Monday, 5 January 2015

P.K.फ़िल्म वालों की सोच सनातन हिन्दूधर्म की जो जितनी बेइज्जती करेगा उसे उतना पैसा मिलेगा !

 P.K.फ़िल्म हो या साईंबाबा या निर्मल बाबा जैसे अनेकों स्वयंभू  छद्म श्रद्धा केंद्र शास्त्र विरोधी पाखंडों में लिप्त हैं जो सनातन धर्म की मान्य शास्त्रीय  मान्यताओं की बेइज्जती करके या मजाक उड़ाकर हो जाते हैं मालामाल ! धर्म का इतना बुरा हाल !

     जो बाबा बैरागी पंडित पुजारी आदि जितने अधिक से अधिक पापों का समर्थन करते हैं वे उतने ही बड़े  और धनी हो जाते हैं और ऐसे लोगों के ही अनुयायी उतनी अधिक संख्या में होते हैं, सनातन धर्म की शास्त्रीय मर्यादाओं की छीछालेदर करने में लोगों को आज बड़ा कारोबार दिखाई पड़ने लगा है , आज गुप्त पापों से समाज बहुत अधिक परेशान है, योग सिखाने वाले लोग भोग भोगने की दवाएँ बेचते रहे ! जो लोग योग के नारे लगाते रहे भोग की दवाएँ बेचते रहे वे तो मालामाल हो गए किंतु जो ईमानदारी पूर्वक योग सिखाते रहे और योग की ही  दवाएँ बेचते  रहे उन्हें कौन पूछ रहा है आज !

      देश में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली मूवी  P.K. में सनातन धर्म की बेइज्जती करने के अलावा और ऐसा क्या है जिससे उसकी लोकप्रियता बढ़ रही हो ! क्योंकि आजकल नास्तिकों को खुश करने वाले लोगों को नास्तिक लोग न केवल धन देते हैं अपितु और भी सभी प्रकार से सहयोग देते हैं वो दे रहे हैं इसीलिए बढ़ रही है कमाई !फ़िल्म में शंकर जी पर चढ़ाया जाने वाला दूध तो पापियों को खटकता है किन्तु फ़िल्म देखने के लिए लिया  जाने वाला 100 -200 रूपए का टिकट उन्हें उचित जान पड़ता है इन मनहूसों को ये तो लगता है कि शंकर जी पर चढ़ाए  जाने वाले  दूध के 20  रूपए बचाकर गरीबों को दिए जाने चाहिए किंतु ऐसे पाखंडी फ़िल्म निर्माता लोग फ़िल्म की कमाई गरीबों में क्यों नहीं बाँट देते हैं !

   ऐसे फ़िल्म निर्माताओं को क्यों नहीं दिखता है फिल्मीपाखंड!हिम्मत है तो आमिर टाइप के लोग उसकी भी बुराई करें !

      जिन फिल्मों में सारा कारोबार मलमूत्रांगों पर ही केंद्रित होता जा रहा है बस उन्हें ही लुकाने छिपाने दिखाने में या वहीँ पर टैटू बनवाने में सीमित होते जा रहे हैं फिल्मी दृश्य !जो जितना नंगा हो सकता हो वो उतना बोल्ड,वही सेक्सी ,सुपर सेक्सी आदि बहुत कुछ !ऐसी फिल्मों के पाखंडों का पर्दाफाश करने के लिए क्यों नहीं बनती हैं PK टाइप की फिल्में !क्या वो पाखण्ड नहीं है !

       बलात्कारों की विशाल बढ़वानल(आग)  में भारतीय समाज को झोंका तो इन्हीं फ़िल्म वालों ने ही है पहले जब ऐसी फिल्में नहीं बनती थीं तब भारतीय संस्कारों में  ऐसी दुर्गन्ध तो नहीं थी ,ये फिल्मी लोग ही प्यार की पद्धति सिखाने के नाम पर समाज को ब्यभिचारी बनाते रहे ,धर्म विरोधी बनाते रहे , इन्होंने समाज को केक काटना सिखाया है दीपक बुझाना सिखाया है जिसे हमारे सनातन धर्म में अशुभ मानते हैं ! कुल मिलाकर पाखण्ड मिटाने के नाम पर इन फिल्मी पाखंडियों ने  हमारे धर्मावलम्बियों को हमारे धार्मिक रीति रिवाजों  से घृणा करना सिखाया है आज हमसे दूर होते जा रहे हैं हमारे लोग और  दूसरों को पकड़ते जा रहे हैं । हिन्दू धर्म के दोष दुर्गुण दिखाने की इन फ़िल्म वालों की आदत सी बन चुकी है । धर्मांतरण जैसी विकृतियाँ इसी कुत्सित सोच की परिणाम हैं ।

     फिल्मों का पाखंड या अंध विश्वास इन PK वालों को क्यों नहीं दिखाई पड़ता है आज फिल्मों से कला साहित्य और गीत आदि बिलकुल गायब होता जा रहा है नृत्य के नाम पर केवल उछलकूद है फिल्मी लोगों को नाचते देखकर ऐसा लगता है कि जैसे इनके सर्वाधिक बहुमूल्य अंगों में ततैयाँ चिपटी हुई हैं उसी व्याकुलता में ये उछल कूद रहे हैं ! प्राचीन काल में जैसे लोग बिना वस्त्रों के रहते थे लगता है फ़िल्म वाले पुनः वहीँ पहुंचा देंगे समाज को !वो भी पेड़ों पर  उछलते कूदते थे ये स्टेजों पर उछलते कूदते हैं जैसे बनवासी जातियाँ  क्या गाती बजाती या ईशारा  करती हैं किसी को समझ में नहीं आता है वैसी परिस्थिति आजकल की फिल्मों की है देखकर किसी को नहीं लगता  है कि कोई नाच गाना हो रहा है अपितु भारी शोर शराबे के बीच कर्ण विस्फोटक हुड़दंग सुनाई पड़ता है बस !ऐसे हुड़दंगों के विरुद्ध आवाज क्यों नहीं उठाते हैं ये P.K.फ़िल्म वाले !

    P.K.फ़िल्म वालों को केवल सनातन धर्म में तो पाखंड दिखते हैं किन्तु जो अन्य संप्रदायों में है वो इन्हें दिखाई क्यों नहीं पड़ते हैं ये लोग वहाँ अंधे क्यों बने रहते हैं जो बुराइयाँ इन्हें दिखनी  चाहिए !वो नहीं दिखती हैं । 

     जिन धर्मों में त्यौहार मनाने के नाम पर भी  असंख्य निर्दोष पशुओं   की  हत्याएँ कर दी जाती हों जिनमें दूध देने वाले पशु भी सम्मिलित हों ,दूध अमृत है उससे न केवल बहुत सारी मिठाइयाँ पकवान आदि बनते हैं अपितु स्वास्थ्य रक्षा के लिए सर्वाधिक आवश्यक है वह दूध आज पचास रूपए लीटर बिक रहा है फिर भी जिन मानवता के शत्रुओं ने पशुओं को खाना बंद नहीं किया है ऐसे लोग त्यौहार मनाने के नाम पर पशुओं की हत्याएँ किया करते हैं इन समुदायों को सुधारने के लिए क्यों नहीं की जाती हैं टिप्पणियाँ !

     हम हिन्दू हैं हम तो प्राण विहीन पत्थर की मूर्तियों को  भी प्राण प्रतिष्ठा अर्थात जीवित करके उन्हें पूजते हैं फिर भी हम में सबको बुराई दिखती है किन्तु जो लोग जीवित लोगों को भी उनके मरने के बाद उनके  शरीरों को सड़ाकर पूजते हैं उनमें किसी को न तो कोई पाखण्ड दिखाई पड़ता है और न ही अंध विश्वास क्यों नहीं देखते हैं ये P.K.फ़िल्म वाले !

साईं बुड्ढे का रौब -

     हिन्दू मंदिरों में घुसे घूम रहे घुसपैठिए साईं बुड्ढे पर क्यों नहीं की जाती हैं टिप्पणियाँ जो हिन्दुओं के  भगवान बनने के लिए बेचैन हैं किन्तु इधर किसी का ध्यान क्यों नहीं जाता है ये P.K.फ़िल्म वाले क्या डरते हैं !इस साईं बुड्ढे का सनातन धर्म से आखिर क्या सम्बन्ध है क्यों घुसा दिया गया है मंदिरों में !इधर किसी  P.K.फ़िल्म वाले की दृष्टि क्यों नहीं जाती है !     

      फ़िल्म हों या बाबा या ज्योतिषी या कोई अन्य प्रकार के धार्मिक यदि चरित्र आदर्शों संस्कारों की बात करते हैं या शास्त्रीय स्वाध्याय की बात करते हैं  यज्ञ यागादि व्रतउपवास जैसे कठिन धर्म कर्म की बात करते हैं तो लोग  आपसे कम जुड़ना चाहेंगे जबकि  ये सबकुछ घर परिवार एवं सामाजिक आदि संबंधों की सुरक्षा के लिए बहुत  आवश्यक है किन्तु ये सभी नियम संयम आदि कठिन होने के कारण इनसे जुड़ने वाले लोग कम होते हैं !

       यही कारण  है कि पाखंडी लोग समाज की आस्था को कैस करने के लिए सरल धर्म कर्म गढ़ना शुरू कर देते हैं वैसे ही उनके यहाँ भीड़ बढ़ने लगती है और जब भीड़ बढ़ती है तो  चढ़ावा भी बढ़ना ही होता है और जब चढ़ावा  बढ़ता है तो उसे ये पाखंडी लोग आस्था और श्रद्धा जैसे नाम देते हैं !

       आप स्वयं देखिए कि जो लोग जीव हत्या करते हैं,नशा करते  हैं या बलात्कार जैसे अन्य बड़े बड़े अपराध करते हैं ऐसे लोग जब सनातन धर्म के मंदिरों में या महापुरुषों के पास जाते हैं तो वो इन सारे गलत कामों को छोड़कर धर्म कर्म से जुड़ने की सलाह देते हैं ,इससे आधी अधूरी श्रद्धा वाले लोग तो बेशक भाग जाते हैं जब छोड़ पाते हैं तब आते हैं किन्तु जो जुड़ते हैं वो पक्के होकर ही जुड़ते हैं जिससे अपना समाज हत्या बलात्कार नशा जैसे गलत कामों से बहुत हद तक बचा रहता था किन्तु यहीं साईंधर्मी  जैसे पाखंडियों ने लगा लीं अपनी अपनी धार्मिक डिस्काउंट की दुकानें !

      साईं वाले घुस पैठिए घुस गए मंदिरों में और नारा दिया कि कुछ भी करो किन्तु बाबा को चढ़ावा रूपी चंदा अर्थात पाप करने का कमीशन देते रहो बाबा सब सँभाल लेंगे क्योंकि  'बाबा बहुत दयालू हैं '! बाबा का कथन है कि मुझे पाप और पापी  से परहेज नहीं हैं  किन्तु मैं चंदे और चढ़ावे का भूखा हूँ !

     बंधुओ ! क्या अपने श्री राम ,श्री कृष्ण ,आशुतोष भोलेबाबा भगवान शिव जी दयालू नहीं हैं क्या !फिर लोग साईं की ओर गए क्यों ? उनके मन में एक ही भय था कि यदि भगवानों की ओर गए तो पाप छोड़ना पड़ेगा और साईं के यहाँ ऐसा नहीं करना होगा इसलिए वो पापी वर्ग भगवान से विमुख होता चला गया और साईं की दुकानदारी में सम्मिलित हो गया इस प्रकार से पाप हत्या बलात्कार आदि बढ़ते चले गए !

     निर्मल बाबा आया उसने देखा कि लोग जो कुछ करना चाहते हों उन्हें रोको मत वही करने को कहो जो वो करना चाहते हों वो कितना भी बड़ा पाप क्यों न हो ! इसलिए वह पापी धर्म एवं शक्तियों का  नाम ले लेकर समाज को ज्योतिष, मन्त्र ,दुर्गा सप्तशती ,पुराणों ,वेदमंत्रों आदि से दूर करके स्वेच्छारी बनाता जा रहा है ऐसे भ्रष्ट लोग धर्म एवं धर्म शास्त्रों के सीधे दुश्मन हैं इसीलिए नास्तिक और विधर्मी लोग  सनातन धर्म के मूल्यों को नष्ट करने के लिए इन्हें धन देते हैं !

       ज्योतिष का नाम ले लेकर कुछ पाखंडियों ने कहना शुरू कर दिया है मैं भाग्य को बदल सकता हूँ ( Yes ,I can  change )

      बंधुओ ! यदि ऐसा होना संभव होता तो श्री राम बन न जाते और दशरथ जी की मृत्यु टाल दी जाती किन्तु ऐसा नहीं किया जा सका गुरु वशिष्ठ जी क्या योग्य नहीं थे और आज कल के ये पापी अधिक विद्वान हैं जो कहते हैं कि 'हाँ भाग्य को हम बदल सकते हैं !'

      बंधुओ !ग्रह शांति नामक  मन्त्रों की पुस्तक है जिसका प्रयोग ग्रहों का दोष कम करने के लिए किया जाता है किन्तु उसका पढ़ पाना अत्यंत कठिन होता है फिर उसके मन्त्रों का जप तो और  कठिन होता है इसलिए धर्म विध्वंसक लोग कौवे कुत्ते तीतर बटेर उड़द मूँग कोयला कंकरों के उपाय बताते फिर रहे हैं ये सनातन धर्म को नष्ट करने का ही प्रयास है ! अन्यथा वेदमंत्रों के पाठ में क्या  बुराई है !

   बाबा राम रहीम जैसे लोग स्वयं तो निरंकुश आचरण करते ही हैं और समाज को भी इसीलिए प्रेरित करते हैं इसे धर्म कैसे कहा जाए !

  कुछ बाबा लोग साप्ताहिक सत्संग शिविरों के नाम पर प्रेमी प्रेमिकाओं  को मिलने मिलाने का उचित प्रबंध करते  हैं इसीलिए ये लोग सत्संग शिविर लगाते हैं जहाँ एक  सप्ताह पति पत्नी की तरह प्रेमी प्रेमिका लोग रह लेते हैं और कोई जान भी नहीं पाता है उनके घर वाले यह कहते हुए फूले नहीं समाते हैं कि हमारा लड़का या लड़की एवं पति या पत्नी केवल सत्संग शिविर में जाते हैं बस जबकि वो शिविर ही सभी पापों की जड़ होते हैं !

    कुल मिलकर चाहें पाखंडी फ़िल्म  या धार्मिक पाखंडी सनातन हिन्दू धर्म को चोट दोनों ही पहुँचा रहे हैं !बचाना दोनों से चाहिए किन्तु ये P.K.फ़िल्म वालों का बढ़ता चढ़ावा इस दृष्टि से चिंता का विषय है ।


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