Friday, 23 January 2015

कन्या भ्रूण हत्या जैसा कोई पाप नहीं है किन्तु ऐसा जघन्यतम पाप लोग करते क्यों हैं !

 

  प्रधान मंत्री जी ! कन्या भ्रूण हत्या कोई मानसिक बीमारी नहीं है अपितु किसी बाप की कोई मजबूरी होती होगी अन्यथा मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि ऐसा  जघन्यतम पाप करके कोई माँ बाप कभी  खुश नहीं हुआ होगा !!!मान्यवर ! कन्या भ्रूण हत्या का कारण केवल बेटे की चाहत ही नहीं है !और यदि ऐसा है भी तो क्यों है कन्या की चाहत नहीं है तो क्यों ? इसपर भी शोध होना चाहिए !

  प्रिय  प्रधान मंत्री जी ! इस विषय में बहुत सुन्दर हैं आपके विचार ,कन्या भ्रूण हत्या निसंदेह अक्षम्य अपराध है और इस  पर नियंत्रण करने की ओर बढ़ाए गए आपके हर कदम को सलाम !

  किन्तु प्रधानमंत्री जी ! मेरी समझ में मानसिक बीमारी नहीं है कन्या भ्रूण हत्या अपितु  होती होगी किसी माता पिता की कोई बड़ी मजबूरी जब अपने हृदय के अंश के साथ करना पड़ता है यह  दुनियाँ का सबसे बड़ा पाप !

  आप ही सोचिए जिस पिता का दामाद प्रधानमंत्री ,मुख्य मंत्री या मंत्री जैसे बड़े पदों पर सुसज्जित हो जहाँ पहुँचने के बाद कानून उसका अनुगमन करने लगता है ऐसे पदों पर पहुँचे हुए दामाद की शिकायत किससे करे कोई बेटी का बाप !क्या मरणोत्तर भी उसकी आत्मा अपने को कोसती नहीं होगी कि कहाँ से बेटी को जन्म दे दिया जिसे जीवन भर यह ही पता नहीं लगा कि वो विवाहिता है या अविवाहिता !जो जीवन भर न अपने को माँ मान सकी हो और न ही बाँझ !जो अपने को आजीवन न तो गृहस्थ कह सकी हो और न ही विरक्त !जिसका पति कभी उसे पत्नी मान लेता हो और कभी नहीं ! ऐसी बेटी के निराश हताश पिता को देखकर कोई  क्या प्रेरणा लेगा !   

   कन्या भ्रूणहत्या करने से मुझे नहीं लगता है कि किसी को सुख होता होगा !सबको पता है कि यह अमानवीय कृत्य है यह करने से सबसे बड़ा पाप होता है इसके बाद भी कोई बाप जब अत्यंत मजबूर हो जाता होगा  और देखता होगा कन्याओं की दुर्दशा तब लगाना पड़ता होगा अपने कलेजे में पत्थर !और करवाता होगा यह अक्षम्य अपराध !!

     इसका मतलब ये कतई नहीं है कि बेटियाँ दुलारी नहीं होती हैं अपितु बेटियाँ बहुत सुख देती हैं बेटे तन का पोषण करते हैं तो बेटियाँ मन का पोषण करती हैं । कन्याओं ने ही सारी समाज को बाँध रखा है सारे नाते रिश्ते कन्याओं की ही देन हैं । 

    कन्याओं की किलकारियों से घर से बाहर तक सब कुछ गुंजायमान रहता है सारा घर आनंदित रहता है बड़ा से बड़ा घर छोटा लगने लग जाता है बड़ी से बड़ी जिंदगी हँसी ख़ुशी में कब बीत गई पता ही नहीं लग पाता है और बेटी के बिदा होते ही छोटे छोटे घर बड़े दिखने लगते हैं सारा घर समिट कर एक जगह बैठ जाया करता है इतना नहीं अपितु बची खुची जिंदगी बहुत लम्बी लगने लगती है ! काम करने का उत्साह ही मर जाता है !इसीलिए कहता हूँ कि बहुत दुलारी होती हैं बेटियाँ ! बेटियाँ नहीं उन्हें इस जीवन का  आनंद ही नहीं मिला इसके लिए दुबारा जन्म लेना पड़ेगा !

       लड़का हो या लड़की दोनों इस जीवन के महत्वपूर्ण अंग होते हैं ये अत्यंत आभ्यन्तर अंग होते हैं !इसलिए इन्हें  कम करके नहीं आँकना चाहिए !

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