प्रशांत जी बड़े वकील हैं और योगेंद्र जी बड़े पत्रकार !जब उनके विरुद्ध कुछ होगा तो वे क्या चुप बैठेंगे !इसके साइड इफेक्ट क्या नहीं होंगे ?यदि पार्टी के पास इनके विरुद्ध कोई मजबूत आधार नहीं हैं तो क्या इससे आहत होकर और भी आत्मसम्मानी और स्वाभिमानी और नेता भी पार्टी छोड़कर नहीं चले जाएँगे आम आदमी पार्टी आज केवल एक पार्टी ही नहीं अपितु सरकार भी है गंभीरता तो रखनी ही चाहिए !प्रचंड बहुमत भी पचा नहीं पा रही है पार्टी !
लोगों से सुना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी फैसले लेने के बाद जनता की राय सुमारी वाली खाना पूर्ति एक बार फिर करने जा रही है इसी के तहत जिन नेताओं को पार्टी से निकालने का निर्णय ऊपर ऊपर हो चुका है अब उन्हें निकालने की माँग करते हुए उन नेताओं के विरुद्ध विधायकों से शिकायती लेटर माँगे जा रहे हैं ताकि कहा जा सके कि विधायकों और कार्यकर्ताओं की माँग पर उन्हें निकाला जा रहा है आदि आदि !किंतु जनता सब जानती है इसे अधिक दिनों तक भ्रमित नहीं सकता है !
अभी तक प्रशांत जी और योगेंद्र जी के विरुद्ध पार्टी कोई मजबूत आधार जनता को नहीं बता सकी है जिसके कारण उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है जहाँ तक बात अरविंद को पार्टी संयोजक पद हटाने की है तो उसका खंडन सार्वजनिक योगेंद्र जी करते रहे हैं फिर भी यदि ऐसी ही कोई विशेष बात है तो कारण बताओ नोटिश देकर उनका अभिप्राय कानाफूसी से ऊपर उठकर सार्वजनिक रूप से जानना जरूरी था या इस मामले को पार्टी के लोकपाल के पास भेजा जा सकता था राजनीति में ये सब चला करता है क्योंकि हर आदमी राजनीति में अपने को आगे बढ़ाने के लिए ही आता है और ये हर स्तर पर चलता है तो इसे इतने बड़े अपराध की तरह प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए !दूसरी बात पार्टी के इस तरह के बिखराव से जो पीड़ा पार्टी चाहिए मीडिया में जो लोग अभी तक बोलते दिखाए गए हैं उनके चेहरों से से तो कम से कम ऐसा व्यक्त नहीं होता है !उनकी वाणी में वो गंभीरता नहीं दिखती है जो पार्टी के प्रति समर्पित जिम्मेदार लोगों में दिखनी चाहिए !
यदि आज कुछ नेताओं के साथ ऐसा किया गया तो क्या गारंटी कि बाक़ी लोगों के साथ कल ऐसा नहीं होगा !तो क्या हर असंतुष्ट नेता को प्याज के छिलकों की तरह यूँ ही निकालते रहा जाएगा या कुछ को सहने और कुछ को मनाने की कोशिश भी की जाएगी ।
यदि प्रशांत जी और योगेंद्र जी जैसे नेताओं के प्रति इतना ही असंतोष था तो उसी समय निकाल दिया जाता आखिर डर तब किस बात का था और तब मनाया क्यों जाता रहा !और अब विवाद बढ़ाना जरूरी क्यों था अब तो उन्हें भी जवाब जनता ने ही दे दिया था तो अब तो बारी काम करने की थी विरोधी लोग धीरे धीरे स्वयं किनारे हो जाते !कई पार्टियों में ऐसा होता रहता है । यदि इस विजय को पचा लिया गया तो अच्छा होता !आज तो पार्टी को निर्विवाद बने रखने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पार्टी के उन लोगों की है जो पार्टी के वास्तविक हितैषी अपने को मानते हैं क्योंकि सिद्धांततः निकाले जाने वाले नेताओं के पास इस समय खोने के लिए राजनैतिक रूप कुछ नहीं है रही बात निजी प्रतिष्ठा की तो वो उनसे छीनी नहीं जा सकती क्योंकि राजनैतिक आरोप प्रत्यारोप व्यक्ति की जीवंतता के द्योतक होते हैं जो राजनीति के अंग होते हैं । आखिर वो उन लोगों से तो लाख गुना अच्छे हैं जो पार्टी और संगठन में जिम्मेदारी विहीन होने के कारण अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह विवाद बना और बढ़ाकर ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं इसी प्रकार से चर्चा में बने रहते हैं अन्यथा उन्हें जनता भूल जाएगी !राजनीति में और कुछ मिले या न मिले किंतु चर्चा में तो हर कोई रहना ही चाहता है और यदि ऐसा नहीं है तो फिर वो नेता ही नहीं है ।
दिल्ली सरकार यदि जनता का काम नहीं कर सकती तो मना कर दे !क्या बुराई है इसमें अन्यथा पिछली बार ये कहकर सरकार गिरा दी गई कि बहुमत नहीं था अबकी बार बहुमत है तो आपसी छींटाकसी के आपसी आरोप प्रत्यारोपों में दोनों ओर से ढका छिपा बहुत कुछ निकलेगा जो और कुछ हो या न हो किंतु पार्टी और सरकार दोनों के हित में नहीं होगा !
आम आदमी पार्टी में ये रोज की शिर फुटौव्वल ठीक नहीं हैं ये पार्टी कार्यकर्ताओं का ही नहीं उन वोटरों के समर्पण का भी अपमान है जिन्होने आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत दिया है आज विरोधी पार्टियों के लोग न केवल दिल्ली की जनता को मुख चिढ़ा रहे हैं अपितु आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी दिग्भ्रमित हैं कि वो क्या मानें!
रही बात सरकारी कामकाज की तो आम आदमी पार्टी ने जनता को जो सपने दिखाए हैं वो पूरे कर सकती है तो करे अन्यथा मना कर दे !किंतु ये सब ठीक नहीं है जो आजकल चल रहा है !आम आदमी पार्टी के जिन कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी सरकारी विभागों में पेंडिंग पड़े जनता के काम कराने की है वो पार्टी के विवादों से मायूस हैं !इसलिए सरकार बने इतने दिन हो गए हैं किन्तु सरकारी और निगम स्कूलों में पढ़ाई पहले नहीं थीं पढ़ाई आज भी नहीं हो रही है ,ऐसे और भी बहुत सारे काम हैं जिनमें लापरवाही हो रही है जनता की शिकायतों के प्रति जवाबदेय पहले भी कोई नहीं था आज भी नहीं है!आखिर जैसे सारी सरकारें चलती रही हैं वैसे ही तो आम आदमी पार्टी सरकार भी चल रही है अंतर केवल इतना है कि दिल्ली की सत्ता में एक नई पार्टी सत्ता रूढ़ हुई है किन्तु आज तक इस सरकार ने भी कोई ऐसा कदम तो नहीं उठाया जहाँ जनता अपनी समस्या जा कर बतावे तो उसकी न केवल सुनी जाए उसका समाधान भी किया जाए और यदि समाधान न हो सके तो कम से कम मना तो कर ही दिया जाए !आखिर आशा तो टूटे !
वैसे नई पार्टी जो भी सत्ता में आती है वो कुछ दिन शिकायतें सुनने का व्यवहार करते तो दीख पड़ती है नई नई शौक होती है किंतु काम करना बश का नहीं होता तो चुप होकर बैठ जाते हैं मैंने भी एक शिकायत इस सरकार के उपलब्ध लगभग हर माध्यम में की है किन्तु आज तक मुझे नहीं लगता कि झगड़े झंझट के कारण नेताओं को समय मिला भी होगा और उन्होंने शिकायत पढ़ी भी होगी !मैं तो समझता हूँ कि ऐसा ही औरों के साथ भी होता होगा !खैर,अभी तक तो दिल्ली की जनता का समय और ध्यान दोनों भटकाया जा रहा है आखिर क्यों ?जिन वालंटियर्स को जनता से किये हुए वायदों को पूरा करने में लगना था वो अपने हाई कमान के झगड़े से निस्तब्ध हैं कि ये तो अपने को त्यागी कह रहे थे किन्तु आज ये सब हो क्या रहा है ?
लोगों से सुना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी फैसले लेने के बाद जनता की राय सुमारी वाली खाना पूर्ति एक बार फिर करने जा रही है इसी के तहत जिन नेताओं को पार्टी से निकालने का निर्णय ऊपर ऊपर हो चुका है अब उन्हें निकालने की माँग करते हुए उन नेताओं के विरुद्ध विधायकों से शिकायती लेटर माँगे जा रहे हैं ताकि कहा जा सके कि विधायकों और कार्यकर्ताओं की माँग पर उन्हें निकाला जा रहा है आदि आदि !किंतु जनता सब जानती है इसे अधिक दिनों तक भ्रमित नहीं सकता है !
अभी तक प्रशांत जी और योगेंद्र जी के विरुद्ध पार्टी कोई मजबूत आधार जनता को नहीं बता सकी है जिसके कारण उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है जहाँ तक बात अरविंद को पार्टी संयोजक पद हटाने की है तो उसका खंडन सार्वजनिक योगेंद्र जी करते रहे हैं फिर भी यदि ऐसी ही कोई विशेष बात है तो कारण बताओ नोटिश देकर उनका अभिप्राय कानाफूसी से ऊपर उठकर सार्वजनिक रूप से जानना जरूरी था या इस मामले को पार्टी के लोकपाल के पास भेजा जा सकता था राजनीति में ये सब चला करता है क्योंकि हर आदमी राजनीति में अपने को आगे बढ़ाने के लिए ही आता है और ये हर स्तर पर चलता है तो इसे इतने बड़े अपराध की तरह प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए !दूसरी बात पार्टी के इस तरह के बिखराव से जो पीड़ा पार्टी चाहिए मीडिया में जो लोग अभी तक बोलते दिखाए गए हैं उनके चेहरों से से तो कम से कम ऐसा व्यक्त नहीं होता है !उनकी वाणी में वो गंभीरता नहीं दिखती है जो पार्टी के प्रति समर्पित जिम्मेदार लोगों में दिखनी चाहिए !
यदि आज कुछ नेताओं के साथ ऐसा किया गया तो क्या गारंटी कि बाक़ी लोगों के साथ कल ऐसा नहीं होगा !तो क्या हर असंतुष्ट नेता को प्याज के छिलकों की तरह यूँ ही निकालते रहा जाएगा या कुछ को सहने और कुछ को मनाने की कोशिश भी की जाएगी ।
यदि प्रशांत जी और योगेंद्र जी जैसे नेताओं के प्रति इतना ही असंतोष था तो उसी समय निकाल दिया जाता आखिर डर तब किस बात का था और तब मनाया क्यों जाता रहा !और अब विवाद बढ़ाना जरूरी क्यों था अब तो उन्हें भी जवाब जनता ने ही दे दिया था तो अब तो बारी काम करने की थी विरोधी लोग धीरे धीरे स्वयं किनारे हो जाते !कई पार्टियों में ऐसा होता रहता है । यदि इस विजय को पचा लिया गया तो अच्छा होता !आज तो पार्टी को निर्विवाद बने रखने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पार्टी के उन लोगों की है जो पार्टी के वास्तविक हितैषी अपने को मानते हैं क्योंकि सिद्धांततः निकाले जाने वाले नेताओं के पास इस समय खोने के लिए राजनैतिक रूप कुछ नहीं है रही बात निजी प्रतिष्ठा की तो वो उनसे छीनी नहीं जा सकती क्योंकि राजनैतिक आरोप प्रत्यारोप व्यक्ति की जीवंतता के द्योतक होते हैं जो राजनीति के अंग होते हैं । आखिर वो उन लोगों से तो लाख गुना अच्छे हैं जो पार्टी और संगठन में जिम्मेदारी विहीन होने के कारण अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह विवाद बना और बढ़ाकर ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं इसी प्रकार से चर्चा में बने रहते हैं अन्यथा उन्हें जनता भूल जाएगी !राजनीति में और कुछ मिले या न मिले किंतु चर्चा में तो हर कोई रहना ही चाहता है और यदि ऐसा नहीं है तो फिर वो नेता ही नहीं है ।
दिल्ली सरकार यदि जनता का काम नहीं कर सकती तो मना कर दे !क्या बुराई है इसमें अन्यथा पिछली बार ये कहकर सरकार गिरा दी गई कि बहुमत नहीं था अबकी बार बहुमत है तो आपसी छींटाकसी के आपसी आरोप प्रत्यारोपों में दोनों ओर से ढका छिपा बहुत कुछ निकलेगा जो और कुछ हो या न हो किंतु पार्टी और सरकार दोनों के हित में नहीं होगा !
आम आदमी पार्टी में ये रोज की शिर फुटौव्वल ठीक नहीं हैं ये पार्टी कार्यकर्ताओं का ही नहीं उन वोटरों के समर्पण का भी अपमान है जिन्होने आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत दिया है आज विरोधी पार्टियों के लोग न केवल दिल्ली की जनता को मुख चिढ़ा रहे हैं अपितु आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी दिग्भ्रमित हैं कि वो क्या मानें!
रही बात सरकारी कामकाज की तो आम आदमी पार्टी ने जनता को जो सपने दिखाए हैं वो पूरे कर सकती है तो करे अन्यथा मना कर दे !किंतु ये सब ठीक नहीं है जो आजकल चल रहा है !आम आदमी पार्टी के जिन कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी सरकारी विभागों में पेंडिंग पड़े जनता के काम कराने की है वो पार्टी के विवादों से मायूस हैं !इसलिए सरकार बने इतने दिन हो गए हैं किन्तु सरकारी और निगम स्कूलों में पढ़ाई पहले नहीं थीं पढ़ाई आज भी नहीं हो रही है ,ऐसे और भी बहुत सारे काम हैं जिनमें लापरवाही हो रही है जनता की शिकायतों के प्रति जवाबदेय पहले भी कोई नहीं था आज भी नहीं है!आखिर जैसे सारी सरकारें चलती रही हैं वैसे ही तो आम आदमी पार्टी सरकार भी चल रही है अंतर केवल इतना है कि दिल्ली की सत्ता में एक नई पार्टी सत्ता रूढ़ हुई है किन्तु आज तक इस सरकार ने भी कोई ऐसा कदम तो नहीं उठाया जहाँ जनता अपनी समस्या जा कर बतावे तो उसकी न केवल सुनी जाए उसका समाधान भी किया जाए और यदि समाधान न हो सके तो कम से कम मना तो कर ही दिया जाए !आखिर आशा तो टूटे !
वैसे नई पार्टी जो भी सत्ता में आती है वो कुछ दिन शिकायतें सुनने का व्यवहार करते तो दीख पड़ती है नई नई शौक होती है किंतु काम करना बश का नहीं होता तो चुप होकर बैठ जाते हैं मैंने भी एक शिकायत इस सरकार के उपलब्ध लगभग हर माध्यम में की है किन्तु आज तक मुझे नहीं लगता कि झगड़े झंझट के कारण नेताओं को समय मिला भी होगा और उन्होंने शिकायत पढ़ी भी होगी !मैं तो समझता हूँ कि ऐसा ही औरों के साथ भी होता होगा !खैर,अभी तक तो दिल्ली की जनता का समय और ध्यान दोनों भटकाया जा रहा है आखिर क्यों ?जिन वालंटियर्स को जनता से किये हुए वायदों को पूरा करने में लगना था वो अपने हाई कमान के झगड़े से निस्तब्ध हैं कि ये तो अपने को त्यागी कह रहे थे किन्तु आज ये सब हो क्या रहा है ?
आम आदमी पार्टी का उतना नुक्सान दूसरे कभी नहीं कर सकते थे जितना उसके
अपनों ने किया है दूसरी बात आम आदमी पार्टी को उनसे उतना नुक्सान नहीं है
जो पार्टी के मूल सिद्धांतों पर भटकाव के विरुद्ध खुल कर अपना विरोध
व्यक्त कर रहे हैं अपितु सबसे बड़ा नुक्सान उनसे है जो पार्टी की हमदर्दी
दिखाने के लिए पार्टी के सिद्धांतों से समझौता करने पर आमादा हैं आज ये बात
अंदर वालों ने उठाई तो उनका गला दबाया जा है किंतु कल जब यही बात जनता से
उठेगी तो क्या उसका भी उसका भी मुख बंद करने के लिए कुछ किया जाएगा !क्योंकि
पार्टी भटकी है प्रचंड बहुमत मिलने के बाद विरोधियों के मुख तो बंद हो गए
किंतु ये विजय उसके अपने नहीं पचा पाए !
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