वो भी हमेंशा अपने विकास से बंचित बनी रहेंगी । महर्षि मनु ने उस युग में इस बात का पता लगा लिया था कि इन जातियों के लोग अपने पिछड़ेपन के लिए कभी अपने को जिम्मेदार नहीं मानेंगे हमेंशा दूसरों को ही दोषी ठहराते रहेंगे !चूँकि इनके उत्थान न होने का दोषी कोई दूसरा होगा ही नहीं ये आदतन हीन भावना से ग्रस्त रहेंगे इसलिए ये अपने पिछड़ेपन के लिए अपने को एवं अपनी जीवन शैली को जिम्मेदार कभी नहीं मानेंगे किन्तु इन जातियों के भी जो लोग ऐसा मानकर प्रयास करेंगे उनके असीमित उत्थान को कोई दूसरा कैसे रोक सकता है ।
जो लोग अपने पिछड़ेपन के लिए जाति अन्वेषक महान वैज्ञानिक महर्षि मनु एवं मनुस्मृति को दोषी मानते हैं उनकी स्थिति ठीक उसीप्रकार के विद्यार्थी की तरह होती है जिसकी अपनी लापरवाही देखकर शिक्षक पठनशील लड़कों से कहे कि इसका साथ करोगे तो तुम भी फेल हो जाओगे इसका मतलब है कि वो परिश्रम पूर्वक पढ़ाई करके अपनी स्थिति में सुधार करे और यदि न करे तो पठनशील अन्य विद्यार्थियों को उससे दूर रहना चाहिए ! किन्तु ये बात सुन और सोच कर उस विद्यार्थी के पास दो ही विकल्प होते हैं उत्तम पक्ष तो यह है कि वो अधिक परिश्रमपूर्वक पढ़ाई करके अपने सहपाठियों की अपेक्षा अपने को और अधिक योग्य बनावे दूसरा विकल्प होता है कि वो अपने शिक्षक एवं सहपाठियों से घृणा करने लगे !
किन्तु यहाँ विचार करने वाली बात ये है कि वे शिक्षक और सहपाठी यदि न भी रहें तो संभव है कि उसे मूर्ख कहने वाला कोई न रहे किन्तु इतने भर से वो योग्य तो नहीं ही हो जाएगा और बिना अपनी योग्यता के उसे सामाजिक प्रतिष्ठा या आर्थिक तरक्की नहीं प्राप्त होगी इसलिए उसे अपने शिक्षक और सहपाठियों से घृणा करने की अपेक्षा अपने उत्थान के लिए अपना प्रयास करना चाहिए यही उसके काम आएगा !
इसी प्रकार से जो लोग जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु से घृणा करते और मनुस्मृति को जलाते हैं उन कुंद बुद्धियों को अब समझ लेना चाहिए कि अब तो साठ पैंसठ वर्ष आरक्षण भी ले और पचा चुके यदि विकास होना होता तो इतने में ही हो जाता किन्तु यदि अभी तक नहीं हुआ तो अब इससे सबक लेते हुए समझ लेना चाहिए कि आरक्षण रूपी भिक्षा के भरोसे जीवन जीने की आशा छोड़कर अपनी प्रतिभा विकास पर विशेष ध्यान देना चाहिए जो आरक्षण से संभव ही नहीं है !
देखिए इसी विषय में हमारे कुछ अन्य लेख भी -
आरक्षण देश के विकास को रोकने वाला एवं भ्रष्टाचार को बढ़ाने वाला होता है !आरक्षण के दुष्प्रभाव से बाहरी लोग अपने सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को कहीं भिखारी भारत न कहने लगें !see more ....http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/dalit-plus.html
दलित नाम की कोई जाति कभी नहीं हुई ,हो सकता है यह दिमागी बीमारी हो ! तो इसकी जाँच हो चिकित्सा हो किन्तु आरक्षण नहीं !दलित कौन हैं उनमें किस तरह की कमी होती है और आरक्षण से उसकी पूर्ति कैसे हो पाती है ?http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_21.html
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