देश के अन्नदाता किसानों की उपेक्षा करके नेताओं और बाबाओं पर खर्च हो रहा है सरकारी धन आखिर क्यों ?नेता हों या बाबा जब दोनों का ही लक्ष्य धनसंग्रह ही है तो इनकी सिक्योरिटी का खर्च जनता क्यों बहन करे ?ये दोनों लोग देश और समाज के आखिर किस काम आ रहे हैं आज ?जो देश ढोवे इनकी बिलसिताओं के खर्च ?
आज धर्म और राजनीति दोनों आज अपने अपने लक्ष्य से भटके हुए हैं फिर भी उन्हीं
का महिमा मंडन आखिर क्यों ?बाबा हों या नेता दोनों कलियुग से भयंकर रूप
से प्रभावित हैं दोनों ही जनता से न तो सच बोल रहे हैं और न ही ईमानदार एवं
आत्मीय व्यवहार कर ही रहे हैं सब कुछ दिखाने के लिए वास्तविकता से कोसों
दूर के सपने दिखाए जाते हैं किसानों मजदूरों और गरीबों को । आज स्थिति यह
है कि नेताओं ने देश को और बाबाओं ने धर्म को लाकर चौराहे
पर खड़ा कर दिया है दोनों की गतिविधियाँ विश्वसनीय नहीं रह गई हैं नेता
संविधान के अनुशार नहीं चल रहे हैं और न ही बाबा शास्त्रों के अनुशार चल
रहे हैं और जो चल रहे हैं उनकी संख्या बहुत कम है देश का अधिकांश अपराध इन
दोनों से संरक्षित है!ये दोनों अपराधियों की मदद अच्छे कामों के लिए नहीं
लेते होंगे स्वाभाविक है और जो गलत करेगा तो उसे डर तो रहेगा ही इसके लिए
देश का क्या दोष क्यों भुगते किसी की सिक्योरिटी का खर्च !
आखिर बाबा हों या नेता इनके सोर्स आफ इनकम दिखाई नहीं पड़ते कंजूसी करते
नहीं हैं किन्तु इनके पास संपत्ति के अंबार लग जाते हैं आखिर कैसे ?दूसरी
ओर किसान मजदूर दिन रात मेहनत करके मरा जा रहा है उसे पेट पालना मुश्किल
होता है आखिर क्यों क्या कमी है किसानों के परिश्रम में ?गरीबत से वो अपना
पीछा क्यों नहीं छुड़ा पाते हैं !
नेताओं बाबाओं दोनों ही समुदायों से समाज का भरोसा बुरी तरह टूटा है दोनों ने समाज के साथ
विश्वसनीय व्यवहार नहीं किया है !
किसानों मजदूरों गरीबों को तन की सुरक्षा की गारंटी नेता देते हैं और मन
की सुरक्षा की बाबा लोग किंतु दोनों के व्यवहारों से लगता ही नहीं कि वे
अपनी बातों पर गंभीर हैं !एक इस लोक की गारंटी देता है दूसरा परलोक की
किन्तु दोनों ....!शारीरिक सुरक्षा एवं
सुविधाओं के लिए समाज राजनेताओं की ओर देखता है इसीप्रकार मानसिक सुख
सुविधाओं सात्विकता आदि के लिए बाबाओं की ओर देखता है दोनों से दोनों
प्रकार का सहयोग लेने के लिए दोनों को टैक्स देता है समाज! बात और है कि
नेताओं का टैक्स घोषित होता है तो बाबाओं का अघोषित!अन्यथा नेताओं या
बाबाओं के पास बिना कमाए इतना अधिक पैसा आता कहाँ से है ?
आधुनिक बाबाओं और नेताओं के आचरणों में अब अब कोई विशेष अंतर नहीं रह गया
है दोनों में अद्भुत समानताएँ हैं दोनों समाज सेवा की दुहाई देते हैं
दोनों अपनी अपनी ताकत दिखाने के लिए बड़ी बड़ी रैलियाँ करते हैं जिसकी जीतनी
भीड़ वो उतना बड़ा नेता या बाबा आदि ! इसीलिए रैलियाँ इन दोनों को ही बहुत
पसंद है रैलियों में केवल भाव विहीन भाषण होते
हैं इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता है
|जैसे -धार्मिक भाषण देकर अपनी हैसियत बढ़ावें तो बाबा !
राजनैतिक भाषणदेकर अपनी हैसियत बढ़ावें तो नेता !
यदि आप मंच पर प्रेम पूर्वक किसी की आलोचना करते हैं तो बाबा !
यदि आप मंच पर क्रोध पूर्वक किसी को अपशब्द बोलें तो नेता !
जो वेद शास्त्रों की दुहाई देकर जनता को झकझोरें तो बाबा !
जो संबिधान की दुहाई देकर जनता को झकझोरें वे नेता !
जो ईश्वर भक्ति की दुहाई दें वे बाबा !
जो देश भक्ति की दुहाई दें वे नेता !!
जो परलोक का भय देकर धमकावें वे बाबा !
जो इस लोक का भय देकर धमकावें वे नेता !
जो शिष्य बनाकर जनता को जोड़ें वो बाबा !
जो सदस्य बनाकर जनता को जोड़ें वो नेता !
जो लाल वर्दी पहनें तो बाबा !
जो सफेद वर्दी पहनते हैं तो नेता!
पुराणों की कथाएँ सुनावें तो बाबा !
इतिहास की कहानियाँ सुनावें तो नेता!
सबसे बड़ी समानता यह कि दोनों के हाथ पैर दुरुस्त शरीर स्वस्थ होने पर भी दोनों मेहनत से बहुत कतराते हैं फिर भी अपार धन संग्रही एवं विलासितापूर्ण जीवन जीने के शौकीन होते हैं ! किसानों में ऐसी क्या कमी है कि उन्हें इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकती ! इसी प्रकार से आधुनिक नेता हों या बाबा दोनों को मीडिया बनाता है और मीडिया ही नष्ट कर देता है।अक्सर जब बाबा कहीं फँसते हैं तो नेता उनकी मदद करने लगते हैं और नेता फँसें तो बाबा !क्योंकि दोनों की पोल दोनों के पास दबी होती है!दोनों का संपूर्ण खर्च आम जनता बहन करती है !उसमें किसान मजदूर आदि सभी आम लोग सम्मिलित होते हैं ।
नेता जब खूब धन इकट्ठा कर लेते हैं तो ईमानदार दिखने के लिए साधुओं जैसे बात व्यवहार करने लगते हैं और बाबा जब खूब धन संग्रह कर लेते हैं तो अपनी ताकत दिखाने के लिए नेताओं जैसे बात व्यवहार करने लगते हैं इसीप्रकार नेता बदनाम होते हैं तो संन्यास लेने की बात करते हैं और बाबा राजनीति की ओर बढ़ने लगते हैं
दोनों ही अपनी अच्छी बुरी बात समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेते हैं ।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है।
इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।
जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर है कौन ?
भ्रष्टाचार सोचा मन से
और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर
लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून
नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर
अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।
यदि आप मंच पर प्रेम पूर्वक किसी की आलोचना करते हैं तो बाबा !
यदि आप मंच पर क्रोध पूर्वक किसी को अपशब्द बोलें तो नेता !
जो वेद शास्त्रों की दुहाई देकर जनता को झकझोरें तो बाबा !
जो संबिधान की दुहाई देकर जनता को झकझोरें वे नेता !
जो ईश्वर भक्ति की दुहाई दें वे बाबा !
जो देश भक्ति की दुहाई दें वे नेता !!
जो परलोक का भय देकर धमकावें वे बाबा !
जो इस लोक का भय देकर धमकावें वे नेता !
जो शिष्य बनाकर जनता को जोड़ें वो बाबा !
जो सदस्य बनाकर जनता को जोड़ें वो नेता !
जो लाल वर्दी पहनें तो बाबा !
जो सफेद वर्दी पहनते हैं तो नेता!
पुराणों की कथाएँ सुनावें तो बाबा !
इतिहास की कहानियाँ सुनावें तो नेता!
सबसे बड़ी समानता यह कि दोनों के हाथ पैर दुरुस्त शरीर स्वस्थ होने पर भी दोनों मेहनत से बहुत कतराते हैं फिर भी अपार धन संग्रही एवं विलासितापूर्ण जीवन जीने के शौकीन होते हैं ! किसानों में ऐसी क्या कमी है कि उन्हें इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकती ! इसी प्रकार से आधुनिक नेता हों या बाबा दोनों को मीडिया बनाता है और मीडिया ही नष्ट कर देता है।अक्सर जब बाबा कहीं फँसते हैं तो नेता उनकी मदद करने लगते हैं और नेता फँसें तो बाबा !क्योंकि दोनों की पोल दोनों के पास दबी होती है!दोनों का संपूर्ण खर्च आम जनता बहन करती है !उसमें किसान मजदूर आदि सभी आम लोग सम्मिलित होते हैं ।
नेता जब खूब धन इकट्ठा कर लेते हैं तो ईमानदार दिखने के लिए साधुओं जैसे बात व्यवहार करने लगते हैं और बाबा जब खूब धन संग्रह कर लेते हैं तो अपनी ताकत दिखाने के लिए नेताओं जैसे बात व्यवहार करने लगते हैं इसीप्रकार नेता बदनाम होते हैं तो संन्यास लेने की बात करते हैं और बाबा राजनीति की ओर बढ़ने लगते हैं
दोनों ही अपनी अच्छी बुरी बात समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेते हैं ।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है।
इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।
जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर है कौन ?
No comments:
Post a Comment